कुमुद ऋषभ
खुदरा एंव अन्य समुदाय के व्यापारियों समेत उत्तराखंड राज्य के दुर्गम व सुगम क्षेत्रों के बाशिन्दों को करना पड़ रहा मुश्किलों का सामना :
भारत में कोरोना वायरस से बचने के लिए केंद्र सरकार ने देश को 14 अप्रैल तक लॉक डाउन करने का एलान किया था। बाद में इसे बढ़ाते हुए 3 मई तक कर दिया है जिससे नागरिकों को तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। खासकर उन लोगों को ज्यादा परेशानी उठानी पड़ रही है जो प्रवासी मजदूर और ठेला-खुमचा लगाने वाले लोग और स्थानीय एंव प्रवासी व्यापारी इसमें कुछ अल्पसंख्यक समुदाय के व्यापारी भी शामिल हैं।
हमने इस रिपोर्ट में उत्तराखंड राज्य के कुछ महानगर तथा महत्वपूर्ण जनपदों का सफ़र किया है, जिसके जरिए हम प्रवासी मजदूर एवं यहां के प्रवासी व्यापारियों की और यहां के बाशिन्दों की समस्या रिपोर्ट के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं,उत्तराखंड की स्थिति मैदानी इलाकों से बिल्कुल भिन्न है. उत्तराखंड के कुछ जिलों में से अधिकतर पहाड़ी जिले हैं जहां लोगों को बहुतायत मात्रा में समस्या का सामना करना पड़ रहा है और यहां के पहाड़ी इलाकों में सब्जी, फल, मटन चिकन या अन्य व्यापार के व्यापारियों की और यहां के बाशिन्दों की समस्या लॉक डाउन की वजह से पहले से अधिक बढ़ गई है
1-पौड़ी गढ़वाल पहाड़ी क्षेत्र
ट्रांसपोर्ट की मदद से रोजमर्रा की जिंदगी को आसान बनाया जाता है। अचानक लॉकडाउन से ट्रांसपोर्ट से होने वाली सप्लाई ब्रेक हो गयी। इससे पहाड़ी जीवन मैदानी इलाकों की अपेक्षा अधिक कठिन हो गया। लोग बताते हैं कि धीरे-धीरे स्थिति पटरी पर आ रही है। बाज़ारों में जरूरत का समान पहुंचने लगा है। लेकिन लॉकडाउन से गरीब, किसान और प्रवासी मजदूर की समस्याएं और गहराती चली जा रही हैं। जनपद पौढ़ी, गढ़वाल का एक छोटा सा कस्बा सतपुली है, हमने जब बात की सतपुली बाजार के सब्जी, फल के व्यापारी बदला हुआ नाम (समसुल खान) से तो वह बताते हैं कि लॉक डाउन की वजह से उनको दुगना नुकसान तो हो ही रहा था, लेकिन अचानक कुछ अराजक तत्व द्वारा जमात के मुद्दे को बढ़ा चढ़ा कर पेश किया गया जिससे लोगों में ऐसे भ्रांति पैदा कर दी गई की अगर हम मुस्लिम व्यापारियों के यहां से कुछ भी खरीदेंगे तो हमें भी कोरोनावायरस हो सकता है। जबकि यह सरासर झूठ और अफवाह है। बदला हुआ नाम (समसुल खान) कहते हैं कि हमें व्यापार में कम से कम 40 फीसदी घाटे का सौदा करना पड़ रहा है,और बताते हैं कि जो उनके परमानेंट ग्राहक थे वह भी सब्जी एवं फल उनके पास से नहीं खरीद रहे हैं।
और समसुल बताते हैं कि अगर कोई अन्य व्यापारी वही सब्जी ₹20 में दे रहा है और समसुल ₹15 में दे रहे हैं तब भी अधिकतर लोग लेने को तैयार नहीं हैं।
समसुल कहते हैं कि जमात का मामला तो कुछ समस्या बढ़ाया ही है ,लेकिन सोशल मीडिया या अन्य मीडिया द्वारा एवं अन्य लोगों द्वारा इसका बढ़ा चढ़ाकर फैलाव किया जा रहा है, इस नुकसान का हम छोटे व्यापारियों को सामना करना पड़ रहा है
व्यापारी का कहना है कि यह बर्ताव केवल 30 फ़ीसदी लोग ही कर रहे हैं बाकी के 70 फ़ीसदी लोगों का व्यवहार पहले के ही जैसा सामान्य है...
पौड़ी जिले में अधिकतर प्रवासी मजदूर नेपाल से हैं ।
जो यहां अपनी जीविका चलाने के लिए मजदूरी का कार्य करते हैं लेकिन इस समय लॉक डाउन की वजह से उनके पास कोई कार्य नहीं है,और अभी वह पैसे की कमी से परेशान एवं विवश है, इनके पास खाने की भी समस्या थी लेकिन यहां पर भी कुछ स्थानीय लोगों ने आर्थिक मदद एवं राशन वितरण का कार्य कर इनकी यह समस्या को कम करने का प्रयास किया है
2 उधम सिंह नगर (रुद्रपुर)
रुद्रपुर भारत के उत्तराखण्ड राज्य में उधम सिंह नगर जनपद का एक नगर है। जनसंख्या के आधार पर यह कुमाऊँ का दूसरा, जबकि उत्तराखण्ड का पांचवां सबसे बड़ा नगर है।
हमने रुद्रपुर के बाशिन्दे मौलाना ज़ाहिद रजा रिज़वी से बात किया।
ज़ाहिद रिज़वी उत्तराखंड मदरसा बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष हैं,और वर्तमान में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य हैं। हमने इनसे बात की और हमने प्रश्न किया कि-आपको क्या लग रहा है कोरोना वायरस के बाद से जो प्रकरण तबलीगी जमात का हुआ है, दिल्ली के निजामुद्दीन से होता हुआ और फिर आर्थिक बहिष्कार तक पहुंचा है इस पूरे प्रकरण को आप किस तरह देखते हैं.?
ज़ाहिद रिज़वी अपनी में बात कहते हैं कि कोरोनावायरस से पूरा देश परेशान है और विश्व भर में जितने भी सुपर पावर देश हैं उनकी भी स्थिति बेहद खराब है और वह भी जूझ रहे हैं।
ज़ाहिद रज़ा रिजवी का कहना है कि कोरोनावायरस कई देशों के बाद हिंदुस्तान में आया और हमें पूर्ण आशा है कि हिंदुस्तान से सबसे पहले जाएगा भी।
ज़ाहिद जी हुकूमत के इस फैसले को सराहते हुए कहते हैं, कि लॉकडाउन का फैसला एक मात्र ही ऐसा उपाय है कि इससे कोरोना को रोका जा सकता है,लेकिन कुछ चीजें रह गई जैसे मजदूर वर्ग,फुटपाथ पर रहने वाले झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले क्योंकि उधम सिंह नगर में करीब 300 से अधिक फैक्ट्रियां हैं जहां पर मजदूरी के चक्कर में कई अन्य प्रदेशों से मजदूर आते हैं और यहां मजदूरी कर अपना गुजर-बसर करते हैं।
फिर ज़ाहिद रजा रिज़वी ने अपनी बात तबलीगी जमात पर रखते हुए कहा मुस्लिम में दो 2 वर्ग हैं देवबंदी और बरेलवी,और कहते हैं कि तबलीगी जमात देवबंदी सेक्टर से ताल्लुक रखता है लेकिन जो यहां उत्तराखंड के कुछ इलाकों में जैसे कुमाऊं रामनगर हल्द्वानी नैनीताल में जो मुस्लिम रहते हैं वह बरेलवी समुदाय से आते हैं , तो यहां पर जमात का मामला ही नहीं होना चाहिए।
लेकिन जहां तक जमात का मामला है, तो दिल्ली के निजामुद्दीन में लोग फंसे थे यह सत्य है,लेकिन उन्होंने यह गलती की और वास्तविकता को छुपाया, जिस कारण इससे लोगों को मुद्दा मिल गया,और इसे पॉलिटिकल इशू बना दिया गया उनको वास्तविकता नहीं छुपाना चाहिए था।
मौलाना मोहम्मद ज़ाहिद रजा रिजवी ने एक महत्वपूर्ण बात कहा कि अगर जमात से कोरोना वायरस फैल रहा है,
तो जिस देश में तबलीगी जमात नहीं हुई वहां करोना कैसे आ गया बहुत से ऐसे देश हैं-ऑस्ट्रेलिया,इटली,अमेरिका में जहां मुसलमान ना के बराबर हैं,वहां कोरोना कैसे आ गया.? और कैसे फैल गया.?
यह केवल एक पॉलिटिकल इशू है जिसे स्टैंड बना लिया गया है,इससे केवल सांप्रदायिकता का वायरस पूरे देश में फैलाया जा रहा है जो कि बेहद खतरनाक है।
और मौलाना ज़ाहिद रजा रिजवी कहते हैं,कि कोरोना की कोई जात नहीं है,कोई धर्म नहीं है,इसलिए इसे बिना समुदाय,वर्ग,धर्म,जाति से जोड़ते हुए इसे खत्म करने के लिए हमें बड़ी लड़ाई मानवता,समाज,देश,इंसानियत के हिफाजत के लिए सबको साथ लड़ना होगा।
फिर अंत में उन्होंने वहां के प्रवासी मजदूरों के बारे में बताया कि सरकार द्वारा और समाजसेवी लोगों द्वारा उन मजदूरों तक लगातार हर संभव मदद करने का प्रयास किया जा रहा है।
3 हल्द्वानी,नैनीताल
हल्द्वानी उत्तराखण्ड राज्य में स्थित एक महानगर है। यह कुमाऊँ मण्डल का सबसे बड़ा एवं देहरादून के बाद राज्य का दूसरा सबसे बड़ा नगर है। हल्द्वानी कुमाऊँ का सबसे बड़ा आर्थिक,शैक्षिक,व्यापारिक एवम आवासीय केंद्र है इसे "कुमाऊँ का प्रवेश द्वार" कहा जाता है। कुमाऊँनी भाषा में इसे "हल्द्वेणी" भी कहा जाता है, क्योंकि यहाँ "हल्दू" (कदम्ब) प्रचुर मात्रा में मिलता था।
यहां की भी समस्याएं लगभग एक समान है लेकिन हमने जब बात किया यहां के वाशिन्दे डॉ० ऋतुराज पंत सहायक प्रोफ़ेसर तथा समाजसेवी से तो उनका कहना है कि यहां के जो स्थानीय वाशिन्दे एवं किसान हैं,उन सब के खेतों में लगी सब्जियों का ही प्रयोग अधिकतर हल्द्वानी के हर वर्ग के रहवासी लोग कर रहे हैं।
इससे किसानों के खेत में खड़ी फसलें भी आसानी से बिक जा रही हैं,तथा किसानों को दूर तक बाजार बाजार भटकना नहीं पड़ रहा है,और ऋतुराज पंत जी बताते हैं कि यहां के हर वर्ग के लोग आपस में कंधे से कंधा मिलाकर कमजोर, असहाय,बेबस,लाचार प्रवासी मजदूरों की सहायता में लगातार लगे हुए हैं।
हिंदुस्तान के रिपोर्ट के मुताबिक लम्बे समय से पास के लिए चक्कर काट रहे आठ मजदूरों को आखिरकार एसएसपी के पीआरओ की मदद से ई-पास मिल गया है। अब ये मजदूर हल्द्वानी से करीब 800 किलोमीटर दूर बिहार तक साइकिलों से जाएंगे। शनिवार को एसएसपी कार्यालय से पास मिलने के बाद मजदूरों के चेहरों में खुशी देखने को मिली। मजदूर बोले घर जाकर किसी से राशना मांगने की जरूरत नहीं पढ़ेगी।हाल टनकपुर रोड और मूल बिहार निवासी भोला कुमार ने बताया लॉकडाउन के बाद से उन्हें यहां पर सिर्फ एक बार राशन मिला। इसके बाद से वे लोग किसी तरह दिनकाट रहे थे। बताया कि उन्हें साइकिल का पास मिल गया है और अपने घर हल्द्वानी से करीब 800 किलोमीटर दूर साइकिल से जायेंगे। उन्हें बहुत खुशी है कि वे अपने घर जायेंगे और वहां पर किसी से राशन मांगने की जरूरत नहीं पड़ेगी। बताया कि उनके साथ छह अन्य साथी भी हैं। महाराजगंज निवासी बहादुर ने बताया कि उनका घर हल्द्वानी से करीब 700 किलोमीटर दूर है। उनके साथ दो अन्य साथी भी जाने वाले हैं। अब हल्द्वानी से जाने वाले करीब 8 मजदूर हो गये हैं, सभी पास लेकर जा रहे हैं। रास्ते में खाने की परेशानी न हो, इसके लिए फल लेकर जा रहे हैं, जहां भूख लगेगी फल खाकर भूख मिटा लेंगे। बताया वे लोग कई दिनों से पास के लिए चक्कर काट रहे थे, लेकिन किसी ने उनकी मदद नहीं की। लेकिन एसएसपी के पीआरओ ने स्वयं उनका ई-पास के लिए आवेदन किया, जिससे उन्हें आज यह पास मिला
5 हरिद्वार- ,हरिद्वार भारत के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है,लेकिन इस समय वहां के प्रमुख स्न्नान घाट पर जहां कुंभ का आयोजन किया जाता है,किन्तु इस समय वहां एकदम सन्नाटा पसरा है।
हमने जब हरिद्वार में वहां के स्थानीय लोगों से बात किया जो हरिद्वार के महत्वपूर्ण घाट हरकी पैड़ी पर अपनी दुकानें लगाते थे जैसे, फूल माला,दीपक आदि उनकी स्थिति एकदम भिन्न है उनका कहना है कि वह रोज जो आमदनी होती थी उसी से अपना और अपने परिवार का पालन पोषण करते थे ।
आप फ़ोटो के माध्यम से देख सकते हैं कि कभी यहाँ करोड़ों की भीड़ रात में भी शांत नहीं होती थी लेकिन कोरोना जैसे भयानक बीमारी के कारण यहां पर मानो चिड़िया पक्षी का भी बसेरा नहीं है।
4 देहरादून
देहरादून जिले का मुख्यालय है जो भारत की राजधानी दिल्ली से 230 किलोमीटर दूर दून घाटी में बसा हुआ है। 9 नवंबर, 2000को उत्तर प्रदेश राज्य को विभाजित कर जब उत्तराखण्ड राज्य का गठन किया गया था, उस समय इसे उत्तराखण्ड (तब उत्तरांचल) की अंतरिम राजधानी बनाया गया। देहरादून नगर पर्यटन, शिक्षा, स्थापत्य, संस्कृति और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है।
हमने रिपोर्टिंग के दौरान देहरादून के रहवासी छात्र हर्ष गुप्ता से बात की तो हर्ष गुप्ता का कहना है कि विश्व भर मैं कोरोना वायरस जैसी भयानक बीमारी फैली हुई है। इससे पूरा देश परेशान है।
अगर लॉक डाउन को ध्यान में रखते हुए बात करें तो देहरादून में कई तरह के लोग रहते हैं,कोई मध्यमवर्गीय तो कोई मजदूर वर्ग तो कोई हाई प्रोफाइल,लेकिन यह मुसीबत सबके लिए है.और इसका सामना सभी लोग कर रहे हैं जहां तक बात व्यापारियों की और मजदूरों की की जाए तो उनकी स्थिति अन्य लोगों से भिन्न है हर्ष बताते हैं कि वह पिछले दिनों जब एक किसी काम से रेलवे स्टेशन की तरफ से गुजर रहे थे तो वहां पर पुलिस द्वारा मजदूरों को राशन मुहैया कराया जा रहा था, फिर उन्होंने वहां रुक कर किसी एक मजदूर से बात की और और बात के दौरान जानने की कोशिश की और पूछा कि आपको क्या क्या राशन मुहैया कराया जाता है और रोज दिया जाता है या फिर केवल आज ही दिया जा रहा है, उस मजदूर ने बताया कि प्रतिदिन पुलिस द्वारा वहां के मजदूरों को राशन मुहैया कराया जाता है उनका एक अपना समय होता है,उसी समय के दौरान वहां पर सभी लोग सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए करीब 1 मीटर दूरी पर लाइन में खड़े होकर रोजमर्रा की चीजें लेने के लिए लाइन में लग जाते हैं,और हर्ष ने बताया कि देहरादून में पुलिस प्रशासन के अलावा भी कुछ अन्य लोग हेल्प ग्रुप चला रहे हैं,और कुछ सिख सरदार लोग भी मदद के लिए आगे बढ़ कर गली गली मोहल्ले मोहल्ले घूम कर लोगों के मदद के लिए सामने आ रहे हैं।
हमने अंत में बात की रहवासी छात्र बदला हुआ नाम (थापा डोबरियाल)से उन्होंने बताया कि यहां पर पहले की अपेक्षा स्थिति सामान्य हो गई है,लेकिन उनका कहना है कि स्थिति सामान्य होने के बावजूद भी कुछ स्थान ऐसे हैं जहां मदद नहीं मिल पा रही है
कुछ ऐसे दुकानदार हैं,जिनके यहां काम कर रहे लोग का प्रतिमाह वेतन ₹ 10,000 है, उनके दुकानदार का कहना है कि "हम इस महीने का वेतन तो दे सकते हैं लेकिन हम कब तक दे सकेंगे यह कुछ कहा नहीं जा सकता।
क्योंकि लॉक डाउन की वजह से उनकी भी दुकान के सामानों की बिक्री मैं गतिशीलता पहले की अपेक्षा नहीं रह गई है।
थापा डोबरियाल ने बताया की कुछ लोग लॉक डाउन का समर्थन कर रहे हैं,और कुछ लोग लॉक डाउन को असफल दृष्टि से देख रहे हैं लेकिन ज्यादातर लोगों की संख्या लॉक डाउन को समर्थन देने वालों की है...
लेखक Kumud Rishabh महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के जनसंचार एंव पत्रकारिता विभाग का छात्र है।
Kumud Rishabh
thinkerjournlism@gmail.com
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