30.9.10
यह सितारों भरी रात फ़िर हो न हो
यह सितारों भरी रात फ़िर हो न हो
आज है जो वही बात फ़िर हो न हो
एक पल और ठहरो तुम्हे देख लूँ
कौन जाने मुलाकात फ़िर हो न हो ।
हो गया जो अकस्मात फ़िर हो न हो
हाथ में फूल सा हाथ फ़िर हो न हो
तुम रुको इन क्षणों की खुशी चूम लूँ
क्या पता इस तरह साथ फ़िर हो न हो ।
तुम रहो चांदनी का महल भी रहे
प्यार की यह नशीली गजल भी रहे
हाय,कोई भरोसा नहीं इस तरह
आज है जो वही बात कल भी रहे ।
चांदनी मिल गयी तो गगन भी मिले
प्यार जिससे मिला वह नयन भी मिले
और जिससे मिली खुशबुओं की लहर
यह जरूरी नहीं वह सुमन भी मिले ।
जब कभी हो मुलाकात मन से मिलें
रोशनी में धुले आचरण से मिले
दो क्षणों का मिलन भी बहुत है अगर
लोग उन्मुक्त अन्तः करण से मिले ||
(रचना-अवधी एवं हिन्दी के कालजयी
लोक कवि स्व .पंडित रूपनारायण त्रिपाठी जी,
जौनपुर ) प्रस्तुति --धीरेन्द्र प्रताप सिंह
आज है जो वही बात फ़िर हो न हो
एक पल और ठहरो तुम्हे देख लूँ
कौन जाने मुलाकात फ़िर हो न हो ।
हो गया जो अकस्मात फ़िर हो न हो
हाथ में फूल सा हाथ फ़िर हो न हो
तुम रुको इन क्षणों की खुशी चूम लूँ
क्या पता इस तरह साथ फ़िर हो न हो ।
तुम रहो चांदनी का महल भी रहे
प्यार की यह नशीली गजल भी रहे
हाय,कोई भरोसा नहीं इस तरह
आज है जो वही बात कल भी रहे ।
चांदनी मिल गयी तो गगन भी मिले
प्यार जिससे मिला वह नयन भी मिले
और जिससे मिली खुशबुओं की लहर
यह जरूरी नहीं वह सुमन भी मिले ।
जब कभी हो मुलाकात मन से मिलें
रोशनी में धुले आचरण से मिले
दो क्षणों का मिलन भी बहुत है अगर
लोग उन्मुक्त अन्तः करण से मिले ||
(रचना-अवधी एवं हिन्दी के कालजयी
लोक कवि स्व .पंडित रूपनारायण त्रिपाठी जी,
जौनपुर ) प्रस्तुति --धीरेन्द्र प्रताप सिंह
भाषा और बोली को लेकर सदन में दिखी निशंक सरकार की गंभीरता--धीरेन्द्र प्रताप सिंह
भाषा और बोली को लेकर सदन में दिखी निशंक सरकार की गंभीरता--धीरेन्द्र प्रताप सिंह
उत्तराखंड को पूरे देश में देवभूमि होने का विशेष स्थान प्राप्त है। भारत के अधिकांश लोकप्रिय और श्रद्धा के केन्द्र तीर्थ स्थल इसी प्रदेश में है। वैसे तो यहां की सरकारें इन तीर्थस्थलों को लेकर शुरू से ही संवेदनीशील रही है। 10 वर्ष की आयु वाला यह प्रदेश कई राजनीतिक झंझावातों से समय समय पर जूझता रहा है और 10 साल में इसने पांच मुख्यमंत्री देखे।
लेकिन इन झंझावातों के बीच प्रदेश विकास की ओर लगातार गतिमान रहा है। प्रदेश के पांचवें मुख्यमंत्री के तौर पर कार्य कर रहे भारत के युवा विनम्र मुख्यमंत्री के तौर पर अपने आप को स्थापित कर चुके डा. रमेश पोखरियाल निशंक ने जिस तरह से प्रदेश में विकास की गति को बढ़ावा दिया है वह अन्य राज्यों के लिए नज़ीर बन गया है।
प्रसिद्ध लेखक,प्रखर राजनीतिज्ञ और इन सबसे बढ़कर मझे हुए पत्रकार के रूप में वैसे तो मुख्यमंत्री ने कई कीर्तिमान बनाएं है लेकिन यदि संक्षिप्त में मुख्यमंत्री के ऐसे कार्य को रेखांकित करने को कहा जाए जिससे वे इतिहास में अपना अलग स्थान बनाते है तो वह कार्य निश्चित ही मुख्यमंत्री द्वारा भाषाओं और बोलियों को लेकर किया जाने वाला कार्य है।
कवि हृदय डा. पोखरियाल ने भाषाओं को लेकर जिस तरह की गंभीरता दिखाई है उससे अन्य राजनेता सीख ले सकते है। मुख्यमंत्री ने देवभूमि के रूप में स्थापित उत्तराखंड में देवभाषा संस्कृत को द्वितीय राजभाषा घोषित कर प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश के संस्कृत प्रेमियों का दिल जीत लिया। उनके इस कार्य से प्रसन्न लोगों ने जिस तरह से उनका पूरे देश में स्थान स्थान पर भव्य स्वागत और अभिनन्दन किया उससे संस्कृत को लेकर पूरे देश की भावना का पता चला।
हालांकि मुख्यमंत्री ने जिस तरह का साहित्य सृजन किया है वह अपने आप में ही उनकी साहित्यक गंभीरता का प्रमाण माना जा सकता है। लेकिन बीते मानसून सत्र में उन्होंने जिस तरह से उत्तराखंड की प्राचीन और लोकप्रिय बोलियों गढ़वाली,कुमाउनी और जौनसारी को शासकीय कार्य के लिए मान्यता प्राप्त करने का संकल्प प्रस्ताव पारित करवाया उसने मुख्यमंत्री की लोकप्रियता को चरम पर पहुंचा दिया है।
इस प्रदेश में उपरोक्त तीनों बोलियों का संपन्न इतिहास है तो साथ ही इन्हें बोलने वालों की बड़ी संख्या भी। बहुत अर्से से इन तीनों भाषाओं में राजकीय और न्यायिक कार्यो को करने की मांग उठती रही है। लेकिन इन मांगों को बराबर अनसुना किया जाता रहा है। इन बोलियों की मान्यता को लेकर मुख्यमंत्री ने गंभीर चिंतन किया और अन्त में इसे विधानसभा के मानसून सत्र में पेश किया।
सरकार के इस प्रस्ताव ने क्या पक्ष क्या विपक्ष सबको एक कर दिया पूरे सदन ने एकमत से इन बोलियों में शासकीय कार्य,अशासकीय और न्यायिक कार्य करने के संकल्प को ध्वनीमत से पारित कर दिया और इसे भारत की महामहिम राश्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल के पास अनुमोदन के लिए भेज दिया। अब अगर महामहिम ने सहमती दे दी तो उत्तराखंड के सरकारी कार्यालयों और न्यायालयों में इन भाषाओं को बोलने वाले इसका प्रयोग कर सकेंगे।
विधानसभा में मानसून सत्र के दूसरे दिन प्रदेश के संसदीय कार्य मंत्री प्रकाश पंत ने सदन में यह प्रस्ताव पेश किया। इस प्रस्ताव में गढ़वाली,कुमाउनी और जौनसारी बोलियों को ग्राम पंचायतों,क्षेत्र पंचायतों और जिला पंचायतों की बैठकों में भागीदारी करते समय लोगों को बोलने का अधिकार दिए जाने की बात शामिल है।
इसके साथ ही आंगनबाड़ी केन्द्रों सरकारी अस्पतालों,राशन की दुकानों सर्व शिक्षा अभियान की बैठकों रोडवेज की बसों में टिकट लेने,मंडी परिषद में माल खरीदनें,बेचने के साथ ही सरकारी दफ्तरों में भी लोग इन बोलियों का धड़ल्ले से और आधिकारिक रूप से प्रयोग कर पाएंगे। इसके साथ ही इन बोलियों का प्रयोग निचली अदालतों में मौखिक रूप से अपना पक्ष रखने में भी किये जाने का प्रावधान होगा।
विधानसभा में पारित इस संकल्प में राष्ट्रपति से अपेक्षा की गई है कि वे उत्तराखंड की इन बोलियों को संबंधित प्रयोजनों के लिए सरकारी मान्यता प्रदान करेंगी। इस प्रस्ताव के बारे में संसदीय कार्य मंत्री प्रकाश पंत का यह कथन कि इन बोलियों को मान्यता मिलने के बाद राज्य की बोलियों को तो बढ़ावा मिलेगा ही साथ ही विभिन्न क्षेत्रों में लोग अपनी भावनाएं भी ज्यादा प्रभावी और स्पष्ट ढंग से व्यक्त कर सकेंगे। उनका यह कथन इन बोलियों की प्रासंगिकता और महत्व को स्पष्ट करता है।
ये तो हो गई सरकार की बोलियों को लेकर संवेदनशीलता। निशंक सरकार ने कार्यभार संभालने के तुरंत बाद से जिस तरह से प्रदेश को हर मंच पर अलग रूप में स्थापित करने का प्रयास किया है उसका परिणाम आने वाले भविष्य में दिखेगा। प्रखर मुख्यमंत्री के नेतृत्व में कुशल सरकार ने उत्तराखंड को भारत का भाल बनाने में दिनरात एक कर दिया जिसका परिणाम है कि करीब दर्जनभर हिमालयी राज्यों में उत्तराखंड कई मामलों में नंबर वन गया है और यहां से अन्य राज्यों को अलग कार्य करने की प्रेरणा मिल रही है।
महाकुंभ को सरकार ने कुशलता से संपन्न करवा कर उसे वैश्विक आयोजन बना डाला तो प्रदेश की देवभूिम के रूप में बनी पहचान को स्थापित करने के लिए हरिद्वार में जल्द ही एक विशेष संस्कृति विश्वविद्यालय खोलने की घोषणा की है। इतना ही नहीं हरिद्वार के धर्मक्षेत्रों में अन्य भाषाओं के साथ साथ सभी सरकारी गैर सरकारी संस्थाओं में संस्कृत भाषा में ही नाम और पदनाम पटिटकाएं लगाने का आदेश देकर इस भाषा को एक नया जीवन प्रदान किया है।
बहरहाल सरकार के ये कुछ ऐसे फैसलें है जिनका तुंरत परिणाम दिखने लगा है। लेकिन इसके अलावा भी सरकार ने प्रदेश हित में कई ऐसे फैसले लिए हैं जिनके चलते भविष्य में उत्तराखंड की सूरत बदलने वाली है।
धीरेन्द्र प्रताप सिंह देहरादून उत्तराखंड
उत्तराखंड को पूरे देश में देवभूमि होने का विशेष स्थान प्राप्त है। भारत के अधिकांश लोकप्रिय और श्रद्धा के केन्द्र तीर्थ स्थल इसी प्रदेश में है। वैसे तो यहां की सरकारें इन तीर्थस्थलों को लेकर शुरू से ही संवेदनीशील रही है। 10 वर्ष की आयु वाला यह प्रदेश कई राजनीतिक झंझावातों से समय समय पर जूझता रहा है और 10 साल में इसने पांच मुख्यमंत्री देखे।
लेकिन इन झंझावातों के बीच प्रदेश विकास की ओर लगातार गतिमान रहा है। प्रदेश के पांचवें मुख्यमंत्री के तौर पर कार्य कर रहे भारत के युवा विनम्र मुख्यमंत्री के तौर पर अपने आप को स्थापित कर चुके डा. रमेश पोखरियाल निशंक ने जिस तरह से प्रदेश में विकास की गति को बढ़ावा दिया है वह अन्य राज्यों के लिए नज़ीर बन गया है।
प्रसिद्ध लेखक,प्रखर राजनीतिज्ञ और इन सबसे बढ़कर मझे हुए पत्रकार के रूप में वैसे तो मुख्यमंत्री ने कई कीर्तिमान बनाएं है लेकिन यदि संक्षिप्त में मुख्यमंत्री के ऐसे कार्य को रेखांकित करने को कहा जाए जिससे वे इतिहास में अपना अलग स्थान बनाते है तो वह कार्य निश्चित ही मुख्यमंत्री द्वारा भाषाओं और बोलियों को लेकर किया जाने वाला कार्य है।
कवि हृदय डा. पोखरियाल ने भाषाओं को लेकर जिस तरह की गंभीरता दिखाई है उससे अन्य राजनेता सीख ले सकते है। मुख्यमंत्री ने देवभूमि के रूप में स्थापित उत्तराखंड में देवभाषा संस्कृत को द्वितीय राजभाषा घोषित कर प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश के संस्कृत प्रेमियों का दिल जीत लिया। उनके इस कार्य से प्रसन्न लोगों ने जिस तरह से उनका पूरे देश में स्थान स्थान पर भव्य स्वागत और अभिनन्दन किया उससे संस्कृत को लेकर पूरे देश की भावना का पता चला।
हालांकि मुख्यमंत्री ने जिस तरह का साहित्य सृजन किया है वह अपने आप में ही उनकी साहित्यक गंभीरता का प्रमाण माना जा सकता है। लेकिन बीते मानसून सत्र में उन्होंने जिस तरह से उत्तराखंड की प्राचीन और लोकप्रिय बोलियों गढ़वाली,कुमाउनी और जौनसारी को शासकीय कार्य के लिए मान्यता प्राप्त करने का संकल्प प्रस्ताव पारित करवाया उसने मुख्यमंत्री की लोकप्रियता को चरम पर पहुंचा दिया है।
इस प्रदेश में उपरोक्त तीनों बोलियों का संपन्न इतिहास है तो साथ ही इन्हें बोलने वालों की बड़ी संख्या भी। बहुत अर्से से इन तीनों भाषाओं में राजकीय और न्यायिक कार्यो को करने की मांग उठती रही है। लेकिन इन मांगों को बराबर अनसुना किया जाता रहा है। इन बोलियों की मान्यता को लेकर मुख्यमंत्री ने गंभीर चिंतन किया और अन्त में इसे विधानसभा के मानसून सत्र में पेश किया।
सरकार के इस प्रस्ताव ने क्या पक्ष क्या विपक्ष सबको एक कर दिया पूरे सदन ने एकमत से इन बोलियों में शासकीय कार्य,अशासकीय और न्यायिक कार्य करने के संकल्प को ध्वनीमत से पारित कर दिया और इसे भारत की महामहिम राश्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल के पास अनुमोदन के लिए भेज दिया। अब अगर महामहिम ने सहमती दे दी तो उत्तराखंड के सरकारी कार्यालयों और न्यायालयों में इन भाषाओं को बोलने वाले इसका प्रयोग कर सकेंगे।
विधानसभा में मानसून सत्र के दूसरे दिन प्रदेश के संसदीय कार्य मंत्री प्रकाश पंत ने सदन में यह प्रस्ताव पेश किया। इस प्रस्ताव में गढ़वाली,कुमाउनी और जौनसारी बोलियों को ग्राम पंचायतों,क्षेत्र पंचायतों और जिला पंचायतों की बैठकों में भागीदारी करते समय लोगों को बोलने का अधिकार दिए जाने की बात शामिल है।
इसके साथ ही आंगनबाड़ी केन्द्रों सरकारी अस्पतालों,राशन की दुकानों सर्व शिक्षा अभियान की बैठकों रोडवेज की बसों में टिकट लेने,मंडी परिषद में माल खरीदनें,बेचने के साथ ही सरकारी दफ्तरों में भी लोग इन बोलियों का धड़ल्ले से और आधिकारिक रूप से प्रयोग कर पाएंगे। इसके साथ ही इन बोलियों का प्रयोग निचली अदालतों में मौखिक रूप से अपना पक्ष रखने में भी किये जाने का प्रावधान होगा।
विधानसभा में पारित इस संकल्प में राष्ट्रपति से अपेक्षा की गई है कि वे उत्तराखंड की इन बोलियों को संबंधित प्रयोजनों के लिए सरकारी मान्यता प्रदान करेंगी। इस प्रस्ताव के बारे में संसदीय कार्य मंत्री प्रकाश पंत का यह कथन कि इन बोलियों को मान्यता मिलने के बाद राज्य की बोलियों को तो बढ़ावा मिलेगा ही साथ ही विभिन्न क्षेत्रों में लोग अपनी भावनाएं भी ज्यादा प्रभावी और स्पष्ट ढंग से व्यक्त कर सकेंगे। उनका यह कथन इन बोलियों की प्रासंगिकता और महत्व को स्पष्ट करता है।
ये तो हो गई सरकार की बोलियों को लेकर संवेदनशीलता। निशंक सरकार ने कार्यभार संभालने के तुरंत बाद से जिस तरह से प्रदेश को हर मंच पर अलग रूप में स्थापित करने का प्रयास किया है उसका परिणाम आने वाले भविष्य में दिखेगा। प्रखर मुख्यमंत्री के नेतृत्व में कुशल सरकार ने उत्तराखंड को भारत का भाल बनाने में दिनरात एक कर दिया जिसका परिणाम है कि करीब दर्जनभर हिमालयी राज्यों में उत्तराखंड कई मामलों में नंबर वन गया है और यहां से अन्य राज्यों को अलग कार्य करने की प्रेरणा मिल रही है।
महाकुंभ को सरकार ने कुशलता से संपन्न करवा कर उसे वैश्विक आयोजन बना डाला तो प्रदेश की देवभूिम के रूप में बनी पहचान को स्थापित करने के लिए हरिद्वार में जल्द ही एक विशेष संस्कृति विश्वविद्यालय खोलने की घोषणा की है। इतना ही नहीं हरिद्वार के धर्मक्षेत्रों में अन्य भाषाओं के साथ साथ सभी सरकारी गैर सरकारी संस्थाओं में संस्कृत भाषा में ही नाम और पदनाम पटिटकाएं लगाने का आदेश देकर इस भाषा को एक नया जीवन प्रदान किया है।
बहरहाल सरकार के ये कुछ ऐसे फैसलें है जिनका तुंरत परिणाम दिखने लगा है। लेकिन इसके अलावा भी सरकार ने प्रदेश हित में कई ऐसे फैसले लिए हैं जिनके चलते भविष्य में उत्तराखंड की सूरत बदलने वाली है।
धीरेन्द्र प्रताप सिंह देहरादून उत्तराखंड
मानवधिकारो का सम्मान ही रियल पोल्लिसिंग -डीजीपी
उत्तराखंड देष का नव श्रृजित किंतु अन्तर्राश्ट्रीय सीमाओं से लगा होने के चलते काफी महत्वपूर्ण राज्य है। देष में लगातार बढ रहे नक्सली प्रभाव का संकट अब यहां भी महसूस किया जा रहा है। यह बात न केवल प्रदेष के मुख्यमंत्री बल्कि पुलिस प्रषासन भी कहीं दबी जुबान तो कहीं खुल कर मानने लगा है। प्रदेष की नेपाल और चीन से लगती सीमाएं काफी संवेदनषील हो चली है। मुख्यमंत्री जहां इसके लिए केन्द्र से विषेश सुविधाओं की मांग कर रहे है वहीं पुलिस के मुखिया सीमाओं पर चौकसी की व्यवस्था को लेकर चिंतित नजर आ रहे है।
इन्ही सब मुद्दों पर हाल ही में प्रदेष के पांचवंे पुलिस महानिदेषक के तौर पर कार्यभार संभालने वाले 1976 बैच के आईपीएस ज्योतिस्वरूप पांडे से हिन्दुस्थान समाचार उत्तराखंड के ब्यूरो प्रमुख धीरेन्द्र प्रताप सिंह ने बातचीत की। प्रस्तुत है उस बातचीत के मुख्य अंष।
प्रष्न-हि.स.- प्रदेष की अन्तर्राश्ट्रीय सीमाओं को लेकर आपके विचार क्या हैं।
डीजीपी- देखिए उत्तराखंड राज्य छोटा किन्तु अन्तर्राश्ट्रीय सीमाओं वाला दुर्गम राज्य है। इसकी सीमाएं चीन और नेपाल जैसे देषों से लगती है। जो अपने आप में ही सामरिक दृश्टि से काफी महत्वपूर्ण और संवेदनषील हैंे। चीन से लगती जो सीमाएं है वे रिमोट सीमाएं है और कुछ ऐसे क्षेत्र भी है जो वर्श भर बर्फ से ढके रहते हैं। वहां पुलिसिंग की कोई व्यवस्था अभी तक नहीं है। दूसरी सीमा भारत-नेपाल सीमा है। चूंकी ये सीमा खुली सीमा है और इसी वजह से यहां पर समस्याएं भी अधिक हैं। दोनों देषों को काली नदी सीमांकित करती है। लेकिन इस नदी के आर पार जाने के लिए कोई रोक टोेक नहीं है। कोई भी जांच का प्रावधान नहीं है। जिससे लोग आसानी से एक देष की सीमा से दूसरे देष में जा सकते हैं। इन सीमाओं पर पिछले 10 साल से भारत सरकार ने सषस्त्र सीमा पुलिस को सुरक्षा का जिम्मा दे रखा है।
प्रष्न-हि.स.- क्या प्रदेष पुलिस यह मानती है कि उत्तराखंड में सीमाओं को लेकर कोई समस्या नहीं है।
डीजीपी- नहीं ऐसा बिल्कुल नहीं है। प्रदेष पुलिस ऐसा नहीं मानती है। लेकिन प्रदेष पुलिस का कहना है कि इन सीमाओं पर सामान्य चेकिंग हो सकती है। जिससे हथियार,विस्फोटक,मादक पदार्थो की तस्करी पर रोक लगाई जा सकती है। लेकिन कई स्थान ऐसे है जहां से असामाजिक तत्व अपनी समाजविरोधी गतिविधियों को अंजाम दे सकते हैं। प्रदेष पुलिस का मानना है कि ऐसे स्थानों के लिए खास सुरक्षा इंतजाम किये जाने चाहिए। रही बात प्रदेष में इन सीमाओं को लेकर संकट की तो उत्तर प्रदेष और बिहार की तुलना में उत्तराखंड की सीमाएं ज्यादा सुरक्षित है। हां बनबसा और खटीमा से लगते क्षेत्रों में कुछ समस्याएं जरूर है। लेकिन उसकी सुरक्षा के लिए पुलिस सदैव अलर्ट है। हालांकि नेपाल में बढते माओवाद के प्रभाव से देष में हो रही नक्सली घटनाओं को देखते हुए यहां भी नक्सली तत्वों के विकास की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है। लेकिन इन क्षेत्रों में अभी तक कोई ऐसा दृश्टांत नहीं मिला है जिससे साबित हो सके कि इन क्षेत्रों में नेपाली माओवादी गतिविधियां संचालित हो रही है।
प्रष्न-हि.स.- क्या आप ये दावा कर रहे है कि प्रदेष में अभी तक नक्सली गतिविधि के कोई संकेत नहीं मिले हैं।
डीजीपी- जी बिल्कुल नहीं। मैं तो कह रहा हूं कि विगत दिनों उत्तराखंड में भी कुछ ऐसी घटनाएं पकड़ में आई हैं जिसमें ऐसी घटनाओं की साजिष का भंडाफोड़ हुआ है और ऐसी साजिषों के संकेत मिले। लेकिन पुलिस की सक्रियता ने उन्हें निश्क्रिय कर दिया। इन घटनाओं को देखते हुए प्रदेष में नक्सली घटनाओं के घटित होने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है। इन घटनाओं को होने की आंषका इसलिए भी अधिक हो जाती है कि प्रदेष का एक बडा हिस्सा वनाच्छादित है और नियमित और सामान्य सुरक्षा से दूर है और नक्सली ऐसे क्षेत्रों की तलाष में रहते है। इसलिए ऐसी संभावनाएं बरकरार हैं।
प्रष्न-हि.स.- उत्तराखंड के सीमावर्ती गांवों की सुरक्षा के लिए पुलिस की कोई विषेश योजना या विलेज विजिलेंसी की वर्तमान स्थिति के बारे में बताएं।
डीजीपी- देखिए ये सवाल बहुत ही संवेदनषील है। लेकिन मैं आपकांे बताना चाहूंगा कि सीमावर्ती गांवों को लेकर पुलिस बिल्कुल संजीदा है और अलर्ट है। रही बात विलेज विजिलेंसी की तो पुलिस इन क्षेत्रों पर विषेश नजर रखती है और हिसंक घटनाओं या शडयंत्रों को समय रहते निश्क्र्रिय करने के लिए अपना नेटवर्क बना रखी है जिसके माध्यम से ऐसी गतिविधियों पर रोकथाम का प्रयास लगातार जारी रहता है।
प्रष्न-हि.स.- पिछले दिनों हुई कुछ घटनाओं को लेकर पुलिस का मनोबल गिरने की बात भी की जा रही है। इसमें कितनी सत्यता है।
डीजीपी- देखिए पुलिस का काम किसी भी समस्या को तत्काल प्रभाव से रोकना और उसका निदान करना है। इसके लिए पूरे देष में पुलिस ही एक मात्र वह एजेंसी है जिसको सरकार ने न्यूनतम् बल प्रयोग का अधिकार भी दे रखा है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि पुलिस उस बल प्रयोग के अधिकार का बेजा इस्तेमाल करे और जनता को परेषान करे। पुलिस को इस अधिकार का प्रयोग बहुत ही सजगता के साथ करना पडता है और सिर्फ कानून एवं व्यवस्था को बनाए रखने के लिए ही किया जाता है। रही बात पुलिस के मनोबल गिरने की तो मैं बताना चाहूंगा कि प्रदेष पुलिस का मनोबल बिल्कुल उंचा है और वो अपना कार्य पूरी ईमानदारी से कर रही है। पुलिस की ड्यूटी ही संघर्श,गाली और गोली से षुरू होती है। इसलिए उसका मनोबल इन तीनों तत्वों से कभी भी प्रभावित नहीं होता।
प्रष्न-हि.स.- पुलिसिंग सिस्टम में बदलाव को लेकर आपके क्या विचार है।
डीजीपी- देखिए कोई भी सिस्टम हो उसमें समय के साथ बुराईयां आती ही है और समय के अनुसार ही उसमें बदलाव भी किए जाते है। इसलिए आज के पुलिसिंग सिस्टम की बात की जाए तो समय के साथ पुलिस के कार्यो में विभिन्नता आई है नई चुनौतियां और अपराध के नए तौर तरीके भी आए हैं उसके हिसाब से तो सिस्टम में बदलाव की जरूरत महसूस की जा सकती है। लेकिन इसके इतर तात्कालिक तौर पर पुलिस सिस्टम के सामने सबसे बडी चुनौती अपराध एवं षांति व्यवस्था को बनाए रखते हुए मानवाधिकारों की संपूर्ण सुरक्षा है। इस उद्देष्य को प्राप्त करने के लिए जो सुधार आवष्यक हो वो किए जाने चाहिए। इसके साथ ही पुलिस में मानवाधिकारों के प्रति जागरूकता पैदा करना भी समय की सबसे बडी मांग है। पुलिस समस्याओं से निपटने के लिए मानवाधिकारों के हनन का रास्ता अपनाने की बजाय अपराधों का विस्तृत विष्लेशण करे और थर्ड डिग्री जैसी बुराईयों से बचते हुए निरोधात्मक कार्रवाई करे तो षायद यही सबसे बडा सुधार माना जाएगा। मैं मानता हूं कि कुछ केष ऐसे होते है जो पेचीदे हो जाते है जिसे सुलझाने के लिए ऐसे रास्ते अपनाने पड़ते है लेकिन अगर ऐसे मामले में जनता का विष्वास जीतते हुए उसका सहयोग लिया जाए और विक्टिम पर ज्यादा ध्यान दिया जाए तो षायद मामले का आसान हल भी मिल जाएगा और मानवाधिकारों की रक्षा भी हो सकेगी। इसके साथ ही मेरा मानना है कि पुलिस को किसी भी मामले को सुलह समझौते के आधार पर सुलझााने का प्रयास करना चाहिए इसमें समाज और सिस्टम दोनों का हित होगा।
प्रष्न-हि.स.-उत्तराखंड में जेलों की दषा पर कोई टिप्पणी
डीजीपी- देखिए जेलों की दषा पूरे देष में एक जैसी है। हर जगह जेलें क्षमता से अधिक कैदियों की समस्याओं से जूझ रही है। इसका तात्कालिक हल यहीं है कि पुलिस सिस्टम में कार्यो के मूल्यांकन का आधार गुणात्मक हो न कि संख्यात्मक। लेकिन ऐसा हैं नहीं पुलिस अपनी सीआर अच्छा बनाने के चक्कर में संख्यात्मक प्रदर्षन ज्यादा करती है। जिसके चलते जेलों में कैदियों की संख्या बढती है। इसलिए मेरा मानना है कि पुलिस को उसी के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए जो वाकई में अपराधी हो और ऐसा तभी हो पाएगा जब पुलिस के कार्यो के आकलन का आधार क्वांटिटेटिव नहीं बल्कि क्वालिटेटिव होगा।
प्रष्न-हि.स.-उत्तराखंड पुलिस के लिए सबसे बडी चुनौती इस समय क्या है।
डीजीपी- मेरी नज़र में तो पुलिस के सामने हर समय चुनौती ही रहती है। लेकिन फिर भी यदि प्रदेष पुलिस के सामने चुनौती की बात करे तो मेरे हिसाब से मानवाधिकारों के सम्मान के साथ उनका संरक्षण करते हुए समाज की समस्याओं को दूर करना ही सबसे बडी चुनौती है।
प्रष्न-हि.स.- हिन्दुस्थान समाचार केे माध्यम से प्रदेष पुलिस को कोई संदेष देना चाहेंगे।
डीजीपी- इस मंच के माध्यम से प्रदेष की पुलिस को मैं कहना चाहूंगा कि वे मानवाधिकारों का सम्मान करते हुए प्रदेष की सेवा करे और धैर्य रखकर मामलों का निस्तारण करे। वे इस बात का ध्यान रखे िकवे समस्याओं को सुलझाने के लिए है उलझाने के लिए नहीं। सबका सहयोग लेते हुए कानून एवं व्यवस्था,यातायात,जन सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन कुषलतापूर्वक करे यही उनके लिए मेरा संदेष है।
प्रष्न-हि.स.-इस मंच के माध्यम से प्रदेष की जनता को क्या संदेष देना चाहेंगे।
डीजीपी- प्रदेष की प्रबुद्ध जनता को मैं यहीं संदेष देना चाहूंगा कि किसी भी वारदात या समस्या के समाधान को लेकर वह ज्यादा दबाव न बनाए। क्यों कि पुलिस के पास भी कोई ऐसा तंत्र नहीं है िकवह पलक झपकते ही किसी भी समस्या का समाधान कर दे। जनता पुलिस का सहयोग करे और किसी भी समस्या के जल्द समाधान के लिए पुलिस पर धरना प्रदर्षन व अन्य माध्यमों से दबाव बनाने पर पुलिस का ध्यान भंग होता है और वारदात को वर्कआउट करने में समय लगता है। इसलिए जनता पुलिस मित्र बन कर कानून एवं व्यवस्था स्थापित करने में पुलिस की मदद करे यही समाज के हित में होगा।
प्रस्तुति- धीरेन्द्र प्रताप सिंह देहरादून उत्तराखंड
उत्तराखंड में आयी दैवीय आपदा से प्रभावित लोगों को राहत देने खुद गांव.गांव जार हे है. मुख्यमंत्री
पीड़ितों की मदद के भरसक प्रयास करें हर अधिकारी. निशंक
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जगमोहन
उत्तराखंड में आयी दैवीय आपदा पर भी राजनैतिक रोटियां सेकने से बाज नहीं आ रही है कांग्रेस
मुख्यमंत्री ‘निशंक’ ने कहां आपदा की इस घड़ी में बयानबाजी नहीं जिम्मेदारी निभाए –कांग्रेस
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------मुख्यमंत्री ‘निशंक’ ने कहां आपदा की इस घड़ी में बयानबाजी नहीं जिम्मेदारी निभाए –कांग्रेस
उत्तराखंड में कुदरत के कहर ने सब कुछ तबाह कर दिया है। राज्य में मची इस तबाही के बाद हुए नुकसान का लेखा-जोखा राज्य सरकार ने तैयार कर लिया है। राज्य के मुख्यमंत्री डॉ.रमेश पोखरियाल निशंक खुद उस हर आपदा ग्रस्त क्षेत्र का दौर कर रहे है जहां लोग इस प्राकृतिक आपदा के सबसे ज्यादा शिकार हुए है। डॉ.निशंक खुद तो हर जिल में में इस प्राकृतिक आपदा से हुई हानि का जायजा लेने हर दिन जा ही रहे है,साथ ही अधिकारियों को भी आपदा प्रभावित क्षेत्रों में समुचित इंतजाम किए जाने के निर्देश भी दे रहे है। ताकि राहत कार्यों में तेजी लायी जा सके।
डॉ.निशंक पूरे उत्तराखंड में गांव-गांव जाकर प्रभावित लोगों से भी बातचीत कर रहे है। और उनकी समस्याओं को सुन उन्हें हर संभव मदद का भरोसा दिला रहे है। निश्चित तौर पर इस बार उत्तराखंड में कुदरत का खौफ लोगों के जेहन में समा गया है। बादल,बारिश,बाढ़ और भूस्खलन हर रूप में प्रकृति ने हाहाकार मचाया है। इस खौफ में किसी ने अपना पूरा परिवार खो दिया,किसी ने मां-पिता और किसी ने छोटे-छोटे बच्चे,पहाड़ पर कोई ऐसा नहीं बचा जिसने इस कहर का जुल्म नहीं सहा हो। जन-जीव-जन्तु हर कोई इस प्राकृतिक आपदा का शिकार हुआ।
ऐसे समय में जब प्रदेश को एक भंयकर कालखंड खुद की आगोश में ले चुका हो। और प्रदेश का मुखिया घर-घर जाकर प्रभावित लोगों की मदद कर उन्हें इस भंयकर सदमें से बाहर निकालने में लगा हो,उन्हें हर स्तर पर मदद करने के लिए अपने स्तर से हर प्रयास कर रहा हो। ऐसे में जब आपदा के नाम पर राज्य सरकार को पांच सौ करोड़ रूपये आपदा राहत के रूप में देने पर विपक्षी पार्टी कांग्रेस,इस आपदा के शिकार हुए लोगों के दुःख पर राजनैतिक रोटियां सेकने में लग जाएं तो निश्चित तौर पर इन पार्टियों के लिए इससे बड़े शर्म की बात और कोई नहीं हो सकती है।
उत्तराखंड की स्थिति आज किसी से छुपी नहीं है। यहां के गांव-खेत-खलिहान-सड़के और जीवन स्तर रो-रो कर कह रहा हैं कि मुझे संभालों कोई तो मुझे संवारों मेरे बचपन को बचाओं उसे तुम्हारे साथ एक लंबी यात्रा करनी है। ऐसी स्थिति मैं भी कांग्रेस को खुद की राहत बहुत बड़ी लग रही है। जिसके चलते वह यह भी भुल गयी हैं कि आज उत्तराखंड की जनता को इन पैसों से ज्यादा उनके साथ खड़े होने वालों की,उन्हें सहारा देने वालों की और उनके आंसू कुछ हद तक पोछने वालों की जरूरत है। लेकिन कांग्रेस के नेतागणों को इस सब से भला क्या करना। उन्हें तो उत्तराखंड के लोगों के उज़डे घरों और अपनों से बिछुड़ चुके लोगों की चिताओं की आंच में रोटी सेकने के शिवाया आज कुछ सुज़ ही नहीं रहा है। यदि ऐसा नहीं होता तो,शायद कांग्रेस के केंद्रीय स्तर और राज्य स्तर के बड़े नेता इस समय पांच सौ करोड़ रूपये पर राजनिति करने की बजाया राज्य सरकार के साथ खड़े होकर प्रभावित लोगों की मदद करने आगे बढ़ रहे होते।
उत्तराखंड की विकास यात्रा पहीया आज पूरी दुनिया के सामने है। इसकी रफ्तार आज कितनी है। यह भी दुनिया देख रही है। शायद केंद्र को भी यह साफ दिखायी दे रहा होगा। उत्तराखंड में बारिश से पैदा हुए हालात दी वजह से खाद्यान का भारी संकट पैदा हो गया था। लेकिन डॉ.निशंक के नेतृत्व में सरकार ने पर्वतीय इलाकों में वायुसेना और हैलीकॉप्टर के जरिए जिला मुख्यालयों तक राशन पहुंचाने की व्यवस्था की गयी। राशन-ईंधन देहरादून से पर्वतीय क्षेत्र तक लगातार पहुंचायी जा रही है। इसी के साथ दवाईयां-दूध और रोजमरा की आवश्यक सामग्री भी प्रदेश सरकार के माध्मय से हर दिन उन क्षेत्रों में पहूंचायी जा रही है। जिनमें अभी भी इस आपदा से प्रभावित लोग फंसे है। राज्य के मुख्यमंत्री खुद अपने स्तर से हर प्रभावित क्षेत्र को देख रहे है। क्या ऐसे समय में विपक्षी पार्टी कांग्रसे का राज्य की जनता के प्रति कोई फर्ज नहीं बनता था कि वह पांच सौ करोड़ की राजैतिक रोटियां सैकनी की बजाया राज्य सरकार के साथ खड़े होकर राज्य की जनता की मदद करें। लेकिन उसके पास इसके लिए शायद सयम नहीं है। उसके पास तो मीडिया का ज़मवाड़ा कर इस बात का बखान करने का समय है कि हमने राज्य को इस आपदा के समय में केंद्र से पांच सौ रूपये का राहत पैकेज दिलाया। इस लिए जनता को उनकी तरफ देखना चाहिए। लेकिन कांग्रेस पार्टी के इन नेताओं को यह नहीं भूलना चाहिए कि प्रदेश की जनता इतनी भी मूर्ख नहीं हैं कि वह सिर्फ पांच सौ करोड़ो के बहकावें में आ जाएगी। आज उत्तराखंड का आम जनमानस यह अच्छी तरह समझ चुका हैं कि उसका हसली हितैषी कौन है,इसी आपदा के समय में उसके साथ कौन खड़ा है। कौन उनकी सुख-सुविधाओं का ध्यान रख रहा है। मैं खुद इस आपदा के समय में प्रदेश के कई जिलों का दौरा किया। यह जाकर रिर्पाटिंग की घर-घर जाकर लोगों की हालात का जायजा लिया। मुझे भी एक भी गांव या घर में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं मिला जिसने केंद्र सरकार के एक भी नुमायीदें के बारे में बात करनी चाही हो। लोगों का यहां तक कहना हैं कि जो कांग्रेस अपना हाथ आम आदमी के साथ होने की बात करती है,वह हाथ आज आम आदमी के गिरेबान तक पहुंच गया हैं,जो आम आदमी को सिर्फ और सिर्फ आंसू देना जानता है।
यहीं नहीं प्रदेश की आम जनता में यह सुगबुहाट आज हर जगह सुनायी देने लगी है कि राज्य की निशंक सरकार के कार्यकल्पों पर जिस तरह से राज्य की विपक्षी पार्टी और केंद्र सरकार कटाक्ष कर रही है। इसका जबाब राज्य की जनता निश्चित तौर पर 2012 में देगी और कांग्रेस को समझ आ जाएगा की उसकी ज़मीनी हकीकत आख़िर क्या थी।
- जगमोहन ‘आज़ाद’
रघुपति राघव राजा राम
रघुपति राघव राजा राम , कलियुग व्यापा है श्री राम ।
राजनीति का बना अखाडा , जन्मभूमि और तेरा नाम ।
जनता पिसती दो पाटों में , दोनों तरफ है तेरा नाम ।
एक बिरोधी दल के नेता , एक बोलते जय श्री राम ।
एक जुए में बाजी लगाता , एक नग्न करता है राम ।
परदे के पीछे जाकर सब , भूल हैं जाते तेरा नाम ।
किसे कहें अब पांडव और , किसे कहें कौरव हम राम ।
अंतर नहीं रहा दोनों में , दोनों बेंच रहे हैं तेरा नाम ।
अब तो तुम ही न्याय करो , अवधपुरी के राजा राम ।
बिस्मिल्लाह करना है सबको , या कहना है जय श्री राम ।
राजनीति का बना अखाडा , जन्मभूमि और तेरा नाम ।
जनता पिसती दो पाटों में , दोनों तरफ है तेरा नाम ।
एक बिरोधी दल के नेता , एक बोलते जय श्री राम ।
एक जुए में बाजी लगाता , एक नग्न करता है राम ।
परदे के पीछे जाकर सब , भूल हैं जाते तेरा नाम ।
किसे कहें अब पांडव और , किसे कहें कौरव हम राम ।
अंतर नहीं रहा दोनों में , दोनों बेंच रहे हैं तेरा नाम ।
अब तो तुम ही न्याय करो , अवधपुरी के राजा राम ।
बिस्मिल्लाह करना है सबको , या कहना है जय श्री राम ।
मैंने भगवा ओढ़ लिया, मैं आतंकी हूँ।
शीश शिखा होने से पक्का हिन्दु था ही,
मैंने भगवा ओढ़ लिया, मैं आतंकी हूँ।
आतंकी है भोर, है गोधूलि आतंकी
वह्नि की ज्वाला है दीपशिखा आतंकी
आतंकी है यज्ञ वेदमन्त्र आतंकी
आतंकी यजमान पुरोहित भी आतंकी
मैं इन सब का आदर करता पूज्य मानता
इन्हें, अत: मैं मान रहा मैं आतंकी हूँ।
मैंने भगवा ओढ़ लिया, मैं आतंकी हूँ।
आतंकी है राम और कृष्ण आतंकी
विश्वामित्र वसिष्ठ द्रोण कृप हैं आतंकी
बृहस्पति भृगु देवर्षि नारद आतंकी
व्यास पराशर कुशिक भरद्वाज आतंकी
मेरे ये इतिहास पुरुष पितृ ये मेरे
वंशज इनका होने से मैं आतंकी हूँ।
मैंने भगवा ओढ़ लिया, मैं आतंकी हूँ।
नामदेव नानक और दयानन्द आतंकी
रामदास (समर्थ) विवेकानन्द आतंकी
आदिशंकराचार्य रामकृष्ण आतंकी
गौतम कपिल कणाद याज्ञवल्क्य आतंकी
ये मेरे आदर्श सदा सर्वदा रहे हैं
इसीलिए मैं कहता हूँ मैं आतंकी हूँ।
मैंने भगवा ओढ़ लिया, मैं आतंकी हूँ।
भगवा तो भारत की है पहचान कहाता
प्रिय तिरंगा भी भगवा से शोभा पाता
भारतमाता के कर में भगवा फहराता
भारत की अस्मिता से है भगवा का नाता
बोध यदि भगवा का उग्रवाद से हो तो
अच्छा यही कि सब बोलें मैं आतंकी हूँ।
मैंने भगवा ओढ़ लिया, मैं आतंकी हूँ।
मैंने भगवा ओढ़ लिया, मैं आतंकी हूँ।
मैंने भगवा ओढ़ लिया, मैं आतंकी हूँ।
मैंने भगवा ओढ़ लिया, मैं आतंकी हूँ।
आतंकी है भोर, है गोधूलि आतंकी
वह्नि की ज्वाला है दीपशिखा आतंकी
आतंकी है यज्ञ वेदमन्त्र आतंकी
आतंकी यजमान पुरोहित भी आतंकी
मैं इन सब का आदर करता पूज्य मानता
इन्हें, अत: मैं मान रहा मैं आतंकी हूँ।
मैंने भगवा ओढ़ लिया, मैं आतंकी हूँ।
आतंकी है राम और कृष्ण आतंकी
विश्वामित्र वसिष्ठ द्रोण कृप हैं आतंकी
बृहस्पति भृगु देवर्षि नारद आतंकी
व्यास पराशर कुशिक भरद्वाज आतंकी
मेरे ये इतिहास पुरुष पितृ ये मेरे
वंशज इनका होने से मैं आतंकी हूँ।
मैंने भगवा ओढ़ लिया, मैं आतंकी हूँ।
नामदेव नानक और दयानन्द आतंकी
रामदास (समर्थ) विवेकानन्द आतंकी
आदिशंकराचार्य रामकृष्ण आतंकी
गौतम कपिल कणाद याज्ञवल्क्य आतंकी
ये मेरे आदर्श सदा सर्वदा रहे हैं
इसीलिए मैं कहता हूँ मैं आतंकी हूँ।
मैंने भगवा ओढ़ लिया, मैं आतंकी हूँ।
भगवा तो भारत की है पहचान कहाता
प्रिय तिरंगा भी भगवा से शोभा पाता
भारतमाता के कर में भगवा फहराता
भारत की अस्मिता से है भगवा का नाता
बोध यदि भगवा का उग्रवाद से हो तो
अच्छा यही कि सब बोलें मैं आतंकी हूँ।
मैंने भगवा ओढ़ लिया, मैं आतंकी हूँ।
मैंने भगवा ओढ़ लिया, मैं आतंकी हूँ।
मैंने भगवा ओढ़ लिया, मैं आतंकी हूँ।
भारतमाता के सम्बन्धी
मोहनदास कर्मचन्द गान्धी जिन्हें महात्मा कहा गया व कॉंग्रेस के कुछ स्वार्थी व भारत राष्ट्र की ऐतिहासिक व सांस्कृतिक कल्पना से शून्य बुद्धिराक्षसों ने उन्हें विखण्डित भारत का राष्ट्रपिता बना डाला। मूलत: गुजराती होने से व उनकी अवस्था के कारण उन्हें बापू कहा जाना स्वभाविक था किन्तु बापू कहते कहते राष्ट्रपिता बना देना भारत के साथ अन्याय ही नहीं वरन् एक पातक है जिसका दण्ड न जाने कब तक हम भारतवासियों को सहन करना होगा। यह सनातन पुरातन राष्ट्र जहाँ देव भी जन्म लेने के लिए लालायित रहते हैं, वैदिक मनीषा से बंकिम बाबू पर्यन्त जिसे भारतमाता कह कर उसकी वन्दना करते हैं, भला उसका कोई पिता कैसे हो सकता है? किन्तु धर्मनिरपेक्ष फिरंगी समर्थकों को इससे क्या क्योंकि वह और भी नाते बना गए हैं- चाचा, माता ( स्मरण करें एक प्रमुख कॉंग्रेसी देवकान्त बरुवा की इन्दिरा गान्धी के विषय में की गई टिप्पणी- INDIRA IS INDIA AND INDIA IS INDIRA.) भारत को ही INDIA कहा जाता है तथा भारतमाता भी, इस प्रकार इन्दिरा जी भारतमाता के समकक्ष कही गई हैं। एक पद सृजित किया गया राष्ट्रपति, तो इस दृष्टि से भारतमाता के पति राष्ट्रपति हुए, यह बात पुरुषों तक तो चल रही थी किन्तु अब एक महिला के इस पद पर आसीन होने से उसे राष्ट्रपति कहना उचित नहीं क्योंकि पति शब्द का अर्थ HUSBAND अथवा स्वामी MASTER हो सकता है। HUSBAND तो स्त्री हो नहीं सकती अत: प्रतिभा को राष्ट्रपत्नी कहना ठीक होगा। हाँ यदि पति का अर्थ स्वामी लगाएं तो प्रतिभा स्वामिनी होने से राष्ट्रपति कहला सकती है। किन्तु तब यह मानना होगा कि धर्मनिरपेक्षों के अनुसार यह भारत एक सम्पत्ति है जिसका/जिसकी स्वामी/स्वामिनी राष्ट्रपति होता/होती है। भाषा व शब्दों के प्रति तनिक भी गम्भीरता से विचार करने वाले इस विडम्बना को समझ तदानुसार अपना दृष्टिकोण स्थापित करें।
भारतमाता के साथ और भी सम्बन्ध जोड़ने का प्रयास हुआ है इन्दिरा जी के पुत्र को भैय्या व उनकी इतालवी पत्नी को भाभी कहा गया है तथा इसके उपरान्त अब राहुल भय्या को युवराज से सम्बोधित करते समाचार माध्यम व धर्मनिरपेक्ष राजनेता तनिक भी लज्जा अथवा संकोव्ह का अनुभव नहीं करते हैं। भारतमाता के सम्बन्धों की यह श्रृँखला कहाँ समाप्त होगी, ज्ञात नहीं।
डॉ. जय प्रकाश गुप्त, अम्बाला छावनी।
९३१५५१०४२५
भारतमाता के साथ और भी सम्बन्ध जोड़ने का प्रयास हुआ है इन्दिरा जी के पुत्र को भैय्या व उनकी इतालवी पत्नी को भाभी कहा गया है तथा इसके उपरान्त अब राहुल भय्या को युवराज से सम्बोधित करते समाचार माध्यम व धर्मनिरपेक्ष राजनेता तनिक भी लज्जा अथवा संकोव्ह का अनुभव नहीं करते हैं। भारतमाता के सम्बन्धों की यह श्रृँखला कहाँ समाप्त होगी, ज्ञात नहीं।
डॉ. जय प्रकाश गुप्त, अम्बाला छावनी।
९३१५५१०४२५
भारतमाता के सम्बन्धी
मोहनदास कर्मचन्द गान्धी जिन्हें महात्मा कहा गया व कॉंग्रेस के कुछ स्वार्थी व भारत राष्ट्र की ऐतिहासिक व सांस्कृतिक कल्पना से शून्य बुद्धिराक्षसों ने उन्हें विखण्डित भारत का राष्ट्रपिता बना डाला। मूलत: गुजराती होने से व उनकी अवस्था के कारण उन्हें बापू कहा जाना स्वभाविक था किन्तु बापू कहते कहते राष्ट्रपिता बना देना भारत के साथ अन्याय ही नहीं वरन् एक पातक है जिसका दण्ड न जाने कब तक हम भारतवासियों को सहन करना होगा। यह सनातन पुरातन राष्ट्र जहाँ देव भी जन्म लेने के लिए लालायित रहते हैं, वैदिक मनीषा से बंकिम बाबू पर्यन्त जिसे भारतमाता कह कर उसकी वन्दना करते हैं, भला उसका कोई पिता कैसे हो सकता है? किन्तु धर्मनिरपेक्ष फिरंगी समर्थकों को इससे क्या क्योंकि वह और भी नाते बना गए हैं- चाचा, माता ( स्मरण करें एक प्रमुख कॉंग्रेसी देवकान्त बरुवा की इन्दिरा गान्धी के विषय में की गई टिप्पणी- INDIRA IS INDIA AND INDIA IS INDIRA.) भारत को ही INDIA कहा जाता है तथा भारतमाता भी, इस प्रकार इन्दिरा जी भारतमाता के समकक्ष कही गई हैं। एक पद सृजित किया गया राष्ट्रपति, तो इस दृष्टि से भारतमाता के पति राष्ट्रपति हुए, यह बात पुरुषों तक तो चल रही थी किन्तु अब एक महिला के इस पद पर आसीन होने से उसे राष्ट्रपति कहना उचित नहीं क्योंकि पति शब्द का अर्थ HUSBAND अथवा स्वामी MASTER हो सकता है। HUSBAND तो स्त्री हो नहीं सकती अत: प्रतिभा को राष्ट्रपत्नी कहना ठीक होगा। हाँ यदि पति का अर्थ स्वामी लगाएं तो प्रतिभा स्वामिनी होने से राष्ट्रपति कहला सकती है। किन्तु तब यह मानना होगा कि धर्मनिरपेक्षों के अनुसार यह भारत एक सम्पत्ति है जिसका/जिसकी स्वामी/स्वामिनी राष्ट्रपति होता/होती है। भाषा व शब्दों के प्रति तनिक भी गम्भीरता से विचार करने वाले इस विडम्बना को समझ तदानुसार अपना दृष्टिकोण स्थापित करें।
भारतमाता के साथ और भी सम्बन्ध जोड़ने का प्रयास हुआ है इन्दिरा जी के पुत्र को भैय्या व उनकी इतालवी पत्नी को भाभी कहा गया है तथा इसके उपरान्त अब राहुल भय्या को युवराज से सम्बोधित करते समाचार माध्यम व धर्मनिरपेक्ष राजनेता तनिक भी लज्जा अथवा संकोच का अनुभव नहीं करते हैं। भारतमाता के सम्बन्धों की यह श्रृँखला कहाँ समाप्त होगी, ज्ञात नहीं।
डॉ. जय प्रकाश गुप्त, अम्बाला छावनी।
९३१५५१०४२५
भारतमाता के साथ और भी सम्बन्ध जोड़ने का प्रयास हुआ है इन्दिरा जी के पुत्र को भैय्या व उनकी इतालवी पत्नी को भाभी कहा गया है तथा इसके उपरान्त अब राहुल भय्या को युवराज से सम्बोधित करते समाचार माध्यम व धर्मनिरपेक्ष राजनेता तनिक भी लज्जा अथवा संकोच का अनुभव नहीं करते हैं। भारतमाता के सम्बन्धों की यह श्रृँखला कहाँ समाप्त होगी, ज्ञात नहीं।
डॉ. जय प्रकाश गुप्त, अम्बाला छावनी।
९३१५५१०४२५
हेड स्टार्ट जो स्टार्ट न हो सके
अखिलेश उपाध्याय / कटनी
राज्य शिक्षा केंद्र की योजना के तहत स्थापित किये गए हेडस्टार्ट केंद्र अधिकांस जगह स्टार्ट नहीं हो सके. इन केन्द्रों में भेजे गए कम्पूटर, इनवर्टर कई केन्द्रों में प्रभारी अधिकारिओ के घर की शोभा बढ़ा रहे है तो कुछ जगह बिना चालू हुए ही कबाड़ की स्थिति में पहुच चुके है. फिर भी शासन को भेजे जा रहे आकड़ो में हेडस्टार्ट केन्द्रों से लाभान्वित होने वाले बच्चो की संख्या हजारो में है.
हर साल लाखो रुपयों का गोलमाल
रखरखाव के लिए राज्य शिक्षा केंद्र द्वारा हर साल दस हजार की राशी भी दी जा रही है जिसे सम्बंधित अधिकारी बराबर आहरित कर रहे है. हद तो यह है की राजीव गाँधी शिक्षा मिसन के डी पी सी व अन्य अधिकारिओ ने कभी इन केन्द्रों की जाँच करने और नियमित संचालित करने की जरूरत महसूस नहीं की. जबकि भोपाल स्तर से चल रही मानिटरिंग के तहत कटनी पहुचे अधिकारिओ ने जाँच के दौरान कैमोर के खल्वारा बाजार तथा ढीमर खेडा विकासखंड के कई केन्द्रों की बदतर स्थिति खुद देखी है. इस दौरान कुछ जगह कम्पूटर घरो में पाए गए थे तो अधिकांश जगह तो बंद ही पड़े है.
करोडो के वारे न्यारे
राज्य शिक्षा केंद्र ने वर्ष 2007 में जिले के विकासखंडो में 67 केन्द्रों की स्थापना की थी जिन पर छेह करोड़ चोहत्तर लाख ईकीस हजार रूपये खर्च किये थे. प्रत्येक केंद्र को तीन कम्पूटर व यु पी एस बैटरी उपलब्द्ध कराई गई थी. राज्य शिक्षा केंद्र ने हेडस्टार्ट केन्द्रों को अलग से कक्ष तथा फर्नीचर सहित अन्य सुविधाए भी मुहैया कराई थी.
लाभान्वितो के फर्जी आकडे
बहोरिबंद विकासखंड के बचैया निवासी मनोज तिवारी को सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत दी गई जानकारी में विभाग ने बताया है की वर्तमान में चालू साठ हेडस्टार्ट केन्द्रों से अब तक जिले के पांच हजार चार सौ चौवन छात्र अव तक योजना से लाभान्वित हुए है. इनमे बडवारा के 756 , बहोरिबंद के 668 , ढीमरखेडा के 927 , कटनी के 1410 , रीठी के 711 और विजयराघव गढ़ के 982 छात्र शामिल है. मगर राजीव गाँधी शिक्षा मिसन इन छात्रो की सूची नहीं दे पा रहा है जिससे पता चलता है की कागजो में फर्जी आकडे दर्ज किये गए है.
नए केन्द्रों का पता नहींराज्य शिक्षा केंद्र ने पत्र क्रमांक ई ई सी/हेद्स्तार्ट/2010 /4934 दिनांक 01 .07 .2010 के जरिये नए हेडस्टार्ट केन्द्रों के लिए चौदह हजार रूपये प्रति केंद्र राशी जारी करने की सूचना दी थी. साथ ही पुराने केन्द्रों के उन्नयन हेतु दस हजार अलग से जारी किये गए थे. इस पत्र में नए केन्द्रों की स्थापना के मापदंड भी तय करके भेजे गए थे मगर अब तक नए केद्रो की स्थापना नहीं की गई है. विभागीय सूत्रों के मुताबिक नए केंद्र अब तक नहीं खोए जा सके है.
डी पी सी अनजान
कटनी में पदस्थ डी पी सी सुधीर उपाध्याय ने बताया की हेडस्टार्ट केन्द्रों में कम्पुटर प्रशिक्षित शिक्षको की बेहद कमी है. जिसके कारण कई केन्द्रों के सञ्चालन में परेशानी आ रही है . इसकी जानकारी राज्य शिक्षा केंद्र को भी भेजी गई है. जहा तक कम्पूटर घरो में पहुचने का सवाल है aisee कोई शिकायत नहीं मिली है फिर भी अधिकारिओ से इसकी जाँच करा रिपोर्ट मगाई जायेगी.
राज्य शिक्षा केंद्र की योजना के तहत स्थापित किये गए हेडस्टार्ट केंद्र अधिकांस जगह स्टार्ट नहीं हो सके. इन केन्द्रों में भेजे गए कम्पूटर, इनवर्टर कई केन्द्रों में प्रभारी अधिकारिओ के घर की शोभा बढ़ा रहे है तो कुछ जगह बिना चालू हुए ही कबाड़ की स्थिति में पहुच चुके है. फिर भी शासन को भेजे जा रहे आकड़ो में हेडस्टार्ट केन्द्रों से लाभान्वित होने वाले बच्चो की संख्या हजारो में है.
हर साल लाखो रुपयों का गोलमाल
रखरखाव के लिए राज्य शिक्षा केंद्र द्वारा हर साल दस हजार की राशी भी दी जा रही है जिसे सम्बंधित अधिकारी बराबर आहरित कर रहे है. हद तो यह है की राजीव गाँधी शिक्षा मिसन के डी पी सी व अन्य अधिकारिओ ने कभी इन केन्द्रों की जाँच करने और नियमित संचालित करने की जरूरत महसूस नहीं की. जबकि भोपाल स्तर से चल रही मानिटरिंग के तहत कटनी पहुचे अधिकारिओ ने जाँच के दौरान कैमोर के खल्वारा बाजार तथा ढीमर खेडा विकासखंड के कई केन्द्रों की बदतर स्थिति खुद देखी है. इस दौरान कुछ जगह कम्पूटर घरो में पाए गए थे तो अधिकांश जगह तो बंद ही पड़े है.
करोडो के वारे न्यारे
राज्य शिक्षा केंद्र ने वर्ष 2007 में जिले के विकासखंडो में 67 केन्द्रों की स्थापना की थी जिन पर छेह करोड़ चोहत्तर लाख ईकीस हजार रूपये खर्च किये थे. प्रत्येक केंद्र को तीन कम्पूटर व यु पी एस बैटरी उपलब्द्ध कराई गई थी. राज्य शिक्षा केंद्र ने हेडस्टार्ट केन्द्रों को अलग से कक्ष तथा फर्नीचर सहित अन्य सुविधाए भी मुहैया कराई थी.
लाभान्वितो के फर्जी आकडे
बहोरिबंद विकासखंड के बचैया निवासी मनोज तिवारी को सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत दी गई जानकारी में विभाग ने बताया है की वर्तमान में चालू साठ हेडस्टार्ट केन्द्रों से अब तक जिले के पांच हजार चार सौ चौवन छात्र अव तक योजना से लाभान्वित हुए है. इनमे बडवारा के 756 , बहोरिबंद के 668 , ढीमरखेडा के 927 , कटनी के 1410 , रीठी के 711 और विजयराघव गढ़ के 982 छात्र शामिल है. मगर राजीव गाँधी शिक्षा मिसन इन छात्रो की सूची नहीं दे पा रहा है जिससे पता चलता है की कागजो में फर्जी आकडे दर्ज किये गए है.
नए केन्द्रों का पता नहींराज्य शिक्षा केंद्र ने पत्र क्रमांक ई ई सी/हेद्स्तार्ट/2010 /4934 दिनांक 01 .07 .2010 के जरिये नए हेडस्टार्ट केन्द्रों के लिए चौदह हजार रूपये प्रति केंद्र राशी जारी करने की सूचना दी थी. साथ ही पुराने केन्द्रों के उन्नयन हेतु दस हजार अलग से जारी किये गए थे. इस पत्र में नए केन्द्रों की स्थापना के मापदंड भी तय करके भेजे गए थे मगर अब तक नए केद्रो की स्थापना नहीं की गई है. विभागीय सूत्रों के मुताबिक नए केंद्र अब तक नहीं खोए जा सके है.
डी पी सी अनजान
कटनी में पदस्थ डी पी सी सुधीर उपाध्याय ने बताया की हेडस्टार्ट केन्द्रों में कम्पुटर प्रशिक्षित शिक्षको की बेहद कमी है. जिसके कारण कई केन्द्रों के सञ्चालन में परेशानी आ रही है . इसकी जानकारी राज्य शिक्षा केंद्र को भी भेजी गई है. जहा तक कम्पूटर घरो में पहुचने का सवाल है aisee कोई शिकायत नहीं मिली है फिर भी अधिकारिओ से इसकी जाँच करा रिपोर्ट मगाई जायेगी.
29.9.10
कबीर के दोहे, कॉमनवेल्थ खेल के परिप्रेक्ष्य में..
साई इतना दीजिये, जितना कलमाडी खाय !
सात पुश्त भूखी ना रहे, कोई चिंता नही सताय !!
गिल कलमाडी दौऊ खडे, काके लागू पांय !
बलिहारी मै दौऊ पर, भट्टा दिया बिठाय !!
लूट सके तो लूट ले, वेल्थ खेल की लूट !
पाछे फिर पछ्तायेगा, फिर नही मिलेगी छूट !!
गिर गया तो क्या हुआ, पुल था थोडा कमजोर !
चिंता काहे की करनी, माल तो लिया बटोर !!
चाह मिटी, चिंता मिटी, मनवा बेपरवाह !
माल तो अंदर कर लिया, भरते रहो सब आह !!
सात पुश्त भूखी ना रहे, कोई चिंता नही सताय !!
गिल कलमाडी दौऊ खडे, काके लागू पांय !
बलिहारी मै दौऊ पर, भट्टा दिया बिठाय !!
लूट सके तो लूट ले, वेल्थ खेल की लूट !
पाछे फिर पछ्तायेगा, फिर नही मिलेगी छूट !!
गिर गया तो क्या हुआ, पुल था थोडा कमजोर !
चिंता काहे की करनी, माल तो लिया बटोर !!
चाह मिटी, चिंता मिटी, मनवा बेपरवाह !
माल तो अंदर कर लिया, भरते रहो सब आह !!
आख़िरी आस
थी मेरे दिल की
एक अनबुझी प्यास,
ईश्वर अवश्य करेगा पूरी
ऐसी थी मन को आस,
पर टूटी आख़िरी उम्मीद
हुआ लाचार मन उदास,
जब एक खबर सुनी
कानों ने यूँ ही अनायास,
खुद के आशियाने की
ईश्वर को जो तलाश,
कर रहा वो खुद ही
क़ानून की कयास.
एक अनबुझी प्यास,
ईश्वर अवश्य करेगा पूरी
ऐसी थी मन को आस,
पर टूटी आख़िरी उम्मीद
हुआ लाचार मन उदास,
जब एक खबर सुनी
कानों ने यूँ ही अनायास,
खुद के आशियाने की
ईश्वर को जो तलाश,
कर रहा वो खुद ही
क़ानून की कयास.
अमृतरस: मेरी माँ .. -- Dr Nutan - NiTi
अमृतरस: मेरी माँ .. -- Dr Nutan - NiTi: " मेरी माँ रात के सघन अंधकार में, तेरे आंचल के तले, थपकियो के मध्य, लोरी की मृदु स्वर-लहरियों के संग, मैं बेबाक निडर सो जाती थी माँ..."
हैवानियत के पंजों ने कुचली मासूम दिव्या
कानपुर की रहने वाली कक्षा 6 की छात्रा 10 वर्षीया दिव्या उर्फ अनुष्का एक भोली-भाली लड़की थी। शिक्षा की रोशनी में वह आकाश की बुलन्दियों को छूना चाहती थी, लेकिन अफसोस वह अब इस दुनिया में नहीं है। किसी हैवान दरिंदे की करतूत ने उसे मौत की नींद सुला दिया। समाज के मुंह पर कालिख पोतने वाली इस घटना से पूरा शहर स्तब्ध तो हुआ ही लोगों में आक्रोश भी बन गया। दिव्या के साथ जो कुछ हुआ उसे सुनकर शायद हैवानियत के भी रोंगटे खड़े हो जाये। गणेशनगर के भारती ज्ञान स्थली स्कूल की मासूम छात्रा के साथ ब्लीडिंग की बात सामने आयी। संस्कृत की अध्यापिका जब क्लास में पहुंची, तो यह पता चला। तबियत खराब होने पर उसकी मृत्यु हो गई। दिव्या के साथ वहशीपन का खेल कब खेला गया पुलिस इसकी जांच पड़ताल कर रही है। पोस्टमार्टम में बलात्कार की पुष्टि होने के बाद अंदाजा लगाया जा सकता है कि ज्ञान के मंदिर में कौन सा खेल उस मासूम के साथ खेला गया। वहशीपन का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उसका पोस्टमार्टम करने वाली तीन चिकित्सकों की टीम भी चौंक गई। उसकी दोनों हथेलियों बायें पैर व पेट के निचले हिस्से में दांतों से काटे जाने के निशान मौजूद पाये गए। बलात्कार के दौरान अधिक खून बहने के चलते बच्ची की मौत हुई। हैवान दरिंदा अभी पुलिस की गिरफ्त से दूर है। अफसोस की बात यह है कि शर्मसार घटना को शिक्षा के मंदिर में अंजाम दिया गया। दिव्या का गरीब परिवार इंसाफ की मांग कर रहा है।
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28.9.10
पत्रकारिता में वेश्यावृत्ति की उपजती प्रवृत्ति : सामयिक ज्वलंत मुद्दा
पहले मै अपने बारे में बता दू कि मै एक छात्र हू तथा पढ़ाई करने के साथ पत्रकारिता की ABCD सीख रहा हूँ । मै पिछले ६ महीनों से एक बेहद मजबूत मीडियाहाउस में अपनी पत्रकारिता की ट्रेनिंग कर रहा हूँ । कहने के लिए मै पत्रकारिता की ट्रेनिंग ले रहा हू लेकिन असली वाकया कुछ और ही है जिसके बारे में फिर कभी विस्तार से भड़ास निकालूँगा.। लेकिन अभी मुद्दे पर चलना ज्यादा उचित होगा।
यु तो पत्रकारिता में वेश्यावृत्ति की प्रवृत्ति बहुत पुरानी है देखा जाए तो जो काम आज हम कर रहे है मेहनतयही काम शुरू में वो भी करते थे जो आज बड़े एडिटर बन गए है । बड़े एडिटर बनते ही अपने पुराने दिनों को भूल कर जो लूट खसोट क धंधा इन्होने किया तथा लोगो को डरा धमकाकर जो पैसा इन्होने बनाया आज उसी कि बदौलत यह महान संपादकों में शुमार किये जाने लगे है। एक वक्त होता था जब प्रभु चावला जी पैदल चलकर रिपोर्टिंग करने जाते थे.।।ऐसा मै कम उम्र के होने के नाते सिर्फ दावा नहीं कर रहा हूँ बल्कि उन्ही के एक पुराने सहयोगी रहे एक सज्जन जिन्होंने अपना नाम रामप्रताप सिंह बताया वो कहते है.। बात अभी गोस्वामी जी की ही करते है जो हाल ही में पिटे है दैनिक जागरण के महान संपादक महोदय (बड़े पत्रकार) जो अपने आखिरी समय में भी वही जवानी वाला काम करने से बाज नहीं आये इसी वजह से गार्डो से पिट गए.।।जिंदगी भर लोगो से उगाही करते रहे और अपनी आलीशान कोठी को बहुत ही बेहतरीन बना लिए ।।अपनी शुरुआत साइकिल से रिपोर्टिंग करके की थी.।।।।।बस समय बीतने के साथ धाक जमाते गए.जिंदगी भर समिति के फंड क पैसा खाकर तथा समिति के लिए आबंटित कोठी को अपनी निजी कोठी कि तरह इस्तेमाल करने रहे ।।।दबंगई तो उनकी पुराणी आदत में शुमार था ही.।अंतिम समय में भद्दगी हो गई.।। यह तो एक दो छोटे उदाहरण मात्र भर है.।।
यहाँ पत्रकारिता की वेश्यावृत्ति के बारे में बताता हू.।यहाँ पत्रकारिता करने के नाम पर आज हर कचहरी में दो-चार कथित पत्रकार भाई आपको मिल ही जायेंगे.।।जो पैसे लेकर खबर छपवाने और बदनाम करने क काम व्यापक पैमाने पर कर रहे है. यकीन न हो तो पास के किसी भी कचहरी में जाकर किसी को एक थप्पर मार दो.पुलिस वाले को समझा दो.। मामला जब खतम होने लगेगा तभी यह कथित पत्रकार लोग आपकी रिपोर्टिंग शुरू कर देंगे.।थोरे पैसे मांगेंगे कि हम न्यूज़ रुकवा देंगे.।।कुछ इस तरह हो रहा है पत्रकारिता को वेश्यावृति के धंधे का रूप देने का घटिया खेल.।
अब हो जाए बात एक दो मीडिया हाउस में चलने वाले इससे भी शर्मनाक खेल का ।यहाँ जिस लड़की ने पत्रकारिता की पढ़ाई भी नहीं की हो जिसे खेल के नाम पर लुखाछिपी खेलने के अलावा कुछ न आता हो उसे खेल वाली बुलेटिन का एंकर बना दिया गया और जो लोग योग्य थे उन्हें दरकिनार कर दिया गया.। ऐसी बाते मेरे सामने आई है । वजह वो लड़की उन कथित मीडिया हाउस के मालिकों के साथ पार्टिया अटेण्ड करती है साथ ही उनकी ही माह्नगी गाडियों में उनके साथ घूमकर उनका शोभा बढाने के साथ लोगो पर रौब झाड़ने की एक वजह बनती है । यह एक अलग तरीके से मीडिया कर्मी होने का फायदा उठाना ही हुआ.।।इसे भी हम उसी श्रेणी में खडे कर सकते है ।।
यहाँ ३ री बात.। पत्रकार होकर किसी के पास एड के नाम पर उगाही कोई नई बात नहीं है.। स्टिंग आपरेशन के नाम पर उगाही का खेल तो पुराना है इसे लगभग पूरी दुनिया जानती है यहाँ पैसे लेकर छोटे छोटे न्यूज़ पेपर में खबर बनाने उसे खारिज करने का काम पुराना है.। यह एक कड़ाई सच्चाई है लेकिन आप सबके सामने इसलिए बयान कर रहा हू कि यह भी धंधे बाजी वाली ही कारस्तानियो में शुमार होता है.।
हर कोई सिर्फ वही पहुचता है जहा कुछ पैसे मिलने की उम्मीद हो.।कोई किसी गरीब के मामले को नहीं उठाता सिर्फ B4M इसका अपवाद है इस लिंक के जरिये देख सकते है।यहाँ सिर्फ और सिर्फ यशवंत जी जैसे महान आदमी ने मेरा साथ दिया..अपने दम पर चार जमानती भी भर चुके है । कुछ काम अभी भी बाकी है http://www.bhadas4media.com/ dukh-dard/6564-journalist- help.html ।।यहाँ देख चुका हू कि कोई किसी के मदद को सामने नहीं आता खासकर छोटे पत्रकारों के।जिससे कि वो भी उन्ही कामो कि तरफ बढ़ जाते है जो उनके वसूलो के खिलाफ होते है।। जिन्हें वो घृणा दृष्टि से शुरू में देखते थे उन्ही के कदमो का पीछा करना उनकी मजबूरी बन जाती है ।। अभी तक मेरी दिक्कत खतम नहीं हुई है इससे हो सकता है कि आज मै जो बाते लिख रहा हू दूसरों के बारे में वही खुद भी करू.।स्टिंग आपरेशन करके मै भी ४०.०००० रुपये बना सकता हू ।।लेकिन तब क्या होगा? ।।।आओ खुद सोचिये अगर मै सिर्फ एक स्टिंग आपरेशन से ४०.००० कमा कर अपने भाई को छुडा सकता हू तो इस बात की क्या गारंटी है कि मै आगे से वो काम नहीं करूँगा? अगर मै यह काम करता हू तो यह भी पत्रकारिता की दलाली के साथ अपने जमीर की साथ ही खुदकी भी दलाली होगी. । मगर मै ऐसा नहीं करूँगा। मै ताल ठोककर कहता हू, हाँ मै पत्रकारिता सीख रहा हू लेकिन मै कभी पत्रकारिता की दलाली करके अपना घर नहीं भरूँगा।.
आज पत्रकारिता के नाम पर खुद को बुद्धजीवी कहलाने वाला एक नया वर्ग भी तैयार हो गया जो कम्युनिज्म के नाम पर नक्सलियों के साथ खड़े रहने का दंभ भर रहा है एक ऐसे ही सज्जन से मुलाकात हो गई.।।बोले पिछले १२ वर्षों से पत्रकारिता में हू ।।कई जगहों पर नौकरी कर चुका लेकिन आजतक अपनी संपत्ति के नामपर कुछ भी नहीं बना पाया इसकी वजह उन्होंने बताई कि मै ठहरा अपने शर्तों पर जीने वाला इंसान सो किसी से पाटी नहीं गरीबो का शोषण सहन के खिलाफ था साथ ही उन्होंने मीडिया की वेश्यावृत्ति की कुछ परते भी खोली कि मीडिया हाउस में पत्रकारों का शोषण हो रहा है फिर भी कोई आवाज़ नहीं उठाता क्योकि सबको अपने नौकरी जाने का डर सताता रहता है, चुपचाप कड़वे खूंट पीकर काम करना सबको उचित लगता है , सो अब यही सोचा हू । साथ ही उन्होंने बताया कि मै बिहार और पश्चिम बंगाल में अपनी सेवाए डे चूका हू ।।।यार वहां मेरा जमा नहीं.।क्युकी वह नक्शालियो के बीच रहकर कुछ करना संभव ही नहीं था अगर वह रहो तो नक्सलियों के साथ आवाज़ मिलकर उठाओ ।।लेवी में से कुछ कमीशन वगैरह मिलने की भी बात उन्होंने स्वीकार की.।कहते है कि बिहार में आज जो भी लोग बड़े पत्रकार होने का दंभ भरते नहीं थकते उन्होंने हमेशा नक्शालियो के साथ कदल ताल की है.।।वरना जहा नक्शली आम लोगो से धन ऐठ्कर अपना सारा काम काज चला रहे है व्ही इन महान पत्रकारों कि हवेली शान से खड़ी है कभी किसी नक्सली ने आँख उठाकर भी नहीं देखी.।यह भी कड़वा सच उन्होंने स्वीकार किया.।।साथ ही उन्होंने बताया की साथी लोग अक्सर किसी न किसी का स्टिंग आपरेशन करने के नाम पर नक्सलियों के साथ धन की उगाही करते थे.।
तो यह रहे पत्रकारिता को वेश्यावृत्ति में तब्दील करने कुछ सीधे-साधे तथ्य ।।बाकी भी बहुत सारे कारस्तानिया आई है सामने जो कम्मेंट्स में आगे आते रहेंगे.।
हमारे यहाँ आज पत्रकारिता के नाम पर सिर्फ एक दुसरे की टाँगे खीची जा रही है जो कतई उचित नहीं है । मै यहाँ किसी की भी टांगो की खिचाई करने के लिए अपना लेख नहीं लिख रहा हू.।लेकिन मुझे जो उचित लगा मैंने वही लिखा है । मै न तो कम्युनिस्ट हूँ और न ही कांग्रेसी, भाजपाई भी नहीं हू और न ही समाजवादी.।।मै सिर्फ और सिर्फ भारतीय हू जो हमेशा रहूँगा। इन सब बातो का सबूत भी दे सकता हू।।आप मुझसे फेसबुक पर इन सारी बातो पर अपनी राय भी रह सकते है ,कमेंट्स का विकल्प है है आपके पास.।। http://www.facebook. com/realfighar आगे भी इसी तरह लेख मिलते रहेंगे। --जय हिंद
श्रवण शुक्ल
९७१६६८७२८३
ईधर लोग बेहाल उधर पर्यटन विभाग गुलछर्रे उड़ानें में मशगूल
राजेन्द्र जोशी
देहरादून, । जहां एक ओर उश्रराखण्ड अतिवृष्टि की मार झेल रहा है, वहीं उश्रराखण्ड में सैकडों परिवार मौत के मुहाने पर खडे हैं, इतना ही नहीं अतिवृष्टि के चलते प्रदेश भर के लगभग एक सैकडा लोग काल के गाल में समा चुके हैं वहीं दूसरी ओर प्रदेश का पर्यटन विभाग विश्व पर्यटन दिवस आड़ में राजधानी के चार सितारा होटल में गुलछर्रे उड़ा रहा है। इसे राज्य की विभिषिका ही कहा जाएगा की राज्य के आला नेताओं और नौकरशाहों में संवेदना मात्र के लिए भी नहीं रह गई है। उश्रराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्र से लेकर मैदानी क्षेत्रों तक जीवन पटरी पर लौटने के लिए परेशान है। लोगों के आवागमन के साधन तक नेस्तनाबूत हो चुके हैै। उनके आशियाने खंडहरों में तब्दील हो चुके हैं। कई परिवारों के अपने उनसे बिछड चुके है। लेकिन प्रदेश के हुक्मरानों को इससेे क्या? उन्हें तो सरकारी पैसा ठिकाने लगाने और अपनी मौज मस्ती से ही मतलब है उनकी तरफ से प्रदेश की जनता जाए भाड़ में ठीक यही हाल प्रदेश की अफसर शाही का भी है। हुक्मरानों के फरमानों को राज्य बनने से लेकर आज तक दरकिनार करने वाली राज्य की अफसर शाही को प्रदेश ही निरीह जनता से क्या लेना देना, वे तो देहरादून के आलिशान महलों रहने के आदि हो चुके हैं, देश भर में उश्रराखण्ड ही शायद एक ऐसा राज्य होगा जो हुक्मरानों के कम और नौकरशाही के ज्यादा दबाव में काम करता है इतना ही नहीं यह प्रदेश अफसरशाही के जंजीरो में इस तरह जकड़ चुका है कि अब हुक्मरान खुद इससे बाहर निकलने को छटपटा रहे हैं। प्रदेश में बीते दस दिनों के दौरान हुई भारी बारिश से पूरे प्रदेश की यातायात व्यवस्था जहां चरमरा गई वहीं सैकडों यात्री कई जगह फंस गए उनकी जेब का पैसा भी पूरी तरह खर्च हो गया अब जब बीते तीन दिन से प्रदेश की काफी सडक़ें खुली और यातायात कुछ हद तक सूचारू हुुआ ऐसे में प्रदेश के पर्यटन विभाग को अब यात्रियों के रहने और खाने पीने की चिंता हुई। इसे संवेदनहीनता ही कहा जाएगा जब यात्री दूर दराज के क्षेत्रों में फंसे थे तब प्रदेश के पर्यटन विभाग को इसकी उनकी सुध लेने की नहीं सूझी और अब जब चुनींदा स्थानों पर ही कुछ चुनींदा यात्री फंसे हैं पर्यटन विभाग को ऐसे में उन्हें मुफ्त में रहने खाने की सुविधा देने की घोषणा करना अपने आप में हास्यास्पद है। इधर देहरादून में आज एक चार सितारा होटल में पर्यटन विभाग द्वारा ग्रामीण पर्यटन प्रदर्शनी के उद्घाटन और गोष्ठी के अलावा कई और कायक्रम भी किए गए, लेकिन पर्यटन विभाग राज्य के आपदा के दौरान मारे गए लोगों की याद में एक मिनट का मौन तक रखना उचित नहीं समझा। यह है उश्रराखण्ड के वासियों की चिंता करने वाले अधिकारियों और नेताओं की एक बानगी।
भारत-भारती वैभवम्
आपके संस्कृतब्लाग संस्कृतम्-भारतस्य जीवनम् पर अमित जी ने बडी सुन्दर पंक्तियाँ राष्ट्र के बारे में प्रस्तुत की हैं
"भारत-भारती-वैभवं
अपने विचार ब्यक्त करके उत्साह वर्धन करें ।
संस्कृतलेखनप्रशिक्षणकक्ष्या का वर्तमान काल प्रकरण प्रस्तुत किया जा चुका है ।
पढें और लाभान्वित हों ।।
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भवदीय: - आनन्द:
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भवदीय: - आनन्द:
गरीबी के कारण नाबालिगों का विवाह
भारत में बाल विवाह को रोकने सम्बंधी चाहे कितने ही कानून बन जायें, लेकिन इनका रोक पाना बहुत ही मुश्किल है। नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन रिप्रोडक्टिव हेल्थ के एक रिसर्च अनुसार, देशभर में कम उम्र में लड़कियों की शादी का औसत आंकड़ा 44.5 फीसदी है। वहीं अगर बात करें उत्तर प्रदेश की तो उसका नाम इस लिस्ट में सबसे ऊपर है। प्रदेश के श्रावस्ती जिले में ही ८२.०९ फीसदी नाबालिग बेटियों को परिणय सूत्रों में बांध दिया जाता है। महिला और बाल कल्याण मंत्रालय के मुताबिक श्रावस्ती और बहराइच के स्थिती बेहद ही चिंताजनक बनी हुई है। यूपी ही नहीं देश के बाकी राज्यों में भी १८ साल से कम उम्र की लड़की को ब्याह दिया जाता है।
इसका सबसे बड़ा कारण गरीबी और शिक्षा का आभाव है। ये आंकड़ा तब और बढ़ जाता है जब किसी गरीब की बड़ी बेटी की शादी होती है, तो वो कोशिश करता है कि इसी खर्चें में उसकी नाबालिग लड़की के भी फेरे पड़ जाये। यानि मजबूरी के आगे वो ना चाहते हुए भी चोरी छिपे इस अपराध को करने का जोखिम लेता है। विश्व में जहां एक तरफ भारत कामनवेल्थ गेम्स के नाम पर करोड़ों रूपये बहाये जा रहे है, वहीं दूसरी ओर देश के नागरिक पैसों के आभाव में कुछ भी करने को तैयार है।
सबका मशीहा बन चुका………………!
धरती पे शायद कुछ भी ऐसा नहीं जिस पर ऊँगली न उठाई जा सके लेकिन प्रतिसत में अंतर जरुर देखा और किया जा सकता है ऐसे में आज सबके जीवन में एक अभिन्न रूप धारण करती देश की मिडिया को भी तो लोग कई नज़रों से देखते ही है कुछ इसको सौ प्रतिशत से भी ऊपर श्रेणी में रखते है तो कुछ के नजर में ये प्वाईंट जीरो से भी कम………. लेकिन फिर भी कोई न कोई बात तो है ही की आज इसने सबके बिच एक जबरदस्त तरीके से अपनी प्रस्तुती की है और आज सबकी समस्याओ की घडी में मदद करने वाले एक मशीहा के रूप में उभरा कर हर समस्याओं के सामने खड़ा है जी हाँ देश के कुछ ही इलाके जो जरुरत से ज्यादा ही पिछड़े हैं यानि वंहा पर जीवन यापन करने वाले लोग जो किसी भी आधुनिक चीजो से कोसो दूर हैं को छोड़ कर आज शायद ही कोई ब्यक्ति ऐसा होगा जो इस शब्द यानि मिडिया से अपरचित हो,अब ऐसे में चाहे इसका कोई भी रूप हो(प्रिंट,इलेक्ट्रोनिक या वेब)हर छेत्रों में अपना ब्यापक विस्तार करते हुए देश की सेवा के लिए हमेशा ही आगे बढ़ कर कम किया है इसने! जी हाँ रोती आँखों को पोंछने की ललक वो चाहे किसी भी वर्ग की आँख हो, देश में घटित हो रहे अनेकों प्रकार की घटनाये चाहे वो रिश्वत से जुडी हों या फिर घोटाले या फिर अन्य अनेको मुद्दों को सबके सामने रख कर अंकुश लगाने का जूनून,तथा देश की हर जनता के साथ साथ देश को सुरछित करने की ललक ने ही शायद आज सबके नजरों के बिच एक जबरदस्त पहचान बनाया है इसका! जी हाँ बिना चुनाव ,बिना घोषदा पत्र,बिना किसी राजनितिक दल,बिना नेता,बिना वादा किये…………….अक्सर सूर्य के आग में तपतपा कर,अँधेरी रातों से लड़कर,बारिश के धार में नहाकर और माघ के शीतलहर में कांपते हुए…………….इस देश के गरीब या अमीर सभी तबके में जीवन यापन कर रहे लोंगो के लिए इंसाफ की लड़ाई लड़ने का संकल्प लेकर आज सबका मशीहा बन चुका है ये मिडिया का अनेको रूप! शायद इसको इतना लोकप्रिय बनाने में देश के वो चंद लोग है जो इसके नाम से ही जल आग बबूला हो जाते है इन्ही की लापरवाही से आज देश की जनता देश के कुछ प्रमुख विभाग जो विशेषतया जनता की सुरछा के लिए ही है जिनको सिर्फ जनता के सुरछा की जिम्मेदारी ही सौपी गयी है के पास अपनी समस्या को ले जाने से ज्यादा बेहतर मिडिया के पास जाना समझती है और अपनी पहली आवाज मिडिया को लगाती है क्यों,आखिर कहीं न कहीं तो इन विभागों द्वारा जनता को इतना परेशान और प्रताड़ित कर दिया जाता है तथा इसके बदले में दूसरी तरफ कहीं न कही ये मिडिया जनता के लिए आगे आती है तभी तो……….अब ऐसे में मजे की बात तो ये है की अगर देश में मिडिया इतनी सक्रिया नहीं होती तो इस देश का क्या होता शायद अंदाजा लगाना मुश्किल है…..आज इसी मिडिया के द्वारा जनता की समस्याओं को मुद्दा बनाकर खबर का रूप देकर टी वी और पुरे देश में फैले बड़े छोटे सभी अख़बारों,और पता नहीं अनेको माध्यमों से जनता के सामने लाकर इन विभागों में कुर्सी प्रिय आशीन कर्मचारियों से काम करवाने पर मजबूर किया जाता है और शायद आज इसी मिडिया के द्वारा इंसाफ दिलाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के साथ साथ उन बे खौफ विभागों और कर्मचारियों के दिलों में जनता की समस्याओं के प्रति लगन से काम करने का पाठ भी पढाया है जो कुर्शी को अपनी जागीर समझते हैं! आज लगभग सभी विभाग मिडिया शब्द से ही भन्ना जाते है वो इसकी बढती लोकप्रियता से खिन्न हो जाते है लेकिन इसकी देन भी तो वो स्वयं ही है,शायद ये विभागीय कर्मचारी अपनी जिम्मेदारी में से पचास प्रतिशत भी लगन दिखाते तो शायद जनता के दिलों पर इनका राज होता और मिडिया इतनी लोकप्रिय नहीं होती और इसको उनके हर काम में दखलंदाजी की जरुरत भी नही पड़ती!……….आखिर वो कुछ विभागीय कर्मचारी इतने निर्लज्ज क्यों है जो हर काम में मिडिया के हस्तछेप का ही इंतजार करते रहते है और बिना इसकी लताड़ सुने उनकी पलक ही नहीं खुलती तथा मिडिया की सुर्खिया बनते हैं,अब या तो उनको सुर्खिया बनाना पसंद हो या फिर अपने आदत से मजबूर……………… शायद मिडिया भी इनको इस तरह से सुर्ख़ियों में लाकर लज्जित ही होती होगी की ये इस देश के कर्मचारी हैं और कहीं न कहीं मिडिया को न चाहते हुए भी इनको सुर्खी बना कर पेश करना, ही पड़ता है शायद यही लोग कुछ बेहतर कर सुर्खिया बनते या ये सुर्खिया किसी बेहतर ब्यक्तित्व के लिए होती है तो मिडिया को भी इसे पेश करने में अपार ख़ुशी मिलती और जनता के लिए कुछ और बेहतर कर सकती…………………….
जब पाप मुझसे डरते थे।
बचपन कितना मजेदार और खतरनाक होता है,
पढे रोहित सिंह की रचना,जब पापा मुझसे डरते थे।
लाग करे www.rohitbanarasi.blogspot.com
27.9.10
इस दैवीय आपदा से हम उत्तराखंड को बहुत जल्द उभार देगें- 'निशंक'
ये राजनिति करने का समय नहीं,मिलकर चलने का समय है- 'निशंक'
पिछले दिनों उत्तराखंड में आयी बारिश की तबाही ने उत्तराखंड को हिलाकर रख दिया है। यही नहीं राज्य में बारिश और बादल फटने की अलग-अलग घटनाओं में इस साल करीब 150 लोग मारे जा चुके हैं। पिछले कुछ दिनों में ही 60 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। राजधानी देहरादून में बारिश ने पिछले 44 सालों के रिकॉर्ड को तोड़ दिया। बादल जिस तरह से इस देव भूमि पर कहर बनकर बरसे,उन्होंने पहाड़ के आसुओं को रोके नहीं रूकने दिया। यहां कोई मार्ग-खेत-खलिहान और मकान ऐसा नहीं बचा जिसने इस बार आई इस प्राकृतिक आपदा की त्रासदी को ना झेला हो। बिजली,पानी,संचार,संपर्क,खाद्यान्न,दवाओं का अभाव इस बाढ़ की चपेट में आए। राज्य के ज्यादातर हिस्सों में लोग मुख्यालय से कट गए तो चारों ओर तबाही का मंजर ही मंजर नज़र आया।
उत्तराखंड में आयी इस प्राकृतिक विपदा से घिरे लोग कई बार टापू पर खडे होकर मदद की गुहार लगाते रहे। ऐसे कुदरती दुर्दिन में राज्य सरकार जहां पूरी संजीदगी के साथ इस आपदा का मुकाबला करती दिखायी दी। वहीं कांग्रेस का हात आम आदमी के साथ नारा देने वाली कांग्रेस ऐसे भीषणतम् समय में भी राजनिति करती हुई दिखायी दी। जहां उत्तराखंड के युवा और कर्मठ मुख्यमंत्री खुद जान जोखिम में डालकर दूर-दराज आपदाग्रस्त क्षेत्रों में पहुंचकर,विषम परिस्थियों में भी राहत एवं बचाव कार्यों की निगरानी करने में लगे है।
उत्तराखंड को केंद्र से मिली थोड़ी सी राहत को कांग्रेस के केंद्रीय मंत्री हरीश रावत इस आपदा से ग्रस्त लोगों के घाव भरने की जगह,उनको मदद पहुंचाने जगह,पत्रकारों की बड़ी मंडली को अपने साथ घुमा-घुमाकर इस दैवीय आपदा को तराजू में तौल रहे है। यही नहीं उत्तराखंड में विपक्ष के नेता भी रावत के शुर में शुर मिलाकर कह रहे हैं कि केंद्र ने राज्य को इस आपदा से निपटने के लिए भारी धन उपलब्ध कराया है। जबकि सच्चायी सब के सामने है। आज उत्तराखंड को जिस तरह से इस प्राकृतिक आपदा से घेरा है। उसे विश्व के मानचित्र पर साफ-साफ देखा जा सकता है। लेकिन विपक्ष को इस सब की जगह खुद के लिए राजनैतिक रोटियां सैकने का ज्यादा उचित समय लग रहा है। लेकिन इसके बावजूद राज्य के मुख्यमंत्री इन तमाम नेताओं से निवेदन कर रहे हैं कि कृपया,ये राजनिति करने का समय नहीं,मिलकर चलने का समय है।
वर्षों बाद उत्तराखंड में आयी इस दैवीय आपदा ने पहाड़ों को जिस तरह से नुकसान पहुंचाया है। इसे देखते हुए डॉ.निशंक ने केंद्र से 21 हजार करोड़ रूपये की सहायता और राज्य को आपदाग्रस्त राज्य घोषित करने का अनुरोध भी किया है। साथ ही राहत कार्यों में सहयोग हेतु सैन्य बलों को भेजने की बात भी कही। मुख्यमंत्री ने भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को भी राज्य के हालातों से अवगत कराया है। भारी वर्षा,बाढ़ एवं भू-स्खलन के कारण राज्य में उत्पन्न हुई विकट स्थिति से नई दिल्ली में भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी,लोक सभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज ने राज्य के हालात को मजबूती से प्रधानमंत्री के समक्ष रखा। मुख्यमंत्री डॉ.निशंक के इन प्रयासों के परिणाम भी निश्चित तौर पर सामने आएं और केंद्र द्वारा तत्काल प्रभाव से 100 एन.डी.आर.एफ. के जवान उत्तराखंड के लिए रवाना किए गए और भूस्खलन एवं आपदा में मृत लोगों के परिजनों के लिए एक-एक लाख रूपये तथा घायलों को 50-50 हजार रूपये की सहायता प्रधानमंत्री द्वारा स्वीकृत की गयी। जबकि राज्य सरकार द्वारा भी मृतकों के परिजनों को एक-एक लाख रूपये मुआवजे के रूप में स्वीकृत किए गए। इस बारे में हमने जब अल्मोडा,उत्तरकाशी और यमुनोत्री-गंगोत्री राजमार्ग में फंसे लोगों से बात की तो,इन लोगों का कहना था कि,'उत्तराखंड के युवा मुख्यमंत्री खुद अपनी जान की परवा किए बगैर,विषम परिस्थियों में भी हमारे गांव आएं,हमसे मिले और हमें दि जाने वाली तमाम सुविधाओं के बारे में जानकारी भी ली,साथ ही उन्होंने सभी उचअधिकारियों को निर्देश दिए की जल्द से जल्द राहत सामग्री उन लोगों तक पहुंचनी चाहिए। जिन लोगों को इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है'।
मुख्यमंत्री की संवेदनशीलता का अंदाजा इसी बात से हैं कि उन्होंने 18 सितंबर 10 को प्रदेश में दैवीय आपदा से हुए भारी नुकसान को देखते हुए तत्काल जिलाधिकारियों और शासन के वरिष्ठ अधिकारियों को राहत और बचाव कार्यों में तेजी लाने के निर्देश जारी किए। 19 सितंबर 10 को मुख्यमंत्री सचिवालय में वरिष्ठ अधिकारियों से इस आपदा पर एक अहम बैठक कर वीडियो कांफ्रेसिंग के माध्यम से सभी जिलाधिकारियों के साथ चर्चा की और उन्हें निर्देश दिया कि वे बचाव एवं रहात कार्यों में तेजी लाए। मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि आपदा राहत के लिए धन की कमी को आड़े नहीं आने दिया जायेगा। साथ ही मुख्यमंत्री ने जिलाधिकारियों को आवश्यकता पड़ने पर हैलीकाप्टर के माध्यम से बचाव व राहत कार्य को जल्द से जल्द पूरा करने का निर्देश दिए है। मुख्यमंत्री खुद इस अधिकारियों से लगातार संपर्क बनाए हुए हैं,और पल-पल की जानकारी ले रहे है।
और तेज हुआ दैवीय आपदा से निपटने का 'मिशन राहत'
सोमवार को मौसम थोड़ा साफ होते ही उत्तराखंड में आयी दैवीय आपदा से निपटने के लिए मिशन राहत और तेज हो गया है। मुख्यमंत्री डॉ.रमेश पोखरिया निशंक ने हैलीकाप्टर औप पैदल चलकर आपदाग्रस्त क्षेत्रों का भ्रमण किया और अफसरों को राहत कार्य में तत्परता बरतने के निर्देश भी दिए। उन्होंने तमाम अधिकारियों को निर्देश दिए कि सरकार की पहली प्राथमिकता लोगों को सुरक्षित बचाना और उन्हें फौरी राहत मुहैया कराना है। इस बारे में जब हमने आपदा प्रबंधन एवं न्यूनीकरण केंद्र से सूचना प्राप्त की तो,हमें प्राप्त सूचना के आधार पर, मुख्यमंत्री की अगवाही में उच्च हिमालयी क्षेत्र में फंसे पर्यटकों की खोज का कार्य राज्य सरकार द्वारा भारतीय थल सेना के दो चीता हैलीकॉप्टरों के मदद से जारी है। गंगोत्री-कालिन्दीखाल मार्ग पर फंसे पर्यटक दल की खोज के लिए 25 सिंतबर 10 से भारतीय थल सेना के चीता हैलीकॉप्टरों को लगाया गया है। जिनके द्वारा उस क्षेत्र का लगातार सर्वेक्षण किया जा रहा है। जहां यह पर्यटक हो सकते हैं,लेकिन पिछले दिनों ऊपरी हिमालयी क्षेत्रों में हुई भारी बर्फबारी के चलते इन क्षेत्रों में इन पर्यटकों के होने के कोई चिन्ह नहीं पाये गए है। दूसरी तरफ पिथौरागढ़ जनपद के गुंजी में फंसे लोगों को हैलीकाप्टर की मदद से सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया गया। गुंजी में फंसे मीडिया के पांच लोगों को धारचुला तथा तीन घायलो को हल्द्वानी के सुशीला तिवारी अस्पताल लाया गया है। जहां पर इन का उपचार किया जा रहा है। इसके साथ ही मरतोली में फंसे एक महाराज को मुंस्यारी लाया गया है।
इसी के साथ मुख्यमंत्री द्वारा उत्तराखंड के कई दूसरे आपदाग्रस्त क्षेत्रों का दौरा किया गया है। अल्मोड़ा जनपद में आपदा से प्रभावित क्षेत्रों के 5593 लोगों को ठहराने के लिए 204 राहत कैंप स्थापित किए गए है। इसके अंतर्गत तहसील अल्मोड़ा में 57,रानीखेत में 60,द्वाराहाट में 03,जैंती में 60,सोमेश्वर में 02,भनौली में 17 एवं सल्ट में 05 राहत कैंप स्थापित किए गये है। मुख्यमंत्री के निर्देशानुसार बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में राहत सामग्री पहुंचाने का काम तेजी से किया जा रहा है। सभी राहत शिविरों में आवश्यक खाद्य सामग्री पहुंचा दी गया है और संबंधित क्षेत्र के उपजिलाधिकारी के माध्यम से उसका वितरण भी सुनिश्चित् कर दिया गया है। जनपद में रसोई गैस की आपूर्ति का प्राथमिकता के आधार पर कराए जाने के साथ ही पेट्रोल,डीजल का स्टॉक प्रर्याप्त मात्रा में रख दिया गया हैं,ताकि किसी प्रकार की असुविधा न हो। क्षतिग्रस्त सड़कों के सुधारीकरण का कार्य तेजी से किया जा रहा है। आपदा के कारण जो भी मार्ग क्षतिग्रस्त हुए हैं,उन्हें ठीक करने का काम युद्धस्तर पर जारी है। इसी के साथ उत्तराखंड को जोड़ने वाले मार्ग एवं सभी अवरुद्ध हुए मार्गों को खोलने के लिए भी युद्धस्तर पर काम किया जा रहा है।
इसी के साथ मुख्यमंत्री भी पूरे प्रदेश की स्थिति को जानने के लिए खुद दौरा भी कर रहे है। जिससे प्रदेश की जनता काफी राहत महसूस कर रही है कि उनकी समस्याओं को जानने के लिए मुख्यमंत्री स्वयं पैदल चलकर उनके पास आ रहे है। निश्चित तौर पर डॉ.निशंक बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के लोगों से व्यक्तिगत तौर से मिलकर उन्हें ढांढस बंधा रहे कि इस दुःख की घड़ी में सरकार उनके साथ खड़ी है। जिससे लोगों में आशा जगी,साथ ही जिला प्रशासन भी हरकत में और प्रभावितों को तत्काल सहायता पहुंचाने में ओर तेजी लायी जा रही है। डॉ.निशंक ने शासन स्तर पर भी मुख्य सचिव को आपदा कार्यो की निगरानी के लिए कमान सौंपी है। मुख्य सचिव प्रदेश की भौगोलिक परिस्थितियों से भली-भांती परिचित है। उन्होंने मुख्यमंत्री के निर्देश पर देर शाम तक शासन के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ एक बैठक की और राहत एवं बचाव की समीक्षा की
इस दैवीय आपदा से प्रभावित क्षेत्रों में लगातार मुख्यमंत्री जा रहे है। पिछले दिनों प्रभावित क्षेत्रों में बीमार लोगों को हैलीकॉप्टर से देहरादून लाने की व्यवस्था और उत्तरकाशी जनपद के नैटवार से 22 वर्षीय आशाराम,पुरोला से 65 वर्षीय लालचंद तथा पुरोला के ही ग्राम कण्डियाल से गंभीर रूप से बीमार 4 वर्षीय बच्चे धर्मेंद्र को हेलीकॉप्टर से देहरादून पहुंचाना मुख्यमंत्री का एक सराहनीय प्रयास रहा है। जहां दून अस्पताल में इन सभी का ईलाज चल रहा है। डॉ.निशंक प्रत्येक जनपद और गांव-गांव जाकर खुद देख रहे है कि इस दैवीय आपदा में घायल हुए लोगों और पशुओं को बेहतर चिकित्सा सुविधा प्रदान की जा रही हैं कि नहीं। इस बारे में जब हमने निशंक जी से जानना चाह की अभी उत्तराखंड के हालत कैसे है तो उन्होंने बताया कि, धीरे-धीरे जीवन खुद को संवारने की कोशिश कर रहा है। हम केवल उसे एक राह से जोड़ रहे है। क्योंकि उत्तराखंड पर इतनी भयभीत कर देने वाली दैवीय आपदा पहली बार आयी हैं,लेकिन हम अपना सब कुछ झोंक कर इस आपदा से निपटने का प्रयास कर रहे है। हमें उम्मीद हैं कि हम इस स्वर्ग में फिर से फूल खिला देगें। जहां तक इस आपदा में घायलों की बात हैं तो उनके उपचार में सरकार कोई कसर नहीं छोड़ेगी और उनका पूरा ध्यान रखा जायेगा। मैं आपको अवगत करना चाहूंगा की बड़कोट में राहत सामग्री लेकर गए हैलीकॉप्टर से 13 लोगों को देहरादून लाया गया हैं,जिनमें सात फ्रांसीसी पर्यटक है। इसके साथ ही कई अन्य लोगों में एक गर्भवती महिला और एक बीमार बच्चे को यहां लाया गया है। पुरोला से सात लोगो को और चिन्यालीसौढ़ से 22 लोगों को हैलीकॉप्टर से सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाया गया है। इसी के साथ चिन्यालीसौढ़ में चार अतिरिक्त नौकाएं भी लगा दी गयी और प्रारम्भिक चरण में लगभग सौ से ज्यादा लोगों सुरक्षित स्थानों तक पहुंचा दिया गया है। कुमाऊं में बहुत से स्थानों पर सड़क मार्ग खुल जाने से कई ट्रकों से राहत सामग्री अल्मोडा़,बागेश्वर और पिथौरागढ़ के निकटतम स्थानों तक पहुंचायी दी गयी है। तीन ट्रक गैस सिलेण्डर भी कुमाऊं के विभिन्न क्षेत्रों के लिए भेज दिए गए है। जहां तक मानसरोवर यात्रा की बात हैं तो इसके 16वें समूह के 31 पुरूष एवं छः महिला समेत कुल 37 यात्रियों को गुंजी से धारचूला पहुंचाया गया। गुंजी में फंसे कैलाश मानसरोवर यात्रा के 37 यात्रियों को वायु सेना के एमआई-17 हैलीकॉप्टर से तीन चक्रों में सुरक्षित धारचूला तक लाया गया हैं और फिर टनकपुर पहुंचाया गया। जब हमने मुख्यमंत्री से इस आपदा के समय कांग्रेस के बयानों के बारे में जानना चाहा तो,डॉ.निशंक ने साफ किया की यह वक्त इस विपादा से निपटने का हैं,हमें इस पर ध्यान देना है। ये राजनिति करने का समय नहीं हैं बल्कि मिलकर चलने का प्रदेश की जनता के दुःखों को दूर करने का उन्हें राहत पहुंचाने का समय है'।
निश्चित तौर पर यह मिलकर काम करने का समय है। मुख्यमंत्री डॉ.रमेश पोखरियाल निशंक जिस प्रकार से दैवीय आपदा से प्रभावित क्षेत्रों का हवाई एवं स्थलीय निरीक्षण कर रहे है। वह अपने आप में सराहनीय है। मुख्यमंत्री के एक दिन में कई जनपदों का दौर करना और राहत कार्यों का निरीक्षण करने से आम लोगों में सरकार के प्रति और अधिक विश्वास बढ़ा है। साथ ही मुख्यमंत्री की कार्यशैली की सभी सभी सराहना कर रहे है,और उनकी इस कर्मठता और अपने राज्य के प्रति,राज्य की जनता के प्रति खुद के संर्पण को देखते हुए अब कई सामाजिक और स्वयंसेवी संगठन में अपनी ओर से हर संभव मदद के लिए आगे आ रहे है।
- जगमोहन 'आज़ाद'