सरकार को इसे जल्द संभालना होगा
विगत जुलाई महीने तक दो करोड़ नौकरी पेशा लोग ही कोरोना ने बेरोजगार बना दिये हैं। इसका मतलब यही है कि आर्थिक मन्दी अब चौतरफा असर डाल रही है जिसे देखते हुए अर्थ व्यवस्था को पटरी पर डालने के पुख्ता इस पर मुस्तैद दिखानी होगी। देश के गरीब राज्यों की हालत बहुत खस्ता हो चुकी है क्योंकि कोरोना और लाकडाऊन ने इन राज्यों की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह गड़बड़ा दिया है और अब ये केन्द्र सरकार से गुहार लगा रही हैं कि उन्हें उनका जीएसटी का जायज हिस्सा जल्दी से जल्दी दिया जाए। दूसरी तरफ केन्द्र सरकार की राजस्व उगाही भी लगातार कम हो रही है जिससे आर्थिक स्थिति जटिल होती जा रही है।
केन्द्र को विभिन्न राज्यों का छह लाख करोड़ रुपए के लगभग हिस्सा अदा करना है जो मार्च के बाद से बनता है। यदि राज्यों को उनका हिस्सा नहीं मिलता है तो उनके पास अपने सरकारी कर्मचारियों को वेतन देने तक के पैसे भी नहीं रहेंगे। अतः इसका हल जल्दी ही निकालना पड़ेगा। इसके साथ ही केन्द्र सरकार को उन राज्यों को मुआवजा धनराशि का भुगतान भी करना है जिन्हें जीएसटी पद्धति लागू होने के बाद राजस्व हानि हुई है। मगर सवाल यह है कि केन्द्र यह भुगतान कहां से करेगा जब स्वयं उसका खजाना खाली हो रहा है और वित्तीय घाटा बढ़ने के आसार बन चुके हैं। इसका एक रास्ता तो यह है कि केन्द्र रिजर्व बैंक से और मुद्रा छापने को कहे और अपना घाटा पूरा करने के साथ सारी देनदारियां निपटाये। बेशक इससे वित्तीय घाटा और बढे़गा मगर अर्थव्यवस्था में धन की आपूर्ति बढ़ने से बाजार में खरीदारी का माहौल बनेगा जिससे उत्पादनगत गतिविधियों में तेजी आयेगी जिससे शुल्क उगाही में भी तेजी आयेगी और सुस्त अर्थव्यवस्था में चुस्ती का दौर शुरू होगा।
दूसरा उपाय यह है कि सरकार बैंक से कर्ज उठाये। राज्यों को लगता है पूरा जीएसटी ढांचा कोरोना के झटके से ही चरमराता नजर आ रहा है और राज्यों के पास सिवाय इसके कोई दूसरा विकल्प नहीं बचता है कि वे केन्द्र के दरवाजे पर याचना करती फिरें। जबकि जीएसटी से पहले राज्य सरकारें अपने वित्तीय साधन जुटाने के लिए खुद मुख्तार थीं और हर संकट काल का समाधान खोजने के लिए स्वतन्त्र थीं। जीएसटी ने उनके विकल्प बहुत सीमित कर दिये हैं। उनके पास केवल अल्कोहल व पेट्रोल ही दो ऐसे उत्पाद बचते हैं जिन पर वे अपने हिसाब से शुल्क लगा सकती हैं मगर इन उत्पादों पर भी गैर तार्किक ढंग से शुल्क लगाने का कोई औचित्य नहीं बनता है। विशेष रूप से पेट्रोल या डीजल पर मूल्य वृद्धि कर राज्य सरकारें लगाती हैं वह उच्चतम स्तर पर है और कोरोना काल में इस शुल्क में और वृद्धि की गई है। यह सीधे आम जनता को प्रभावित करता है और उसकी कमर तोड़ता है। केंद्र सरकार को कोरोना काल में गिरते आर्थिक पहलू पर प्राथमिकता के साथ जल्द से जल्द काम करना होगा | जल्द ही संसद का मानसून सत्र शुरू होगा और सरकार पर विरोधी को बोलने का पूरा मौका मिलेगा |
अशोक भाटिया
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