12.4.20

राजतंत्र से भी ज्यादा घातक साबित हो रहे हैं लोकतंत्र के ये शासक


CHARAN SINGH RAJPUT

लोकतंत्र में जनता का राज माना जाता है। मतलब शासक से बड़ी जनता होती है। क्या आज के शासक जनता के प्रति समर्पित हैं ? क्या लोकतंत्र की दुहाई देने वाले ये  शासक जनहित ध्यान में रखकर काम कर रहे हैं ? आज के हालात से तो बिल्कुल नहीं लग रहा है। दुनिया में तमाम प्रतिबंध के बावजूद, मानवता पर काम करने का दावा करने वाले अनगिनत संगठनों के बावजूद प्रभाव शाली देशों के शासक अपना धंधा चमकाने के लिए जनता के ही दुश्मन बने हुए हैं।  लोकतंत्र के रखवाले ही लोकतंत्र की ऐसी की तैसी करने में लगे हैं। जनता की आवाज को दबाने के लिए हद से गुजरा जा रहा है।  रोजी रोटी को दरकिनार कर हथियारों की खरीद फरोख्त दुनिया की पहली प्राथमिकता बनकर रह गई है।

दुनिया पर कहर बरपाने वाली कोरोना वैश्विक महामारी भी इसी हथियारों की होड़ का ही दुष्परिणाम परिणाम मानी जा रही है।  जनता की बात करने वाले आज के शासक जनता के ही दुश्मन बने हुए हैं। लोकतंत्र के ढांचे को तहस नहस करने में लगे हैं।

कोरोना वायरस की उत्पत्ति पर अध्ययन के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि लोकतंत्र का ढिंढोरा पीटने वाले आज के शासक जनता के लिए राजतंत्र से भी ज्यादा घातक साबित हो रहे हैं। किसान मजदूर और गरीब की बात करने वाले कम्युनिस्ट देश चीन के  हांगकांग में आजादी के लिए हुई बगावत को शांत करने के लिए कोरोना वायरस को तैयार करने बात सामने आ रही है। आज जनता के नाम पर हैड्रोक्लोरोक्वीन दवा के लिए भारत से मदद मांगने वाला अमेरिका के भी इस जैविक हथियार को खरीदने के प्रयास की  बात सामने निकल कर आ रही है। वह बात दूसरी है कि बाद में बात बिगड़ गई  थी। अब इस जैविक हथियार का खामियाजा पूरी दुनिया भुगत रही है। जहां इस जैविक हथियार की उत्पत्ति करने वाले चीन के खिलाफ दुनिया को एकजुट होकर कोरोना की तह तक पहुंचना चाहिए था वहीं कोरोना से प्रभावित मुख्य देश अमेरिका, स्पेन, इटली, ईरान, पाकिस्तान और हमारा देश भी इस लड़ाई में चीन का धंधा बढ़ाने को मजबूर हो गए हैं। जब दुनिया कोरोना से निपटने का प्रयास कर रही है तब चीन कोरोना की आड़ में अपने धंधे को चमकाने में लगा है और कोरोना से प्रभावित देश उससे मेडिकल उपकरण खरीदने के लिए मजबूर हो गए हैं। चीन से अरबों खरबों डॉलर के मास्क, वेंटिलेटर, पीपीई और दूसरे मेडिकल उपकरण खरीदे जा रहे हैं। दुनिया संकट में है और कोरोना की उत्पत्ति वाले चीन के शहर वुहान में जश्न मनाया जा रहा है। इसकी भी बड़ी वजह है कि कई देश आज की तारीख में चीन पर निर्भर हैं। हमारा बाजार तो पूरी तरह से चीन के कब्जे में है।

मतलब जनता को  संकट में डालने वाले दुनिया के ये शासक उस चीन के पिछलग्गू बन कर रह जा रहे हैं, जिसने कोरोना नामक यह जैविक हथियार बनाकर मानवता के खिलाफ जघन्य अपराध किया है।  डब्ल्यूएचओ तो कोरोना पर अंकुश लगाने का हवाला देकर चीन की तारीफ कर रहा है। अमेरिका कोरोना मामले में चीन को टारगेट तो बना रहा है पर कोरोना से निपटने के लिए चीन पर ही निर्भर प्रतीत हो रहा है। जहां चीन ने उसे बड़े स्तर पर मास्क दिए हैं वहीं अमेरिका ने चीन को वेंटिलेटर बनाने का बड़ा आर्डर दिया है। इस विनाश की जड़ चीन ने कोरोना प्रभावित देशों को पंगु बना दिया है।

दुनिया के इस संकट में पड़ने के लिए मात्र चीन ही जिम्मेदार नहीं है। दूसरे देश भी इसके बड़े जिम्मेदार हैं। पूरी दुनिया के शासक रोजी और रोटी की चिंता छोड़ हथियारों की होड़ में लग गए। कोरोना ही क्यों दुनिया के पास जो परमाणु बम हैं। उनके दुरुपयोग की आशंका से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। पाकिस्तान तो समय समय पर इसकी धमकी भारत को देता रहता है। गजब खेल चल रहा है दुनिया में रूस और सीरिया जैसे कई देश कोरोना के लिए अमेरिका और इस्राइल को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं तो अमेरिका चीन को। यह कोई शासक समझने को तैयार नहीं कि ये सभी देश मानवता के दुश्मन बन कर रह गए हैं।

आने वाला समय आम आदमी के लिए बहुत बुरा आने वाला है। कोरोना से लड़ी जा रही इस लड़ाई में आम आदमी तो पूरी तरह से बर्बाद हो जा रहा है। पहले ही हमारी अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चरमरायी हुई थी। अब तो यह संकट भी आ पड़ा। लॉक डाउन के बाद लोगों पर पड़ने वाले असर पर भी मंथन शुरू कर देना चाहिए। लोगों को यह भी समझ लेना चाहिए कि ये वे शासक हैं जो कोरोना से लड़ी जा रही इस लड़ाई में भले ही ये शासक जनता की बात कर रहे हों पर ये शासक अपने खिलाफ उठने वाले विरोध को कुचलने के लिए  किसी भी हद तक जा सकते हैं। चीन और रूस से लोकतंत्र को कुचलने की शुरुआत हो चुकी है। अब दूसरे प्रभावशाली देश भी इसका हिस्सा बनने को आतुर हैं। हमारा देश भी इस मामले इन सब देशों के साथ पूरी तरह से लगा है।

CHARAN SINGH RAJPUT

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