31.12.11

शुभंकर: नया साल हमको ..

शुभंकर: नया साल हमको .. नया साल हमको .. साल रहा है मलाल हमको , जा रहा है छोड़ गया साल हमको| जो नहीं दे कर गया 'गया साल', वो दिलाएगा नया साल...

नव वर्ष 2012 की हार्दिक शुभकामनाएं।



नव वर्ष 2012 की हार्दिक शुभकामनाएं।
नव वर्ष 2012 आपके एवं आपके परिवार के लिए सुख, शांति,सम्पन्नता, समृद्धि एवं सफलता लेकर आय। ईश्वर से नव वर्ष पर यही कामना है।


  • रवि कुमार बाबुल


नववर्ष में कहीं मोजमस्ती की तैयारी, तो कहीं बेबसी व लाचारी

शंकर जालान



कोलकाता महानगर के पांच सितारा होटलों व नामी-गिरामी रेस्तरां और विभिन्न क्लबों में युद्धस्तर पर अंग्रेजी नववर्ष यानी नए साल 2012 के स्वागत की तैयारी शुरू हो गई है। नए साल के आगमन में अब एक दिन बचा हैं। इस लिहाज से होटल, क्लब अपने ग्राहकों व सदस्यों के आकर्षित करने की फिराक में है। कहना गलत न होगा कि एक ओर महानगर के संपन्न परिवार के नवयुवक शनिवार देर रात व रविवार को नववर्ष कैसे मनाए इस सोच में डूबे हैं। वहीं दूसरी ओर महानगर में लाखों की संख्या में गरीब व मेहनतकश लोग हैं, जिनके लिए नए साल पर जश्न मनाने का कोई मतलब नहीं है। संपन्न परिवार के लोग जहां पांच सितारा होटलों में हजारों रुपए मांसाहारी भोजन व मदिरापान में पानी की तरह बहा देते हैं। वहीं, शहर के मुटिया-मजदूर और गरीब तबके के लोग भूख मिटाने के लिए दस-पांच रुपए का भोजन भी अपने पेट में डालने में असमर्थ रहते हैं। ध्यान देने की बात यह है कि ज्यादातर मेहनतकश लोगों के यह पता ही नहीं होता कि अंग्रेजी नववर्ष क्या है और इसे कैसे मनाया जाता है। उनके लिए तो पेट ही पहाड़ है। भर पेट भोजन मिलना उनके लिए किसी जश्न से कतई कम नहीं है। इस वर्ग में वे लोग भी शामिल है जो शहर के विभिन्न इलाकों में खुले आसमान के नीचे रहते हैं। उनके लिए धरती बिछावन और गगन चादर है। एक आंकड़े के मुताबिक राज्य के साठ फीसद से लोगों को दो जून की रोटी के लिए कड़ी मेहनत-मशक्कत करनी पड़ती है। वहीं, करीब बीस फीसद ऐसे लोग हैं, जिनके घरों उजाला तब होता है, जब चौराहे पर लगे लैंपपोस्ट की बत्ती जलती है।
बड़ाबाजार चक्र रेल स्टेशन के पास झोपड़ी में रहने वाले दास परिवार के गौतम ने बताया कि वह अपनी विधवा मां, पत्नी और चार साल की बच्ची के साथ बीते छह सालों से रह रहे हैं। गौतम ने बताया कि वह राजा कटरा से थोक भाव में चनाचूर लाकर ट्रेन में बेचता है। दिन भर में चार-पांच किलो चनाचूर बेच कर किसी तरह 70-80 रुपए कमा पाता है। उन्होंने बताया कि इतने पैसे में खाना खर्च तो चलता नहीं, ऊपर से मां की दवा अलग से। दुखी मन से गौतम ने कहा कि हर महीने में दो-चार दिन तो मूढ़ी खाकर रहना पड़ता है। ऐसे में हमारे लिए नववर्ष के जश्न का कोई अर्थ नहीं है।
केलाबागान की रहने वाली शम्मी जहां के मुताबिक बड़ा दिन या फिर नया साल यह सब बड़े लोगों के चोचले हैं। फुटपाथ पर रहने वाले लोगों के लिए इन दिनों का कोई महत्व नहीं है। उसने दुखी मन से कहा कि वैसे तो आम दिनों में उसकी दोनों लड़की व एक लड़का जो मिलता खा लेते, किसी प्रकार का जिद नहीं करते, लेकिन किसी विशेष दिन पर अन्य बच्चों को अच्छे कपड़े और अच्छा खाना खाते देख हमारे बच्चे के चोहरे मायूस हो जाते हैं। शम्मी ने बताया कि अगर सच कहूं तो नववर्ष का पहला दिन जहां संपन्न परिवार के लोगों के लिए जश्न मनाने का होता है, वहीं हमारे जैसे गरीब लोगों के लिए अपनी बेबसी-लाचारी पर अफसोस करने का।

नसीम साकेती की रचनाएँ साखी पर

नफ़रत के अंधेरों को मिटा लूं तो चलूँ...........

ब्लॉग पहेली -७ का परिणाम


[नव वर्ष २०१२ के उपलक्ष्य में रविवार के स्थान पर  आज शनिवार को ही ब्लॉग पहेली -७ का परिणाम घोषित कर रही हूँ ]
ब्लॉग पहेली -७ का परिणाम

नव- वर्ष २०१२ की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ ब्लॉग पहेली -७ का परिणाम  इस प्रकार है -
वर्ग में छिपे ब्लोगर्स के नाम इस  प्रकार  थे  -
 1- श्री हंसराज सुज्ञ जी 2-सुश्री मोनिका शर्मा 3-श्री रूपचंद शास्त्री मयंक जी 4-सुश्री अजीत गुप्ता जी 5-श्री हरीश सिंह जी 6-सुश्री वंन्दना गुप्ता जी 7-श्री यशवंत माथुर जी 8-श्री महेन्द्र श्रीवास्तव जी 9-सुश्री रचना जी 10-श्री महेन्द्र वर्मा जी
सर्व प्रथम सही जवाब देकर विजेता  बने हैं -

श्री उपेन्द्र नाथ जी 


ब्लॉग पहेली-७
विजेता
श्री उपेन्द्र नाथ 

उन्हें  बहुत बहुत बधाई .


                 अशोक शुक्ला जी ,गजेन्द्र जी व् आशा जी ने भी सभी जवाब सही दिए हैं .


               साधना वैद जी ने दस ब्लोगर्स में ''अना '' व् ''संगीता स्वरुप 


जी ने ''नाज़ ''नाम दिया है .निश्चित रूप से ये भी ब्लोगर्स हैं और पहेली -


वर्ग में इनके नाम भी बन रहे हैं .


                             आप सभी का पहेली में उत्साह के साथ भाग लेने


 हेतु हार्दिक धन्यवाद .नूतन वर्ष आप सभी के लिए शुभ  व् मंगलमय


हो ऐसी ही  प्रभु से कामना करती हूँ .


                                                 शिखा कौशिक 


                                     [ब्लॉग पहेली चलो हल करते हैं ]

हर तरफ चांदनी हो नए साल में

हर तरफ चांदनी हो नए साल में
होठों पर रागिनी हो नए साल में।

हर दिशा खुशबुओं से महकती रहे
महके फिर रातरानी नए साल में।

इस वतन में हैं भी चिकने घड़े
काश हों पानी- पानी नए साल में।

दर्दो- दहशत का नामो- निशाँ ना रहे
हो हवा जाफरानी नए साल में।

अब न मक़बूल फिर हो धमाका कोई
हो यही मेहरबानी नए साल में।
मृगेन्द्र मक़बूल

नये साल की शुभकामनाएं

जाने कितने दंश दे गया, बीत गया जो साल ।



सत्ता उदासीन लगती है, जनता खस्ताहाल ।।


जनता खस्ताहाल सभी हैं अनाचार से त्रस्त ।


सदाचार का सूरज तो जैसे होने को है अस्त ।।


ऐसे में खुशियों के कुछ पल हमको हैं पाने ।


नये साल में क्या होगा, बस ये राम ही जाने ।।


दुख-दैन्य और निराशा गये साल में पाये ।


ईश करे नया साल तो सुखद सवेरा लाये।।

इसी कामना के साथ आपको सपरिवार नये साल की शुभकामनाएं

राजेश त्रिपाठी और परिवार, कोलकाता, प. बंगाल, भारत





30.12.11

नूतन वर्ष 2012 की हार्दिक शुभकामनाएं










छम  छम  छमकता आया  नया  साल  
खन खन  खनकता  आया  नया  साल  
नए   साल  में   हिंदुस्तान   में  
चेहरों  पर  खिल   जाये   मुस्कान  

जो   हैं  सपने  तेरे  अधूरे  
हो   जाए  नए साल में पूरे  
जुड़  जाये आशा  के  धागे 
सारी  मायूसी अब भागे  
चम् चम् चमकता आया नया साल
दम दम दमकता आया नया साल 
नए साल में ........


मिट जाएँ गम के अँधेरे
नित दिन  खुशियों के हो सवेरे 
पथ से हट जाये सब कांटे 
मंगलमय हो दिन और रातें 
खुशबू लुटाता आया नया साल 
मन हर्षाता आया नया साल 

                         नूतन  वर्ष  2012 की  हार्दिक  शुभकामनाएं  स्वीकार करें .
                                                                                                             शिखा कौशिक
                                                                                     [vikhyat ]

हम गीता कि पूजा करते हैं, कोर्ट में कसम खाते हैं , फिर पढ़ने कि क्या जरुरत


और गीता जी बच गयी : अब तो हिंदू इसे पढ़ेंगे ही

    
खबर :

‘गीता पर भारत के रुख की हुई पुष्टि’

गीता पूरी दुनिया के लिए, इस पर कोई बैन संभव नहीं


गीता पर प्रतिबंध की माँग खारिज

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कितनी खुशी कि बात है , कि हमारी धर्म निरपेक्ष सरकार ने भी हिंदू धर्म कि पुस्तक का सहयोग दिया . 

यह सारे देश में विजयोत्सव मानाने जैसा है . 

हमें भी  पता चला , कि हिन्दुस्तान में  गीता नाम कि holy पुस्तक है जो हिंदुओं से सम्बन्ध रखती है . 


हिंदू इसका सम्मान करता है , पूजता है , 

पर हिंदू इसे पढता नहीं है .  

बुरा नहीं मानना , शायद आपने इसे पढ़ा हो , या हमेशा पढते हों , पर अपने आस पास के हिंदुओं, अपने घर-परिवार, मित्रों , पधोसिओं , पर नजर डालें और बताएं कि कितने प्रतिशत लोगों ने इसे पढ़ा है . 

इन पंक्तियों का लेखक मैं , अशोक गुप्ता ,पैदायशी हिंदू,  एक शहर से , अच्छे घर में जन्म लेने वाला, पढ़ा-लिखा , पिछले ३२ साल से विदेशों में रह /घूम रहा , R S S का समर्पित कार्यकर्ता, छात्र नेता, दुनिया भर कि जानकारी के बारे में प्रयत्न शील , १८ साल से सत्संगों में जा रहा , उम्र ५७ साल, अभी कुछ समय से गीता जी को पढ़ना शुरू किया है .

धिक्कार है मुझ पर , और मेरे हिंदू होने पर , और मुझे पता है मेरे आस पास के हिंदुओं का , उन्होंने जीवन में कभी गीता जी उठा कर नहीं देखि. 


उनके घरों में चार-पांच कारें मिल जाएँगी , पर एक गीता मांगने पर नहीं मिलेगी , पढ़ने कि तो बात ही छोडो .


यदि एक प्रतिशत हिंदू भी गीता जी का अध्यान करे तो देश का नक्शा अपने आप बदल जायेगा , ऐसा मेरा विश्वास है ,


तब लोगों को अनाचार और भ्रष्टाचार से खुद ही नफरत हो जायेगी चाहे वो I AS हो या नेता या जज . 


धर्म से दूर रहना , निरपेक्ष रहना,  ही सारे फसाद की जड़ है . 


आप क्या कहते हैं !
 


और अगर हिंदुओं को पसंद आ गयी तो उन्हें भ्रष्टाचार की तरफ मोडना मुश्किल हो जायेगा , वे नाम के ही नहीं असल के हिंदू बन जायेंगे .


कोई बात बुरी लगी हो तो बताईएगा जरूर ! और छमा कर दीजियेगा .
खुशी कि बात है कि रुसी अदालत ने मुकदमा ख़ारिज कर दिया , 


पर पक्का है कि,  यदि यही मुकदमा, हिन्दुस्तान कि अदालत में होता,


तो ख़ारिज नहीं हो सकता था 

आधुनिक बोधकथाएँ. ७ - " मैं संसदताई । "




आधुनिक  बोधकथाएँ. ७ -

" मैं  संसदताई । "






"लोकशाही  को  ठोकशाही   बनाने  की  ली   है  ठान..!!
अय आम जनता, भाड़  में जा,तुं  और तेरा लोकजाल..!!"

एक स्पष्टता- इस बोधकथा का, अपने  देश  की  लोकशाही  से कोई  लेना-देना  नहीं  है ।

=====

" मैं  संसदताई । "

( दरवाज़ा- "ठक-ठक,ठक-ठक,ठक-ठक ")

संसदताई-" आती  हूँ  बाबा, ये  सुबह-सुबह  ११  बजे  कौन  आ धमका..!! कौन  है ?"

लोकजाल-" संसदताई, मैं  लोकजाल..!!"

संसदताई-" कौन ?" 

लोकजाल-" लो..क..जा..ल..अ..!!"

संसदताई- (चिढ़ते हुए)" क्या है? तुम्हें  और  कोई  काम  नहीं  है क्या ? मेरे   पुराने   ठोकसभा  घर  से  तुझे  सहीसलामत  निकाला  तो  अब,  यहाँ   रोगसभा  में  भी  आ  धमका ? क्यूँ आया  है  यहाँ ? क्या  है ?"

लोकजाल- "कुछ  नहीं  ताई..!! मुझे  तो  अण्णा ने  भेजा  है..!!"

संसदताई-"अरे...!! फिर  अण्णा?  कौन  अण्णा..कहाँ   के  अण्णा ?"

लोकजाल-" संसदताई,  वह  अण्णा,  अण्णा   हजारेवाले  अण्णा..!!"

संसदताई- " अरे..!! कायका  हजारे, कहाँ  का  ह..जा..रे..!!  सौ - दो सौ  लोगों  को  इकट्ठा  करने  से, कोई   हजारे  बन  जाता  है क्या ?"

लोकजाल-"ताई, आप  अण्णा  को  कम  आंक  रही  है, क़रीब एक  लाख़  लोगों  ने, उनके  साथ  जेल  जाने  के  लिए  अपने नाम  दर्ज  करवाये  हैं..!!" 

संसदताई-" बस..!! सिर्फ  एक  लाख़ ? मैनें  तो  सोचा  था  ८० करोड़  लोग  नाम  दर्ज  करवायेंगे..!! सा..ले, भिख़ारी कहाँ के..!! लगता है, सभी  लोगों  को, अब  जेलख़ाने  की  रोटीयां  पसंद  आने  लगी  है..!! खैर,  ये  बता, मेरे  रोगसभा  के  यह  दूसरे  घर  पर  अभी  तुं  क्यों  आया है ? अब क्या  काम  है ?"

लोकजाल-"संसदताई, आपके  घरवाले  सभी  दल  के  सांसदो ने, झूठमूठ  का  हंगामा  मचा  कर,  मुझे  ख़ाली  हाथ  वापस  लौटा दिया  है..!! आप  उनको   बराबर  डाँटिएगा..!!"

संसदताई-" क्यों  भाई..!! मैं  उन्हें  क्यों  डाँटूं ?  मैं,  क्या  तेरी, नानी  लगती  हूँ ? चल, भाग  यहाँ  से  साले..!! मेरी  इंदिराताई  के   पोते   राहुल  को  तुमने, विरोधीयों  के  साथ  मिल  कर, खून  के  आंसु  रूलाया  है  और  अब  तुम  ये  चाहते  हो  की,  मैं तुम्हारी  मदद  करूँ, भाग  यहाँ  से..!!"

लोकजाल- " ताई,  मैंने  कुछ  नहीं  किया..!!"

संसदताई-" अबे  साले  अब  भोला  बनता  है ? (रोती सूरत बनाकर) मेरी   इंदिराताई   के   नन्हे-मुन्ने  मासूम   पोते  ने,  ज़िंदगी  में  पहली  बार..पहली  बार, सांसदो  से,  तेरे    लिए..सा..ले..तेरे  लिए , बंधारणीय   दरज्जा   माँगा  था,  सब ने  मिल  कर  उस दरज्जे  की  माँग  को  दरवाज़ा  दिखा  दिया? अब  उसकी   इंदिराताई   नहीं   है, इसीलिए  सब   मेरी   इंदिराताई  के  भोले  बेटे  को   ऐसे  सता  रहे  हो  ना ?"

लोकजाल-" हैं..ई..ई..!! ये  क्या  कह  रही  हैं  संसदताई..!!"

संसदताई-" क्यों ? लग  गई  ना  पिछवाड़े  मिर्ची ? याद रखना  हमारे  बेचारे  मासूम  पोते  का  कहा  अगर  किसी ने  भी,  न  माना  तो, मैं   बारबार-लगातार, तुझे  और  तेरे  अण्णा-फण्णा, जो  भी  है..!! सब  को  ख़ून  के  आसुं  रूलाती  रहूँगी..!! सालों...कमीनों, तुम  सब  इसी  बर्ताव  के  लायक  हो..!! नालायक, चल  अब  फूट  ले यहाँ  से..!!"

(" धड़ा..म..अ.अ.अ..!!" दरवाज़ा बंद ?)

लोकजाल-" औ...फौ..औ..औ..!! संसदताई  तो  हम पर ही बिगड़  गई..!! इस  बात  को  क्या  संसदताई  और  हमारे  सारे  प्रातःस्मरणीय,  कर्तव्यनिष्ठ  माननीय (?) सांसदो  की  ओर से हमें, नये  साल  की   मूल्यवान  सौगात  समझे  क्या ? और... नये  साल  के,  इस  मूल्यवान  फ्लॉप  उपहार  का, अब  हम  सब क्या  करेंगे?"

=====

दोस्तों, "अब हम सब क्या करेंगे?" इस सवाल का आपके पास कोई जवाब है ? है  तो   फिर  बताईए..ना..आ..प्ली..ई..ई.. झ!!

आधुनिक बोध- नये साल पर मिलनेवाला हर उपहार काम का हो ये ज़रूरी नहीं है, ख़ास कर के हमने जिन पर अनहद भरोंसा  किया  हो?


मार्कण्ड दवे । दिनांकः ३०-११-२०११.   

बधाई हो! अन्ना का लोकपाल लटक गया.


बधाई हो! अन्ना का लोकपाल लटक गया. 

सुबह-सुबह वर्मा मिठाई के साथ हमारे घर पर धमक गये.हमने कुशल क्षेम पूछी .आज वे बहुत खुश
नजर आ रहे थे .हमने उनके चेहरे पर फुट रही ख़ुशी को देख कर पूछा-

वर्माजी,आज बहुत खुश नजर आ रहे हो ?क्या कोई परमोशन हो गया है क्या?

वर्माजी बोले -भाईसाहब ,इसे आप परमोशन ही समझ लीजिये. बधाई हो!लोकपाल लटक गया है.
वर्माजी हमारे पडोसी थे और सरकार के ऊँचे ओहदे पर विराजमान भी थे .हम कुछ समझ नहीं
पाए थे इसलिए उनसे विस्तार से जानना चाहा .
उन्होंने खुश होकर बताया-अन्ना की मांग पर जब देश के लोग भ्रष्टाचार पर आवाज बुलंद कर रहे थे
तब हमारी तो जान पर बन आई थी .हमारा केरियर ही पानी पानी हो रहा था.बड़ी रकम चुकाकर यह
मलाईदार नौकरी पायी थी कि अन्ना टपक पड़े .हम तो सचमुच के फँस गये थे .लाखो रूपये बाँट दिए थे
और लोकपाल के कारण उस पैसे की रिकवरी की संभावना पर पानी फिर रहा था .शनि देव की साढासाती
साफ दिखाई दे रही थी मगर भला हो सरकार का की वो लच्चर बिल लायी जिस पर सहमती बननी नहीं
थी और रात बारह बजे जनसेवकों ने लोकपाल की बारह बजा दी .

हम हेबताये से उनका चेहरा देख रहे थे और उनके द्वारा लाया गया मिठाई का डिब्बा हमें मुंह चिढ़ा रहा था .
वर्माजी के जाने के बाद हमने टी.वी.  पर समाचार लगाए तो सुनाई दिया की लोकपाल लटक गया है .

हमारा दिल रोने को कर रहा था की दरवाजे की घंटी फिर से बज गयी .अनमने भाव से दरवाजा खोला
तो सामने नेताजी खड़े थे .हाथ में लड्डू भरा थाल था .हमें देखते ही बोले -लो लड्डू खाओ बेटा!
हमने पूछा -नेताजी,चुनाव तो होने बाकी है .अभी से लड्डू ?

नेताजी बोले-बेटा ,यह चुनाव जीतने के लड्डू नहीं है ,यह तो लोकपाल के लटकने की ख़ुशी में बाँट रहा हूँ .

हमने पूछा -नेताजी,लोकपाल के लटकने से आपको क्या ....?

वो बोले-बेटा,अब पुरानी फाइल खुलने का डर नहीं है,अन्ना के कारण तो जान ही सांसत में आ गयी थी .
एक बार तो लगा मृत्यु घंट बजने ही वाला है ,भगवान् के जाप भी चालु करवा दिए थे ,दिन रात यही चिंता
थी की अब क्या होगा? जमा धन भी जनता लूट लेगी और चक्की भी पिसवाएगी. जो होता है,अच्छा ही
होता है ,बड़ी मेहनत के बाद सब कुछ पहले जैसा हो गया इसलिए पूरी गली में लड्डू बाँट रहा हूँ.

नेताजी के जाने के बाद हमने लड्डू को जोर से आँगन में फ़ेंक दिया और मायूस होकर मातम मनाने
लगे ,मगर आज हमें सुख पूर्वक मातम भी नहीं मनाने दिया जा रहा था .हम घर की कुण्डी लगाकर रोना
चाहते थे की दरवाजे की घंटी फिर बज गयी .दरवाजे पर धर्मिबाबू खड़े थे .
हमने उनको अन्दर आने का आग्रह किया .आज बाबू बड़े खुश थे .हमने उनके चेहरे पर ख़ुशी देख कर
पूछा-बाबू आज बहुत खुश हैं क्या बात है?

धर्मिबाबू बोले-चाचा ,रेलवे की नौकरी करते अभी दौ ही बरस हुए थे की अन्ना की नजर लग गयी .इतनी
उम्र में भी बन्दर गुलाट मार रहा था.एक तो मुसीबत के मारे मुसाफिर को सोने के लिए बर्थ दो और वह
भी बिना कुछ दक्षिणा के .हम रात-रात भर जागते हैं ,घर बार छोड़ रेल के धक्के खाते हैं ....

हमने उनकी बात को बीच में काटकर उनसे पूछ ही लिया -मगर इसके बदले में वेतन तो मिलता ही है.

वो बोले -चाचा,आप भी ....इतने से वेतन के लिए कौन इस धंधे में आता है,ऊपर का व्यवहार है इसलिए
इस काम में बैठे थे .अन्ना के साथ लोगों का हुजूम देखकर तो एक बार तो मेने नौकरी छोड़ देने की ठान
ली .भला हो आपकी बहु का कि उसने हिम्मत बँधायी.लक्ष्मी के व्रत चालु किये .अन्ना को सुम्मती के
लिए मंदिरों में प्रार्थना की.अन्ना बीमार पड़े ,अनशन टूटा तो कुछ आस बंधी ,लगा देश की जनता फिर से
कुम्भकरण की नींद में सो गयी है और उधर देवदूतों ने लोकपाल को लटका दिया .आप अब मेरे द्वारा लायी
मिठाई खाईये .

धर्मी के जाने के बाद हम भी दफ्तरों के काम से बाहर निकले .बाहर सड़क पर मायूस लोगों की भीड़ थी
चेहरे उतरे हुए थे मगर हर दफ्तर में आज रोनक थी .सब खुश थे .अन्ना की हार का जश्न चल रहा था .

हमने अपनी अर्जी बाबू को दी -बाबू ने आँखे तरेर कर कहा -चल बे ,कल आना .आज तो लोकपाल के
लटकने का जश्न है ,कल आना,काम हो जाएगा मगर हेकड़ी दिखाते खाली हाथ मत आना ,वरना काम
लोकपाल की तरह लटक जाएगा.

हम सुनहरे सपने को जल्द भूल जाना चाहते थे जो अन्ना ने दिखाया था और मन को समझा रहे थे कि
बेटा जिस तरह तेरा बाप जीया था उसी तरह से तू भी जीना सीख ले और बच्चो को भी सिखा दे क्योंकि
कोयले को कितना ही दूध से धोले मगर फिर भी वह काला ही रहेगा .       

लोकपाल-हमाम में सभी नंगे!

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

लोकपाल विधेयक के बहाने कॉंग्रेस के नेतृत्व वाले सत्ताधारी गठबन्धन यूपीए और भाजपा के नेतृत्व वाले मुख्य विपक्षी गठबन्धन एनडीए सहित सभी छोटे-बड़े विपक्षी दलों एवं ईमानदारी का ठेका लिये हुंकार भरने वाले स्वयं अन्ना और उनकी टीम के मुखौटे उतर गये! जनता के समक्ष कड़वा सत्य प्रकट हो गया!

जो लोग भ्रष्टाचार की गंगोत्री में डुबकी लगाते रहे हैं, वे संसद में भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिये आँसू बहाते नजर आये! सशक्त और स्वतन्त्र लोकपाल पारित करवाने का दावा करने वाले यूपीए एवं एनडीए की ईमानदारी तथा सत्यनिष्ठा की पोले खुल गयी! सामाजिक न्याय को ध्वस्त करने वाली भाजपा की आन्तरिक रुग्ण मानसिकता को सारा संसार जान गया! भाजपा देश के अल्प संख्यकों के नाम पर वोट बैंक बढाने की घिनौनी राजनीति करने से यहॉं भी नहीं चूकी|

भाजपा और उसके सहयोगी संगठन एक ओर तो अन्ना को उकसाते और सहयोग देते नजर आये, वहीं दूसरी ओर मोहनदास कर्मचन्द गॉंधी द्वारा इस देश पर जबरन थोपे गये आरक्षण को येन-केन समाप्त करने के कुचक्र भी चलते नजर आये!

स्वयं अन्ना एवं उनके मुठ्ठीभर साथियों की पूँजीपतियों के साथ साठगॉंठ को देश ने देखा| भ्रष्टाचार के पर्याय बन चुके एनजीओज् के साथ अन्ना टीम की मिलीभगत को भी सारा देश समझ चुका है| सारा देश यह भी जान चुका है कि गॉंधीवादी होने का मुखौटा लगाकर और धोती-कुर्ता-टोपी में आधुनिक गॉंधी कहलवाने वाले अन्ना, मनुवादी नीतियों को नहीं मानने वाले अपने गॉंव वालों को खम्बों से बॉंधकर मारते और पीटते हैं!

भ्रष्टाचार मिटाने के लिये अन्ना भ्रष्टाचार फैलाने वाले कॉर्पोरेट घरानों और विदेशों से समाज सेवा के नाम पर अरबों रुपये लेकर डकार जाने वाले एनजीओज् को लोकपाल के दायरे में क्यों नहीं लाना चाहते, इस बात को देश को समझाने के बजाय बगलें झांकते नजर आये! जन्तर-मन्तर पर लोकपाल पर बहस करवाने वाली अन्ना टीम ने दिखावे को तो सभी को आमन्त्रित करने की बात कही, लेकिन दलित संगठनों को बुलाना तो दूर, उनसे मनुवादी सोच को जिन्दा रखते हुए लम्बी दूरी बनाये रखी है!

संसद में सभी दल अपने-अपने राग अलापते रहे, लेकिन किसी ने भी सच्चे मन से इस कानून को पारित कराने का प्रयास नहीं किया| विशेषकर यदि कॉंग्रेस और भाजपा दोनों अन्दरूनी तौर पर यह तय कर लिया था कि लोकपाल को किसी भी कीमत पर पारित नहीं होने देना है और देश के लोगों के समक्ष यह सिद्धि करना है कि दोनों ही दल एक सशक्त और स्वतन्त्र लोकपाल कानून बनाना चाहते हैं| वहीं दूसरी और सपा, बसपा एवं जडीयू जैसे दलों ने भी लोकपाल कानून को पारित नहीं होने देने के लिये संसद में बेतुकी और अव्यावहारिक बातों पर जमकर हंगामा किया| केवल वामपंथियों को छोड़कर कोई भी इस कानून को पारित करवाने के लिये गम्भीर नहीं दिखा| यद्यपि बंगाल को लूटने वाले वामपंथियों की अन्दरूनी सच्चाई भी जनता से छुपी नहीं है|

सशक्त था फिर भी कौमा में............!!!


सशक्त था फिर भी कौमा में............!!!

मेरे देश के नेता ,सचमुझ आप जनता को उल्लू बना गए हैं! न नौ मन तेल होगा ना राधा
 नाचेगी. जब मजबूत लोकपाल लाना ही नहीं था तो सारी कवायद किसलिए की गयी?


जनता भ्रष्टाचार से परेशान थी ,है मगर उससे निजात दिलाना कोई दल नहीं चाहता है.क्योंकि 
दूध का धुला कौन है या फिर हमाम में सब ..........!!


जनसेवक के मुंह से अन्ना की आलोचना.... मतलब सियार को शेर की मांद में घुसने से 
जयमाला नहीं मौत ही मिलती है,और अन्ना भी भ्रष्ट नेता को शेर की मांद में घुसाने का कह
 रहे थे !!


अन्ना आन्दोलन मुंबई में फ्लॉप हो गया !जनता के लापरवाह होने का मतलब लोकपाल लटक 
गया !!लापरवाही का फल अन्ना को नहीं जनता को ही सहते रहना है!!! 
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                                                चुटकला

पहला दल-मैंने  तो जोकपाल   की कमर तोड़ दी .


दुसरा दल-मैंने तो जोकपाल  की टांग मरोड़ दी .


तीसरा दल-मैंने तो जोकपाल की जबान खींच ली 


चौथा दल-मैंने तो जोकपाल की नस काट दी .


पांचवा दल-यह करामात तुम लोगों ने नहीं की है ,ये तो हमारी करामात थी जो ऐसा जोकपाल 
 लाये की उसमे कोई जान ही नहीं थी .

गीता पूरी दुनिया के लिए, इस पर कोई बैन संभव नहीं


खुशी कि बात है कि गीता पर प्रतिबंध की माँग खारिज

रूस : गीता पर पाबंदी की अर्जी रद्द 
\खबर :

‘गीता पर भारत के रुख की हुई पुष्टि’

गीता पूरी दुनिया के लिए, इस पर कोई बैन संभव नहीं


गीता पर प्रतिबंध की माँग खारिज

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खुशी कि बात है कि रुसी अदालत ने मुकदमा ख़ारिज कर दिया , 

पर पक्का है कि,  यदि यही मुकदमा, हिन्दुस्तान कि अदालत में होता,

तो ख़ारिज नहीं हो सकता था 

29.12.11

मेरी wonderful दुबई यात्रा


my wonderful visit to dubai , december ,2011


कुछ तो कारण है कि ५०% भारतियों कि आबादी होते हुए भी दुबई इतनी साफ़ सुथरी है , 
पता नहीं , डेमोक्रेसी है कि राजशाही , पर बड़े बड़े डान भी वहां सीधे होकर रहते है 
सारी दुनिया का दो न. का पैसा , पानी कि तरह बहता है ,
बिना टैक्स के भी सरकार चका चक चल रही है 
कोई भी सलाह के लिए निसंकोच संपर्क कर सकते हैं . 

मेरी wonderful   दुबई यात्रा 

my real economy class by which i travel, people are more open here.


my co-flight friend from united kingdom mr benedict beaumont

in front of boat cruise in night 

i am doing camel ride from my childhood , in rajasthan, but dubai experience is different

the eagale man 

desert scooters

the inside of desert safari camp

local tribal dance with modern technology


the famous belly dance, in hindi you say it ठुमका डांस 




my friend mr konstanin shelepov from kazakistan

अपनी कार नहीं तो क्या mercedes तो है 

the business team from india and dubai associates

where there are indians, there are sweets

bollywood is every where