Krishan pal Singh-
उत्तराखंड के बाद अपने गृह राज्य गुजरात में मुख्यमंत्री के चयन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह का आत्मविश्वास दिखाया है उससे एक चर्चित लोक कथा की याद आ गई। कथा यह है कि एक राज्य में राजा की निपूते मौत हो गई जिससे यह समस्या खड़ी हो गई कि नया राजा किसे बनाया जायें क्योंकि विधान यह था कि राजा का ज्येष्ठ पुत्र स्वतः उसकी मौत के बाद उसका स्थान ले लेगा। सयानों ने काफी माथा पच्ची करने के बाद इसकी गुत्थी सुलझाते हुए तय किया कि अगले दिन भोर में राज्य के सारे गणमान्य एकजुट होकर राजधानी में निकलें और जो सबसे पहले दिख जाये उसका राज तिलक कर दें।
विषयांतर न करते हुए गुजरात में मुख्यमंत्री बदल के मुख्य मुद्दे पर आते हैं। निवर्तमान मुख्यमंत्री विजय रूपाणी पाटीदारों के ट्रस्ट के ही एक कार्यक्रम में उपस्थित थे जिसमें गल्र्स होस्टल की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वर्चुअल आधार शिला रख रहे थे। वहीं उन्हें दिल्ली में बात करने का संदेश मिला और जब वे कार्यक्रम से लौटे तो उनसे इस्तीफा देने के लिए कह दिया गया। वैसे विजय रूपाणी के चयन के पीछे भी कोई मेरिट नहीं थी वे भी नरेन्द्र मोदी, अमित शाह के कृपा पात्र होने से मुख्यमंत्री पद का प्रसाद पा गये थे। अब उनसे मोदी का मन भर गया तो उन्हें यकायक चलता कर दिया गया। यह बेकार की बात है कि पाटीदारों की नाराजगी के डर से उन्हें हटाने का फैसला हुआ है। कुछ समय पहले गुजरात में हुए नगर निकायों के चुनाव में विजय रूपाणी के मुख्यमंत्री रहते हुए भाजपा को अभूतपूर्व सफलता मिली थी फिर पाटीदारों का डर कैसा। अगर पाटीदारों को प्रसन्न रखने की परवाह होती तो 75 साल की उम्र का बहाना लेकर आनंदी बेन पटेल को मुख्यमंत्री पद से हटाने की जुर्रत कैसे की जा सकती थी। इसके बाद भी अगर आनंदी बेन पटेल को कार्यमुक्त किया ही जाना था तो उनके स्थान पर पाटीदार को ही चुना जाता। राज्य की जनसंख्या में बेहद अल्पसंख्यक जैन समुदाय के विजय रूपाणी को क्यों।
दरअसल अवतारवाद में गहरा विश्वास भी भारतीय समाज की एक बड़ी ग्रन्थि है। अवतारवाद की अवधारणा यह स्थापित करने वाली है कि किसी नेतृत्व के विकास के पीछे वैज्ञानिक कारण नहीं होते, इतिहास महामानव का निर्माण नहीं करता बल्कि ऊपर से ही बने महामानव समय-समय पर धरती पर भेजे जाते हैं जिनमें वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शामिल हैं। अपने अवतारी होने का इल्हाम नरेन्द्र मोदी के अंदर इतनी मजबूती से जमा हुआ है कि वे इसे पुष्ट करने के लिए औचित्यपूर्ण फैसले करने की बजाय लीलायें दिखाने का उपक्रम करते हैं। विजय रूपाणी को पदासीन कराना और फिर बिना किसी परिस्थिति के एक झटके में उन्हें हटा देना उनकी लीला भावना की ही देन के रूप में देखा जाना चाहिए। विजय रूपाणी के उत्तराधिकारी के लिए जो नाम चर्चाओं में थे उनमें सबसे ऊपर नितिन पटेल का नाम था जो कि रूपाणी मंत्रिमंडल में उप मुख्यमंत्री थे। उनका अपना मजबूत प्रोफाइल है। इसलिए आनंदी बेन पटेल के इस्तीफा के बाद उन्हीं का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए सर्वोपरि चला था पर इसी वजह से उस समय भी उनका पत्ता साफ कर दिया गया था। इसके अलावा प्रदेश अध्यक्ष आरसी पाटिल का नाम था जिनका संबंध मूल रूप से महाराष्ट्र से है और वहां पटेल अपने को पाटिल लिखते हैं। विजय रूपाणी के जमाने में आरसी पाटिल को सुपर सीएम कहा जाता था क्योंकि उनके हस्तक्षेप और फरमान के आगे रूपाणी की बोलती बंद हो जाती थी। एक नाम लक्ष्यदीप के प्रशासक प्रफुल्ल पटेल का था जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की गुड बुक में शामिल में माने जाते हैं। इसके अलावा केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख माडवीया और पुरूषोत्तम रूपाला भी इस दौर में शामिल माने जा रहे थे।
पर भौचक्के करने वाले फैसले करना अवतारी पुरूष की फितरत है सो मोदी को इस मामले में अपने किरदार के अनुरूप चलना था इसलिए उन्होंने मीडिया और जनमानस में जिन नामों की चर्चा की उन सभी को निरस्त करके ऐसे चेहरे को आगे किया जिसके बारे में पहले कोई अंदाजा नहीं लगा सकता था। यहां तक कि नरेन्द्र मोदी ने अपने सबसे विश्वसनीय और उनक उत्तराधिकारी माने जाने वाले केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह को भी इस मामले में गच्चा देने में गुरेज नहीं किया। सभी को ठगा सा छोड़ने वाला कदम उठाने की मोदी की मनोवृत्ति के पीछे का मनोविज्ञान समझा जाना चाहिए। भले ही प्रधानमंत्री मोदी भाषणों में लोगों को बार-बार अपना मित्र कहकर संबोधित करते हों लेकिन हकीकत यह है कि कोई अवतारी पुरूष किसी को अपने साथी का दर्जा नहीं देता। उसे भक्त मंडली चाहिए होती है जो अपने आराध्य की लीलाओं को लेकर तर्क के आधार पर विचार किये बिना चमत्कृत होने का सुख प्राप्त करती रहे। भूपेन्द्र पटेल को थोपकर मोदी ने अपने भक्त मंडल की इस मानसिक जकड़न को फिर नयी मजबूती प्रदान की।
भूपेन्द्र पटेल को गुजरात जैसे संपन्न, उद्योग प्रधान और अन्य दृष्टियों से महत्वपूर्ण राज्य की कमान सौंपे जाने का विचार क्यों किसी के सोच के परे था क्योंकि वे सर्वथा अपरिचित चेहरा हैं। 2017 के पिछले विधानसभा चुनाव में पहली बार आनंदी बेन पटेल की सिफारिश पर उन्हें उन्हीं की सीट पर टिकट दिया गया था। हालांकि वे इसमें सबसे ज्यादा मतों से जीतने का रिकार्ड बनाने में भी सफल हुए थे। उन्हें कोई और दायित्व निभाने का भी कोई ऐसा अवसर नहीं मिला जिससे उनका दमदार प्रोफाइल बन सकता सिबाय इसके कि वे अहमदाबाद अर्बन डेवलपमेंट अथारिटी के चेयरमेन रह चुके है जो राज्य की सबसे मालदार संस्था है। पटेलों में भी वे कड़वा समुदाय से हैं। जबकि राज्य पटेलों में लउआ समुदाय की तादात ज्यादा है।
बताया जाता है कि मुख्यमंत्री पद के लिए भी भूपेन्द्र पटेल का नाम आनंदी बेन पटेल ने ही सुझाया था जबकि भूपेन्द्र का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से तो कभी कोई सीधा संबाद नहीं रहा। गुजरात भाजपा में दो गुट चलते हैं एक को अमित शाह प्रश्रय देते हैं और दूसरे की सरपरस्ती आनंदी बेन पटेल करती हैं। नरेन्द्र मोदी ने इस बार आनंदी बेन पटेल का सिक्का अमित शाह के मुकाबले मजबूत करने की सोची जिससे पुनः जाहिर हुआ कि मोदी किसी को बहुत ज्यादा पंख नहीं लगने देते भले ही वह उनका कितना भी सगा क्यों न हो। उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी को पदासीन किये जाने के बाद गुजरात में प्रफुल्ल पटेल को बागडोर सौंपी जाने के बाबत कहा जा रहा है कि यह नया नेतृत्व तैयार करने की कवायद है। पर अगर ऐसा होता तो उत्तराखंड में जब त्रिवेन्द्र सिंह रावत मुख्यमंत्री बनाये गये थे और गुजरात में विजय रूपाणी तो उनके चयन के पीछे भी यह कवायद होनी चाहिए थी फिर उन्हें सशक्त उभार का पूरा मौका क्यों नहीं दिया गया ।
जूनियर मोस्ट भूपेन्द्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाये जाने से नितिन पटेल सहित गुजरात के सारे प्रभावशाली भाजपा नेता खिन्न हैं। इसलिए नितिन पटेल को सबक सिखाने की गरज से रूपाणी मंत्रिमंडल के सभी 24 मंत्रियों को नरेन्द्र मोदी ने पवेलियन का रास्ता दिखा दिया। बहरहाल मोदी तो अवतारी पुरूष हैं जो कुछ भी करें पर अभी उनके सितारे इतने बुलंद हैं कि वे अपनी पारी सफलता पूर्वक खेल ले जायेंगे लेकिन अनुमानों को झुठलाने की उनकी फितरत अब सनक का रूप ले चुकी है और उनका यह शगल दूरगामी तौर पर उनकी पार्टी भाजपा की जड़े खोदने वाला साबित न हो जाये।
K.P.Singh
Distt - Jalaun (U.P.)
Mob.No.09415187850
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