-केशव भट्ट-
बागेश्वर में एक गैर राजनैतिक मंच है जिसे नाम दिया गया है नागरिक मंच। हर वर्ष वो ढूंढकर समाज के सामने ऐसे चेहरों को लेकर आते हैं जिनसे बहुत कुछ सीखने को मिलता है। उन चेहरों के पीछे छुपा रहता है त्याग, करूणा, सच पर कायम रहने की हिम्मत। उनकी कहानियां काल्पनिक और नेताओं के आश्वासनों की तरह नहीं होती। उनकी कहानियों में संघर्षमय जिंदगी जीने का सच छुपा होता है। हर बार की तरह इस बार भी मंच दो चेहरों को समाज के सामने लाया। दोनों अपने क्षेत्र में कमर्ठ, ईमानदार व जुझारू हैं।इस बार नागरिक मंच ने उप कोषागार कांडा में सहायक कोषाध्यक्ष के पद पर तैनात जितेन्द्र चन्द्र उपाध्याय को ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने पर नागरिक सम्मान से नवाजा। इस बार मुख्य वक्ता संजीव चतुर्वेदी रहे। संजीव चतुर्वेदी एक आईएफएस अधिकारी हैं। इन्हें भ्रष्टाचार से लड़ने में उल्लेखनीय योगदान के लिये 2015 में रमन मैग्सेसे पुरस्कार दिया गया। एवार्ड में मिले तीस हजार डॉलर को उन्होंने पहले एम्स को देना चाहा लेकिन उन्होंने मना कर दिया तो उन्होंने इसे फिर प्रधानमंत्री राहत कोष में दे दिया।
बहरहाल भ्रष्टाचार से इनकी लड़ाई जारी है। इन्हें इससे पहले किन—किन मंचों ने बुलाया ये तो मालूम नहीं। हां बागेश्वर में नागरिक मंच के आलोक साह व पंकज पांडे इनके हर खबरों पर लंबे समय से नजर गड़ाए थे। और संजीवजी से फोन से संपर्क कर इन्होंने अपने मंच के बारे में बताया और बागेश्वर आने को कहा तो संजीवजी मंच के बारे में जानकर तुरंत ही तैंयार हो गए। थोड़ा सा संजीव चतुर्वेदी के बारे में भी बता दूं जो मुझे उनसे बात करके मालूम हुआ। बागेश्वर में नागरिक मंच के कार्यक्रम से कुछ पहले इनसे मुलाकात हुई। उस वक्त आम आदमी की तरह वो जमीन में बैठे थे। उनकी आपबीती सुन मैं सन्न सा रह गया कि राजनीति कितनी डरावनी सी हो गई है। ईमानदार के लिए यहां जगह नहीं है। वो जिंदा है तो बस उसकी हिम्मत और बांकी किस्मत। मासूम सा चेहरा लिए हुए संजीव चतुर्वेदी के अंदर भ्रष्टाचार से लड़ने की गजब की हिम्मत और हौसला दिखा। बड़ी ही साफगोई से उन्होंने अपनी लड़ाई के बारे में विस्तार से बताया। लगा कि वो टूटे नहीं हैं, बल्कि हर रोज मजबूत होते चले जा रहे हैं। इस तरह के जांबाज के साथ तो हर किसी को खड़ा होना चाहिए।
संजीव चतुर्वेदी 2002 के आईएफएस अधिकारी हैं। और पहली पोस्टिंग हरियाणा रही। भ्रष्टाचार से लड़ने में उल्लेखनीय योगदान के लिये इन्हें 2015 में रमन मैग्सेसे पुरस्कार से भी नवाजा गया। इस पुरूष्कार को एशिया का नोबल कहा जाता है। पुरूष्कार में मिली राशि तीस हजार डॉलर को इन्होंने एम्स में आने वाले गरीबों के मदद के लिए सरकार को दिए लेकिन वो चैक दो महीने बाद वापस आ गया तो इन्होंने उसे फिर प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा करवा दिया। 2005 में तात्कालीन राष्ट्पति एपीजे अब्दुल कलाम ने भी इनकी कार्यशैली से प्रभावित हो इन्हें मेडल से नवाजा।
हरियाणा काडर के वन अधिकारी के तौर पर जब संजीव चतुर्वेदी ने वहां भ्रष्टाचार की परतें खोलनी शुरू की तो मैदान में उनके सामने तात्कालीन मुख्यमंत्री खड़े हो गए। कुरूक्षेत्र में नहर बनाने वाले ठेकेदारों के खिलाफ कार्यवाही करते हुए एफआईआर करवा दी। उसके बाद हर्बल पार्क घोटाला, हरियाणा व हिसार में भवन निर्माण घोटाला जब ये सामने लाए तो मुख्यमंत्री ने इन्हें हर तरह से प्रताणना देनी शुरू कर दी। इस पर चतुर्वेदी ने 2010 में केन्द्र में प्रतिनियुक्ति के लिए आवेदन किया। 2012 में एम्स में डिप्टी डायरेक्टर का पद मिला और वहां इन्हें चीफ विजिलेंस आॅफिसर पर तैनाती मिली। दो साल में 150 से ज्यादा भ्रष्टाचार के मामले उजागर करने पर केन्द्र के तात्कालीन सांसद जेपी नड्डा को भी इनकी इमानदारी रास नहीं आई। उनके द्वारा एम्स में भर्ष्टाचार पर कार्यवाही और कुछ मामलों की जांच पर रोक लगाने के लिए सरकार, प्रधानमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री को लगातार पत्र लिखे गए, जिसका नतीजा यह हुआ कि हर्षवर्द्धन को हटाकर जेपी नड्डा को ही स्वास्थ्य मंत्री बना दिया गया। तत्पश्चात चतुर्वेदी को तत्काल सीवीओ पद से हटा दिया गया। यहां तक कि इनकी एपीआर (सालाना परफोर्मेंस रिपोर्ट) को ज़ीरो रेटिंग दे दी गई।
इसी बीच चतुर्वेदी ने अपनी जान को खतरा बताते हुए अपना काडर हरियाणा से बदल कर उत्तराखंड करने की मांग की। इसके साथ ही चतुर्वेदी ने कैट में केन्द्र सरकार के फैसले के खिलाफ याचिका दायर कर कहा कि उन्हें गलत तरीके से हटा कर उन्हें उत्पीड़ित किया जा रहा है। कैट ने संजीव चतुर्वेदी की याचिका सुनते हुए केंद्र सरकार के फैसले पर रोक लगा दी। कैट ने प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली कमेटी के फैसले पर जो रोक लगाई उसे काफी अहम माना गया।
इस बीच दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने संजीव चतुर्वेदी को अपना ओएसडी बनाने के लिए केंद्र सरकार से मांग भी की लेकिन वो बात भी ठंडे बस्ते में चली गई। बाद में उन्हें उत्तराखंड भेज कर फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट हल्द्वानी के वन संरक्षक की पोस्ट में डाल दिया गया। यहां आने पर उन्होंने नैनीताल हाईकोर्ट में याचिका डाल कर अपना पक्ष रखते हुए उन्होंने अपनी एपीएआर (सालाना परफोर्मेंस रिपोर्ट) को ज़ीरो रेटिंग दिये जाने का सवाल उठाया। चतुर्वेदी ने कहा था कि जिस अधिकारी (एम्स डायरेक्टर) के खिलाफ उन्होंने एम्स में सतर्कता अधिकारी रहते जांच की और सीबीआई ने उस जांच रिपोर्ट पर कार्रवाई की सिफारिश की वही अधिकारी उनकी एपीएआर कैसे लिख सकता है। अपने पक्ष में चतुर्वेदी ने केंद्रीय सतर्कता आयोग के नियमों का हवाला दिया जिसमें कहा गया है कि वह अधिकारी किसी की परफोर्मेंस रिपोर्ट नहीं लिख सकता जिसकी जांच या शिकायत सम्बन्धित अधिकारी ने की हो। जबकि उनकी सालाना परफोर्मेंस रिपोर्ट 14 साल तक आउटस्टैंडिंग रही और 2016-17 में भी उन्हें आउटस्टैंडिंग रेटिंग दी गई है। यानी केवल एक साल 2015-16 में खराब रेटिंग दी गई। और इसी साल 2015—16 में चतुर्वेदी को रमन मैग्सेसे अवॉर्ड भी मिला। चतुर्वेदी ने अदालत में कहा कि ये उनके मौलिक अधिकारों के हनन का मामला है क्योंकि एपीएआर ज़ीरो कर देने से उनका करियर खतरे में है यानी वो कभी भी नौकरी से निकाले जा सकते हैं। चतुर्वेदी ने ये भी कहा कि 2015-16 में उन्हें कोई काम ही नहीं दिया गया था जिसके खिलाफ उन्होंने ट्रिब्यूनल में अपील की थी। अगर काम ही नहीं था तो परफोरमेंस रिपोर्ट जीरो किसलिये की गयी।
अदालत ने जब इस बारे में केंद्र सरकार की ओर से खड़े एडीशनल सोलिसिटर जनरल राकेश थपलियाल से सवाल किया तो उन्होंने कहा कि चतुर्वेदी को हाइकोर्ट में आने से पहले ट्रिब्यूनल (सरकारी अफसरों की प्राथमिक अदालत) में गुहार करना चाहिये। सरकार की मांग पर हाइकोर्ट ने भी सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को उद्धत किया जिसमें कहा गया था कि याचिकाकर्ता को हाइकोर्ट में सीधे नहीं आना चाहिये।
चतुर्वेदी ने इसके खिलाफ दलील देते हुए कहा कि यही अदालत (उत्तराखंड हाइकोर्ट) इस तरह के सैकड़ों मामलों में न केवल सुनवाई कर चुकी है बल्कि फैसले भी दिए हैं। एक मामला राज्य के प्रमोटी वन सेवा अफसर अशोक कुमार गुप्ता का है। इस अफसर ने अपनी पदोन्नति को रोकने के लिए हाइकोर्ट से गुहार लगाई ताकि वह उसी पद पर रह चुके जिस पर पिछले छह सालों से है। चतुर्वेदी ने अदालत से कहा कि एएसजी राकेश थपलियाल जो चतुर्वेदी से पहले ट्रिब्यूनल जाने को कह रहे हैं, गुप्ता के मामले में वकील रह चुके हैं लेकिन अभी उनके केस में बिल्कुल विपरीत दलील दे रहे हैं। इस तर्क के बावजूद अदालत ने चतुर्वेदी से कहा कि वह पहले ट्रिब्यूनल जाएं और अगर वहां उन्हें राहत नहीं मिलती को हाइकोर्ट वापस आ सकते हैं।
इस पर जुलाई 2017 में संजीव ने कैट इलाहाबाद में दस्तक दी थी। कैट में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार के अधिवक्ताओं ने तर्क दिया था कि संजीव ने इसी तरह की याचिका दिल्ली कैट में दायर की है इसलिए इस याचिका का कोई अर्थ नहीं है। वहीं संजीव का तर्क था कि उन्होंने दिल्ली में याचिका इसलिए दायर की थी कि स्वास्थ्य मंत्री, निदेशक, उप निदेश को एसीआर लिखने से रोका जाए। दूसरा तर्क दिया था कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ही शून्य एसीआर के खिलाफ अपील अधिकारी हैं जब उन्होंने अप्रैल 2017 में अपील की तो दुर्भावना से ग्रस्त केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने शून्य बरकरार रखा था । दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद कैट की दो सदस्यीय सर्किट बेंच (इलाहाबाद कैट के सदस्य डॉ. मुर्तजा अली और चेन्नई कैट के प्रशासनिक सदस्य आर रामानुजम) ने 20 सितंबर को संजीव के पक्ष में फैसला दिया।
बहरहाल अभी उत्तराखंड हाई कोर्ट ने कैट ने वर्ष 2015-16 में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री, पूर्व निदेशक और उप निदेशक की संजीव की लिखी जीरो एसीआर पर रोक लगाते हुए केंद्र और राज्य सरकार को आदेश दिए है कि सेवा संबंधी किसी भी मामले में इस शून्य एसीआर का संज्ञान नहीं लिया जाए। संजीव चतुर्वेदी ने जून 2017 में नैनीताल उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर कहा था कि अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के मुख्य सतर्कता अधिकारी की तैनाती के दौरान वर्ष 2015-16 में दुर्भावना से ग्रस्त होकर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा, एम्स के तत्कालीन निदेशक डॉ. एमसी मिश्रा और उप निदेशक श्रीनिवास ने उनके एसीआर में शून्य दिया था। इस वजह से पिछले एक दशक की उत्कृष्ट सेवाओं पर बट्टा लग गया था। उन्होंने नैनीताल उच्च न्यायालय से इस एसीआर पर रोक लगाते हुए अंतरिम राहत देने की अपील की थी। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए नैनीताल हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश केएम जोसफ की खंडपीठ ने संजीव को पहले केंद्रीय न्यायिक अभिकरण (कैट) जाने के निर्देश दिए थे। उन्होंने संजीव को वर्ष 2015-16 की एसीआर के खिलाफ स्टे दे दिया है। उन्होंने लिखित फैसले में कहा कि मामले की सुनवाई तक केंद्र और राज्य सरकार संजीव की सेवा संबंधी किसी भी मामले पदोन्नति, नियुक्ति, प्रतिनियुक्ति में इस एसीआर को संज्ञान न ले। इस मामले की अगली सुनवाई 23 अक्तूबर को होगी।
बागेश्वर में उनसे मिलना सुखद रहा। यहां नागरिक मंच के कार्यक्रम में उन्होंने अपनी बातें बड़ी ही साफगोई से रखी। उन्होंने कहा कि नगारिक मंच को यदि ईमानदारी के साथ काम करना है तो राजनीति से दूर रहना होगा। निस्वार्थ भाव से मंच को बने रहना है, यदि स्वार्थ आएगा तो कभी भी भ्रष्टाचार खत्म नहीं हो सकता है। उन्होंने सवाल उठाया कि आखिर राजनीतिक पार्टियां आरटीआई का विरोध क्यों कर रही हैं। होना तो यह चाहिए कि चंदे व अन्य संसाधनों के लिए कैशलेस की शुरुआत राजनीतिक पार्टियों से हो। उन्होंने कहा कि देश में किसानों की हालत दिन प्रतिदिन खराब होती जा रही है। बेरोजगारी बढ़ती चली जा रही है। राजनीति तो आज के वक्त में रुपये कमाने का धंधा बन गया है। राजनीति करने वालों की आय बढ़ते जा रही है। जब तक भ्रष्टाचारी के खिलाफ सख्त सजा का प्रावधान तय ना हो देश तरक्की नहीं कर सकता।
भ्रष्टाचार का तंत्र इतना प्रभावी है कि ईमानदार अधिकारी कम होते चले जा रहे हैं। जनता जब ईमानदारी के साथ चलना शुरू करेगी तो कुछ हद तक भ्रष्टाचार में कमी आनी शुरू होगी। उन्होंने कहा कि हमें जापान, इजराइल की जनता से सीखना होगा। किस तरह से उन्होंने कई आपदाओं के बाद भी अपने देश को तरक्की के रास्ते में खड़ा किया। उन्होंने कहा कि सच्चाई में बहुत ताकत होती है। देर से ही सही लेकिन जीत उसी को मिलती है जो सच्चाई के रास्ते पर चलता है। मैने सरकारी नौकरी ने रहते हुए इसमें फैल रहे भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए काम किया। हरियाणा से नौकरी शुरू की और अभी उत्तराखंड में काम कर रहा हूं। मेरे पीछे पुलिस, विजीलेंस लगाई गई लेकिन कभी पीछे नहीं हटा। आज भी मैं वहीं काम कर रहा हूं।
भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करने वाली संस्थाएं सीबीआई, ईडी और राज्यों की जांच एजेंसियां भ्रष्ट राजनेता और अधिकारियों के प्रभाव में रहती हैं। मिलीभगत से बेखौफ लूट खसोट हो रही है। यही कारण है कि अब लोक संस्थाओं से आम आदमी का विश्वास उठ रहा है। चतुर्वेदी ने कहा कि अगर भ्रष्टाचार को खत्म करना है तो तीन काम पहले करने होंगे। पहला अभियोजन संस्थाओं को ताकतवर बनाना होगा, फास्ट ट्रैक कोर्ट चाहिए, उच्चतम स्तर पर हो रहे भ्रष्टाचार पर प्रहार करना होगा। पूर्व सीएम स्व. जे जयललिता केस का उदाहरण देते हुए कहा कि केस 1996 में शुरू हुआ। उनकी मौत भी हो गई, लेकिन केस खत्म नहीं हुआ। ऐसे कई हजारों मामले हैं।
चतुर्वेदी ने कहा कि नागरिक सेवाओं में भ्रष्टाचार चरम पर है। बिना घूस के कोई काम नहीं होता है। अमेरिका, सिंगापुर आदि में अगर नागरिक सेवा क्षेत्र में कोई भ्रष्टाचार होता है तो उसकी सजा सुनिश्चित है। इसलिए वहां इस तरह के मामले देखने को ही नहीं मिलते। भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए सभी लोगों को एक मंच पर आकर लड़ाई लड़ने की जरूरत है। नागरिक मंच की यह पहल सराहनीय है। उन्होंने इस मुहिम को लगातार आगे बढ़ानी चाहिए।
इस मौके पर हाईकोर्ट के अधिवक्ता डीके जोशी ने कहा कि हम लोग स्वार्थी हो गए हैं। जहां स्वार्थ होगा वहां भ्रष्टाचार की जड़ें मजबूत होंगी। उन्होंने कहा कि एक पिता आज बेटी के लिए सरकारी नौकर खोजता है। वह यह नहीं देखता है कि एक युवक पूरी मेहनत और लगन से काम कर रहा है। लेकिन उसके पास नौकरी नहीं है। उन्होंने कहा कि कमरतोड़ मेहनत करने की जरूरत है। लोगों को बेटी को काम करने लायक बनाना है। खेती के लिए तैयार करना है। उन्होंने कहा कि बेटी से आज कोई काम नहीं करना चाहता है। जिससे आए दिन तमाम तरह की घटनाएं हो रही हैं।
बहरहाल! नागरिक मंच से कोई सीखे तो सही। हर वर्ष वो ढूंढकर समाज के सामने ऐसे चेहरों को लेकर आते हैं जिनसे बहुत कुछ सीखने को मिलता है। ये मुहिम यूं ही चलती रहे।
keshav bhatt
keshavbhatt1@yahoo.com
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