20.2.20


मल्लब!अपनी मारी सब हलाल!

शहरियत तरमीमी क़ानून(CAA) के ख़िलाफ़ गुज़िश्ता दो महीने से शाहीन बाग़ में चल रहे एहतेजाजी मुज़ाहिरे के ख़िलाफ़ एक अर्ज़ी पर समआत करते हुए अदालते अज़मीया ने पाबंदी से इनकार करते हुए दो रुकुनी कमेटी तशकील दी है,और कमेटी को हुक़्म जारी किया है कि वो मुज़ाहिरीन से बात-चीत की मार्फ़त बन्द रास्ता बहाल करने व दिगर मसाइल पर तबसरा करे।अदालते अज़मीया के इस फ़ैसले को CAA मुख़ालिफ़ जमातें और नामनेहाद सेक्युलर "तहफ़्फ़ुज़-ए-आयींन" करार देते हुए अदालते अज़मीया की शान में कसीदे पढ़ रहे हैं।


अरे साहब!अब हमारा सवाल ये है कि इसी अदालते अज़मीया ने जब "राम मंदिर तामीर" पर कुछ माह क़ब्ल अपना फ़ैसला सुनाया था तब इन्ही सुडो सेक्युलर जमाअतों(ख़ासकर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड व् दीगर) ने फ़ैसले को "तआसुब-कुन" क़रार देते हुए दबी ज़बान में ही सही अदालते अज़मीया की शदीद मज़म्मत की थी।
हज़रत! क्या इसी "दोहरे-चलन" से आयींन का तहफ़्फ़ुज़ होगा,क्या इसी "आज़ादी" की बात कर रहे हैं दो महीने से???
आखिर कौन सी आज़ादी चाहिए...???
#या_अपनी_मारी_मुर्गी_सब_हलाल

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