राधे राधे,
अलौकिक राधा, अलौकिक श्याम, एक रूप के कितने नाम वृषभानु जी की पुत्री, जन्म से नेत्रहीन, जन्मो का वादा ,की राधा जब कृष्ण को देखेगी तभी चक्षु खोलेगी, !
समय चक्र, गोलोक यात्रा की अनदेखी कहानी, जो जीवंत आज भी है, राधा जी का कृष्ण से रुठना, कृष्ण का उन्हें सताना, कृष्ण भक्त का वहां आना महज क्या घटनाक्रम कल्पनाओं से है,,नही, जब आज हम है तो गोलोक भी रहा होगा, जो शक्ति हमे आज चला रही है,तब भी तो चला रही होगी!
कृष्ण एक सखी के साथ राधा को चिढाने के लिए, वार्ता में मशगूल थे! राधा का आना, कृष्ण का, राधा रानी को अनदेखा करना, राधा का क्रोध करना, ये सब महज इत्तेफाक नही, लीलाधर की प्रेम परीक्षा थी!
राधा का प्रेम अंतहीन था, जिसका कोई अंत नही, बस उस प्रेम को संसार में स्थापित करना था!
राधा, कृष्ण के लिए माखन बनाती, खुद चखती फिर खिलाती, ये बात श्रीदामा को नागवार लगती, पर कृष्ण को तो, उस जूठे भोग से ही तृप्ति मिलती, कृष्ण प्रेम के भूखे, और राधा कृष्ण के दरश की, राधा माखन को इसलिए चखती की कही स्वादहीन न हो, और कृष्ण इसलिए खाते, की प्रेम का अपमान न हो, प्रभु की लीला प्रभु जाने,
राधा ने भोग लगाया, माखन को चखा, और गिरधारी के होठों से लगाया था की श्रीदामा जी की नजर पड गयी!
ये क्या, त्रिलोक के स्वामी एक स्त्री के प्रेम में इतने वशीभूत है! की गलत सही में अंतर नही कर पा रहे है! ये प्रभु को क्या हो गया! मै उनका इतना बडा भक्त, मै ये सब नही देख सकता!
श्रीदामा की भक्ति क्या राधा के प्रेम से प्रभु ने कम आंकी,
गिरधारी मुस्कुराऐ समझ गये, की श्रीदामा ने तो कुल्हाड़ी पर पैर रख दिया, उनकी सोच ने उन्हें असुर योनि के लिए चुन लिया,
श्रीदामा का भाग्य, सोच लिया है तो भुगतान तो करना होगा,
राधा तो आलौकिक है, साक्षात शक्तीस्वरुपा है, वो,,,समय आ गया जब उनके प्रेम को संसार जाने, जैसी शिव की इच्छा,
"पर उससे पहले तो गिरधर को राधा से दूर जाना होगा,
श्रीदामा जी का भक्ति अंहकार भी चूर्ण करना होगा, वो प्रभु के भक्त तो है, पर अंहकार शोभा नहीं देता, भक्ति के अहंकार ने योगमाया के प्रेम पर संदेह कर लिया, फस गये प्रभु विकट परिस्थिति में, एक हृदय स्वामिनी राधा, एक भक्त श्रीदामा, एक पावन सरल सी प्रेम पुजारिन , एक दंभी भक्त, गिरधारी ने छोड़ दिया दोनों पर खुद को सबित करने का फैसला, बस मंद मंद मुस्कुरा कर देख रहे थे, ब्रह्मा जी के द्धारा रचित भाग्य!
पर विरह तो उन्हें भी भोगना होगा!
जूठा माखन खाकर अभी तृप्ति की डकार भी न ले पाये थे अंतर्यामी, की श्रीदामा की क्रोध से भरी आवाज, गूंजी, देवी शोभा नही देता तुम्हे, कृष्ण को एकटक देखे जा रही थी, राधारानी, वो मुस्कुराये जा रहे थे!
अब क्या लीला रच डाली प्रभु, मन के भावों को मन तक पहुंचाया राधा जी ने,, प्रिये, अब भक्त भगवान की बात है मै, क्या बोलूं, हृदय स्वामिनी तुम्हारा पक्ष लूंगा, तो भक्ति आडे आ जायेगी, अब तुम्ही संभालो, तुम खुद योगमाया हो, ठीक है प्रभु अपने प्रेम को हारने न दूंगी,
क्या शोभा नहीं देता मुझे, आदरणीय श्रेष्ठ, मधुर आवाज के साथ बोली, राधा,रानी, ! इतना अंजान बनने की कोशिश न करो, "मान्यवर मै कुछ समझी नही, राधा जी नम्रता पूर्वक बोली,,,
आप हमारे अंनत देव को जूठा खिलाती है, श्रीदामा जी चिढते हुऐ बोले,,,, वो तो प्रेमविवश होकर खिला रही है मुझे श्रीदामा जी, कृष्ण बोले,,, नाथ आप भोले हो आपको अपने वश में करने के लिए, ही ये देवी ये सब कर रही, आपको कैसे पता, कुटिल मुस्कान से बोले कृष्ण, प्रिये राधा क्या श्रीदामा जी सत्य बोल रहे है,! मुझे उनकी बाते सत्य लग रही है!
आप प्रेम पर शक कर रहे है प्रभु, नही राधा, ऐसे कैसे सोच लिया की मै शक कर रहा हूँ, मै तो श्रीदामा जी के मन की बात रख रहा हूँ, राधा के लोचन भर आये!
नाथ मै सबित कर दूंगी प्रेम से बढकर कुछ नही, अच्छा हंसे गिरधारी, ठीक है, आप हस लो, मै,,, देवी आपसे मै कहता हूँ प्रेम छलावा के सिवा कुछ नही, भक्ति ही सर्वोपरि है!
प्रेम सबकुछ है, राधा जी दृढ़ता से बोली!
भक्ति से जीवन भी पाया जा सकता है! देखो ऐसे, श्रीदामा जी की हथेली मे, एक नन्हा सा जीव चल रहा था!
मैने अपनी भक्ति से इस जीव को जन्म दिया,
और भक्ति का प्रमाण भी, श्रीदामा जी बोले,
प्रेम का प्रमाण क्या है,,,, कृष्ण मुस्कुराये!
मै खुद ही प्रेम हूँ, मैं राधा हूँ, उस जीव की ओर देखते हुए राधा जी बोली, उस जीव ने राधा नाम सुनते ही, प्राण त्याग दिया!
श्रीदामा जी हंसे, देवी भ्रमित हो अपनी भूल सुधार लो, मेरे द्धारा जीवन मिला था इस जीव को, जो आपके नाम से नष्ट हो गया, मै आपको श्राप देता हूँ, आपका ये प्रेमरूपी छलावा भी नष्ट हो जाऐगा!
राधा जी बोली मान्यवर आपने ये क्या किया, उसी समय एक तितली आकर राधा जी, हाथ पर बैठी ही थी कि, राधा नाम सुनते ही निस्तेज हो गयी!
राधा के आंसू बहने लगे, वो कृष्ण की ओर देखने लगी!
कृष्ण अब भी मुस्कुरा रहे थे!
और श्रीदामा दंभ से सीना ताने खडे थे! प्रभु मेरा नाम तो सृष्टि के लिए दुर्भाग्य बन जाऐगा,
नही राधा ऐसा नहीं है कृष्ण बोले, उधर देखो, एक नन्ही बालिका राधा को बडे प्रेम से अपलक देखे जा रही थी!
वो राधा जी के पास आ गयी! वो बोली,
माँ आपने मेरा जीवन सुधारा है, मैने बहुत पाप किया, तो भक्ति के दंभ मे चूर श्रीदामा जी ने मुझे जीव रुप में जीवन दिया, मै निर्बल जीव आपका नाम कानों में पडा तो, सुंदर तितली का रूप मिला अब मै उड सकती थी! पर आपका नाम सात बार मेरे कानों में पडा तो मनुष्य तन मिला, बस माँ विनती है! अपने अंक में ले लो तो परमगति मिल जाये!
मुझे मुक्ति मिल जाये, श्रीदामा जी आवाक, राधा के गोद में बैठते ही वो बच्ची सशरीर, विमान पर बैठ बैकुंठ चली गई,
प्रेम की शक्ति अब तो श्रीदामा जी समझ ही गये होगें, हंसे कृष्ण, प्रभु मै अब आपके साथ नहीं रह सकती आपने अपने विनोद के चक्कर में पडकर मेरी परीक्षा ली, नही प्रिये, मै प्रेम हीन होकर कैसे रह सकता हूँ,तुम्है प्रेम परीक्षा संसार में रहकर देनी होगी, मै तुम्हारे बिना रह नही सकता, इसलिए, पाप का भागी बना, ताकि मै तुम्हारे साथ संसार में आ सकूँ, प्रभु आप ,,, श्रीदामा बोले, ------ अब तक राधाजी क्रोधित हो चुकी थी, मान्यवर आपकोे भक्ति का बडा दंभ हैं! मै राधा आपको श्राप देती हूँ आप असुर योनि में जन्म लेगें,
देवि मुझे क्षमा करें, राधा जी के चरणों में, गिर गये श्रीदामा,
राधा जी की आंखें भर आयी, मै पापी नराधम जगतजननी आपको न समझ पाया, ये सब विधि का खेल है, कृष्ण बोले
संसार को सच्चा प्रेम संदेश देने राधा को मनुष्य रूप में अवतरित होना होगा! राधा का गोलोक से जाना तय हो चुका था! बस वो दुविधा मे थी प्रभु के बिना कैसे रहेगी, जिस प्रेम वश इतना कुछ घटित हुआ उससे दूर रहकर जीवन, निष्क्रिय है!
अब भी श्रीदामा सिर झुकाये खड़े थे! उनका दंभ नष्ट हो चुका, वो पछता रहे थे, की उनकी वजह से प्रभु अपने, प्रेम से दूर हो रहे थे!
पर प्रभु तो लीला रच चुके थे! राधा के पास आकर सजल नेत्रों से देखा, प्रभु के आंखों में आंसू राधा रानी तडप गयी, अब ऐसा क्यू, प्रिये आज प्रेम सबित करने के चक्कर में, मुझसे भूल हो गयी, कैसे प्रभु, भक्ति पर भी प्रश्नचिन्ह लग गया!
मेरा भक्त असुर योनि में फंस गया,!
अब राधा को प्रभु की बात समझ में आयी! वो मुस्कुरायी,
प्रभु आप तनिक चिंता न करें, वो शंखचूर्ण दैत्य के रूप में भी आपके भक्त होगें ,और संसार में पूज्य होगें, देवी आप दयावान हो, मै पापी आपके प्रेम को न समझ पाया, आज के बाद भक्ति और प्रेम दोनों का मार्ग एक ही होगा, दोनो एक दूसरे के पूरक होगें,
आपको पश्चाताप है मान्यवर, बस प्रायश्चित्त बाकी है, आप प्रभु भक्ति में श्रेष्ठ होगें, आप युगों युगांतर तक जीवंत हो जाएगें,
क्षमादान मिलते ही, श्रीदामा जी गोलोक से विदा हो गये!
अब तक राधा ने आंखें बंद कर ली, कृष्ण ने राधा की ओर देखा, प्रिये ये क्या किया, बस मै अब आपके चक्षु से संसार देखूंगी, जब तक आप मुझे संसार में नही नजर आओगें तब तक मेरे चक्षु बंद रहेगें, प्रभु के माथे पर चिंता की लकीरें खींच गयी, पर प्रिये आपके जाने का समय आ गया,!
राधा की आंखों से अश्रु की बूंदे प्रभु के चरणों में विलीन हो गयी! प्रभु भी खुद को न रोक पाये, और फिर विदाई वेला, गोलोक में प्रेम का अखिरी आलिगंन,
देवि रूको, मुझे पता है, तुम मेरे बिना संसार में सांस भी नही ले पाओगीं, तुम्हारा गोलोक के बाद संसार मे पुनर्जन्म होगा, पर कोख से नही होगा, तुम्हे कोख में धारण करने की शक्ति भूलोक में किसी के पास नही है, तुम अजन्मा हो, फिर प्रभु, तुम गोलोक से जाते ही सब कुछ भूल जाओगी, सिर्फ प्रेम याद रहेगा, मै भी तुम्हे याद न रहूंगा, पर साथ हमेशा रहूंगा,
तुम मुझसे पहले जाओगी तो, मुझसे बडी रहोगी, तुम्हे प्रेम परीक्षा देनी होगी, तुम्हारा विवाह अन्य पुरूष से होगा, पर तुम विचलित मत होना, वो पुरुष मेरी ही छाया होगा, बस तुम अपने प्रेम को संसार में जीवित कर देना, देवि ये कार्य तुम्हारे आलावा कोई नही कर सकता, हमारा प्रेम युगों तक अमर हो जाऐगा,
इसी के साथ राधा जी गोलोक से अंतर्ध्यान हो गयी,!
प्रभु का हृदय व्यथित हो गया, !
रीमा ठाकुर
Reema Thakur
thakurreema0107@gmail.com
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