कोविड-19 में टीवी स्टोरी को लेकर यूनिसेफ व पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला द्वारा मीडिया कर्मियों के साथ छात्रों का वेबिनार
शुरुआती दौर से - कोरोना को पॉलिटिक्ली देखने की बजाय मेडिक्ली देखने की आवश्यकता थी -ब्रजेश राजपूत
स्वतंत्र शुक्ला
इंदौर। "हाँथ से हाँथ भले न मिले, दिल से दिल मिलाए रखिए" शेर शायरी अल्फाज़ो की दुनिया का एक ऐसा नाम जिसे कोरोना ने हमेशा हमेशा के लिए हम सब से जुदा कर दिया राहत इंदौरी साहब के साथ साथ ऐसी कई जानें गई हैं जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता। ऐसे ही कोरोना लॉक डाउन के दौरान कवरेज की गई कई कहानियों को जानने के लिए यूनिसेफ मध्यप्रदेश द्वारा पत्रकारिता एवं जन संचार अध्ययन शाला देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इंदौर के छात्रों के साथ कोविड-19 में टी.वी स्टोरी को लेकर वेबिनार आयोजित किया गया।
इसमें यूनिसेफ मध्यप्रदेश संचार प्रमुख डॉ. अनिल गुलाटी, डॉ. वंदना भाटिया, मध्यप्रदेश एबीपी न्यूज़ प्रमुख ब्रजेश राजपूत, व्यूरो चीफ न्यूज़ 18 मनोज शर्मा, डिप्टी एडिटर एनडीटीवी अनुराग द्वारी एवं पत्रकारिता विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. सोनाली नरगुंदे के साथ डिपार्टमेंट में छात्र उपस्थित रहे।
वेबिनार के दौरान स्लाइड शो के माध्यम से डॉ. वंदना भाटिया ने बताया की भारत मे कोरोना मरीज दिनोदिन बढ़ते जा रहे हैं। मध्यप्रदेश में कोविड 19 का भंडार हो गया औऱ इस दौर में जैसे जैसे मरीजो की संख्या बढ़ती जा रही है उसमे सरकार औऱ मीडिया के लिए चुनौती नजर आ रही है। सुरक्षा कर्मी, डॉक्टर, छोटे बच्चे, गर्भवती महिलाओं के लिए खतरा अभी भी बना हुआ है। अनलॉक 4 ने बच्चो को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म दिया है यही सबसे बड़ी चुनौती है।
कोरेन्टीन हुए तो लिख दिए इतिहास
कोरोना के शुरुआती दौर को अगर किसी ने अच्छे से देखा है तो वो सिर्फ़ मीडिया कर्मी ही थे जो अपने फ़र्ज़ को दिन रात निभा रहे थे इसी अनुभव को व्यक्त करते हुए वेबिनार में ब्रजेश राजपूत ने बताया कि महामारी को शुरुआत से पॉलिटिकल रूप से देखा गया जबकी मेडिकल के तर्ज़ में देखने की जरूरत थी। अब उपचुनाव की भीड़ इकट्ठा हो रही है जिससे बचने का प्रयास जनता खुद करे कई ऐसे जिले थे जहाँ शुरुआती दौर में कोविड के मरीजो की संख्या बिल्कुल भी नही थी ऐसा भी नही था कि कोरोना से हमे और हमारे घर वालों को डर नही लगा लेकिन घर वालो को समझाते और खुद से भी जादा घर के सदस्यों को सुरक्षित रखने का प्रयास करते थे। ऐसा बिल्कुल नहीं है कि स्टूडियो में जा कर जो काम करता वही मीडिया कर्मी है ग्राउंड में कार्य करने वाले ऐसे कई छोटे बड़े रिपोर्टर थे जो सच को सामने लाने का प्रयास किए लेकिन जब इस महामारी के कुछ प्रभाव स्वयं पर दिखे तो कोरेन्टीन होना पड़ा और विचार यही आते जो रिपोर्टिंग के दौरान देखा था। 17 दिन के समय अवधि में घटित हुए पूरे घटनाक्रम को एक जगह समाहित कर दिया। क्योंकि पहली ऐसी महामारी उभर कर सामने आई जिसमें अदृश्य दुश्मन से लड़ाई थी।
पलायन की तस्वीरों ने झकझोर दिया - मनोज शर्मा
अक्सर यही कहा जाता है कि बुरा वक्त अच्छे वक्त का संकेत होता है भले ही देरी से क्यों ना आए देश मे छुआछूत की प्रथा बहुत पुरानी है लेकिन कोरोना ने सब को छुआछूत के प्रभाव को बताया है। लेकिन सबसे बड़ी समस्या बच्चों को है 1 से 10 साल तक बच्चों में साइकोलॉजिकल प्रभाव बढ़ रहा है दादा दादी के अलावा हम उम्र के बच्चों से दूरी के चलते मानसिक प्रभाव पड़ा है। कोरोना ने भगवान की तरह सबसे महत्वपूर्ण संदेश दिया है की हमें बाहर मत खोजो हम आपके अंदर है।
डॉक्टर सचिन नायक अपने आप मे एक किरदार बन कर सामने आए- अनुराग द्वारी
मध्य प्रदेश के अंदर सियासी उथल-पुथल के बीच किसी ने कोरोना के भयावहता का अंदाजा नहीं लगा पाया बीमारी ऐसी बोरिंग थी जो 14 दिन के सजा की तरह
कोरोना में रिपोर्टिंग के दौरान कई ऐसी कहानियां मिली जो दिल को छू जाती है। सबसे ज्यादा दिक्कत का सामना उन्हें करना पड़ा जिसे कोरोना के साथ साथ अपनी परिस्थितियों से भी लड़ना था। ऐसे कई लोग थे जो दिन रात लगातार चलते गए और घर वालों से राशन पानी के लिए झूठ बोलते गए। हम लोग अपनी गाड़ी में दूध बिस्किट लिए रहते जिससे छोटे बच्चों को खिलाते पिलाते इसी तरह की अनेकों कहानी वेबिनार में उभर कर सामने आई जो दिल को झकझोरने के लिए मजबूर कर दी।
डॉ अनिल गुलाटी एवं विभागध्यक्ष डॉ. सोनाली नरगुंदे द्वारा आए हुए अतिथियों का आभार व्यक्त करते हुए कहा गया कि यह सभी कहनी इतिहास है जिसे हम लोगों ने अपनी आंखों से देखा और महसूस किया है पत्रकारिता विभाग के छात्रों ने भी कई कैंपेन और खबर के माध्यम से जागरूकता अभियान चलाया है आगे हम प्रयास करेंगे कि जल्द ही डिपार्टमेंट में सेमिनार के माध्यम से छात्रों को कोविड में टीवी की कहानियों से बोध कराया जाए।
स्वतंत्र मीडिया
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