सुनो या फिर विचार भी करो
ये चुनाव की बेला है। आप अगर राजस्थान के वासी है तो कान, नाक, गला बंद कर ले। ये आलेख आपके लिए नही है। दरसअल जहाँ चुनाव होते है. वहां इन तीनो का काम नही होता। चुनावों के मौसम में जो सुनना चाहते है वो सुनाई तो देता है। लेकिन वैसा होता नही है। सिर्फ़ बातों से ही कम चला है। घोषनाओ की बयार शुरू हो चुकी है। ये भी और वो भी सभी बस बात करेंगे। किसी की सुनो उससे पहेले सोचना, विचारना कि पहले जो बोला वो मिला क्या? शायद नही। फिर अब क्या करेंगे? सुना है इस बार फूल और हाथ के साथ हाथी भी होगा। उनका पुराना वायदा नही है। फिर भी सोचना होगा कि उन्होंने पहले क्या किया है। जन्हा रहे वहा क्या हाल है। सोचने कि बातें बहुत है।
अगर आपको इस मुद्दे पर बहस रास आती है तों फिर बात करेंगे।
मयंकजी आपका भड़ास में स्वागत है। उम्मीद है आपके जरिए राजस्थान की राजनीति और स्थानीय हलचलों के बारे में विशद जानकारी मिलती रहेगी। वैसे एक बात कहना चाहूंगा कि भड़ास पर कामचोर और बिना इच्छाशक्ति वाले नेताओं को जमकर गालियां निकाली जा सकती है। उम्मीद है व्यंग के असर वाली अगली पोस्ट में आपकी भड़ास सुनने को यानि पढ़ने को मिले। एक बार फिर भड़ासियों के साथ आपका स्वागत है।
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