8.7.21

शिमला (आंचलिक) यात्रा वृतांत : वो शिमला जिसे शायद आप नहीं जानते!

Saksham Dwivedi-
    
शिमला का नाम सुनते ही चर्च, मॉल रोड और सैलानियों की भीड़ के दृश्य सामने घूमने लगते हैं . वास्तव में समुद्र तल से 2,206 मीटर ऊंचाई पर स्थित इस जिले के आँचल में 2 -3 किलोमीटर की  भीड़-भाड़ के व शोर के अतिरिक्त पहाड़ की समृद्ध संस्कृति व छिपा हुआ प्राकृतिक सौंदर्य तथा पर्यावरण के क्षरण की चिंता भी बसती है.


आज हम सैर करते हैं एक ऐसे ही शिमला की.. शोर गुल से बहुत दूर वेगवती सतलुज नदी के ऊपर पहाड़ी परम्पराओं को संजोए 'सुन्नी' एकांत साधना में लीन है.

युवा पत्रकार व इसी क्षेत्र के निवासी कपिल शर्मा जी के माध्यम से ना सिर्फ मुझे इस अनुपम क्षेत्र में समय व्यतीत करने का अवसर प्राप्त हुआ बल्कि पीढ़ियों से इस क्षेत्र के विभिन्न सामाजिक क्रियाकलापों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कपिल जी के परिवार ने मुझे क्षेत्र की संस्कृति का भी साक्षात्कार कराया.

हमारी यात्रा सायं 6 बजे चंडीगढ़ से प्रारम्भ हुई . मार्ग में दिख रहे हर स्थान के महत्व की कपिल जी के साथ सविस्तार चर्चा के दौरान कई महत्वपूर्ण तथ्यों की जानकारी होती रही. समांनातर चल रही कालका-शिमला रेलवे लाइन के निर्माण में बाबा भलकू के अभूतपूर्व योगदान की जानकारी बेहद दिलचस्प रही. वार्तालाप के दौरान धामी गांव की पत्थर मारने की अनोखी परम्परा का भी ज्ञान हुआ.
धामी गांव के मोड़ के आगे ही हमारा गंतव्य क्षेत्र सुन्नी था. मार्ग में खोह, जंगली खरगोशों की अठखेलियां व वाहन के प्रकाश से डरकर जंगलों की ओर भाग जाना क्षेत्रीय लोगों के लिए एक आम दृश्य है परन्तु मेरे लिया यह कौतूहल भरा रहा.  हम लोग अपने गंतव्य सुन्नी रात्रि लगभग 12 : 30 बजे पहुंचे.

अनार, चीड़ सहित अन्य विशालकाय वृक्षों के मध्य स्थित कपिल जी का निवास रात्रि में चमकते जुगनू, पशुओं व विभिन्न जीवों की ध्वनियों से सरोबार था. यात्रा की थकान व विशिष्ट पहाड़ी भोजन ने शीघ्र ही हमें निद्रा लोक की यात्रा में भेज दिया.

चिड़ियों की सुरीली ध्वनि व चमकते सूर्योदय ने सुबह में दोगुनी ताज़गी भर दी.अब बारी क्षेत्र के भ्रमण व परम्पराओं से रूबरू होने की थी . सर्वप्रथम हमें मंढोड़ घाट स्थित क्षेत्रीय आस्था के केंद्र श्री देव कुरगण महाराज के मंदिर के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ. श्री देव कुरगण महाराज जी ग्राम के देवता है तथा इनकी मान्यता सुदूर क्षेत्रों तक है .आज भी इन्हें विशेष अवसरों पर आमंत्रित किया जाता है . श्री देव कुरगण महाराज को आमंत्रण स्थल पर पालकियों व वाद्य यंत्रों के साथ भव्य रूप से ले जाया जाता है. श्री देव कुरगण महाराज के मंदिर के साथ ही देवी मां का भी एक मंदिर स्थित है.

मंदिर में दर्शन के उपरांत सुन्नी के ऊपरी क्षेत्र में स्थित पवित्र गुफा में पगडंडियों द्वारा व चीड़ के जंगलों से होते हुए पैदल ही जाना होता है. मार्ग में गिरे दिखे चीड़ के कई पेड़ व अनवरत जंगल की सघनता कम होना दावानल की भयावहता व बदलते पर्यावरण को दर्शा रहा था. इन चिंताओं के साथ ऊपर पहाड़ पर पवित्र गुफा में पहुंचना हुआ. गुफा का प्राकृतिक कुंड सदैव जल से आप्लावित रहता है. इस गुफा का उपयोग क्षेत्रीय पथिक कभी-कभी विश्राम हेतु भी करते हैं.

इन पवित्र स्थलों की यात्रा के मध्य ही हमें एक रहस्य भी पुकार रहा था . हम लोग गर्म जल के प्राकृतिक स्रोत 'तत्तापानी' जाने की योजना बना रहे थे पर उससे पहले मुझे जीवन में प्रथम बार 'धाम' में सहभागिता का अवसर प्राप्त हुआ. पहले तो मैं धाम का अर्थ धार्मिक स्थान ही समझता था पर यह धाम उससे अलग व विशेष था. दरअसल धाम वैवाहिक कार्यक्रम के उपरांत किये जाने वाले भोज को कहते हैं. यह अत्यंत विशिष्ट रूप से आयोजित किया जाता है . इसमें सभी लोग जमीन पर एक पंक्ति में बैठते हैं तथा उन्हें सामान्य रूप से चावल के साथ 5 अलग-अलग दाल अथवा अन्य व्यंजन परोसे जाते हैं. धाम में जब सभी व्यक्ति भोजन ग्रहण कर लेते है तभी पूरी पंक्ति एक साथ उठती है. इसमें शामिल होना मेरे लिए अत्यंत उत्सुकतापूर्ण था. क्षेत्रीय लोगों के अनुसार क्षेत्र के वैवाहिक कार्यक्रमों की यह विशेषता होती है कि जिस घर में विवाह हो रहा होता है वह अपनी क्षमता के अनुसार जनहित का कोई कार्य कराता है. हम लोग जिस परिवार के धाम में शामिल हुए थे उन्होंने मार्ग का सुदृढ़ीकरण कराया था.

धाम के उपरांत हम लोग सीधे पहुँच गए रहस्य और रोमांच से मुखातिब होने, सतलुज के तट स्थित 'तत्तापानी' पर . तत्तापानी शिमला-मंडी की सीमा पर मंडी की ओर स्थित है. यहाँ गर्म जल के कई प्राकृतिक चश्में हैं. लोगों की मान्यता है कि इस जल के स्नान से चर्म रोग सही हो जाते हैं. स्वाद में यहाँ का पानी खारा है. जल विद्युत् परियोजना के निर्माण के कारण यहाँ अथाह जलराशि एकत्रित है. जिन लोगों ने सतलुज के प्रवाह व वास्तविक रंग को देखा है उनकी यह मटमैली स्थिर अथाह जलराशि देखकर हो रही पीड़ा को आसानी से मसहूस किया जा सकता है.

तत्तापानी का भ्रमण करने के उपरांत हम लोग पुनः निवास पर पहुंचे. कपिल जी के परिवार के सम्मानित बुजुर्गों की बातों में तेज़ी से हो रहे पर्यावरण परिवर्तन व कुनियोजित विकास की चिंता साफ महसूस की जा सकती थी. गांव के लोगों द्वारा मिनी ट्रैक्टर को अपनाने के कारण तेज़ी से लुप्त हो रहे बैल हों या सामने स्थित विशाल वन में उत्तरोत्तर लग रही आग से घटती सघनता व कम होते चीड़ के पेड़ निश्चित ही हमें सम्भलने की चेतावनी दे रहे हैं.

इन तमाम बातों, चिंतन, मनन के मध्य निद्रा ने मुझे आगोश में ले लिया . अगले दिन पक्षियों के कलरव व चमकते सूर्य की ताज़गी भरी सुबह हमनें प्रकृति के आंचल में बसे इस एकांत सौंदर्य से विदाई ली. साथ ही इसकी सुंदरता की रक्षा की प्रार्थना करके यहाँ व्यतीत कई अविस्मरणीय क्षणों के साथ मनाली हेतु प्रस्थान किया.

सक्षम द्विवेदी

विषयवस्तु लेखक

चंडीगढ़

मो. 7380662596





 

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