23.10.20

एम्स ॠषिकेश में तरक्की के नाम पर भ्रष्टाचार का खुला खेल

वैसे तो ऐम्स ॠषिकेश के संबंध में भ्रष्टाचार की खबरें छपना एक आम बात हो गई है, परंतु हैरानी की बात यह है कि यह सिलसिला अब रुकने का नाम ही नहीं ले रहा। ऐसा प्रतीत होता है कि दिन प्र्तिदिन संस्थान तरक्की के दिखावे के पीछे भ्र्ष्टाचार की ऊचाईयाँ छू रहा है, और राज्य या केंद्र सरकार मूक दर्शक बनी देख रहीं हैं। सवाल यह है कि क्या इसी दिन के लिये देश की जनता को भ्रष्टाचार मुक्त विकासशील प्रशासन का सपना दिखाया गया था। सूत्रों से पता चला है कि हाल ही में स्वास्थ मंत्रालय भारत सरकार के कार्यालय से अवर सचिव श्री शम्भू कुमार जी द्वारा एम्स के निदेशक को एक शिकायती पत्र प्रेक्षित किया गया है, जिसमें उनसे इस विषय में सफ़ाई देने को कहा गया है।


शिकायातकर्ता ने यह पत्र केंद्रीय स्वास्थ मंत्री श्री हर्षवर्धन को लिखा है जिसमें मेडिकल इक्युपमेंट खरीद में उसने एक बडे घोटाले को उजागर किया है। शिकायतकर्ता ने लिखा है कि जनरल वित्तीय नियमों (जी एफ़ आर) के अनुसार कोई भी इक्युपमेंट टेंडर प्रक्रिया द्वारा खरीदा जा सकता है। इसमें अनिवार्य है कि न्यूनतम तीन बोली लगाने वाली कम्पनियाँ भाग लें। केवल तीन विशेष परिस्थितियों में ही खरीदारी करने वाले विभाग को यह छूंट दी गई है कि वे एक बोली लगाने वाली कम्पनी (सिंगल बिडडर) को ही आर्डर दे दें:- (क) केवल एक ही कंपनी वह समान बनाती और बेचती हो, (ख) आपाकालीन परिस्तिथियों में, (ग) ऐसी मशीन के कलपुर्जे जो उसी मशीन की कारखानेदार कंपनी ही बनाती हो।

परंतु यहाँ तो खेल दूसरा ही चल रहा है, पत्र के अनुसार लगभग 300 मिलियन रुपय का सामान एक बोली लगाने वाली कम्पनी  यानि सिंगल बिडडर को ही दे दिया गया। पत्र और उसके साथ संलग्न तालिका से यह साफ़ पता चलता है कि इसमें अधिकांश सामान का आर्डर देने के बाद विभागों से यह पूँछा गया कि यह सामान उनके लिये कितना आवश्यक है। यह साफ़ है कि कुछ कंपनियों को लाभ पहुँचाने का काम किया गया, इसके पीछे मंशा क्या है कहना मुश्किल है। पत्र में यह भी आरोप है कि निदेशक महोदय ने नियुक्त होते हि खुद-ब-खुद खरीद विभाग के अध्यक्ष बन गये और अनुभवशाली कर्मियों को विभाग से हटा कर अपने प्रिय लोगों को स्थापित कर दिया और जब मंत्रालय में इस हरकत की शिकायत प्राप्त हुई तो महोदय को खुद अपने पसंदीदा विभाग से हटना पड़ा। शिकायतकर्ता ने पत्र के अंत में यह भी व्यंग किया है कि खरीद विभाग के प्रति अपने लालाइतपन को छुपाने के लिये निदेशक ने बाद में सभी विभागाध्यक्षों (लगभग 40) को खरीद विभाग का अध्यक्ष घोषित कर दिया, जो कि अपने आप में एक हस्यस्पद उदहारण है।

निदेशक की शिकायतों से तंग आकर शासन ने हाल ही में स्पेशल औडिट टींम को भेजा था। इस टीम में मंत्रालय की ओर से चार अफ़सरों को भेजा गया था, जिसका नोटिस मंत्रालय से 24/09/2020 को ही जारी किया गया था। जांच में 56 प्र्कार के कार्यालय के अभिलेखों को तैयार रखने के लिये कहा गया था, जिसमें खरीद, भर्ती, कंस्ट्रक्शन आदि के रिकार्ड शामिल थे। तीन हफ़ता कार्य करने के बाद यह टीम 16/10/20 को वापस मंत्रालय लौट गई। देखना यह है कि क्या यह औडिट टींम क्या पूर्ण ईमानदारी और निष्पक्षता से जाँच कर दोषियों को सामने ला पाऐगी, या फ़िर यह भी एक कवर-अप यानि कोढ ढकने का एक ज़रिया मात्र बन के रह जाऐगी।

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