10.6.21

आज की राजनीति के भस्मासुर बनते जा रहे हैं मोदी!

CHARAN SINGH RAJPUT-

अपनी अति महत्वाकांक्षा और जनता को धोखे में रखने की गलतफहमी पाले बैठे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश का तो बंटाधार कर ही दिया अब भाजपा के लिए भी भस्मासुर बनने जा रहे हैं। अपने सात साल के कार्यकाल में मोदी ने जो चाहा वह किया। मोदी ने औपचारिकता के लिए सलाह-मशविरा के लिए बैठकें जरूर की पर उनका हर निर्णय उनका अपना ही रहा। चाहे नोटबंदी, रही हो, जीएसटी रही हो, धारा 370 का हटाना हो, राम मंदिर निर्माण के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट से फैसला दिलवाना हो, कोराना काल में वैक्सीन का विदेश भिजवाना हो सब मोदी के मनमानी के निर्णय रहे हैं। केंद्र सरकार या फिर भाजपा के संगठन में उन्होंने जो चाहा वह किया। भाजपा पर एकछत्र राज करने वाले नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ को साइड लाइन करने के लिए अब भाजपा के मातृ संगठन आरएसएस से पंगा ले लिया है, जो उन्हें भारी पडऩे वाला है। यह भी जमीनी हकीकत है कि नरेंद्र मोदी अपने स्वभाव के अनुकूल इतनी जल्दी हार नही मानने वाले हैं। ऐसे में आरएसएस और नरेंद्र मोदी की टीम का टकराव योगी आदित्यनाथ को मजबूती देगा या फिर भाजपा को पतन की ओर ले जाएगा ? वैसे भी भाजपा के समर्थक योगी आदित्यनाथ को मोदी का विकल्प मानने लगे हैं।


हिन्दू पौराणिक कथाओं में वर्णित राक्षस भस्मासुर की ही तरह भारत की राजनीति में भी एक भस्मासुर पैदा हो गया है। अपने क्रियाकलापों और अति महत्वाकांक्षा के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भस्मासुर का रूप लेते जा रहे हैं। भस्मासुर को वरदान प्राप्त था कि जिसके सिर पर वह हाथ रखेगा वह भस्म हो जाएगा तो मोदी भी जहां हाथ रख रहे हैं, उसे बर्बाद ही कर दे रहे हैं। भस्मासुर शिवजी के सिर पर हाथ रखकर उनकी जगह लेना चाह रहा था तो नरेंद्र मोदी सब कुछ हथियाकर विश्व गुरु बनना चाहते हैं। जिस भाजपा का कंट्रोल उसके मातृ संगठन आरएसएस के हाथों में था, उस भाजपा को मोदी अपनी सल्तनत समझने लगे हैं। शिवजी ने भस्मासुर को भस्म करने के लिए विष्णु रूपी एक स्त्री को आगे किया था तो आरएसएस ने मोदी को सबक सिखाने के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को खड़ा कर दिया है।

दरअसल यह व्यक्ति का स्वभाव होता है कि गलत कामों में उसे संरक्षण देने और इन सबके लिए प्रेरित करने वाले के खिलाफ वह एक दिन खड़ा हो जाता है। आएसएस के साथ भी ऐसा ही हो रहा है। रोजी-रोटी, भाईचारा, कानून व्यवस्था पर काम करने के बजाय कट्टर हिन्दुत्व, मुस्लिमों के प्रति नफरत का माहौल बनाने, पूंजीपतियों को संरक्षण देने के लिए आरएसएस ही नरेंद्र मोदी को आरएसएस ही तो प्रेरित करता रहा है। मोदी के हर गलत काम को आरएसएस ही तो संरक्षण देता रहा है। यदि ऐसा नहीं है तो नोटबंदी, जीएसटी, नये किसान कानून, श्रम कानून में संशोधन जैसे मुद्दे पर आरएसएस चुप क्यों रहा ? अब जब बात उनके चेहेते योगी आदित्यनाथ को दोबारा घेरने की बात आई तो उनकी समझ में आ गया।
वैसे तो नरेंद्र मोदी ने गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए अपना अलग ब्रांड बनाना शुरू कर दिया था पर 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद तो उन्होंने न केवल सत्ता बल्कि भाजपा संगठन का रिमोट कंट्रोल भी अपने हाथों में ले लिया।

यह उनका अहंकार ही था कि 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में खुद ही उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री मनोज सिन्हा को बनाने का निर्णय ले लिया। जब मुरली मनोहर जोशी के माध्यम से आरएसएस को इसकी सूचना दी गई तो आरएसएस ने अपने रुतबे का इस्तेमाल करते हुए मनोज सिन्हा की जगह कट्टर हिन्दुत्व के चेहरे योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बना दिया। अब जब कोरोना कह में उत्तर प्रदेश सरकार पर उंगली उठती देख मोदी ने नरेंद्र मोदी ने योगी आदित्यनाथ को घेरने की चाल चली। मोदी ने यह चाल ऐसे समय में चली है जब अगले साल उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। एक कदम और आगे बढ़ाते हुए मोदी ने अपने चहेते अरविंद शर्मा को एमएलसी बनवा दिया। मोदी उन्हें उप मुख्यमंत्री बनवाकर मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या या राजनाथ सिंह को बनवाकर उत्तर प्रदेश को रिमोट कंट्रोल भी अपने हाथों में रखना चाहते थे। दरअसल मोदी की समझ में आ गया है कि भाजपा के समर्थकों में योगी आदित्यनाथ के चेहरे को बहुत पसंद किया जा रहा है और योगी को उनका विकल्प माना जाने लगा है। ऐसे में मोदी योगी को किसी भी तरह से साइडलाइन करना चाहते हैं।

दिल्ली के झंडेवालान में हुर्ई बैठक में योगी आदित्यनाथ पर मुहर लगाकर आरएसएस ने साफ कर दिया गया कि वह हर स्तर पर योगी आदित्यनाथ के साथ है। वैसे भी इस बीच जिस तरह योगी आदित्यनाथ के 24 घंटे अपने मोबाइल को बंद करने तथा अरविंद शर्मा को वाराणसी जाकर वहां की छवि सुधारने की बात कहने की खबरें सामने आई हैं उससे तो यही साबित होता है कि योगी आदित्यनाथ ने भी मोदी के खिलाफ ताल ठोक दी है। यह भी जगजाहिर है कि आरएसएस के सामने का कोई नेता खड़ा न हो सका।

दरअसल 2017 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में जिस तरह से मोदी ने आरएसएस को अनदेखा कर मनोज सिन्हा को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय लिया था उससे आरएसएस मोदी के प्रति सचेत हो गया था। आरएएस मौके की तलाश में था कि अब जब कोरोना महामारी में स्वास्थ्य सेवाओं के चरमराने, जलती चिताओं के बीच मोदी के पं.  बंगाल के चुनाव में नोटंकी करने, दवाओ, आक्सीजन और वैक्सीन मामले में मोदी सरकार के पूरी तरह से विफल होने पर आरएसएस को एक बड़ा मौका मिल गया। ऐसे में मोदी  की योगी को घेरने की रणनीति आग में घी काम कर गई। कोरोना महामारी में देश और विदेश के साथ ही सुप्रीमकोर्ट की तीखी आलोचना ने आरएसएस को मोदी को डाउन करने का अवसर दे दिया। वैसे भी आरएसएस का अंदरूनी सर्वे मोदी सरकार के खिलाफ ही है। ऐसे में आरएसएस मोदी की जगह योगी के चेहरे को बढ़ावा देने में लग गया। पर क्या मोदी चुप बैठ जाएंगे ? जो व्यक्ति देश पर एकछत्र राज कर रहा हो पर क्या वह इतनी जल्दी हार मान लेगा। मोदी जिद्द दी ही नहीं बल्कि सनकी स्वभाव के हैं। जो व्यक्ति तिकड़बाजी कर पांच देशों से उनका सबसे बड़ा पुरस्कार ले आया हो। जिस व्यक्ति को जनता के पैसे पर अय्याशी करने की आदत पड़ गई हो।  जिस व्यक्ति ने शांति के नोबल पुरस्कार के लिए कोरोना कहर में वैक्सीन को विदेश में भेज दिया हो। जो व्यक्ति अपने व्यक्तिगत छवि के लिए देश समाज मतलब कुछ दांव पर लगा सकता हो वह किसी की सुनने वाला नहीं है।

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