9.8.20

हमारा पिटना किसी त्योहार से कम नहीं

त्योहार का आना और हमारा पिटना किसी त्योहार से कम नहीं। त्योहार की गमक और पिटने की धमक से हमेशा सिटपिटाये रहते। पिटाई का जश्न हर त्योहार पर मनाया जाता। त्योहार के साथ मिठाई और पिटाई आती। बुआ आये या फूफा पिटाई दाल में नमक की तरह जरूरी है। कभी-कभी बिना त्योहार के पिटाई हो जाती। परीक्षा पहले के और परीक्षा बाद तो पिटाई बनती है। अचानक पिटाई का कारण समझ में तब आता जब मास्टर जी बैठक से बाहर निकल रहे होते।

खैर बेशरम का पौधा भी हमारे सामने शरम से नतमस्तक हो जाता। मास्टर जी  साहित्यकार की तरह भड़ास निकालते और चले जाते। मास्टर जी की साइकल में कल बबूल के कांटे घुसेड़कर इमली के पेड़ के नीचे जश्न मनाया था। बिचारा साइकल का पहिया धहसत में जमीन में समा गया। पंचर वाला पहचान गया। झम्मन का काम है। मास्टर जी शिकायत समारोह आयोजित करने घर आ धमके। पिटाई पर  निबंध लिखे जाने से पूर्व ही मां ने मोंगरी से भूमिका लिख दी। मास्टर जी के जाने के बाद पिताजी ने निबंध का उपसंहार कर दिया। मास्टर जी की कहानी को कल स्कूल में जाकर पढ़ना था। खैर, शिक्षा के गिरते स्तर की तरह शाम को तो पिटना ही था।

पिटना मेरे लिए राष्ट्रीय त्योहार था। यह त्योहार कभी भी मना लिया जाता। स्कूल में नेताजी या घर में चाचा जी आ जाएं। लाइन में नेताजी के सामने सब सीधे तो हम तिरछे खड़े हो जाते। तिरछा खड़ा आदमी और टेड़ा पेड़ नेताजी की पसंद है।

तिरछे पेड़ ही जंगल का राज जानते हैं। सीधे तो कटते जाते हैं। श्रेष्ठ भेदियें के रूप में पहचान कायम थी। यह मालूम था, जानकारी हमसे लेंगे। पहले आश्वासन ले लेते पिटाई का मंचन  नहीं होगा। लड़कियों के सामने मुर्गा नहीं बनाया जाएगा। सुकृत्य बखान के लिए पिताजी को स्कूल नहीं बुलाया जाएगा।

शिक्षा अधिकारी और नेताजी के बुलाने से पहले मास्टर जी को घुड़की दे आते। पहले हमें बुलायेंगे फिर तुम्हें बुलायेंगे। फिर ऐसी जगह फेंकेगे जहां बच्चों को पीटने तो क्या देखने को तरस जाओगे।

एक-दो माह तक पिटाई शो पर रोक लग जाती। नेताजी से मुलाकात को गरिमामय बताया जाता। तारीफ में पुल बनाये जाते।  ये पुल एक माह में गिर जाते। पुल गिरते ही पिटाई अभिनंदन शुरू हो जाता।

त्योहार कोई सा भी हो फर्क नहीं पड़ता। होली की पिटाई रक्षाबंधन तक याद रहती। जीवन के साथ भी और जीवन के बाद भी बीमा योजना की तरह। होली के पहले भी और होली के बाद भी, हमारी धुनाई तय थी।

होली से पहले पिताजी बरामदे में सबके सामने हिदायतों के पैकेज जारी करते। धमकियों की अग्रिम किस्त खाते में जमा कर दी जाती। डंडा पंचाग दिखाकर भविष्यवाणी की जाती। पिछले साल का काला चिटठा दिखाया जाता। हमारे स्वीस खाते में जमा रकम की जानकारी ली जाती। उसका उपयोग कहां किस उत्पात के लिए उपयोग करेंगे। नेताओं से स्वीस खातों की जानकारी कोई नहीं उगलवा पाया, पिताजी भी उसी तरह नाकाम रहते।

होली के पहले सभी जेबों पर बाउंसर बिठा देते। हमारी सेहत पर कौन असर पड़ना था। हम मिठाई एक किलो के स्थान पर नौ सौ ग्राम, चीनी 10 किलो की जगह 9 किलो और न जाने कहां-कहां से जेब में काला धन इकट्ठा हो जाता। त्योहारों के मौसम के बाद पिटाई का जश्न होली पर विशेष रूप से मनाया जाता। होली पर कोई पहचान नहीं पाता। दाड़ी वाला था या मूंछ वाला। पटेल का छोरा था या झम्मन।  

पिताजी को अटूट विश्वास था। घर में भले डाका डाल ले, लेकिन छोटी-मोटी चोरी कभी नहीं करेगा। पैकेट से एक-दो सिगरेट चुरा ले, लेकिन लेकिन दारू नहीं पियेगा। होली की पिटाई के बाद चार पांच महीने बाद पींठ फिर खुजाने लगती।

रक्षाबंधन से त्योहार शुरू हो चुके हैं। मिठाई और पिटाई दोनों का इंतजार जल्द समाप्त होने वाला था। मिठाई की खुशी में सिगरेट का पैकेट उड़ा दिया। त्योहार से पहले पश्चिमी विक्षोभ की तरह पिटाइ हो गयी। अब सिलसिला होली तक अनवरत चलेगा। होली के बाद मिठाई, पिटाई और स्कूल की छुट्टी हे जाती है।

सुनील जैन राही
एम-9810 960 285

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