मीडिया के बारे में कहा गया है कि '' मैं हर सच के खिलाफ एक इमानदार संदेह उत्तपन्न करना चाहता हू। ''
लेकिन भारतीय मीडिया , खास तौर पर , इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की भूमिका राम जी के उस धोबी की भूमिका हो गई है जिसका काम सिर्फ़ संदेह उत्तपन्न करना है । उस संदेह से सीता पर क्या असर होगा , राम पर क्या असर होगा , जनता पर क्या असर होगा , उससे उसे कतई सरोकार नही है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इतना चरित्रहीन हो गया है कि आज आप जिस खबर को बड़ी खबर या महाखबर कि तरह देख रहे है , कल शायद उस छोटे से डब्बे पर उसके भाग्नाव्शेष भी नही मिले । आप को लगेगा वो तो खबर ही नही थी ।
मीडिया ने सबसे पहले जनता शब्द की हत्या की । उसने कहा की जनसमूह । धीरे-धीरे उसने उस जनसमूह को फिर कहा औडिएंस । उसने फिर बाकायदा उसे वर्गों में बांटा । आज का मीडिया सिर्फ़ युवा वर्ग को ही संबोधित है । बूढो की जरुरत नही । अतीत की कतिपय जरुरत नही। भविष्य की ट्रेन प्लेटफार्म पर आ चुकी है । आप लाल कपड़े पहने अतीत के कुली बनेगे या वर्तमान के यात्री ।
lage raho badeea hai, media ke charitra ke itne chithde roz ud rahe hai is blog par lekin mazedaar baat yah hai kee patrakaar ka chola odhe dalaalon kee dalaali kaa soochkaank badhta hee jaa raha hai.
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