19.3.22

न्यायपलिका और न्यायधीश से आज भी उम्मीदें जिंदा है...

के. सत्येन्द्र-

कलकत्ता हाइकोर्ट के न्यायधीश को पैसे से प्रभावित करने के मामले से समूचा कानून जगत स्तब्ध है लेकिन यह भी सत्य है कि बहुत से ऐसे मामले सामने आ ही नही पाते ।


सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि आखिर प्राइवेट तथा सरकारी वकील और पुलिस के अधिकारी कर्मचारियों को जज के चैम्बर में जाने ही क्यो दिया जाता है ? क्या इस बात की लिखित अनुमति या इससे संबंधित कोई दिशा निर्देश हमारे कानून में मौजूद है ?  मैं स्वयं इस बात का गवाह हूँ और कई मामलों में यह देखा है कि निचली अदालतों में  पुलिस अधिकारी सरकारी और प्राइवेट वकील बेरोक टोक जज के चैम्बर में किसी न किसी काम को लेकर आते जाते रहते हैं ।

कल्पना कीजिये कि आपका कोई केस कोर्ट में चल रहा हो । आप पर कोई मुकदमा चल रहा हो और आपके खिलाफ सरकार का पक्ष रखने वाला सरकारी वकील आपके सामने जज के चैम्बर में जाकर बतियाता हुआ दिखाई दे तो ऐसी स्थिति में आपकी मानसिक दशा क्या होगी ।

न्यायपालिका और जज की विश्वसनीयता और मजबूती इस बात पर ही निर्भर है क्योंकि वो निष्पक्ष है और इस निष्पक्षता और विश्वसनीयता को बनाये रखने के लिए आवश्यक है कि किसी भी वकील या सरकारी अधिकारी या फिर पुलिस वालों को खुली कोर्ट में ही अपनी बात रखने की इजाजत दी जाए जज के चैम्बर में नही ।

कलकत्ता हाइकोर्ट के जज ने अदालत में जो खुल कर कहा वो झकझोर देने वाला विषय तो है साथ ही काबिले तारीफ भी है । ऐसे न्यायधीशों की वजह से ही एक आम आदमी जब हर तरफ से निराश हो जाता है तो आज भी यही कहता है कि आई विल सी यू इन कोर्ट ! क्योंकि उसकी आखिरी उम्मीद न्यायपालिका पर ही टिकी होती है ।

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