लोकसंघर्ष !: छद्म पूँजीवाद बनाम वास्तविक पूँजी-5

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छद्म पूँजी बनाम उत्पादक पूँजी

सन 2005-08 के दौरान अमेरिका में वित्तीय संस्थाओ की क्रियाशीलता बेहद बढ़ गई । संपत्ति बाजार में पैसा लगाया जाने लगा । संपत्ति की कीमतों में पागलपन की हद तक वृधि हुई । लोग और कंपनिया अंधाधुंध कर्जे लेने और देने लगे। कंपनियों ने अपनी मूल पूँजी के 25-30 गुना अधिक पूँजी कर्ज पर लेकर निवेश करना आरम्भ किया। अमेरिका के वित्तीय केन्द्र तथा सबसे बड़े स्टॉक बाजार ''वाल स्ट्रीट '' तथा अमेरिका की विशालतम चार सबसे बड़ी वित्तीय संस्थाओ ने अकूत पैमाने पर शेयर बाजार,प्रतिभूति बाजार ,गिरवी बाजार इत्यादि में भारी पैमाने पर पूँजी लगा दी ।

उधर उत्पादक उद्यम और उत्पादक पूँजी अपेक्षित कर दी गई।
ऐसे में वित्तीय अर्थव्यवस्था के ''बैलून'' को कभी न कभी फूटना ही था।
इस बार ''अति उत्पादन '' का संकट उतना स्पष्ट नही दिखाई सेता है क्योंकि वितरण एवं सेवा दोनों का चक्र बड़ी तेजी से काम कर रहा है।

संकट और मंदी का चक्र अब उत्पादन के क्षेत्र में प्रवेश कर रहा है। 'बेल आउट' और राज्य द्वारा हस्तक्षेप

1929-33 की महामंदी के दौरान और उसके बाद जान मेनार्ड केन्स और शुम्पीटर जैसे पश्चिम के पूंजीवादी अर्थशास्त्रियो ने संकट से उभरने के लिए राज्य के हस्तक्षेप का सिधान्त प्रस्तुत किया था। खासतौर से केन्स इस सिधान्त के लिए जाने जाते है । द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद , खासतौर पर पिछले दो दशको में पश्चिम में तथाकथित उदारवादी सिधान्तो की बाढ़ आई हुई है जिसके तहत राज्य से अर्थतंत्र से बहार जाने के लिय कहा गया। उससे पहले और अब आर्थिक मंदी के दौर राज्य से फिर अर्थतंत्र के हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया गया है। साम्राज्यवादी राजनैतिक अर्थशास्त्र भी चक्रीय दौर से गुजरता है।

सर्वविदित है की अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशो में सरकारें खरबों डॉलर का विशेष कोष लेकर बड़े इजारेदार उद्यमों और वित्त पूँजी को बचने मैदान में उतर रही है। इस राहत कार्य को 'बेल-आउट' कहा जा रहा है। चीन की सरकार भी 600 अरब डॉलर का कोष बना चुकी है।

छद्म पूँजी पर अंकुश की आवश्यकता

दूसरे शब्दों में पूंजीवादी और साम्राज्यवाद का संकटाप्रन्न आर्थिक चक्र आज इस मंजिल में पहुँच गया है जहाँ राज्य और सरकारों द्वारा वित्तीय पूँजी पर अंकुश लगाना बहुत जरूरी हो गया है। वित्त पूँजी अर्थात छद्म पूँजी तथा उस पर आधारित 'कैसीनो' पूँजीवाद का प्रभुत्व कम करने और उन पर अंकुश लगाने के लिए राज्य द्वारा उत्पादन को सहायता देना आवश्यक है साथ ही अर्थतंत्र के उत्पादक हिस्सों कल कारखानों ,उद्यमों ,खेती,इत्यादि का विकास और उत्पादन जरूरी है। तभी जाकर मुक्त मुद्रा को वस्तुओं द्वारा संतुलित किया जा सकता है।

जाहिर इस दिशा में सम्पूर्ण आर्थिक नीतियाँ बदलने की आवश्यकता है।
भारत जैसे देशो ने दर्शा दिया है कि सार्वजानिक क्षेत्र का निर्माण देश के अर्थतंत्र के लिए कितना महत्वपूर्ण है। आज सार्वजनिक क्षेत्र और आधुनिक मशीन तथा ओद्योगिक एवं कृषि उत्पादन का निर्माण और विकास विश्व आर्थिक संकट से बचने के सबसे अच्छी उपाय है।

छद्म पूँजी के बनिस्बत वास्तविक पूँजी का विकास आवश्यक है ।

-अनिल राजिमवाले
मो नो -09868525812

लोकसंघर्ष पत्रिका के जून अंक में प्रकाशित ।

गुलाम आस्ट्रेलिया साबित क्या करना चाहता है

आस्ट्रेलिया एक गुलाम देश है उसके गुलाम नागरिक अपने को महान साबित करने के लिए हमले कर रहे है हम आजाद देश के नागरिको पर । हमारे बच्चे पढ़ाई के लिए वहां पर है और उन पर हमला हो रहा है और हमारी सरकार कोई कठोर कदम नही उठा रही है । जय हो विदेश नीति की ।

दुनिया के छोटे से छोटे देश आज आजाद है लेकिन आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की राष्ट्र अध्यक्ष आज भी बिर्टेन की महारानी है । यह गोरी चमडी के गुलाम मानसिकता के लोग अपनी गुलामी में खुश है ।

आस्ट्रेलिया पर भारत को अपनी तरफ से लगाम कसनी चाहिए । उसका बहिष्कार होना चाहिए ख़ास कर क्रिकेट में भी । हमारी टीम एक देश के ख़िलाफ़ खेले नाकि दुसरे देश के गुलाम देशो के साथ भी । कठोर कदम उठाना ही चाहिए सरकार को ।

और आख़िर में श्री अमिताभ बच्चन को सलाम उन्होंने आस्ट्रेलिया में हो रहे भारतीयों पर अमानवीय व्यवहार के कारण वहां का सम्मान ठुकरा दिया । ऐसी ही इच्छा शक्ति भारत सरकार को दिखानी चाहिए ।

नजारे कंचनजंघा के

सिक्किम प्रकृति प्रेमियों का पसंदीदा स्थान तो है ही, ट्रेकिंग के लिए रोमांच भरे अनेक क्षेत्रों के कारण ट्रेकर्स को भी विशेष रूप से आकर्षित करता है। विश्व की तीसरी सबसे ऊंची चोटी कंचनजंघा भी यहीं है जिसकी सूर्योदय की सुनहरी आभा दिल-दिमाग पर गहरी छाप छोड जाती है। जाहिर है ऐसे पर्वत के साये में साधारण से लेकर ऊंचाई वाली ट्रेकिंग के लिए अनेक क्षेत्र मौजूद है जिनमें पैदल सैलानियों के दमखम का जोरदार इम्तिहान होता है। यूं तो प्रकृति का अपना बगीचा और फूल का प्रदेश कहलाने वाले सिक्किम में अन्य साहसिक गतिविधियों के लिए चारों दिशाओं में अनेक स्थान नदियां और बर्फीले इलाके मौजूद हैं परंतु पश्चिम सिक्किम में ऊंचाई वाली ट्रेकिंग का रोमांच अलग ही है।
युकसम सिक्किम की पहली राजधानी रही है, जिसकी समुद्रतल से ऊंचाई 5600 फुट है। जोगरी जेमाथांग जैसे ट्रेक और कंचनजंघा पर चढाई के लिए आधार शिविर यहीं लगाए जाते हैं जिससे पश्चिम सिक्किम के इस क्षेत्र का महत्व और बढ जाता है। कई अन्य ट्रेक भी यहां से प्रारंभ होते हैं। थोडी संजीदा ट्रेकिंग के लिए यहां से एक सरकुलर ट्रैक आयोजित किया जाता है जिसके मुख्य पडाव हैं- युकसम-सोका जोंगरी-थानजिंग- सुमिति झील (मिनी मानसरोवर) जेमाथांग-गोछा ला-थानजिंग- लामपोखरी-कस्तूरी ओराल-युकसम।
कुछ समय पहले सिक्किम सरकार के पर्यटन विभाग ने नेशनल हाई एल्टीट्यूड ट्रेकिंग प्रोग्राम का आयोजन किया था जिसमें देश के अनेक भागों से आए ट्रेकिंग दलों ने भाग लिया। दिल्ली से हमारा दल जब चला तो दो दिन दार्जीलिंग में रुका जहां इंटरनेशनल हिमालयन माउंटेनियरिंग मीट आयोजित की गई थी। हम उसमें सम्मिलित हुए। सर एडमंड हिलेरी व उनकी धर्मपत्नी, उनके पर्वतारोही पुत्र पीटर हिलेरी, तेनजिंग नोर्गे, नवागं गोम्बू, उनकी बेटी रीटा गोम्बू, फू दौरजी जैसे महान पर्वतारोहियों के अतिरिक्त इटली और स्पेन के कुछ पर्वतारोहियों से यहां हमारी भेंट हुई। दार्जीलिंग से हम सिक्किम की ओर बढे। हमारी बस ने रंगित नदी को पार किया जो पश्चिमी बंगाल और सिक्किम की सीमा निर्धारित करती है। पेलिंग में हम एक रात रुके। रक्षित नामक स्थानीय मादक पेय का अधिकतर साथियों ने सेवन कर आनंद लिया। अगले दिन हम युकसम में थे। जैसा कि आम तौर पर किसी भी ऊंचाई वाले इलाके (13-14 हजार फुट से ऊपर) में जाने के लिए जरूरी होता है, अपने शरीर को यहां के मौसम के हिसाब से ढालने (एक्लीमेटाइजेशन) के लिए हमें यहां दो दिन रुकना था। सीलन और नमी भरे इस क्षेत्र में जोंकों का जबरदस्त बोलबाला है। खुली जगह से लेकर आपके बिस्तर तक में भी वे आपको मिल सकती हैं। इनसे बचने के लिए हमें जूतों में नमक डालने के लिए दिया गया। फिर भी इनके आक्रमण से शायद ही कोई अछूता बचता हो। पास ही में ऊंचे स्थान पर एक प्राचीन बौद्ध मठ (मोनेस्ट्री) है। दूसरे दिन हम वहां गए और लौटकर अगले दिन ट्रेकिंग पर जाने की तैयारी में जुट गए।
सोका (10 हजार फुट) : जूतों में नमक डालकर हम अपने पहले पडाव सोका के लिए चल पडे। कुछ साथियों को जोंको ने काटने से नहीं छोडा। बुरांश (रोडोडेंड्रोन) के सुंदर पौधों पर कई जगह फूल थे जिनके बीच से हम आगे बढते रहे। कहीं जंगल और कहीं पानी के बहाव देखकर हम कुछ क्षण के लिए अपनी थकान भूल जाते थे। रास्ते में याक भी मिले। शाम होने से पहले हम सोका पहुंच चुके थे।
जोंगरी (12800 फुट) : अगले पडाव जोंगरी के लिए हम चले तो कुछ देर बाद वर्षा ने आ घेरा। काफी तेज बारिश ने हमारी समस्याएं बढा दी। ज्यों-ज्यों हम आगे बढ रहे थे वनस्पति कम होती जा रही थी। केवल बुरांश के फूल अधिक दिखाई दे रहे थे। दोपहर बाद हम जोंगरी पहुंच चुके थे। वहां हिमपात हुआ था। चारों ओर बर्फ ही बर्फ थी और ठंड भी अधिक थी। चाय और भोजन का प्रबंध तो हर स्थान पर सरकारी था और हमको भोजन बनाने की आवश्यकता नहीं थी परंतु ऊंचाई के प्रभाव के कारण कुछ भी खाने को मन नहीं कर रहा था। सिर दर्द और मितली इसके असल की निशानी हैं। रात को सोना भी मुश्किल हो जाता है। अगली सुबह कुछ सदस्य आगे बढने से कतरा रहे थे। लेकिन हिम्मत करके सब साथ चल पडे।
थानजिंग (12400 फुट) : ऊंचाई वाले ट्रैक का अभ्यास न होने के कारण ऑक्सीजन की कमी कैसे पूरी की जाए, इस बात का ज्ञान मुझे नहीं था। थानजिंग की ओर बढते हुए हमें नरसिंह पर्वत और पंडिम शिखर के भव्य दर्शन हुए। खिली धूप में दोनों पर्वतों पर पडी बर्फ की चमक ज्यादा देर अपनी ओर निहारने नहीं दे रही थी। गंतव्य स्थान तक पहुंचने में हमें ज्यादा समय नहीं लगा क्योंकि जोंगरी की ऊंचाई से हम कुछ नीचे की ओर जा रहे थे और दूरी भी अधिक नहीं थी।
सुमति झील (14130 फुट) और जेमाथांग : सुमिति झील को सिक्किम में मिनी मानसरोवर भी कहते हैं। समय-समय पर यहां काले हंस भी दिखाई देते हैं। जेमाथांग भी झील के साथ ही है। अद्भुत नजारा था। प्रकृति ने मानो हम पर कृपा करके मौसम खुशगवार रखा परंतु दोपहर से पहले ही मौसम खराब होने लगा। हमने झील के किनारे अच्छा खासा समय बिताया। 16200 फुट की ऊंचाई पर स्थित गोछा शिखर का प्रतिबिंब झील में पड रहा था। गोछा ला तक शायद ही कोई गया था। दोपहर को हम थानजिंग वापिस लौट आए। युकसम की ओर वापसी शुरू हो चुकी थी। हालांकि झील की खूबसूरती को छोडकर लौटने का किसी का मन नहीं कर रहा था। थानजिंग से सुमति झील के सफर में ही ओंगलाथांग से कंचनजंघा का शानदार नजारा देखा जा सकता है।
लामपोखरी (13890 फुट) : अगली सुबह हमने नाश्ता किया तथा फिर कुछ आराम करके ट्रेकिंग शुरू की। दुर्भाग्य से मुझे ऊंचाई का असर महसूस होने लगा था। मुझसे एक कदम भी आगे चला नहीं जा रहा था। कुछ साथियों ने सहारा देने की कोशिश तो की लेकिन मुझसे चला नहीं जा रहा था। मैं बैठा रहा और पहले दल के सदस्य और फिर दल के उपनेता और नेता भी चुपचाप आगे निकल गए। अंत में सबसे धीमे चलने वाले दो सदस्य डाक्टर यादव और प्रोफेसर शेखर मेरे पास आए। मेरी हालत को गंभीरता से लेते हुए वे दोनों वहीं रुक गए। उनके साथ एक पोर्टर भी था। पहले तो डाक्टर यादव ने मुझे मीठा पेयजल खूब पिलाया ताकि पानी से मेरे अंदर आक्सीजन की मात्रा बढाई जाय। फिर मुझे सुला दिया। लगभग डेढ घंटा मैं सोया रहा और वे तीनों भी मेरे समीप बैठे रहे। अंत में उन्होंने निर्णय लिया कि मुझे थानजिंग वापिस ले जाया जाए। डाक्टर यादव और पोर्टर ने कष्ट उठाते हुए सहारा दे देकर कैंप तक पहुंचाया। प्रोफेसर शेखर धीरे-धीरे आगे बढते रहे ताकि डाक्टर यादव उनसे वापिस आ मिलें। रात हो चुकी थी। डाक्टर और पोर्टर मुझे कैंप में पहुंचाकर लामपोखरी की तरफ चल पडे। कैंप लीडर ने वायरलेस सेट से इधर-उधर सूचना देकर पांच पोर्टरों का प्रबंध किया और अगले दिन मुझे वे पोर्टर बारी-बारी से पीठ पर उठाकर किसी छोटे रास्ते से सोका कैंप पर ले गए। यहां पर कम ऊंचाई के चलते मेरी स्थिति सुधरने लगी। मैं उन पोर्टरों का आभारी था जिन्होंने ऐसी स्थिति में मेरी सहायता की। पहाड के लोग ऐसे ही मददगार स्वभाव के लिए जाने भी जाते हैं।
कस्तूरी ओराल (9880 फुट) : लामपोखरी में रात बिताकर मेरे साथी कस्तूरी ओराल आए और मैं सोका से युकसम पहुंच गया। अगले दिन सभी साथी भी आ मिले। सबने अपनी-अपनी कथा-व्यथा सुनाई और ट्रेकिंग अभियान पूरा होने की खुशी मनाई।
ट्रेकिंग शुरू करने से पहले हमने मुंबई से आए दल की एक महिला सदस्य को बीमार होते देखा था। वह आगे नहीं जा सकी थी। उसकी एक साथी लडकी ने उसे अकेला नहीं छोडा और बिना ट्रेकिंग किए अपनी सहेली को लेकर मुंबई लौट गई थी। आयोजकों ने उस लडकी की सराहना तो की ही साथ ही डाक्टर यादव और प्रोफेसर शेखर की भी भूरी-भूरी प्रशंसा की। अगले दिन हमें सिक्किम सरकार के पर्यटन विभाग की ओर से प्रमाणपत्र देकर विदा किया गया। हम गंगटोक होते हुए दिल्ली लौट चले।
सिक्किम एक नजर में कैसे : सिक्किम में न तो कोई रेलवे स्टेशन है और न ही हवाई अड्डा। लेकिन बावजूद इसके वहां पहुंचने में कोई मुश्किल नहीं। पश्चिम बंगाल के उत्तरी भाग में बागडोगरा हवाई अड्डा सिक्किम के लिए सबसे समीप है। गुवाहाटी, कोलकाता और दिल्ली से रोजाना बागडोगरा के लिए उडानें हैं। हवाई अड्डे से सिक्किम की राजधानी गंगटोक 124 किमी दूर है। यह रास्ता आप सडक मार्ग से भी तय कर सकते हैं और चाहें तो सिक्किम पर्यटन विभाग की बागडोगरा और गंगटोक के बीच हेलीकॉप्टर सेवा का भी फायदा उठा सकते हैं। सिक्किम के लिए सबसे समीप के दो स्टेशन सिलीगुडी और न्यू जलपाईगुडी हैं। गंगटोक से इनकी दूरी क्रमश: 114 व 125 किलोमीटर है। सिक्किम में सडकें अच्छी हैं और दूर-दराज के भी ज्यादातर हिस्से अच्छी सडक से जुडे हैं।
परमिट : सीमांत प्रांत होने के कारण विदेशी नागरिकों को यहां आने के लिए इनर लाइन परमिट (आईएलपी) लेना होता है जो उन्हें वीजा के आधार पर मिल जाता है। परमिट सिक्किम पहुंच कर भी मिल जाता है जिसकी अवधि 15 दिन होती है। यह अवधि बढवाई जा सकती है।
ठहरने के लिए स्थान: सिक्किम में होटलों और लॉज की कमी नहीं है। प्रत्येक आय वर्ग के अनुकूल रहने के लिए उचित स्थान मिल जाता है। चाहे सरकारी क्षेत्र में या फिर निजी क्षेत्र में।
मौसम एवं तापमान : हिमालय की तलहटी में होने के कारण यहां का मौसम अन्य हिमालयी राज्यों जैसा ही है। सर्दियां काफी ठंडी और गरमियां सुहानी। बस बारिश से बचें क्योंकि बारिश में पहाड घूमने का मजा किरकिरा हो जाता है। मार्च से जून और फिर अक्टूबर से दिसंबर तक का समय यहां जाने के लिए सबसे दुरुस्त है।(साभार)

लोकसंघर्ष !: माँ


जब छोटा था तब माँ की शैया गीली करता था।
अब बड़ा हुआ तो माँ की आँखें गीली करता हूँ ॥
माँ पहले जब आंसू आते थे तब तुम याद आती थी।
आज तुम याद आती हो....... तो पलकों से आंसू छलकते है....... ॥

जिन बेटो के जन्म पर माँ -बाप ने हँसी खुशी मिठाई बांटी ।
वही बेटे जवान होकर आज माँ-बाप को बांटे ...... ॥
लड़की घर छोडे और अब लड़का मुहँ मोडे ........... ।
माँ-बाप की करुण आँखों में बिखरे हुए ख्वाबो की माला टूटे ॥

चार वर्ष का तेर लाडला ,रखे तेरे प्रेम की आस।
साथ साल के तेरे माँ-बाप क्यों न रखे प्रेम की प्यास ?
जिस मुन्ने को माँ-बाप बोलना सिखाएं ......... ।
वही मुन्ना माँ-बाप को बड़ा होकर चुप कराए ॥

पत्नी पसंद से मिल सकती है .......... माँ पुण्य से ही मिलती है ।
पसंद से मिलने वाली के लिए,पुण्य से मिलने वाली माँ को मत ठुकराना....... ॥
अपने पाँच बेटे जिसे लगे नही भारी ......... वह है माँ ।
बेटो की पाँच थालियों में क्यों अपने लिए ढूंढें दाना ॥

माँ-बाप की आँखों से आए आंसू गवाह है।
एक दिन तुझे भी ये सब सहना है॥
घर की देवी को छोड़ मूर्ख ।
पत्थर पर चुनरी ओढ़ने क्यों जन है.... ॥

जीवन की संध्या में आज तू उसके साथ रह ले ।
जाते हुए साए का तू आज आशीष ले ले ॥
उसके अंधेरे पथ में सूरज बनकर रौशनी कर।
चार दिन और जीने की चाह की चाह उसमें निर्माण कर ....... ॥

तू ने माँ का दूध पिया है .............. ।
उसका फर्ज अदा कर .................. ।
उसका कर्ज अदा कर ................... ।

-अनूप गोयल


ग्वालियर में फ़िर एक पत्रकार संघ ने जन्म ले लिया है ,बीते रोज़ इसकी नींव रखी गई ,नामहै "जर्नलिस्ट .........?"कुल मिलाकार
करीब अब १२...नही शायद ..१३ ..१४ ...१५ अरे पता नही .........कितने ..?और पत्रकार संघ आयंगे और जायंगे !क्या ये संघ सिर्फ
समाचार पत्र में ख़बर के लिए है !या वास्तव में पत्रकारों की समस्यायों को हल करेंगे ,क्या इन संघो को मालूम है किकुछ समाचार
पत्रों में वेतन के लाले पड़े है ,कई पत्रकार भाइयों को ५-६ maah से वेतन नही मिला है !क्या ये संघ इन पत्रकारों की मदद कर
सकते है !यह सोचने की बात है ............?

दोस्तों....आप सबको मेरा असीम....अगाध प्रेम.....!!

दोस्तों....आप सबको मेरा असीम....अगाध प्रेम.....!!
मेरे प्यारे दोस्तों,आप सबको भूतनाथ का असीम और निर्बाध प्रेम,
मेरे दोस्तों.......हर वक्त दिल में ढेर सारी चिंताए,विचार,भावनाएं या फिर और भी जाने क्या-क्या कुछ हुआ करता है....इन सबको व्यक्त ना करूँ तो मर जाऊँगा...इसलिए व्यक्त करता रहता हूँ,यह कभी नहीं सोचता कि इसका स्वरुप क्या हो....आलेख-कविता-कहानी-स्मृति या फिर कुछ और.....उस वक्त होता यह कि अपनी पीडा या छटपटाहट को व्यक्त कर दूं....और कार्य-रूप में जो कुछ बन पड़ता है,वो कर डालता हूँ....कभी भी अपनी रचना के विषय में मात्रा,श्रृंगारिकता या अन्य बात को लेकर कुछ नहीं सोचता,बस सहज भाव से सब कुछ लिखा चला जाता मुझसे....आलोचना या प्रशंसा को भी सहज ही लेता हूँ....अलबत्ता इतना अवश्य है कि इन दोनों ही बातों में आपका प्रेम है,और वो प्रेम आपके चंद अक्षरों में मुझपर निरुपित हो जाता है.....और उस प्रेम से मैं आप सबका अहसानमंद होता चला जाता हूँ...हुआ चला जा रहा हूँ....दबता चला जा रहा हूँ...और बदले में मैंने इतना प्रेम भी नहीं दिया....मगर आज आप सबको यही कहूंगा कि आई लव यू.....मुझे आप-सबसे बहुत प्रेम है....और यह मुझसे अनजाने में ही हो गया है....सो मुझे जो बहुत ना भी चाहते हों,उन्हें भी क्षमा-याचना सहित मेरा यह असीम प्रेम पहुंचे...और वो मुझे देर-अबेर कह ही डालें आई लव यू टू.....खैर आप सबका अभिनन्दन....मैं,सच कहूँ तो अपनी यह भावना सही-सही शब्दों में व्यक्त नहीं कर पा रहा....सो इसे दो लाईनों में व्यक्त करे डालता हूँ.....
"मेरे भीतर यह दबी-दबी-सी आवाज़ क्यूँ है,
मेरी खामोशी लफ्जों की मोहताज़ क्यूँ है !!
अरे यह क्या लाईने आगे भी बनी जा रही हैं....लो आप सब वो भी झेलो....
"मेरे भीतर यह दबी-दबी-सी आवाज़ क्यूँ है,
मेरी खामोशी लफ्जों की मोहताज़ क्यूँ है !!
बिना थके हुए ही आसमा को नाप लेते हैं
इन परिंदों में भला ऐसी परवाज़ क्यूं है !!
गो,किसी भी दर्द को दूर नहीं कर पाते
दुनिया में इतने सारे सुरीले साज़ क्यूं है !!
जिन्हें पता ही नहीं कि जम्हूरियत क्या है
उन्हीं के सर पे जम्हूरियत का ताज क्यूं है !!
जो गलत करते हैं,मिलेगा उन्हें इसका अंजाम
तुझे क्यूं कोफ्त है"गाफिल",तुझे ऐसी खाज क्यूं है !!
जिंदगी-भर जिसके शोर से सराबोर थी दुनिया
आज वो "गाफिल" इतना बेआवाज़ क्यूं है !!
सब कहते थे तुम जिंदादिल बहुत हो "गाफिल"
जिस्म के मरते ही इक सिमटी हुई लाश क्यूं है !!
उफ़!वही-वही चीज़ों से बोर हो गया हूँ मैं "गाफिल"
कल तक थी जिंदगी,थी,मगर अब आज क्यूं है ??
आप सबका बहुत-बहुत-बहुत आभार....आप सबका "भूतनाथ"
http://baatpuraanihai.blogspot.com/

प्यार इश्क और यह मोहब्बत ...PART-3 EXCLUSIVE

अब आगे क्या लिखूं ,क्या सच लिखूं ,बस यही सोच रहा हूँ ,मेरी आँखों के सामने मेरी कहानी सुपरहिट हो रही है ,कम से कम मेरे ऑफिस में तो है ही ..........हर कोई सवाल यहीं पूछ रहा है की यह रोहन आखिर कौन है ???मेरी आँखों के सामने कई लोगो ने उसे कमीना कहां ...गालिया तो और भी थी ,जिन्हें में बयान नहीं कर सकता ..आपको पता ही कहानी का एक जबरदस्त पात्र लोक ने मुझसे कहा है की ऐसा लिखना की लड़की बस खिची चली आ जाए ,दरसल वो लड़किबाज़ है अब ब्लॉग में ऐसा क्या लिखूं की लडकियां अपने आप पट जाए ....खैर कहानी को आगे बढाता हूँ ,दीप्ती ने कल ब्लॉग पडा ,शायद कुछ बोलना चाहती थी ,लेकिन जुबान और शब्द उसका साथ नहीं दे पा रहे थे ,मेरे से आखिरकार उसे कहना है पड़ा कि तू मुझे इतनी अच्छी तरीके से जानता है कब से ....और बोला क्यों नहीं .. मैं वहाँ से चला आया ,ऑफिस में नए लोग आये है हर बार कि तरह लोक को एक और लड़की पसंद आ गई है ,सोनिया {भूत पूर्व प्रेमिका }जो कभी बन ना पाई } को बोला है कि यार उसके सामने मेरी थोडी सी बात बना दे ...थोडी तारीफ़ कर दे plz ... ऑफिस कि जबरदस्त लड़की उसकी प्रेमिका नहीं बन पाई जी हाँ भाई उसने एक लड़की को प्रपोज़ किया ,लड़की ने अटका कर रखा था ,लोक को लगा कि थोडा वक्त लगेगा और जल्द वो उसके पास दौडती हुए हां जायेगी ,लेकिन यह क्या एक हफ्ते से ज्यादा बीत गया ,वो तो ना दौडी और ना ही उसके पास आई ,लोक हार गया क्योंकि एक रोज़ उसका फोन आया और जवाब मना हो गया ,,,जनाब आज भी फोन पर बातें करतें है,उसी लड़की से ,उनकों लगता है कि वो ऐसा करने से पट जायेगी ,लेकिन ऐसा नहीं होने वाला है ,दरअसल यह एक तीने वाला सवाल है लोक अपनी जिंदगी में सबसे बुरी तरह से हारा है ,वही वो अब नए लोगों पर हाथ आजमा रहा है ,लेकिन मुझे मालुम है कि लोक के लिए उसके घरवालों ने एक लड़की देख ली है ,अरे हां भाई लोक के लिए ,शादी भी होने वाली है जल्द ,आप सब को आना है ,यह जल्द ही आप को वो कहता हुआ दिखेगा ,वही दुसरी तरफ कहानी का लेखक यानी मैं किस मझदार में हूँ मैं नहीं जानता ,मेरी जिंदगी में फिर से कोई शामिल हुआ है ...एक दोस्त की तरह ....पता नहीं जिंदगी में कब शामिल हो गई मैं नहीं जानता ....मैंने अपनी जिंदगी के कई सच मैंने ऊनको बता दिए ,,,,मैंने क्यों बताए मैं नहीं जानता ??लेकिन सच में मैं उनको एक बेहतर दोस्त मानता हूँ या फिर अब मानने लगा हूँ ,यह मेरा आकर्षण तो नहीं ,,,,,बस इसी का एक डर लगातार बना रहता है ,लेकिन कुछ सोच के दिल को दिलासा देता रहता हूँ और फिर शांत हो जाता हूँ ,,आप क्या सोच रहे है कि मैं ऐसा क्या सोचता हूँ ,सुनना चाहेंगे क्या ,,,बस यहीं सोचता हूँ कि मेरी तो गर्ल फ्रेंड है ,,,,मैं नहीं जानता कि यह सब कुछ क्या चल रहा है ,लेकिन मैं कुछ गलत नहीं कर रहा ,आज उससे मिलने जा रहा हूँ ,हम फिर कहीं सपनो को निर्माण करेंगे उनको अपने हाथों से संजो कर घर वापिस रख देंगे ,अगले शनिवार के लिए ....मैं अपनी नई दोस्त के बारे में बात दूँ नाम महक ...{काल्पनिक नाम } हम कब दोस्त बने मैं नहीं जानता .,..बस इतना याद है कि उन्होंने कहा था कि मैं तुम लोगो को गोद ले लूंगी ,और मैंने कहा था कि फायदा किसका होगा और उन्होंने झट से कहा था कि इसमें कोई शक नहीं फायदा तुम्हारा ही होगा और हम एक दम मुस्कराने लगे थे .....उनको नहीं मालुम हम हसें क्यों थे ,बस वही मुलाक़ात और हम सब दोस्त बन गए ,सादगी मुझे हमेशा से बेहतर लगती है ,और वो जो है वो मेरे लिए एक नए दोस्त कि जगह भरता भी है ,सोनिया हमारी दोस्ती में दिलचस्पी दिखाने लगी है उसने मेरे से पूछा भी है कि तू उनके सामने चुप क्यों रहता हूँ ??? दरअसल उसको कोई शक हुआ है जो वो बोल नहीं पा रही.....मैं नहीं बोल पाया ,मैं उसको जवाब भी नहीं दे पाया ,मैं क्यों नहीं दे पाया ,यह सवाल मेरे अन्दर आज भी कौंध रहा है रोहन और सोनिया आज भी दोस्त है ,दोस्ती का एक नया रूप मेरे सामने मौजूद है ,मैं चाहने पर भी उसको यह दिलासा नहीं दे पा रहा की जो मैंने लिखा है की वो सच है ,वो मेरे से बार बार यहीं पूछ रही है की जो मैंने कहा है वो सच है ,मैं उसे दिलासा क्यों दूँ ? आखिर दोस्तों के बीच मेरा इन सवालों का क्या काम है ,रोहन अपने भरोसे में लेने की पूरी कोशिश कर रहा है वो कामयाब भी हो गया है आखिर लडकियां और वो भी माध्यम वर्ग की सोच तो भरोसे में आज सोनिया फिर से है ,मैं अब नहीं चाहता की मैं सोनिया को और समझाऊ ,वही दूसरी तरफ लोक ने एक लड़की पटा ली है ,अरे मन ही मन में एक नई इन्टर्न आई है ,जनाब का दिल फिर से फिसल गया है ,भाई साहाब को शायद नहीं मालुम की मंगल सूत्र के साथ उनका समझौता होने वाला है ,खैर जिस लड़की ने उन्हें मन किया था वो बहुत तेज़ है ,वो उनको अब फोन करती है देर तक बातें भी करती है ,दोस्त क्या होते है वो उस वक्त भूल जाते है ,लेकिन कहानी की टी आर पी तो लोक के कारण ही है ,अरे मैं तो आपको बताना ही भूल गया -कहानी का कौन सा पात्र कहां है ,ऑफिस में उस पर चर्चाये होती है ,लोग अब मुझसे पूछते है की प्लीज़ उनके नाम बता दो ,मैं लेखक हूँ ,मैं शुद्ध कदापि नहीं हूँ ,मेरे अन्दर भी मिलावट होने लगी है ,मैं नहीं जानता यह क्या हो रहा है मुझे ??? मैं तो किसी और के लिए यहाँ आया था ,यह भटकाव केसा ?? हम राजस्थान जा रहे है ,वो बहुत खुश है ,उसके बाबू की यह पहली सैलरी है ,उसकी आँखों में यह ख़ुशी पहली बार देखी है ,मुझे कोई लालच नहीं ,मुझे पैसों से प्यार नहीं है ,मैं आपको ऐसा इसलिए बता रहाहूँ क्योंकि बनियों को नोटों से बहुत प्यार होता है ,राजस्थान में हमारा मंदिर है ,वहीँ हम घूमेंगे ,मैं नहीं जानता की ख़ुशी क्या होती है बस उसके चेहरे पर जब यह चमक देखता हूँ तो लगता काश यह सब कुछ पहले ही होजाता..........महक शानदार व्यवहार की है ,वो दोस्त बहुत बनाती है यह किसी की शक्सियत का बखान कादापी नहीं है यह मैं अपने सामने एक नई कहानी का निर्माण कर रहा हूँ ,अब हम सॉरी .........मैं उनके साथ पसंद करता हूँ ,क्यों ....सच में नहीं जानता ,लेकिन इतना जानता हूँ की कोई तो बात है ...यह बेहतर भविष्य की दोस्ती का संकेत है ,या फिर यह दिलासा है ...जो कई दिनों से मैं अपने आप को दिला रहा हूँ ,आखिर लडकियां और वो भी माध्यम वर्ग की सोच तो भरोसे में आज सोनिया फिर से है ,मैं अब नहीं चाहता की मैं सोनिया को और समझाऊ ,वही दूसरी तरफ लोक ने एक लड़की पटा ली है ,अरे मन ही मन में एक नई इन्टर्न आई है ,जनाब का दिल फिर से फिसल गया है ,भाई साहाब को शायद नहीं मालुम की मंगल सूत्र के साथ उनका समझौता होने वाला है ,खैर जिस लड़की ने उन्हें मन किया था वो बहुत तेज़ है ,वो उनको अब फोन करती है देर तक बातें भी करती है ,दोस्त क्या होते है वो उस वक्त भूल जाते है ,लेकिन कहानी की टी आर पी तो लोक के कारण ही है ,अरे मैं तो आपको बताना ही भूल गया -कहानी का कौन सा पात्र कहां है ,ऑफिस में उस पर चर्चाये होती है ,लोग अब मुझसे पूछते है की प्लीज़ उनके नाम बता दो ,मैं लेखक हूँ ,मैं शुद्ध कदापि नहीं हूँ ,मेरे अन्दर भी मिलावट होने लगी है ,मैं नहीं जानता यह क्या हो रहा है मुझे ??? मैं तो किसी और के लिए यहाँ आया था ,यह भटकाव केसा ?? हम राजस्थान जा रहे है ,वो बहुत खुश है ,उसके बाबू की यह पहली सैलरी है ,उसकी आँखों में यह ख़ुशी पहली बार देखी है ,मुझे कोई लालच नहीं ,मुझे पैसों से प्यार नहीं है ,मैं आपको ऐसा इसलिए बता रहाहूँ क्योंकि बनियों को नोटों से बहुत प्यार होता है ,राजस्थान में हमारा मंदिर है ,वहीँ हम घूमेंगे ,मैं नहीं जानता की ख़ुशी क्या होती है बस उसके चेहरे पर जब यह चमक देखता हूँ तो लगता काश यह सब कुछ पहले ही होजाता..........महक शानदार व्यवहार की है ,वो दोस्त बहुत बनाती है यह किसी की शक्सियत का बखान कादापी नहीं है यह मैं अपने सामने एक नई कहानी का निर्माण कर रहा हूँ ,अब हम सॉरी .........मैं उनके साथ पसंद करता हूँ ,क्यों ....सच में नहीं जानता ,लेकिन इतना जानता हूँ की कोई तो बात है ...यह बेहतर भविष्य की दोस्ती का संकेत है ,या फिर यह दिलासा है ...जो कई दिनों से मैं अपने आप को दिला रहा हूँ ,उनको अपने भाई से बहुत प्यार है ,कहानी का नया चरित्र वो ही बता पाएंगी ,बस इतना जानता हूँ की उनको कभी प्यार नहीं हुआ .....क्या सोच रहे की मुझे केसे मालुम ..मैंने पूछा......आप अब मेरे चरित्र पर उंगलियाँ उठा सकते है ,मेरी खामोशी आपको कुछ सोचने पर मजबूर कर सकती है ,लेकिन मैं दोस्त बना चाहता हूँ ,बहुत अच्छा ,,,,क्योंकि एक वक्त मैंने अपने दोस्त को खोया है ,जिसके साथ मैं बातें कर सकूँ ,अरे हां उनको भी बहुत जल्दी रोना आता है मेरी तरह ,आज तक मैंने अपने बारे में किसी को पूरा नहीं बताया लेकिन मैं अचानक उनको यह सब कुछ केसे बता दिया ,यह मैं नहीं जानता.... कहानी का लोक यहाँ पर भी आ गया है नए कलेवर के साथ ..भाई साहब के पास sms का जबरदस्त कलेक्शन है ,वो नेट से बैठ कर कॉपी करते है ,लोक अब महक को sms करता है उनको अपने भाई से बहुत प्यार है ,कहानी का नया चरित्र वो ही बता पाएंगी ,बस इतना जानता हूँ की उनको कभी प्यार नहीं हुआ .....क्या सोच रहे की मुझे केसे मालुम ..मैंने पूछा......आप अब मेरे चरित्र पर उंगलियाँ उठा सकते है ,मेरी खामोशी आपको कुछ सोचने पर मजबूर कर सकती है ,लेकिन मैं दोस्त बना चाहता हूँ ,बहुत अच्छा ,,,,क्योंकि एक वक्त मैंने अपने दोस्त को खोया है ,जिसके साथ मैं बातें कर सकूँ ,अरे हां उनको भी बहुत जल्दी रोना आता है मेरी तरह ,आज तक मैंने अपने बारे में किसी को पूरा नहीं बताया लेकिन मैं अचानक उनको यह सब कुछ केसे बता दिया ,यह मैं नहीं जानता.... कहानी का लोक यहाँ पर भी आ गया है नए कलेवर के साथ ..भाई साहब के पास sms का जबरदस्त कलेक्शन है ,वो नेट से बैठ कर कॉपी करते है ,लोक अब महक को sms करता है उनको अपने भाई से बहुत प्यार है ,कहानी का नया चरित्र वो ही बता पाएंगी ,बस इतना जानता हूँ की उनको कभी प्यार नहीं हुआ .....क्या सोच रहे की मुझे केसे मालुम ..मैंने पूछा......आप अब मेरे चरित्र पर उंगलियाँ उठा सकते है ,मेरी खामोशी आपको कुछ सोचने पर मजबूर कर सकती है ,लेकिन मैं दोस्त बना चाहता हूँ ,बहुत अच्छा मेरे सामने वो शायद वहाँ भी शुरू हो गया है ,उनको वो मेसेज करता है ,वो भी शेंटी सा ,,और एक दिन .............लोक ने उस कहा ,,,मुझे प्यार हो गया है यानी लोक को एक बार फिर हो गया है ................पता है किससे ???? महक से ......सच में """"जिस दिन से चला हूँ, मेरी मंज़िल पे नज़र है, आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा... !!ये फूल मुझे कोई विरासत में नहीं मिले हैं, तुमने मेरा काँटों भरा बिस्तर नहीं देखा... !!..बेवक्त अगर जाऊँगा सब चोंक पड़ेंगे, एक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा... !!..पत्थर कहता है मेरा चाहने वाला, शायद उसने मुझे कभी छूकर नहीं देखा... !!.. TO BE CONITINUE













30.5.09

लोकसंघर्ष !: का बताई की मामा केतनी पीर है...... ।


हाल हमरो न पूछौ बड़ी पीर है।
का बताई के मनमा केतनी पीर है।
बिन खेवैया के नैया भंवर मा फंसी-
न यहै तीर है न वैह तीर है।

हमरे मन माँ वसे जैसे दीया की लौ
दूरी यतनी गए जइसे रतिया से पौ,
सुधि के सागर माँ मन हे यूं गहिरे पैठ
इक लहर जौ उठी नैन माँ नीर है -
का बताई की मामा केतनी पीर है...... ।

सूखि फागुन गवा हो लाली गई,
आखिया सावन के बदरा सी बरसा करे ,
राह देखा करी निंदिया वैरन भई -
रतिया बीते नही जस कठिन चीर है।
का बताई की मामा केतनी पीर है...... ।

कान सुनिवे का गुन अखिया दर्शन चहै,
साँसे है आखिरी मौन मिलिवे कहै,
तुम्हरे कारन विसरि सारी दुनिया गई-
ऐसे अब्नाओ जस की दया नीर है।
का बताई की मामा केतनी पीर है......

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही '

'छद्म' पूँजीवाद बनाम वास्तविक पूँजी-4

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युद्धोत्तर - काल में आर्थिक चक्र की विशेषताएं -

इस प्रकार पूंजीवादी अर्थव्यवस्था और स्वयं दो विरोधी अंतर्विरोधी ध्रुवो में ध्रुवीकृत हो जाती है । उत्पादन से ही जनित वित्त पूँजी अब उत्पादन से जितनी दूर हो जाने की कोशिश करती है । पश्चिमी देशो के बड़े पूँजीवाद और नव-साम्राज्यवाद में एक नई विशेषता पैदा हो जाती है। वह वित्तीय और शेयर बाजार से ही अधिकाधिक मुनाफा कमाने का प्रयत्न करता है । फलस्वरूप ओद्योगिक एवं उत्पादक क्षेत्र की अधिकाधिक उपेक्षा होती जाती है।

यहाँ आज की विश्व अर्थव्यवस्था की कुछ खासियतो पर ध्यान देना आवश्यक हो जाता है । तभी हम वर्तमान आर्थिक मंदी की भी ठीक से व्याख्या कर पायेंगे। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद की जो सबसे महत्वपूर्ण घटना है वह है वैज्ञानिक और तकनीकी क्रांति ( संक्षेप में अंग्रेजी अक्षरो से बना एस.टी.आर ) इस क्रांति और इसके तहत हुई संचार क्रांति ने विश्व बजार को एक दूसरे से जोड़कर स्थान और काल का अन्तर समाप्त कर दिया। इलेक्ट्रोनिक्स और कम्प्यूटर पर आधारित इस क्रांति ने नई उत्पादक शक्तियों को जन्म दिया। नई इलेक्ट्रोनिक मशीनों और उपकरणों की उत्पादकता पहले से कई गुना अधिक थी। उद्योगों ,बैंकिग ,वित्तीय संस्थाओ ,कार्यालयों इत्यादि के कार्य-कलापों की गति में असाधारण तेजी आ गई । दूसरे शब्दों में धन ,मुद्रा और पूँजी का उत्पादन कई गुना बढ़ गया तथा अत्यन्त द्रुत गति से होने लगा।

वित्तीय हितों ने इन घटनाओ का प्रयोग अपने हितों में किया । हालाँकि अन्य प्रकार की गतिविधियाँ बढ़ी लेकिन वित्तीय पूँजी और एकाधिकार कारोबार में असाधारण तेजी आई । साथ ही यह भी नही भूला जाना चाहिए की छोटे और मंझोले कारोबार में भारी तेजी आई । इजारेदारी और वित्त के विकास पर एकतरफा जोर नही दिया जाना चाहिए।

एक अन्य घटना थी बाजार और मुद्रा वस्तु विनिमय प्रथा मुद्रा-मुद्रा विनिमय में असाधारण तेजी । पहले नोटो,मुद्राओ ,सोना,इत्यादि से लेन-देन हुआ करता था। आज भी होता है। लेकिन आज की तकनीकी क्रांति के युग में मुद्रा के नए इलेक्ट्रोनिक्स स्वरूप विकसित हो रहे है। इलेक्ट्रोनिक्स मुद्रा,स्मार्ट कार्ड ,ए .टी .ऍम कार्ड ,कम्पयूटरों एवं मोबाइल के जरिये लेन-देन ,इ-मेल तथा इन्टरनेट का बड़े पैमाने पर प्रयोग इन नए मौद्रिक उपकरणों ने धातु और कागज की मुद्रा की भूमिका लगभग समाप्त कर दी है। अब अधिकाधिक लेन इलेक्ट्रोनिक संकेतो से होता है।

इससे जहाँ छोटे उद्धम को फायदा हुआ है वहीं वित्त पूँजी ने अपना प्रभुत्व जमाने के लिए इसका भरपूर फायदा उठाया है। इलेक्ट्रोनिक्स संकेत प्रणाली से स्टॉक बाजारों और वित्त पूँजी का स्वरूप बदल गया है। एक तरह से इलेक्ट्रोनिक्स पूँजीवाद का जन्म हुआ है जिसमें व्यक्तिगत और छोटे उध्योद्ग से लेकर विशालकाय बहुद्देशीय कंपनिया और वित्तीय संस्थाएं कार्यशील है।

इसका फायदा वित्त पूँजी ने मुद्रा से मुद्रा और पूँजी से पूँजी कमाने के लिए किया है। इसमें आरम्भ में तो उसे असाधारण सफलता उसकी असफलता और धराशाई होने का कारण बना।

पिछले 25 -30 वर्षो में इतना बड़ा विश्व्यापी बाजार निर्मित हुआ है जितना की इतिहास में कभी नही हुआ था। पिछले बीस वर्षो में वास्तु -उत्पादन ,लेन-देन तथा मुद्रा की मात्र एवं आवाजाही में,यानी बाजार की गतिविधि में चार से पाँच गुना वृद्धि हुई है।

फलस्वरूप बाजार से मुनाफा कमाने 'धन बनाने' की रुझान में अभूतपूर्व वृधि हुई है ।

-अनिल राजिमवाले
मो.नं.-09868525812

लोकसंघर्ष पत्रिका के जून अंक में प्रकाशित होगा

राहुल गाँधी है सुप्रीम पावर

कौरवों-पांडवों का महाभारत समाप्त हो चुका था। विजयी पांडवों में अब यह बात घर कर गई कि वे सबसे अधिक बलवान हैं। उन्होंने ना जाने कितने ही रथी,महारथी,वीर,महावीर,बड़े बड़े लड़ाकों को मृत्यु की शैया पर सुला दिया। मगर फैसला कौन करे कि जो हैं उनमे से श्रेष्ठ कौन है। सब लोग श्रीकृष्ण के पास गए। उन्होंने कहा, मैं भी मैदान में था, इसलिए किसी और से पूछना पड़ेगा। वे बर्बरीक के पास गए। जिन्होंने पेड़ से समस्त महाभारत देखा था। श्रीकृष्ण बोले, बर्बरीक बताओ क्या हुआ, किसने किस को मारा। बर्बरीक कहने लगा,मैंने तो पूरे महाभारत में केवल श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र ही देखा जो सब को मार रहा था। मुझे तो श्रीकृष्ण के अलावा किसी की माया, शक्ति,वीरता नजर नही आई। बर्बरीक का भाव ये कि जो कुछ महाभारत में हुआ वह श्रीकृष्ण ने ही किया। हाँ नाम अवश्य दूसरों का हुआ।चलो अब हिंदुस्तान की बात करें। मनमोहन सिंह की सरकार बन गई। मंत्रियों को उनके विभाग दे दिए गए। लेकिन समझदार मीडिया बार बार यह प्रश्न कर रहा है कि राहुल गाँधी मंत्री क्यों नहीं बने? राहुल मंत्री कब बनेगें? अब कोई इनसे पूछने वाला हो कि भाई जो ख़ुद सरकार का मालिक है उसको छोटे मोटे मंत्रालय में बैठाने या बैठने से क्या होगा?जो समुद्र में कहीं भी जाने आने, किसी भी जलचर को कुछ कहने का अधिकार रखता है उसको पूछ रहें हैं कि भाई तुम तालाब में क्यों नहीं जाते? क्या आज के समय प्रधानमंत्री तक राहुल गाँधी को किसी बात के लिए ना कह सकते हैं? और राहुल गाँधी ने जिसके लिए ना कह दिया उसको हाँ में बदल सकते हैं? बेशक राहुल गाँधी किसी को कुछ ना कहें, मगर ये ख़ुद सोनिया गाँधी भी जानती हैं कि किसी में इतनी हिम्मत नहीं जो राहुल गाँधी को इग्नोर कर सके। आज हर नेता राहुल गाँधी का सानिध्य पाने को आतुर है ताकि उसका रुतबा बढे। एक टीवी चैनल पर पट्टी चल रही थी। " शीश राम ओला राहुल गाँधी से मिले। ओला ने राहुल के कान में कुछ कहा। " श्री ओला राजथान के जाट समुदाय से हैं। उनकी उम्र राहुल गाँधी की उम्र से दोगुनी से भी अधिक है। जब ऐसा हो रहा हो तब राहुल गाँधी को किसी एक महकमे के चक्कर में पड़ने की क्या जरुरत है। हिंदुस्तान की समस्त धरती, आकाश उनका है। वे किसी झोंपडी में सोयें या महल में क्या अन्तर पड़ता है। ये तो जस्ट फॉर चेंज। मनमोहन सिंह सरकार के प्रधान मंत्री हैं, कोई शक नही। सोनिया गाँधी कांग्रेस की अध्यक्ष और यू पी ऐ की चेयरपर्सन हैं। मगर इस सबसे आगे राहुल गाँधी सीईओ हैं। आज के ज़माने में सीईओ से महत्व पूर्ण कोई नहीं होता। इसलिए राहुल गाँधी मंत्री बनकर पंगा क्यों लेने लगे। भाई सारा जहाँ हमारा है। समझे कि नहीं।

29.5.09

मार्तंड से शुरू होकर पैसे लेकर खबरें छापने तक हिंदी पत्रकारिता

तीस मई। हिंदी पत्रकारिता के इतिहास के १८३ साल। कोलकाता से पहला हिंदी पत्र उदंत मार्तण्ड ३० मई 1826 में शुरू हुआ। इससे बहुत पहले वर्ष 1780 में यहीं से जेम्स आगस्टस हिक्की ने बंगाल गजट या कलकत्ता जनरल एडवरटाइजर शुरू कर अंग्रेजी पत्रकारिता की शुरुआत कर दी थी। मगर उदंत मार्तण्ड को हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत का मानक मानें तो इन 183 वर्षों में हिंदी पत्रकारिता में बड़े आमूल चूल परिवर्तन आए हैं। अभी हाल में हुए १५वीं लोकसभा चुनावों में खबरों के पैकेज तक के इतिहास को लें तो आजादी की लड़ाई और सामाजिक सरोकार के दौर से निकली हिंदी पत्रकारिता ( हम यहां सिर्फ हिंदी पत्रकारिता की ही बात कर रहे हैं। वैसे अंग्रेजी समेत सभी भाषाई पत्रकारिता भी अब अपने कमाऊ दौर में ही हैं और अपने सामाजिक सरोकार के मानदंड से काफी नीचे चले गए हैं।) अब पैसे लेकर खबरें छापने की बेशर्मी के दौर में पहुंच गई है। तकनीकी प्रगति ने हिंदी पत्रकारिता को वैश्विक तो बना दिया है मगर जगदीश चंद्र माथुर, प्रभाष जोशी या फिर एसपी सिंह जैसे सिद्धांतवादी और मूल्यों की हिंदी पत्रकारिता करने वालों के युग का भी अवसान कर दिया है। अब अंग्रेजी समेत हिंदी में पैसे लेकर खबरें छापने को व्यावसायिकक तौर पर उचित मानने वाले कमान संभाले हुए हैं।
प्रिंट मीडिया के इस पतन के बावजूद कुछ संपादकों यथा प्रभात खबर के संपादक हरिवंश जैसे हिंदी के संपादक भी हैं, जो बाकायदा सूचना छापकर खबरें छापने के बदले पैसा लेने से बचने की अपने पत्रकारों को चेतावनी दी। हालांकि इससे इस नैतिक पतन को कितना रोका जा सकेगा, यह कहा नहीं जा सकता। मगर बाकी अखबारों ने तो यह नैतिक साहस नहीं दिखाया। इस मामले में प्रिंट मीडिया की समानान्तर मीडिया बन चुके हिंदी ब्लाग अभी कुछ हद तक बचे हुए हैं। कुछ समूह ब्लाग यथा- भड़ास वगैरह तो अनैतिक हो रही हिंदी पत्रकारिता को यदा-कदा बेपर्दा भी करते रहते हैं। ऐसे ब्लागों की लंबी सूची है जो बेबाक टिप्पणी करके मानदंड कायम रखने की कोशिश कर रहे हैं। विभिन्न विचारधाराओं की हिंदी ई-पत्रिकाएं भी अब वैश्विक सीमाएं लांघ चुकी हैं। प्रिट मीडिया में संपादकों की निजी दादागीरी से जो जो छप नहीं सकता वह धड़ल्ले से ब्लागों व ईपत्रिकाओं में छप रहा है। यह विचारों की अभिव्यक्ति का यह अद्भुत विस्तार और प्रिंट मीडिया को चुनौती भी है।
यही कारण है कि आज अंग्रेजी पत्रकारिता के बरक्स हिंदी पत्रकारिता के कद और ताकत में व्यापक बढ़ोतरी हुई। कागज से शुरू हुई पत्रकारिता अब कन्वर्जेंस के युग में पहुंच गई है। कन्वर्जेंस के कारण आज खबर मोबाइल, रेडियो, इंटरनेट और टीवी पर कई रूपों में उपलब्ध है। सूचना प्रौद्यागिकी के इस युग में हिंदी पत्र डिजिटल रूपों में उपलब्ध है। पंडित युगल किशोर शुक्ल द्वारा शुरू किए गए उदंत मार्तण्ड के परिप्रेक्ष्य में बात करें तो उस समय पत्रकारिता का उद्देश्य समाज सुधार, समाज में स्त्रियों की स्थिति में सुधार और रूढि़यों का उन्मूलन था। उस समय पत्रकारिता के सामाजिक सरोकार शीर्ष पर थे और व्यावसायिक प्रतिबद्धताएं इनमें बाधक नहीं थीं। युगल किशोर शुक्ल का उदंत मार्तण्ड 79 अंक निकलने पर चार दिसंबर 1827 को बंद हो गया। हालांकि उसके बाद हिंदी में बहुत सारे पत्र निकले। राजा राम मोहनराय ने हिंदी सहित तीन भाषाओं में 1829 में बंगदूत नामक पत्र शुरू किया।
मौजूदा दौर में हिंदी के अखबारों पर प्रासंगिक और तेज बने रहने के साथ व्यावसायिकता का भारी दबाव है। ई पेपर तेज बने रहने की दिशा में एक अग्रगामी कदम है। यह अवसर भौगोलिक सीमाओं को पार करने और व्यावसायिक अवसरों के दोहन को लेकर है। इन सबके कारण हिंदी पत्रकारिता में मानवोचित मूल्यों को स्थान देने में पूर्व की अपेक्षा कमी आई है। 1950 से 55 के दशक तक जिस हिंदी पत्रकारिता को बाजार की सफलता के मानकों पर खरा नहीं माना जाता था, उसके प्रति विचारधारा परिवर्तित हुई है।
अस्सी के दशक के बाद से स्थिति यह हो गई कि अंग्रेजी से लेकर बड़ा से बड़ा भाषाई समूह हिंदी में अखबार शुरू करने में रुचि दिखाने लगा। हालांकि विकास के बड़े अवसर हैं, लेकिन हिंदी पत्रकारिता के समक्ष चुनौतियां भी कम नहीं हैं। हिंदी पत्रकारिता का इंटरनेट के क्षेत्र में जाने का मकसद अपने प्रभाव क्षेत्र में बढ़ोतरी करना होता है। मीडिया हाउस पर अब खबरों के व्यापार का एकाधिकार नहीं रह गया है। गूगल और याहू जैसी कई कंपनियां भी खबरों के प्रसार के प्रमुख स्रोत के रूप में काम कर रही हैं। प्रिंट मीडिया प्रसार संख्या पर आधारित है, ई पेपर भी अब इसमें शामिल किया जाने लगा है।
हिंदी पत्रकारिता ने एक समय अपना भाषाई समाज रचने में बहुत बड़ा योगदान दिया। दिनमान और धर्मयुग जैसे पत्रों ने हिंदी पाठक को उन विषयों पर सोचने और समझने का अवसर दिया, जिन पर केवल अंग्रेजी का एकाधिकार माना जाता था। अंग्रेजी में श्रेष्ठत्व के नाम पर दावा करने की कोई चीज नहीं है। हिंदी उस बराबरी पर पहुंच गई है। हालांकि परंपरा में अंग्रेजी पत्रकारिता हिंदी से आगे है लेकिन सच यह भी है कि हिंदी पत्रकारिता ने भी लंबी दूरी तय की है।
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मुक्केबाज़ राहुल गांधी

राहुल गांधी ने चुनाव के पहले 2 महीने तक द्रोणाचार्य पुरूस्कार विजेता मुक्केबाजी कोच श्री ओम प्रकाश भरद्वाज से मुक्केबाजी का विधिवत प्रशिक्षण लिया था अपने आप को चुस्त दुरूस्त रखने के लिए और आत्मरक्षा की कला सीखने के लिए ।

– हें ! जे बात थी । तभी मैं सोचूं कि हम जैसे खुर्राट अखाड़ेबाजों को कोई कैसे दिन में तारे दिखा सकता है । जाय छोरो ने तो मोको एकइ पंच में धूल चटाये दियो । – मुलायम सिंह यादव ।

साइंस का चमत्कार, सिर्फ सोचिए और आपका काम हो जाएगा

विनय बिहारी सिंह

आस्ट्रियन मेडिकल इंजीनियरिंग कंपनी जी.टेक ने - ब्रेन कंप्यूटर इंटरफेस (बीसीआई) टेक्नालाजी विकसित कर ली है। आप पूछेंगे यह होता क्या है? आइए जानें- वह कंप्यूटर जो आपके सोचने भर से ही आपके घर की बत्ती जला देगा, टीवी आन कर देगा, नल खोल देगा और इसी तरह के हजार काम कर देगा। यह कैसे संभव है? दरअसल शुरू में आपकी खोपड़ी से सटा कर एक इलेक्ट्रोड फिट कर दिया जाता है। उसे इस कंप्यूटर से जोड़ दिया जाता है। जब यह इलेक्ट्रोड आपकी चिंतन पद्धति को समझ लेगा और इसे कंप्यूटर में फीड कर देगा तो उसका काम खत्म हो जाएगा। आपकी खोपड़ी से वह इलेक्ट्रोड हटा दिया जाएगा। बिना उसके भी आपका कंप्यूटर अब आपकी सोच पकड़ लेगा। मान लीजिए आपने सोचा कि आपके कमरे की बत्ती जले। बस, सोचते ही बत्ती जल जाएगी। इस कंप्यूटर में इलेक्ट्रोइंसेफेलोग्राम (ईईजी) उपकरण फिट होता है। वही आपकी सोच पकड़ कर कार्यान्वित करता है। यह उपकरण शारीरिक रूप से विकलांग लोगों के काम आएगा और वे अब अक्षम होने के दुख से उबर जाएंगे। उनका किसी पर निर्भरता खत्म हो जाएगी। इस तकनीक का प्रदर्शन, जी.टेक ने मार्च में ही हनोवर में कर दिया था। और सिर्फ विकलांगों के ही नहीं, अत्यंत बूढ़े लोगों के भी काम आएगा यह उपकरण। हमारे ऋषि- मुनियों ने पहले ही यह काम कर दिया था। आखिर ऋषि वशिष्ठ ने ही लव की शक्ल वाले कुश को बना ही दिया था। वह भी सोच कर ही। ऋषियों के ऐसे चमत्कारों से हमारे धर्म ग्रंथ भरे पड़े हैं। हनुमान जी ने सूर्य को फल समझ कर लील लिया। लेकिन इसके पहले उन्होंने सूर्य को खाने की सोचा और उनका काम हो गया। हालांकि जब वे बड़े हुए तो अष्ट सिद्धि और नौ निधियों के स्वामी हो गए। क्योंकि उन्हें जानकी माता यानी मां सीता ने वरदान दिया था।

वादा निभाना तो राहुल से सीखिए

नेताओं को हमेशा से वादा कर भूल जाने के लिए जाना जाता है। लेकिन राजनीति में अगर किसी को वादा निभाना सीखना है तो राहुल गांधी से बेहतर विकल्प उसके दूसरा नहीं हो सकता है। दरअसल, राहुल गांधी ने जिन लोकसभा इलाकों में मंत्री देने का वायदा किया था, वह उन्होंने मंत्रीमंडल के विस्तार में पूरा कर दिखाया। चाहे उत्तर प्रदेश से प्रदीप जैन, जितिन प्रसाद हों या फिर मध्यप्रदेश से अरुण यादव और राजस्थान से सचिन पायलट। उन्होंने जिनसे भी वायदा किया पूरा कर दिखाया। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी में दोबारा से जान फूंकने के लिए राहुल गांधी ने झांसी से आगाज किया था। बुंदेलखंड के हालातों से रूबरू हुए थे। उस दौरान जो उत्साह पार्टी कार्यकर्ताओं में आया, उसने राहुल गांधी को खुद एक ताकत दे दी। बस फिर क्या था, राहुल ने थाम ली उत्तर प्रदेश की कमान। उसी कमान का असर दिखाई दिया लोकसभा चुनावों के परिणामों में। जब ८० में से पार्टी २१ सीटें जीतने में कामयाब हुई। सबसे खास बात यह है कि लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान कुछ संसदीय क्षेत्रों में राहुल गांधी ने वायदा किया था कि अगर उनके उम्मीदवार को जिताया तो वह उसे मंत्री बनाकर क्षेत्र के विकास की जिम्मेदारी सौंपेंगे। कुछ सीटों पर न सही, लेकिन कुछ सीटों ने राहुल की इच्छा को पूरा किया और उनके उम्मीदवार को जिताकर भेज दिया। जीतने वालों में उत्तर प्रदेश से प्रदीप जैन और जतिन प्रसाद तो मध्यप्रदेश से अरुण यादव और राजस्थान से सचिन पायलट कद्दावर नेताओं को धूल चटाकर लोकसभा पहुंच गए। जीतने के बाद चारों को ही मंत्री बनने की कोई आस नहीं थी। यह लोग खुद सांसद बनकर खुश थे। लेकिन राहुल तो राहुल हैं तीनों को राज्यमंत्री बनाकर उन्होंने अपना वायदा पूरा कर दिया। इतना ही नहीं, उन्होंने उन लोगों को भी सीख दे जो वादा कर भूल जाते हैं। लेकिन अब यह जिम्मेदारी इन तीनों मंत्रियों पर भी है कि वह भी इस बात का ध्यान रखें कि वादा किया है तो निभाना पड़ेगा। आमीन ......................................

आनंदी के दुखों से ही भर आती हैं आंखें


टैलीविजन की बालिका वधू आनंदी यानी अविका गौड़ का कहना है किधारावाहिकमें आनंदी का किरदार निभाने के लिए उसे ग्लिसरिन लगाने की जरुरतनहीं पड़तीक्योंकि जब भी वह आनंदी के दुखों के बारे में सोचती है, उसकी आंखें वैसेही भरआती हैं।

10 साल की उम्र में टैलीविजन का लोकप्रिय चेहरा बन जाने वाली अविका नेएकइंटरव्यू में बताया, ‘मैं आसानी से रोने-धोने वाले सीन्स कर लेती हूं। मुझेइनकेलिए ग्लिसरिन की जरुरत भी नहीं पड़ती। आनंदी के बारे में सोचकर ही मेरीआंखोंमें आंसू जाते हैं। इसलिए यह मेरे लिए मुश्किल नहीं है।

पर्यावरण दिवस पर वरुणा नदी के संरक्षण के लिए जन प्रतिनिधियों से अपील

पर्यावरण दिवस पुनः आ गया। पर्यावरण संरक्षण , जल ,जंगल और जमीनको लेकर स्वच्छिक संघठन शोर करते रहे परन्तु इस जायज शोर का असर देश के भाग्य नियंताओं पर जरा सा भी नही पड़ा। वरना दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सबसे बड़ी पंचायत लोकसभा के चुनाव में किशी भी पार्टी या नेता के चुनाव एजेंडे में पर्यावरण के प्रति गंभीरता और नदियों के लिए कोई दर्द कही नही दिखा। इस सम्बन्ध में हमारी वरुणा ने अपने स्तरसे प्रयास कर के पार्टियों और नेताओ को आने वाले पर्यावरण संकट के सम्बन्ध में चेताने की भी कोशिस की पर किसे चिंता है नदी बचाने की?
बहरहाल हमारी वरुणा अभियान पुनः इन नेताओं को जल संकट का आइना दिखने का एक प्रयाश करने जा रहा है। हमारी वरुणा के सह संयोजक सूर्य भान सिंह ने आने वाले पर्यावरण दिवस को पुनः वाराणसी को पहचान देने वाली वरुणा के दर्द को सम्बंधित जन प्रतिनिधियों तक पहुचाने की ठानी है। उन्होंने बताया की हमारी वरुणा के संयोजक डाक्टर व्योमेश चित्रवंश और समिति के अध्यक्ष अजय श्रीवास्तव के नेतृत्व में कार्यकर्ताओ का एक प्रतिनिधि मंडल क्षेत्रीय सांसद गण डाकटर मुरली मनोहर जोशी, तूफानी सरोज, गोरख नाथ पाण्डेय ,राम किशुन , कपिलमुनि करवरिया , रेवती रमन सिंह एवं विधायको, जिला व क्षेत्र पंचायत प्रमुख गण के साथ मिल कर उन्हें वरुणा की दुर्दशा को बताते हुए वरुणा को बचानेके लिए अपील करेगी।
हमारी वरुणा पिछले कई वर्षो से वाराणसी नदी को पहचान देने वाली जीवन दायिनी प्राच्य नदी वरुणा को मृत्युगामिनी होने अचने के लिए प्रयास रत है। हमारी वरुणा के बारे में अधिक जानने के http://hamarivarunavaranasi.blogspot.comदेखें.

कब्रों की ज़ियारत किस लिये?

मुझ से यह सवाल हमारे एक भाई मे ई-मेल से पूछा था तो मै उस्का जवाब यहा दे रहा हू ।

सवाल :- कब्रों की ज़ियारत मज़ारों से वसीला लेना और (चढावे के तौर पर) वहां माल और दुंबे आदि ले जाने का क्या हुक्म है? जैसा कि लोग सय्यद अल-बदवी (सुडान में), हज़रत हुसैन बिन अली रज़ि ॒ (इराक में), और हज़रत जैनब रज़ि ॒ (मिस्र) कि कब्रों पर करते हैं । आप जवाब दें, अल्लाह आप के इल्म में बरकत दे । आमीन

जवाब :- कब्रों के ज़ियारत की दो किस्में हैं । पहली किस्म वह है जो कब्र वालों पर रहम व मेह्र्बानी करने, उनके लिये दुआ करने, मौत को याद रखने और आखिरत कि तय्यारी के लिये कि जाये । यह ज़ियारत जाइज़ है और ऐसी ज़ियारत की आवश्यक्ता भी हैं । क्यौंकि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहिंं वसल्लम का फ़र्मान है । आगे पढ़े...

धोनी का एक अंदाज़ ये भी

हमारी क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंग धोनी आजकल विज्ञापन की शूटिंग को लेकर खूब चर्चा में है।पहले एक एड फ़िल्म की शूटिंग के चक्कर में वो पदमश्री लेना भूल गए थे और अब बंगाली बाला बिपाशा के साथ उनके एक विज्ञापन की न्यूज़ चेनल्स पर खूब चर्चा हो रही है।

अब, जब धोनी की ये शूटिंग लगभग सारे चेनल्स पर छाई हुई है तो मैंने सोचा कि धोनी की एक और शूटिंग से आप लोगो को रूबरू करवाना चाहिए। आप को शायद ये जानकर हैरानी होगी कि धोनी जितने अच्छे खिलाड़ी है वे उतने ही अच्छे शूटर भी है। पहले धोनी का ये नया अंदाज़ देखिये फ़िर इसके बारे में कुछ और बातें करेंगे...


धोनी का निशाना

आमतौर पर धोनी के हाथो में या तो विकेट कीपिंग के दस्ताने होते है या फ़िर अपना बेट मगर इंदौर में भारतीय टीम के कप्तान अपने हाथ में बन्दूक लेकर निशाना साधते हुए नज़र आए। वे अपने साथ चल रहे बी.एस.एफ.के डिप्टी कमांडेंट अंजन भोला और मध्यप्रदेश राज्य पुलिस सेवा के अधिकारी सिद्धार्थ चौधरी से अलग अलग तरह की बंदूको की भी जानकारी ले रहे थे।

दरअसल पिछले साल नवम्बर में इंदौर में भारत और इंग्लेंड के बीच एक मैच था। मैच के लिए यहाँ आए धोनी को जब ये पता चला कि इंदौर में बी.एस.एफ.की एक बेहतरीन शूटिंग रेंज है तो वो अपने आप को रोक नही पाये और तुंरत रेंज में पहुच गए।

धोनी लगभग २ घंटे तक यहाँ रहे। यहाँ उन्होंने इनडोर और आउटडोर दोनों रेंज में निशाने साधे। धोनी ने खासतौर पर उस तरह की गन से निशानेबाजी की जिससे अभिनव बिंद्रा ने स्वर्ण पर निशाना लगाया था. उनके सटीक निशानों और सादगी भरे व्यवहार से बी.एस.एफ के अधिकारी भी हैरान थे। उनके मुताबिक धोनी एक अच्छे खिलाड़ी ही नही बल्कि एक उम्दा इंसान और बेहतर निशानेबाज़ भी है।





मुझे नही पता कि आप क्रिकेट देखना पसंद करते है या नही ? मुझे ये भी नही पता कि आप धोनी के फेन है या उनके आलोचक. लेकिन यदि आप धोनी के करीयर से वाकिफ है तो आप इस बात से सहमत होंगे कि इस बन्दे में ऐसा कुछ तो है जो उन्हें बाकि लोगो और खिलाडियों से अलग बनाता है और यदि आप इससे इत्तिफाक नही रखते तो आपका स्वागत है अपनी बात रखने के लिए

दलित खुद हैं दलित आंदोलन की राह में बाधा

दक्षिणी दिल्ली के सर्वोदय एंक्लेव स्थित एक तीन मंजिला भवन के तहखाने में देश के दलितों की हित चिंता का मिशन दिन-रात चलता रहता है। इसी भवन की पहली मंजिल पर दलितों के नेता उदितराज सपरिवार रहते भी हैं। आईआरएस की नौकरी छोड़ दलित हित की लड़ाई में कूदे उदितराज का मूल नाम रामराज था। उन्होंने हिंदुओं में व्याप्त जाति व्यवस्था से बगावत करते हुए वर्ष 2002 में न केवल नाम बदला, बल्कि धर्म भी बदल लिया। बाबा साहेब अंबेडकर को आदर्श मानने वाले अब बौद्ध धर्मावलंबी उदितराज यह अच्छी तरह जानते हैं कि राजनीतिक शक्ति के बिना किसी समाज का भला नहीं हो सकता, इसलिए उन्होंने इंडियन जस्टिस पार्टी बनाई। दलितों को आरक्षण दिए जाने की वह भरपूर वकालत करते हैं। डीडीए फ्लैट आवंटन में दलितों के कोटे में हुई भारी धांधली के खुलासे को लेकर वे चर्चा में रहे। बृजेश सिंह ने उदितराज से दलित समाज को लेकर उनके विचारों, सरोकारों तथा आगामी योजनाओं पर बातचीत की। पूरा साक्षात्कार शहरनामा में पढ़े।

12 की दुल्हन, 40 का दूल्हा


पीसांगन (अजमेर)। निकटवर्ती नागेलाव गांव में बारह साल की लडकी से ब्याह रचाने आया चालीस साल दूल्हा मंगलवार रात ग्रामीणों के रोष को देख मण्डप से भाग छूटा। बाद में मौके पर पहुंची पुलिस ने लडकी के परिजनों को नाबालिग विवाह नहीं करने के लिए पाबंद किया। पुलिसकर्मी रात भर लडकी के घर के बाहर डेरा डाले रहे।

जानकारी के अनुसार नागेलाव निवासी रतनलाल सरगरा की करीब एक माह पूर्व मृत्यु हो गई थी। उसकीदो बेटियां बारह साल की संजू, छह वर्षीया सोनू तथा दस व पांच साल के दो बेटे हैं। रतनलाल के बडे भाई बिजयनगर निवासी हीरालाल ने गंगाप्रसादी का आयोजन कर सोनू का विवाह सोमवार को गढी मालियान (अजमेर) निवासी नौरतमल के किशोरवय पुत्र कालूराम से कर दिया।

जबकि गढी मालियान का ही चालीस वर्षीय मंगलचन्द मंगलवार शाम बडी लडकी संजू को ब्याहने बारात लेकर नागेलाव पहुंचा। बारात राजकीय नवीन स्कूल में ठहराई गई, जहां लडकी से तीन गुना ज्यादा उम्र कादूल्हा देखकर ग्रामीण भडक उठे। सैकडों की तादाद में गांव के लोग स्कूल व समारोह स्थल के आस-पास एकत्र हो गए तथा शादी रूकवाने के लिए दुल्हन संजू को गांव की हथाई पर ले आए।

उधर, वर पक्ष भी विवाह पर अड गया। माहौल बिगडता देख ग्रामीणों ने पुलिस को इत्तला की। पीसांगन थाना प्रभारी मय जाब्ता मौके पर पहुंचे, तब तक बारात पक्ष के लोगों ने दूल्हे मंगलचंद को कहीं भगा दिया। पुलिस ने संजू को कब्जे कर उसके परिजनों को पाबंद किया

पीछे छूट गए स्कूल

शिरीष खरे
उस्मानाबाद। हर साल हजारों मजदूर सीमावर्ती इलाकों में गन्ना काटने के लिए जाते हैं। नंवबर से जून के बीच बच्चे भी बड़ों के साथ पलायन करते हैं। यही समय स्कूल की पढ़ाई के लिए खास होता है। लेकिन इसी समय गांव के गांव खाली हो जाने से स्कूल भी खाली पड़ जाते हैं। ऐसे में चीनी पट्टी के नाम से मशहूर मराठवाड़ा के कई बच्चे आगे नहीं पढ़ पाते हैं।

चाईल्ड राईट्स एण्ड यू’ और ‘लोकहित सामाजिक विकास संस्था’ ने कलंब तहसील के 19 गांवों में सर्वे किया और पाया कि 6-14 साल के कुल 1,555 बच्चों में से 342 स्कूल नहीं जाते। इसमें 193 लड़कियां हैं। इसके अलावा ड्रापआउट बच्चों की संख्या 213 है। इसमें से भी 89 लड़कियां हैं। यहां एक साल में 19 बाल-विवाह के मामले भी उजागर हुए हैं। इन संस्थाओं ने 19 गांवों के बच्चों को पढ़ाई से जोड़ने की रुपरेखा तैयार की है। इससे एक छोटे से हिस्से में बदलाव की आशा बंधी है। लेकिन पलायन के इस संकट ने पूरे मराठवाड़ा को घेर रखा है।

‘लोकहित सामाजिक विकास संस्था’ के बजरंग टाटे ने बताया- ‘‘पलायन करने वाले मजदूरों में ज्यादातर दलित और बंजारा जनजाति से होते हैं। इनके पास रोजगार के स्थायी साधन नहीं होते। इसलिए जब यह लोग बाहर निकलते हैं तो पंचायत की कई योजनाओं से छूट जाते हैं। सबसे ज्यादा नुकसान तो स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों का होता है। खेतों में जाने वाले इन बच्चों का खूब शोषण होता है।’’

महादेव बस्ती की शिक्षिका प्रतिभा दीक्षित ने बताया कि- ‘‘परीक्षा की तारीख नजदीक आते-आते तो ज्यादातर आदिवासियों के घरों में ताले लटकने लगते हैं। इससे पूरे इलाके में शिक्षा का स्तर बहुत नीचे चला जाता है। बच्चों की अनुपस्थिति के कारण शिक्षकों को कोर्स पूरा करने में मुश्किल होती है। जंगली क्षेत्र के कम-से-कम 75 स्कूलों में तो बच्चों का अकाल पड़ जाता है। परीक्षा के दिन तक 100 में से कम-से-कम 40 बच्चे गायब हो जाते हैं।’’ मजदूरों के साथ यह बच्चे 200 से 700 किलोमीटर दूर याने नगर, पुणे, कोल्हापर और कर्नाटक के बिदर, आलूमटी तथा बेड़गांव के इलाकों तक जाते हैं। यह परिवार गन्ने के खेतों में ही अस्थायी बस्ती बनाकर रहते हैं। काम के मुताबिक यह अपने ठिकाने बदलते रहते हैं।

धाराशिव चीनी मिल, चैरारूवली’ के लिए गन्ना काटने वाले मजदूरों की एक बस्ती को देखने का मौका मिला। पन्नी, कपड़ा और लकड़ियों की मदद से कुल 12 घर खड़े हैं। सभी घर एक-दूसरे से अलग-थलग हैं। 13 साल की नीरा शिंदे ने बताया- ‘‘घर में एक ही कमरा है। इस कमरे में पैर पसारने भर की जगह है। धूप के दिनों में पन्नी के गर्म होने से बहुत गर्मी लगती है। यह घर हमें ठण्ड और पानी से भी नहीं बचा पाते। बरसात में तो पूरा खेत कीचड़ से भर जाता है।’’ 12 साल के रामदास गायकबाड़ ने बताया- ‘‘इस उबड़-खाबड खेत में न कोई गली है, न खेलने का मैदान। पीने का पानी भी हम 2 किलोमीटर दूर से लाते हैं। सभी खुले में नहाते हैं। रात को लाइट नहीं रहने से घुप्प अंधेरा छा जाता है। हम सुबह का इंतजार करते हैं।’’ चीनी मिलों से ट्रालियों का आना-जाना देर रात तक चलता रहता है। इस दौरान कई बच्चे गन्नों को बांधने और उन्हें ट्रालियों में भरने के कामों में शामिल हो जाते हैं।

14 साल की अंगुरी मेहतो ने कहा- ‘‘मुझे अपने 3 छोटे भाईयों को संभालने में बहुत मुश्किल होती है। कंधों पर रखे-रखे शरीर दुखने लगता है। सुबह से शाम तक घर के काम भी करती हूं।’’ यहां 6 से 14 साल के बच्चे-बच्चियां घरों में खाना बनाने और सफाई का काम करते हैं। ऐसी ही दूसरी बच्ची इशाका गोरे ने बताया कि- ‘‘मैं अभी तीसरी में । दूसरी में पहले नम्बर पर आई थी। यहां से जाने के बाद परीक्षा देना है। फिर चौथी बैठूंगी।’’ उसे नहीं मालूम कि अब स्कूल की परीक्षाएं खत्म हो चुकी हैं। उसका परिवार सागली जिले के कराठ गांव से आया है। इशाका के पिता याविक गोरे का मानना है कि- ‘‘यह पढ़े तो ठीक, नहीं तो 4-5 साल में शादी करनी ही है। फिर अपने पति के साथ जोड़ा बनाकर काम करेगी।’’ यहां ज्यादातर लोग अपने बच्चों की शादियां कम उम्र में ही कर देते हैं। इन्हें लगता है कि परिवार में जितने अधिक जोड़े रहेंगे, आमदनी उतनी ही अधिक होगी। ज्यादातर रिश्तेदारियां भी काम की जगहों पर हो जाती हैं। इस तरह बाल-विवाह की प्रथा यहां नए रुप में सामने आती है।

दूसरी बस्तियों में भी बच्चों से जुड़ी कई दिक्कते एक समान पायी गई, जैसे- 1) बढ़ते बच्चों को पर्याप्त और समय पर भोजन नहीं मिलता। इससे कुपोषण के मामलों में बढ़ोतरी होती है। 2) खेतों में बच्चे सबसे ज्यादा सर्दी के मौसम में बीमार होते हैं। 3) गन्ना काटते वक्त कोयना जैसे धारदार हथियार लगने, सांप काटने और बावड़ियों में गिरने की घटनाएं होती रहती हैं। 4) ऐसे खेतों से ‘प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र’ करीब 15-20 किलोमीटर दूर होते हैं। इसलिए इमरजेंसी के दौरान अनहोनी की आशंकाएं बढ़ जाती हैं।
‘शंभु महाराज चीनी मिल, हवरगांव’ के लिए गन्ना काटने वाली शोभायनी कस्बे ने बताया- ‘‘हमारे बच्चे हमारे साथ होकर भी दूर हैं। यह कभी चिड़चिड़ाते हैं, कभी चुपचाप हो जाते हैं। ऐसे माहौल में बच्चों का दिमाग बिगड़ जाता है। यह खेलने-पढ़ने के दिनों में भी बहुत काम करते हैं। इन्हें पढ़ाई का कोई तनाव नहीं है। यह तो भूख की मजबूरी से स्कूल नहीं जा पाते।’’

केन्द्र सरकार 2010 तक देश के सभी बच्चों को स्कूल ले जाना चाहती है। लेकिन 11वीं योजना में साफ तौर से कहा गया है कि 7 प्रतिशत बच्चों को स्कूल से जोड़ना मुश्किल हैं। यह बच्चे सामाजिक और आर्थिक कारणों से सरकार की पहुंच से दूर हैं। यूनेस्को ने भी ‘एजुकेशन फार आल मानिटिरिंग, 2007 की रिपोर्ट में कहा है कि भारत, पाकिस्तान और नाईजीरिया में दुनिया के 27 प्रतिशत बच्चे स्कूल नहीं जा पाते। दुनिया के 101 देशों की तरह भारत भी पूर्ण साक्षरता की दौड़ से बाहर है। यूनेस्को के मुताबिक भारत के 70 लाख बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं। दुनिया के 17 देशों की तरह भारत में प्राइमरी स्कूलों से लड़कियों का पलायन ज्यादा हो रहा है। आखिरी जनगणना के हिसाब से 49.46 करोड़ महिलाओं में से 22.96 करोड़ महिलाएं निरक्षर हैं। ‘चाईल्ड राईटस् एण्ड यू’ मानता है कि भारत में 5 से 9 साल की 53 प्रतिशत लड़कियां पढ़ नहीं पाती।

भारत-सरकार ने 600 में से 597 जिलों को पूर्ण साक्षरता अभियान का हिस्सा बनाया है। उसके पास कई योजनाएं भी हैं जैसे- घरों के पास स्कूल खोलना, स्कालरशिप देना, मिड-डे-मिल चलाना और ब्रिज कोर्स तैयार करना। बीते 3 सालों में प्राइमरी स्तर पर 2,000 से भी अधिक आवासीय स्कूल खोले गए। लड़कियों के लिए 31,000 आदर्श स्कूल भी बने। लेकिन मराठवाड़ा जैसे इलाकों से पलायन करने वाले बच्चे शिक्षा की मुख्यधारा से नहीं जुड़ सके।

पलायन, समाज की भीतरी परतों से जुड़ा है। विकास की असंतुलित रतार के कारण यह समस्या विकराल हो चुकी है। इसे रोजगार के स्थायी साधन और भूमि सुधार की नीतियों की मदद से रोकना होगा। जब तक इंसान की मूलभूत जरूरत पूरी नहीं होगी तब तक बच्चों के भविष्य पर संकट के बादल मडराते रहेंगे।

जनरल बोगी का नज़ारा....!

मैं आज सुबह लखनऊ - कानपूर से वापस आया हूँ, वहां काम के सिलसिले मे अक्सर जाना होता है । मैं मंगलवार की रात को आगरा से मथुरा - पटना एक्सप्रेस से चला था अचानक जाना पड़ा इसीलिए रिज़र्वेशन नही था तो जनरल बोगी मे सफर किया । जनरल बोगी की हालत बहुत ख़राब है उसमे बैठने के लिए ९० सीट होती हैं, ऊपर की तरफ़ एक बर्थ होती है जिस पर लोग सो जाते हैं या फिर अपना सामान रख लेते है जब भीड़ ज्यादा होती है तो वहां पर लोग बैठ जाते है, आमतौर पर लेटने की जगह नही मिलती है बैठकर ही जाना पड़ता है । परसों भीड़ कुछ कम थी इसलिए चार लोगो की एक सीट पर छह लोग बैठे थे, ऊपर की बर्थ पर तीन लोग बैठे थे, और बाकी जो बचे थे वो सब ज़मीन पर लेट गए । आगे पढे....

मुंबई की सुरक्षा में छेद

भारत को मनमोहनी सरकार फ़िर से मिल गयी। लेकिन देश को अब अंतर्राष्ट्रीय स्तरपर एक नयी दिशा व दशा तय करनी होगी। आतंक से जूझ रहे देश को सबसे पहले श्रीलंका से सबक लेकर आतंक की लहलहाती फसल को जड़ से काटना होगा। सबसे ज्यादा आतंक का घिनौनी खेल मुंबई ने देखा है । अगर मुंबई की बात की जाए तो मुंबई न केवल अंतर्राष्ट्रीय स्तर का बड़ा शहर है।बल्कि देश की आर्थिक राजधानी भी है। लेकिन कानून व्यवस्था के ढीलेपन की वजह से हालत बिल्कुल लावारिश मालुम पड़ती है। आतंक, बमबारी, अपराधी गिरोह सभी ने इसका सुख चैन छीन लिया है। सहसा ऐसी वारदात हो जाती है की लोग सिहर उठाते हैं। और भगवान भरोसे मुंबई रहती है। कानून के रखवाले कुम्भकरण की नींद में सो रहे हैं या फ़िर अपराधियों से मिलीभगत है ? कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है की मुंबई के अंतर्राष्ट्रीय विमानतल के कार्गो टर्मिनल से दिनदहाडे चार नकाबपोश लुटेरे १०० किलो सोना चांदीभरे बॉक्स लूट ले जायेंगे। ऐसा द्रश्य अगर किसी फ़िल्म में दिखाई देता तो शायद स्क्रिप्ट राईटर की कल्पना की उड़ान मान लेते। लेकिन वास्तव में जब ऐसी दुस्साहसिक लूट होती है तो वाकईअचम्भा होता है। एअरपोर्ट की सुरक्षा को भेदकर लुटेरे लूट कर चंपत हो गए.आतंक के साए की वजह से एअरपोर्ट में भारी चौकसी रहती है। और वहाँ जांच पड़ताल के चलते पंछीभी पर नहीं मार सकता है। ऐसे में सवाल यह उठता है की ये लुटेरे वहाँ तक कैसे पहुँच गए। उनसे कोई पूछताछ कैसे नहीं हुई। एअरपोर्ट हाई सिक्योरिटी ज़ोन में आता हैं। कोई बस अड्डा नहीं की टहलते टहलते चाहे जो कोई पहुँच जाए। जिस तरह से लूटेरोंने लूट को अंजाम दिया है उससे यही लगता है की किसी के आंखों से काजल चुराने वाली बात है। क्योंके एक सामान्य यात्री को कई सुरक्षा घेरों से निकला होता है। मुंबई में सुरक्षा के नाम पर पहले भी कई छेद देखे गए है। और इसकी कीमत मुम्बई करों को जान देकर चुकानी पड़ी। अभी आतंक के छर्रे खाया घायल ताज कराह रहा है। की एक बार फ़िर सुरक्षा व्यवस्था तार तार हो गयी। आख़िर मुंबई की सुरक्षा पर कब बंद होगा छेद,अमनचैन के लुटेरों को कब तक मिलेगी छूट , और कब सागर की अथाह गहराई नापने वाले मुंबई को मिलेगी चैन।

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हीरे और लोहे में अन्तर

एक संत की कथा में एक बालिका खड़ी हो गई। उसके चेहरे आक्रोश साफ दिखाई दे रहा था। उसके साथ आए उसके परिजनों ने उसको बिठाने की कोशिश की,लेकिन बालिका नहीं मानी। संत ने कहा, बोलो बालिका क्या बात है?। बालिका ने कहा,महाराज घर में लड़के को हर प्रकार की आजादी होती है। वह कुछ भी करे,कहीं भी जाए उस पर कोई खास टोका टाकी नहीं होती। इसके विपरीत लड़कियों को बात बात पर टोका जाता है। यह मत करो,यहाँ मत जाओ,घर जल्दी आ जाओ। आदि आदि। संत ने उसकी बात सुनी और मुस्कुराने लगे। उसके बाद उन्होंने कहा, बालिका तुमने कभी लोहे की दुकान के बहार पड़े लोहे के गार्डर देखे हैं? ये गार्डर सर्दी,गर्मी,बरसात,रात दिन इसी प्रकार पड़े रहतें हैं। इसके बावजूद इनकी कीमत पर कोई अन्तर नहीं पड़ता। लड़कों की फितरत कुछ इसी प्रकार की है समाज में। अब तुम चलो एक जोहरी की दुकान में। एक बड़ी तिजोरी,उसमे फ़िर छोटी तिजोरी। उसके अन्दर कोई छोटा सा चोर खाना। उसमे से छोटी सी डिब्बी निकालेगा। डिब्बी में रेशम बिछा होगा। उस पर होगा हीरा। क्योंकि वह जानता है कि अगर हीरे में जरा भी खरोंच आ गई तो उसकी कोई कीमत नहीं रहेगी। समाज में लड़कियों की अहमियत कुछ इसी प्रकार की है। हीरे की तरह। जरा सी खरोंच से उसका और उसके परिवार के पास कुछ नहीं रहता। बस यही अन्तर है लड़ियों और लड़कों में। इस से साफ है कि परिवार लड़कियों की परवाह अधिक करता है।इसी के संदर्भ में है आज की पोस्ट। जिन परिवारों की लड़कियां प्लस टू में होती हैं। उनके सामने कुछ नई परेशानी आने लगी है। होता यूँ है कि कोई भी कॉलेज वाले स्कूल से जाकर लड़कियों के घर के पते,फ़ोन नम्बर ले आता है। स्कुल वाले भी अपने स्वार्थ के चलते अपने स्कूल की लड़कियों के पते उनको सौंप देतें हैं। उसके बाद घरों में अलग अलग कॉलेज से कोई ना कोई आता रहता है। कभी कोई स्टाफ आएगा कभी फ़ोन और कभी पत्र। यह सब होता है शिक्षा व्यवसाय में गला काट प्रतिस्पर्धा ले कारण। स्कूल वालों को कोई अधिकार नहीं है कि वह लड़कियों के पते,उनके घरों के फोन नम्बर इस प्रकार से सार्वजनिक करें। ये तो सरासर अभिभावकों से धोका है। ऐसे तो ये स्कूल लड़कियों की फोटो भी किसी को सौंपने में देर नहीं लगायेंगें। जबकि स्कूल वालों की जिम्मेदारी तो लड़कियों के प्रति अधिक होनी चाहिए। अगर इस प्रकार से स्कूल, छात्राओं की निजी सूचना हर किसी को देते रहे तो अभिवावक कभी भी मुश्किल में पड़ सकते हैं। आख़िर लड़कियां हीरे की तरह हैं, जिनकी सुरक्षा और देखभाल उसी के अनुरूप होती है। नारदमुनि ग़लत है क्या? अगर नहीं तो फ़िर करो आप भी हस्ताक्षर।

हिन्दी चिट्ठाकारों के आर्थिक सर्वेक्षण में भाग लें -- केवल आज और कल

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पिछले दिनों हिन्दी चिट्ठाकारों के रूप में मन में उनकी आर्थिक हैसियत का आंकलन करने की तमन्ना थी । मन में भाव यह था कि देखा जाए कि किस आर्थिक परिधि से जुड़े हुए लोग हिंदी ब्लॉग्गिंग का हिस्सा बन रहे हैं ?जाहिर है कि यदि हम ब्लॉग्गिंग को अधिकतम जान मानस तक पहुँचाने के आकांक्षी हैं तो यह सर्वेक्षण महत्वपूर्ण परिणाम दे सकता है । तो आइये एक पर्व के रूप में शामिल हो इस सर्वेक्षण के निष्कर्षों का इन्तजार करें !

जाहिर है यह कहने कि आवश्यकता नहीं होनी चाहिए कि यह सर्वेक्षण एक रुझान जानने का ही एक मात्र प्रयास है .....इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं?


एक निवेदन और कि इस सर्वेक्षण का प्रत्येक स्तर से प्रचार करके इसमें अधिकतम लोगों की भागीदारी ही सच्चे परिणामो को सुनिश्चित कर सकती है। चलते चलते एक निवेदन और कि लक्ष्य ज्यादा बडे डाटाबेस को प्राप्त करने का है अतः इसे प्राइमरी के मास्टर से बड़े परिदृश्य की आवश्यकता है ।निश्चित रूप से आप मेरा आशय समझ रहे होंगे ।
सर्वेक्षण का -मेल लिंक है इसे अपने ब्लॉगर मित्रो को भेजें ।

सर्वेक्षण को अपने वेब-पेज में दिखाने का लिंक है, इसे कुछ दिनों के लिए अपने वेब पेज में जगह देंतो बड़ी मेहरबानी होगी इस कोड को कॉपी करके अपने ब्लॉग में चिपका दें।


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27.5.09

बी.एस.एन.एल. का ब्रॉड्बैण्ड्

मित्रों मैंने 14 दिसंबर 2007 को ब्रॉड्बैण्ड कनेक्शन लिया. यह देखकर कि इसकी स्पीड अच्छी है.मुझे पता चला कि जिस पार्लर में नेट यूज करता हूम वह होम प्लान पर चल रहा है.मैंने सूचना के अधिकार के तहत इस संबंध में लोक सूचना अधिकारी से जानकारी चाही पर नतीजा 30 दिनों बाद आया जैसा कि विदित है वह गोल-मोल था.जो जब मैंने इस संबंध में आगे की कार्यवाई किया तो इन माँ के... कहना था कि आपके दस्तखत मेल नहीं खाते.ये क्या ये बता सकते हैं कि ये अपनी माँ की अलौद हैं कि जिस रास्ते से वे आये थे उसी रास्ते से वापस जा सकते हैं? यदि दस्तखत मेल नहीं खाते तो फोरेंसिक एक्सपर्ट नामक जीव भी होता है शायद इन माद... को नहीं मालूम.
मजे बात और देखिए अब मैंने अँगूठे का निशान लगाकर फिर सूचना के अधिकार के तहत जानकारी चाही तो ये मादर... कह रहे हैं कि आप लिटरेट होकर एसा कर रहे हैं आप पर 420 का केश किया जाएगा.मैं ये कह रहा हूँ अरे मादर...मुझे फाँसी पर लटका दो मेरा गुनाह इतना बड़ा जो है.अगर पूरी कहानी जाननी हो तो कृपया रीप्लाई करें.जय भड़ास!जय भ्रष्टाचार!जय लोक तंत्र!