मामूली बुखार आने पर बाहर के लिए लिखी 211 रूपये की दवाई... मात्र 6 साल की बच्ची के सिरप और टैबलेटों की भरमार
गाजियाबाद। महानगर स्थित एमएमजी हास्पिटल में कार्यप्रणाली सुधरने का नाम नहीं ले रही है। गाजियाबाद की डीएम रितू माहेश्वरी कार्य के प्रति लापरवाही बरतने पर चेतावनी भले दे रही हों लेकिन उसका कोई असर नहीं है। जिला अस्पताल के डॉक्टर अपने पुराने ढर्रे पर ही कार्य कर रहे हैं।
जिला सरकारी अस्पताल में वर्षों से डॉक्टरों द्वारा की जाने वाली ठगी को लेकर काफी शिकायतों होती रहती हैं जिस पर जिलाधिकारी सहित अन्य अधिकारी थोड़ी बहुत कार्यवाही भी करते हैं। जिलाधिकारी रितू माहेश्वरी ने भी कई बार शिकायतें प्राप्त होने पर अस्पताल पहुंच कर उचित कार्यवाही भी की है। किन्तु डॉक्टर हैं कि अपनी कार्यप्रणाली को सुधारने का नाम नहीं ले रहे हैं।
धनिता नाम की एक लड़की जिसकी उम्र लगभग 6 वर्ष है उसे बुखार हो गया था। जिसके बाद उसके पिता उसे सरकारी अस्पताल ले गये। नियम के अनुसार उन्होने 1 रूपये की पर्ची कटवाई और 15 नम्बर कक्ष के डॉक्टर साहब को दिखाने ले गये। कुछ मरीजों के बाद धनिता का नम्बर आ गया। डॉक्टर साहब ने पूछा की बुखार कब से है। तो धनिता के पिता ने कहा कल से। डॉक्टर साहब ने अपना हाथ उलटा कर लड़की के माथे पर लगाया और पर्चा बनाना शुरू किया। पर्चे पर चार प्रकार की टेबलेट पांच दिन के लिए लिखी और अपने सामने बैठे अपने सहयोगी से एक पर्ची पर एक सिरप और एक टेबलेट का पत्ता बाहर से लाने के लिए लिखवा दिया।
सहयोगी ने पर्ची दी और इशारा कर बताया कि गेट से बाहर निकलकर मेडिकल से दवाई लेकर आना और हमें चैक करवाना। मैडिकल वाले ने 92 का सिरप और 119 की टेबलेट दी है। कुल मिलाकर 211 की दवाई मेडिकल वाले ने दी और दिये गये 500 में से 210 रूपये काटकर बाकी पैसे लौटा दिये। यह वाक्य सिर्फ धनिता के साथ ही नहीं सभी के साथ हो रहा था डॉक्टर का सहयोग डॉक्टर के कहे अनुसार सभी के लिए दो पर्ची काटता था एक अन्दर के लिए और एक बाहर के मैडिकल के लिए। यदि ऐसा ही चलता रहा तो क्या फायदा सरकारी अस्पताल आने का।
जिलाधिकारी ने आदेश दिये थे कि कोई भी डॉक्टर बाहर से दवाई नहीं लिखेगा। क्या उनके द्वारा दिये गये आदेशों की कोई इज्जत नहीं हैं? या यूं की चलता रहेगा सरकारी अस्पताल। अगर मामूली बुखार आने पर इतनी दवाई और इतने पैसे लगेगें तो जाने बड़ी बीमारी होने पर डॉक्टर मरीजों का क्या हाल करते होंगे?
sameeksha news
sameekshanewsindia@gmail.com
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गाजियाबाद। महानगर स्थित एमएमजी हास्पिटल में कार्यप्रणाली सुधरने का नाम नहीं ले रही है। गाजियाबाद की डीएम रितू माहेश्वरी कार्य के प्रति लापरवाही बरतने पर चेतावनी भले दे रही हों लेकिन उसका कोई असर नहीं है। जिला अस्पताल के डॉक्टर अपने पुराने ढर्रे पर ही कार्य कर रहे हैं।
जिला सरकारी अस्पताल में वर्षों से डॉक्टरों द्वारा की जाने वाली ठगी को लेकर काफी शिकायतों होती रहती हैं जिस पर जिलाधिकारी सहित अन्य अधिकारी थोड़ी बहुत कार्यवाही भी करते हैं। जिलाधिकारी रितू माहेश्वरी ने भी कई बार शिकायतें प्राप्त होने पर अस्पताल पहुंच कर उचित कार्यवाही भी की है। किन्तु डॉक्टर हैं कि अपनी कार्यप्रणाली को सुधारने का नाम नहीं ले रहे हैं।
धनिता नाम की एक लड़की जिसकी उम्र लगभग 6 वर्ष है उसे बुखार हो गया था। जिसके बाद उसके पिता उसे सरकारी अस्पताल ले गये। नियम के अनुसार उन्होने 1 रूपये की पर्ची कटवाई और 15 नम्बर कक्ष के डॉक्टर साहब को दिखाने ले गये। कुछ मरीजों के बाद धनिता का नम्बर आ गया। डॉक्टर साहब ने पूछा की बुखार कब से है। तो धनिता के पिता ने कहा कल से। डॉक्टर साहब ने अपना हाथ उलटा कर लड़की के माथे पर लगाया और पर्चा बनाना शुरू किया। पर्चे पर चार प्रकार की टेबलेट पांच दिन के लिए लिखी और अपने सामने बैठे अपने सहयोगी से एक पर्ची पर एक सिरप और एक टेबलेट का पत्ता बाहर से लाने के लिए लिखवा दिया।
सहयोगी ने पर्ची दी और इशारा कर बताया कि गेट से बाहर निकलकर मेडिकल से दवाई लेकर आना और हमें चैक करवाना। मैडिकल वाले ने 92 का सिरप और 119 की टेबलेट दी है। कुल मिलाकर 211 की दवाई मेडिकल वाले ने दी और दिये गये 500 में से 210 रूपये काटकर बाकी पैसे लौटा दिये। यह वाक्य सिर्फ धनिता के साथ ही नहीं सभी के साथ हो रहा था डॉक्टर का सहयोग डॉक्टर के कहे अनुसार सभी के लिए दो पर्ची काटता था एक अन्दर के लिए और एक बाहर के मैडिकल के लिए। यदि ऐसा ही चलता रहा तो क्या फायदा सरकारी अस्पताल आने का।
जिलाधिकारी ने आदेश दिये थे कि कोई भी डॉक्टर बाहर से दवाई नहीं लिखेगा। क्या उनके द्वारा दिये गये आदेशों की कोई इज्जत नहीं हैं? या यूं की चलता रहेगा सरकारी अस्पताल। अगर मामूली बुखार आने पर इतनी दवाई और इतने पैसे लगेगें तो जाने बड़ी बीमारी होने पर डॉक्टर मरीजों का क्या हाल करते होंगे?
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