कांग्रेस अंदरूनी घमासान से आजाद नहीं हो पा रही है। पार्टी में सबसे ज्यादा संख्या उन लोगों की है, जो हर हाल में सोनिया गांधी या राहुल का ही नेतृत्व बनाए रखना चाहते हैं। गांधी परिवार के संरक्षण में पार्टी चलाना शायद कांग्रेस की मजबूरी है। लेकिन ताजा घमासान कांग्रेस के संकट को और गहरा कर सकता है।
निरंजन परिहार
न तो वे कोई इतने बड़े नेता है, न उनकी कोई राजनीतिक हैसियत है और न ही वे भविष्यवक्ता हैं। लेकिन फिर भी संजय झा ने जब यह कहा कि यह कांग्रेस के अंत की शुरुआत है, तो कई बड़े कांग्रेसी भी हत्तप्रभ होकर इसमें सच की संभावना तलाशने लगे। कायदे से कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में सोनिया गांधी जब फिर कांग्रेस की अध्यक्ष बन गई थी, तो बवाल थम जाना चाहिए था। लेकिन घमासान रुकने का नाम ही नहीं ले रहा। जिस चिट्ठी पर जमकर विवाद हुआ, उसे लिखने वाले नेताओं ने कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक खत्म होने के बाद अपनी बैठक की। आगे क्या करना है, कैसे करना है, और किसको किस हद तक जाना है, इस बारे में आगे की रणनीति तय हुई। इस बैठक के बाद कपिल सिब्बल ने जो ट्वीट किया, उससे अटकलों, आशंकाओं और कयासों का जो दौर शुरू हुआ है, वह कांग्रेस के भविष्य की एक नई कहानी गढ़ रहा है।
कांग्रेस पार्टी के नेता अब खुलकर बोलने लगे हैं। कार्यसमिति की बैठक के दूसरे दिन कांग्रेस के दिग्गज नेता कपिल सिब्बल ने अपने ट्वीटर पर लिखा - यह किसी पद की बात नहीं है। यह मेरे देश की बात है, जो सबसे ज्यादा जरूरी है। तो, पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के छोटे बेटे और कांग्रेस नेता बड़े नेता अनिल शास्त्री ने कहा कि कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में कुछ कमी है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि पार्टी के नेताओं के बीच बैठकें नहीं होती और वरिष्ठ नेताओं से प्रदेशों के नेताओं का मिलना आसान नहीं है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पीसी चाको ने भी कहा है कि मुझे लगता है कि नेतृत्व में कुछ चीजें दुरुस्त होनी चाहिए। उन्होंने असंतोष जताते हुए कहा कि दिल्ली में काफी चीजें कामचलाऊ तरीके से चल रही हैं। अपनी उपेक्षा से बेहद आहत वरिष्ठ नेता चाको ने लगभग नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि मैं सीडब्लूसी का स्थायी सदस्य हूं, लेकिन मुझे आमंत्रित भी नहीं किया गया । शायद, मैं बैठक में होता तो, कोई समाधान दे देता।
कांग्रेस के नेतृत्व की कमजोरी को कुछ ऐसे समझिए। चिट्ठी लिखने के मामले कार्यसमिति की बैठक में राहुल गांधी की नाराजगी के बाद गुलाम नबी आजाद के घर पर कांग्रेस के नेताओं की जो बैठक हुई, इसमें क्या हुआ, यह दो दिन बाद भी किसी को कुछ नहीं पता। लेकिन कार्यसमिति की बैठक में जो चल रहा था, उसकी पल पल की खबर पूरे देश और दुनिया में पैल रही थी। यह कांग्रेस की अंदरूनी कमजोरी का सार्वजनिक सबूत नहीं तो और क्या है। सिब्बल कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य नहीं है। फिर भी अंदर क्या चल रहा था, उन्हें खबर थी। सो, सोमवार की कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक को दौरान ही उन्होंने राहुल गांधी के खिलाफ बागी तेवर दिखाते हुए बीजेपी से मिलीभगत की बात को खारिज करते हुए ट्वीट किया। उन्होंने तो अपने ट्विटर बायोडेटा से कांग्रेस भी हटा लिया।
जाने माने राजनीतिक विश्लेषक अभिमन्यु शितोले मानते हैं कि कांग्रेस नेतृत्व यानी आलाकमान अर्थात गांधी परिवार के तीनों सदस्यों का अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं के प्रति अगर यही रुख रहा, तो आनेवाले समय में कांग्रेस की परेशानियां बढ़ती ही जाएगी। शितोले कहते हैं कि कांग्रेस में मजबूत और उर्जावान नेतृत्व की कमी हैं, यह सच है। खेमेबाजी और क्षमता की बजाय चाटुकारिता को मिल रहे प्रश्रय से जूझ रही कांग्रेस की हालत कुछ ऐसी हो गई है कि एक दीवार को संभालने की कोशिश होती है तो दूसरी भरभराने लगती है। शितोले मानते हैं कि कांग्रेस में तय नहीं हो पा रहा है कि परिवार बचाया जाए या पार्टी। या यूं कहा जाए कि अब तक कांग्रेस के नेता यही नहीं समझ पा रहे हैं कि परिवार और पार्टी दोनों अलग अलग हैं, और कांग्रेस के नेता व कार्यकर्ता पार्टी के लिए हैं, परिवार के लिए नहीं?
कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व की अंदरूनी राजनीति की गहन जानकारी रखनेवाले राजनीतिक विश्लेषक संदीप सोनवलकर कहते हैं कि ताजा संकट को अगर, कांग्रेस ने शीघ्र नहीं सम्हाला, तो आनेवाले वक्त में कुछ ऐसा होगा कि आज तो सिर्फ नेता ही सवाल उठा रहे हैं, लेकिन मामला आगे बढ़ा तो कल विद्रोह की स्थिति भी पैदा हो सकती है। सोनवलकर कहते हैं कि राज्यों के नेताओं का हाल तो और भी खराब है। कांग्रेस आलाकमान कहलानेवाले तीनों नेताओं से राज्यों के नेताओं का मिलना ही संभव नहीं हो पाता। सोशल मीडिया में दिए गए सिब्बल के सार्वजनिक बयान पर कई तरह की अटकलबाजियों का दौर शुरू होने की बात कहते हुए सोनवलकर कहते हैं कि सिब्बल के इस ट्वीट में बगावत के तेवर साफ है। कांग्रेस नेतृत्व को इस बारे में गंभीरता से सोचना होगा।
बात जिन संजय झा से शुरू हुई थी उनके बारे में निश्चित रूप से आप नहीं जानते होंगे। तो, जान लीजिए कि वे कोई बहुत बड़ी तोप नहीं हैं। वे मुंबई के हैं, लेकिन मुंबई के कांग्रेसी भी उन्हें नहीं जानते। वे मीडिया में अपने व्यक्तिगत संपर्कों का उपयोग करके कांग्रेस नेतृत्व की नजरों में चढ़ने के लिए पार्टी की पूरी ताकत से पैरवी करते हुए टीवी पर बोलते थे। नजर में चढ़े तो बिना बहुत सोचे समझे नेतृत्व ने उन्हें सीधे प्रवक्ता बना दिया। फिर जब कांग्रेस के खिलाफ एक लेख लिखा, तो सोनिया गांधी ने पार्टी से निलंबित भी कर दिया। वहीं संजय झा कांग्रेस के अंत की शुरुआत होने की भविष्यवाणी कर रहे हैं। निष्ठावानों को नकारने, अपनों की उपेक्षा करने और अनजानों को ओहदे देने का इतना नुकसान तो होता ही है। कांग्रेस नेतृत्व को समय रहते अपने फैसलों पर भी चिंतन करना चाहिए। वरना, अंत की भविष्यवाणियां भी सच होते देर कहां लगती है !
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)
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