गुलाब लिये हाथो में सच्ची मोहोबत की बात क्या कीजिये जब ....
" गुलाब - ए- दोर " भी बदल गए... जब ..न मोहोबत - ए- इश्क रहा न ना " गुलाब - ए - गुलाब " रहा ...आने लगे हैं गुलाब भी " दोर - ए - बदल कर" जैसे आने लगी है .." मोहोबत - ए- दोर बदल कर " ...कल ही मिला कोई गुलाब आज तलक न सुखा है ..किसी किताब में रखु उसको पर उसको वक़्त ही कहाँ मिला मुरझाने का ...क्यों की गुलाब - ए -दोर बदल गया है ..."गुलाब -ए - कागज़" में ...और बद्किस्मतो को देखो ढूंढ़ रहे हैं खुशबु आज भी "कागज़ -ए- गुलाब" में...,
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति बधाई
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