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21.7.11

गुलाब - ए - गुलाब

गुलाब लिये हाथो में सच्ची मोहोबत की बात क्या कीजिये जब ....
" गुलाब - ए- दोर " भी बदल गए... जब ..न   मोहोबत - ए- इश्क   रहा  न    ना  "  गुलाब - ए - गुलाब "  रहा ...आने लगे हैं गुलाब भी " दोर - ए - बदल कर"  जैसे आने लगी है .." मोहोबत - ए- दोर बदल कर "  ...कल ही मिला कोई  गुलाब  आज  तलक  न  सुखा  है ..किसी किताब में रखु उसको पर उसको वक़्त ही कहाँ मिला मुरझाने का ...क्यों की  गुलाब - ए -दोर बदल गया है ..."गुलाब -ए - कागज़"  में ...और बद्किस्मतो को देखो ढूंढ़ रहे हैं खुशबु आज भी "कागज़ -ए- गुलाब" में...,

1 comment:

Shalini kaushik said...

बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति बधाई