15.3.21

नेताजी बोस की 125वीं जयंती पर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को खुला पत्र

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को खुला पत्र

प्रतिष्ठा में:

श्री नरेंद्र मोदी जी,

प्रधानमन्त्री

भारत सरकार, नई दिल्ली

विषय: भारत सरकार द्वारा नेता जी सुभाष चन्द्र बोस का 125 वां जन्मदिन मनाने का निर्णय ...... उनके सन 1977 तक जीवित रहने और समय समय पर व्यक्त किये गये विचार, उदगार और अहम जानकारियां


मान्यवर,
आपकी सरकार द्वारा महान स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का 125वां जन्मदिन मनाने का निर्णय का भारतीय जनमानस स्वागत करता है. वह स्वतंत्रता संग्राम के अनुपम विरासत हैं. इस संदर्भ में आपके प्रेरणादाई वाक्य भी सहजतः स्मृति पटल पर उभर आते हैं, यथा 14 अक्टूबर 2015 को नेताजी के परिवारजनों से मिलते समय – “ जो देश अपने इतिहास को भूल जाता है वह इतिहास बनाने की क्षमता भी खो देता है”, 4 अक्टूबर 2017 – “मैं लकीर का फकीर नही हूँ”, 17 अक्टूबर 2017 को “जो देश अपनी विरासत को पीछे छोड़ देता है उसका पहचान खोना तय है”. नेताजी द्वारा स्थापित ‘आजाद हिन्द सरकार’ की 75वीं वर्षगाँठ के अवसर पर आप लाल किला मैदान से उन्हें भारत का प्रथम प्रधानमंत्री स्वीकारते हुए कहे थे – “उन्हें जो सम्मान मिलना चाहिए वह नही दिया गया”. आपकी भावनाओं के सम्मान में यह व्यक्त करने के लिए मैं अभिप्रेरित हो रहा हूँ कि स्वतन्त्र भारत की सरकारों के काल में उन्हें भुलाने की मानसिकता प्रबल होती पायी गयी

           ‘सारदानंद’ नाम से वह सन 1977 तक अपने पूर्व परिचय को छिपाते हुए अपनी मातृ भूमि पर जीवित रहे, उनके हस्तलेख में लिखे गये पत्रों की प्रतियाँ व उनके जीवित रहने के अन्य प्रमाण जस्टिस खोसला और जस्टिस मुखर्जी जांच आयोगों के संज्ञान में अमरावती, महाराष्ट्र निवासी डा सुरेश चन्द्र पाध्ये द्वारा लाया गया था. हस्तलेख विशेषज्ञों की रिपोर्ट है कि नेताजी बोस और सारदानंद जी द्वारा लिखे गये पत्रों के हस्तलेख एक ही व्यक्ति के हैं. जांच आयोगों द्वारा इसका संज्ञान नही लिया गया. अपने देहरादून प्रवास काल में वह डा. सुरेश चन्द्र पाध्ये के प्रश्न के उत्तर में अपने सुहास अतीत को स्वीकार करते हुए कहे थे “हाँ सुरेश,  परन्तु ध्यान रखो कि मै अब वह बचकाना और महत्वाकांक्षी सुभाष नहीं हूँ”. खोसला जांच आयोग के दौरान डॉ पाध्ये 07/01/1972 को ‘नागपुर टाइम्स’ में सारदानंद जी का पत्र प्रकाशित किये. इस पर वो कहे कि ‘यह शैतान मेरा पत्र नागपुर टाइम्स में छपवाया था’ आगे चल कर वह यह भी कहे “दुनिया के सामने यही एकमात्र प्रमाण है”.

            सायगान से उड़ने के बाद नेताजी उर्फ़ सारदानंद जी जापानी सेना की योजनान्तर्गत तिब्बत आये थे. करीब 4 वर्ष तिब्बत प्रवास  के बाद  वह उत्तर प्रदेश आये . 2 दिसम्बर 1951  को  वाराणसी  के   कैथी   ग्राम निवासी कृष्णकान्त पाण्डेय से उनकी अकस्मात भेंट हुयी और वह उनकी सेवा में उनके अंतिम दिनों 1977 तक समर्पित रहे.

             अपने गंगतोली, ओखीमठ प्रवास में वह डा पाध्ये से चर्चा के दौरान कहे “मैं गंगोत्री से यात्रा करते हुए टेहरी आया, एक पेड़ की छाया में आराम कर रहा था. एक व्यक्ति से समाचार पत्र लेकर पढने लगा. शरत चन्द्र बोस के दुखद निधन से मुझे धक्का लगा , मेरी दुनिया उजड़ गयी.”(नेता जी के बड़े भाई शरत चन्द्र बोस की मृत्यु 20/02/1950 को हुयी थी)

            सन 1954 दिसम्बर के अंत में वह अचानक उत्तर प्रदेश पहाडी क्षेत्र से किसी अज्ञात स्थान के लिए प्रस्थान कर दिए, उन दिनों उनकी सेवा में कैथीवासी राधाकांत पाण्डेय साथ थे. बाद में ज्ञात हुआ कि वह पैदल भारत भ्रमण की यात्रा पर निकले थे. अपनी इस यात्रा के बाद वह अप्रैल 1959 में शौलमारी, फालाकाटा, जिला कूच बिहार (पश्चिम बंगाल) आये और वहां पर ‘शौलमारी आश्रम’ की स्थापना की. आश्रम के सचिव चिकित्सक रमनी रंजन दास और विधिपरामर्श दाता निहारेंदु दत्त मजूमदार बनाये गये. (मजूमदार जी बंगाल सरकार के पूर्व विधि मंत्री थे और सक्रिय राजनीति में नेहरु और बोस के समीपवर्ती थे)

           सन 1963 में आश्रम की तरफ से ‘स्वामी रामतीर्थ शिक्षण संस्थान’ स्थापित करने की योजना के तहत देश के प्रायः सभी अंग्रेजी दैनिकों में विभिन्न पदों के लिए विज्ञापन दिए गये - (नेशनल हेरल्ड दिनांक 13/02/1963, द टाइम्स ऑफ़ इण्डिया दिनांक 15/02/1963) इन विज्ञापनों से पंडित नेहरु विचलित हो गये. सेन्ट्रल इंटेलिजेंस को शौलमारी आश्रम पर से सुभाष बोस की छाया हटाने की जिम्मेदारी सौंपी गयी. आश्रम और इसके संस्थापक सारदानंद जी की छवि ख़राब करने की दिशा में एक अभियान सा शुरू किया गया और उनकी निगरानी भी शुरू कर दी गयी. मई 1963 में अखिल भारत लाइसेंस रिवाल्वरधारी के. के. भंडारी आश्रम में पकड़ा गया और पुलिस के हवाले कर दिया गया. उसे मानसिक रोगी करार कर के पुलिस द्वारा रिहा कर दिया गया. उसके पत्र दिनांकित 03/05/1963 से उसके कांग्रेस नेताओं से सम्पर्क का होना जाहिर हुआ था. तत्कालीन लोक सभा के अध्यक्ष को संबोधित पत्र में भंडारी ने लिखा था कि ‘शौलमारी के बाबा नेता जी बोस हैं’.

            पंडित नेहरु को शौलमारी के संस्थापक चिंताग्रस्त कर दिए. चंडीगढ़ में पंडित नेहरु एक बार कहे थे कि वह छिप कर नही रह सकते और एक साधू की तरह काम नही कर सकते. निहारेंदु दत्त के माध्यम से सारदानंद जी निम्न पंक्तियाँ अंग्रेजी में भेजे थे जिसका हिंदी रूपान्तर बनता है “मानवता के खिलाफ किये गये अपराधबोध से ग्रसित व्यक्ति किसी भी चीज को सही परिप्रेक्ष्य में नही देख सकता है. वह हमेशा अपने किये हुए अपराध के उजागर होने के भय से सशंकित रहता है और उसके अपराध के बंडल पर गांठों की परतें बढती जाती हैं......” इस पर पंडित नेहरु अंग्रेजी में ही मजूमदार से कहे थे जिसका हिंदी रूपान्तर है “वास्तव में मैं नहीं समझ पा रहा हूँ कि यह आश्रम क्या है”. नेहरु की इस टिप्पणी पर सारदानंद जी मजूमदार से कहे थे “सुभाष बोस के साथ किये गये बर्ताव में नेहरु एक अपराधी की तरह अपराध किये हैं”.

             अंग्रेजी दैनिक “हितवाद” नागपुर दिनांक 21/05/1965  में शौलमारी आश्रम को गुप्तचरों का केंद्र ( हॉट बेड ऑफ़ स्पाइज) कहा गया. यह दैनिक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी गोपाल कृष्ण गोखले द्वारा स्थापित किया गया था. कांग्रेस पार्टी के राज्य सभा सदस्य ए. डी. मनी इसके सम्पादक थे. आश्रम द्वारा इनके खिलाफ मानहानि का मुकदमा कायम किया गया. इसके बाद स्वतन्त्र पार्टी के दो लोकसभा सदस्य एन. दांडेकर और डी. एन. पटोदिया द्वारा प्रकाशित बुकलेट “नक्सलबारी” में सारदानंद जी को ‘चीन का एजेंट’ कहा गया. आश्रम द्वारा कड़े शब्दों में इसकी भर्त्सना की गयी.

           भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने अपना पूर्ववत नेताजी-विरोधी व्यवहार कायम रखा. पार्टी के राज्यसभा सदस्य भूपेश गुप्त दिनांक 07/09/1965 को राज्यसभा में आरोप लगाया कि शौलमारी आश्रम में कालाधन जमा है, इसकी जांच कराई जाय.  उप वित्त मंत्री एल. एन. मिश्र तत्काल इनकम टैक्स की जांच बैठाने की घोषणा कर दिए. यह समाचार पी.टी.आई. द्वारा प्रसारित हुआ और देश के प्रायः सभी समाचार पत्रों में छपा. आश्रम द्वारा इसको चुनौती दी गयी और पत्र के द्वारा कहा गया कि अगर आरोप लगाने वालों में हिम्मत हो वे सदन के बाहर आकर अपने आरोपों को दोहरायें.

सुभाष बोस के सिवाय यह कौन कह सकता है :

गंगतोली, ओखीमठ प्रवास में डा. सुरेश चन्द्र पाध्ये से चर्चा के दौरान सारदानंद जी ने निम्न रहस्योद्घाटन किया:

 

1.      दिनांक 01/05/1966: चर्चा के दौरान डा पाध्ये एक शंका समाधान के लिए कहे “बाबा, लोग कहते हैं कि सुभाष के भ्रम में पुलिस ने उन्हें उनके बड़े भाई शरत चन्द्र बोस को एक बार गिरफ्तार कर दिया था” इस पर सारदानंद जी स्पष्ट किये “शरत बोस नहीं पूना में सुभाष के छोटे भाई शैलेश बोस को सुभाष समझ कर गिरफ्तार किया था बाद में उसको छोड़ दिया गया. सुभाष और शैलेश के चेहरे में बहुत समानता थी”

2.      दिनांक 28/12/1966. नेताजी की मृत्यु और जांच आयोग पर सारदानंद जी कहे  : “नेताजी की मृत्यु और जांच आयोगों के रहस्य को केवल मैं सुलझा सकता हूँ. नेहरु को मै एक सबक देना चाहता था परन्तु वह दुनिया से चले गये हैं”.

सुभाष बोस का घर का नाम रंगाकाका बाबू था, इसको स्पष्ट करते हुए सारदानंद जी कहे कि वह ताम्र वर्ण का था इसलिए इस नाम से पुकारा जाता था.

3.      दिनांक 30/12/1966. “ मैं सरकार के रास्ते में नहीं पड़ रहा हूँ . मेरे रास्ते में उसका आना आत्मघाती कदम होगा. सुरेश, अपना पासपोर्ट तैयार रखो तुन्हें 400 करोड़ रुपया प्राप्त करने के लिए फिलीपींस जाना पड़ सकता है. माटुंगा, बाम्बे से मेरा आदमी तुम्हारे साथ जाएगा (यह आदमी एस.ए. अय्यर थे, जो आजाद हिन्द सरकार में मंत्री थे)

क्रांतिकारी रास बिहारी बोस ने गवर्नर जनरल हार्डिंग पर बम फेकने का प्रयास किया था. वह दिल्ली से देहरादून आये और वहां से जापान चले गये. जापान में इडियन इंडिपेंडेस लीग गठित किये जिसका नेतृत्व कालान्तर में सुभाष चन्द्र बोस को सौंप दिए थे

4.      दिनांक 02/ 01/1967: “सुरेश, पूर्वी पाकिस्तान पर दो दिन में कब्जा किया जा सकता है. भारत में उसके विलय का निर्णय वहां की जनता पर छोड़ दिया जाय. उनका दिल जीतने का हमे प्रयास करना चाहिए. आजाद काश्मीर के लोग भारत में आने के लिए तैयार हैं, वे वहां पर बहुत सताए गये हैं. नेहरु दलाईलामा को एक सामान्य व्यक्ति समझते हुए व्यवहार किये हैं. जहां तक तिब्बत के व्यूहरचना की बात है दलाईलामा उसकी कुंजी है.”

5.      दिनांक 03/01/1967: सुरेश, सुभाष बोस जापान के प्रधान मंत्री जनरल तोजो से अनुबंध किये थे कि एक भी जापानी सैनिक बर्मा सीमा से आगे भारतीय क्षेत्र में प्रवेश नही करेंगे परन्तु तोजो के अतिरिक्त अन्य ने इस पर सहयोग नही दिया”.

6.      दिनांक 07/01/1967 : “सुरेश, नेहरु सुभाष की मृत्यु घोषित करने के लिए उतावले थे. तथ्यों में न जानने का वह एक भयंकर भूल किये.”

7.      दिनांक 25/01/1967: अपने प्रकृति का परिचय देते हुए कहे “सुरेश, बचपन से ही विपरीत परिस्थितियों में काम करना मेरी प्रकृति में रहा है, मै सदैव धारा के विपरीत तैरा हूँ. बढती हुयी उम्र और गिरते हुए स्वास्थ्य के कारण पूर्व का साहस और हिम्मत खो चुका हूँ. सुरेश, मेरी स्थिति उस विशेषग्य चिकित्सक की तरह है जिसका पुत्र मृत्युशैय्या पर पड़ा है, उसे इंजेक्शन देने में उसका हाथ कांप रहा है. तुम्हे जब मै वह प्रभावी नोट लिखवाया था उस समय मेरे दिमाग में कार्य आरम्भ करने की बात थी. परन्तु विगत तीन दिनों से मै बार बार सोच रहा हूँ . मुझे अँधेरा ही अँधेरा दिखाई दे रहा है.  मै शातिरों के बीच में पड़ा हुआ हूँ . मै जल्दीबाजी नही कर सकता. मै अपने बीस वर्षों के काम दांव पर लगाने के लिए तैयार नही हूँ.” (सारदानंद जी का उपरोक्त बयान तब आया जब डा पाध्ये यह राय व्यक्त किये कि वह काम करने के लिए अगर 50 % तैयार हैं तो शेष के लिए ईश्वर के नाम पर दांव लगाया जा सकता है )   

8.      दिनांक 05/02/1967: “ सुरेश, 1962 के चाइनीज आक्रमण में नेफा में हार के लिए जिम्मेदार पंडित नेहरु और मेनन थे. भारतीय सेना विश्व की सर्वोत्तम सेना है, उसे आधुनिक हथियारों से सुसज्जित नही किया गया.

निवेदन:

माननीय प्रधानमंत्री जी,

             डा सुरेश चन्द्र पाध्ये सारदानंद जी उर्फ़ नेताजी बोस के साथ हर तरह से सक्रिय रहे. उनके शोध कार्य से प्रमाणित हुआ है कि सारदानंद जी नेताजी बोस थे, श्रीमान जी के सज्ञान में यह लाने के पीछे कोई महत्वाकांक्षी इच्छा या अभिलाषा नही है, एक सत्य को उजागर करने का प्रयास है कि नेताजी 1977 तक जीवित रहे. इस सम्बन्ध में आपको स्मरण दिला रहा हूँ कि 19 फरवरी 2019 को आपके वाराणसी आगमन के दौरान पुस्तक “ नेताजी सुभाष चन्द्र बोस सायगान के आगे” ( Netaji Subhash Chandra Bose Beyond Saigon) की प्रति आपकी सेवा में मेरे द्वारा भेंट की गयी थी. इसका विषय वस्तु भी वही है.

सधन्यवाद

आपका शुभाकांक्षी

(श्यामाचरण पाण्डेय)

अवकाश प्राप्त डिप्टी सेन्ट्रल इंटेलिजेस आफिसर आई बी गृह मंत्रालय भारत सरकार निवासी ग्राम एवं पोस्ट कैथी वाराणसी मोबाइल नम्बर 9453914917

 
Shyamacharan Pandey
pandeyshyamacharan8@gmail.com

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