हिंदी के विख्यात कवि हरिऔध ने लिखा है - प्रकृति अपरिमित ज्ञान का भंडार है । पत्ते - पत्ते में शिक्षापूर्ण पाठ है , परन्तु उनसे लाभ उठाने के लिए अनुभव आवश्यक है । मँगोलिक दृष्टि से भारत प्रकृति का हिंडोला है । प्रकृति के चित्र -विचित्र दृश्यों से हमारा मन लुब्ध हो उठता है । कभी वर्षा की रिमझिम फुहारों से धरती स्नेहासनाथ हो उठती है और मेघशावकों की क्रीड़ा और मयूर के नर्तन से मन पुलकित हो उठता है तो कभी हेमंत के निष्ठुर स्पर्श से फूलों के अधर नीले पड़ जाते है । बसंत की अल्हड़ता और मस्ती की मादक तरुणाई में आकाश और धरती का प्रांगण सिहरने लगता है । कभी ग्रीष्म के प्रचंड तप से नदी , नाले सभी सूख जाते है । इस प्रकार प्रकृति के विभिन्य रूपों और दृश्यों का सुन्दर चित्रपट हमें ऋतुओं के आवगमन के साथ स्पस्टतः दृष्टि गोचर होता है , प्रकृति अपने इन सौंदर्य प्रसाधनों के द्वारा हमें सन्देश देती है कि हम इस सौंदर्य का आनंद ले क्योकि वह सुख़ -दुःख कि सहचरी बनकर हमारे साथ -साथ रोती हंसती गाती रहती है । सृस्टि के विकास में सभी ऋतुओं का महत्वपूर्ण योगदान है । प्रकृति और मानव का सम्बन्ध युगों से है । भले ही मानव जीवन आज कृतिम हो गया है , किन्तु प्रकृति से अलग हो कर वह रह नहीं सकता ।
गगनचुम्बी गिरि श्रृंगसागर में उठने वाले लोल लहर तथा पक्षिओं के कलख में जो संगीत है , उसके बिना मानव जीवन शुष्क है , नीरस है , आनंद विहीन है । अनेकनिक कवियों ने भी इसमें आधात्म , रहस्य , दर्शन ,सौन्दर्य का रूप और भाव देखा है । प्रकृति की प्र्त्येक धड़कन में एक लय है , एक संगीत है । कालिदास से लेकर तुलसी और पंत तक ने प्रकृति से प्रेरणा ग्रहण करके अनेक रचनाएँ की है ।गति के रथ पर बैठी हुई प्रकृति रानी पतझड़ और बसंत आदि ऋतुओं के संचरण वृत में घूमती रहती है ।कभी भी विश्राम नहीं ।सागर अनंत युग से हिलोरे ले रहा है । वायु की साँस एक पल के लिए भी नहीं रूकती । प्रकृति अनंत का सन्देश है । कर्म मय जीवन के प्रवाह को कभी रुकने नहीं देना , क्योंकि रुकना मौत का प्रतिक है । भारत के विभिन्य भागों के प्राकृतिक दृश्य हमें मोहित करता है । वन प्रांतों में कहीं शाल , सागवान और देवदार की हरीतिमा मन को मोहित करती है तो कहीं अनेक प्रकार के फूलों से लदी डालियाँ तो कहीं हिंसक पशुओं का भय मन को डरा भी देता है।नदी और समुद्र तट पर उसकी उठती गिरती लहरें , उनकी झंकार मन को मोहित कर लेती है । युग - युग में कवि अपनी कोमल भावना के पत्र पुष्प लेकर प्रकृति सुषमा की आराधना करता आया है । जीवन संकीर्ण रेखाओं से घिरा भौतिक हलचल से ग्रस्त है जबकि प्रकृति में स्नेह और शांति है , संगीत आकर्षण है , इसी कारण व्यक्ति उसी सुष्मा की ओर आकर्षित होता है , प्रकीर्ति में मानव जीवन के लिए प्रेरणा देता है । प्रकृति के कण -कण में सौंदर्य व्याप्त है ,इसकी समस्त सुषमाओं का वर्णन करना कठिन है । सच है प्रकृति मानव की सहचरी होने के साथ सहायक भी है । मानव जीवन की प्रसन्नता और सार्थकता प्रकृति के सुंदरतम और आकर्षक रूप के भावलोकन में ही है ।
Nita Sahai,
21, Sindhu Nagar Colony, Sigra Varanasi. 221001 UP
बहुत ही बेहतरीन article लिखा है आपने। Share करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। :) :)
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