मुझे याद है जब मैं जामिया मिल्लिया इस्लामिया में पत्रकारिता का छात्र था तो हमारे गुरु ने पत्रकारिता और पत्रकार की "ज़िम्मेदारी" पर बात करते हुए बताया था। अगर एक पत्रकार चाहे तो समाज को सुधार सकता है या फिर समाज को नरक बना देता है। कमलेश्वर की बात करते हुए हमारे गुरु ने बताया था की एक बार की बात है जब कमलेश्वर दैनिक समाचार पत्र के संपादक थे उसी दरम्यान देश में सांप्रदायिक दंगा हुआ उसमें तीन हिंदुओं के मरने की खबर आ रही थी लेकिन अखबार के मालिक का कहना था कि वो (कमलेश्वर) तीन की जगह तीस हिंदुओं के मारने की खबर लगाएं अखबार में। लेकिन कमलेश्वर ने ऐसा करने से साफ़ मना कर दिया और मालिक (अथॉरिटी) से साफ़ शब्दों में कहा कि ये आपके लिए एक छोटी बात है लेकिन मेरी इस हेडिंग से पूरे देश में आग लग जाएगी। इसलिए मैं अपनी पत्रकारिता के प्रति ज़िम्मेदारी को समझते हुए ऐसा नहीं कर सकता। इस बात के बाद कमलेश्वर को इस्तीफ़ा भी देना पड़ गया था।
आज भी देश में अथॉरिटी समाचार पत्रों और समाचार चैनलों पर पूरी तरह से अंकुश लगाने की जुगाड़ में है। वैसे लगभग ढेर सारे पर तो अंकुश लग ही चुका है। इतने से भी अथॉरिटी को तसल्ली नहीं है। अब उसकी चाहत है कि वो सबके ऊपर अपना वर्चस्व बनाये रखे। वैसे सबके ऊपर तो है ही लेकिन जो आटे में नमक के बराबर है उसे भी अथॉरिटी अपने क़ब्ज़े में लेना चाहती है। जो क़ब्ज़े में नहीं आ रही है उसके ऊपर बैन लगाकर अपना वर्चस्व बनाना चाहती है। देश में ये खबर बड़ी तेज़ी से घूम रही कि 9 नवम्बर को हिंदी न्यूज़ चैनल एन डी टी वी इंडिया को ऑफ एयर करना पड़ेगा। चैनल पर आरोप है कि पठानकोट एयरबेस पर आतंकवादी हमले के समय सही रिपोर्टिंग नहीं की गयी। चैनल ने वो चीज़ें भी दिखाई जो सुरक्षा कारणों से नहीं दिखाया जाना चाहिए था। ऐसा नहीं है कि आज पहली बार अथॉरिटी ने किसी चैनल पर डण्डा चलाया है। इससे पूर्व की सरकारें भी चैनलों को ऑफ एयर करने का आदेश जारी कर चुकी है। लेकिन वो मामला शायद अलग हैं। ये मामला बिलकुल अलग है। एनडीटीवी द्वारा पिछले दिनों की गयी रिपोर्टिंग कहीं न कहीं सरकार को मजबूर कर रही है कि वो इस चैनल पर कोई कड़ी करवाई करे।
जब पूरा मीडिया समूह एक तरफ सरकार का गुण गान करने पर लगा हुआ है वहीँ एनडीटीवी इंडिया अपनी बेबाक अंदाज़ में अपने तेवर में कोई बदलाव न लाने की ज़िद पर अड़ा हुआ है। ये कैसे भूल सकते हैं कि फरवरी में हुए जेएनयू प्रकरण के बाद से ही एनडीटीवी इंडिया सरकार की नज़र में आ गया था क्योंकि लगभग मीडिया समाज जहाँ कन्हैया को देशद्रोही कहने में जल्दबाज़ी कर रहा था वहीं एनडीटीवी इंडिया कन्हैया को गरीबी से जूझने वाला केवल छात्र कह रहा था। हालाँकि कन्हैया वाले मामले में सबसे अधिक एक्टिव रहने वाले चैनल ज़ी न्यूज़ के ही एक पत्रकार विश्वदीपक ने अपनी संस्था ज़ी न्यूज़ से इस्तीफा देदिया था ये कहते हुए कि 'मेरा ये त्याग पत्र गुस्से या खीझ का नतीज़ा नहीं है, बल्कि एक सुचिंतित बयान है. मैं पत्रकार होने से साथ-साथ उसी देश का एक नागरिक भी हूं जिसके नाम अंध ‘राष्ट्रवाद’ का ज़हर फैलाया जा रहा है और इस देश को गृहयुद्ध की तरफ धकेला जा रहा है. मेरा नागरिक दायित्व और पेशेवर जिम्मेदारी कहती है कि मैं इस ज़हर को फैलने से रोकूं. मैं जानता हूं कि मेरी कोशिश नाव के सहारे समुद्र पार करने जैसी है लेकिन फिर भी मैं शुरुआत करना चहता हूं. इसी सोच के तहत JNUSU अध्यक्ष कन्हैया कुमार के बहाने शुरू किए गए अंध राष्ट्रवादी अभियान और उसे बढ़ाने में हमारी भूमिका के विरोध में मैं अपने पद से इस्तीफा देता हूं. मैं चाहता हूं इसे बिना किसी वैयक्तिक द्वेष के स्वीकार किया जाए.'
विश्वदीपक ने ये भी लिखा है की मई 2014 के बाद से जब से श्री नरेन्द्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने हैं, तब से कमोबेश देश के हर न्यूज़ रूम का सांप्रदायीकरण (Commercialization) हुआ है लेकिन हमारे यहां स्थितियां और भी भयावह हैं. माफी चाहता हूं इस भारी भरकम शब्द के इस्तेमाल के लिए लेकिन इसके अलावा कोई और दूसरा शब्द नहीं है. आखिर ऐसा क्यों होता है कि ख़बरों को मोदी एंगल से जोड़कर लिखवाया जाता है ? ये सोचकर खबरें लिखवाई जाती हैं कि इससे मोदी सरकार के एजेंडे को कितना गति मिलेगी?
अभी सरकार के फैसले से सभी आहात हैं लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनको एन डी टी वी इंडिया के ऊपर की गयी कार्यवाई बिलकुल उचित लग रही है। उचित हो भी सकती है लेकिन मेरा मानना है की एक रवीश कुमार के कारण पूरे चैनल पर एक दिन के लिए प्रतिबंध सही नहीं है। ये बात बिलकुल सही है कि रविश कुमार ने जिस तरह से अपने कर्तव्यों का पालन किया है वो प्रशंसनीय है वहीँ दुसरे ओर हमारे पत्रकार बंधू और उनकी संस्थाएं जिस तरह से सरकारी मशीनरियों का गुणगान कर रहे हैं वो एक चिंता का विषय है।
एक पत्रकार का काम है सरकार से सख्त सवाल पूछना मगर हमारे पत्रकार ठीक उसके विपरीत हंसी मज़ाक में टाइम पास करने में व्यस्त हैं। आज हमारी पत्रकारिता संदेह के घेरे में है हर कोई संदेह की नज़र से देख रहा है। आज कोई राह चलता भी पत्रकार को दलाल कह देता है। और हम उसके बाद भी कुछ नहीं कर पाते हैं। आज पत्रकारों को मिली वाई और जेड प्लस सिक्योरिटी अपने आपमें ही एक सवाल है।
पत्रकारिता का स्तर कितना गिर गया है इस बात का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि स्टूडियो में बैठे हमारे पत्रकार एक दुसरे पर लांछन लगाने लगे हैं। सवाल के नाम पर डराया जाने लगा है। एंकर खुद जज बनने लगे हैं। एंकर खुद जज बनने लगे हैं। कम से कम एनडीटीवी इंडिया के कुछ प्रोग्रामों में शालीनता तो देखने को मिलती है। जहाँ हर चैनल केवल राष्ट्रभक्ति और देश द्रोही जैसे विषयों से ओतप्रोत हैं वहीँ देश की दूसरी समस्याओं को उठाने के लिए एन डी टी वी इंडिया धन्यवाद का पात्र है।
कल रवीश कुमार के द्वारा एक नया प्रयोग देखने लायक़ था। जहाँ देश का हर चैनल राष्ट्र भक्ति में डूब हुआ है वहीँ रवीश कुमार ने प्राइम टाइम के स्लॉट में एक कलाकारों को जगह देकर उनके प्रति अपनी सोच को जाहिर कर दिया। माइम एक्ट जहाँ लगभग देश से लुप्त होता हुआ दिखाई देरहा है उसे रवीश ने ज़िंदा करने की एक कोशिश है। ये प्रयास सराहनीय था। एक नया प्रयोग है नए ज़माने के मीडिया के लिए। वैसे देश के मीडिया चैनलों को राष्ट्रभक्ति के अलावा भी कुछ सोचना चाहिए।
कुछ बात जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के गायब हुए छात्र नजीब के बारे में।
आज लगभग एक महीने से गायब नजीब का कुछ अता पता नहीं है। अभी आज ही एक रिपोर्ट देख रहा था जिसमें भाजपा के राजस्थान के रामगढ़ से विधायक ज्ञानदेव आहूजा जो जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के बारे में बोल रहे थे वो बड़ी ही खूबसूरती से वहां की बुराईयों को गिना रहे थे जिसमे वहां के बारे में शोध करके सबकुछ बता रहे थे। जैसे जे एन यूं कैंपस में कंडोम , सिगरेट के फ़िल्टर ,जली हुई बीड़ी , चिप्स के रैपर इत्यादि। जब ज्ञानदेव आहूजा जी इन सब चीजों को इतनी अआसानी से पता लगा सकते हैं तो फिर नजीब को ढूंढने में इतनी मुश्किल क्यों हो रही हैं। जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी प्रशासन को ज्ञानदेव आहूजा जी से मदद लेनी चाहिए। शायद नजीब मिल जाये। और उसकी बूढी माँ चैन की नींद सो सके। वैसे अभी तक प्रशासन कार्यवाई क्यों नहीं कर रही है ये भी शोध का विषय है। अंत में यह कहना सही होगा की आज कल दिल्ली का माहौल बहुत प्रदूषित होगया है और दिल्ली में प्रदूषित माहौल के लिये रवीश के शब्दों ये कार्बन का काल है ये आपातकाल है।
maaz khan
mohdmaazkhan@gmail.com
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