इन दिनों भोपाल स्थित माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के बरखेड़ी में निर्माणाधीन परिसर में गौशाला निर्माण की योजना को लेकर सोशल मीडिया सहित मुख्य धारा की मीडिया में भी बवाल मचा हुआ है। मुझे यह समझ मे नहीं आता कि देश में इतने सारे महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहस करने की बजाय लोग किसी विश्वविद्यालय परिसर में गौशाला निर्माण को लेकर क्यों लाल-पीले हो रहे हैं? किसी भी विश्वविद्यालय में गौशाला की उपस्थिति कई मायनों में शिक्षा का एक अभिन्न अंग साबित हो सकता है। साथ ही यह संबंधित विश्वविद्यालय या संस्थान के लिए प्राकृतिक और परंपरागत संसाधनों के दोहन का विकल्प भी मुहैया करवा सकता है। उदाहरण के लिए मैं कुछ बिंदुओं पर प्रकाश डालना चाहूंगा:
26.8.17
25.8.17
निजता के अधिकार पर ऐतिहासिक फैसला
सुरेन्द्र पॉल
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अंततः देश की सर्वोच्च अदालत ने निजता (प्रायवेसी) के अधिकार को मौलिक अधिकार मान ही लिया। माननीय उच्चतम न्यायालय की नौ सदस्यीय खंडपीठ ने सर्वसम्मति से गुरुवार को सुनाये गये फैसले में निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना है। सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय निश्चित रूप से स्वागत योग्य है। यह ऐतिहासिक निर्णय सभी भारतीयों के जीवन को प्रभावित करेगा। इससे केंद्र सरकार ही नहीं बल्कि निजी कंपनियों के मनमाने रवैये पर कुछ हद तक अंकुश लगेगा। निजता के अंतर्गत किसी व्यक्ति विशेष से संबंधित वे तथ्य या घटनाएं आती हैं, जिसे कोई नागरिक व्यक्तिगत या अन्य किसी भी कारण से सार्वजनिक नहीं करना चाहता।
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अंततः देश की सर्वोच्च अदालत ने निजता (प्रायवेसी) के अधिकार को मौलिक अधिकार मान ही लिया। माननीय उच्चतम न्यायालय की नौ सदस्यीय खंडपीठ ने सर्वसम्मति से गुरुवार को सुनाये गये फैसले में निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना है। सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय निश्चित रूप से स्वागत योग्य है। यह ऐतिहासिक निर्णय सभी भारतीयों के जीवन को प्रभावित करेगा। इससे केंद्र सरकार ही नहीं बल्कि निजी कंपनियों के मनमाने रवैये पर कुछ हद तक अंकुश लगेगा। निजता के अंतर्गत किसी व्यक्ति विशेष से संबंधित वे तथ्य या घटनाएं आती हैं, जिसे कोई नागरिक व्यक्तिगत या अन्य किसी भी कारण से सार्वजनिक नहीं करना चाहता।
15.8.17
हिन्द वतन को लाल सलाम
स्वतंत्रता दिवस हम सबके लिए एक मंगल दिवस और महत्वपूर्ण पर्व है, जिसकी अमर कहानी इतिहास में स्वर्णिम अच्छरों से दर्ज है. यह वही दिन था, जब समूचा भारत लाल सलाम का जयघोष करते हुए भारत माता को ब्रिटिस हुकूमतों के चंगुल से आजाद कराया था. उनकी कुर्बानियों की वजह से ही आज हम सब आजादी से साँस लेते हुए भारत माँ की गोद में पल बढ़ रहें हैं. सन 1857 से 1947 तक कड़े संघर्षों के बाद आज हमारा राष्ट्र विश्व क्षितिज पर अपना परचम लहरा रहा है. इस इंकलाब की पहली चिंगारी ब्रिटिस सेना में काम करने वाले सैनिक मंगल पाण्ड़े ने जलायी थी, जो बाद में शोला बनकर देश में व्यापक क्रान्ति लायी और अग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया. क्रान्ति के समूचे राष्ट्र भक्तों को हम सब नमन करते हैं.
14.8.17
बच्चों की मौत के बाद गरमाई सियासत
अजय कुमार, लखनऊ
हिन्दुस्तान की सियासत का यह दुर्भाग्य है जो हमारे नेतागण हर मुद्दे को सियासी रंग देते हैं। समस्या कैसी भी हो, मुद्दा कोई भी हो, यहां हर बात में सियासत शुरू हो जाती है। चाहें जनहानि हो या फिर धनहानि ? चाहें देश की सुरक्षा से जुड़ा मसला हो या फिर देश के स्वभिमान की बात ? चाहेें अतीत की गलतियां हो या फिर वर्तमान की खामियां ? सब को हमारे सियासतदार राजनैतिक चोले से ढक देते हैं। बिना यह सोचे समझे कि इससे किसका कितना नुकसान होता है और किसको फायदा मिलता है। दुख की बात यह है कि सह सिलसिला आजादी के बाद से चला आ रहा है और आज तक बदस्तूर जारी है। बस फर्क इतना है कि कभी कोई सत्ता पर काबिज होता है तो कभी कोई, लेकिन जो आज विपक्ष में होता है वह पूरी बेर्शमी से अपना कल(अतीत) भूल जाता है। ऐसा ही कुछ गोरखपुर मेडिकल कालेज में काल के गाल में समा गये दर्जनों बच्चों के कथित ‘रहनुमा’ बनने वाले भी कर रहे हैं।
हिन्दुस्तान की सियासत का यह दुर्भाग्य है जो हमारे नेतागण हर मुद्दे को सियासी रंग देते हैं। समस्या कैसी भी हो, मुद्दा कोई भी हो, यहां हर बात में सियासत शुरू हो जाती है। चाहें जनहानि हो या फिर धनहानि ? चाहें देश की सुरक्षा से जुड़ा मसला हो या फिर देश के स्वभिमान की बात ? चाहेें अतीत की गलतियां हो या फिर वर्तमान की खामियां ? सब को हमारे सियासतदार राजनैतिक चोले से ढक देते हैं। बिना यह सोचे समझे कि इससे किसका कितना नुकसान होता है और किसको फायदा मिलता है। दुख की बात यह है कि सह सिलसिला आजादी के बाद से चला आ रहा है और आज तक बदस्तूर जारी है। बस फर्क इतना है कि कभी कोई सत्ता पर काबिज होता है तो कभी कोई, लेकिन जो आज विपक्ष में होता है वह पूरी बेर्शमी से अपना कल(अतीत) भूल जाता है। ऐसा ही कुछ गोरखपुर मेडिकल कालेज में काल के गाल में समा गये दर्जनों बच्चों के कथित ‘रहनुमा’ बनने वाले भी कर रहे हैं।
1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में मध्य भारत की प्रमुख सूत्रधार थीं वीरांगना अवंतीबाई लोधी
आज भी भारत की पवित्र भूमि ऐसे वीर-वीरांगनाओं की कहानियों से भरी पड़ी है जिन्होंने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से लेकर देश के आजाद होने तक भिन्न- भिन्न रूप में अपना अहम योगदान दिया। लेकिन भारतीय इतिहासकारों ने हमेशा से उन्हें नजरअंदाज किया है। देश में सरकारों या प्रमुख सामाजिक संगठनों द्वारा स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े हुए लोगों के जो कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं वो सिर्फ और सिर्फ कुछ प्रमुख स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के होते हैं। लेकिन बहुत से ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हैं जिनके अहम योगदान को न तो सरकारें याद करती हैं न ही समाज याद करता है। लेकिन उनका योगदान भी देश के अग्रणी श्रेणी में गिने जाने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों से कम नहीं है। जितना योगदान स्वतंत्रता संग्राम में देश के अग्रणी श्रेणी में गिने जाने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का था, उतना ही उन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का योगदान है जिनको हमेशा से इतिहासकारों ने अपनी कलम से वंचित और अछूत रखा है। भारत की पूर्वाग्रही लेखनी ने देश के बहुत से त्यागी, बलिदानियों, शहीदों और देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले वीर-वीरांगनाओं को भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास की पुस्तकों में उचित सम्मानपूर्ण स्थान नहीं दिया है। परन्तु आज भी इन वीर-वीरांगनाओं की शोर्यपूर्ण गाथाएं भारत की पवित्र भूमि पर गूंजती हैं और उनका शोर्यपूर्ण जीवन प्रत्येक भारतीय के जीवन को मार्गदर्शित करता है।
गोरखपुर के लिए आप सांसद ही ठीक थे योगी आदित्यनाथ!
अजय कुमार
NEW DELHI : योगी आदित्यनाथ का शहर गोरखपुर, जिसके चप्पे-चप्पे की जानकारी उन्हें सांसद रहते होती थी. उस योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनने की बाद गोरखपुर के अफसरों ने इस तरह से गुमराह कर दिया कि मेडिकल कॉलेज का दो दिन पहले ही दौरा करने वाले मुख्यमंत्री को सच दिखने ही नहीं दिया.
दो दिन पहले ही मेडिकल कॉलेज दौरे के दौरान जिम्मेदार लोगों ने सीएम योगी आदित्यनाथ को सबकुछ इस तरह ठीक-ठाक दिखा दिया कि उन्हें मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी की भनक तक नहीं लगी. जिसका परिणाम ये हुआ कि पांच दिन में 60 मासूमों की मौत हो गयी.
NEW DELHI : योगी आदित्यनाथ का शहर गोरखपुर, जिसके चप्पे-चप्पे की जानकारी उन्हें सांसद रहते होती थी. उस योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनने की बाद गोरखपुर के अफसरों ने इस तरह से गुमराह कर दिया कि मेडिकल कॉलेज का दो दिन पहले ही दौरा करने वाले मुख्यमंत्री को सच दिखने ही नहीं दिया.
दो दिन पहले ही मेडिकल कॉलेज दौरे के दौरान जिम्मेदार लोगों ने सीएम योगी आदित्यनाथ को सबकुछ इस तरह ठीक-ठाक दिखा दिया कि उन्हें मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी की भनक तक नहीं लगी. जिसका परिणाम ये हुआ कि पांच दिन में 60 मासूमों की मौत हो गयी.
एक और मां का बेटा हुआ एक औरत का शिकार
2012 बैच के आईएएस ऑफिसर और बक्सर के डीएम की अचानक आत्महत्या से उनके घर-परिवार सहित पूरा देश सदमे में है. ऐसा क्या हुआ जो देश की सबसे बड़ी परीक्षा पास करने वाला शख्स घर की परीक्षा में फेल हो गया और उसे आत्महत्या की तरफ मुड़ना पड़ा। सुसाइड करने से पहले मुकेश पांडेय ने अपने कई दोस्तों और रिश्तेदारों को एसएमएस कर सुसाइड करने की जानकारी दी। दोस्त उन्हें दिल्ली पुलिस की मदद से दिल्ली के मॉल्स में ढूंढ रहे थे लेकिन वो आईएएस को 'जिसकी' तलाश थी वो अभी तक उसके अकेलेपन और उसके दिमागी दबाव से अनजान थी ऐसी क्या परेशानी थी उस नौजवान अधिकारी को?.. ऐसी क्या टेंशन थी उसकी जो इतने उच्च पद पर बैठे होने के बाद भी उसे खाई जा रही थी। हम आम जिंदगी में आत्महत्या करने वाले को कायर, निकम्मा जाने क्या क्या कहते है लेकिन ये भी सच है हम कभी उस प्रेशर को नहीं माप सकते जो आत्महत्या वाले शख्स के दिलोदिमाग में होता है। हां, वो कायर ही था जिसने अपनी तीन माह की दुधमुंही बेटी तक का ख्याल नहीं आया। लाजमी है वो एक मर्द था इसीलिए उसके पास दिल नहीं था उसे प्यार,मोहब्बत,इंसानियत जैसे शब्दो से अनजान था हमारे समाज में एक आदमी को कुछ ऐसी ही परिभाषाओ से नवाजा जाता है।
स्वाधीनता दिवस पर आत्मावलोकन आवश्यक
स्वाधीनता दिवस एक बार फिर आत्मावलोकन का अवसर लेकर उपस्थित हुआ है। इसमें संदेह नहींे कि देश ने विगत सात दशकों में सामाजिक-आर्थिक उन्नयन के नए कीर्तिमान गढे़ हैं। शिक्षा, चिकित्सा, वाणिज्य, कृषि, रक्षा, परिवहन तकनीकि आदि सभी क्षेत्रों में विपुल विकास हुआ है, किन्तु परिमाणात्मक विकास के इस पश्चिमी माॅडल ने हमारी गुणात्मक भारतीयता को क्षत-विक्षत भी किया है। हमारी संतोष-वृत्ति, न्याय के प्रति हमारा प्रबल आग्रह, निर्बलों और दीन-दुखियों की सहायता के लिए समर्पित हमारा संकल्प, सामाजिक-राजनीतिक संदर्भों में वाक्संयम, धार्मिक जीवन में आडम्वर रहित उदारता और स्वदेश तथा स्वाभिमान के लिए संघर्ष की चेतना हमारे स्वातंत्र्योत्तर परिवेश में उत्तरोत्तर विरल हुई है। महात्मा गाँधी का ‘हिन्द स्वराज’ यांत्रिक प्रगति के अविचारित प्रयोग की भेंट चढ़ चुका है।
10.8.17
Poster of movie Sameer released
Director Dakxin Chhara's political thriller 'Sameer' is set to release on 15th of September. The film features Zeeshan Ayyub, Anjali Patil, Subrat Dutta, Seema Biswas and Chinmay Mandlekar in the lead roles.
योग परिषद् द्वारा योग दिवस पर 12.96 करोड़ खर्च
केंद्रीय योग और प्राकृतिक चिकित्सा अनुसन्धान परिषद्, नयी दिल्ली द्वारा आरटीआई एक्टिविस्ट डॉ नूतन ठाकुर को उपलब्ध करायी गयी सूचना के अनुसार परिषद् ने अब तक अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर कुल 12.96 करोड़ रुपये खर्च किये हैं. इनमे 4.89 करोड़ वर्ष 2015-16, 5.24 करोड़ वर्ष 2016-17 तथा 2.83 करोड़ वर्ष 2017-18 में 31 जुलाई 2017 तक खर्च हुए है.
5.8.17
जीवन का प्राकृतिक रंगमंच
हिंदी के विख्यात कवि हरिऔध ने लिखा है - प्रकृति अपरिमित ज्ञान का भंडार है । पत्ते - पत्ते में शिक्षापूर्ण पाठ है , परन्तु उनसे लाभ उठाने के लिए अनुभव आवश्यक है । मँगोलिक दृष्टि से भारत प्रकृति का हिंडोला है । प्रकृति के चित्र -विचित्र दृश्यों से हमारा मन लुब्ध हो उठता है । कभी वर्षा की रिमझिम फुहारों से धरती स्नेहासनाथ हो उठती है और मेघशावकों की क्रीड़ा और मयूर के नर्तन से मन पुलकित हो उठता है तो कभी हेमंत के निष्ठुर स्पर्श से फूलों के अधर नीले पड़ जाते है । बसंत की अल्हड़ता और मस्ती की मादक तरुणाई में आकाश और धरती का प्रांगण सिहरने लगता है । कभी ग्रीष्म के प्रचंड तप से नदी , नाले सभी सूख जाते है । इस प्रकार प्रकृति के विभिन्य रूपों और दृश्यों का सुन्दर चित्रपट हमें ऋतुओं के आवगमन के साथ स्पस्टतः दृष्टि गोचर होता है , प्रकृति अपने इन सौंदर्य प्रसाधनों के द्वारा हमें सन्देश देती है कि हम इस सौंदर्य का आनंद ले क्योकि वह सुख़ -दुःख कि सहचरी बनकर हमारे साथ -साथ रोती हंसती गाती रहती है । सृस्टि के विकास में सभी ऋतुओं का महत्वपूर्ण योगदान है । प्रकृति और मानव का सम्बन्ध युगों से है । भले ही मानव जीवन आज कृतिम हो गया है , किन्तु प्रकृति से अलग हो कर वह रह नहीं सकता ।
2019 के रण में फतह हेतु नरेन्द्र मोदी का नया शिगूफा
2022 में दरिद्रतामुक्त भारत का सपना 3022 में भी नहीं होने वाला साकार
गुवाहाटी : 'सन् 2014 के चुनाव अभियान के दौरान तथाकथित चोर-लुटेरों के विदेशी बैंकों में जमा काला धन लाकर हिंदुस्तान के एक-एक गरीब आदमी के बैंक खाते में 15-20 लाख रुपये जमा करवाने का शिगूफा छोड़कर लोगों को उल्लु बनाने वाले नरेन्द्र मोदी ने सन् 2022 तक भारत को दरिद्रतामुक्त करने का नारा देकर देश की जनता को 2019 में भी उल्लु बनाकर सत्ता हथियाने के लिए नया शिगुफा छोड़ दिया है। मल्टी नेशनल कंपनियों की तरह प्रचार तथा चकाचक पैकिंग के बल पर घटिया माल भी अच्छे दामों पर बेचने की कला में माहिर नरेन्द्र मोदी देश की जनता को पुन: उल्लु बना पाते हैं या नहीं यह तो वक्त ही बतायेगा, लेकिन सन् 2022 में तो क्या 3022 में भी इस देश को दरिद्रतामुक्त करना असंभव है, यह बात दावे का साथ कही जा सकती है।
गुवाहाटी : 'सन् 2014 के चुनाव अभियान के दौरान तथाकथित चोर-लुटेरों के विदेशी बैंकों में जमा काला धन लाकर हिंदुस्तान के एक-एक गरीब आदमी के बैंक खाते में 15-20 लाख रुपये जमा करवाने का शिगूफा छोड़कर लोगों को उल्लु बनाने वाले नरेन्द्र मोदी ने सन् 2022 तक भारत को दरिद्रतामुक्त करने का नारा देकर देश की जनता को 2019 में भी उल्लु बनाकर सत्ता हथियाने के लिए नया शिगुफा छोड़ दिया है। मल्टी नेशनल कंपनियों की तरह प्रचार तथा चकाचक पैकिंग के बल पर घटिया माल भी अच्छे दामों पर बेचने की कला में माहिर नरेन्द्र मोदी देश की जनता को पुन: उल्लु बना पाते हैं या नहीं यह तो वक्त ही बतायेगा, लेकिन सन् 2022 में तो क्या 3022 में भी इस देश को दरिद्रतामुक्त करना असंभव है, यह बात दावे का साथ कही जा सकती है।