30.4.21

ऐसे कैसे चले गए रोहित सरदाना!

देश के जाने माने युवा पत्रकार और न्यूज एंकर रोहित सरदाना हमारे बीच से अचानक उठकर चल दिए। कोरोना उनको लील गया। वे एक राष्ट्रवादी पत्रकार के रूप में जाने जाते थे। लोग स्तब्ध हैं कि ऐसे भला संसार छोड़कर कोई जाता है क्या।

-निरंजन परिहार

रोहित सरदाना चले गए। नहीं जाना चाहिए था। बहुत जल्दी चले गए। जाना एक दिन सबको है। आपको, हमको, हर एक को। फिर भी, रोहित के जाने पर दुख इसलिए है, क्योंकि न तो यह उनके जाने की उम्र थी और न ही जाने का वक्त। कोई नहीं जाता इस तरह। खासकर वो तो कभी नहीं जाता, जिसको दुनिया ने इतना प्यार किया हो। पर, रोहित सरदाना फिर भी चले गए। वे 22 सितंबर 1979 को हरियाणा के कुरुक्षेत्र में जन्मे और 30 अप्रेल 2021 को कोरोना के क्रूर काल में समा गए। सिर्फ 42 साल, संसार से जाने की उम्र नहीं होती। फिर भी चले गए। दरअसल, विधि जब हमारी जिंदगी की किताब लिखती है, तो मौत का पन्ना भी साथ ही लिखकर भेजती है। विधि ने उनकी जिंदगी की किताब कम पन्नों की लिखी थी। रोहित ने इस रहस्य को जान लिया था। इसीलिए, बहुत समझदारी से उन्होंने आपसे, हमसे और करोड़ॆं लोगों की जिंदगी के पन्नों के आकार के मुकाबले अपनी जिंदगी के आकार को बहुत ज्यादा बड़ा कर लिया, और बहुत कम वक्त में ही उन्होंने बहुत कुछ जी लिया। 

भाजपा का रेजिडेंशियल टाउनशिप का वादा पुलिस आवासों के नाम बदलने तक ही रह गया सीमित

Satya Prakash Bharti
satyabhrt7@gmail.com


-गोरखपुर सहित ज़ोन के 11 जिलों में पुलिस आवासों के नाम बदलकर कर दिए शहीद रौशन सिंह के नाम
 
-बीजेपी के घोषणा पत्र में था पुलिसकर्मियों और उनके परिवार वालों के लिए शहीद रौशन सिंह के नाम पर रेजिडेंशियल टाउनशिप बनाने का दावा

-प्रदेश के बड़े शहरों में पुलिसकर्मियों और उनके परिवारों के लिए स्कूल सहित हाईटेक टाउनशिप बनाने का था वादा

-चार साल बाद भी नहीं मिल सकी पुलिसकर्मियों को रेजिडेंशियल टाउनशिप

 
लखनऊ। प्रदेश में बीजेपी सरकार अपने 32 पन्नो के घोषणा पत्र और उनमें किये गए वादों को लेकर सत्ता में आई। मूलभूत आवश्यकताओं को भूलकर अन्य मार्ग पर चल पड़ी। बीजेपी ने 2017 में चुनाव से पूर्व पुलिसकर्मियों और उनके परिवार वालों के लिए स्कूल सहित रेजिडेंशियल टाउनशिप बनाने के वादे किए थे। लेकिन यह वादा भी नाम बदलने तक ही सीमित रह गया। बीते 22 फरवरी को गोरखपुर सहित ज़ोन के 11 जिलों में मौजूद पुलिस आवासों के नाम बदलकर शहीद रौशन सिंह के नाम पर करने का अहम फैसले तक ही सीमित रह गया। वहीं चार साल बाद भी उत्तर प्रदेश पुलिस को टाऊनशिप न मिल सकी। वहीं जिस शहीद के नाम पर यह टाउनशिप बननी थी उसके गांव की हालत भी खस्ताहाल है।

5.4.21

‘Hun To Bolish’ by Ronak Patel launches as fully-fledged Primetime show today on ABP Asmita

 


Ahmedabad, 5th April 2021: With an aim to deliver the promise of innovative and fresh content, ABP Asmita has launched a new show ‘Hun To Bolish’ € a prime-time show which started off as a popular segment on the news channel eight months ago. Taking the cue from the segment’s rising popularity, India’s fastest-growing Gujarati news channel, ABP Asmita has now formally launched it as a full-fledged programme, hosted by renowned journalist Mr. Ronak Patel, Editorial Head, ABP Asmita.

3.4.21

पत्रकार प्रमोद श्रीवास्तव के परिजनों की मदद के लिए योगी को पत्र लिखा

माननीय मुख्यमंत्री जी

वरिष्ठ पत्रकार श्री प्रमोद श्रीवास्तव के कोरोना से हुये असामयिक निधन से समूचा पत्रकार जगत दुःखी है।

मैं उत्तर प्रदेश सरकार से मांग करता हूं कि स्वर्गीय प्रमोद श्रीवास्तव के परिवार को कोरोना से हुए निधन से मुख्यमंत्री के विवेकाधीन कोष से 50 लाख रुपये की आर्थिक सहायता तथा उनकी पत्नी को सरकारी नौकरी दी जाए।

2.4.21

राज्यव्यवस्था के साथ-साथ जेल में बंद जनता के चरित्र का भी सटीक चित्रण है जेल डायरी ''कैदखाने का आईना''

अधिवक्ता श्याम कुमार सिन्हा-

कानूनी अर्थ में जेल को सुधारगृह कहा जाता है और बंदियों को सामाजिक रूप से विकारग्रस्त माना जाता है। राज्यव्यवस्था (सरकार) हमेशा यह दावा करती है कि जेल प्रवास बंदियों को आपराधिक गलती दोहराने से रोकती है, समाज से अलग-थलग करके बंदियों को पश्चाताप का अवसर दिया जाता है, आदि-आदि।

Truth of Total TV : शोषण चरम पर

Total tv में शोषण चरम पर है...बिना गलती के ही लोगों को निकला जा रहा है...अब तक 3 कैमरा मेन और एक ऐंकर को निकाला गया है...जिनका क़सूर सिर्फ़ इतना था की उन्होंने दो महीने से सैलरी नहीं आने का कारण पूछ लिया...यहाँ के इनपुट और आउटपुट head मोनी बाबा हैं...जो चापलूसी के अलावा कुछ कर नहीं सकते...सही मायने में ये वो दीमक है जो total tv को खा रहे हैं...जो टोटल tv TRP में कभी आगे था...जिसकी पहचान थी...जिसके employees बाराखंबा ऑफ़िस की सीड़ियों पर बैठकर script लिखा करते थे उनका जज़्बा ये दो मोनी दीमक खा गए...

नोएडा आबकारी विभाग उड़ा रहा है कानून की धज्जियां – लोहे के खोखों में चल रहे हैं दारु के अवैध ठेके


आजकल नोएडा में अनेक दारु के ठेके लोहे के खोखों में चल रहे हैं.

RTI एक्टिविस्ट दिवाकर सिंह ने अवैध ठेके के मालिकों और उत्तर प्रदेश आबकारी विभाग के संभावित गठजोड़ की जांच करके कई तथ्य पता लगाये हैं.

जो एक वक्त में योद्धा थे, वे आज बेचारे बन गए हैं

स्नेह मधुर-
 
अमृत प्रभात और Northern India Patrika ( NIP) का एक ज़माना था। लेकिन मालिकों की चालबाज़ियों और धोखाधड़ी का शिकार हो गए सैकड़ों कर्मचारी और पत्रकार। वेतन नहीं मिला, वेतन कम हो गया। कर्मचारियों के वेतन से भविष्य निधि यानी Provident Fund की कटौती तो कर ली जाती थी लेकिन कंपनी अपना अंशदान देने की जगह कर्मचारियों के वेतन से काटी गई रकम को भी PF ऑफिस में जमा नहीं करती थी।

13 वर्ष बाद मिला पेंशन तो गुंडा टैक्स वसूलने को पीछे लगी तिकड़ी

पुलिसिया सहयोग के लिए थाने का चक्कर लगा रहा 70 वर्षीय वृद्ध

बलिया: स्वाथ्य विभाग के वरिष्ठ सहायक पद से सेवानिवृति के करीब 13 वर्ष बाद पेंशन की मोटी रकम बैंक खाते में आई तो गुंडा टैक्स वसूलने के लिए क्षेत्रीय पत्रकार समेत तीन लोगों की तिकड़ी पीछे लग गई और अब जान से मारने की धमकी भी दे रहे है। बिल्थरा रोड बलिया में एक विवादित पत्रकार है।  एक हिस्ट्रीशटर के साथ मिलकर 74 वर्ष के सेवानिवृत्त वृद्ध से साढे तीन लाख की मांग रहे रंगदारी।

दैनिक भास्कर : HR की मनमानी और सैलरी कटौती से परेशान हो रहे कर्मचारी

bhaskarhindi.com ये डिजिटल वेबसाइट दैनिक भास्कर के जबलपुर - नागपुर समूह की है। समूह के मालिक मनमोहन अग्रवाल हैं, जो कि भोपाल शहर का एक प्रतिष्ठित नाम है। उनकी संस्था और उनके नाम को उन्हीं की संस्था में काम करने वाले कुछ लोग धूमिल करने का प्रयास कर रहे हैं। जी हां आपने ठीक पढ़ा। दरअसल मैनेजमेंट ने यहां पर एच आर और ऑफिस मैनेजमेंट की ज़िम्मेदारी जिस व्यक्ति को दी है, वह कर्मचारियों का लगातार शोषण करने में लगा हुआ है।

मप्र की शिवराज सरकार ने कोर्ट आर्डर के बाद मजीठिया वेतनमान की वसूली से किए हाथ खड़े

ग्वालियर। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान भूमाफियों और अपराधियों पर कार्रवाई की भले ही डींगे हांकते हो लेकिन पत्रकारों और गैर पत्रकारों के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद लागू मजीटिया वेतनमान की वसूली करने में हाथ खड़े कर दिए हैं। ताजा मामला जागरण के नईदुनिया अखबार से जुड़ा है। मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद ग्वालियर श्रम न्यायालय क्रमांक 01 में कर्मचारियों के प्रकरण में सुनवाई हुई, जिसमें कोर्ट ने कर्मचारियों के पक्ष में अवार्ड पारित कर वेतन अंतर की राशि की वसूली के लिए प्रकरण राज्य शासन को भेज दिया।

खबर चलाने का भय दिखा तथाकथित पत्रकार चला रहे धनउगाही गिरोह

धनउगाही में सफल न होने पर चला रहे निराधार खबर

कुछ वर्ष पूर्व तक केवल पढ़े-लिखे और सुलझे लोग ही पत्रकारिता जगत में कदम रखते थे किसी भी खबर को चलाने के पहले उस खबर के तह तक जाकर उसकी सच्चाई को सामने रखते थे। आमजन के लिए पत्रकार शब्द सम्मानित हुआ करता था क्योंकि उनका उद्देश्य जरूरतमंदों की मदद करना होता था लेकिन अब कई तथाकथित पत्रकारों ने केवल माइक और आईडी लेकर केवल विज्ञापन के नाम पर धनउगाही करना अपना मुख्य पेशा बना लिया है।

फिर सवालों के दायरे में सहाराश्री के फैसले

इतिहास के बड़े मोड़ और बड़े परिवर्तनों की बात करें तो जंगल में घटित एक घटना शायद इतिहास की बड़ी घटनाओं में से एक है। कुछ साधुओं और कुछ राहगीरों की टोली को जंगल में डाकुओं ने लूटने के इरादे से घेर लिया। मौत सामने खड़ी थी। बेबस राहगीरों के पास अपनी जान बचाने के लिए अपना कीमती सामान नगदी आदि, डाकुओं को सौंपने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। तभी एक साधु महाराज ने हौंसला दिखाते हुए डाकुओं के सरदार से एक सवाल किया कि आप यह लूटपाट, खून खराबा आदि जैसा खराब काम क्यों करते हो। सरदार ने जवाब दिया कि अपने परिवार के लिए। साधू ने पूछा कि क्या जिस परिवार और जिन लोगों के लिए आप यह सब करते हो क्या वो लोग आपके पाप और उस पर मिलने वाली सजा में भी भागीदार हैं, जाओ उनसे पूछ कर आओ हम यहीं खड़े हैं। संक्षिप्त यह कि डाकुओं का सरदार घर गया तो उसने साधू का सवाल अपने परिवार से दोहराया। परिवार के लोगों ने कहा कि पाप आप करते हो हम उसके भागीदार क्यों बनेंगे। साधू महाराज के सवाल और परिवार के जवाब से डाकुओं के सरदार का हृदय परिवर्तन हो गया और इसी किदवंती के आधार पर कहा जाता है कि इसके घटना के बाद ही एक  महर्षि, वाल्मीक का नाम इतिहास में दर्ज हुआ और एक बड़ा धर्म ग्रंथ भी अस्तित्व मे आया। इस कहानी के विस्तार या इसके पर बहस के बजाए आज इसका चर्चा सिर्फ इसलिए कर रहा हूं कि वर्तमान में भारत के बड़े घोटालों के आरोप में चर्चा में चल रहे सहारा ग्रुप के चेयरमेन सुब्रत राय सहारा यानि सहाराश्री के साथ, क्या उनका कथित सहारा परिवार भी साथ था। जिस दौरान वो तिहाड़ मे बेहद कष्ट का समय गुजार रहे थे, तब उनके सबसे बड़े सपने और सबसे बड़े खर्च पर खड़ा किये गये मीडिया हाउस के परिवारजन उनके लिए क्या सोच रहे थे, या केवल अपने लिए ही नौकरियां या धंधा ढूंड रहे थे, या जिन निकम्मों और नाकाम लोगों कहीं और नौकरी नहीं मिली वो वफादारी के नाम पर उसी परिवार को लूटने लगे थे, जिसको पालने पोसने और खड़ा करने के लिए सहाराश्री जैसा रिवल्यूश्नरी और डॉयनमिक शख्स घोटालों का न सिर्फ आरोपी बना बल्कि कई साल तक जेल में कष्ट झेलता रहा।

देश में स्थापित विपक्ष में दम नहीं, नया जमीनी नेतृत्व ही दे सकता है टिकाऊ विकल्प

CHARAN SINGH RAJPUT-
    
देश में एक से बढक़र एक आपदा आई पर जिस तरह से विवश लोग आज की तारीख में आ रहे हैं शायद ही कभी कभी रहे होंगे। यह अपने आप में विडंबना है कि लोगों की आय कम हो रही है और खर्चे बढ़ रहे हैं। देश में प्रभावशाली तंत्रों को जनता को लूटने की पूरी छूट दे दी गई हैं पर यदि किसान आंदोलन को छोड़ दें तो कोई प्रभावशाली आंदोलन देश में नहीं हो पा रहा है। जो भी प्रयास हो रहे हैं वह व्यक्तिगत हो रहे हैं। राजनीतिक दल तो जैसे बिल्ली की भाग से छींका टूटने का इंतजार कर रहे हैं। मोदी सरकार अपने निर्णयों से देश का कबाड़ा करती जा ही है पर लोग हिन्दू-मुस्लिम, स्वर्ण, दलित और पिछड़ों में उलझे हुए हैं।

1.4.21

चचा-भतीजे का सैफई से शुरू हुआ मनमुटाव लखनऊ तक पहुंचा, सुलह की कोशिशों पर लगा ‘ग्रहण’


अजय कुमार, लखनऊ

लखनऊ। इस बार की होली ने समाजवादी कुनबे के ‘रिश्तों का रंग’ और भी फीका कर दिया। इस बार की होली में न तो मुलायम सिंह यादव होली मनाने सैफई पहुंचे, न ही शिवपाल यादव सैफई मंच पर नजर आए। मुलायम की ‘जगह’ प्रोफेसर और सांसद रामगोपाल यादव ने मंच की कमान संभाल रखी थी तो, जो किरदार मुलायम के रहते शिवपाल यादव निभाया करते थे, अबकी होली में वह किरदार अखिलेश यादव निभाते नजर आए। इस बार सैफई की होली में नया इतिहास लिखा गया जो पहले की अपेक्षा पूरी तरह से बदला-बदला था। शायद मुलायम सिंह सैफई मंच पर मौजूद होते तो वह ऐसा कभी नहीं होने देते जिससे रिश्तों की दीवारें और भी बड़ी हो जाती। चाचा शिवपाल यादव मौजूद तो सैफई में ही थे, लेकिन वह अपने पिता के नाम से बने एक स्कूल में अपने समर्थकों के साथ होली खेलते और फाग सुनते नजर आए, जबकि अखिलेश सैफई में अपने आवास पर होली खेलते रहे।

कृषक चेतना के अनूठे कवि : केदारनाथ अग्रवाल (जन्म : 1 अप्रैल1911)

 शैलेन्द्र चौहान

बकौल खुद - 'मेरा विश्वास है कि कथ्य और शिल्प अलग नहीं है। दोनों की सांघातिक इकाई है। उसे तोड़ा नहीं जा सकता। कालिदास और बाल्मकि को पढ़ते हुए भी मुझे यह बात महसूस हुई है। इन कवियों ने यह भी सिखाया कि छोटे छोटे बंधों में कितनी बंधी हुई, धारदार बातें कही जा सकती है। मैंने ऐसी कविताएं लिखने की सोची कि दुश्मन भी एक बार प्रशंसा करें। रामविलास मेरे मित्र रहे है, उनसे बातें होती थी । वे कविता पर बात करते हुए कटु आलोचक हो जाते थे। निराला मुझे बेहद प्रिय थे। वे न होते तो खड़ी बोली कविता क्या होती। मैंने मिल्टन और कीट्स की कविताएं भी पसंद की है। मेरी शिकायत आलोचकों से रही है । उन्होंने मेरी कविता को समझने की कोशिश नहीं की, प्रगतिशील आलोचकों ने भी। नामवर ने भी जाने किस किस को उठाया, हमारी ओर उनका ध्यान नहीं गया। किसी खेमे ने मुझे महत्व नहीं दिया। मैंने पार्टी की सदस्यता कभी ग्रहण नहीं की, अपनी मजबूरियों के कारण। मैंने सोचा कि नारे की कविताएं हमेशा नहीं लिखी जानी चाहिये। जब सामूहिक आन्दोलन जोरों पर हो, तब की बात छोड़कर। उस समय हमने भी लिखा और आगे लिखेंगे। अभी हमें हिन्दी साहित्य को प्रगतिशील कविताओं से भरना है और उसकी प्रतिष्ठा बढ़ानी है। हमें दुश्मन को बौद्धिक जवाब देना है। जवाब देने से पूर्व एक बात अच्छी तरह से समझ लेने की है कि संसार में यदि जिन्दा रहना, तो प्रतिबद्ध होना पड़ेगा। यथास्थिति में परिवर्तन ना आया तो अलंदे और मुक्तिबोध मरते ही रहेंगे । हम लेखकों को प्रतिबद्ध रचनाएं लिखनी चाहिये- खतरे के बावजूद। कबीर, रैदास छोटे तबके के लोग थे, चिंतक जागरूक। उन्होने भण्डाफोड़ किया व्यवस्था का । निराला ने यही किया। हमें कला का उपयोग व्यवस्था बदलने, लोगों की मानसिकता बदलने के लिए करना है। हमारे जवाब का यही रास्ता है। मैं सोचता हूं कि जब तक जिन्दा रहूं जब तक मौत न आए, जब तक जिऊं, उसका उपयोग करूं। मैं अपना विकास पाने के लिए बैचेन हूं। मुझे जीने का अर्थ, वेद में, उपनिषद में, कहीं नहीं मिला, मिला तो प्रतिबद्धता में । इससे घबराने की जरूरत नहीं। पैब्लो नैरूदा, मॉयकोब्सकी, नाजिम हिकमत की तरह जीने की जरूरत है । यही जिन्दगी का राज है और इसी से कविता बनती है।'