CHARAN SINGH RAJPUT
देश में जिस तरह से कोरोना संक्रमण और मौत की संख्या बढ़ रही है। जिस तरह से एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने कोरोना संक्रमण का जून में चरम बताया है। इसके आधार पर कहा जा सकता है कि देश में कोरोना का कहर अभी और बढ़ेगा। मतलब यह कहर लंबा चलना है। हम लोग जो यह समझ रहे थे कि भारत में कोरोना का दूसरे देशों से कम होगा और हम जल्द ही इस पर काबू पा लेगा, इसमें अब संदेह लगने लगा है।
हमारा देश पराक्रम के मामले में दुनिया में श्रेष्ठ रहा है। देश पर एक से बढ़कर एक आपदा आई। एक से बढ़कर एक महामारी आई हम सबसे निपटे हैं। कोरोना से भी निपट लेंगे। देश ने तो हैजा जैसी महामारी को भी झेला है। भाजपा और उसके समर्थकों के साथ ही गोदी मीडिया ने कोरोना मामले में जिस तरह से प्रधानमंत्री को भगवान के रूप में पेश किया, इसने लड़ाई को मजबूत नहीं बल्कि कमजोर किया है। जिस तरह से प्रधानमंत्री ने देश से ज्याादा विदेशों की स्थिति पर ज्यादा दिलचस्पी दिखाई उससे उससे भी यह लड़ाई प्रभावित हुई है।
यदि देश में 30 जनवरी को मिले पहले करोना मामले के बाद आप प्रधानमंत्री की कोरोना के प्रति रणनीति का विश्लेषण करें तो उनका जोर देश में करोना फैसले से रोकने से ज्यादा विदेश में फंसे भारतीय मूल के लोगों को लाने पर ज्यादा रहा। नहीं तो विदेश से आने वाले लोगों पर या तो प्रतिबंध लगा देते या फिर भी का टेस्ट कराने की व्यवस्था करते।
कोरोना की लड़ाई को कमजोर करने के लिए हम तब्लीगी जमात को कितना भी दोषी ठहरा लें पर यह भी जमीनी हकीकत है कि इन लोगों ने सरकार के लापरवाहीपूर्ण रवैये का ही फायदा उठाया। डब्ल्यूएचओ के कोरोना को वैश्विक महामारी घोषित करने के बाद यदि देश की राजधानी में किसी धर्म विशेष का इतना बड़ा कार्यक्रम होता है तो आयोजकों से कम जिम्मेदार सरकार नहीं है ।
तमाम दावे के बावजूद प्रवासी मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाने में केंद्र सरका विफल साबित हो रही है। प्रधानमंत्री की दिलचस्पी अभी भी देश में विभिन्न राज्यों में फंसे प्रवासी मजदूरों को उनके घरों को सही सलामत पहुंचाने से ज्यादा विदेश में फंसे भारतीयों को उनके घरों में पहुंचाने में ज्यादा दिखाई दे रही है। यही वजह है कि जगह-जगह मजदूरों की समस्याओं के साथ ही मजदूरों के मरने का सिललिसा जारी है। औरंगाबाद हादसा भी केंद्र सरकार और राज्य सरकार की निष्क्रियता का ही परिणाम है। यदि मजदूरों को वहां सुविधाएं मिलती तो वे पैदल ही क्यों अपने घरों को चलते ? देश में बड़े स्तर पर स्वास्थ्यकर्मियों, पुलिसकर्मियों, सेना के जवानों और सफाई कर्मियों का करोना संक्रमित होना यह दर्शाता है कि इन करोना वारियर्स को सरकार की ओर से समुचित सुविधाएं प्रदान की गईं।
चिंतनीय तो यह है कि कई चैनल अभी भी कोरोना लड़ाई को हिन्दू-मुस्लिम का रंग देने में लगे हैं। इस लड़ाई में यह भी बात प्रमुखता से उभर कर सामने आ रही है कि अपने स्वभाव के अनुसार प्रधानमंत्री अपने स्तर से इसे कमांड कर रहे हंै, जबकि यह लड़ाई राज्य सरकारों के हाथों में होती और प्रधानमंत्री इसे लीड करते तो और अच्छे परिणाम आ सकते थे। इस लड़ाई को जीतने के लिए केंद्र सरकार के साथ ही विभिन्न राज्य की सरकारों के साथ ही जनता को भी मिलकर लड़नी पड़ेगी।
मैं कोई मेडिकल स्पेशलिस्ट तो नहीं हूं पर दावे के साथ कह सकता हूं कि देश में बड़े स्तर पर कोरोना संक्रमित घूम रहे हैं। ऐसे कितने लोग होंगे जो कोरोना संक्रमित हुए होंगे और ठीक भी हो गये होंगे। जिस तरह से पूरे के पूरे परिवार कोरोना संक्रमित निकल रहे हैं, इससे तो यही साबित होता है कि बड़े स्तर पर परिवार भी इससे संक्रमित हो गये होंगे। मेरा अपना मानना है कि इस लड़ाई में इस बात पर ज्यादा जोर दिया जाए कि लोगों की प्रतिरोधक क्षमता कैसे बढ़ाई जाए। यह लोगों को माइंड फ्री कर और उन्हें पौष्टिक आहार देकर ही किया जा सकता है। लोगों के मन से करोना का डर कैसे निकले, इस बात पर भी जोर देना होगा। प्रधानमंत्री को भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चमकने की बजाय देश के अंदरूनी हालात पर चिंतन पर ज्यादा ध्यान चाहिए। देश में बेरोजगारी और भुखमरी की जो चुनौती मुंह बाहे खड़ी है, इस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।
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