14.7.19

पहले संसद को तो भ्रष्टाचार मुक्त कर लो मोदी जी

चरण सिंह राजपूत
लोकतंत्र में ऐसी व्यवस्था है कि देश की दशा और दिशा संसद से तय होती है। इसका मतलब है कि देश के उत्थान के लिए संसद में अच्छी छवि के सांसद पहुंचने चाहिए। इन लोगों के क्रियाकलाप ऐसे हों जिनसे जनता प्रेरणा ले। क्योंकि इन लोगों को जनता चुनकर भेजती है तो इनका हर कदम जनता के भले के लिए ही उठना चाहिए। क्या संसद में ऐसा हो रहा है। क्या संसद में जनता की लड़ाई लड़ने वाले सांसद पहुंच रहे हैं। आम लोगों के मुंह से तो यही निकलेगा कि नहीं। तो फिर ये सांसद कैसे जनता के लिए काम करेंगी और कैसे मोदी सरकार कैसे देश और समाज का भला करेगी?



मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में अब तक की कार्रवाई से तो यही देखने आ रहा है कि यह सरकार भी दूसरी सरकारों की तरह से ही संवैधानिक संस्थाओं को देशहित में न लगाकर इनका इस्तेमाल अपने विरोधियों से निपटने के लिए कर रहे हैं। सीबीआई और ईडी जगह-जगह छापेमारी तो कर रही है पर इन छापेमारी में निष्पक्षता कम आरएसएस और भाजपा नेताओं के एजेंडे के खिलाफ खड़े होने वाले लोग ज्यादा हैं।  राजनीतिक दलों में आरएसएस और भाजपा का सबसे अधिक मुखर चेहरा लालू प्रसाद तो जेल में हैं ही। उनका परिवार भी मोदी सरकार के टारगेट  पर है। मुलायम सिंह यादव ने मोदी सरकार के सामने आत्मसर्मपण कर दिया है तो उन्हें आय से अधिक संपत्ति के मामले में क्लीन चिट दिलवा दी गई। यह जगजाहिर हो चुका है संवैधानिक संस्थाएं इतनी कमजोर और केंद्र सरकार इतनी ताकतवर होने लगी हैं कि प्रधानमंत्रीऔर गृहमंत्री अपने हिसाब से इन संस्थाओं का इस्तेमाल करते हैं।

ऐसे ही मौजूद गृहमंत्री अमित शाह के केस से संबंधित जस्टिस लोया की हत्या के मामले में पैरवी करने वाली सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता इंदिरा जय सिंह के साथ किया जा रहा है। उनके और उनके पति आनंद ग्रोवर के निवास और ठिकानों पर सीबीआई छापा मरवाकर। बुलंद शहर के डीएम अभय सिंह के यहां भले ही मौजूदा समय में 47 लाख रुपये बरामद हुए हों पर उनके यहां सीबीआई छापामारी का मकसद अखिलेश सरकार में खनन मामले में उनके फतेहपुर के डीएम रहते हुए अनियमितता पाया जाना था। हरियाणा में भी यही हो रहा है विधानसभा चुनाव के करीब आते ही चौटाला परिवार पर शिकंजा कसा जा रहा है। ऐसा नहीं है कि ये लोग कोई दूध के धूले हुए हैं पर सरकार के इस कदम से देश और समाज का भला कम और भाजपा का ज्यादा दिखाई देता है।

यदि मोदी वास्तव में ही देश से भ्रष्टाचार मिटाने के लिए गंभीर है तो इसकी शुरुआत संसद से होनी चाहिए। वैसे भी मौजूदा प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने 2014 के आम चुनाव प्रचार में जनता से संसद को दागी मुक्त करने का वादा किया था।

मोदी जिस संसद का नेतृत्व कर रहे हैं उसके 43 फीसद सांसदों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। मतलब 542 सांसदों में से 233 सांसद दागी हैं। इनमें से 29 फीसद यानी कि 159 सांसदों के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले चल रहे हैं। यदि स्थिति तब है जब मोदी के पहले कार्यकाल में ही देश को भ्रष्टाचार मुक्त कहते हुए अच्छे दिन आ गये कहते नहीं थक रहे थे। जो लोग मनमोहन सरकार में गठित संसद को ज्यादा दागी मानते हैं वह समझ लें कि चुनाव प्रक्रिया से जुड़ी शोध संस्था एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक अलायंस (एडीआर) की लोकसभा चुनाव परिणाम पर जो रिपोर्ट जारी की गई उसके अनुसार आपराधिक सांसदों पर मुकदमों के मामलों में 2009 की संसद से 44 प्रतिशत इजाफा हुआ है।

एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार 2009 के लोकसभा चुनाव में आपराधिक मुकदमे वाले 162 सांसद यानी कि फीसद चुनकर आये थे, जबकि 2014 के चुनाव में ऐसे सांसदों की संख्या 185 यानी कि 34 प्रतिशत हो गई। एडीआर ने नवनिर्वाचित 542 सांसदों में 539 सांसदों के हलफनामों के विश्लेषण के आधार पर बताया कि इनमें से 159 सांसदों यानी कि 29 प्रतिशत के खिलाफ हत्या, हत्या के प्रयास, बलात्कार और अपहरण जैसे गंभीर आपराधिक मामले लंबित थे। पिछली लोकसभा में गंभीर आपराधिक मामलों के मुकदमों में घिरे सदस्यों की संख्या 112 यानी कि 21 प्रतिशत थी, वहीं 2009 के चुनाव में निर्वाचित ऐसे सांसदों की संख्या 76 यानी कि 14 प्रतिशत थी। मतलब तीन चुनावों में गंभीर आपराधिक मामलों का सामना कर रहे सांसदों की संख्या में 109 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी है।

जो भाजपा साफ सुथरी राजनीति करने का दावा करती घूम रही है आपराधिक मामलों का सामना कर रहे सर्वाधिक सांसद इसी पार्टी के टिकट पर ही चुनकर आए हैं। रिपोर्ट के अनुसार भाजपा के 303 में से 301 सांसदों के हलफनामे के विश्लेषण में पाया गया कि साध्वी प्रज्ञा सिंह समेत 116 सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले चल रहे हैं। वहीं, कांग्रेस के 52 में से 29 सांसद आपराधिक मामलों में घिरे हैं। इनके अलावा सत्तारूढ़ राजग के घटक दल लोजपा के सभी छह निर्वाचित सदस्यों, बसपा के आधे (10 में से पांच), जदयू के 16 में से 13, तृणमूल कांग्रेस के 22 में से नौ और माकपा के तीन में से दो सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं।

इसे देश की विडंबना ही कहा जाएगा कि देश के लिए जनता से परेशानी झेलने के लिए कहा जाता रहा और 16वीं लोकसभा में सांसदों की संपत्ति पांच साल में 41 फीसदी तक बढ़ गई।

वैसे तो लगभग सभी दल देश से भ्रष्टाचार मिटाने का दंभ भरते हैं पर जमीनी हकीकत यह है कि ये दल अधिकतर टिकट भी भ्रष्ट और आपराधिक छवि के लोगों को देते हैं। गत आम चुनाव में एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार लोकसभा चुनाव लड़ रहे 338 में से 335 सांसदों की औसत संपत्ति 23.65 करोड़ रुपये थी। 2014 में यह आंकड़ा 16.79 करोड़ रुपये था। यानी पांच साल में सांसदों की औसत संपत्ति 6.86 करोड़ रुपये बढ़ा था। 17वीं लोकसभा में भी अधिकतर इनमें से ही सांसद चुनकर आये हैं। इस तरह के मामलों में दलों की ओर से यही कहा जाता है कि इन सांसदों को जनता ही तो चुनकर भेजती है। अरे भाई चुनाव इतना महंगा कर दिया गया है कि ईमानदार आदमी तो चुनाव लड़ने की सोच ही नहीं सकता। यदि कोई व्यक्ति हिम्मत कर भी जाता है तो ये दल उस पर तरह-तरह का दबाव बनाकर उसका नाम वापस करा देत हैं या फिर उसका नामांकन ही कैंसिल करा दिया जाता है।

स्थिति यह है कि एडीआर ने 17वीं लोकसभा चुनाव के 8,049 में से 7928 उम्मीदवारों के हलफनामों का विश्लेषण किया किया था। इनमें 29 फीसद की संपत्ति एक करोड़ से ज्यादा है। इन उम्मीदवारों में सत्तारूढ़ भाजपा के 79 फीसद, कांग्रेस के 71 फीसद उम्मीदवार करोड़पति थे। बसपा के 17 और सपा के आठ प्रत्याशी करोड़पति थे।

लोकसभा चुनाव में 19 फीसद यानी 1500 दागी उम्मीदवार मैदान में थे। 2014 में 17 फीसद यानी 1404 प्रत्याशियों ने अपने ऊपर अपराधिक मामले दर्ज होने की जानकारी दी थी।  1070 उम्मीदवारों पर दुष्कर्म, हत्या, अपहरण, महिलाओं के खिलाफ अपराध जैसे गंभीर केस दर्ज थे। 2014 में 8205 उम्मीदवारों में 908 में यानी 11फीसद पर ऐसे केस थे। भाजपा ने 175 तो कांग्रेस ने 164 दागी उम्मीदवार उतारे थे। बसपा ने 85 दागियों को टिकट दिया था।

संसद में सांसदों के भ्रष्टाचार की हालत यह है कि कई बार पैसे लेकर सवाल पूछने के आरोप सांसदों पर लग चुके हैं। 2005 दिसंबर में एक टेलीविज़न चैनल ने विभिन्न दलों के 11 सांसदों को घूस लेते हुए कैमरे पर क़ैद किया था। इन पर आरोप था कि ये सांसद सवाल पूछने के लि, रिश्वत ले रहे थे। हालांकि इसके बाद दोनों सदनों से इन सांसदों को बर्खास्त कर दिया गया था। इन बर्खास्त सांसदों में से 9 ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था। इनमें में छह सांसद भाजपा के थे। एक आरजेडी, एक बीएसपी का और एक कांग्रेस का था।

मोदी सरकार में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने का ढिंढेरा लंबे समय से पीटा जाता रहा है कि यह भी जमीनी सच्चाई है कि एशिया महाद्वीप में भ्रष्टाचार के मामले में भारत प्रथम स्थान पर है। एक सर्वे में पाया गया है कि भारत में रिश्वतखोरी की दर 69 प्रतिशत है। फोर्ब्स द्वारा किए गए 18 महीने लंबे सर्वे में भारत को टॉप 5 देशों में पहला स्थान दिया गया है। यह सर्वे कोई मनमोहन सरकार के समय का नहीं है बल्कि मार्च, 2017 में प्रकाशित किया था। मतलब मोदी के पहले कार्यकाल में। पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान का स्थान चौथा है।

दिलचस्प बात तो यह है कि राजनीति को सुधारने आये अरविंद केजरीवाल तो राजनीति के गिरते स्तर के मामले में दूसरे दलों से भी आगे निकल गये। बताया यह जाता है कि उन्होंने राज्यसभा में कुमार विश्वास और आतुतोष जैसे योग्य नेताओं को दरकिनार कर स्वजातीय बंधुओं को पैसे लेकर राज्यसभा में भेज दिया।

जिस कांग्रेस पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर उन्होंने दिल्ली की सत्ता कब्जाई गत लोकसभा चुनाव में उस कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने के लिए वह कांग्रेस के पीछे-पीछे घूमते रहे। ये वही केजरीवाल है जिन्होंने 2014 के आम चुनाव से ठीक पहले राहुल गांधी, सुशील कुमार शिंदे, प्रफुल्ल पटेल, वीरप्पा मोइली, सलमान खुर्शीद, मुलायम सिंह यादव, श्री प्रकाश जयसवाल, जगन मोहन रेड्डी, अनुराग ठाकुर, कपिल सिब्बल, शरद पवार, पी चिदंबरम, कणिमोड़ी, सुरेश कलमाड़ी, नवीन जिंदल, ए राजा, पवन कुमार बंसल, नितिन गडकरी, बीएस येदियुरप्पा, अनंत कुमार, कुमार स्वामी, अलागिरी, जीके वासन, मायावती, अनू टंडन, फारुख अब्दुल्ला को भ्रष्ट सांसद बताया था। इनमें से अधिकतर मौजूद सांसद हैं।  

लेखक चरण सिंह राजपूत सामाजिक कार्यकर्ता हैं.

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