लिखने का ये सिलसिला उस वाकये से शुरू होता है, जब रोज़ की तरह, सुबह से रात तक युवाओं की टीम काम कर रही थी, एक ऐसे चैनल के लिए, जिसकी बड़ी पहचान नहीं है, जो बिल्कुल नया है, फ़िर भी आत्मविश्वास से भरी टीम के युवा उस चैनल की आईडी को जीते हैं, उसे फ़ेसबुक, व्हाट्सएप, हर जगह जीना शुरू करते हैं, रात तक की ड्यूटी करने के बाद जैसे ही ये युवा आराम करने का मन बनाते हैं, अचानक उनके सीनियर का फ़ोन आता है, फ़ोन सिर्फ इत्तला करने के लिए, कि शहर में कुछ मसला हो गया है, जाना चाहो तो देख लो, लेकिन आधी रात का समय है और ख़बर की जगह काफ़ी दूर है, कार भी नहीं है।
फ़ोन पे बात होने के दस मिनट के भीतर टीम के तीन जाबांज़ युवा ऑफ़िस की दहलीज़ पर खड़े होते हैं, आईडी, कैमरा, लाईट रेडी करते हैं, और बाईक थामे निकल पड़ते हैं, ख़बर को कवर करने, अपनी उस संस्था की पहचान बनाने, जिसे पहचान की फ़िलहाल ज़रूरत है, और साथ ही पीआर मज़बूत करने का जिम्मा है। ऊपर लिखे गए इस वाकये को कुछ देर पहले मैंने ज़िया है, रिपोर्टर और मीडिया की पढ़ाई कर रहे अखिलेश तिवारी और उनके दो पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे साथी अभी रात 12 बजे खमतराई में ख़बर बना रहे हैं, उत्साह से लबरेज़ इन सिपाहियों को बाईक से ख़बर के लिए दूर भेजते मन घबरा रहा था, पर भविष्य में कुछ हटकर करने का ज़ज़्बा पाले इन युवाओं के सामने क्या दिन, क्या रात, क्या बाईक और क्या कार।
आप हम जब भी मीडिया के क्षेत्र ने कूच करते हैं, तो अंदाज़, लहज़ा सब नया और पैनापन लिया हुआ रहता है, वो बात और है, बढ़ती उम्र और बढ़ती जवाबदारियों से उत्साह में अक़्सर कमी भी आती जाती है। दरअसल, मीडिया में बीजेएमसी, एमजे, एम् फिल करने के बाद सोचा है कि कुछ समूचे नव आगंतुक साथियों के लिए किया जाए, एक मंच दिया जाए, इस विषय में भड़ास के कर्ता धर्ता यशवंत जी से भी उन दिनों बात हुई थी, जब दिल्ली प्रेस क्लब में यशवंत जी के साथ काफ़ी पीने, स्नैक्स खाने का अवसर मिला था, अल्प काल की बैठक में मैंने अपने सपनों की ओर यशवंत जी का ध्यान खींचते उन्हें छत्तीसगढ़ आमंत्रित भी किया था।
ख़ैर उस दौरान भड़ास का जन्मदिन मनाने की तैयारी में लगे सिंह साहब ने अपनी मूक सहमति ज़रूर व्यक्त की थी। सपना था एक आशियाना बनाने का, उत्साही युवाओं के सामने उनके आइडल्स को खड़ा करने का, और भरोसा था कि ऐसे परिणाम आएंगे, सही मायनों में कहूँ तो अपना रायपुर का छोटा सा हॉउस इन्हीं जैसे ऊर्जावान युवाओं से भरा है। चाहे गृहमंत्री के सड़क हादसे के समय 2 बजे रात को अस्पताल जाने को हो, या फ़िर तेलीबांधा में आधी रात महिला को घर से निकालने के दौरान आधी रात महिला के साथ खड़े रहने के साथ ज़िम्मेदारी निभाने की बात हो, अपनी युवा टीम ने हर जगह अपना 100% दिया है।
अक़्सर ये टीम संसाधनहीन होने के बावज़ूद फ़ील्ड में कदमताल बेहतर तरीके से करती है, अपनी अलग पहचान बनाती है, बैनर को जीती है, मज़बूत करती है। ऊपरवाले से प्रार्थना है, ऐसे उत्साही युवाओं का भविष्य सुनहरा हो, पत्रकारिता जगत में ये सब बहुत ऊंचा नाम कमाएं, ऐसे नवयुवक, बाक़ी मीडियाकर्मियों, मीडिया के विद्यार्थियों के लिए आईडल बनें, वास्तव में, हमेशा बैनर्स इनसे होते हैं, न कि ये बैनर से।"
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योगेश मिश्रा,
पत्रकार, छग
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Very good yogesh. Wish you all the best...Basant Shahjeet, katgi
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