अजय कुमार, लखनऊ
केन्द्र की मोदी सरकार ने आखिरकार भारी विरोध के बीच अपने घोषणा पत्र के एक और चुनावी वायदे ‘नागरिकता संशोधन बिल’ (कैब)को कानूनी जामा पहना ही दिया। अब सिर्फ राष्ट्रपति के हस्ताक्षर की औपचारिकता बची है। वहीं इस बिल को गैर-संवैधानिक बता कर कुछ लोग सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गए हैं।
बिल को गैर संवैधानिक और मुस्लिमों को डराने वाला बताकर कांगे्रस,वामपंथी दलों, समाजवादी पार्टी, बसपा, लालू की राजद,टीएमसी, तृणमूल कांगे्रस,टीएमसी आदि ने विरोध किया तो वहीं लोकसभा में बिल के समर्थन में खड़ी शिवसेना ने राज्य सभा में सदन से वाॅकआउट कर मोदी सरकार के लिए बिल लाने का रास्ता आसान कर दिया। वैसे शरद पवार की एनसीपी और बसपा भी वोटिंग के समय सदन में गैर-हाजिर रहीं।
बिल को लेकर कहीं खुशी तो कहीं नाराजगी भी दिखाई दे रही है।कई जगह मुस्लिम संगठन बिल का विरोध कर रहे हैं तो पूर्वाेत्तर के राज्यों में स्थिति कुछ ज्यादा ही तनावपूर्ण है। पूर्वाेतर राज्यों के नागरिकों की चिंता से पहले भौगौलिक पृष्ठभूमि भी समझना जरूरी है। पूर्वोत्तर के जो राज्य कैब का विरोध कर रहे हैं,वह बंग्लादेश की सीमा से सटे हुए हैं। बंग्लादेश की सीमा भारत के पांच राज्यों असम,मेघालय,मिजोरम, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल को छूती हैं। इसी लिए बंग्लादेशी घुसपैठियों के लिए इन राज्यों में आकर चोरी-छिपे आकर बस जाना सबसे आसान रहता है। इन घुसपैठियों से सहारे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तो सत्ता की सीढ़िया तक चढ़ जाती हैं। इसी लिए ममता बनर्जी कैब का सबसे अधिक विरोध कर रही हैं। वामपंथियों को भी यह घुसपैठिए खूब रास आते हैं। यह भी घुसपैठियों पर खूब सियासत किया करते थे और आज भी कर रहे हैं।
पूर्वाेत्तर राज्यों से अलग बात अन्य राज्यों की कि जाए तो मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति करने वाले दल मुसलमानों में भय दिखाकर तुष्टिकरण की सियासत को गरमाए हैं,जबकि हकीकत यह है कि इस बिल से देश में रहने वाले किसी नागरिक को कोई नुकसान नहीं होगा।मुसलमानों को भड़काने वाले यह वही दल हैं जो पहले ढ़िढोरा पीटा करते थे कि अगर मोदी आ गया तो मुसलमानों को देश से बाहर निकाल दिया जाएगा। देश में कत्ले आम शुरू हो जाएगा। इसी भय की ‘हांडी’ के सहारे तुष्टिकरण की सियासत करने वाले अपनी रोटियां सेंकना चाहते हैं,लेकिन उनको यह नहीं पता है कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती है। हालात यह है कि सोनिया गांधी तक बता रही हैं कि नागरिकता संशोधन बिल पास होना देश के लिए ‘काला दिन’ है।
केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह की बात की जाए तो वह पूर्वाेत्तर राज्यों के लोगों की चिंता दूर करने की तो बात कर रहे हैं,लेकिन जो लोग वोट बैंक की सियासत कर रहे हैं,उन्हें शाह कोई छूट देने के मूड में नहीं हैं। कांगे्रस तो खासकर शाह के निशाने पर हैं। वह बार-बार कांगे्रस को याद दिला रहे हैं कि उसी ने धर्म के आधार पर देश का बंटवारा कराया था। अगर वह ऐसा नहीं करती तो आज हमें कैब लाना ही नहीं पड़ता।
बात पूर्वाेत्तर राज्यों में कैब को लेकर नाराजगी की कि जाए तो पूर्वोत्तर राज्यों और उसमें भी असम में नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध की ज्वाला कुछ ज्यादा ही भड़की हुई है। इसकी दो वजह हैं।
पहली चिंता एनआरसी से जुड़ी है। दरअसल, जब असम में एनआरसी हुई थी तो उसमें करीब 19 लाख नाम ऐसे निकल कर आए थे जो घुसपैठिए थे। इन 19 लाख में करीब 17 लाख हिन्दू घुसपैठिए थे। इनको देश से बाहर निकाले जाने की बात हो रही थी,इसी बीच मोदी सरकार नागरिकता संशोधन बिल ले आई,जिसमें उसने सभी गैर इस्लामी घुसपैठियों को नागरिकता देने का कानून पास कर दिया। असम के मूल निवासियों की चिंता यही 17 लाख हिन्दू हैं जो कल तक घुसपैठिए थे,अब असम के नागरिक बन जाएंगे।
दूसरी चिंता असम के मूल निवासियों की यह है कि कैब से उत्तरपूर्व में अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों की बाढ़ आ जाएगी। यहां की डेमोग्रफी बदल जाएगी। यहां के मूल निवासी अपनी ही जमीन पर अल्पसंख्यक रह जाएंगे। असम के लोगों को डर है कि बांग्लादेशी शरणार्थियों की वजह से असम पर बांग्ला भाषा और वहां की संस्कृति हावी हो जाएगी। उनकी असमिया पहचान मिट जाएगी. इसके अलावा रोजगार और शिक्षा में भी मौके कम हो जाने का डर है लोगों में।
असम में विरोध-प्रदर्शनों का आलम यह है कि असम के गुवाहाटी में बुधवार को अनिश्चिकाल के लिए कर्फ्यू लगाना पड़ गया। प्रदर्शनकारियों ने असम में चबुआ और पानीटोला रेलवे स्टेशन को आग के हवाले कर दिया।
बात त्रिपुरा में धरना-प्रदर्शन की कि जाए तो यह सच है कि केन्द्र की मोदी सरकार ने कैब को मंजूरी तो दे दी,लेकिन उसने कैब को लेकर पूर्वोत्तर राज्यों की जनता के बीच पैदा भ्रम को समय रहते दूर करने की कोई खास कोशिश नहीं की।
बात हकीकत की कि जाए तो मेघालय और त्रिपुरा के पूरे स्वायत्त क्षेत्र को नागरिकता संशोधन विधेयक से बाहर रखा गया है। इसके अलावा सिक्किम को भी कहा गया है कि उसकी चिंताएं और संविधान में उसके प्रावधान को नहीं बदला जाएगा। इसलिए पूरे पूर्वोत्तर को पूरी सुरक्षा दी गई है।
इसी भ्रम के कारण लोग सड़क पर उतार आए जिसके चलते 10 दिसंबर को ही त्रिपुरा में 48 घंटे के लिए इंटरनेट सेवाएं बंद करनी पड़ गईं वहां भी अतिरिक्त सुरक्षाबलों को तैनात किया गयां त्रिपुरा में ‘जॉइंट मूवमेंट अगेंस्ट सिटिजनशिप अमेंडमेंट बिल’ के विरोध में बुलाए बेमियादी बंद का आज तीसरा दिन है।
मणिपुर में जरूर थोड़ी खुशी का माहौल है। वजह ये कि राज्य के लोग लंबे समय से अपने यहां भी ‘इनर लाइन परमिट (आईएलपी)की व्यवस्था लागू किए जाने की मांग कर रहे थे। कैब बिल में उनकी इस मांग को मान लिया गया है।
पूर्वोतर से आने वाले भाजपा नेता और केन्द्री मंत्री किरन रिजिजू कहते हैं कि हम नहीं चाहते कि पूर्वोत्तर क्षेत्र किसी मिसकैंपनिंग के चक्रव्यूह में फंसे।
केन्द्र की मोदी सरकार ने आखिरकार भारी विरोध के बीच अपने घोषणा पत्र के एक और चुनावी वायदे ‘नागरिकता संशोधन बिल’ (कैब)को कानूनी जामा पहना ही दिया। अब सिर्फ राष्ट्रपति के हस्ताक्षर की औपचारिकता बची है। वहीं इस बिल को गैर-संवैधानिक बता कर कुछ लोग सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गए हैं।
बिल को गैर संवैधानिक और मुस्लिमों को डराने वाला बताकर कांगे्रस,वामपंथी दलों, समाजवादी पार्टी, बसपा, लालू की राजद,टीएमसी, तृणमूल कांगे्रस,टीएमसी आदि ने विरोध किया तो वहीं लोकसभा में बिल के समर्थन में खड़ी शिवसेना ने राज्य सभा में सदन से वाॅकआउट कर मोदी सरकार के लिए बिल लाने का रास्ता आसान कर दिया। वैसे शरद पवार की एनसीपी और बसपा भी वोटिंग के समय सदन में गैर-हाजिर रहीं।
बिल को लेकर कहीं खुशी तो कहीं नाराजगी भी दिखाई दे रही है।कई जगह मुस्लिम संगठन बिल का विरोध कर रहे हैं तो पूर्वाेत्तर के राज्यों में स्थिति कुछ ज्यादा ही तनावपूर्ण है। पूर्वाेतर राज्यों के नागरिकों की चिंता से पहले भौगौलिक पृष्ठभूमि भी समझना जरूरी है। पूर्वोत्तर के जो राज्य कैब का विरोध कर रहे हैं,वह बंग्लादेश की सीमा से सटे हुए हैं। बंग्लादेश की सीमा भारत के पांच राज्यों असम,मेघालय,मिजोरम, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल को छूती हैं। इसी लिए बंग्लादेशी घुसपैठियों के लिए इन राज्यों में आकर चोरी-छिपे आकर बस जाना सबसे आसान रहता है। इन घुसपैठियों से सहारे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तो सत्ता की सीढ़िया तक चढ़ जाती हैं। इसी लिए ममता बनर्जी कैब का सबसे अधिक विरोध कर रही हैं। वामपंथियों को भी यह घुसपैठिए खूब रास आते हैं। यह भी घुसपैठियों पर खूब सियासत किया करते थे और आज भी कर रहे हैं।
पूर्वाेत्तर राज्यों से अलग बात अन्य राज्यों की कि जाए तो मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति करने वाले दल मुसलमानों में भय दिखाकर तुष्टिकरण की सियासत को गरमाए हैं,जबकि हकीकत यह है कि इस बिल से देश में रहने वाले किसी नागरिक को कोई नुकसान नहीं होगा।मुसलमानों को भड़काने वाले यह वही दल हैं जो पहले ढ़िढोरा पीटा करते थे कि अगर मोदी आ गया तो मुसलमानों को देश से बाहर निकाल दिया जाएगा। देश में कत्ले आम शुरू हो जाएगा। इसी भय की ‘हांडी’ के सहारे तुष्टिकरण की सियासत करने वाले अपनी रोटियां सेंकना चाहते हैं,लेकिन उनको यह नहीं पता है कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती है। हालात यह है कि सोनिया गांधी तक बता रही हैं कि नागरिकता संशोधन बिल पास होना देश के लिए ‘काला दिन’ है।
केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह की बात की जाए तो वह पूर्वाेत्तर राज्यों के लोगों की चिंता दूर करने की तो बात कर रहे हैं,लेकिन जो लोग वोट बैंक की सियासत कर रहे हैं,उन्हें शाह कोई छूट देने के मूड में नहीं हैं। कांगे्रस तो खासकर शाह के निशाने पर हैं। वह बार-बार कांगे्रस को याद दिला रहे हैं कि उसी ने धर्म के आधार पर देश का बंटवारा कराया था। अगर वह ऐसा नहीं करती तो आज हमें कैब लाना ही नहीं पड़ता।
बात पूर्वाेत्तर राज्यों में कैब को लेकर नाराजगी की कि जाए तो पूर्वोत्तर राज्यों और उसमें भी असम में नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध की ज्वाला कुछ ज्यादा ही भड़की हुई है। इसकी दो वजह हैं।
पहली चिंता एनआरसी से जुड़ी है। दरअसल, जब असम में एनआरसी हुई थी तो उसमें करीब 19 लाख नाम ऐसे निकल कर आए थे जो घुसपैठिए थे। इन 19 लाख में करीब 17 लाख हिन्दू घुसपैठिए थे। इनको देश से बाहर निकाले जाने की बात हो रही थी,इसी बीच मोदी सरकार नागरिकता संशोधन बिल ले आई,जिसमें उसने सभी गैर इस्लामी घुसपैठियों को नागरिकता देने का कानून पास कर दिया। असम के मूल निवासियों की चिंता यही 17 लाख हिन्दू हैं जो कल तक घुसपैठिए थे,अब असम के नागरिक बन जाएंगे।
दूसरी चिंता असम के मूल निवासियों की यह है कि कैब से उत्तरपूर्व में अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों की बाढ़ आ जाएगी। यहां की डेमोग्रफी बदल जाएगी। यहां के मूल निवासी अपनी ही जमीन पर अल्पसंख्यक रह जाएंगे। असम के लोगों को डर है कि बांग्लादेशी शरणार्थियों की वजह से असम पर बांग्ला भाषा और वहां की संस्कृति हावी हो जाएगी। उनकी असमिया पहचान मिट जाएगी. इसके अलावा रोजगार और शिक्षा में भी मौके कम हो जाने का डर है लोगों में।
असम में विरोध-प्रदर्शनों का आलम यह है कि असम के गुवाहाटी में बुधवार को अनिश्चिकाल के लिए कर्फ्यू लगाना पड़ गया। प्रदर्शनकारियों ने असम में चबुआ और पानीटोला रेलवे स्टेशन को आग के हवाले कर दिया।
बात त्रिपुरा में धरना-प्रदर्शन की कि जाए तो यह सच है कि केन्द्र की मोदी सरकार ने कैब को मंजूरी तो दे दी,लेकिन उसने कैब को लेकर पूर्वोत्तर राज्यों की जनता के बीच पैदा भ्रम को समय रहते दूर करने की कोई खास कोशिश नहीं की।
बात हकीकत की कि जाए तो मेघालय और त्रिपुरा के पूरे स्वायत्त क्षेत्र को नागरिकता संशोधन विधेयक से बाहर रखा गया है। इसके अलावा सिक्किम को भी कहा गया है कि उसकी चिंताएं और संविधान में उसके प्रावधान को नहीं बदला जाएगा। इसलिए पूरे पूर्वोत्तर को पूरी सुरक्षा दी गई है।
इसी भ्रम के कारण लोग सड़क पर उतार आए जिसके चलते 10 दिसंबर को ही त्रिपुरा में 48 घंटे के लिए इंटरनेट सेवाएं बंद करनी पड़ गईं वहां भी अतिरिक्त सुरक्षाबलों को तैनात किया गयां त्रिपुरा में ‘जॉइंट मूवमेंट अगेंस्ट सिटिजनशिप अमेंडमेंट बिल’ के विरोध में बुलाए बेमियादी बंद का आज तीसरा दिन है।
मणिपुर में जरूर थोड़ी खुशी का माहौल है। वजह ये कि राज्य के लोग लंबे समय से अपने यहां भी ‘इनर लाइन परमिट (आईएलपी)की व्यवस्था लागू किए जाने की मांग कर रहे थे। कैब बिल में उनकी इस मांग को मान लिया गया है।
पूर्वोतर से आने वाले भाजपा नेता और केन्द्री मंत्री किरन रिजिजू कहते हैं कि हम नहीं चाहते कि पूर्वोत्तर क्षेत्र किसी मिसकैंपनिंग के चक्रव्यूह में फंसे।
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