CHARAN SINGH RAJPUT-
फ्रांस के एक जांच आयोग की रिपोर्ट में खोला गया हजारों पादरियों और स्टाफ का सालों पुराना कच्चा-चिट्ठा!
जांच आयोग ने अपनी रिसर्च में पाया कि सन 1950 से लेकर अब तक कम से कम 2900 से लेकर 3200 पीडोफाइल पादरी या चर्च के अन्य सदस्यों का खुलासा हा चुका है, भारत में भी धर्म स्थलों में यौन शोषण के मामले उजागर हुए हैं, गत दिनों चले मी टू अभियान में हज जाने वाली महिलाओं के साथ भी यौन शोषण के मामले उजागर हुए थे..
नई दिल्ली। कितना घिनौना लगता जब सुनने में आता है कि किसी धर्मस्थल में किसी महिला या बच्चे का यौन शोषण हुआ। वैसे तो यौन शोषण के मामले लगभग सभी जगह होते हैं पर धर्मस्थल में यौन शोषण का मतलब सभी हदें पार। जिस जगह को पवित्र मानकर दिन में लाखों लोग दुआ मांगने आते हों। शांति की खोज में समय बिताते हों उस जगह पर जब यह पता चले कि वहां पर कोई दरिंदा बैठा है तो आस्था घृणा में बदल जाती है। वैसे तो मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे लगभग सभी जगहों पर यौन शोषण के मामले उजागर हो चुके हैं पर चर्च में बच्चों के यौन शोषण के सबसे अधिक मामले सुनने और पढऩे को मिलते हैं।
फ्रांस में एक नई रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि सन1950 से लेकर अब तक फ्रांस की कैथोलिक चर्चों के अंदर हजारों बाल यौन उत्पीड़क सक्रिय थे। फ्रांस की चर्चों में बाल यौन शोषण के मामलों की जांच में लगे स्वतंत्र कमीशन ने इसकी जानकारी दी है।
कमीशन ने अपनी रिसर्च में पाया है कि सन् 1950 से लेकर अब तक कम-से-कम 2900 से लेकर 3200 बाल यौन उत्पीड़क पादरी या चर्च के अन्य सदस्यों का खुलासा हो चुका है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ये आंकड़ा कई गुना ज्यादा हो सकता है। फ्रांस के चर्चों पर की गई ढाई साल की गहन रिसर्च के बाद कमीशन की यह रिपोर्ट मंगलवार को जारी होनी है। रिसर्च को चर्च, कोर्ट, पुलिस आर्काइव और गवाहों के साक्षात्कारों के आधार पर तैयार किया गया है।
करीब 2500 पन्नों की इस रिपोर्ट में न सिर्फ गुनाहगारों की संख्या बताई गई है बल्कि पीडि़तों के आंकड़े भी बताए गए हैं। रिपोर्ट में उस व्यवस्था पर भी बात की गई है जिसकी वजह से पीडोफाइल चर्च के अंदर रहकर भी सक्रिय थे। इस स्वतंत्र कमीशन का गठन साल 2018 में फ्रेंच कैथोलिक चर्च द्वारा किया गया था। उस समय कई स्कैंडल के खुलासों ने फ्रांस और दुनियाभर के चर्चों की व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए थे। कानूनी विशेषज्ञ, डॉक्टर, इतिहासकार, सोशियोलॉजिस्ट और धर्मशास्त्रियों को मिलाकर यह कमीशन तैयार किया गया था। कमीशन ने जब ढाई साल पहले काम शुरू किया था, उस समय एक टेलीफोन हॉटलाइन जारी की थी, जिसके जरिए कुछ ही महीनों में हजारों शिकायती मेसेज मिलने का दावा किया गया था।
जहां तक हमारे देश भारत की बात है तो यहां पर भी धार्मिक संस्थाओं में यौन शोषण के मामले उजागर होते रहे हैं। गत साल बिहार मधेपुरा जिला के सिंहेश्वर थाना इलाके मैं एक मौलवी पर यौन शोषण का आरोप लगा था। मामला झिटकिया गांव का था जहां पीडि़ता ने स्थानीय मस्जिद के एक के मौलवी पर यौन उत्पीडऩ का आरोप लगाया थे। पीडि़ता ने इस संबंध में महिला थाने में शिकायत दर्ज कराई थी कि निकाह का झांसा देकर उसके साथ मौलवी ने तीन-तीन बार दुष्कर्म किया।
ऐसा नहीं है कि हिन्दुओं की आस्था का केंद्र माने जाने वाले मंदिर इस तरह के मामले से अछूते हों। गत दिनों नई दिल्ली के बद्रीनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी रावल केशवन नंबूदरी को यौन शोषण के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। बताया जाता है कि पुजारी ने दिल्ली के महरौली इलाके में डिलाइट होटल में एक युवती का यौन शोषण किया था।
गत दिनों चले मी टू अभियान के तहत यह बात सामने आई कि मस्जिदों में यौन शोषण के मामले होते हैं। हज जाने वाली महिलाओं का भी यौन शोषण होता है। यौन शोषण के विरुद्ध चले इस अभियान ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा था। इस अभियान में हज और अन्य धार्मिक स्थानों पर जाने वाली महिलाओं ने आप बीती बताई थी। सोशल मीडिया पर यह अभियान मास्क्यू मी टू नाम से चला था। महिलाएं यौन शोषण से जुड़े अपने अनुभवों को खुलकर जाहिर किया था।
महिलाओं के साथ मस्जिदों में हुई यौन उत्पीडऩ को उजागर करने वाले इस कैंपेन की शुरुआत पत्रकार और लेखिका मोना एल्ताहवी ने अपने साथ हज यात्रा के समय हुई यौन उत्पीडऩ की घटना के बाद की थी। मोना एल्ताहवी के द्वारा इस घटना को उजागर करने के बाद उनके पास लोगों के मैसेज आने लगे। एक अंग्रेजी वेबसाइट से बात करते हुए मोना कहती हैं कि मेरी कहानी पढऩे के बाद एक मुस्लिम महिला ने अपनी मां के साथ हज यात्रा के समय हुई यौन उत्पीडऩ की घटना को विस्तृत रूप से लिखकर मुझे मेल किया था।
इसके बाद दुनिया भर से मुस्लिम पुरुष और महिलाएं इस हैशटैग का इस्तेमाल करने लगे और 24 घंटे के अंदर यह 2000 बार ट्वीट हो गया। यह फारसी ट्विटर पर टॉप 10 ट्रेंड में आ गया। ट्विटर पर अपना अनुभव शेयर करने वाली महिलाओं ने बताया कि उन्हें भीड़ में ग़लत तरीके से छुआ गया और पकडऩे की कोशिश की गई।
मस्जिदों में महिलाओं के साथ हुए घटनाओं को उजागर करने वाले इस कैंपेन के लिए ट्विटर पर लिखा गया कि जब मैं जामा मस्जिद में गई तो एक व्यक्ति ने मेरी छाती पर हाथ मारने का प्रयास किया था। उस समय उन्होंने इस संबंध में किसी से भी बात नहीं की थी क्योंकि लोगों को उस समय लगता कि मैं इस्लामोफोबिया का समर्थन कर रही हूं। वहीं एक महिला ने लिखा कि सऊदी अरब में स्थित मस्जिद नवाबी से कुछ फीट की दूरी पर ही एक व्यक्ति ने उनका हाथ पकड़कर उसे अपनी तरफ खींचने का प्रयास किया था।
किसी एक और महिला ने लिखा कि जब वह मात्र 10 साल की उम्र में थीं तब एक मस्जिद में एक व्यक्ति ने पीछे से उनके अंगों को बुरी तरह से दबोचा था। एक यूजर एंग्गी लेगोरियो ने ट्विट किया, मैंने मास्क्यू मी टू के बारे में पढ़ा। इसने हज 2010 के दौरान की भयानक यादें फिर से मेरे ज़हन में आ गईं। लोग सोचते हैं कि मक्का मुस्लिमों के लिए एक पवित्र जगह इसलिए वहां कोई कुछ ग़लत नहीं करेगा। यह पूरी तरह ग़लत है। एक अनुमान के मुताबिक करीब 20 लाख मुसलमान हर साल हज के लिए जाते हैं। इससे पवित्र माने जाने वाले मक्का शहर में लोगों की भारी भीड़ इकट्ठी हो जाती है।
No comments:
Post a Comment