विनय बिहारी सिंह
लोकनाथ ब्रह्मचारी १८वीं शताब्दी में ढाका (बांग्लादेश) जिले में रहे और विलक्षण संत के रूप में ख्याति प्राप्त की। उस समय ढाका भारत का ही अंग था। उन्होंने वैसे तो कई दुखी लोगों की मदद की। लेकिन एक घटना बांग्लादेश में आज भी याद की जाती है। यह तो कहने की जरूरत नहीं कि सच्चे संत लोक कल्याण के लिए चमत्कार करते रहे हैं। आइए पहले उस विवरण को जानें। उनके बारे में गोपीनाथ कविराज ने लिखा है कि उनके एक सहपाठी ने इस घटना का जिक्र किया था। इस सहपाठी को मलेरिया ने धर दबोचा। वे महीनों खाट पर पड़े रहे। बहुत इलाज हुआ लेकिन बुखार था कि ठीक ही नहीं हो रहा था। वे दिन पर दिन कमजोर होते जा रहे थे। तब किसी ने कहा कि आप लोकनाथ ब्रह्मचारी के पास जाइए। शायद वे कुछ चमत्कार कर दें। मरता क्या न करता। उनके सहपाठी अपने पिता के साथ ब्रह्मचारी के पास पहुंचे। उनके पिता ने कहा- महात्मा जी इस लड़के का बुखार उतर ही नहीं रहा है। लोकनाथ ब्रह्मचारी ने कहा- तो मैं क्या करूं। डाक्टर को दिखाओ। लड़के के पिता ने कहा- बहुत सारे डाक्टरों को दिखाया लेकिन बुखार उतर नहीं रहा है। लेकिन लोकनाथ ब्रह्मचारी चुपचाप बैठे रहे। लड़के की आंखों से आंसू गिरने लगे। देख कर संत को दया आई। उन्होंने कहा- जाओ इस आश्रम के बगल वाले पोखरे में नहा कर आओ। लड़के को बुखार था लेकिन संत का आदेश कैसे टाले। वह गया और पोखरे से नहा कर आ गया। लोकनाथ ब्रह्मचारी ने कहा अब भात और दही खा लो। आश्रम में भात औऱ दही दोनों थे। थाल में परोस कर आया। लड़के ने बुखार के बावजूद खाया। फिर लोकनाथ ब्रह्मचारी ने कहा- अब घर जाओ। घर पहुंचने के बाद लड़के का बुखार उतर गया। फिर जीवन में उसे दुबारा मलेरिया नहीं हुआ। लोग चकित थे। बुखार में नहा कर दही भात खाना तो भयानक है। लेकिन लोकनाथ ब्रह्मचारी ने यह चमत्कार कर दिया।
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