यूँ तो बड़ों जैसा दिखना और बनना हमेशा ही बच्चों की फितरत होती है लेकिन आजकल यह प्रवृत्ति काफ़ी बढ़ गई है और ग़लत रूप में विकसित हो रही है यही वजह है कि वे कम उम्र में ही बड़ों कि तरह व्यवहार करने लगते हैं उनकी मासूमियत और बचपन कहीं गुम - सा नजर आता है
इसके लिए सबसे ज्यादा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जिम्मेदार है तरह तरह कि फंतासी कहानियाँ बच्चों के कोमल मन पर गहरा और बुरा असर दाल रही हैं इनसे बच्चों में अपराध की प्रवृत्ति बढ़ गई और वे अक्सर हिंसक घटनाओं को अंजाम देते हुए नजर आते हैं
अब तो पश्चिमी देशों के स्कूलों की तरह भारतीय स्कूलों से भी हैरतअंगेज खबरें सामने आने लगी हैं अक्सर सुनाई देता है की फलां स्कूल में एक छात्र ने गोली मारकर किसी सहपाठी की जान ले ली इसके लिए अभिभावक भी कम जिम्मेदार नही हैं जो अपने बच्चों पर समय के अभाव में ध्यान नही दे पाते
हम अपने बच्चों को कैसा भविष्य देना चाहते हैं यह सोचने की जिम्मेदारी मीडिया और अभिभावक दोनों पर है संकीर्ण लाभ के लिए बच्चों की मासूमियत से सौदा ना करें
bachpan ke saath sab badal raha hai
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