जेपी सिंह
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साक्षी-अजितेश की शादी को वैध ठहराया है। अपनी सुरक्षा की मांग को लेकर अदालत पहुंचे साक्षी और अजितेश की शादी का प्रमाणपत्र जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा की एकल पीठ ने देखा। इसके साथ ही एकल पीठ ने दोनों की उम्र की जांच के लिए शैक्षिक प्रमाणपत्रों की भी जांच पड़ताल की। सभी कागजातों से संतुष्ट होकर एकल पीठ ने शादी को वैध घोषित किया और कहा कि दोनों बालिग हैं इसलिए ये पति-पत्नी की तरह रह सकते हैं। एकल पीठ ने ये शर्त भी रखी है कि साक्षी और अजितेश को दो महीने में शादी रजिस्टर्ड करानी होगी. अगर ऐसा नहीं कराते तो कोर्ट का आदेश निरस्त हो जाएगा। एकल पीठ ने सरकार को इनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है। साथ ही पुलिस को भी जोड़े को सुरक्षा मुहैया कराने के लिए आदेश दिया है।
एकलपीठ ने लता सिंह बनाम उत्तरप्रदेश 2006 में उच्चतम न्यायालय के आदेश का हवाला दिया जिसमें कहा गया है कि भारत एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक देश है, और एक बार एक व्यक्ति बालिग़ हो जाता है या वह जिसे भी पसंद करता है उससे शादी कर सकता है। यदि लड़का या लड़की के माता-पिता इस तरह के अंतर-जातीय या अंतर-धार्मिक विवाह को मंजूरी नहीं देते हैं, तो वे अधिकतम यह कर सकते हैं कि वे बेटे या बेटी के साथ सामाजिक संबंधों को काट सकते हैं, लेकिन वे धमकी नहीं दे सकते हैं। कोई उस व्यक्ति को परेशान नहीं कर सकता है जो इस तरह के अंतर-जातीय या अंतर-धार्मिक विवाह से गुजरता है। इसलिए उच्चतम न्यायालय यह निर्देश देता है कि देश भर में प्रशासन / पुलिस अधिकारी यह देखेंगे कि यदि कोई भी लड़का या लड़की एक बालिग़ महिला के साथ अंतर-जातीय या अंतर-धार्मिक विवाह करता है या एक बालिग़ पुरुष है, युगल हैं किसी को भी परेशान नहीं किया जाए और न ही हिंसा के खतरों या कृत्यों के अधीन, और कोई भी जो ऐसी धमकियां देता है या उत्पीड़न करता है या हिंसा का कार्य करता है या खुद अपने दायित्व पर, ऐसे व्यक्तियों के खिलाफ पुलिस द्वारा आपराधिक कार्यवाही शुरू करने का काम लिया जाता है और ऐसे व्यक्तियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाती है, जो कानून द्वारा प्रदान किए गए हैं।
हम कभी-कभी ऐसे व्यक्तियों के ऑनर किलिंग के बारे में सुनते हैं, जो अपनी मर्जी से अंतर-जातीय या अंतर-धार्मिक विवाह से गुजरते हैं। इस तरह की हत्याओं में कुछ भी सम्मानजनक नहीं है, और वास्तव में वे क्रूर, सामंती दिमाग वाले व्यक्तियों द्वारा किए गए हत्या के बर्बर और शर्मनाक कृत्य के अलावा कुछ नहीं हैं, जो कठोर सजा के पात्र हैं। केवल इस तरह से हम बर्बरता के ऐसे कृत्यों को समाप्त कर सकते हैं।
एकल पीठ ने इसी तरह भगवान दास बनाम स्टेट दिल्ली 2011 का हवाला दिया है जिसमें उच्चतम न्यायालय के तीन न्यायमूर्तियों की पीठ (दीपक मिश्र, ए.एम. खानविलकर और धनंजय चंद्रचूड) ने 27 मार्च, 2018 को एक महत्वपूर्ण मामले में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया जिसके अनुसार सम्मान आधारित हिंसा को अपराध की श्रेणी में रखा गया है। इस फैसले में खाप पंचायत को गैर-कानूनी घोषित किया गया। साथ ही उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि दो वयस्क अगर शादी करते हैं तो कोई तीसरा उसमें दखल नहीं दे सकता है। इसके अलावा न्यायालय ने हिन्दू विवाह अधिनियम की (धारा 5) में एक ही गोत्र में शादी करने को उचित ठहराया है।
एकल पीठ ने इसी तरह नंदकुमार बनाम केरल 2018 में उच्चतम न्यायालय के निर्णय का हवाला दिया जिसमे जस्टिस एके सीकरी और अशोक भूषण की पीठ ने किसी भी व्यस्क जोड़े को शादी के बिना भी साथ रहने का अधिकार दिया है। कोर्ट ने कहा की लिव इन रिश्तों को अब न्यायालय भी मान्यता देता है। महिलाओं की सुरक्षा के लिए इसे घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत कानून में जगह दी गयी है। पीठ ने यहां तक व्यवस्था दिया है की शादी को इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि शादी के वक्त नंदकुमार की उम्र 21 साल से कम थी।
दरअसल साक्षी और अजितेश ने शांतिपूर्ण जीवन जीने के लिए सुरक्षा की मांग करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी।याचिका में साक्षी और अजितेश ने सुरक्षा की मांग के लिए यह दलील दी है कि उनकी शादी से साक्षी के पिता नाखुश हैं, क्योंकि साक्षी एक ब्राह्मण है, जबकि अजितेश जाति से दलित है और इसलिए साक्षी के पिता से उनकी जान को खतरा है।
बेटी साक्षी ने 4 जुलाई को प्रयागराज के ट्रांसपोर्ट नगर बेगम सराय स्थित प्राचीन राम-जानकी मंदिर में अजितेश कुमार नाम के एक शख्स के साथ शादी कर ली थी। साहित्याचार्य विश्वपति शुक्ल ने हिंदू रीति रिवाज से शादी की रस्में पूरी कराई थीं। शादी के बाद से साक्षी और अजितेश अपने घर नहीं पहुंचे।इसके ठीक बाद साक्षी ने एक वीडियो जारी कर अपने घरवालों से अपनी जान को खतरा बताया था। साक्षी और उनके पति अजितेश ने वीडियो में बरेली पुलिस से सुरक्षा भी मांगी थी। साक्षी ने आरोप लगाए थे कि दलित युवक से शादी करने के बाद उनके विधायक पिता से उन्हें जान का खतरा है। याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से गुहार लगाई थी कि पुलिस या राजेश मिश्रा उनके शांतिपूर्ण जीवन में खलल न डालें क्योंकि दोनों ही बालिग हैं और इन्होंने अपनी इच्छा से शादी की है।
इस मामले पर साक्षी के विधायक पिता राजेश मिश्रा ने कहा था कि उन्हें साक्षी और अजितेश की शादी से कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन साक्षी को अपने पिता की बात पर भरोसा नहीं हो रहा था। कोर्ट के आदेश पर साक्षी और अजितेश को बरेली पुलिस दिल्ली से दोनों को सुरक्षा के घेरे में साथ लेकर इलाहाबाद पहुंची और एकल पीठ के समक्ष पेश किया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साक्षी-अजितेश की शादी को वैध ठहराया है। अपनी सुरक्षा की मांग को लेकर अदालत पहुंचे साक्षी और अजितेश की शादी का प्रमाणपत्र जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा की एकल पीठ ने देखा। इसके साथ ही एकल पीठ ने दोनों की उम्र की जांच के लिए शैक्षिक प्रमाणपत्रों की भी जांच पड़ताल की। सभी कागजातों से संतुष्ट होकर एकल पीठ ने शादी को वैध घोषित किया और कहा कि दोनों बालिग हैं इसलिए ये पति-पत्नी की तरह रह सकते हैं। एकल पीठ ने ये शर्त भी रखी है कि साक्षी और अजितेश को दो महीने में शादी रजिस्टर्ड करानी होगी. अगर ऐसा नहीं कराते तो कोर्ट का आदेश निरस्त हो जाएगा। एकल पीठ ने सरकार को इनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है। साथ ही पुलिस को भी जोड़े को सुरक्षा मुहैया कराने के लिए आदेश दिया है।
एकलपीठ ने लता सिंह बनाम उत्तरप्रदेश 2006 में उच्चतम न्यायालय के आदेश का हवाला दिया जिसमें कहा गया है कि भारत एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक देश है, और एक बार एक व्यक्ति बालिग़ हो जाता है या वह जिसे भी पसंद करता है उससे शादी कर सकता है। यदि लड़का या लड़की के माता-पिता इस तरह के अंतर-जातीय या अंतर-धार्मिक विवाह को मंजूरी नहीं देते हैं, तो वे अधिकतम यह कर सकते हैं कि वे बेटे या बेटी के साथ सामाजिक संबंधों को काट सकते हैं, लेकिन वे धमकी नहीं दे सकते हैं। कोई उस व्यक्ति को परेशान नहीं कर सकता है जो इस तरह के अंतर-जातीय या अंतर-धार्मिक विवाह से गुजरता है। इसलिए उच्चतम न्यायालय यह निर्देश देता है कि देश भर में प्रशासन / पुलिस अधिकारी यह देखेंगे कि यदि कोई भी लड़का या लड़की एक बालिग़ महिला के साथ अंतर-जातीय या अंतर-धार्मिक विवाह करता है या एक बालिग़ पुरुष है, युगल हैं किसी को भी परेशान नहीं किया जाए और न ही हिंसा के खतरों या कृत्यों के अधीन, और कोई भी जो ऐसी धमकियां देता है या उत्पीड़न करता है या हिंसा का कार्य करता है या खुद अपने दायित्व पर, ऐसे व्यक्तियों के खिलाफ पुलिस द्वारा आपराधिक कार्यवाही शुरू करने का काम लिया जाता है और ऐसे व्यक्तियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाती है, जो कानून द्वारा प्रदान किए गए हैं।
हम कभी-कभी ऐसे व्यक्तियों के ऑनर किलिंग के बारे में सुनते हैं, जो अपनी मर्जी से अंतर-जातीय या अंतर-धार्मिक विवाह से गुजरते हैं। इस तरह की हत्याओं में कुछ भी सम्मानजनक नहीं है, और वास्तव में वे क्रूर, सामंती दिमाग वाले व्यक्तियों द्वारा किए गए हत्या के बर्बर और शर्मनाक कृत्य के अलावा कुछ नहीं हैं, जो कठोर सजा के पात्र हैं। केवल इस तरह से हम बर्बरता के ऐसे कृत्यों को समाप्त कर सकते हैं।
एकल पीठ ने इसी तरह भगवान दास बनाम स्टेट दिल्ली 2011 का हवाला दिया है जिसमें उच्चतम न्यायालय के तीन न्यायमूर्तियों की पीठ (दीपक मिश्र, ए.एम. खानविलकर और धनंजय चंद्रचूड) ने 27 मार्च, 2018 को एक महत्वपूर्ण मामले में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया जिसके अनुसार सम्मान आधारित हिंसा को अपराध की श्रेणी में रखा गया है। इस फैसले में खाप पंचायत को गैर-कानूनी घोषित किया गया। साथ ही उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि दो वयस्क अगर शादी करते हैं तो कोई तीसरा उसमें दखल नहीं दे सकता है। इसके अलावा न्यायालय ने हिन्दू विवाह अधिनियम की (धारा 5) में एक ही गोत्र में शादी करने को उचित ठहराया है।
एकल पीठ ने इसी तरह नंदकुमार बनाम केरल 2018 में उच्चतम न्यायालय के निर्णय का हवाला दिया जिसमे जस्टिस एके सीकरी और अशोक भूषण की पीठ ने किसी भी व्यस्क जोड़े को शादी के बिना भी साथ रहने का अधिकार दिया है। कोर्ट ने कहा की लिव इन रिश्तों को अब न्यायालय भी मान्यता देता है। महिलाओं की सुरक्षा के लिए इसे घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत कानून में जगह दी गयी है। पीठ ने यहां तक व्यवस्था दिया है की शादी को इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि शादी के वक्त नंदकुमार की उम्र 21 साल से कम थी।
दरअसल साक्षी और अजितेश ने शांतिपूर्ण जीवन जीने के लिए सुरक्षा की मांग करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी।याचिका में साक्षी और अजितेश ने सुरक्षा की मांग के लिए यह दलील दी है कि उनकी शादी से साक्षी के पिता नाखुश हैं, क्योंकि साक्षी एक ब्राह्मण है, जबकि अजितेश जाति से दलित है और इसलिए साक्षी के पिता से उनकी जान को खतरा है।
बेटी साक्षी ने 4 जुलाई को प्रयागराज के ट्रांसपोर्ट नगर बेगम सराय स्थित प्राचीन राम-जानकी मंदिर में अजितेश कुमार नाम के एक शख्स के साथ शादी कर ली थी। साहित्याचार्य विश्वपति शुक्ल ने हिंदू रीति रिवाज से शादी की रस्में पूरी कराई थीं। शादी के बाद से साक्षी और अजितेश अपने घर नहीं पहुंचे।इसके ठीक बाद साक्षी ने एक वीडियो जारी कर अपने घरवालों से अपनी जान को खतरा बताया था। साक्षी और उनके पति अजितेश ने वीडियो में बरेली पुलिस से सुरक्षा भी मांगी थी। साक्षी ने आरोप लगाए थे कि दलित युवक से शादी करने के बाद उनके विधायक पिता से उन्हें जान का खतरा है। याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से गुहार लगाई थी कि पुलिस या राजेश मिश्रा उनके शांतिपूर्ण जीवन में खलल न डालें क्योंकि दोनों ही बालिग हैं और इन्होंने अपनी इच्छा से शादी की है।
इस मामले पर साक्षी के विधायक पिता राजेश मिश्रा ने कहा था कि उन्हें साक्षी और अजितेश की शादी से कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन साक्षी को अपने पिता की बात पर भरोसा नहीं हो रहा था। कोर्ट के आदेश पर साक्षी और अजितेश को बरेली पुलिस दिल्ली से दोनों को सुरक्षा के घेरे में साथ लेकर इलाहाबाद पहुंची और एकल पीठ के समक्ष पेश किया।
No comments:
Post a Comment