सरकारों के चार साल या तीन साल या दो साल या एक साल पूरे होने पर सरकारें खुद सूचना विभाग के जरिए अपने किए का विज्ञापन के जरिए धुआंधार प्रचार करती हैं. पत्रकार और अखबार अपनी तरफ से जब लिखता है तब उन कमियों त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाता है, जिस पर सरकार का ध्यान नहीं गया है. लेकिन अब बाजारवादी व्यवस्था है. पैसा अखबार मालिकों को भी कमाना है. सो, संपादक ऐसे रखते हैं जो कलम से स्याही नहीं बल्कि मक्खन तेल बहाए. दिलीप अवस्थी उन्हीं कैटगरी में शुमार हैं.
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