विस्फोट ब्लाग http://visfot.blogspot.com से साभार-----------------------------
29 Apr, 2008
कम्युनिटी ब्लाग के माडरेटरों की कुछ करतूतों का खुलासा अब तो विस्फोटक भड़ासी बन गया मैं....!!! संजय जी को शुक्रिया, जो इस लायक समझा कि मुझे
विस्फोट का सदस्य बनाया जा सके। पहले तो
विस्फोट को कम्युनिटी ब्लाग बनाने का फैसला लेने के लिए
संजय तिवारी जी को मैं दिल से धन्यवाद दूंगा क्योंकि दरअसल अकेले अकेले लिख लेना खुश हो लेना बहुत अच्छी बात है लेकिन अपने जैसे लिखने सोचने वालों को जोड़ने उससे भी अच्छी बात होती है। साथ ही, जब तक विचारों की एका के आधार पर खड़ा कोई परिवार या कुनबा जैसा न हो तो अकेले जीने लिखने में मजा कम ही आता है। पर अकेले लिखने पढ़ने पढ़ाने में आसानी ये रहती है कि आपको कोई असुविधा नहीं होती। जब चाहे लिखिए, जब चाहे न लिखिए। आप मर्जी के मालिक हैं।
बहुत कठिन है डगर पनघट की....जब आप कम्युनिटी ब्लाग बनाते हैं तो आपके ब्लाग पर आपका सदस्य भी लिख सकता है और पता नहीं वह क्या क्या लिख सकता है। ऐसे में एक आसन्न सा खतरा हमेशा दिखता रहता है। यहीं वो पहली चीज शुरू होती है जिसे विश्वास कहते हैं। हो सकता है बतौर व्यक्ति, आप अपने कम्युनिटी ब्लाग के सदस्य के विचार से असहमत हों लेकिन उसे आप अपने ब्लाग से इसलिए नहीं हटा सकते क्योंकि आप असहमत हैं। आप को विरोधों की एकता के दर्शन को भी आजमाना पड़ सकता है। कहे का मतलब ये कि कम्युनिटी ब्लागिंग उस परिवार जैसा है जिसके कुछ परिजन बिगड़ैल भी हो सकते है लेकिन उसे आप उसकी गलतियों के लिए घर निकाला नहीं दे सकते, हां, कान वान जरूर उमेठ सकते हैं। तो कम्युनिटी ब्लागिंग को करना व संभालना थोड़ा मुश्किल काम तो है ही। पर अपने
संजय जी तो मुश्किलों के मुश्किल को आसान करना जानते हैं सो मेरा उन पर एक सौ दस फीसदी यकीन है कि वो कम्युनिटी ब्लागिंग के परिवार के सदस्यों को संभाल संकने में सक्षम होंगे।
ऐसे-ऐसे, कैसे-कैसे कम्युनिटी ब्लागों के माडरेटर....भड़ास को कम्युनिटी ब्लाग के रूप में चलाने के दौरान मुझे भी कई चीजें झेलनी पड़ी हैं और आज कल भी झेलता रहता हूं। जैसे अभी अभी के दिनों में एक महान ब्लागर ने अपने महान ब्लाग पर फिर
भड़ास को उंगली की है। पता नहीं अपना वो भाई अपनी बुरी आदतों से बाज क्यों नहीं आता। मजेदार तो ये है कि उसने तथ्य भी गलत सलत दे रखे हैं। मसलन
गीत चतुर्वेदी से जुड़े मसले की मूल पोस्ट को डिलीट कर दिया गया है...जबकि तथ्य ये है कि उसे कतई डिलीट नहीं किया गया है, उसे बस
गीत चतुर्वेदी के अनुरोध पर संपादित किया गया है हालांकि पोस्ट का जो लेखक है आज भी अपने कहे पर कायम है और उसके आगे की पोस्ट लिखने को तैयार है पर गीत भाई के अनुरोध पर इस पूरे मामले को बिना बखेड़ा बनाए खत्म कर दिया गया। लेकिन इस मामले को वो महान ब्लागर फिर जिंदा कर एक तीर से दो काम करना चाहता है, एक तो भड़ास को टारगेट करना, दूसरा ढेर सारे लोगों से सहानुभूति हासिल करना व गीत के मसले को गड़े मुर्दे से फिर उखड़वाकर उन्हें बदनाम करना.....। सबसे आपत्तिजनक बात तो ये है कि
गीत वाले मसले को कानक्लुड करते हुए जो पोस्ट भड़ास में लिखी गई थी उस पोस्ट तक को उस महान ब्लागर ने नहीं पढ़ा और न इस बारे में लिखते हुए मुझसे मेरा पक्ष जानने की कोशिश की।
भई, अगर किसी को उंगली करो तो कायदे से करो, ये क्या मतलब कि बस छुवाया और चलते बने। जैसे गांवों में कुछ लंठ टाइप के लोग सांड़ों को छेड़ कर दांत चियारने लगते हैं, किसी कुंठित निरीह की तरह।
तो ये सब दिक्कतें कम्युनिटी ब्लागिंग में आती हैं। लिखा किसी ने, विरोध किया किसी ने, बीच बचाव किया आपने पर आपके विरोधी आपको माफ नहीं करेंगे और सब कुछ गलत करने का आरोप आपके सिर मढ़ देंगे।
भड़ास के बाद
विस्फोट ऐसा दूसरा कम्युनिटी ब्लाग है जिसका मैं सदस्य बना हूं। इसके पहले कुछ दिनों के लिए
नीलिमा-सुजाता एंड प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के महिलाओं के कथित सामूहिक ब्लाग
चोखेरबाली का सदस्य मुझे निमंत्रण देकर बनाया गया। वहां केवल दो पोस्टें लिखीं और उस पर इतना विवाद हुआ कि इन बहनों ने कुछ भाई साहब लोगों के निर्देश पर धक्के देकर मुझे बाहर कर दिया। दरअसल,
चोखेरबाली ब्लाग की जो माडरेटर हैं वो कम्युनिटी ब्लाग चलाने लायक ही नहीं हैं क्योंकि उन्हें अभी बेसिक तमीज नहीं है। तभी तो आज ही
भड़ास पर एक पोस्ट में
भड़ास की सदस्या
कमला भंडारी ने लिखा है कि किस तरह उनकी पोस्टों को एक ब्लाग के माडरेटर ने डिलीट कर दिया और एक से ज्यादा पोस्ट डालने के आरोप में सदस्यता भी खत्म कर दी।
कमला के साथ जो हुआ, वो मेरे साथ भी हुआ। दोनों में एक बात साझा है, दोनों को ही हटाने के पहले अपनी बात रखने का कोई मौका नहीं दिया गया। वैसे तो ये बहने लोकतंत्र और आजादी के नाम पर इस कदर हल्ला करेंगी कि आपके कान का परदा फट जाएगा पर जब उनके खुद के कम्युनिटी ब्लाग की आजादी व लोकतंत्र का मामला आता है तो वे खुद को औरत और अभी सीखने की प्रक्रिया में होने की बात कहकर बचाव करने लगती है। ये शर्मनाक है।
उम्मीद करता हूं
संजय जी मुझे
चोखेरबालियों की तरह बिना बताये धक्के मारकर
विस्फोट से नहीं निकालेंगे
:)और हां,
चोखेरबालियों की हरकतों के बारे में एक चीज तो बताना भूल ही गया। वहां जब मैं सदस्य बना था तो मुझे निर्देश दिया गया था कि आप लिखकर डायरेक्ट पोस्टिंग नहीं कर सकते। आप लिखें और पोस्ट को
चोखेरबाली ब्लाग के ड्राफ्ट में सेव करने के बाद सुजाता जी को मेल कर दें, वो आएंगी, देखेंगी और न्याय करने के बाद प्रकाशित करेंगी। मैंने खुद को महिलाओं के स्वराज के बीच फंसे होने की बात सोचकर उनका कहा मान लिया और उनके कहे मुताबिक मैंने पोस्टें लिखने के बाद सेव करीं,
सुजाता ने पढ़ने के बाद उसे पोस्ट किया पर जब उस पर बवाल हो गया तो
सुजाता को भी पसीने आने लगे और क्या करें क्या करें सोचते सोचते मेरी मेंबरशिप ही डिलीट कर दी। न रहेगा बांस न बाजेगी बांसुरी....।
ये शर्मनाक है कि कहने को कम्युनिटी ब्लाग चला रहे हैं लेकिन वहां मायावतियों जैसा राज है, कि खुद तो सिंहासन पर विराजेंगी, चेले चापड़ नीचे दरी पर लोटें, ये निर्देश रहेगा.....। काहे का लोकतंत्र है ये....और ऐसी ब्लागर महिलाएं किस तरह महिलाओं की लड़ाई लड़ सकेंगी....। उनके दिमाग में महिला उत्थान के मुद्दे कम, राजनीति ज्यादा है।
सवाल सिर्फ
चोखेरबाली का नहीं है। कई और ऐसे बड़े कम्युनिटी ब्लाग है जहां कहने को तो वो कम्युनिटी ब्लाग है पर ब्लाग एग्रीगेटरों पर उस ब्लाग की पोस्ट आने पर बजाय ब्लाग का लोगो आने के, उस कम्युनिटी ब्लाग के मालिक माडरेटर की तस्वीर आती है। बेहद चिंतनशील मुद्रा में। अरे भाया, आपके अंदर की तानाशाही व काले दिल-दिमाग का इससे बड़ा नमूना और क्या होगा कि आप खुद को ही हर जगह छाया हुआ देखना चाहते हैं, किसी राजा की तरह, बाकी लोग तो गाजर घास मूली हैं.....।
संजय जी से मैं अनुरोध करूंगा कि वो अपने सदस्यों के सीधे लिखने की सुविधा दें, उससे संजय जी को थोड़ी असुविधा हो सकती है पर कम्युनिटी ब्लाग चलाना कोई आराम का खेल तो है नहीं, सो इतना तो आपको झेलना ही पड़ेगा। और मैं ये पोस्ट भी बिना
संजय जी से पूछे, डायरेक्ट लिखकर पोस्ट कर रहा हूं, यही इस बात का सबूत है कि यहां
विस्फोट पर रीयल आजादी है, फर्जी नहीं, दिखावे का नहीं।
कम्युनिटी ब्लाग होने के फायदे भी हैं। सबसे बड़ा फायदा यही है कि आपको कोई एग्रीगेटर दिखाए या नहीं दिखाए, आपको चाहने वाले लोग खुद ब खुद आपके ब्लाग का यूआरएल टाइप कर आपके पास आते रहते हैं।
भड़ास ताजा मामला है।
ब्लागवाणी के
गुप्ता बंधु ने जाने किन इशारों पर
भड़ास को अपने एग्रीगेटर से हटा दिया
(कहने को वो इसे आर रेटेड में रखने की बात कहते हैं पर वहां जाकर देखने पर पता चलता है कि वहां से कोई भी पाठक भड़ास पर नहीं गया) बावजूद इसके,
भड़ास की रोजाना की हिट्स बजाय घटने के बढ़ गई और इस समय के कम्युनिटी ब्लागों में सबसे ज्यादा हिट्स व सदस्य संख्या वाला ब्लाग
भड़ास बना हुआ है। तो ये फायदा होता है कम्युनिटी ब्लागिंग का।
खैर,
विस्फोट पर मैंने अपनी पहली पोस्ट में कम्युनिटी ब्लागिंग पर ज्यादा चर्चा की और
विस्फोट को लेकर कम। लेकिन इसके पीछे जो मकसद था वो यही था कि
विस्फोट के कम्युनिटी ब्लाग बनने से इस ब्लाग के लक्ष्य को पूरा करने में फायदा मिलेगा और समान विचारों के लोग इस तेवरदार ब्लाग पर इकट्ठा होकर ढेर सारे मुद्दों पर अपने अपने विचार प्रकट कर सकते हैं। साथ ही जो बातें कम्युनिटी ब्लागिंग को लेकर मैंने बताई हैं, जो मेरे अनुभवों की खेती से पैदा हुई हैं, उसके आधार पर
संजय जी को इस कम्युनिटी ब्लाग को आगे बढ़ने में मदद मिलेगी, ऐसा मैं उम्मीद करता हूं।
फिलहाल इतना ही...
जय हिंद, जय भड़ास, जय विस्फोट.....यशवंत सिंह
Posted by यशवंत सिंह yashwant singh at 4:18 PM 2 comments:
संजय तिवारी said... यशवंत भाई, क्या एडिट करूं इसमें? आपका बड़्प्पन है जो एडिट करने की छूट दे रहे हैं.
29 April, 2008 5:28 PM
यशवंत सिंह yashwant singh said... कुछ एक ब्लाग एग्रीगेटर्स पर इस विस्फोट कम्युनिटी ब्लाग के सिंबल के रूप में आपकी तस्वीर जा रही है, मेरे खयाल से यह अब सही नहीं है। पहले सही था, जब तक यह ब्लाग आपका पर्सनल था, लेकिन अगर आपने इसे कम्युनिटी ब्लाग का शेप दे दिया है तो आप इस ब्लाग के नाम को ही या फिर किसी विजुवल को लोगों के रूप में इस्तेमाल करने की सलाह या निर्देश ब्लाग एग्रीगेटरों को दें। ये मेरी सलाह है।
एडिट करने का पूरा अधिकार ब्लाग के मुख्य माडरेटर को होता है। अगर तथ्य एडिट करने लायक न हों तो कम से कम भाषाई त्रुटियों को तो ठीक कर दीजिए.....:) चाहें तो ब्लागों के जो नाम दिए हैं उसमें लिंक विंक डाल दीजिए....ये सब अच्छे ब्लाग माडरेटर संपादक के काम होते हैं।
मैं तो ठहरा बुरे ब्लाग भड़ास का माडरेटर तो मैं कभी किसी की पोस्ट एडिट करने के झंझट में पड़ता ही नहीं क्योंकि जब घोषित तौर पर हम लोग बुरे हैं तो फिर अच्छे बनने का नाटक क्यों करें :)
29 April, 2008 5:38 PM
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