कोरोना ने ज़िन्दगी को एक नया अनुभव दिया है, अच्छा भी और बुरा भी। जो जहां जिस कार्यक्षेत्र में है, उसे जीवन के कई सबक मिल रहे है। कोरोना काल से न केवल मानव जाति प्रभावित हुई है, बल्कि जीव जंतु पर्यावरण सब पर कोरोना काल का असर दिखाई देता है। ये सच है कि कुछ लोग इस कठिन घड़ी में निखर गए और कुछ लोग टूट कर बिखर गए। लेकिन इन सब में ज़िन्दगी ने एक सबक जरूर सीखा दिया परिस्थिति चाहे जैसी हो। फ़िर भी जीवन कभी थमता नहीं है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण अगर कुछ है तो वह मीडिया ही है। आज मीडिया ने ही यह साबित कर दिया कि परिस्थिति चाहे जैसी हो लेकिन मीडिया कभी रुकने वाला नहीं।
कल्पना करें कि दुनिया नष्ट होने वाली ही क्यों न हो लेकिन खबर देने के लिए मीडिया उन परिस्थितियों में भी मौजूद रहेगा! अब प्रश्न यह उठता है कि कौन है ये मीडिया? जो हर सूचना हर खबर से हमें रूबरू करता है और सूचनाओं के महासागर से जन मानस तक खबरें पहुँचाने का कार्य करता है। क्या ये वही मीडिया है, जो विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी परवाह न करके हमें जागरूक करता है। यहां मीडिया का मतलब उन तमाम टेलीविजन चैनलों , समाचार पत्रों, रेडियों या वेब पोर्टल से नहीं बल्कि उस इंसान से है, जो हर कठिन घड़ी में हम तक सूचना, सन्देश पहुँचाता है। किसी पत्रकार ने ठीक ही कहा है कि- "औरों के लिए लड़ता हूं, पर अपने लिए कहा बोल पाता हूं! हां मैं पत्रकार कहलाता हूं।" कोरोना काल में जब सभी लोग अपने घरों में डरे सहमे थे तब मीडिया ही था, जो हम तक खबरे पहुँचा रहा था। इस संकट की घड़ी में भी हर चुनौती के लिए तैयार रहा। कोरोना काल में जब लोग घरों में कैद थे उस संकट की घड़ी में मीडिया के माध्यम से ही हम तक सूचनाएं पहुँचाई जा रही थी।
देश में पत्रकारों के लिए कोई विशेष अधिकार नहीं दिए गए है। संविधान में भी प्रेस का कही कोई जिक्र नही किया गया है। अनुच्छेद-19; सभी व्यक्तियों को बोलने की, स्वतंत्र रूप से अपनी बात रखने की आजादी प्रदान करता है। यही अनुच्छेद पत्रकारों पर भी लागू होता है। वही हम अनुच्छेद-19(ख) की बात करे तो यहां कुछ बंदिशों का जिक्र जरूर किया गया है। जिनके दायरे में सभी पत्रकार आते है। यूं तो पत्रकारों के लिए हमेशा से ही विशेष अधिकारों और कानून की बात होती रही है, लेकिन अब तक इस पर कोई विशेष प्रावधान नही बन पाए है। इस आपदा काल में पत्रकारों ने जिस जिम्मेदारी से अपने कार्य का निर्वहन किया है, उसने पत्रकारों के प्रति नज़रिया बदल दिया है। यही वजह है कि इस कोरोना काल में देश के प्रधानमंत्री ने देश के नाम संबोधन में डॉक्टरों, पुलिसकर्मियों, अस्पताल कर्मचारियों की ही तरह पत्रकारों को भी जरूरी सेवाओं में शामिल किया। अब पत्रकारों की भी ये जिम्मेदारी बन गयी है, कि वे समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन पूरी ईमानदारी से करे।
आज जब देश वैश्विक महामारी से ही नही जूझ रहा है, अपितु देश में सांस्कृतिक, राजनैतिक, प्राकृतिक और भौगोलिक सभी मोर्चो पर अशांति व्याप्त है। देश मे कोरोना महामारी अपने विकराल और भयावह रूप में है , तो वही राष्ट्र की सीमा पर चीन, पाकिस्तान और नेपाल की तरफ से अशांति फैलाई गई है। ऐसे में पत्रकारों को न केवल इस वैश्विक महामारी का ही अपितु देश के बाहरी दुश्मनों से भी देश को अवगत कराना है। साथ ही इस संकट में पत्रकारों को सभी मोर्चो के लिए तैयार रहना है। आज जिन हालातों से देश रूबरू हो रहा है वैसी परिस्थितियां शायद पहले कभी नहीं थी, आज लोग डरे हुए है सभी चाहते है कि उन तक सही जानकारी पहुँचे। पत्रकार और पत्रकारिता का भी यही धर्म है कि वह हर परिस्थिति में अपनी जिम्मेदारियों को समझे। आज पत्रकारों को अपने गौरवशाली इतिहास के मायनो को पुनः समझना होगा। देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी का नैतिकता से निर्वहन करना होगा।
जिस प्रकार के युद्ध आज वास्तविक परिदृश्य में लड़े जा रहे है, उन हालातों को आज हर पत्रकार को समझने की जरूरत है। आज युद्ध हथियारों से कही अधिक सूचना और संचार क्रांति के दम पर लड़े जा रहे है। ऐसे में पत्रकारों का भी यह कर्तव्य बनता है कि वह किन सूचनाओं को उजागर करे। किस प्रकार से खबरे प्रसारित करे जिससे देश की सुरक्षा बनी रहे। प्रेस फ्रीडम इंडेक्स-2020 की बात करे तो हमारे देश में आज भी प्रेस की आज़ादी पर बंदिशें लगी है। रिपोटर्स विदाउट बाडर्स के वार्षिक विश्लेषण में वैश्विक प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में 180 देशों में भारत 142वें स्थान पर है। रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि 2019 में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर कश्मीर के इतिहास का सबसे लंबा कर्फ्यू भी लगाया गया था। रिपोर्ट में कहा गया कि यह प्रेस की आजादी का उल्लंघन है। पत्रकारों को स्वयं यह समझना होगा कि राष्ट्र हित मे लगाई गई पाबंदी को किस तरह से देखना है। आज देश में राष्ट्रवाद का शोर भी बहुत जोरो से सुनाई दे रहा है। राष्ट्रप्रेम की भावना और सच्चे राष्ट्रवाद में ज़मीन आसमान का अंतर है। एक पत्रकार को यह तय करना होगा कि वह खबरों को किस तरह से प्रस्तुत करें। आज भले ही पत्रकारिता पर बाज़ारवाद हावी हो गया हो। लेकिन आज भी देश की आर्थिक राजनीतिक परिदृश्य में पत्रकारिता अपनी निर्णायक भूमिका निभा रही है। देश की दिशा और दशा को आज भी मीडिया के द्वारा ही परिवर्तित किया जा सकता है। अतः एक पत्रकार का यह दायित्व बनता है कि वह अपना व्यक्तिगत लाभ न देखकर देशहित में पत्रकारिता करे। जिससे लोगो का विश्वास पत्रकारिता और पत्रकार दोनों पर बना रहें।
सोनम लववंशी
लेखिका
7000854500
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