किसी भी देश के लिए महिलाओं की स्थिति इस बात का सूचकांक होती है कि वह देश और समाज पतन के रास्ते पर चल रहा है या सामाजिक प्रगति के रास्ते पर। इस दृष्टिकोण से देखें तो भारत का भविष्य उज्जवल दिखाई नहीं देता। तेलंगाना राज्य के हैदराबाद में पशु चिकित्सक 26 वर्षीया डॉ. प्रियंका रेड्डी के साथ जो हृदय विदारक घटना हुई उसकी सजा मृत्युदण्ड से तनिक भी कम स्वीकार्य नहीं होनी चाहिए। हैवानियत की सारी हदें पार कर दरिंदों ने जिस तरह पहले सामूहिक बलात्कार और फिर पुलिस से बचने के लिए जिंदा जलाने का घृणित कार्य किया वह इस बात को दर्शाता है कि महिला सुरक्षा कानून का आज भी वहशियों के भीतर कोई खौफ नहीं है, अन्यथा वर्ष 2012 से लेकर अब तक करीब दो लाख बलात्कार के मामले दर्ज नहीं किये जाते।
30.11.19
19.11.19
झूठ की बुनियाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की गलत व्याख्या कर रहा है मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड
अजय कुमार,लखनऊ
अपने आप को मुसलमानों का रहनुमा समझने का दंभ भरने वाला करीब 50 वर्ष पुराना ‘आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड’ (एआईएमपीएलबी) अपने आप को हमेशा सुर्खिंयों में बनाए रखने की कला में माहिर है। अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ रिव्यू पिटीशन दाखिल करने की बात कह कर उसने यह बात फिर साबित कर दी है। इससे पहले भी कई मौकों पर बोर्ड सुप्रीम कोर्ट के फैसले की मुखालफत कर चुका है। चाहें राजीव सरकार के समय मुस्लिम महिला साहबानों को सुप्रीम कोर्ट द्वारा गुजारा भता दिए जाने का फैसला रहा हो या फिर इंस्टेंट तीन तलाक को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला, कट्टरपंथी सोच रखने वाले बोर्ड को कुछ भी रास नहीं आता है। वह हर मसले को शरीयत की चादर में छिपा देने को उतावला रहता है। समय के साथ बदल नहीं पाने और कट्टरपंथी सोच के चलते एआईएमपीएलबी से तमाम बुद्धिजीवी मुलसमान दूरी बनाने लगे हैं। आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड अपनी संकुचित सोच के चलते विवादों में भी बना रहता है। एक समय बोर्ड को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का जेबी संगठन समझा जाता था। आज भी बोर्ड इसी लीक पर चलते हुए भाजपा और उसकी सरकारों की मुखालफत में लगा रहता है। बोर्ड का गठन जिन परिस्थितियों में हुआ था,उसे भी समझना जरूरी है।
अपने आप को मुसलमानों का रहनुमा समझने का दंभ भरने वाला करीब 50 वर्ष पुराना ‘आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड’ (एआईएमपीएलबी) अपने आप को हमेशा सुर्खिंयों में बनाए रखने की कला में माहिर है। अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ रिव्यू पिटीशन दाखिल करने की बात कह कर उसने यह बात फिर साबित कर दी है। इससे पहले भी कई मौकों पर बोर्ड सुप्रीम कोर्ट के फैसले की मुखालफत कर चुका है। चाहें राजीव सरकार के समय मुस्लिम महिला साहबानों को सुप्रीम कोर्ट द्वारा गुजारा भता दिए जाने का फैसला रहा हो या फिर इंस्टेंट तीन तलाक को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला, कट्टरपंथी सोच रखने वाले बोर्ड को कुछ भी रास नहीं आता है। वह हर मसले को शरीयत की चादर में छिपा देने को उतावला रहता है। समय के साथ बदल नहीं पाने और कट्टरपंथी सोच के चलते एआईएमपीएलबी से तमाम बुद्धिजीवी मुलसमान दूरी बनाने लगे हैं। आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड अपनी संकुचित सोच के चलते विवादों में भी बना रहता है। एक समय बोर्ड को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का जेबी संगठन समझा जाता था। आज भी बोर्ड इसी लीक पर चलते हुए भाजपा और उसकी सरकारों की मुखालफत में लगा रहता है। बोर्ड का गठन जिन परिस्थितियों में हुआ था,उसे भी समझना जरूरी है।
11.11.19
फ्लाप मध्यस्थता का ‘हिट फार्मूला’ बना फैसले का आधार!
अजय कुमार, लखनऊ
अयोध्या विवाद अब इतिहास के पन्नों में जरूर सिमट कर रह जाएगा, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का फैसला कई अहम सवाल भी खड़ा कर गया है। सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि देश की सियासी और सामाजिक चूले हिला देने वाले इस विवाद को सुलझाने में आजादी के बाद 72 साल क्यों लग गए ? सवाल यह भी है कि मोदी सरकार की तरह केन्द्र की पूर्ववर्ती सरकारों ने ऐसी इच्छाशक्ति क्यों नहीं दिखाई, जिससे अयोध्या विवाद को सुलझाया जा सकता था ? कुछ लोग कह सकते हैं कि ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि अयोध्या विवाद सुलझाने का कोई प्रयास नहीं किया गया हो,लेकिन हकीकत यही है कि अयोध्या विवाद नहीं सुलझा तो इसके लिए सबसे अधिक कांगे्रस जिम्मेदार है। क्यों कि उसने दशकों तक मजबूती के साथ देश पर राज किया था,जबकि अन्य दलों की जब भी केन्द्र में सरकारें बनी तो उनको वह मजबूती नहीं मिल पाई,जिस मजबूती के साथ कांगे्रस की सरकारें चला करती थीं। जनता पार्टी की सरकार जरूर अपवाद है,लेकिन पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने के बाद भी जनता पार्टीे की सरकार अंर्तविरोधाभास के चलते अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई थी। यहां तक की मोदी भी अपने पहले कार्यकाल में अयोध्या विवाद सुलझाने की हिम्मत नहीं जुटा पाए थे,क्योंकि एक तो संख्याबल के हिसाब से वह आज जितना मजबूत नहीं थे तो दूसरा राज्यसभा में भी उसका(मोदी सरकार) बहुमत नहीं था।
अयोध्या विवाद अब इतिहास के पन्नों में जरूर सिमट कर रह जाएगा, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का फैसला कई अहम सवाल भी खड़ा कर गया है। सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि देश की सियासी और सामाजिक चूले हिला देने वाले इस विवाद को सुलझाने में आजादी के बाद 72 साल क्यों लग गए ? सवाल यह भी है कि मोदी सरकार की तरह केन्द्र की पूर्ववर्ती सरकारों ने ऐसी इच्छाशक्ति क्यों नहीं दिखाई, जिससे अयोध्या विवाद को सुलझाया जा सकता था ? कुछ लोग कह सकते हैं कि ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि अयोध्या विवाद सुलझाने का कोई प्रयास नहीं किया गया हो,लेकिन हकीकत यही है कि अयोध्या विवाद नहीं सुलझा तो इसके लिए सबसे अधिक कांगे्रस जिम्मेदार है। क्यों कि उसने दशकों तक मजबूती के साथ देश पर राज किया था,जबकि अन्य दलों की जब भी केन्द्र में सरकारें बनी तो उनको वह मजबूती नहीं मिल पाई,जिस मजबूती के साथ कांगे्रस की सरकारें चला करती थीं। जनता पार्टी की सरकार जरूर अपवाद है,लेकिन पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने के बाद भी जनता पार्टीे की सरकार अंर्तविरोधाभास के चलते अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई थी। यहां तक की मोदी भी अपने पहले कार्यकाल में अयोध्या विवाद सुलझाने की हिम्मत नहीं जुटा पाए थे,क्योंकि एक तो संख्याबल के हिसाब से वह आज जितना मजबूत नहीं थे तो दूसरा राज्यसभा में भी उसका(मोदी सरकार) बहुमत नहीं था।
अयोध्या कांड : सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में संतुलन साधने का प्रयास किया
सज्जाद हैदर
देश के सबसे बड़े विवाद की जड़ आज उच्चतम न्यायालय ने अपनी ताकत का प्रयोग करते हुए समाप्त कर दी। इतिहास इस बात का साक्षी है कि देश की आज की राजनीति ने सत्ता और कुर्सी की लालच में पूरे देश को आग में झोंकने का कार्य किया। इसका सबसे मुख्य कारण यह है कि धार्मिक भावना जिसकी आड़ में उन्माद भी फलता एवं फूलता है। क्योंकि हमारे देश की सबसे बड़ी मुख्य वजह यह है कि देश में बढ़ता हुआ जातिवाद, जिसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने वाले अधिकतर व्यक्ति या तो अनपढ़ होते हैं या फिर न्यून्तम स्तर की शिक्षा तक ही सीमित रह जाते हैं। जोकि नेताओं की चाल को नहीं समझ पाते और नेताओं की सियासी साज़िश का आसानी के साथ शिकार हो जाते हैं। और धार्मिक भावनाओं के आधार पर विभाजित हो जाते हैं। जबकि शिक्षित एवं विद्वान व्यक्ति ऐसा कदापि नहीं करते।
श्रीराम मन्दिर आंदोलन के प्रणेता याद आते हैं
विनीत नारायण
आज हम हिन्दुओं के सदियों पुराने ज़ख्मों पर मरहम लगा है । इस ऐतिहासिक अवसर पर उन हज़ारों सन्तों व भक्तों को हमारी भावभीनी श्र्द्धांजली जिन्होंने पिछली सदियों में भगवान श्रीराम की जन्मभूमि की मुक्ति के लिए संघर्ष करते हुए अपने प्राणों का बलिदान किया।
आज हम हिन्दुओं के सदियों पुराने ज़ख्मों पर मरहम लगा है । इस ऐतिहासिक अवसर पर उन हज़ारों सन्तों व भक्तों को हमारी भावभीनी श्र्द्धांजली जिन्होंने पिछली सदियों में भगवान श्रीराम की जन्मभूमि की मुक्ति के लिए संघर्ष करते हुए अपने प्राणों का बलिदान किया।
10.11.19
और ये सही जवाब...!
#मुझे_फ़क्र_है_कि_मैं_इस_मुल्क़_का_सुन्नी_मुसलमान_हूँ
मैं भी तुम जैसा हूँ अपने से जुदा मत समझो,
आदमी ही रहने दो ख़ुदा मत समझो!
अज़ीज़ाने गिरामी-ए-मिल्लत और मेरे मुल्क़ के गयूर नौजवानों,
राम मंदिर और बाबरी मस्जिद हक़-ए-मिल्कियत मुतालबे पर अदालते अज़मीया का आज का फ़ैसला बाइस-ए-मसर्रत तो है ही, हिंदुस्तान की क़ौमी यकजहती के वक़ार को बुलंद-ओ-बाला रखने का पैग़ाम भी आलमी दुनिया को देता है।
फैसले पर तमाम तरह की राय शुमारी हुई, मुल्क़ के आईन के एतबार से अवाम की अपनी अपनी मुख़्तलिफ़ राय भी थीं मगर मैं जो लिख रहा हूँ वो थोड़ा लीक से हटकर है...
मुख़्तलिफ़ सियासी जमातों और नामनेहाद क़ौमी रहनुमाओं ने जिस तरह पिछले 75 साला जम्हूरी निज़ाम में मुसलमानों ख़ास कर सुन्नी मुसलमानों का "ब्रेन-ड्रेन" कर मुल्क़ की मुख्य-धारा से काटने का एक घिनोना खेल खेला था।आज अदालत-ए-अज़मीया ने उस मंसूबे को पामाल कर दिया।
आज ईद मिलादुन्नबी के मुबारक मौक़े पर हिंदुस्तान के सुन्नी मुसलमानों ने जिस नज़्मों-ज़ब्त से काम लिया और अदालत के फ़ैसले को सर-माथे लगाकर मुल्क़ के आईन का इक़बाल बुलंद किया उससे ये साबित हो गया कि नानक,कबीर,रहीम,रसखान,
ख़्वाजा,आला हज़रत,अमीर ख़ुसरो, निज़ामुद्दीन औलिया की इस रूहानी मिट्टी में कोई शरपसंद अब मट्ठा नही डाल सकता।
क्या इत्तेफ़ाक़ है! आज अल्लामा इकबाल की यौमे पैदाइश भी है। इस इंक़लाबी शायर ने श्रीराम को "इमाम-ए-हिंद" की पदवी से नवाज़ा था। आज भी उनकी तहरीर- "सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा" हमारी रूह की गहराईयों में बसी है। आज हमारा हिन्दुस्तान, हमारा प्यारा मुल्क़ सारे जहां से अच्छा बनने की सिम्त में आगे बढ़ा है और मुझे कहते हुए बड़ा फक़्र है कि इसकी नींव हिंदुस्तान के सुन्नी मुसलमानों ने आज अदालत-ए-अज़मीया के फैसले पर अपनी मोहर लगा कर रखी है।और जवाब दिया है उन फ़िरक़ा परस्त ताक़तों को जो अपने सियासी मफाद के लिये इस क़ौम के मुस्तक़बिल से अब तक खेलते आ रहे थे।
बचा के रखियेगा नफ़रत से,
दिल की बसती को,
ये आग ख़ुद नहीं लगती,
लगाई जाती है!
जय-हिंद जय भारत!
डॉ. सयैद एहतेशाम-उल-हुदा
प्रखर वक्ता एवं राष्ट्रवादी चिंतक
माइनॉरिटी सोशल रिफॉर्मिस्ट
9837357723
मैं भी तुम जैसा हूँ अपने से जुदा मत समझो,
आदमी ही रहने दो ख़ुदा मत समझो!
अज़ीज़ाने गिरामी-ए-मिल्लत और मेरे मुल्क़ के गयूर नौजवानों,
राम मंदिर और बाबरी मस्जिद हक़-ए-मिल्कियत मुतालबे पर अदालते अज़मीया का आज का फ़ैसला बाइस-ए-मसर्रत तो है ही, हिंदुस्तान की क़ौमी यकजहती के वक़ार को बुलंद-ओ-बाला रखने का पैग़ाम भी आलमी दुनिया को देता है।
फैसले पर तमाम तरह की राय शुमारी हुई, मुल्क़ के आईन के एतबार से अवाम की अपनी अपनी मुख़्तलिफ़ राय भी थीं मगर मैं जो लिख रहा हूँ वो थोड़ा लीक से हटकर है...
मुख़्तलिफ़ सियासी जमातों और नामनेहाद क़ौमी रहनुमाओं ने जिस तरह पिछले 75 साला जम्हूरी निज़ाम में मुसलमानों ख़ास कर सुन्नी मुसलमानों का "ब्रेन-ड्रेन" कर मुल्क़ की मुख्य-धारा से काटने का एक घिनोना खेल खेला था।आज अदालत-ए-अज़मीया ने उस मंसूबे को पामाल कर दिया।
आज ईद मिलादुन्नबी के मुबारक मौक़े पर हिंदुस्तान के सुन्नी मुसलमानों ने जिस नज़्मों-ज़ब्त से काम लिया और अदालत के फ़ैसले को सर-माथे लगाकर मुल्क़ के आईन का इक़बाल बुलंद किया उससे ये साबित हो गया कि नानक,कबीर,रहीम,रसखान,
ख़्वाजा,आला हज़रत,अमीर ख़ुसरो, निज़ामुद्दीन औलिया की इस रूहानी मिट्टी में कोई शरपसंद अब मट्ठा नही डाल सकता।
क्या इत्तेफ़ाक़ है! आज अल्लामा इकबाल की यौमे पैदाइश भी है। इस इंक़लाबी शायर ने श्रीराम को "इमाम-ए-हिंद" की पदवी से नवाज़ा था। आज भी उनकी तहरीर- "सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा" हमारी रूह की गहराईयों में बसी है। आज हमारा हिन्दुस्तान, हमारा प्यारा मुल्क़ सारे जहां से अच्छा बनने की सिम्त में आगे बढ़ा है और मुझे कहते हुए बड़ा फक़्र है कि इसकी नींव हिंदुस्तान के सुन्नी मुसलमानों ने आज अदालत-ए-अज़मीया के फैसले पर अपनी मोहर लगा कर रखी है।और जवाब दिया है उन फ़िरक़ा परस्त ताक़तों को जो अपने सियासी मफाद के लिये इस क़ौम के मुस्तक़बिल से अब तक खेलते आ रहे थे।
बचा के रखियेगा नफ़रत से,
दिल की बसती को,
ये आग ख़ुद नहीं लगती,
लगाई जाती है!
जय-हिंद जय भारत!
डॉ. सयैद एहतेशाम-उल-हुदा
प्रखर वक्ता एवं राष्ट्रवादी चिंतक
माइनॉरिटी सोशल रिफॉर्मिस्ट
9837357723
7.11.19
क्या राम मंदिर मुद्दा खत्म होने देंगे राम को भुनाने वाले लोग?
नई दिल्ली। अयोध्या में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद पर अगले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने वाला है। मंदिर और मस्जिद दोनों ओर के पैरोकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानने की बात कर रहे हैं। देश में कहीं से कोई अनहोनी न होने पाए, इसके लिए पुलिस-प्रशासन को पूरी रह से सक्रिय कर दिया गया है । पर क्या सुप्रीम कोर्ट का फैसला मानकर दोनों ओर के पैरोकार चुप बैठ जाएंगे ? क्या मंदिर -मस्जिद के नाम पर सियासत करने वाले दल इन धर्म स्थलों की राजनीति करनी छोड़ देंगे ? अब तक के भाजपा और उसके सहयोगी संगठनों का इतिहास देखा जाए तो लगता नहीं है कि ये लोग सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी मानेंगे। जिस पार्टी कानून हाथ में लेकर सरकारों को चुनौती देते हुए रथयात्रा निकाली है, कानून को ढेंगा दिखाकर अयोध्या में बाबरी मस्जिद ध्वस्त की है।
2.11.19
पांच सौ साल पुराना विवाद सुलझने के करीब!
अयोध्या मामला : फैसले से पहले सौहार्द की चिंता, सरकार और धर्मगुरुओं ने एक सुर में की शांति की अपील
अजय कुमार, लखनऊ
‘लम्हों ने खता की, सदियों ने सजा पाई।’ अयोध्या के करीब पांच सौ साल पुराने भगवान राम की जन्म भूमि बनाम बाबरी मस्जिद विवाद के बारे में उक्त पंक्तियों को बार-बार दोहराया जा सकता है, लेकिन देर से ही सही अब यह उम्मीद बंधने लगी है कि मोदी सरकार यानी भारतीय जनता पार्टी द्वारा अपने घोषणा पत्र में किए वायदे को पूरा करने की गंभीर इच्छा शक्ति और सुप्रीम कोर्ट के सख्त रूख के बाद अयोध्या विवाद पर फैसले की घड़ी आ गई है। अगर ऐसा हुआ तो सदियों पुराना अयोध्या विवाद हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जाएगा। अयोध्या विवाद पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के 12 वर्षो के बाद 16 अक्टूबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो चुकी है। फैसला रिजर्व कर लिया गया है। करीब एक दस दिनों के भीतर अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों वाली बैंच का अंतिम(संभवता) फैसला आ जाएगा। माहौल न बिगड़े, सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सभी पक्ष सहज स्वीकार करें इसको लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित तमाम धर्मगुरूओं के द्वारा ही नहीं अयोध्या विवाद का मुकदमा लड़ रहे तमाम पक्षकार भी यही चाहते हैं कि कोर्ट के फैसले का सम्मान हो।
अजय कुमार, लखनऊ
‘लम्हों ने खता की, सदियों ने सजा पाई।’ अयोध्या के करीब पांच सौ साल पुराने भगवान राम की जन्म भूमि बनाम बाबरी मस्जिद विवाद के बारे में उक्त पंक्तियों को बार-बार दोहराया जा सकता है, लेकिन देर से ही सही अब यह उम्मीद बंधने लगी है कि मोदी सरकार यानी भारतीय जनता पार्टी द्वारा अपने घोषणा पत्र में किए वायदे को पूरा करने की गंभीर इच्छा शक्ति और सुप्रीम कोर्ट के सख्त रूख के बाद अयोध्या विवाद पर फैसले की घड़ी आ गई है। अगर ऐसा हुआ तो सदियों पुराना अयोध्या विवाद हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जाएगा। अयोध्या विवाद पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के 12 वर्षो के बाद 16 अक्टूबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो चुकी है। फैसला रिजर्व कर लिया गया है। करीब एक दस दिनों के भीतर अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों वाली बैंच का अंतिम(संभवता) फैसला आ जाएगा। माहौल न बिगड़े, सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सभी पक्ष सहज स्वीकार करें इसको लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित तमाम धर्मगुरूओं के द्वारा ही नहीं अयोध्या विवाद का मुकदमा लड़ रहे तमाम पक्षकार भी यही चाहते हैं कि कोर्ट के फैसले का सम्मान हो।
परिवार के आत्महत्या करने जैसे मामलों में जिलाधिकारी और संबंधित जनप्रतिनिधियों पर हो दंड का प्रावधान
CHARAN SINGH RAJPUT
प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में आर्थिक तंगी के चलते दो बच्चों को जहर देकर दंपति ने आत्महत्या की है। मीडिया से लेकर सामाजिक संगठन और राजनीतिक संगठनों ने तो औपचाकिरता निभाकर जिम्मेदारी की इतिश्री कर ली। हां सोशल मीडिया पर यह मामला जरूर मजबूती से उठा। मामला इसलिए भी गंभीर है क्योंकि मामला प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र का है। प्रधानमंत्री भी ऐसे कि देश के विकास का ढिंढोरा पूरे विश्व में पीटते फिर रहे हैं। दूसरे देशों में जा-जाकर अपनी कीर्तिमान गिना रहे हैं। संपन्न लोगों के बीच में जाकर सेल्फी ले रहे हैं। अमेरिका जैसे देश में जाकर अपनी महिमामंडन में कार्यक्रम करा रहे हैं।
प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में आर्थिक तंगी के चलते दो बच्चों को जहर देकर दंपति ने आत्महत्या की है। मीडिया से लेकर सामाजिक संगठन और राजनीतिक संगठनों ने तो औपचाकिरता निभाकर जिम्मेदारी की इतिश्री कर ली। हां सोशल मीडिया पर यह मामला जरूर मजबूती से उठा। मामला इसलिए भी गंभीर है क्योंकि मामला प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र का है। प्रधानमंत्री भी ऐसे कि देश के विकास का ढिंढोरा पूरे विश्व में पीटते फिर रहे हैं। दूसरे देशों में जा-जाकर अपनी कीर्तिमान गिना रहे हैं। संपन्न लोगों के बीच में जाकर सेल्फी ले रहे हैं। अमेरिका जैसे देश में जाकर अपनी महिमामंडन में कार्यक्रम करा रहे हैं।
1.11.19
ऑस्ट्रेलिया में डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल की दो पुस्तकों का लोकार्पण हुआ
ऑस्ट्रेलिया के खूबसूरत शहर पर्थ की अग्रणी साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था ‘संस्कृति’ तथा हिन्दी समाज ऑफ पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया (HSWA) के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित एक सुरुचिपूर्ण एवम आत्मीय आयोजन में भारत से आए सुपरिचित लेखक डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल की दो सद्य प्रकाशित पुस्तकों ‘समय की पंचायत’ और ‘जो देश हम बना रहे हैं’ का लोकार्पण किया गया.