29.12.20

भारतीय डाक विभाग की गौरवशाली परम्परा पर मंडराता संकट


नरेंद्र तिवारी
सेंधवा, मप्र

यह सुनकर बेहद अफसोस हुआ की उत्तरप्रदेश में कानपुर डाक विभाग द्वारा माफिया सरगना छोटा राजन ओर बागपत जेल में मारे गए शार्प शूटर अपराधी मुन्ना बजरंगी के फोटो वाले डाक टिकिट जारी कर दिए।यह बड़ी भूल कैसे हुई, क्यो हुई? यह जांच का विषय है।कानपुर डाक विभाग की इस घटना ने भारतीय डाक विभाग की गौरवशाली परंपरा पर प्रश्न चिन्ह अंकित करते हुए यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि समय के साथ आर्थिक दिक्कतों से विश्व की सबसे बड़ी डाक व्यवस्था भी जूझ रही है।भारतीय डाक प्रणाली का अपना गौरवशाली ओर समृद्ध इतिहास है। इतिहास डाक टिकटों का भी है जिसे आम भारतीय जनमानस श्रद्धा और सम्मान की दृष्टि से देखता है।इसे संग्रहित कर रखता है किंतु आय बढ़ाने की धुन में भारत सरकार द्वारा माई स्टाम्प योजना लागू की जिसमे निर्धारित राशि जमाकर कोई भी व्यक्ति या कम्पनी अपनी पसन्द के चित्र के साथ डाक टिकिट जारी करवा सकता है।


दरअसल आम भारतीयों के मन में डाक टिकिटों को लेकर अलग प्रकार का सम्मान व्याप्त है।वह डाक टिकिटों को राष्ट्रीय गौरव के प्रतीकों के रूप में न सिर्फ मानता है,इसका आदर भी करता है।भारतीय सम्मान के इन प्रतीकों पर सरगनाओं के चित्रों का जारी हो जाना महज भूल ही नही है।डाक विभाग की गिरती माली हालत को सुधारने के लिए लागू की गई माई स्टाम्प योजना पर भी प्रश्न चिन्ह है।जिन प्रतीकों ओर केंद्रों को आम जनमानस आस्था और सम्मान की दृष्टि से देखता हो उसमे धन उगाही के लिए ऐसी स्किम को शुरू करना और उसमें भारी उपेक्षा करना उचित नही कहा जा सकता है।

दरअसल भारतीय डाक सेवा का इतिहास 200 वर्षो से अधिक पुराना है।आजादी के पूर्व अंग्रेजो ने देश के अलग-अलग हिस्सो में चल रही डाक व्यवस्था को एक सूत्र में पिरोने की जो पहल की थी उसने भारतीय डाक व्यवस्था को एक नया स्वरूप प्रदान किया था।अंग्रेजो ने डाक व्यवस्था का उपयोग अपनी आर्थिक ओर सामरिक गतिविधियों को चलाने के उद्देश्य से किया था।आजादी के बाद भारतीय डाक प्रणाली आम आदमी की जरूरतों का हिस्सा बन गयी,एक समय था जब डाक विभाग ही नागरिको के संदेशो को पहुचाने वाला एक मात्र सरकारी माध्यम था।

सरकारी सूचनाओ के साथ सुख-दुख के सन्देश,वैवाहिक पत्रिका,यहां तक कि अखबार भी डाक से ही शहरी श्रेत्र ओर दूरस्थ ग्रामीण अंचलों तक पोस्टमेनो के माध्यम से पहुचते थै।नियोजित विकास की प्रक्रिया ने भारतीय डाक प्रणाली को दुनियाँ की सबसे बड़ी ओर बेहतरीन डाक प्रणाली बना दिया था।डाकिया ओर डाकघर सम्मान के केंद्र माने जाते थै।ग्रामीण अंचलों में तो अब भी यह सम्मान कायम है।तकनीकी के बदलने के साथ मोबाइल मेसेज़,वाट्सएप सन्देश,वीडियो कॉलिंग सन्देश पहुचाने का जरिया बन गए।बड़ी संख्या में निजी कोरियर सेंटर खुल जाने से भी भारतीय डाक व्यवस्था की आर्थिक स्थित खराब होने लगी।

माई स्टाम्प योजना भी खराब आर्थिक स्थिति को सुधारने का प्रयास भर था,किन्तु जिस डाक टिकिट को सम्पूर्ण भारतीय जन मानस आस्था की दृष्टि से देखता हो राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में सम्मान करता हो उस पर माफियाओ के चित्र छपने लगे तो यह धन उगाही के लिए सरकार का बहुत निम्नस्तरीय प्रयास भर माना जा सकता है।आजाद भारत मे प्रथम डाक टिकिट 21 नवम्बर 1947 को जारी हुआ था। जिसपर भारतीय राष्ट्रीय ध्वज की तस्वीर अंकित थी, एवं जय हिंद के साथ इंडिया लिखा हुआ था।उक्त डाक टिकिट का उपयोग डाक भेजने के लिए किया जाता था।आजाद भारत मे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ऐसे पहले भारतीय थै,जिनपर डाक टिकिट जारी किया गया था। आज भी महात्मा गांधी की तस्वीर युक्त डाक टिकिट प्रचलन में है।

यही नही भारतीय क्रिकेट इतिहास में अपना अमूल्य योगदान देने वाली सदी के महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर पर 14 नवम्बर 2013 को डाक टिकिट जारी किया था। वह पहले जीवित व्यक्ति बने जिनपर डाक टिकट जारी किया गया था।इन डाक टिकिटों की महत्ता ओर गौरव को माई स्टाम्प योजना के तहत राशि जमाकर डाक टिकिट जारी करवाने की योजना ने कमजोर किया है,जिसे किसी भी स्थिति में उचित नही कहा जा सकता है।दरअसल सूचना आदान-प्रदान के तकनीकी माध्यमो के प्रचलन ने डाक विभाग की वित्तीय स्थिति को बेहद कमजोर कर दिया है।भारत भर में पोस्ट ऑफिसों की स्थिति ऐसी है जहां न पर्याप्त कर्मचारी है,न पर्याप्त संसाधन इन पोस्ट ऑफिसों के अपने भवन तक नही है।पुराने समय मे भी,ओर अब भी,पोस्टमेन जैसा संदेश वाहक बेचारगी की स्थिति से नही उभर पाया अर्थाभाव के कारण संविदा डाककर्मियों की नियुक्तियाँ कर दी गयी।भारतीय डाक विभाग को अधिक आधुनिक कर इसके आर्थिक सुधार की कोशिश किये जाने की आवश्यकता है।यह भी फिक्र करना पड़ेगी की भारतीय डाक विभाग भी भारतीय दूरसंचार विभाग (बीएसएनएल) की दिशा में तो नही जा रहा है।

डाक विभाग और डाक टिकिटों की गौरवशाली परंपरा का इतना कमजोर हो जाना किसी भी लिहाज से उचित नही माना जा सकता है।केंद्र सरकार को डाक विभाग के आर्थिक पहलुओं पर विचार कर नई तकनीकों के साथ इसके लड़खड़ाते कदमो को मजबूती देने के ठोस प्रयास करने चाहिए।
 
नरेंद्र तिवारी 'एडवोकेट'
7.शंकरगली मोतीबाग सेंधवा
जिला बड़वानी मप्र
मोबा-9425089251

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