ANUPAM SRIVASTAVA
आज इस कोरोना महामारी में यह प्रश्न उठता है कि आम आदमी की बुनियादी आवश्यकता और सुविधा के लिए इस देश की 73 साल बूढ़ी आजादी ने क्या किया? क्या यही किया कि 15-20 फिसदी वोटर्स को मूर्ख बनाकर अपना उल्लू सीधा किया और सत्तारूढ़ होकर बैठ गए।
यह गहन चिंता का विषय है कि भारत के शहर अमेरिका की नकल कर रहे हैं और हमारे गांव गर्त में जा रहे हैं। ये तीनों आवश्यकताएं जब तक पूरी नहीं होंगी, तब तक गांव का पूर्ण विकास नहीं होगा। सत्ता, नौकरशाही और ठेकेदारों की तिगड़ी किसानों के विकास के वास्ते मिलने वाले धन को हड़प रही है। क्या 73 साल बाद यही भारत का विकास है? भारत का विकास करना है तो गांव की तरफ़ सच्चे मन से देखना होगा। हमारे देश के नेता यदि इन पिछड़े गांव की परेशानी को समझ लेते तो आज हमारा देश विकासशील देश नहीं बल्कि एक विकसित देश कहलाता।
यूं कहे कि मां भारती के अमर सपूतों ने आजादी के बाद जिस भारत की कल्पना की थी वह भारत आजादी मिलने के कई दशक बाद भी सिर्फ कल्पना मे रह गया और भारत की सत्ता संभालने वाले पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक ने आजादी के दीवानों की कल्पना को पूरा करने का कोई प्रयास नहीं किया।
आज 72 वर्ष के लंबे अंतराल के बावजूद अशिक्षा, भूखमरी, बेरोजगारी, बीमारी व भ्रष्टाचार से हम देश को मुक्त नहीं करा पाये, बल्कि इन दशकों में अपराधियों का राजनीतिकरण व जानलेवा महंगाई इस हद तक बढ़ गई है कि अब दूर तक इससे बचने का कोई उपाय नहीं दिखाई दे रहा है।हम आजादी के नाम पर सिर्फ लोकतंत्र के दो भाइयों की मनमानी ही भुगतने को विवश है और देश की अस्मिता खतरे में दिखाई दे रही है। विभिन्न मोर्चों पर सरकार की नाकामी व भ्रष्टाचार के कारण आम आदमी आज भी गुलामी सी स्थिति जीने को विवश है और अपने आप को आर्थिक गुलामी में जकड़ा महसूस कर रहा है।
आजादी मिलने के 73 साल बाद भी देश के कई ग्राम पंचायतों में बिजली और शिक्षा दस्तक नहीं दे पाई है। यही हाल आज गांव में शिक्षा के उजाले का भी है। देश के विकसित राज्यों में शुमार राज्य उत्तर प्रदेश राज्य के कई गांव में आजादी के कई दशकों बाद भी शिक्षा का प्रकार जिस तरह पहुंचना चाहिए वह नहीं पहुंच पाया है। आज शिक्षा को लेकर सरकार लाख दावे करती है लेकिन पूरे दावे सिर्फ कागजों में दिखाई पड़ते हैं। आज भी गांव में प्राइमरी स्कूलों का अस्तर कितना गुणकारी है मेरे ख्याल से यह किसी से छुपा नहीं है। शहरों में इतनी महंगी शिक्षा हो गई है कि आमजन 2 जून की रोटी की व्यवस्था करें या बच्चों की महंगी कॉपी किताब ड्रेस या महंगी फीस की? कोई भी सरकार रही हो शिक्षा को लेकर हवाई बयान बाजी ही देते रहे हैं वह चाहे पूर्व की सरकारें हो या वर्तमान सरकार? जब शिक्षा व्यापार बन जाए तो यही होता है। यह एक कड़वा सच है कि हमारे देश की अभी भी आधी से ज्यादा जनता अशिक्षित ही है। हमारे देश में ना जाने कितने ऐसे गांव हैं, जहां न तो पहुंचने के लिए सही रास्ता है और ना ही बिजली की व्यवस्था। यह बहुत ही शर्म की बात है की हमारे देश के ये 21वी सदी के गांव हैं । सच्चाई यह है कि देश के 6 लाख गांवों में देश की लगभग 70 फ़ीसदी आबादी रहती है। आंकड़ों के अनुसार देश की अधिकतर समस्या भी गांव से जुड़ी है।
आज देश को आजाद हुए 73 साल हो चुके हैं। इस दौरान हमने हर क्षेत्र में खूब प्रगति की, लेकिन साथ ही एक सच यह भी है कि आम आदमी तक आजादी का पूरा फायदा नहीं पहुंच रहा है। एक बड़ी आबादी साफ पानी, सड़कों, स्कूलों और इंसाफ पाने के लिए जूझ रही है। शहरों में तो फिर भी विकास की झलक दिखाई देती है, लेकिन गांव और गांव वासियों की जिंदगी बद से बदतर हुई है। सरकारी आंकड़ों में भले ही सब कुछ ठीक-ठाक हो, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है। गांव में सड़क, पानी, बिजली, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं सरकार की बजाय भगवान भरोसे ज्यादा है? गरीबी, अनपढ़ता, भुखमरी, बेरोजगारी और जानलेवा बीमारियों का गढ़ गांव बन रहे हैं। सबसे बुरी दशा हमारे अन्नदाता किसानों की है।
देश का पेट भरने वाला यह किसान स्वयं का पेट भरने के लिए जिंदगी भर संघर्ष करता रह जाता है और कभी-कभी इतना मजबूर हो जाता है कि उसके सामने आत्महत्या के अतिरिक्त और कोई रास्ता नहीं रह जाता है। एक सर्वे के अनुसार देश में धनी किसानों की अपेक्षा मझौलिया आर्थिक रूप से कमजोर किसानों की संख्या बहुत अधिक है, जो पहले साहूकार और अब बैंकों से कर्ज लेकर कृषि कार्य कर रहे हैं। जिसे समय पर चुकता नहीं कर पाने की स्थिति में वह आत्महत्या कर लेते हैं।
कर्ज़ के मर्ज से तंग आ चुके कुरुक्षेत्र के किसान अंग बेचने को तैयार है उदारीकरण तथा निजीकरण के इस दौर में कृषि लागत तो जैसे खाद, बीज, कीटनाशकों आदि के महंगे होते जाने से छोटे किसानों के लिए खेती करना दिनोंदिन महंगा होता जा रहा है। जाहिर है कि ऐसे में छोटे व सीमांत किसान अपनी खेत बेचने पर भी मजबूर हो रहे हैं।एक तरफ सरकार द्वारा किया जा रहा भूमि अधिग्रहण तथा दूसरी तरफ महंगी होती खेती ने किसानो को खेत में मजदूर बनने पर मजबूर किया है। भारत की जनगणना 2011 के रोजगार संबंधित आंकड़ों के अनुसार पिछले दो दशकों में कृषि तथा किसान की बदतर हो रही स्थिति को ही उजागर किया है। उदारीकरण एवं वैश्वीकरण के दौर में बढ़ती लागत खर्च, आयात निर्यात पर छूट सीधे विकसित देशों के कृषि उत्पादों से मुकाबला, महंगी एवं नकली कीटनाशकों की मार तथा उद्योगों, खाद्यान्नों एवं शहरीकरण के लिए किसानों से छीनी जा रही जमीनों ने कुल मिलाकर वही स्थिति पैदा की है कि देशभर में किसान खेती छोड़कर खेतों में ही मजदूर बन रहे हैं। किसी क्षेत्र में अकाल तो कहीं बाढ़ की समस्या के कारण सबसे पहला नुकसान किसान का ही होता है।
गांव में सड़क, नालियों, पीने का शुद्ध जल और शौचालय का स्थिति संतोषजनक नहीं है। सरकार ने जो शौचालय बनवाया भी है वह ज्यादातर किसी काम का नहीं क्योंकि उसमें भी तमाम घोटाले हुए हैं जो जगजाहिर है और कहीं बने भी हुए हैं तो उसमें गांव के लोग अपना सामान और गोईठा रखते हैं। देश में लगभग आज ज्यादातर गांव में शौचालय की व्यवस्था है। लेकिन वहीं दूसरी तरफ कुछ शेष में मुंह अंधेरे महिलाओं को सोच के लिए गांव से बाहर जाना पड़ता है या फिर शाम को अंधेरा होने का इंतजार करना पड़ता है सरकार को ऐसे गांव पर भी ध्यान देना चाहिए। अभी गांव में कई घरों में शौचालय की सुविधा नहीं है।
बात उन दिनों की है जब घर में टॉयलेट की सुविधा ना होने पर शादी के कुछ ही दिनों के भीतर अपना ससुराल छोड़ चुकी मध्यप्रदेश की अनीता बाई को सरकार ने ₹5 लाख के पुरस्कार से सम्मानित किया था।
उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले में रहने वाली प्रियंका ने टॉयलेट की व्यवस्था ना होने से नाराज होकर 3 दिन में ही अपनी ससुराल छोड़ दिया था। एक एनजीओ सुलभ इंटरनेशनल ने प्रियंका को ₹2 लाख इनाम देने का फैसला किया था, जिससे वह घर में टॉयलेट और बाथरूम बनवा सकें। अब यह इनाम खुशी की बात है या शर्म की आसानी से समझा जा सकता है।
गांव में स्वास्थ्य सेवाएं दयनीय स्थिति में है। कुपोषण, कालाजार, मलेरिया, पीलिया इत्यादि बीमारियों से प्रतिदिन गांव में हजारों लोग और समय कॉल कवलित हो जाते हैं। जबकि स्वास्थ्य को विकास का एक महत्वपूर्ण मानक माना जाता है स्वास्थ्य सेवा में सुधार के बिना हम प्रदेश या देश का विकास नहीं कर सकते हैं।
गांव बच्चों की शिक्षा के नाम पर खस्ताहाल और सुविधा हिन स्कूल है। गांव के बच्चों के लिए टेबल टेनिस, क्रिकेट, बैडमिंटन एवं गोल्फ जैसे खेल एक सपना ही कहा जाएगा। गांव में परंपरागत कुटीर उद्योग और कलाकारी खत्म होने की कगार पर है। वहीं पशुपालन, मुर्गी पालन, खेती आधारित उद्योग, हस्तकला, छोटे-मोटे, उद्योग भी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सामने बुरी तरह हांफ रहे हैं।
सरकार का ध्यान गांव में पीने के शुद्ध पानी और शौचालय की सुविधा उपलब्ध कराने के बजाय शराब के ठेके खुलने में ज्यादा है। जो आज इस कोरोना महामारी में आप देख सकते हैं। देश के गांव में दूध दही की जगह शराब की नदियां बह रही हैं कच्ची शराब धड़ल्ले से बिकती हैं और सरकारों को सब पता होता है, नहीं तो कहा जाता है कि पुलिस अपने पर आ जाए तो मंदिर से एक भी चप्पल नहीं गायब होगा। इसी के कारण आज गांव में नशे की बढ़ती प्रवृत्ति ने गांव में क्राइम ग्राफ को बढ़ाया है।
आजादी के 73 वर्षों के बाद भी यदि हमारी आधी से ज्यादा आबादी एक पहर भूखा पेट सोती है, बच्चों को जन्म देने वाली हर दूसरी मां एनेमिक (खून की कमी) हो और चौथी मां मौत के आगोश में समाती हो?
आइए यह समझने-बूझने की कोशिश करते हैं कि आज आजाद देश की स्थिति क्या है?
जहां कक्षा 5 तक आते-आते 73% बच्चे स्कूल छोड़ देते हो।
जहां बच्चे को जन्म देते देते अस्पताल की चौखट पर एक मां मौत के मुंह में समा जाती हो और अस्पताल व चिकित्सक मूकदर्शक बन तमाशा देखते रहते हो।
जहां विश्व स्तर के जब शैक्षिक सर्वे होते हो तो इस देश की रैंकिंग 74 वी आती हो।
जहां की शिक्षा व्यवस्था से आजिज आकर छात्र खुदकुशी करते हैं जहां विश्व के सर्वाधिक लोग सड़क हादसे में मारे जाते हो?
जहां बेरोजगारी की स्थिति इतनी भयानक हो कि युवा या तो आत्महत्या कर लेते हैं या अपराध की दुनिया में प्रवेश कर जाए जहां वर्षों से सरकारी रिक्त स्थानों की भर्ती पर प्रतिबंध लगाकर रखा जाता है और वोट की राजनीति के कारण जातिगत आधार पर आरक्षण नीति को 73 सालों से लगातार जारी रखे जा रहे हो।
जहां भ्रष्टाचार अपने चरम पर हो और देश के कर्णधार ही उस में संलिप्त हो।
जहां देश की अर्थव्यवस्था के समानांतर व उससे बड़ी तानाशाह की अर्थव्यवस्था चलती हो।
जहां 33 परसेंट आबादी भूख से मरती हो और 67 परसेंट आबादी खाने की बर्बादी करती हो।
जिस देश में आज भी जहां ₹20 लीटर पीने का पानी बिकता हो।
जिस मुल्क में आज भी कई करो बच्चों ने स्कूल का मुंह ना देखा हो।
जहां राजनीति सेवा नहीं धंधा हो, जहां लोकतंत्र नहीं परिवारवाद हो जहां हर तीसरा राजनेता अपराधी हो, जहां राजनीतिक दल एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह चलते हो, जहां पत्रकारों की योग्यता नहीं चाटुकारिता उनकी काबिलियत का पैमाना हो, जहां की सोच पहले यह हो कि हम तमिल मलयाली मराठी बिहारी तेलुगु पंजाबी पहाड़ी तथा बंगाली हो और भारतीय बाद में वहां क्या उम्मीद किया जा सकता है।
जहां जातिवाद, क्षेत्रवाद, भाई भतीजावाद आदि कारक राजनीतिक सोच एवं जीवन का मूल आधार हो, जहां संत सत्ता भोग के लिए नेता बन जाए वहां किस आजादी कि आप बात करते हैं।
क्या देश का संविधान हम आज तक बना पाए क्या IPC, CR, PC, CPC, POLICE ACT, Law of Contract Act इत्यादि जैसा कोई कानून?
हम अपने देश काल और परिस्थिति के हिसाब से बना पाए? क्या जो कर्ज़ इस देश पर आजादी के समय था वह हम उतारना तो दूर क्या कम कर पाए?
क्या हम अपनी आवाम को न्याय दे पाए?
क्यों नहीं न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्तियां की जाती हैं। यदि 24 घंटे की कूट लगाई जाए तो आने वाले 300 वर्षों तक मुकदमों का निपटारा नहीं हो सकता उस मुल्क में न्याय की कल्पना कौन कर सकता है? जहां न्यायाधीश की कोर्ट में बैठा पेशकार वह मुंशी खुलेआम तारीख देने का तथा नकल देने का पैसा लेता हो? जहां जनता चोर डकैतों से अधिक पुलिस से डरता हो? जहां लोक सेवक जनता के माई बाप कहलाते हो? 20 करोड़ से अधिक लोग बेरोजगार हैं 5 करोड़ लोग इसमें हर वर्ष जुड़ते जाएंगे। आज देशभर का सर्वाधिक गरीब भारत में रहता है क्या यही आजादी है?
जिस देश में 70% से अधिक लोग गरीबी रेखा से नीचे रहते हो, देश में कई करोड़ लोगों के पास खाने का अनाज ना हो और जहां कई लाख टन अनाज खुले आसमान के नीचे पड़ता है और गरीब भूख से मरता हो? जहां आज भी हर चौथा बच्चा स्कूल नहीं पहुंच पाता हो, जहां सिर्फ 35% ही 10वीं तक पढ़ाई कर पाते हो, आज भी 40% से अधिक आबादी निरक्षर है। जहां पुलिस सुरक्षा का नहीं भय का प्रतीक हो, जहां हर 30 मिनट में एक बलात्कार होता है। जहां आए दिन सांप्रदायिक दंगे नेताओं के द्वारा करवाए जाते हो। जहां आज भी पेट में ही बच्चियों को मार दिया जाता है।
यह देश में आज भी राजनेता विकास के नाम पर हर साल करोड़ो रुपए डकार जाते हो, और कोरोना महामारी में दान दिए हुए पैसे भी वापस ले लेते हो।
जिस देश में बलात्कारी बाबाओं को बचाने मैं भी सरकार पूरी मदद करती हो, जिस देश में आजादी के 73 वर्ष बाद भी जनता जनार्दन को रोटी कपड़ा और मकान नसीब नहीं है वहीं दूसरी ओर सत्ता में शामिल लोग जिस तरह से मनमानापन वह तानाशाही कर रहे हैं उससे तो यही लग रहा है कि यह कैसी आजादी है?
अभी लिखना बंद करता हूं आगे इसी तरह क़लम चलती रहेगी!
No comments:
Post a Comment