19.7.08

सुनामी पर लिखी थी


इस राख में शरार* अभी बाकी है,
दुःख की रात है, सवेरा होना अभी बाकी है,
खुदा तू हार गया इतनी ताकत दिखा के भी,
समँदर पार बस्तिया अभी बाकी है,
टूट गये है सारे मुसाफिर सफ़र में,
उन मुसाफिरो में गुबार अभी बाकी है,
खुशी और ग़म के रैलों में,ग़म आ गये,
खुशी का इंतज़ार अभी बाकी है,
तेरी ताक़त हमने देखी ऐ खुदा,
हमारी हिम्मत दिखाना तो अभी बाकी है .
शरार*= चिंगारी

No comments:

Post a Comment