31.12.08
हैप्पी न्यू ईयर
New Year Cards by ScrapU |
Fresh Air….
Fresh Idea….
Fresh Talent….
Fresh Energy….
I wish U to have a …..
Sweetest Sunday,
Marvellous Monday,
Tasty Tuesday,
Wonderful Wednesday,
Thankful Thursday,
Friendly Friday,
Successful Saturday.
Have a great Year.
HAPPY NEW YEAR
आंग्ल नव वर्ष 2009 की शुभकामनायें
शशिकान्त अव्सथी
कानपुर ।
ें
चला,,,,, मैं चला,,,,,,,,,,,
मैं साल 2008 हूँ, चौंक गए न ? मैंने आप सभी के साथ काफी वक्त गुजारा तो सोचा कि मैंने इस दुनिया को किस तरह समझा, इस राज को आपके साथ बांटता चलूँ ! चलते-चलते क्यों न अपनों से बात कर ली जाए, जिस तरह दुनिया का नियम है जो आया है, उसे जाना है ! मेरा भी वक्त ख़तम हो चला है और मुझे इसे 'एक्सेप्ट' करने में कोई 'प्रॉब्लम' भी नहीं है ! वैसे भी 'लाइफ' में जो भी जैसे मिले, अगर उसे वैसे ही 'एक्सेप्ट' कर लिया जाए तो जिंदगी थोड़ी आसान हो जाती है ! ये है मेरा पहला सबक जो मैं आपके साथ बांटना चाहता हूँ ! मुझे याद है जब मैं आया था तो लोगों ने तरह-तरह से खुशियाँ मनाकर मेरा स्वागत किया था ! वे मानते थे कि मैं उनके जीवन में खुशियों की बहारें लेकर आऊंगा ! कुछ की उम्मीदें पूरी हुयीं, कुछ की उम्मीदें टूटीं, कुछ को मायूसी हाथ लगी और अब उम्मीदों का सेहरा मेरे छोटे भाई साल 2009 पर होगा ! जाते साल का दूसरा सबक किसी से 'एक्सपेक्टेशन' मत रखिये ! क्योंकि अगर 'एक्सपेक्टेशन' पूरी नहीं होगी तो परेशानी होगी !
दिन तो इसी तरह बीतते जायेंगे ! साल आते रहेंगे, जाते रहेंगे और हर बार लोग न्यू ईयर से उम्मीदें लगाते रहेंगे ! यही उम्मीदें हमें जीने और आगे बढ़ने का 'मोटिवेशन' देती हैं, लेकिन कोरी उम्मीदों से 'लाइफ' न तो बदलती है और न ही आगे बढ़ती है ! इसके लिए 'एफर्ट' ख़ुद ही करने पड़ते हैं ! तीसरा सबक 'सक्सेस' के लिए 'डेडिकेशन' के साथ-साथ 'कन्सिसटेंसी' भी जरूरी है !
मैंने पिछले एक साल में जिंदगी के कई मौसम देखे ! जिंदगी कहीं गर्मी की धूप की तरह लगी, कभी बरसात की फुहार की तरह सुहानी और कभी सर्दी की ठंडी रातों की तरह सर्द ! मैंने होली, ईद, और दिवाली में सुख और उल्लास के पल देखे, वहीँ मुम्बई, जयपुर जैसे 'ब्लास्ट' में इंसानी हैवानियत के साथ दुःख के पलों का सामना किया, लेकिन मैं चलता रहा बीती बातों को छोड़ते हुए क्योंकि चलना मेरी नियति है ! तो मेरा चौथा सबक - परेशानियों की परवाह किए बिना अपना काम करते रहें, क्योंकि कोई इंसान बड़ा नहीं होता, महान होती हैं चुनौतियाँ और जब आदमी चुनौतियाँ स्वीकार करे तभी वो महान कहलाता है !
साल के सारे दिन एक जैसे ही होते हैं, हर सुबह सूरज निकलता है और शाम को डूब जाता है, बस अगर हम जिंदगी के प्रति ऐसा नजरिया रख पायें तो हमें खुशियाँ मनाने के लिए नए साल का इन्तजार नहीं करना पड़ेगा, हर दिन खुशनुमा होगा ! आपसे वादा करिए कि नया साल नई बातों, नई सोच का, कुछ कर गुजरने का साल होना चाहिए !
आप सबके साथ बिताये पलों की मधुर स्मृतियों के साथ मैं जा रहा हूँ, फिर कभी न आने के लिए ! जाते-जाते आखिरी सबक यह कि जिंदगी को जी भरकर जी लीजिये !
शुभकामनाओं के साथ हमेशा के लिए विदा !
सिर्फ आपका
साल 2008
[प्रस्तुति - आई नेक्स्ट ]
महिला पत्रकारों से उप्रस्त्रपति की मुलाकात
साल २००८ कोल्कता और में
कोल्कता का वो निम्ताला घाट याद आया जहाँ डोम के बच्चे किसी धनि सेठ की अर्थी देख नाचने लगते थे..... आज अच्छा खाना जो मिलेगा उन्हें।
हावडा स्टेशन का राजू याद आया जो हुगली के घाट पर पीपल के नीचे रहता है , स्टेशन पर बोतल चुनता है, पानी के बोतल का आठ आना और कोल्दिंक्स के बोतल का चार आना, मोटी वाली आंटी इतना ही देती है ............बडे शान से बताता है कि 8 और 9 नम्बर प्लेटफोर्म उसका है ............... आगे बोलता है अभी 12 का हूँ न 21 का होते-होते 1 से 23 नम्बर प्लेटफोर्म पर बस वोही बोटेल चुनेगा।
टोलीगंज के मंटू दा याद आए जो सिंगुर काम करने गए थे ...... वापस लोट आए ........ बोलते हैं हस्ते हुए ...काजटा पावा जाबे.....57 के मंटू दा आपनी मुस्कराहट में दर्द छिपाने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं। पाँच कुवारी बेटिया, तीन की उम्र 30 के ऊपर है।
आज जब रात को हम सभी न्यूज़ रूम से साल भर की खबरे देख रहे होंगे तो हमे वो डोम के बच्चे, वो स्टेशन का राजू, टोलीगंज के मंटू दा नही दिखेंगे।
HAPPY NEW इयर नव वर्ष की शुभकामनाएं
हम प्रतिवर्ष लोगों को HAPPY NEW YEAR कह कर अपनी शुभकामनाएं तो दे देते हैं, परन्तु उन्हें वास्तविक रूप से HAPPY(खुश) रहने का राज नहीं बताते। क्योंकि जब तक वह HAPPY(खुश) नहीं रहेगा तब तक HAPPY(खुश) रहने की शुभकामनाएं देना बेमानी ही रहेगी। मेरे विचार से तो जब तक हम अपनी अपेक्षाओं और आवश्यकताओं को किसी पर थोपते रहेंगे तथा अपनी अपेक्षाएं सीमित नही करेंगे, कम नहीं करेंगे। तब तक हम वास्तविक रूप से HAPPY(खुश) नहीं रह सकते।
आओ ! इस वर्ष हम संकल्प लें कि इस वर्ष हम अपनी कुछ आवश्यकताओं (Requirments/Needs) और अपेक्षाओं (Expectations) में कमी लाएंगे। तभी हम वास्तविक रूप से HAPPY(खुश) रह पाएंगे। इसी संकल्प के साथ हम एक-दूसरे को नव वर्ष की शुभकामना दें-
HAAPY NEW YEAR
वर्ष 2008 के संदेश
वर्ष 2008 के सबसे महत्वपूर्ण संदेश-
1 सत्य बोलो, प्रिय बोलो; किंतु ऐसा अप्रिय सत्य कदापि न बोलो जो हमारे माननीय जन-प्रतिनिधियों को पसंद न हो। चाहे आप किसी शहीद के पिता, पत्नी, पुत्र या स्वयं कोई पीड़ित ही क्यों न हों। क्योंकि इससे उनकी संवेदना आहत होती है।
2 आजादी की खुशफहमी दिल से निकल दें,क्योंकि सिर्फ़ आपके अंगूठे ही आजाद हैं, वोटिंग मशीन का बटन दबाएँ या दिखाएँ ।
3 एकता में बल है, इसलिए धर्म, संप्रदाय, वर्गों से ऊपर उठ 'मानवता परमो धर्मः ' के सिद्धांत को अपनाएं।
(मेरी भावनाओं से किसी को ठेस पहुँची हो तो अग्रिम खेद व्यक्त करता हूँ। )
नए साल पर क्या?
हर किसी के चेहरे पर भय साफ झलकता है
एक आम भारतीय को इतना डरा और सहमा हुआ कभी नहीं देखा। बडे शहरों में घटनाएं होती है लेकिन छोटे शहर दर्शक बने रहते हैं उन्हें प्रभाव नहीं पडता लेकिन इस बार ऐसा नहीं है
बीकानेर के पास जयपुर और अजमेर निशाने पर आ गए हैं तो बीकानेर में भी इसका खौफ दिखाई देने लगा है।
वैसे भी यह बॉर्डर पर बसा शहर है। बीएसएफ की सरगर्मियां कुछ निश्चिंतता दे जाती हैं लेकिन अनजाने का भय बना रहता है। अलाव पर, पाटों पर, दफ्तरों में हर जगह आतंकवादी और पाकिस्तान की चर्चाएं हैं। निजी संकल्प कहीं सुनाई ही नहीं देता।
उम्मीद करता हूं आठ के ठाठ तो नहीं हुए नौ के मजे शायद हो जाएं। देश में अमन और शांति बढ़े और हां, विश्व समुदाय में दबदबा भी...
30.12.08
भाड़ में जाए मुंबई कांड हम तो झूम के मनाएंगे नया साल
कारगिल में देश के वीर सपूत मारे गए किस राजनेता ने उत्सव छोड़ा ? बिहार में हर साल हजारो लोग बेघर हो जाते हैं। त्रासदी का शिकार होते हैं किसने उत्सव छोड़ा ? जयपुर , अक्षरधाम, दिल्ली, मालेगांव इसे हजारो बम ब्लास्ट और मारे जाने वाले लाखो आम व गरीव आदमी और कोई उत्सव नही रुका। जिन्दगी ज्यो कि त्यों सामान्य रही। फ़िर इस हमले को क्यो इतना ख़ास बनाया जा रहा है। सिर्फ़ इसलिए क्योकि इसमे शिकार होने वाले सारे लोग पूजीपति है। देश के एक धनाड्य व्यक्ति के होटल में हमला हुआ। कुछ अधिकारी मारे गए। सिर्फ़ इसलिए ? आख़िर अधिकारी और सिपाई कि जिन्दी में भी कोई अन्तर है ?
यही कारण है कि हमने तो झूम के नया साल मानाने की ठानी है। ठीक वेसे ही जैसे पहले कि घटनायों के बाद भी मानते रहे हैं। मैं और सारा देश। मेरे लिए आम और ख़ास बराबर हैं। जिन्दगी की कीमत एक है। किसी की भी हो। चाहे वह हेमंत करकरे हो या मूमफली बेचने वाला कोई गरीव या कोई अन्य सिपाई। हमारे लिए बिहार के लोग भी उतने ही ख़ास है जितने मुंबई में मारे गए पूजीपति। जिन पर हुए पहले हमले में सबकी हवा निकल गई। कल तक आम लोगो के चिथड़े हवा में लहराया करते थे तो किसी के कानो में जू नही रेगती थी ? किसी को परवाह नही होती थी। पर अब होश फाकता हैं। जश्न न मानाने कि बातें कि जा रही है। लेकिन हम तो पूरे उस्तव के रूप में मनायेगे नया साल। जैसे पिछली हर घटना को भूलकर कमीनेपन के साथ मानते रहे है। यह सोचकर कि हमारे सारे परिजन बच गए हैं....?
राहुल कुमार
भुलाए नहीं भूलेगा बीता वर्ष
आखिर सेंसेक्स इतना तेजी से क्यों बढ़ रहा है। जब सेंसेक्स 21 हजार के स्तर पर पहुंचा तो हमारे बाजार के जानकारों ने बिना सोचे समझे भविष्यवाणी कर दी कि अब सेंसेक्स की पकड़ से 25 हजार भी दूर नहीं है।
पर एक ऐसी आंधी आई कि सेंसेक्स का कोई स्तर ही नहीं रहा जनवरी 2008 से गिरावट का शुरू हुआ ये क्रम कब खत्म होगा इसकी कोई गारंटी नहीं ले रहा है। पिछले एक साल में जितने पूर्वानुमान लगाए गए वह बुरी तरह से लाप शो ही साबित हुए हैं। 8 जनवरी 2008 को सेंसेक्स की सबसे लंबी छलांग उस समय देखने को मिली जब वह 21 हजार के रिकार्ड स्तर पर पहुंचा। 6 जुलाई 2007 में जब सेंसेक्स ने 15 हजार की ऊंचाई छुई थी उस समय किसी ने यह अंदाजा नहीं लगाया था कि इस साल के बाकी बचे महीने भी सेंसेक्स की ऊंचाई के रिकार्ड बनाने जा रहे हैं। 11 फरवरी 2000 को सेंसेक्स ने 6000 की ऊंचाई पर कदम रखा था। इसके बाद उसे 7000 तक पहुंचने में लगभग पांच वर्ष लग गए और 11 जून 2005 को वह दिन आया जब सेंसेक्स सात हजार के पार हुआ। पर 2007 के कुछ महीनों में ही सेंसेक्स ने 6 हजार प्वाइंट कमाकर 21 हजार का उच्च स्तर छू लिया। पर हुआ वही जो नैतिक शिक्षा में पढ़ाया गया है कि धीरे-धीरे मिली सफलता ही अधिक दिनों तक कायम रहती है। 21 जनवरी 2008 को सेंसेक्स में ऐसी आंधी है जिसके चलते सभी भविष्यवक्ताओं और बाजार के जानकारों का पूर्वानुमान चकनाचूर हो गया और बाजार 1400 प्वाइंट गिरकर 17,605 पर आ गया। इसकेपहले गिरावट शुरू हुई थी पर वह बहुत छोटी थी। पर इसके बाद इस गिरावट ने थमने का नाम नहीं लिया और निचले स्तर की ओर लगातार बढ़ता गया। इसी बीच ग्लोबल क्राइसिस का प्रभाव शुरू हुआ और सारा असर सेंसेक्स पर दिखा।
पर इसके बाद भी बाजार के विशेषज्ञों ने अपने पूर्वानुमान को लगाने का काम नहीं छोड़ा और यहां तक भविष्यवाणी कर दी कि माकेüट छह हजार का निचला स्तर छुएगा। 26 नवंबर को मुंबई आतंकी हमलों के बाद एक और पूर्वानुमान समाचारों के माध्यम से लोगों तक आया कि इस हमले से सेंसेक्स में रिकार्ड गिरावट आएगी। पर इन सभी पूर्वानुमानों के विपरीत बाजार उन हमलों के बाद से अधिक मजबूत स्थिति में कारोबार कर रहा है। भारत की तेरह साल की सबसे महंगाई की दर अगस्त के 13 प्रतिशत से गिरकर मध्य दिसंबर तक 8 के भी नीचे आ गई है।
अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के रंग को देखकर अब तक हर कोई हैरान है। किसी साल में पहली बार अब तक ऐसा हुआ है कि कच्चे तेल की कीमत जुलाई में 147 डालर प्रति बैरल तक पहुंच गई और दिसंबर 2008 के मध्य तक हमने 37 डालर प्रति बैरल का इसका निचला स्तर देखा। इस तरह का उतार-चढ़ाव पहली बार देखने को मिल रहा है। कच्चे तेल की कीमतों में अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कमी को देखते हुए सरकार इसका फायदा आम लोगों को देने का कार्यक्रम बना रही हैं। इसे देखकर अब 2008 को गाली दें इसका शुक्रिया अदा करें यह समझ में नहीं आ रहा है। क्योंकि तेल की कीमतों के कम होने से लोगों को बड़ी राहत मिली है और आगे और भी मिलने जा रही है।
मैं कोई पूर्वानुमान करने में भरोसा नहीं करता पर हां जिस तरह से कुछ और भविष्यवाणियां की जा रही हैं उसके मुताबिक अभी हम मंदी के दौर से नहीं गुजरने में पूरा का पूरा 2009 लेंगे। क्योंकि अभी पूरी दुनिया मंदी के चपेट में है। पर मंदी से सबसे अधिक मुझे जो भारत में प्रभावित लगता है वह है यहां का निर्यातक कारोबार, आज की तिथि में हमारे देश के कपड़े और गहने विश्व के उत्पादों का मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं। क्योंकि हमारे अधिकतर उत्पादों की खपत दुनिया के विकासशील देशों में होती है और वहां केलोगों ने अपने खर्चे सीमित कर लिए हैं। अधिकतर लोग अब कपड़े और गहने पर खर्च करने के बजाय अपने खाने और बच्चों की पढ़ाई पर खर्च कर रहे हैं। 2008 वर्ष केइसी रंग को हम नहीं भुला पाएंगे क्योंकि इसे हम ना बुरा कह सकते हैं ना भला कह सकते हैं न ही इसमें किसी अध्ययन के बाद किया गया पूर्वानुमान ही सही निकला।
संत- महात्मा करते क्या हैं?
विनय बिहारी सिंह
कई मित्रों ने सवाल किया है कि संत- महात्मा करते क्या हैं? वे समाज का भला तो करते नहीं? आज इसी पर विचार किया जाए। लेकिन यहां उन कथित बाबाओं, संतों वगैरह की बात नहीं हो रही जो धर्म या आध्यात्म को धन और ख्याति के बाजार में उतरने की सीढ़ी मानते हैं। उनकी संख्या आज बहुत ज्यादा हो चली है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि धर्म, अध्यात्म या संसार के सभी धर्म ग्रंथ व्यर्थ हैं। आज भी इन धर्म ग्रंथों की प्रासंगिकता है। यहां उनकी बात हो रही है जो परमार्थ के लिए संत हैं या बीते समय में रहे हैं।
-वृक्ष कबहुं न फल भखै, नदी न संचै नीर।
परमारथ के कारने, साधुन धरा शरीर।।
(वृक्ष कभी अपना फल नहीं खाता, न ही नदी अपना जल संचित करती है। साधु परमार्थ के कारण ही शरीर धारण करता है)।
इससे तो साफ हो गया कि साधु- संतों का काम क्या है। आध्यात्म तो विग्यान है (तकनीकी कारणों से ग्य ऐसे ही लिख पा रहा हूं)। हमारे दिमाग में १०० बिलियन न्यूरांस होती हैं। जब हम नींद में होते हैं इनमें से ज्यादातर सुषुप्ता अवस्था में होती हैं। लेकिन ज्योंही हम जग जाते हैं, ये सक्रिय हो जाती हैं। जागते ही हमारा दिमाग चारो तरफ दौड़ने लगता है। सच्चे साधु- संतों ने हमें सिखाया है कि दिमाग को कैसे शांत रख सकते हैं। आइंस्टाइन ने हमें बताया था- इनर्जी इज इक्वल टू मैटर। यानी पदार्थ को ऊर्जा में बदला जा सकता है। इसी तरह ऊर्जा को भी पदार्थ में बदला जा सकता है। फिर आइंस्टाइन ने ही कहा- अगर किसी ऊर्जा को माइनस २७३ डिग्री सेल्सियस तक ले जाया जाए तो वह जिरो इनर्जी यानी ऊर्जा विहीन की स्थिति होगी। इसे ही हम टोटल केल्विन स्टेट कहते हैं। ध्यान या मेडिटेशन के जरिए, हम इसी टोटल केल्विन स्टेट तक पहुंचते हैं। तब हमारा मन एकाग्रचित्त हो जाता है। संत- महात्मा हमें इसी टोटल केल्विन स्टेट तक पहुंचने का वैग्यानिक तरीका बताते थे। इससे क्या फायदा होता है? इसे बताने की जरूरत है क्या? मन जब शांत रहेगा तो हमारा दिमाग ज्यादा रचनात्मक होगा। झगड़ा- फसाद औऱ तनाव से मुक्त होने का तरीका साधु- संत पैसा लेकर नहीं बताते थे। वे तो इसे मुफ्त में बांटते थे। व्यक्ति से ही तो समाज, देश औऱ दुनिया बनती है।
अमेरिका के सामने कब तक रोओगे ?
फिर करेंगे नौकरी फिर लाएंगे बंदूक
29.12.08
शुभ अशुभ का चक्रव्यूह
गंध बाबा
याचना नही अब रण होगा
संघर्ष बड़ा भीषण होगा।
अब तक तो सहते आए हैं ,
अब और नही सह पाएंगे ,
हिंसा से अब तक दूर रहे,
अब और नही रह पायेंगे
मारेंगे या मर जायेंगे ,
जन जन का ये ही प्रण होगा।
याचना नही अब रण होगा ,
संघर्ष बड़ा भीषण होगा।
हमने देखें हैं आसमान से
टूट के गिरते तारों को,
लुटती अस्मत माताओं की,
यतीम बच्चे बेचारों को,
असहाय नही अब द्रौपदी भी
अब न ही चीर हरण होगा।
याचना नही अब रण होगा,
संघर्ष बड़ा भीषण होगा।
आतंक की आंधी के समक्ष
उम्मीद के दिए जलाये हैं,
तुफानो से लड़ने के लिए
सीना फौलादी लाये हैं,
भारत माँ की पवन भूमि पर
फिर से जनगनमन होगा।
याचना नही अब रण होगा,
संघर्ष बड़ा भीषण होगा।
अब होश कीजिये !!!
साला चोर कहीं का...मारो इसको/इसकी..कमीना शब्दचोर
09224496555, मेरा ई-मेल rudrakshanathshrivastava7@gmail.com , मेरा ब्लाग - http://aayushved.blogspot.com/
जितनी गालियां चाहें दे/प्यार देना चाहें दे सकते है मुकुन्द ने जो करा उसके लिए उसको इतनी गालियां दीजिये कि आप द्वारा दी गयी गालियों को संग्रह कर एक नयी किताब प्रकाशित करा सके
आत्मन अंकित ने जो लिखा वह अंग्रेजी में है तो समझना कठिन है आशा है अगली बार वे हिंदी में लिखेंगे तो मुझ देसी पिल्ले की समझ में आ सकेगा और रही बात बेनामी, अनामी, गुमनामी की तो आपको बस इतना बताना था कि कम से कम जो खुल कर गालियां दे पाने का साहस था, लेकिन ध्यान रहे गालियां मौलिक हों मादर-फादर छाप परम्परागत गालियों को हमने कापीराइट करा लिया है अतः उन्हें प्रयोग नहीं करें:)
जय जय भड़ास
28.12.08
हे 2009, मेरी 2008 की बुराइयों को भूल जाना, अच्छाइयों को ही आगे बढ़ाना......उर्फ आइए खुद के दिल में झांकें
-----------------------
हिन्दी ब्लागरी की शुरूआत कोई पुरानी घटना नहीं है. यह ताजा तरीन बात है. मैं आज कुछ आधुनिक तकनीकों पर काम करता हूं. विस्फोट वेबसाईट मैनेज करता हूं और कुछ ऐसी तकनीकों पर थोड़ी बहुत पकड़ बन गयी है जिसके बारे में आज से साल डेढ़ साल पहले तक सोच भी नहीं सकता था. यह सब ब्लागरी की देन है. ब्लागरों का सहयोग है. लेकिन पिछले डेढ़ साल में ब्लागिंग की पृष्ठभूमि में मैं देख रहा हूं कि एक और व्यक्ति ने यह प्रयोग किया है. वो हैं यशवंत सिंह. भड़ास ब्लाग के माडरेटर. अब हिन्दी के अच्छे खासे चलनेवाले मीडिया पोर्टल भड़ास 4 मीडिया के संपादक. उन्होंने जुमला पर काम किया और मैंने वीवो पर. मुझे याद है यशवंत सिंह कहने लगे कि गुरू मेरा पोर्टल बना दो. हम लोग मिलकर बहुत काम कर सकते हैं. मैंने मना कर दिया. मैंने कहा कि मैं रास्ता तो बता सकता हूं लेकिन आपके लिए पोर्टल डिजाईनिंग का काम नहीं कर सकता. मैं चाहता हूं आप खुद जूझिए. लड़िए. हो सकता है आप जीत जाएं और यह भी हो सकता है कि आप हार जाएं. लेकिन जो भी हो, करना आपको ही होगा. मैं यशवंत सिंह से इसलिए भी प्रभावित हूं कि ...........Read More
---------------------------------
अगर आपने Read More पर क्लिक कर संजय जी के ब्लाग पर पूरा पढ़ लिया तो आगे बढ़ते हैं। मेरे लिए निजी तौर पर 2008 बेहद भयानक उतार-चढ़ावों वाला रहा। इस साल मैंने खुद को दुनिया के सामने विशुद्ध 24 कैरेट वाला खलनायक बना पाया तो साल बीतते बीतते एक नायक की तरह लोग मुझे सम्मान देने लगे। इन दो विपरीत ध्रुवों की सवारी करवाना, वर्ष 2008 की देन है। वैसे, ज्योतिष में मेरा विश्वास बहुत ज्यादा तो नहीं है लेकिन इलाहाबाद विश्वविद्यालय में शौकिया तौर पर ज्योतिष की जो पढ़ाई की है, अंक ज्योतिष की और हस्त ज्योतिष की, उसके आधार पर मैंने अपने बारे में कुछ भ्रांतियां बना रखी हैं। जैसे, एक तो ये कि मेरा जन्मांक आठ है और मूलांक 9 इसलिए ये दोनों अंक मेरे व्यक्तित्व में शामिल हैं और यही तकनीक, कंटेंट, नेतृत्व, अच्छे-बुरे आदि को करवाते रहते हैं। अंक ज्योतिष के थोड़े भी जानकार हैं उन्हें पता होगा कि आठ और नौ अंक अलग अलग गुण-अवगुण वाले अंक होते हैं, और अगर ये दोनों किसी के व्यक्तित्व में समाहित हैं तो वो फ्रस्टेट तो कुछ समय के लिए हो सकता है लेकिन हार नहीं मान सकता। दूसरे, हस्त ज्योतिष के मुताबिक मेरा भाग्य बहुत अच्छा नहीं है लेकिन माइंड लाइन ने हथेली के इस पार से उस पार तक जो विभाजनकारी रेखा खींच रखी है उससे पता चलता है कि खोपड़िया में उम्दा किस्म की खुराफातें चलती-पनपती रहेंगी और जीने-खाने, नाम कमाने और बदनाम होने भर का माल-माद्दा मिलता रहेगा।
लेकिन दोस्तों, ज्योतिष तो एक बहाना होता है। असल चीज तो कर्म ही है। बुरा किया तो बुरा पाओगे, अच्छा किया तो अच्छा पाओगे वाली कहावत अब इस दुनिया में भले कम लागू हो लेकिन है ये सौ फीसदी सच। हां, कई बार आंखों देखा जो होता है वो झूठा साबित होता है और कई बार जो कानों सुना होता है वो भी बिलकुल बकवास साबित होता है। बावजूद इसके, जो आप अंदर से खुद होते हैं और खुद को जो आप समझते हैं, उसे दुनिया के सामने भले न आप प्रकट करें या प्रकट करें तो दुनिया भले ही उसे सही या झूठ माने, ये अंदर और अंतस की जो मेटल, मूल है वो ही आपको गाइड करने और आगे-पीछे ले जाने के लिए जिम्मेदार होता है। 2008 की अच्छाइयों-बुराइयों से निकलकर, संजय भाई ने उपर जो बात कही है उस पर आते हैं क्योंकि उसी में मेरे लिए वर्ष 2009 के वादे-इरादे भी छिपे हैं।
हम हिंदी पट्टी वाले, जो बचपन से, पैदा होते ही, नोकरी करने के लिए सिखाए-बनाए-तैयार किए जाते हैं, 2009 में क्यों नहीं सोचें कि हम पैदा ही हुए हैं मालिक बनने के लिए। हम क्यों बने-बनाए मालिकों के नौकर बनें। हम क्यों नहीं मालिक बनने की रेस में शामिल हों। जाहिर है, इसके लिए हमें न सिर्फ अपने माइंड सेट में भयंकर बदलाव लाने होंगे बल्कि खुद को इसके अनुरूप तैयार करना होगा और कंटेंट के साथ-साथ तकनीक, ब्रांड, मार्केट, बिजनेस, फाइनेंस आदि की बुनियादी चीजों को समझना होगा। ये शब्द देखने में तो लगते काफी बड़े बड़े हैं लेकिन असल में ये हैं किसी मुर्गे जैसे, जिसे हम मारकर अक्सर खा जाते हैं। या नहीं खाते तो दौड़ाकर पकड़ लेने की क्षमता रखते हैं। तो ये जो बड़े बड़े शब्द दिक्खे हैं, इन्हें दौड़ाकर पकड़ा जा सकता है। हां, ये कतई जरूरी नहीं है कि आप मालिक बनने के लिए हिंदी को छोड़ें, अपनी चाल-ढाल या स्टाइल बदलें, या अच्छे अच्छे कपड़े पहनें। आपको केवल एक चीज गांठ बांधनी पड़ेगी, मुश्किलें चाहें जितनी आएंगी, पीछे नहीं हटेंगे, सीखने से परहेज नहीं करेंगे, झुकेंगे लेकिन उतना ही जितने से दिल पर कोई बोझ न आ पाए।
मैंने 2008 में इरादा करके 40 हजार रुपये की महीने की नौकरी से इस्तीफा दिया और दो प्रयोगों पर काम शुरू किया। एक ग्रामीण भारत के लिए मीडिया मिशन का प्रोजेक्ट था और दूसरा हिंदी मीडिया की खबरों के लिए प्रोजेक्ट। पहला प्रोजेक्ट शुरू हुए कुछ ही समय हुआ कि समझ में आ गया कि इसे करने के लिए एक व्यवस्थित टीम और आफिस का होना जरूरी है लेकिन मेरे पास तो दोनों में से कुछ भी नहीं है क्योंकि इन दोनों चीजों के लिए पैसा होना चाहिए जो मेरे पास बिलकुल नहीं था। मेरे पास था तो केवल एक महीने का अग्रिम वेतन जिसे कंपनी ने नोटिस पीरियड के दौरान का वेतन ससम्मान दिया था। इसी एक महीने के अग्रिम वेतन से एक लैपटाप खरीदा, तीन साइट डिजाइन कराईं और जुट गया काम में। मुश्किलें इतनी आईं कि अगर उनपर लिखना शुरू करूं तो शायद एक मोटी किताब तैयार हो जाए, और इसे भविष्य में लिखूंगा भी लेकिन अभी फिलहाल इतना कि कई कई दिनों तक पाकेट में एक रुपये न होने के बावजूद उधारी मांग मांग कर मिशन में डटा रहा। अपने 14 सालों के मीडिया के विभिन्न तरह के अनुभवों और छह महीने तक मार्केटिंग के अनुभवों और एक साल के ब्लागिंग के अनुभवों को निचोड़कर एक में पिरो दिया और इन सभी फंडों-अनुभवों का व्यवस्थित इस्तेमाल करता रहा। आज मैं कह सकता हूं कि छह महीने पहले चालीस हजार रुपये की नौकरी करने वाला यशवंत अब एक लाख रुपये महीने का व्यय केवल भड़ास4मीडिया के आफिस के संचालन, स्टाफ की सेलरी व अऩ्य खर्चों में खर्च करता है और ये पैसा न तो कहीं से उधार लिया गया है और न ही कहीं से उगाही करके इकट्ठा किया गया है। ये सब भड़ास4मीडिया नामक कंपनी के एकाउंट में विभिन्न कंपनियों द्वारा विज्ञापन, ब्रांडिंग आदि के मद में लिखित में किया गया भुगतान है जिसके कागजात हमारे पास मौजूद हैं।
मेरे कहने का मतलब यह कतई नहीं है कि मैं अब सफल हो गया हूं, महान हो गया हूं या मालिक बन गया हूं। छह महीने के वक्त में अगर कोई ऐसा मानने लगे तो उससे बड़ा उल्लू का पट्ठा कोई नही हो सकता लेकिन मैं ये बातें इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि मुझे पता है अपन के देश में मेरे जैसे हजारों लाखों नौजवान हैं जो बेहद प्रतिभाशील हैं और कुछ भी कर गुजरने का माद्दा रखते हैं लेकिन उन्हें कोई गाइड करन वाला नहीं है, उन्हें कोई इन्सपायर करने वाला नहीं है, उन्हें कोई दिशा देने वाला नहीं है क्योंकि जितने भी मालिक लोग होते हैं वो अपने सक्सेस मंत्राज छिपाकर रखते हैं। उसे कतई डिस्क्लोज नहीं करते। पर मैं खुद को और भड़ास4मीडिया को हिंदी वालों के प्यार का देन मानता हूं इसलिए उनका कर्ज मेरे पर है और रहेगा। इसे मैं अपने जैसे लोगों को तैयार करके ही चुकाने की कोशिश कर सकता हूं।
वर्ष 2009 में अगर जिंदा रहा (...बहुतों से पंगा लिया है इसलिए ये संभव है कि कोई बददुआ मुझे जीने न दे:) तो मेरा अपने लिए जो इरादा है वो इस प्रकार है-
1- भड़ास आश्रम की स्थापना। एक ऐसा आश्रम जहां सात्विक और तामसिक दोनों प्रकार के लोग एक साथ, अपने-अपने गुण-दोषों के साथ आ सकें और खुद को कुंठाओं से मुक्त कर सकें। कुंठा मुक्ति के लिए जो कुछ होगा, वो डिटेल कभी बाद में दूंगा लेकिन उसमें कुछ भी अनैतिक नहीं होगा, ये वादा है। उसमें गाना, बजाना, नाचना, चिल्लाना, रोना, खाना, पीना, लड़ना आदि शामिल है। ये ऐसी चीजें हैं जो हम लोग रोज करते हैं लेकिन अवचेतन में करते हैं इसलिए ये चीजें दवा की जगह रुटीन का हिस्सा बन जाती हैं।
2- हिंदी पट्टी के लोगों को इंटरप्रेन्योर, उद्यमी, प्रोपराइटर, डायरेक्टर बनने के लिए प्रेरित करना। अपनी हिंदी और अपने गांव में इतनी ताकत है कि कई हजार नई चीजें करने के लिए बाकी हैं पर हमारे लोगों का माइंडसेट ऐसा ही कि वो खुद लाख-दो लाख रुपये महीने कमाने की बजाय बीस-तीस हजार रुपये महीने की नौकरी के लिए मरे जाते हैं।
3- कुछ आध्यात्मिक प्रयोगों को अंजाम देना। इसमें ध्यान, नृत्य, गायन, भोजन (कुछ और चीजें भी हैं, जिनका यहां जिक्र नहीं करना चाहता) के जरिए शरीर से लंबे समय तक मुक्ति के लिए प्रयोग करना शामिल है। इस मुक्ति की झलक मैं पिछले कई वर्षों से गाहे-बगाहे अप्रयोजित तरीके से पाता रहा हूं लेकिन उसे लंबा करने, उसे व्यवस्थित तरीके से करने का वक्त नहीं निकाल पाता। अगले साल इस छूटे हुए काम को जरूर करने की कोशिश करूंगा।
4- हारमोनियम बजाना सीखना है। बचपन मे एक लेसन आप सभी ने पढा होगा साइकिल की सवारी वाला। जिस तरह साइकिल चलाना सीखना एक चुनौती भरा काम होता है उसी तरह मेरे लिए हारमोनियम बजाना सीखना भी एक बड़ी चुनौती है। इस काम को इस वर्ष जरूर करूंगा।
5- भड़ास4मीडिया के लिए कुछ योजनाएं हैं जिसे नए साल में इंप्लीमेंट करना है लेकिन ये योजनाएं क्या हैं, उसे यहां बताने की बजाए, उसे करके दिखाना ज्यादा अच्छा होगा, रणनीतिक वजह के चलते भी और शेखी न हांकने की मनोवृत्ति के चलते भी।
6- ग्रामीण भारत के मीडिया मिशन के प्रोजेक्ट को शुरू करना। इस सौ फीसदी आजमाए हुए प्रोजेक्ट को सुव्यवस्थित रूप से नए साल में शुरू कर सकूंगा, ये मुझे पूरा विश्वास है। बस, कुछ साथी मुझे चाहिए जो मार करने से लेकर कंप्यूटर व फील्ड में महारत दिखाने तक का जज्बा रखते हों।
दोस्तों.....आप सभी भड़ासी साथियों, भड़ास के पाठकों और भड़ास विरोधियों के लिए भी, दिल से दुवा करता हूं कि नया साल आपके, आपके परिवार, आपके पड़ोस व आपके-हमारे समाज व देश में खुशियां ही खुशियां लाए, सफलता ही सफलता लाए, मुक्ति ही मुक्ति लाए, प्यार ही प्यार लाए......।
इस बीत रहे वर्ष में जिन-जिन साथियों-दोस्तों-कथित दुश्मनों का मैंने जाने-अनजाने तरीके से दिल दुखाया है, उनसे नम आंखों के साथ दिल से क्षमा याचना करता हूं क्योंकि हमारी-आपकी अच्छाइयां और हमारी-आपकी सकारात्मक ऊर्जा ही इतनी ज्यादा हैं कि हमें बुरी और नकारात्मक प्रवृत्तियों के बारे में सोचने-जीने के लिए बिलकुल वक्त नहीं होना चाहिए। खुद से घृणा करने वालों से उम्मीद रखता हूं कि वे भले ही मुझे माफ न कर पाएं लेकिन माफ करने के बारे में सोचने की शुरुआत जरूर करेंगे। वैसे भी, हर व्यक्ति को यह अधिकार है कि वो जिंदगी के किसी भी पल से खुद को व्यवस्थित व पाजिटिव बनाने की शुरुआत करे और मैं यह शुरुआत इस बीत रहे वर्ष के अंतिम तीन महीनों से कर सका हूं और इसको नए साल में आगे बढ़ाऊंगा।
आभार के साथ
जय भड़ास
यशवंत सिंह
09999330099
अमिताभ जी वैसे भी यह हेमलेट राजनेता कुछ करने थोडी वाले हैं
27.12.08
ये युद्ध नहीं आसां
अमिताभ बुधौलिया 'फरोग'
जाने वो कौन सा देश...
जहाँ तुम चले गए।
इस दिल को लगा के ठेस...
चिठ्ठी न कोई संदेश...
जहाँ तुम चले गए।
जाने वो कौन सा देश...
जहाँ तुम चले गए।
हर चीज पे अश्कों से...
जाने वो कौन सा देश...
जहाँ तुम चले गए।
जहाँ तुम चले गए।
जाने वो कौन सा देश...
जहाँ तुम चले गए।
कम से कम अपनी महान रचनाए एक बार ही डालो यार
चोरी करना पाप है
फ़ैसला आप ब्लागर देश के नागरिकों का।
फ़िर शहीद हुए हम...29/11/08
अनाथ बच्चे बिलखते
माँ बाप खाली दामन तकते,
फिर कोई फूल चमन से
फिर चमन किसी फूल से
आज महरूम हो गया है ,
फिर पड़ी दरारें आपस में
फिर किसी ने उगला ज़हर है,
फिर खेली गयी होली खून की
फिर शहीद हुवे
भगत चंद्रशेखर अशफाक ,
रोको इन दह्शद-गर्दों को
ये देश की अंधी राजनीति के
पेट से पैदा कुछ कीड़े हैं,
देश बेचने वालों के
ये अन्न दाता हैं
जागो भारत की अब
हम टूटने की कगार पर हैं ,
एक क्रांति और पुकार रही है
सुनो इस पुकार को
आज़ाद करा लो देश
आओ एक बार फिर से
हम सिर्फ क्रांतिकारी बने
एक बार फिर से हम
देश में बदलाव के लिए
संघर्ष करें......,
apka हमवतन भाई गुफरान
(AWADH PEPULS FORUM FAIZABAD)
लालबत्ती इच्छाधारियों ने खण्डूड़ी पर दबाव बनाया
divya santo ka naam lena kya galat hai
दिव्य संतों के बारे में पढ़ना- लिखना क्या गलत है?
26.12.08
कहाँ गई वो दिल की भडास ?
ये अचानक भडासी परिवार को क्या हो गया ?
मैं रोज ही एक बार यहाँ अवश्य झाँक जाता हूँ , किंतु निराशा होती है .........
ढेर सारी खिन्नता भी ! कोई विचार नहीं .....कोई सार्थक लेखन नहीं !
जब कोई मुद्दा ही नहीं तो बहस कहाँ से होगी ?
कहाँ गई वो दिल की भडास ?
वाद - प्रतिवाद की जगह गाली - गलौज, खुन्नसबाजी, और निरर्थक लेखन !
संत रैदास, जीसस, संत नामदेव, तैलंग स्वामी, गीता सार, कबीर.............
क्या यही सब पढने को मिलेगा अब ?
संत नामदेव
विनय बिहारी सिंह
संत नामदेव अपने समय के विलक्षण संत थे। उनका जन्म तो महाराष्ट्र के सतारा जिले के गांव नारस वामनी में हुआ था। लेकिन उनके जन्म के बाद ही उनके माता- पिता सोलापुर जिले के पंढरपुर में बसने चले गए। पिता दर्जी का काम करते थे। पंढरपुर में ही भगवान का एक मंदिर था- जिसे विट्ठल या विठोवा कहा जाता था। जब नामदेव पांच साल के थे तो उनकी मां ने कुछ प्रसाद चढ़ाने के लिए दिया और कहा कि वे इसे विठोवा को चढ़ा दें। नामदेव सीधे मंदिर में गए और विठोवा को प्रसाद चढ़ा कर कहा कि इसे खाओ। लोगों ने कहा- यह मूर्ति है। खाएगी कैसे? लेकिन नामदेव मानने को तैयार नहीं थे कि विठोवा उनका प्रसाद नहीं खाएंगे। बच्चे की जिद मान कर सब अपने- अपने घर चले गए। मंदिर में कोई नहीं था। नामदेव धाराधार रोए जा रहे थे और कह रहे थे- विठोवा या तो यह प्रसाद खाओ नहीं तो मैं यहीं, इसी मंदिर में जान दे दूंगा। दिल को चीर देने वाली बच्चे की कारुणिक पुकार सुन कर विठोवा पिघल गए। वे हाड़- मांस के जीवित व्यक्ति के रूप में प्रकट हुए और विठोवा का प्रसाद खाया। नामदेव को भी खिलाया। नामदेव तो विठोवा के दीवाने हो गए। दिन- रात विठोवा, विठोवा या विट्ठल, विट्ठल की रट लगाए रहते थे। धीरे- धीरे स्थिति यह हो गई कि नामदेव की हर सांस विठोवा के नाम से चलने लगी। नामदेव ने कई चमत्कार भी किए। लेकिन मजा यह था कि नामदेव को यह मालूम नहीं था कि वे चमत्कार कर सकते हैं। एक व्यक्ति का एक पैर बिल्कुल खराब था। उसे विठोवा मंदिर की सीढियां चढ़ने में बहुत कष्ट होता था। नामदेव ने उसके खराब पैर को थोड़ी देर के लिए सहलाया औऱ उस व्यक्ति के पैरों में ताकत आ गई। वह व्यक्ति तो नामदेव के पैरों पर ही गिर पड़ा। नामदेव चकित थे, बोलेम- एसा क्यों कर रहे हो मित्र? वह बोला- भगवन आपने मेरे ऊपर असीम कृपा कर दी। नामदेव भोले ढंग से बोले- मेरी क्या ताकत है मित्र? सब विठोवा करते हैं। बहाना किसी को बना देते हैं। जो तुम हो वही मैं हूं।
25.12.08
पहले परमात्मा को चाहो, चीजों को नहीं- जीसस क्राइस्ट
विनय बिहारी सिंह
जीसस क्राइस्ट परमात्मा के अवतार थे। उन्होंने कहा- सीक ये द गॉड, आल थिंग्स विल बी एडेड अन टू यू। यानी सबसे पहले परमात्मा को चाहो। उसे पाओ। बाकी सारी चीजें तुम्हारे पास खुद ब खुद दौड़ी चली आएंगी। वह चीजें भी जिनकी हमें जरूरत है और हमें इसका भान तक नहीं है। परमात्मा सर्वग्य हैं। वे सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान भी हैं। आज क्रिसमस के दिन जीसस क्राइस्ट को सभी एक बार याद करते हैं क्योंकि वे करुणा, क्षमा, दया, प्यार और बेसहारों के सहारा हैं। परमहंस योगानंद ने जीसस क्राइस्ट पर बहुत खूबसूरत पंक्तियां लिखी हैं-क्लाउड कलर जीसस कमओ माई क्लाउड कलर जीसस कमओ माई क्राइस्ट, ओ माई क्राइस्टओ माई क्राइस्ट, ओ माई क्राइस्टजीसस क्राइस्ट कम।क्लाउड कलर जीसस कम।। कई चित्र ऐसे भी हैं जिनमें भगवान कृष्ण और जीसस क्राइस्ट हाथ में हाथ मिला कर चल रहे हैं। दरअसल गीता और बाइबिल की कई बातें एक जैसी हैं। कोलकाता में क्या हिंदू और क्या ईसाई सभी क्रिसमस को उत्सव के रूप में मनाते हैं। जीसस क्राइस्ट ने कहा- मैं ईश्वर का पुत्र हूं। लेकिन उन्होंने यह भी कहा- तुम भी ईश्वर के पुत्र हो। उन्होंने कहा- मनुष्य को भगवान ने अपने रूप में बनाया है। परमहंस योगानंद ने जीसस क्राइस्ट के बारे में बहुत लिखा है। उनकी प्रसिद्ध पुस्तक है- सेकेंड कमिंग आफ क्राइस्ट। यह पुस्तक जीसस क्राइस्ट के दर्शन और उनकी महानता को स्पष्ट तरीके से सामने लाती है। भारत सर्व धर्म समभाव वाला देश है। हमारा देश मानता है कि इस पृथ्वी पर जितने भी संत- महात्मा हुए हैं, उन्होंने अपने समय में मनुष्य का बड़ा उपकार किया है। मनुष्य को उनका आभारी होना चाहिए। जीसस क्राइस्ट ने मनुष्य को करुणा, प्रेम, दया और सहानुभूति का जो पाठ पढ़ाया, वह अद्भुत है। आज समूचे विश्व में क्रिसमस धूमधाम से मनाया जाता है। भगवान कृष्ण की तरह जीसस क्राइस्ट की असीम करुणा और दया के सागर हैं। वे मनुष्य ही नहीं सभी जीवों पर कृपा करें, यही हमारी प्रार्थना है।
24.12.08
merry christmas
Friends18.com Christmas Greetings
Chritmas ka yeh pyara tyohaar
jeevan mein laye khushiyan apaar,
santa clause aaye aapke dwar,
subhkamna hamari
kare sweekar. Merry Christmas.
बताओ भडासी तुममे तो हिजडे जितनी भी ताकत नही........
जहाँ तक बात भड़ास निकालने की है तो यार भडासी एक दुसरे पर ही गरज रहे हैं, कहीं ऐसा ना हो जाए हम सिर्फ़ गरजे ही बरसने की औकात ही ना रहे , यशवंत दादा ने मंच दिया है भड़ास निकालने के लिए तो इसका इस्तेमाल तो सही तरीके से करो यार...
मिलजुल कर कहो, आपस में मत लडो...
जय जय भड़ास.........
भगवान श्रीकृष्ण का कर्मयोग संदेश
क्षमा तत्व की हुई कमी तो आए प्रभु येशु
>> पंकज व्यास
जब-जब इस दुनिया में किसी मानवीय तत्व की कमी हुई, तब-तब उस कमी को पूरा करने के लिए इस धरा पर किसी को आना पड़ा।
मानव तभी पूर्णता की ओर अग्रसर हो सकता है, जब उसमें सब तत्वों का समावेश हो। ठीक इसी तरह इस विश्व में भी सारे तत्वों का समावेश जरूरी है। जब कभी किसी तत्व की कमी हुई, तो उस तत्वा को पूरा करने की आवश्यकता हुई और प्रकृति व परमेश्वर ने उस तत्व में अभिवृद्घि करने के लिए उस तत्व से भरपुर एक अवतरण को इस दुनिया में भेजा।
जब करूणा की कमी हुई, तो बुद्घ आए, जब मर्यादा की कमी हुई तो श्रीराम आए, जब प्रेम और व्यावहारिकता की कमी हुई तो श्री कृष्ण आए, जब ओज-जोश और वीरता की कमी हुई तो पवनपुत्र हनुमान आए, जब अहिंसा की कमी हुई तो महावीर आए, जब भाईचारे की कमी हुई, पेगम्बर मोहम्मद आए। इसी तरह जब क्षमा तत्व की कमी हुई तो प्रभु येशु आए और दुनिया में सबको क्षमा करना सीखाया।
प्रभु येशु के वैसे तो कई उपदेश, सदुपदेश, शिक्षाएं व सुसमचार हैं, लेकिन उनके जीवन को व्यापक दृष्टिï से देखें तो उन्होंने विश्व को क्षमा करना सीखाया। दूसरे शब्दों में प्रभु येशु को क्षमा का अवसर का जाए, तो कदाचित् कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
आज जबकि छोटी-छोटी छोटी बातों के लिए, झगड़े-फसाद हुआ करते हैं, प्रभु येशु का अवतरण दिवस क्रिसमस प्रासंगिक बन पड़ा है।
इस दिन सारी प्रार्थनाओं के साथ एक प्रार्थना और की जा सकती है और वह है क्षमा की अभिवृद्घि की।
यहाँ ब्लॉग भी देखे: आप-हम.ब्लागस्पाट.कॉम
मै भडासी हूँ सम्लेंगिक नहीं ..हा हा हा !!
अगर अब और हिजडों की तरह काम करना है मेरा मतलब सहानुभूति बटोरनी हो तो एक और पोस्ट छाप देना ,मेरी पोस्ट को जोड़कर !!अच्छा भैया अब चले जा रहे है , आशा है की अब आप मंच की सार्थकता हो जान गए होंगे !! और संजय को भी !!
ये क्या हो गया भड़ास को
खुद का पॉर्न विडियो ही नेट पर डाला,युवती नेआज इसे जवानी की मदहोशी कहे या खुद को प्रसिद्ध करने की लालसा युबक और कम उम्र की लड़कियां खुद को जनता के सामने किसी भी रूप मैं परोसने को तैयार है ऐसा ही बाकया हमारे सामने आया है ,जिसने सपूर्ण चीन को धुल्मित कर दिया ,साथ ही कुछ मनचलों को कुछ पल का सकून दिया ,गनीमत है की यह कारनामाहिन्दुस्तान का नहीं है !!!इसी पर एक रिपोर्ट !!.yaadonkaaaina.blogspot.comPosted by ѕαηנαу ѕєη ѕαgαя
Kumar sambhav said...sagar sahab aap ne josh me aakar tin bar ek hi chez post kar diye, aur ey koi nai khabr nahi hai, lagta hai net ka estemal haal hi me shuru kiyea hai।jai jai भड़ास
23/12/08 11:54 AM
ѕαηנαу ѕєη ѕαgαя said...हाँ तो भइया बात कुछ ऐसी है की हम ठहरे मर्द ,अब मर्द है तो जोश तो है ही साथ ही साथ मुद्दा भी दिल जलने वाला है क्योंकि हमको वो विडियो देखने मिला नही !!अब आपमें तो हुम्हे आजतक जोश जैसा कुछ दिखा नही,पर हाँ मर्दों में होता है !! आपका भइया मुझे पता नही ,क्या लफडा है !!और बात पुराणी हो सकती है क्योंकि आप मेट्रो सिटी में बैठे हो ,हम गाँव में !!और रही बात नेट की तो शयद बह भी मर्द है जोश में तीन बार पोस्ट का दी !!आप एक काम करो ब्लॉग लिखके कुछ पैसे मिले हो तो आज डॉक्टर को दिखा लो !!वरना अपने रजनीश जी ये यहाँ मुफ्त सुबिधा उपलब्ध है ! !!जय जय जय भड़ास
23/12/08 12:15 PM
Kumar sambhav said...इन्ही उलझे दिमागों में मुहबत के घने लच्छे हैं, हमे पागल hi रहने do हम पागल hi अच्छे हैं । भाई रजनीश मुझे जानते हैं , परिचेय देने कि जरूरत नहीं आप को आपकी एक और बेतुकी पोस्ट पढ़ा वैसे आपकी पहले के पोस्ट कि बात hi अलग रही है। मुझे आप कि लेखनी भी पसंद आती है। लेकिन ये बीच में आपने कुछ बहादुरी दिखाई और निरे बेवकूफ नज़र आए। चलो गुरु मर्दानगी कि नसीहत भी दे दी डॉ। का पता नहीं बताया लगता है पुराना आनाजाना है डॉ। के यहाँ. यार कुछ अच्छी जगह मर्दानगी दिखाओ, रही बात बड़े और छोटे शहर कि तो भाई में गाओं से आता हूँ, पेट कि आग ने दिल्ली पहुँच दिया.
ѕαηנαу ѕєη ѕαgαя said...हा हा गूंगा भी बोला !!!गजब आज पता नहीं किसका मुँह देखकर उठा था !!! मजा आ गया!!बड़े भैया जिंतना जोश अब आपकी से बगर रहा है अगर पहेले बगरा होता तो कुछ जरुर हो जाता है! और रही मर्दांगनी की बात तो बहुत सी कन्याएं गवाह है की संजय सेन मर्द है !!और रही बात रजनीश जी की तो बे एक सामाज सेवेक भी है इसलिए आपका काम मुफ्त में बनवा रहा था !!चलो यार अब जा रहे है मजा आया !!!
कुछ दिन पहेले भडास पर मनीषा जी और राजीव जी के बीच लगभग इसी तरह का सवांद हुआ था। थोडी भाषा अलग थी , सवाल ये उठता है की क्या विचारों के मतभेद को एक दुसरे के ऊपर अशोभानिये बातें लिख कर कम कियाजा सकता है? नही बिल्कुल नही ...सागर सेन सागर साहब की बातों का जवाब दिया जा सकता है , लेकिन क्यों ? क्या मतलब है इससे भड़सिओं को , जवाब देकर में क्या साबित करूंगा ? यार सेन साहब को पढ़ कर मुझे yahoo chat के वो दिन याद आगये जब बच्चे नेट पर एक दुसरे को गलियों दिया करते थे । भाई यशवंत जी ने मंच दिया है .... कम से कम सार्थक इस्तेमाल तो करो .....जय जय भड़ास
23.12.08
पान की दुकान पर भड़ास....
"यार इ अंतुले पगला है का बे॥"
का हो गया
"कल फिर देखे करकरे जो बम्बई में मर गया उसका मरने का जाँच का मांग पे अड़ल है अउर बेटा कांग्रेसियन भी सब चूतिये है उ माधर...को निकाल कहे नही रहा "
छोड़ ना बे चुपचाप सिगरेट मारो इ सब तो साला अइसने है, ललुआ और दू चार गो मुस्लिम सांसद लोग अंतुले का सपोर्ट कर दिया तो साला का गांड मोटा गया , अउर कांग्रेसियन को तो बॉस वोट चाहिए ना ...तुम उलोग को जीता दोगे का। इ लोग तो किसी को भी वोट के नाम पे किसी का मार लेगा। तुम भी जल्दी जल्दी मारो अउर चलो।
"ठीके कह रहे हो यार सब तो गांडूऐ है इ जो भाजपा वाला है इहो सब तो बोल रहा था की करकरे देशद्रोही है, सही कर के अंगुली कर दिया था तो लग रहा था.... इ लोग को अब राजनित करना है तो डेली टिविया में बक बक कर रहा है..."
छोड़ इ लोग का बात मत करो .... अरे मैचवा में का हुआ
"हुआ का ड्रा हो जायेगा "
अउर सुना की नही धोनिया का पूजा होगा बे॥
"हाँ पेपर में पढ़े साला मन्दिर बन रहा है"
के पूजा करेगा रे वहां
...मार साला पगला गया है सब अभी जीत रहा है तो पूज रहा है, चार पाँच गो मैच हारने दो इहे लोग उसका पुतला जलायगा अउर फासियो देगा , एक बार उसका घरवा तोडा था ना ...
हाँ भाई पब्लिको चूतिये है ...
चल शो का टाइम हो गया है सुने हैं बड़ा मस्त फ़िल्म है....चलो हमलोग भी चांस पे डांस मारते हैं ।
फिर पान की दुकान पर भड़ास निकालने वाले ये भाई चलते बने...
अब हम भी चलते हैं॥
जय जय भड़ास.....
जय हो भड़ास....
ईश्वर का पुत्र
ईसाई धर्म में जीससका क्या स्थान है, इससे हर कोई भलीभांति परिचित है। लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि जीससको केवल इसलिए सूली पर चढा दिया गया था, क्योंकि वे खुद को ईश्वर का पुत्र मानते थे।
दरअसल, रोमन साम्राज्य के अंतर्गत आता था जीससका देश जूडिया।रोमन गवर्नर पांटियसपायलट की एक पागल व निर्दोष व्यक्ति को सूली पर चढाने में कोई रुचि नहीं थी। एक ऐसा आदमी, जो दावा करता था कि मैं ईश्वर का एकमात्र पुत्र हूं।
दरअसल, उसे अधिकतर लोग पागल ही मानते थे। लेकिन वह किसी व्यक्ति को नुकसान नहीं पहुंचा सकता था। पांटियसपायलट ने माना कि जीससनिर्दोष हैं और उन्होंने कोई अपराध नहीं किया है। यदि उन्हें इस विचार से आनंद मिलता है कि वह ईश्वर का एकमात्र पुत्र है, तो उन्हें ऐसा सोचने देना चाहिए।
वास्तव में, यदि आपके मन में ईष्र्या के भाव पैदा हो रहे हैं, तभी दूसरे प्रकार के विचार आ सकते हैं। उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति सोचे कि मैं ईश्वर का एकमात्र पुत्र हूं, तो उस व्यक्ति के प्रति विरोध प्रकट करने का सवाल ही नहीं उठता है! क्योंकि किसी भी व्यक्ति के पास इस बात का कोई ठोस प्रमाण ही नहीं है कि वह ईश्वर का पुत्र है या नहीं! व्यक्ति न केवल ईश्वर का पिता हो सकता है, बल्कि वह ईश्वर का पुत्र और भाई भी हो सकता है। यह व्यक्ति मात्र की कल्पना हो सकती है। यदि आप किसी व्यक्ति से मिलते हैं और वह आपसे कहता है कि वह ईश्वर का पुत्र है, तो क्या आप यह सोचते हैं कि उस व्यक्ति को सूली पर चढा देना चाहिए?
संभव है कि आप यह सोचें कि सामने वाला व्यक्ति अपनी राह से भटक गया है। लेकिन इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि उसे सूली पर चढा दिया जाए। सच तो यह है कि उस व्यक्ति को आनंद मनाने का पूरा अधिकार है। अब यदि दूसरे शब्दों में कहें, तो आपको उस व्यक्ति का उत्साह और बढाना चाहिए, क्योंकि ईश्वर को पाना बहुत कठिन है और आपने ईश्वर के रूप में पिता को पा लिया है। यह संभव है कि वह आपको ईश्वर के ठिकाने का कोई संकेत बता दे।
जीससने किसी व्यक्ति को कभी कोई नुकसान नहीं पहुंचाया था। एक शहर से दूसरे शहर में जाकर यह कहना कि मैं ईश्वर का एकमात्र पुत्र हूं, यह कोई अपराध नहीं है। लेकिन यह यहूदियों के स्वाभिमान के लिए खतरनाक था, क्योंकि एक गरीब इनसान उनसे कह रहा था कि वह ईश्वर का पुत्र है! अन्यथा यह एक निर्दोष मामला था, उस बेचारे पर तनिक भी क्रोध प्रकट करने की कोई आवश्यकता नहीं थी!
आपको स्वच्छ और बोझ-रहित होना होगा, क्योंकि आप शिखर को छूने जा रहे हैं। ये सारे बोझ आपकी प्रगति को बाधित कर देंगे। आप सत्य को जानने जा रहे हैं, इसलिए सत्य के संबंध में किसी धारणा को मत ढोएं, क्योंकि यही धारणा आपके और सत्य के बीच में अवरोध बन जाएगी। -[ओशो]
जवान साली फिसल जाती है !
Kumar sambhav said...
sagar sahab aap ne josh me aakar tin bar ek hi chez post kar diye, aur ey koi nai khabr nahi hai, lagta hai net ka estemal haal hi me shuru kiyea hai.jai jai bhadas
23/12/08 11:54 AM
हाँ तो भइया बात कुछ ऐसी है की हम ठहरे मर्द ,अब मर्द है तो जोश तो है ही साथ ही साथ मुद्दा भी दिल जलने वाला है क्योंकि हमको वो विडियो देखने मिला नही !!अब आपमें तो हुम्हे आजतक जोश जैसा कुछ दिखा नही,पर हाँ मर्दों में होता है !! आपका भइया मुझे पता नही ,क्या लफडा है !!और बात पुराणी हो सकती है क्योंकि आप मेट्रो सिटी में बैठे हो ,हम गाँव में !!और रही बात नेट की तो शयद बह भी मर्द है जोश में तीन बार पोस्ट का दी !!आप एक काम करो ब्लॉग लिखके कुछ पैसे मिले हो तो आज डॉक्टर को दिखा लो !!वरना अपने रजनीश जी ये यहाँ मुफ्त सुबिधा उपलब्ध है ! !!
जय जय जय भड़ास
आतंकियों के बारे में एक विस्मयकारी तथ्य
१३ मई---------------------------जयपुर में विस्फोट।
जून----------------------------------------------
२६ जुलाई------------------------अहमदाबाद में विस्फोट।
अगस्त--------------------------------------------
१३ सितम्बर----------------------दिल्ली में विस्फोट।
अक्टूबर-------------------------------------------
२६ नवम्बर----------------------मुंबई में विस्फोट।
दिसम्बर-------------------------------------------
१३ जनवरी------------------------??????????
कृपया सावधान रहें और अपना ख़याल रखें।
मकबूल
22.12.08
खुद का पॉर्न विडियो ही नेट पर डाला,युवती ने
सारे महत्वपूर्ण विभाग माताओं के पास
मेरी कलम से
तेरे क़दमों में ठहर जाती तो क्या बात थी
यूँ तो उसका चेहरा किसी नूर से कम नहीं,
कुछ और निखर जाती तो क्या बात थी
कौन डूबता है घुटनों घुटनों पानी में,
इक और लहर आ तो क्या बात थी
तू बात करती थी अक्सर जिस शाम की,
इन आंखों में उतर जाती तो क्या बात थी
वो जा रही थी मौसम बदलने से पहले
जरा सा और ठहर जाती तो क्या बात थी।
हाय रे मनमोहन ये तूने क्या किया
21.12.08
चूतिया कौन
२। why not should we understand that most of our respected leaders of all the sectors of our life are DOGLE and have worked and talked like CHUTIYAA in all of their life... i have some EXAMPLES as QUESTION on their DESHBHAKTI
- WHEN polticians meet SWAMI RAMDEV G he expresses well respect in all of his speeches, even if all of them are GHOTALEBAAJ and LOKTANTRA KE KODH. and when he has no politician in front of him he shouts on politicians. is not all of those SWAMIS chutiyaas.
- Indias most spiritual leaders from last so many decades are the same CHUTIYAAS , coz i have read the same about MACHAAN WAALE BABA and so many of past and present BABAs.
- Mrs. bachchan supports Samajwaadi party. the party supports SIMMI. now how dare hr HE complains for ATANKWAAD.
- Being an MP, SANSAD se gayab rahna bhi to ek prakaar ka small size desdroh hai. and so many cricketers, bollywoodians do it.
गुरु-शिष्य
कुछ इस तरह निभा रहे हैं
बाहर रेस्तारेंट मैं
एक ही सिगरेट से
धुआं उड़ा रहे हैं
http://www.tirchinagar.blogspot.com/
20.12.08
इस जहाँ को लग गई किसकी नज़र...
कौन जाने यह भला किसका कहर है?
आदमी ही आदमी का रिपु बना है,
दो दिलों में छिडी यह कैसी ग़दर है?
ढूँढने से भी नहीं मिलती मोहब्बत,
नफरतों की जाने कैसी यह लहर है?
स्वार्थ ही अब हर दिलों में बस रहा,
यह हवा में घुल रहा कैसा ज़हर है?
हर तरफ़ हत्या, डकैती, राहजनी,
अमन का जाने कहाँ खोया शहर है?
मंजिलों तक जो हमें पहुँचा सके,
अब भला मिलती कहाँ ऐसी डगर है?
उदित होगा फिर से एक सूरज नया,
हमको इसकी आस तो अब भी मगर है।
19.12.08
पाकिस्तान को मजबूत कर रहे हैं अंतुले
हालांकि अंतुले इससे पहले भी कई बार बेतुकी बयानबाजी कर चुके हैं, लेकिन इस बार बयान बहादुर अंतुले ने ऐसा अपच वाला बयान दिया है कि पूरे देश को हज़म नहीं हो रहा। उस पर ढिठाई ये कि अपनी गलती मानने को तैयार नहीं। हठधर्मिता ने अंतुले को इस्तीफा देने को मजबूर कर दिया। अंतुले के इस बयान ने करकरे की शहादत पर तो सवाल खड़े करने का काम कर ही दिया, साथ ही मुंबई हमलों की जांच कर रहीं भारतीय और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों की जांच को भी शक के दायरे में लाने का काम कर दिया। पलटबयानी में माहिर पाकिस्तान अंतुले के बयान को ढाल की तरह इस्तेमाल कर सकता है। पाकिस्तान सरकार इस बात से पहले से ही मुकर रही है कि कसाब और हमलों में मारे गए आतंकी पाकिस्तानी हैं, ऐसे में अंतुले का यह बयान घाघ पाकिस्तान को बढ़ावा ही देगा। पाकिस्तान राषाट्राध्यक्ष इस मामले में क्लीन चिट के लिए पहले ही कई पैंतरे आजमा चुके हैं, लेकिन विश्व बिरादरी के बढ़ते दबाव से वह कामयाब नहीं हो पा रहे हैं। ऐसे हालात में अंतुले के बयान को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रखकर पाक यह दावा कर सकता है कि मुंबई हमले भारत की घरेलू साजिश थी। इन हमलों में उनके अपने लोग ही शामिल थे और पाकिस्तान को आतंकवादी राष्ट्र घोषित कराने के लिए भारत अपने ही देश में खुद आतंकवादी हमलों को अंजाम देता आ रहा है। इससे भारत की नीतियों और उजली छवि को विश्व मंच पर धक्का लग सकता है।
इधर उबलती राजनीति और देश की नब्ज को टटोलकर कांग्रेस ने भी अपने इस कारिन्दे से पल्ला झाड़ लिया है। वक्त का तकाजा भी यही है। हालांकि अंतुले के इस्तीफे पर अभी यूपीए सरकार के मुखिया मनमोहन सिंह विचार ही कर रहे हैं, लेकिन चिंता यह है कि कि अंतुले पर की गई कार्रवाई को भी पाकिस्तान अपने हित में भुना सकता है। पाकिस्तान कह सकता है कि सच सामने आने के डर से भारत ने अंतुले के खिलाफ कार्रवाई करके उसका मुंह बंद करने की कोशिश की है। इससे बेहतर तो यही हो कि अंतुले का इस्तीफा मंजूर ही न किया जाए। शायद हमारे दूरअंदेशी प्रधानमंत्री भी यही सोचकर चुप हैं।
सोचने का मुद्दा यह है कि जिस मामले पर अंतरराष्ट्रीय संवेदना हमारे साथ है, पूरी दुनिया ने पाकिस्तान को गलत मानकर उसे तुरंत ठोस कार्रवाई करने के लिए बाध्य किया है, उस मुद्दे पर अंतुले इतनी ढीली बयानबाजी क्यों कर गए। कहीं ये अल्पसंख्यक तुष्टिकरण का हथकंड़ा को नहीं? मुंबई हमलों में भी कहीं हिंदू आतंकवाद का भगवा रंग घोलने का कोशिश तो नहीं? मालेगांव धमाकों और इस घटना में अंतर है। मालेगांव ने जहां सारे देश को अचंभे में डाल दिया था, वहीं इस घटना ने पूरे देश और राजनीति को आतंक के खिलाफ लामबंद किया है। राजनेताओं ने जनता के तीखे तेवर देखकर बहुत कुछ सीखा है। अंतुले के इस बयान के पीछे एक वजह समझ आती है कि कांग्रेस में हाशिए पर खिसक चुके अंतुले शायद पार्टी का ध्यान अपनी तरफ खींचना चाहते थे। एक समुदाय विशेष को गुमराह करके अपना जनाधार तैयार करना चाहते थे।
खैर जो भी हो, अंतुले को अपनी लफ्फाजी पर लगाम लगानी चाहिए, वरना सही दिशा में जा रही जांच और पाक पर बढ़ रहा अंतरराष्ट्रीय दबाव दिशाहीन हो सकते हैं। जो कि भारत ही नहीं बल्कि समूची दुनिया के लिए खतरा है। अंतुले को एक बात और ध्यान रखनी चाहिए कि जनता अब राजनीति की नब्ज समझने लगी है। अगर जनता अर्श पर बैठा सकती है तो फिर मिनटों में ही फर्श पर भी फेंक सकती है।
आदमी की इज्ज़त ही कुछ और होती है....!!
और टूटी हुई चीजों की कीमत कुछ और होती है.....!!
मर-मर कर जीना तो बहुत ही आसान है ऐ दोस्त....
जिंदादिल लोगों की तो हिम्मत कुछ और होती है.....!!
एक ही बार तो आता है आदम यहाँ धरती पर.....
बनकर रहे आदम ही तो रिवायत कुछ होती है....!!
हम गाफिल लोग ही रहते हैं आदतों के बाईस........
और फकीरों की तो हाजत ही कुछ और होती है...!!
जो "धन"को जीते हैं उनका चेहरा होता है कुछ और .......
प्यार बांटने वालों की तो लज्जत ही कुछ और होती है.....!!
लोग जाने क्या-क्या "फिजूल"चाहते हुए ही मर जाते हैं.....
जिन्दगी जीने वालों की तो चाहत ही कुछ और होती है.....!!
जब हम सिर्फ़ अपने लिए जीते हैं तो गम ही मिलता है.....
सबपे जीते इंसा पे अल्ला की इनायत कुछ और होती है....!!
धारा के साथ जीने को तो सब जीते हैं "गाफिल"
इसके ख़िलाफ़ वालों की ताकत कुछ और होती है.....!!
मौत...
और जीवन को भी पहचाना है।
ज़िन्दगी है अगर कोई संगीत,
तो मौत मस्ती भरा तराना है।
ज़िन्दगी दर्द का समुन्दर है,
तो मौत खुशिओं भरा खजाना है।
मौत ही मंजिले मुसाफिर है,
पर ज़िन्दगी का भी गम उठाना है।
जाने क्यूँ मौत से हम डरते हैं,
ये तो कुदरत का एक नजराना है।