राज्यसभा के उप-सभापति पद के लिए हरिवंश नारायण सिंह की विजय मेरे लिए व्यक्तिगत प्रसन्नता का विषय तो है ही, क्योंकि पिछले दो-तीन दशक से एक अच्छे पत्रकार की तरह उन्होंने ऊंचा नाम कमाया है। जब चंद्रशेखरजी प्रधानमंत्री थे तो उनके पत्रकार-संपर्क का काम उन्होंने बखूबी निभाया। वे राज्यसभा के सदस्य पहली बार बने और पहली ही बार में उसके उपसभापति बन गए। पत्रकारिता के क्षेत्र में आने के पहले एक प्रबुद्ध नवयुवक की तरह वे जयप्रकाशजी के आंदोलन में हमारे साथ रहे हैं। उनको हार्दिक बधाई!
उनसे आशा रहेगी कि वे अपने आचरण से अपने पद की गरिमा बढ़ाएंगे। यह तो हुई व्यक्तिगत बात लेकिन उनकी विजय ने भारतीय राजनीति में विपक्ष की पोल खोलकर रख दी है। यदि सारा विपक्ष एकजुट हो जाता तो सत्तारुढ़ गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर हरिवंश का जीतना मुश्किल हो जाता लेकिन हरिवंश को अपनी योग्यता, उनकी पार्टी के नेता नीतीशकुमार का हरक्यूलिसी प्रयत्न और कांग्रेस पार्टी का कुप्रबंध कांग्रेसी उम्मीदवार बी.के. हरप्रिसाद को ले बैठा। हरिप्रसाद को हरिवंश ने हराया 20 वोटों से।
हरिप्रसाद को मिले 105 और हरिवंश को मिले 120 ! यह कैसे हुआ ? राज्यसभा में तो आज भी विपक्ष का बहुमत है लेकिन वह जीत नहीं सका। कांग्रेस पार्टी ने अपना उम्मीदवार तो खड़ा कर दिया लेकिन उसके लिए जोर नहीं लगाया। आप पार्टी, वायएसआर पार्टी और पीडीपी ने वोट नहीं डाले। परिवर्जन किया। 7 वोट यों ही कम हो गए।
ओडिशा के नवीन पटनायक ने हरिवंश का पूर्ण समर्थन किया, क्योंकि उनकी पार्टी भी जयप्रकाश आंदोलन की संतान है और कांग्रेसी उम्मीदवार हरिप्रसाद ने ओडिशा के प्रभारी के तौर पर काफी कटुता पैदा की थी। इसके अलावा भाजपा ने अपने गठबंधन के असंतुष्ट सदस्यों को पटाए रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने काफी दक्षतापूर्वक इस चुनौती को सम्हाला। यदि यही परिदृश्य 2019 में भी बना रहा और कांग्रेस अपनी श्रेष्ठता-ग्रंथि पर अड़ी रही तो विपक्ष को अपनी पराजय के लिए तैयार रहना चाहिए।
लेखक डा. वेदप्रताप वैदिक वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं.
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