16.11.23

क़र्ज़ की किश्तें: कितनी आसान, कितनी पेचीदा

रजनीश कपूर-

त्योहारों के मौसम में ग्राहकों को आकर्षित करने के इरादे से ज़्यादातर कंपनियाँ अपने उत्पादों पर आकर्षक ऑफर चला देते हैं। इनमें कई तरह के ऑफर होते हैं जैसे हर ख़रीद पर मुफ़्त उपहार। एक के साथ एक फ़्री। पुराना लाओ नया पाओ ऑफर आदि। परंतु इन सब में सर्वप्रथम ऑफर ‘नो कॉस्ट ईएमआई’ का है। ग्राहक इस ‘नो कॉस्ट ईएमआई’ के झाँसे में बड़ी आसानी से आ जाते हैं। परंतु क्या ‘नो कॉस्ट ईएमआई’ वास्तव में बिना किसी अतिरिक्त शुल्क के, ग्राहकों को मिलती है?


जैसा कि नाम से ही पता चलता है ‘नो कॉस्ट ईएमआई’, का सीधा मतलब यह निकाला जाता है कि ग्राहक को उत्पाद की क़ीमत के बदले अतिरिक्त ब्याज या बैंक चार्ज नहीं देना पड़ता। केवल उत्पादन की क़ीमत को ही आसान किश्तों में देना होगा। ज़्यादातर मामलों में इस ‘नो कॉस्ट ईएमआई’ की किश्तों की सीमा 6, 9, या 12 महीने ही होती है। वहीं अगर आप एक निश्चित ब्याज दर अदा कर कोई वाहन या घरेलू उत्पादन ख़रीदते हैं तो आपके पास उसे चुकाने के लिए कई महीनों से लेकर कई सालों तक का विकल्प होता है। ब्याज पर ली गई वस्तु आसान किश्तों पर ज़रूर मिलती है परंतु असल क़ीमत से काफ़ी महँगी पड़ती है।

‘नो कॉस्ट ईएमआई’ के ज़्यादातर मामलों में यह सुविधा ग्राहक को मुफ़्त में ही पड़ती है। परंतु वहीं कुछ वित्तीय संस्थान या बैंक इसमें ‘फाइल चार्ज’ जोड़ लेते हैं, जिसका भार भी ग्राहक को ही सहना पड़ता है। साथ ही अधिकतर ‘नो कॉस्ट ईएमआई’ पर मिलने वाले सामान को ग्राहक को बिना किसी छूट के ही ख़रीदना पड़ता है। उदाहरण के तौर पर यदि किसी वस्तु का मूल्य दस हज़ार है, तो यदि ग्राहक उस सामान को नक़द पर ख़रीदता है तो उसे उस सामान पर मिलने वाली छूट का लाभ भी मिलता है। परंतु यदि ग्राहक उस सामान को ‘नो कॉस्ट ईएमआई’ पर ख़रीदेगा तो उसे उस सामान पर कोई छूट नहीं मिलेगी। इसलिए ‘नो कॉस्ट ईएमआई’ के अनुबंध में घुसने से पहले आप काफ़ी सोच-विचार कर लें। साथ ही यदि आप किसी स्टोर से ऐसा सामान ‘नो कॉस्ट ईएमआई’ पर ले रहे हैं तो मोल-भाव करते समय ‘फाइल चार्ज’ को भी हटवा सकते हैं। इसलिए ‘नो कॉस्ट ईएमआई’ के आकर्षित विज्ञापनों के झाँसे में न आएँ और सोच-समझ कर ही ख़रीदारी करें।

ठीक इसी तरह ग्राहकों को लुभाने की दृष्टि से कई बैंक मुफ़्त क्रेडिट कार्ड बनाने के आकर्षक विज्ञापन जारी करते हैं। इन ऑफरों में भी ‘मुफ़्त’ कार्ड के नाम पर ग्राहकों को क्रेडिट कार्ड और लोन के मायाजाल फ़साने की मंशा ही होती है। मिसाल के तौर पर यदि कोई ग्राहक अपने लिए कुछ वस्तु आसान किश्तों पर लेता है और कभी-कभी वह अपनी मासिक किश्त या ईएमआई भरने में असमर्थ रहता है। ऐसे में बैंक की तरफ़ से उस पर लेट फ़ीस लगा दी जाती है। ईएमआई का लेट पर लेट होना ग्राहक को काफ़ी महँगा पड़ता है। उस पर न सिर्फ़ लेट फ़ीस का भार पड़ता है बल्कि ब्याज पर ब्याज भी चढ़ने लगता है। अंततः उसे अन्य बैंक के द्वारा दी जाने वाली ‘मुफ़्त क्रेडिट कार्ड’ की ऑफर की याद आती है। इस ‘मुफ़्त कार्ड’ की ऑफर के आगे उसे मजबूरन समर्पण करना पड़ता है। ऐसा सिर्फ़ अपनी किश्त चुकाने के लिए। परंतु ग्राहक शायद यह नहीं जानते कि ईएमआई पर सामान खरीदने की सूरत में ब्याज दरें 10-20 फीसदी के बीच ही रहती हैं। वहीं क्रेडिट कार्ड पर लगने वाला ब्याज इससे कहीं अधिक हो सकता है। यदि मुफ़्त में क्रेडिट कार्ड बनवाने को लेकर बैंक काफ़ी ज़ोर देते हैं और उस पर ब्याज दर भी काफ़ी ज़्यादा होती है तो फिर इसमें ‘फ्री’ क्या हुआ?

किश्तों और लोन का मायाजाल एक पति-पत्नी के उदाहरण से समझा जा सकता है। जब ये दोनों जवान थे, तो अपने मित्रों और जानने वालों का घर देखकर उन्हें लगता था कि काश हमारे पास भी अपना एक घर होता। दोनों ने यह निर्णय लिया कि वे अपनी आमदनी से पैसे बचाकर, बैंक लोन लेकर अपना एक घर खरीदेंगे। जैसे-तैसे उन्होंने एक घर ले लिया और कुछ समय बाद उन्हें हर महीने की भारी किश्त चुकाना मुश्किल लगने लगा। लोन की किश्तें चुकाने के लिए दोनों को देर रात तक ज़्यादा काम करना पड़ा। जिसकी वजह से उनके पास अपने बच्चों के लिए भी समय नहीं बचता था। थोड़े ही दिनों में पति यह भी कहने लगा कि, लोन न चुका पाने का तनाव, चिंता और नींद पूरी न होने की वजह से उसे ऐसा लगता है कि जैसे वह अपने सिर पर भारी बोझ ढोह रहा है। तो इनके लिए क्या आसान किश्तें वास्तव में आसान हुईं?

समझदारी इसी में है कि हम उधार लेने या किश्तों पर सामान लेने से पहले सोच-समझकर फैसला लें। उधार लेने से पहले खुद से ये सवाल अवश्य पूछें, क्या ऐसी वस्तु की इतनी ज़रूरत है कि बिना उधार लिए काम नहीं चलेगा? क्या समाज में अपने परिवार का रुतबा दिखाने के लिए कर्ज़ लेना ज़रूरी है? ऐसा तो नहीं कि हम लालच में आकर, अपनी चादर से बाहर पैर फैला रहे हैं? अगर ऐसा है, तो भलाई इसी में होगी कि आपके पास जितना है उसी में खुश रहिए और उधार लेने से बचे रहिए। बाज़ार के लुभावने ऑफर के मायाजाल में जहां तक हो सके न फँसें।      

लेखक दिल्ली स्थित कालचक्र समाचार ब्यूरो के प्रबंधकीय संपादक हैं।

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