1.5.19

मुख्य न्यायाधीश यौन उत्पीडन मामले में पीड़िता बोली- जिस तरह से हो रही सुनवाई, उससे नहीं लगता कि मुझे न्याय मिल पाएगा

जे.पी.सिंह

जिस तरह से चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई पर यौन उत्पीड़न के मामले की जिस तरह से सुनवाई की जा रही है, उससे नहीं लगता कि मुझे  न्याय मिल पाएगा।साथ ही मुझे  ‘डर’ भी लगता है।मुझे मौखिक तौर पर ये निर्देश दिए गए कि मैं मीडिया के सामने समिति की सुनवाई से संबंधित कोई बात ना रखूं और ना ही इसके बारे में मेरे वकील वृंदा ग्रोवर को कुछ बताऊं।यह संगीन आरोप लगाते हुये यौन उत्पीड़न पीड़ित महिला ने कहा है कि अब वह इस मामले में सुनवाई के लिए आतंरिक समिति के सामने पेश नहीं हो पाएगी, क्योंकि उसे न्याय मिलने की उम्मीद नहीं है।इसके साथ ही इस मामले मेंनात्कीय मोड़ आ गया है।महिला ने मामले की सुनवाई कर रही जजों की समिति पर सवाल खड़े किए हैं। महिला ने समिति पर यौन उत्पीड़न अधिनियम के नियमों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है। साथ ही महिला ने अब समिति के सामने पेश नहीं होने का फैसला किया है।




महिला ने प्रेसनोट जारी करके कहा है कि 30 अप्रैल 2019 को मामले की सुनवाई का तीसरा दिन था। मैं सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस.ए. बोबडे, जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस इंदु मल्होत्राके सामने आतंरिक समिति के सामने पेश हुई थी, लेकिन गंभीर हालातों की वजह से अब मैं आतंरिक समिति के सामने पेश नहीं हो पाऊंगी।महिला ने कहा कि 26 और 29 अप्रैल को मैं एक भरोसे के साथ आंतरिक समिति के सामने पेश हुई थी।. मुझे उम्मीद थी कि समिति मामले की गंभीरता को समझते हुए निष्पक्ष सुनवाई करेगी।मुझे उम्मीद थी कि ये समिति मेरी तकलीफों को सुनेगी और आखिर में मुझे और मेरे परिवार को न्याय मिलेगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मुझे नहीं लगता था कि कोई भी आंतरिक समिति मुझे न्याय दे पाएगी।

महिला ने कहा है कि 19 अप्रैल को मैंने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत की थी। 23 अप्रैल को रात 8.30 बजे मुझे सुप्रीम कोर्ठ के सेक्रेटरी जनरल का एक नोटिस मिला। इस नोटिस में मुझे 26 अप्रैल को तय वक्त पर जजों की समिति के सामने पेश होने के लिए कहा गया था। मैं कार्यवाही में शामिल होने के लिए तैयार हो गई, कि ये एक आंतरिक सुनवाई थी, ना कि बाह्य समिति।मैंने समिति से अपील की कि मुझे कार्यवाही की प्रक्रिया के बारे में जानकारी दी जाए। विशाखा गाइडलाइंस और 'प्रिवेंशन ऑफ सेक्सुअल हैरेसमेंट अगेंस्ट वीमेन एट द वर्क प्लेस एक्ट' मुझे वकील या सहयोगी की मदद लेने की इजाजत देते हैं। महिला ने कहा है कि  26 अप्रैल 2019 को समिति ने मुझे बताया कि ना तो ये आंतरिक समिति की सुनवाई है और ना ही ये सुनवाई विशाखा गाइडलाइंस के तहत सुनवाई है, ये एक अनौपचारिक सुनवाई थी। मुझे पूरी घटना बताने के लिए कहा गया तो मैंने उन्हें पूरा घटनाक्रम बताया। मुझे कोई वकील या सहयोगी भी नहीं दिया गया। मैंने समिति को ये भी बताया कि भारी तनाव की वजह से मैं एक कान से सुनने की क्षमता खो चुकी हूं, जिसका इलाज चल रहा है।इस वजह से कई मौकों पर मैं वो नहीं सुन पा रही थी, जो जस्टिस बोबडे कह रहे थे।इसके अलावा समिति की कार्यवाही की वीडियो रिकॉर्डिंग के मेरे अनुरोध को भी ठुकरा दिया गया।महिला ने कहा कि मुझे साफ तौर पर कहा गया कि समिति की सुनवाई के दौरान कोई भी वकील या सहयोगी मेरे साथ नहीं रह सकता है।

महिला ने दावा किया है कि पहली सुनवाई के दौरान मैंने समिति को प्रार्थनापत्र देकर इस मामले से संबंधित दो मोबाइल नंबरों की कॉल रिकॉर्ड और व्हाट्सऐप कॉल और चैट के रिकॉर्ड मंगाए जाने की मांग की। हालांकि, पहली सुनवाई के दौरान समिति ने मेरा प्रार्थनापत्र स्वीकार नहीं किया। बाद में, इसी प्रार्थनापत्र को 30 अप्रैल की सुनवाई के वक्त तब लिया गया, जब मैंने दुखी होकर समिति की सुनवाई में शामिल होने से इंकार कर दिया था।

महिला ने दावा किया कि सुनवाई के दौरान बाइकर्स उसका पीछा करते थे, जिससे उसकी जान को खतरा बना हुआ है।महिला ने कहा, ‘समिति के सामने पहली सुनवाई के बाद जब मैं वहां से निकली, तो मैंने देखा कि जिस कार में मैं सफर कर रही थी, उसका दो लोग मोटरसाइकिल से पीछा कर रहे थे। मैं उस मोटरसाइकिल का आधा-अधूरा नंबर ही नोट कर सकी।महिला ने कहा कि अगली सुनवाई से पहले मैंने समिति के सदस्यों को इस पूरी घटना के बारे में पत्र लिखकर अवगत कराया।साथ ही मैंने समिति की सुनवाई को औपचारिक सुनवाई के तौर पर किए जाने की मांग की। लेकिन 29 अप्रैल को अगली सुनवाई के दौरान भी मुझे वकील के साथ पेश होने की इजाजत नहीं दी गई।

महिला का कहना है कि समिति ने बार-बार उससे एक ही सवाल किया कि उसने यौन उत्पीड़न की शिकायत इतनी देरी से क्यों की। महिला ने कहा कि मैंने पाया कि समिति का माहौल भयावह होता जा रहा था और मैं बिना वकील के उच्चतम न्यायालय  के तीनों जजों का सामना करने में काफी नर्वस महसूस कर रही थी। सुनने की कम क्षमता की वजह से भी मुझे परेशानी का सामना करना पड़ रहा था। इसके अलावा मुझे ये भी नहीं दिखाया जा रहा था कि मेरा क्या बयान रिकॉर्ड किया जा रहा था। मुझे 26 औऱ 29 अप्रैल को रिकॉर्ड किए गए बयान की भी कॉपी नहीं दी गई। इसके बाद मैंने समिति को दोबारा बताया कि 29 अप्रैल को जब शाम 7.30 बजे सुनवाई के बाद मैं वहां से निकली तो दो मोटरसाइकिलों पर चार लोगों ने मेरा पीछा किया, जिसके बाद मैं अपनी सुरक्षा को लेकर डर गई हूं।

महिला ने समिति से कहा है कि अगर मुझे वकील के साथ आने की अनुमति नहीं मिलती है, तो अब मेरे लिए सुनवाई में शामिल होना संभव नहीं होगा।महिला का दावा है कि इसके बाद भी समिति ने उसके निवेदन को ठुकरा दिया। महिला ने कहा कि समिति ने मुझसे कहा कि अगर मैं कोई गवाह पेश करना चाहूं तो कर सकती हूं। इस पर मैंने उन्हें कहा कि लगभग सभी गवाह उच्चतम न्यायालय  में ही काम करते हैं, ऐसे में उनमें से कोई भी सामने नहीं आना चाहेगा।

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