30.4.12
SCIENCE AND TECHNOLOGY: नैनो प्रौद्योगिकी
SCIENCE AND TECHNOLOGY: नैनो प्रौद्योगिकी: नैनो प्रौद्योगिकी ज्ञान का भंडार है और ऐसी प्रौद्योगिकी है, जो विभिन्न प्रकार के उत्पादों और प्रक्रियाओं को प्रभावित करेगी। इसके राष्ट्री...
SCIENCE AND TECHNOLOGY: नैनो प्रौद्योगिकी
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29.4.12
Aziz Qureshi ji governor bane
कांग्रेस की दमदारी के पुराने दिन लौटेंगे
सीहोर। कांग्रेस की स्थानीय राजनीति में यह साल नए संकेत लेकर आ रहा है, जिससे आम कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ गया है। सीहोर इछावर से 1970 में विधायक और मप्र शासन में मंत्री रहे साथ ही 1984 में सतना के सांसद रहे जनाब अजीज कुरैशी के उत्तराखंड राज्यपाल बनने से कांग्रेसजनों में खासा जोश है।
राजनीति के राज आमतौर पर लोगों को समझ नहीं आते, लेकिन कांग्रेस की राजनीति की बात आती है तो ऐसी उलझन और गुटबाजी की धुन नजर आती है, जिससे कई कार्यकर्ता भी परेशान हो जाते हैं, लेकिन अब यह साल कांग्रेस कार्यकर्ताओं के लिए लगातार सुखद संदेश ला रहा है, जिससे समीकरण बदलने का दौर लगातार जारी है।
क्या हैं हालात?
एक समय था जब जिले की राजनीति में कांग्रेस मतलब जीत का सबब माना जाता था, लेकिन बीते एक दशक में यहां की राजनीति में कुछ ऐसा घटा जिससे हासिए पर आ गई और कुछ प्रछन्न घातियों के कारण कमलछाप कांगे्रसियों की पूछ-परख बढ़ती चली गई, जिसके कारण पार्टी कार्यकर्ता दुखी हो गए और नतीजा भुगता। कांग्रेस पार्टी ने जो जिले में सिर्फ जयंती औ पुण्यतिथि मनाने तक सीमित रह गई। पार्टी ने भाजपा सरकार के खिलाफ एक भी बड़ा आंदोलन करने का साहस नहीं जुटाया, लेकिन इस साल जो कुछ हो रहा है, उससे पार्टी कार्यकर्ता उत्साहित हैं और योग्य तथा दमदार नेताओं के साथ युवाओं पर जिम्मेदारी सौंपे जाने से आम कार्यकर्ता जहां उत्साहित हैं, वहीं ठेकेदारी और दलाल प्रथा में भरोसा रखने वाले विचलित नजर आ रहे हैं।
लोगों के अजीज हैं
जिले की राजनीति में अजीज कुरैशी ऐसे दमदार नेताओं में गिने जाते हैं, जो विकास के प्रतीक हैं और आम कार्यकर्ताओं की पहली पसंद। श्री कुरैशी ने अब तक जिले को दिया ही है, यही वजह है कि जैसे ही सूचना लोगों तक पहुंची कि अजीज कुरैशी को उत्तराखंड का राज्यपाल बना दिया गया है, पहले कांग्रेसजनों ने जगह-जगह मिठाईयां बांटी और बाद में भोपाल जाकर उनका स्वागत भी किया।
ऐसे बदले समीकरण
कांग्रेस ने जब कैलाश परमार को पुन: जिलाध्यक्ष और फिर राकेश राय को प्रदेश कांग्रेस में शामिल किया, तभी इस बात के संकेत मिले थे कि जिले की राजनीति में अब योग्यता और सेवा को सम्मान मिलेगा। इसी साल नपा सीहोर में दमदार पार्षद पवन राठौर को नेता प्रतिपक्ष घोषित किया गया, उसके बाद निगरानी समिति चेयरमेन पद पर पत्रकार महेंद्र मनकी ठाकुर की नियुक्ति हुई और जिला कांग्रेस की घोषित कार्यकारिणी ने खुलकर संकेत दे दिए कि कांग्रेस ने मिशन 2013 को लेक सिर्फ ओर सिर्फ योग्यता और कर्मठता के साथ जमीनी सक्रियता को ही केंद्र में रखा है। जिला कांग्रेस में कोषाध्यक्ष राजकुमार जायसवाल, महामंत्री धर्मेन्द्र यादव की नियुक्ति ने संकेत दिए हैं कि पार्टी ने युवा नेताओं को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंप दी है, जिससे कांग्रेस का युवा कार्ड पार्टी को मजबूती की ओर ले जाएगा।
भाजपा है ताकत
जिले में भाजपा के पास लोकसभा नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, मार्कफेड अध्यक्ष रमाकांत भार्गव, निगम अध्यक्ष गुरुप्रसाद शर्मा, राजेंद्र सिंह, शिव चौबे, जिपं अध्यक्ष धर्मेन्द्र चौहान, उपाध्यक्ष मायाराम गौर, विधायक रमेश सक्सेना, केबिनेट मंत्री करणसिंह वर्मा जैसे दमदार नेता और बड़े पद पर आसीन नेता है, वहीं अब कई सालों के बाद ऐसा हुआ है, जब सीहोर की राजनीति में सीधा दखल रखने वाले नेता को बड़ा पद मिला है। गौरतलब है कि श्री कुरैशी का सालों तक यहां हस्तक्षेप रहा, लेकिन कभी किसी को गुटबाजी नजर नहीं आई, परंतु जब सुरेश पचौरी प्रदेशाध्यक्ष बने तो पचौरी समर्थकों ने खुलेआम श्री कुरैशी का पुतला जलाया था, अब प्रदेश की राजनीति में पचौरी गुट हासिए पर है। देखना है सुखद राजनीति का आगाज जो कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा चुका है, ऐसे में कांग्रेस की दमदारी के दिन लौटने की संभावनाएं नजर आने लगी हैं।
26.4.12
ना कोंसो अब हमें
जातिवादी राजनीति का घिनौना चेहरा रमई राम-ब्रज की दुनिया
मित्रों, कहने को तो बिहार जातीय राजनीति को ७ साल पीछे छोड़कर विकास की
राजनीति के मार्ग पर चल पड़ा है लेकिन वास्तव में यह कथन एक अर्द्धसत्य
मात्र है. पूरा सच यह है कि कहीं-न-कहीं आज भी जातीय वोटबैंक के ठेकेदारों
को प्रदेश और प्रदेश सरकार में पर्याप्त सम्मान प्राप्त है. ऐसे ही दलितों
के वोट बैंक के एक ठेकेदार का नाम है-रमई राम, राजस्व एवं भूमि सुधार
मंत्री, बिहार सरकार. इनकी कुलजमा योग्यता इतनी ही है कि ये जाति से चमार
हैं यानि महादलित हैं. अन्यथा न तो काम करने की तमीज और न ही बोलने का शऊर.
कब और कहाँ जुबान फिसल जाए और कब क्या बोल जाएँ खुद रमई बाबू को भी नहीं
पता. जाने पढ़े-लिखे भी हैं या नहीं परन्तु दुर्भाग्यवश बिहार में
दलितों-महादलितों के बड़े ही नहीं बहुत बड़े और शायद राम विलास पासवान के
बाद सबसे बड़े नेता के रूप में जाने और माने जाते हैं. माननीय के बारे में
सबसे बड़ी और बुरी बात यह है कि श्रीमान में ईन्सानियत नाम की चीज ही नहीं
है. जनाब की तंगदिली का ताजातरीन नायाब नमूना है अपने नौकर अनंदू पासवान
के साथ हुजुर का क्रूर और शातिराना व्यवहार जिसे देखकर शायद एकबारगी शैतान
भी काँप जाए. हुआ यूं कि मंत्री रमई बाबू के विधानसभा क्षेत्र का एक
महादलित मतदाता जब अपने और अपने परिवार को भूखो मरते नहीं देख सका तो जा
पहुँचा मंत्री जी के पटना स्थित आवास पर काम की तलाश में. चूँकि उसकी हालत
जानवरों से मिलती-जुलती थी इसलिए उसे मंत्री जी ने अपने पालतू जानवरों की
देखभाल का जिम्मा सौंप दिया. दुर्भाग्य, अभी उसे पहला वेतन मिला भी नहीं था
कि इसी बीच बेचारे के साथ हादसा हो गया. विगत 9 अप्रैल को मंत्री जी की
गाय ने सींग मार कर उसके पापी पेट को फाड़ डाला. परन्तु मंत्री जी भी जानवर
से कम जानवर तो थे नहीं. इसलिए उस अपने ही खून में नहाए हुए मजलूम का ईलाज
कराने के बदले उसे उसके घर पर यानि मुजफ्फरपुर के मुशहरी प्रखंड के मणिका
चौक पर फेंकवा दिया.
मित्रों, इस अप्रत्याशित वज्रपात से हैरान-परेशान अनंदू
के चाँद तक को रोटी समझनेवाले परिजनों ने पहले तो उसे सरकारी अस्पताल
एस.के.एम.सी.एच.में भर्ती करवाया परन्तु हालत नहीं सुधरने पर उसे एक निजी
अस्पताल माँ जानकी अस्पताल में ले आए जहाँ उस पेट के मारे के पेट का आपरेशन
हुआ. सबसे बड़े आश्चर्य की स्थिति तो यह थी कि सड़क दुर्घटना में घायल की
चिकित्सा करवाले वाले को भी चाय-पानी के लिए तंग-परेशान करनेवाली बिहार
पुलिस मंत्री के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज ही नहीं कर रही थी. जब मामला मीडिया
में आ गया तब जाकर मुजफ्फरपुर पुलिस ने मरणासन्न पीड़ित का फर्द बयान लिया
और अब गेंद पटना सचिवालय थाने के पाले में है. पुलिस के कदम भले ही नहीं उठ
रहे हों लेकिन मौत के कदम नहीं रुके हैं और वह अब भी अहिस्ता-अहिस्ता
अनंदू की तरफ बढती आ रही है. बाद में कई राजनेता और राजनैतिक दल सामने आए.
हंगामा भी खूब हुआ लेकिन आर्थिक सहायता नहीं मिली. मंत्री का तो पुलिस अब
तक स्वाभाविक तौर पर बाल भी बांका नहीं कर पाई है और शायद अनंदू के मर जाने
के बाद भी कुछ नहीं कर पाएगी.मित्रों, इसी बीच २० अप्रैल को जब मंत्री जी अपने विधानसभा क्षेत्र पहुंचे तो अनंदू के ग्रामीण उग्र हो उठे और मंत्री की गाड़ी को घेर लिया. मंत्री समर्थकों ने खुद को खुद ही घायल कर लिया और इल्ज़ाम अनंदू के ग्रामीणों पर लगा दिया. इस मामले में जरूर पुलिस बहुत ज्यादा सक्रिय है. बात भी मामूली नहीं है. माननीय पर हमला हुआ है, भारतीय लोकतंत्र के सम्मान और प्रतिष्ठा पर प्राणघातक आक्रमण हुआ है. आम लोगों की इतनी हिम्मत कि वे अपने द्वारा ही चुने गए मंत्री के अत्याचार का विरोध करने की हिमाकत करें.
मित्रों, यह कहने की बात नहीं है कि मानवता के प्रति ऐसा अपराध अगर किसी सवर्ण मंत्री ने किया होता हो वह सामंतवादी होता और उसका कृत्य सामंतवाद. परन्तु महादलित नेता रमई बाबू चूँकि जन्म से महादलित हैं इसलिए वे सामंतवादी तो हो ही नहीं सकते; परन्तु अगर वे सामंतवादी नहीं हैं तो हैं क्या? क्या वे वास्तव में दलितों के मसीहा हैं या हमदर्द हैं? क्या उनका कुकर्म उन्हें उस महान विशेषण के निकट भी सिद्ध करता है जिससे कभी बाबा साहेब को विभूषित किया गया था. या फिर क्या वे कर्म से आदमी हैं या आदमी साबित किए जा सकते हैं? गाय तो फिर भी पशु थी और इसलिए उसने पशुता दिखाई लेकिन क्या रमई उससे भी बड़े पशु नहीं साबित हो चुके हैं? ऐसे मंत्री अगर सरकार व शासन का सञ्चालन करेंगे तो उसमें फिर हुमेनटेरियन यानि मानवतावादी टच कहाँ से आएगा? कहते हैं कि मटके में पक रहे चावल की हकीकत जानने के लिए पूरी हांड़ी को उलटने की जरुरत नहीं होती बस एक चावल को निकालिए और समझ जाईए. ठीक उसी तरह अगर आपको यह जानना हो कि बिहार में सुशासन किस प्रकार काम कर रहा है तो अपने रमई बाबू के इस महान और मसीहाई कृत्य को देखकर खुद ही जान लीजिए. कितनी बड़ी बिडम्बना है कि एक तरफ तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जनता के बीच सेवायात्रा पर निकले हुए हैं तो वहीं दूसरी और उनके चहेते मंत्री मानवता की ही शवयात्रा निकालने में पिले हुए हैं. मैं यह नहीं चाहता कि मंत्री को सीधे बाहर का रास्ता दिखा दिया जाए और मामले को समाप्त समझ लिया जाए बल्कि पहले अनंदू पासवान के ईलाज की समुचित व्यवस्था सरकारी खर्चे पर की जाए और फिर बाद में मंत्री को निकालना हो तो निकाल बाहर किया जाए. वैसे ऐसे मंत्री को जो मानवता के नाम पर काला टीका हो; को मंत्रिमंडल में रखने का क्या फायदा? उस पर इन जनाब की तो दलित नेता और मसीहा वाली कलई भी उतर चुकी है. क्या पता अब माननीय खुद की विधानसभा सीट भी निकाल पाएंगे कि नहीं? अंत में आदतन मंत्रीजी रमई बाबू को निःशुल्क सीख कि चाहे उन्हें जितने पशु पालना हो पालें लेकिन कृपया पशुता नहीं पालें क्योंकि जब उनके भीतर मानवता ही नहीं बचेगी तो वे आदमी तो नहीं ही रह जाएँगे और शायद मंत्री भी नहीं.
ठकुराई बचे या कबीला
ठकुराई बचे या कबीला
एक पांच सात सौ घरो का कबीला था .बड़ी संख्या में कबीले वाले अनपढ़ या कम पढ़े लिखे थे.कबीले
की व्यवस्था कैसे चलती है उससे उनको कोई सरोकार नहीं था .थोड़े बहुत लोग जानकार थे वे या तो
चुप थे या फिर उस व्यवस्था का अंग थे .कबीले का सरदार रामूला था और उसकी पंचायत में कबीले
के छंटे हुये शातिर भी रामनामी ओढ़कर अपनी बात पर रामूला से मुहर लगवा ही लेते थे .
कबीले के शातिर पंच रामूला को बेवकूफ बनाकर उससे कबीलेवालो के लिए अप्रिय निर्णय करवा
लेते जिससे कबीले को नुकसान और पंचो को फायदा होता रहता .लोगो का रोष रामूला के प्रति बढ़ता
रहता था मगर शातिर पंचो की बदोलत हर होली पर होने वाले सरदार के चुनाव में चुनाव रामूला ही
जीत जाता था .रामूला की जीत का कारण होली के त्यौहार पर कबीलेवालो को भरपेट स्वादिष्ट खाना
और शराब देना था .कबीलेवाले उस दिन छक कर खाते और रामूला को नया सरदार चुन लेते .
सरदार चुने जाने के बाद शातिर पंच कबीले वालो पर नये-नये कर लगा देते और कर की जबरन
वसूली करते .कर अदा न कर पाने वाले कबीलेवालो को पंचो के खेतो पर बिना मजदूरी के काम
करना पड़ता था .धीरे-धीरे कबीले वालो की सम्पति कर भार के कारण घटती गयी और पंचो की
आमद बढती रही .पंच अपनी बढ़ी हुई आय को दुसरे आस पास के कबीले की जमीन मकान खरीदने
में लगा देते .
कबीले की बदहाली बढती रही .कर कम वसूल होने से कबीले की व्यवस्था चलाने में रामूला
को तकलीफ होने लगी .वह जब भी पंचायत बुलाता तो पंच उसको कबीले की जमीन बेचने की सलाह
दे देते .रामूला भी कर से घटती आय से परेशान हो कबीले की जमीन बेच देता जिसे रामूला के पंच
ओने पोने दामो में खरीद लेते.
कबीले वाले कष्ट भरा जीवन जी रहे थे ,उनको अपनी बदहाली का कारण समझ नहीं आ रहा था
कर नहीं चुकाने के कारण उन्हें अपनी जमीन की जगह पंचो की जमीन की निराई गुड़ाई करनी
पड़ती थी जिससे उनके खेतो की बुवाई नहीं हो पाती और समय पर बुवाई नहीं होने के कारण खेतो
में फसल नहीं होती .यह दुष्चक्र काफी सालो तक चलता रहा .रामूला कर की आमद कम देख कर
गाँव की जमीन बेच देता .धीरे-धीरे कबीले की जमीन बिकती गयी और रामूला की आय इतनी कम
हो गयी कि होली का त्यौहार मनाने के लिए पैसे भी दुसरे कबीले के सरदारों से उधार लेना पड़ता .
दुसरे कबीले वालो ने रामूला की हालत देख कर्ज पर सूद बढ़ा कर लेने लगे .रामूला पर सूद की मार
इस तरह पड़ी की उससे सूद भी चुकाया नहीं जाता .आखिर तंग आकर रामूला ने पुरे कबीले की सभा
बुलाई और कबीले की दशा सबके सामने रखी और सबके सामने एक सवाल रखा -क्या मुझे ठकुराई
बचानी चाहिए या कबीला ?
पंचो ने कहा -बिना ठाकुर के कबीले का कोई धणी धोरी नहीं रहेगा इसलिए ठकुराई बचे.
कबीलेवालो ने कहा- जब कबीले में कोई रहनेवाला ही नहीं बचेगा तो ठकुराई किस पर चलेगी.
इसलिए ठकुराई जाये और नये को मौका मिले .
रामूला पंचो और कबीलेवालो का उत्तर सुन कर्तव्य विमूढ़ हो गया और इस फेसले पर पहुंचा कि जब
तक सही उपाय नहीं सूझ जाता तब तक कबीले कि व्यवस्था सूद चुकाने और कर्ज लेने पर चलती
रहेगी.
वह कबीला इसी दुष्चक्र में फँसा है..........कर्ज, सूद, लुट, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, महंगाई, आत्महत्या,
अनैतिकता का दुष्चक्र.
24.4.12
काजमी ने ऐसा क्या रिकार्ड कर लिया!
मुफ्ती शमूल काजमी |
हालांकि अभी यह खुलासा नहीं हुआ है कि काजमी ने जो रिकार्डिंग की अथवा गलती से हो गई, उसका मकसद मात्र याददाश्त के लिए रिकार्ड करना था अथवा सोची-समझी साजिश थी। टीम अन्ना बार-बार ये तो कहती रही कि काजमी जासूसी के लिए रिकार्डिंग कर रहे थे, मगर यह स्पष्ट नहीं किया कि पूरा माजरा क्या है? वे यह रिकार्डिंग करने के बाद उसे किसे सौंपने वाले थे? या फिर टीम अन्ना को यह संदेह मात्र था कि उन्होंने जो रिकार्डिंग की, उसका उपयोग वे उसे लीक करने के लिए करेंगे? या फिर टीम अन्ना का यह पक्का नियम है कि उसकी बैठकों की रिकार्डिंग किसी भी सूरत में नहीं होगी? और क्या टीम अन्ना इतनी फासिस्ट है कि छोटी सी गलती की सजा भी तुरंत दी जाती है?
अव्वल तो सूचना के अधिकार की सबसे बड़ी पैरोकार और सरकार को पूरी तरह से पारदर्शी बनाने को आमादा टीम अन्ना उस बैठक में ऐसा क्या कर रही थी, जो कि अति गोपनीय था, कि एक फाउंडर मेंबर की छुट्टी जैसी गंभीर नौबत आ गई। क्या पारदर्शिता का आदर्श उस पर लागू नहीं होता। क्या यह वही टीम नहीं है, जो सरकार से पहले दौर की बातचीत की वीडियो रिकार्डिंग करने के लिए हल्ला मचाए हुई थी और खुद की बैठकों को इतना गोपनीय रखती है? उसकी यह गोपनीयता कितनी गंभीर है कि इसका अंदाजा इसी बात से लगता है कि टीवी चैनल वाले मनीष सिसोदिया और शाजिया इल्मी से रिकार्डिंग दिखाने को कहते रहे, मगर उन्होंने रिकार्डिंग नहीं दिखाई। इसके दो ही मतलब हो सकते हैं। एक तो यह कि रिकार्डिंग में कुछ खास नहीं था, मगर चूंकि काजमी को निकालना था, इस कारण यह बहाना लिया गया। इसकी संभावना अधिक इस कारण हो सकती है क्योंकि इधर रिकार्डिंग की और उधर टीम अन्ना के अन्य सदस्यों ने तुरत-फुरत में उन्हें बाहर निकालने जैसा कड़ा निर्णय भी कर लिया। कहीं ऐसा तो नहीं काजमी की पहले से रेकी की जाती रही या फिर मतभेद पहले से चलते रहे और मौका मिलते ही उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। काजमी ने बाहर आ कर जिस प्रकार आरोप लगाए हैं, उनसे तो यही लगता है कि विवाद पहले से चल रहा था व रिकार्डिंग वाली तात्कालिक घटना उनको निकाले जाने की बड़ी वजह नहीं। इसी से जुड़ा सवाल ये है कि काजमी ने क्या चंद लम्हों में ही गंभीर आरोप गढ़ लिए? यदि यह मान भी लिया जाए कि उन्होंने सफाई देने के चक्कर में तुरंत आरोप बना लिए, मगर इससे यह तो पुष्ट होता ही है कि उनके आरोपों से मिलता जुलता भीतर कुछ न कुछ होता रहता है। एक सवाल ये भी कि जो भी टीम के खिलाफ बोलता है, वह सबसे ज्यादा हमला अरविंद केजरीवाल पर ही क्यों करता है? क्या वाकई टीम अन्ना की बैठकों में खुद अन्ना तो मूकदर्शक की भांति बैठे रहते हैं और तानाशाही केजरीवाल की चलती है?
जहां तक रिकार्डिंग को जाहिर न करने का सवाल है, दूसरा मतलब ये है कि जरूर अंदर ऐसा कुछ हुआ, जिसे कि सार्वजनिक करना टीम अन्ना के लिए कोई बड़ी मुसीबत पैदा करने वाला था। यदि काजमी सरकार की ओर से जासूसी कर रहे थे तो वे मुख जुबानी भी सूचनाएं लीक कर सकते थे। फाउंडर मेंबर होने के नाते उनके पास कुछ रिकार्ड भी होगा, जिसे कि लीक कर सकते थे। रिकार्डिंग में ऐसा क्या था, जो कि बेहद महत्वपूर्ण था?
इस पूरे प्रकरण में सर्वाधिक रहस्यपूर्ण रही अन्ना की चुप्पी। उन्होंने कुछ भी साफ साफ नहीं कहा। उनके सदस्य ही आगे आ कर बढ़-चढ़ कर बोलते रहे। शाजिया इल्मी तो अपनी फितरत के मुताबिक अपने से वरिष्ठ काजमी से बदतमीजी पर उतारु हो गईं। यदि अन्ना आम तौर पर मौनी बाबा रहते हों तो यह समझ में आता भी, मगर वे तो खुल कर बोलते ही रहते है। कई बार तो क्रीज से बाहर निकल पर चौके-छक्के जड़ देते हैं। कृषि मंत्री शरद पवार को थप्पड़ मारे जाने का ही मामला ले लीजिए। इतना बेहूदा बोले कि गले आ गया। ऊपर से नया गांधीवाद रचते हुए लंबी चौड़ी तकरीर और दे दी। ताजा प्रकरण में उनकी चुप्पी इस बात के भी संकेत देती है कि वे अपनी टीम में चल रही हलचलों से बेहद दुखी हैं। इस कारण काजमी के निकाले जाने पर कुछ बोल नहीं पाए। इस बात की ताकीद काजमी के बयान से भी होती है।
कुल मिला कर टीम अन्ना की जिस बाहरी पाकीजगी के कारण आम जनता ने सिर आंखों पर बैठा लिया, अपनी अंदरुनी नापाक हरकतों की वजह से विवादित होती जा रही है।
आखिर में मेरे मित्र ऐतेजाद का वह शेर, जो उन्होंने अपनी छोटी मगर सारगर्भित टिप्पणी के साथ लिखा है-
जो चुप रहेगी जुबान-ऐ-खंजर
लहू पुकारेगा आस्तीन का
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com
[ब्लॉग पहेली चलो हल करते हैं ]-ब्लॉग पहेली-२३
ब्लॉग पहेली-२३
इस बार पहचाने उन पांच ब्लॉग का नाम जिस पर प्रस्तुत पोस्ट के अंश हैं ये -
१-धूप मेरे हाथ से जब से फिसल गई जिंदगी से रौशनी उस दिन निकल गई नाव साहिल तक वही लौटी है .
२-जरूर राधा ने मोहिनी डारी है तभी छवि तुम्हारी इतनी मतवाली है जो भी देखे मधुर छवि अपना आप
भुलाता है ये राधे की महिमा न्यारी है ...
३-जबकि अपने देश में लोग इलाज की कमी से मर रहे हों. देश में 7 लाख डाक्टरों की कमी है. लोग मर रहे
हैंमगर डाक्टर विदेश में चले जाते हैं. एक एमबीबीएस डाक्टर की पढ़ाई में एम्स में 1.50 करोड़ रूपये का ख़र्च आता.
४-..कल उंगली से रेत पर तेरी तस्वीर बनाई मैंने... .....एक लहर आई अपने साथ ले गई.. ....
फिर क्या था हर तरफ, हर जगह बस तुम ही तुम..
५-*मित्रों!*** * सात जुलाई, 2009 को यह रचना लिखी थी! इस पर नामधारी ब्लॉगरों के तो मात्र 14 कमेंट आये थे मगर बेनामी लोगों के 137 कमेंट आये।*** * एक बार पुनः इसी रचना ज्यों की त्यों को प्रकाशित कर रहा ..
केवल ब्लॉग का नाम बताएं और विजेता बन जाएँ .
शुभकामनाओं के साथ
शिखा कौशिक
[ब्लॉग पहेली चलो हल करते हैं ]
सचिन तेंदुलकर: HAPPY BIRTHDAY SACHIN
उत्कृष्ट क्रिकेटर के रूप में सचिन
1988
उनके लिए बेहद उम्दा साबित हुआ जब अंतर स्कूली क्रिकेट मैच में सचिन ने
अपने करीबी मित्र और सह क्रिकेटर विनोद कांबली के साथ 664 रनों की नॉट आउट
पारी खेली. 1987 वर्ल्ड कप के दौरान सचिन मात्र 14 वर्ष के थे जब मुंबई
स्थित वानखेड़े स्टेडियम में भारत बनाम जिंबाब्वे का मैच हुआ. इस मैच में
सचिन बॉल ब्वॉय के तौर पर नियुक्त किए गए थे.
16 वर्ष
की आयु में सचिन को पहली बार अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में खेलने का अवसर
मिला. वह न सिर्फ पाकिस्तान जाने वाली भारतीय टीम का हिस्सा बने बल्कि
उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ अपना पहला टेस्ट मैच भी खेला.
24
फरवरी, 2010 में सचिन तेंदुलकर ने अपने वनडे क्रिकेट के 442वें मैच में
200 रन बनाकर नई ऐतिहासिक पारी खेली. वनडे क्रिकेट के इतिहास में दोहरा शतक
जड़ने वाले वह पहले खिलाड़ी बने. तेंदुलकर ने अपने एक दिवसीय कॅरियर में
सर्वाधिक रन आस्ट्रेलिया के खिलाफ बनाए हैं. उन्होंने विश्व चैंपियन
ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 60 मैच में 3000 से ज्यादा रन बनाए हैं, जिसमें 9 शतक
और अर्धशतक शामिल हैं. श्रीलंका के खिलाफ भी उन्होंने सात शतक और 14
अर्धशतक की मदद से 2471 रन बनाए हैं लेकिन इसके लिए उन्होंने 66 मैच खेले
हैं. इसी वर्ष यानि कि 2012 में उन्होंने अपने एकदिवसीय क्रिकेट कॅरियर में
शतकों का शतक पूरा किया. अपना यह महाशतक उन्होंने बांग्लादेश के विरुद्ध
जड़ा.
कार्टून का कार्टून
कार्टून का कार्टून
नदी किनारे लम्बे रूखे बिखरे बाल और बढ़ी हुई दाढ़ी वाले को पिंछी घुमाते देख हम ठिठक गये.हमने
उससे पूछा - आप हुनरमंद लगते हैं मगर अस्त-व्यस्त रहने के तरीके से आप कार्टून जैसे लगते हैं .
वो बोला- अरे भाई ,हम क्या कार्टून लग रहे हैं हमें तो सुधारवादी उदारीकरण की व्यवस्था के बाद
इस देश में ज्यादातर लोग कार्टून के योग्य ही नजर नहीं आते हैं .
हमने कहा -बात तो आपकी सोलह आने सच है .अब ये बताइये महाशय कि इस समय आप क्या कर
रहे हैं ?
वो बोला- मैं कार्टून बना रहा हूँ .
हमने पूछा -किसका ...?
वो बोला- जो सच को सहन कर सके उसका .
हमने पूछा -क्या किसी नेता का ,मंत्री का, संत्री का.......भी बनाते हो ?
वो बोला -आप भी अजीब हैं..! कार्टून का कार्टून ..! मैं भला क्यों बनाऊँगा ? कार्टून बनाना भी एक विद्या
है ,कार्टून सच्चाई की तस्वीर होता है ,जो व्यक्ति सच के वजन को सहने की ताकत नहीं रखता उसका
कार्टून बनाने से समाज का क्या भला होगा ?
हम बोले- .....तो फिर बताओ कि कार्टून किसका बनाया जाता है ?
वो बोला- जो व्यक्ति भूल सुधार की कोशिश में लगा रहता है ,खुद की कमजोरियों का सतत आंकलन
करता रहता है उसी का कार्टून बनाया जाता है .
हमने कहा -हमने तो भूल पर भूल करने वाले के कार्टून ही ज्यादा बनते देखे हैं.कार्टून मसखरी का
दूसरा नाम बनता जा रहा है .....
वो हमारी बात काट कर बोला -आप सही नहीं हैं .कार्टून की शक्ति से एक सामान्य नेता जन नायक
और जन नायक भी खल नायक बन जाता है .
......तो फिर तुम नेता का कार्टून क्यों नहीं बनाते ?किससे डरते हो ? मेने उससे सवाल किया उसके
उत्तर में वो बोला -क्या इस देश में आपको कोई जन नेता दिखता है जिसका कार्टून बनाया जाए ?
जिसे तुम नेता समझ रहे हो वो कार्टून की परिधि से बाहर है .सत्ता चलाना या सियासत करना अलग
बात है और नेता बनना अलग .नेता वो होता है जिसका दिल आम आदमी में धडकता हो .
मेने पूछा -फिर इस देश में कार्टून पर नेता बवाल क्यों मचा रहे हैं ?
वो बोला -तुम जिसे नेता मानने का भ्रम पालते हो तो पालो ,मैं तो २५ साल का युवा हूँ जिसने अपने
जीवन काल मैं एक भी नेता नहीं देखा है .कार्टून बनाना मेरा कर्म है मगर कार्टून का कार्टून बनाना
मेरा पेशा नहीं है .मैं कार्टून बना कर आम आदमी को जाग्रत करूंगा मगर एक कार्टून का कार्टून
हरगिज नहीं बनाऊँगा .
हम उसका उत्तर सुन सन्न रह गए और वही से लौट गये.आज समझे थे कि कार्टून एक विधा है मगर
कार्टून का कार्टून बनाना विधा नहीं है मसखरी है .
23.4.12
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SHIKHA KAUSHIK
Sachin -“Superman” of Cricket: HAPPY BIRTHDAY SACHIN
जी हां सही सुना आपने. कार्टुन की दुनिया में सबसे पहले सुपरमैन ने एक बडे हीरो की तरह Entry की थी, उसके लिए कोई काम मुश्किल नहीं था. ठीक उसी तरह क्रिकेट के खेल में सचिन के लिए कोई स्कोर बनाना मुश्किल नही है.कल ग्वालियर के मैदान में सचिन ने जो किया वह वनडे इतिहास के 40 साल के सफर में कभी नहीं हुआ था. 50 ओवरों के सीमित खेल में 175-190 रन तक तो कई खिलाडी पहुचे थे मगर उनके दिमाग में 200 का आंकडा शायद ही कभी आया होगा.
कुछ हल्का जरा हट्के
चलिए यह तो पुरानी बाते मैंने तो यह सब कुछ हटके लिखने के लिए लिखा है. आप जानते है यह शायद संयोग ही थी :
तारीख़ 21 मई 1997, चेन्नई में भारत और पाकिस्तान के बीच मैच. भारत की कमान थी सचिन तेंदुलकर के हाथों में और पाकिस्तान के कप्तान थे रमीज़ राजा.
अनवर ने इसी मैच में 194 रनों की पारी खेली थी और ये संयोग ही है कि वो तेंदुलकर की गेंद पर गांगुली के हाथों कैच आउट हुए थे.
कल लगभग 13 साल बाद सचिन तेंदुलकर ने वो रिकॉर्ड बड़ी ही ख़ूबसूरती से तोड़ दिया.
इस तरह सचिन ने इस पारी के ज़रिए एक पारी में सर्वाधिक चौके जड़ने का रिकॉर्ड भी अपने नाम कर लिया. उन्होंने 200 रनों में से 100 रन तो चौकों की मदद से ही बनाए.
कभी दहशत की वजह से सचिन तेंदुलकर को सपने में देखने वाले पूर्व क्रिकेटर शेन वॉर्न इस बात से ख़ुश थे कि सचिन की 200 रनों वाली पारी में उन्हें गेंदबाज़ी नहीं करनी थी .
तो ऑरिजनल लिटिल मास्टर गावस्कर ने यहां तक कह दिया कि वह सचिन के चरण स्पर्श करना चाहते हैं.
रिकार्ड के नए माउंट एवरेस्ट पर पहुंच कर सचिन तेंदुलकर ने क्रिकेट के रिकार्ड बुक के इतिहास को नए सिरे से लिख दिया है। -राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल
लेकिन हमारी नजर में तो सचिन सिर्फ सचिन ही हैं जो दिन ब दिन रन बनाते जा रहे है और जिस तरह से वह पिछले 8 महीनों से खेल रहे है लगता नहीं कि उनकी उम्र 36 की हैं. चकिए उम्मीद करते है कि आगे भी सचिन धमाका जारी रहेगा और जल्द ही यह दोहरे शतक का रिकार्ड कोई भारतीय खिलाडी जैसे सहवाग या युवराज तोड दे ,,,आखिर रिकार्ड बनते ही टुटने के लिए है . और आखिर में इस सचिन द सुपरमैन को मेरी तरफ से शुभकामनाएं और आप लोगों के लिए सवाल : 1. अब आगे और क्या चाहते है 5 फीट 5 इंच के सचिन से दुबारा दोहरा शतक या ..? 2. क्या लगता है कौन तोडेगा इस दोहरे शतक के रिकार्ड को ?
कुछ हल्का जरा हट्के
चलिए यह तो पुरानी बाते मैंने तो यह सब कुछ हटके लिखने के लिए लिखा है. आप जानते है यह शायद संयोग ही थी :
तारीख़ 21 मई 1997, चेन्नई में भारत और पाकिस्तान के बीच मैच. भारत की कमान थी सचिन तेंदुलकर के हाथों में और पाकिस्तान के कप्तान थे रमीज़ राजा.
अनवर ने इसी मैच में 194 रनों की पारी खेली थी और ये संयोग ही है कि वो तेंदुलकर की गेंद पर गांगुली के हाथों कैच आउट हुए थे.
कल लगभग 13 साल बाद सचिन तेंदुलकर ने वो रिकॉर्ड बड़ी ही ख़ूबसूरती से तोड़ दिया.
इस तरह सचिन ने इस पारी के ज़रिए एक पारी में सर्वाधिक चौके जड़ने का रिकॉर्ड भी अपने नाम कर लिया. उन्होंने 200 रनों में से 100 रन तो चौकों की मदद से ही बनाए.
कभी दहशत की वजह से सचिन तेंदुलकर को सपने में देखने वाले पूर्व क्रिकेटर शेन वॉर्न इस बात से ख़ुश थे कि सचिन की 200 रनों वाली पारी में उन्हें गेंदबाज़ी नहीं करनी थी .
तो ऑरिजनल लिटिल मास्टर गावस्कर ने यहां तक कह दिया कि वह सचिन के चरण स्पर्श करना चाहते हैं.
रिकार्ड के नए माउंट एवरेस्ट पर पहुंच कर सचिन तेंदुलकर ने क्रिकेट के रिकार्ड बुक के इतिहास को नए सिरे से लिख दिया है। -राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल
लेकिन हमारी नजर में तो सचिन सिर्फ सचिन ही हैं जो दिन ब दिन रन बनाते जा रहे है और जिस तरह से वह पिछले 8 महीनों से खेल रहे है लगता नहीं कि उनकी उम्र 36 की हैं. चकिए उम्मीद करते है कि आगे भी सचिन धमाका जारी रहेगा और जल्द ही यह दोहरे शतक का रिकार्ड कोई भारतीय खिलाडी जैसे सहवाग या युवराज तोड दे ,,,आखिर रिकार्ड बनते ही टुटने के लिए है . और आखिर में इस सचिन द सुपरमैन को मेरी तरफ से शुभकामनाएं और आप लोगों के लिए सवाल : 1. अब आगे और क्या चाहते है 5 फीट 5 इंच के सचिन से दुबारा दोहरा शतक या ..? 2. क्या लगता है कौन तोडेगा इस दोहरे शतक के रिकार्ड को ?
राजनीति के विभीषण
राजनीति के विभीषण
विभीषण के नाम से तो आप सभी वाकिफ ही होंगे...सीता को रावण जब उठा कर ले गया था तो सीता की तलाश में जब हनुमान लंका में पहुंचे थे तो वे विभीषण ही थे जिन्होंने रावण की ताकत औऱ कमजोरियां को भगवान राम के सामने उजागर किया था...जो रावण के अंत की वजह बना था। इसी तरह कुछ विभीषण हर जगह होते हैं...लेकिन हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड में राजनीति के विभीषणों की...दरअसल उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव के दौरान राज्य के दोनों प्रमुख दल भाजपा और कांग्रेस में भी सैंकडों ऐसे ही विभीषण थे जिन्होंने अपनी नेता भक्ति के लिए अपनी ही पार्टी का बेड़ा गर्क करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अब चुनाव का परिणाम आए हुए करीब डेढ़ महीने का वक्त गुज़र चुका है...राज्य में कांग्रेस की सरकार बन गयी है...तो दोनों ही पार्टियों भाजपा औऱ कांग्रेस ने ऐसे विभीषणों की पहचान कर उनको किनारे करने का काम शुरू कर दिया है। ये ऐसे विभीषण थे जिन्होंने चुनाव के दौरान अपनी अपनी पार्टी भक्ति को किनारे कर नेता भक्ति पर ज्यादा मेहनत की...कुछ अपने पसंदीदा नेता को विधायकी का टिकट न मिलने से नाराज़ थे तो कुछ खुद को टिकट न मिला तो बन गए विभीषण...इसका खामियाजा अधिकतर जगह उन नेताओं औऱ कार्यकर्ताओं ने भी भुगता औऱ सबसे ज्यादा भुगता उनकी पार्टी ने भी...क्योकि इन विभीषणों के चलते दोनों ही पार्टियों के करीब करीब आधा दर्जन से ज्यादा प्रत्याशियों को कहीं बहुत कं अतंर से तो कहीं पर बुरी हार का मुंह देखना पड़ा...ये हाल राज्य की दोनों की प्रमुख दल भाजपा औऱ कांग्रेस में लगभग एक जैसे ही थे। ऐसे में दोनों ही पार्टियों ने अब इन विभीषणों की पहचान का काम शुरू कर दिया है...भाजपा ने इस काम में बकायदा एक पूरी टीम लगा रखी है...जो विभीषणों को पहचानने के लिए तीसरी आंख का काम कर रही है। पहले चरण में तो भाजपा ने चार जिलों को पूरी कार्यकारिणी को ही भंग कर दिया है...जबकि भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का सवाल रही कोटद्वार सीट से खंडूरी के हारने पर भाजपा से कोटद्वार के ही अपने नेता औऱ पूर्व विधायक शैलेन्द्र रावत को नोटिस थमा दिया है...वहीं कांग्रेस ने भी चुनाव से लेकर सीएम के नाम की घोषणा तक विभीषण बने नेताओं को को अब सबक सिखाना शुरू कर दिया है...लेकिन कांग्रेस की ये कार्रवाई सिर्फ हवा हवाई ही दिखाई दे रही है...विभीषणों के सरदार हरीश रावत पर तो प्रदेश कांग्रेस हाथ डालने से कतराती दिखाई दे रही है जबकि सरदार के सिपहसालारों को जरूर नोटिस जारी कर कार्यकर्ताओं को संदेश देने की कोशिश कांग्रेस कर रही है। बहरहाल विभीषणों की पहचान का ये काम अभी दोनों पार्टियों ने शुरू ही किया है...आगे आगे देखते हैं होता है क्या।
दीपक तिवारी
प्रदेश की राम भक्त भाजपा सरकार को जगाने और बीमार अस्पताल को सुधारने के लिये गौगपा बजरंगबली को सौंपेगी ज्ञापन
बालाघाट जिले के दौरे पर आये प्रदेश भाजपा अध्यक्ष प्रभात झा द्वारा सांसद के.डी.देशमुख को वारासिवनी से विधानसभा चुनाव लड़ने के संकेत दे डाले हैं। आखिर इतने समय पहले ऐसा संकेत देकर प्रभात झा आखिर क्या राजनैतिक संदेश देना चाहते है और किसको ं? यह भी चर्चा हैं कि ऐसा संकेत देकर प्रभात झा कहीं गौरी भाऊ को नियंत्रित रखने का प्रयास तो नहीं कर रहें हैं? जिले का केवलारी विस क्षेत्र बहुत भाग्यशाली क्षेत्र हैं। सन 67 से 90 तक विमला वर्मा फिर 93 से 2003 तक हरवंश सिंह और अब डॉ. बिसेन और हरवंश सिंह दोनो ही लाल बत्ती पर सवार हैं। ऐसे उदाहरण भी इतिहास में बिरले ही मिलते हैं कि एक ही क्षेत्र से चुनाव लड़ने वाले सत्ता पक्ष और विपक्ष के प्रत्याशी एक ही साथ और एक ही समय में एक ही क्षेत्र में लाल बत्ती लेकर धूमें। अस्पताल को भाजपा नेताओं के परिजनों से मुक्त कराने की अनोखी पहल गौगपा ने की हैं। राम नाम जप कर सत्ता के पायदानों पर पहुंचने वाली भाजपा को सबक सिखाने के लिये गौगपा ने नयाब तरीका खोजा है। उत्तर प्रदेश में सपा की सरकार बनने के बाद जिले में भी सपा की गतिविधियां बढ़ गयीं हैं।सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव द्वारा प्रदेश के एक मुस्लिम नेता को यू.पी. से राज्यसभा में भेजे जाने से काफी उत्साह का माहौल दिख रहा हैं। अब इस राजनैतिक समीकरण का कब,कितना और कैसा असर पड़ेगा? यह तो वक्त ही बतायेगा।
प्रभात का के.डी. को दिया गया संकेत चर्चित-बालाघाट जिले के दौरे पर आये प्रदेश भाजपा अध्यक्ष प्रभात झा द्वारा सांसद के.डी.देशमुख को वारासिवनी से विधानसभा चुनाव लड़ने के संकेत देने के समाचार अखबारों में प्रकाशित हुये हैं। इन समाचारों ने जिले के राजनैतिक हल्कों में भी तूफान ला दिया हैं। वैसे भी जहां तक सिवनी जिले के का सवाल हैं तो सांसद ने इसके साथ सौतेला व्यवहार किया हैं। इसके अलावा मंत्री के रूप में गौरीशंकर बिसेन के जल्वे देख कर मन ही मन वे भी यही चाह रहे थे कि काश वे भी विधायक रहते तो उन्हें भी लालबत्ती का सुख मिल जाता। लेकिन वे पिछला विस चुनाव कटंगी विस क्षेत्र से हार गये थे और सांसद रहते हुये गौरी भाऊ चुनाव जीत कर मंत्री बन गये थे। इसके बाद भाजपा ने के.डी. भाऊ को लोकसभा की टिकिट दे दी थ और वे बालाघाट क्षेत्र से सांसद बन गये थे। एक सांसद के रूप में उनका कार्यकाल उल्लेखनीय नहीं रहा। सिवन के साथ तो उन्होंने ऐसा सौतेला व्यवहार किया कि सदन में उन्होंने ना तो फोर लेन का और ना ही रामटेक गोटेगांव और छिंदवाड़ा सिवनी नैनपुर रेल लाइन का ही मुद्दा उठाया। सांसद निधि बांटने में भी उन्होंने कोई खास दिलचस्पी नहीं ली और इसीलिये कोई भी बड़ा काम जिले में उनके नाम से कहीं नहीं हैं। जबकि उनके क्षेत्र के दोनों विधायक भाजपा के ही थे। लेकिन भाजपायी हल्कों में इस बात को लेकर भारी उत्सुकता हैं कि आखिर इतने समय पहले ऐसा संकेत देकर प्रभात झा आखिर क्या राजनैतिक संदेश देना चाहते है और किसको ं? यह भी चर्चा हैं कि ऐसा संकेत देकर प्रभात झा कहीं गौरी भाऊ को नियंत्रित रखने का प्रयास तो नहीं कर रहें हैं?
लालबत्ती के मामले में भग्यशाली रहा है केवलारी क्षेत्र-जिले का केवलारी विस क्षेत्र बहुत भाग्यशाली क्षेत्र हैं। सन 1967 से लेकर 1990 तक इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व जिले की वरिष्ठ इंका नेत्री कु. विमला वर्मा ने किया। इस दौरान अधिकांश समय तक वे प्रदेश के मंत्रीमंड़ल की तमाम महत्वपूर्ण विभागों की मंत्री रहीं। उसके बाद 1993 में पहला चुनाव जीतने वाले हरवंश सिंह को कांग्रेस सरकार में कबीना मंत्री बनाया गया औद चंद महीने छोड़कर लगभग दस साल तक वे भी मंत्री रहे। केवलारी से वे चार चुनाव जीत चुके हैं। पिछले चुनाव में शिवराजसिंह की दूसरी पारी में भी इस क्षेत्र को विपक्ष का विधायक रहते हुये भी लालबत्ती मिल गयी। हालांकि दस साल तक केबिनेट मंत्री रहने वाले हरवंश सिंह को विधानसभा के उपाध्यक्ष के रूप में राज्य मंत्री का ही दर्जा मिला हैं लेकिन क्षेत्र को तो लाल बत्ती मिल ही गयी थी। यहां यह भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने हरवंश सिंह को मुख्यमंत्री के डंपर कांड़ के लिये बनायी गयी जांच कमेटी का अध्यक्ष बनाया था फिर भी वे सर्वसम्मति से विस उपाध्यक्ष चुन लिये गये थे हालांकि यह पद विपक्ष के पास रहता है फिर भी उनके लिये ये विशेष उपलब्धि ही कही जा सकती हैं। लेकिन इस बार तो अब ऐसा हो गया कि इस क्षेत्र से पिछले चुनाव में भाजपा प्रत्याशी रहे डॉ. ढ़ालसिंह बिसेन को भी मध्यप्रदेश वित्त आयोग का अध्यक्ष बना कर केबिनेट मंत्री के दर्जे के साथ लाल बत्ती मिल गयी है। ऐसे उदाहरण भी इतिहास में बिरले ही मिलते हैं कि एक ही क्षेत्र से चुनाव लड़ने वाले सत्ता पक्ष और विपक्ष के प्रत्याशी एक ही साथ और एक ही समय में एक ही क्षेत्र में लाल बत्ती लेकर धूमें। इसे केवलारी विधानसभा का सौभग्य ही माना जायेगा कि यह क्षेत्र लाल बत्तियों से कभी महरूम नहीं रहा इसलिये इसका विकास भी तेजी से हो रहा हैं।
राम भक्त हनुमान को ज्ञापन सौपेगी गौगपा -जिले के बीमार अस्पताल को भाजपा नेताओं के परिजनों से मुक्त कराने की अनोखी पहल गौगपा ने की हैं। जिला गौगपा के प्रवक्ता विवेक डहेरिया द्वारा जारी विज्ञप्ति के माध्यम से यह समाचार सुर्खियों में आया हैं।पार्टी ने जिला अस्पताल को खुद गंभीर रूप से बीमार बताया हैं। पार्टी ने यह भी कहा है कि जिले के बीमार लोगों को ठीक करने की जवाबदारी जिले के भाजपा नेताओं के परिजनों के हवाले हैं। सरकार कोई सुनवायी करने को तैयार नहीं हैं। भाजपा को उसी तर्ज पर जवाब देते हुये गौगपा ने एक अनोखी पहल की हैं। राम नाम जप कर सत्ता के पायदानों पर पहुंचने वाली भाजपा को सबक सिखाने के लिये गौगपा ने नयाब तरीका खोजा है। उन्होंने बीमार अस्पताल को भाजपा नेताओं के परिजनों से मुक्त कराने के लिये आंदोलन की घोषणा की है वह कम रोचक नहीं हैं। पार्टी पहले पूजन पाठ करेगी फिर ज्ञापन सौंगी। ज्ञापन भी किसी प्रशासनिक अधिकारी को नहीं वरन कथित राम भक्तों की सरकार को अपनी बात राम भक्त हनुमान के माध्यम से भेजेगी। गौगपा हनुमान जी को ज्ञापन देकर यह उम्मीद करेगी कि शायद वे ही इस राम भक्त सरकार को ऐसी सदबुद्धि दे कि जनता को राहत मिल सके। अब यह तो वक्त ही बतायेगा कि गौगपा की यह पहल भी लोगों को राहत दिला पायेगी या नहीं? हालांकि इस आंदोलन की अभी कोई तारीख तय नहीं हैं कि यह कब होगा?
सपा की सक्रियता चर्चिित हुयी सियासी हल्कों में-उत्तर प्रदेश में सपा की सरकार बनने के बाद जिले में भी सपा की गतिविधियां बढ़ गयीं हैं। सपा की सक्रियता फिलहाल नगरीय क्षेत्र में अधिक दिखायी दे रही हैं और उन्होंने नपा को अपना लक्ष्य बनाया हुआ हैं। उनके बयान आजकल अक्सर जारी होते रहते हैं। अभी हाल ही में सपा के जिला महासचिव याहया कुरैशी ने नगरीय क्षेत्र में हस्ताक्षर अभियान चलाया हुआ हैं। सपा ने बढ़ी हुयी जलकर की दरें वापस करने हेतु भी मांग की है। सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव द्वारा प्रदेश के एक मुस्लिम नेता को यू.पी. से राज्यसभा में भेजे जाने से काफी उत्साह का माहौल दिख रहा हैं। उन्हें प्रदेश में विधानसभा एवं लोकसभा चुनावों के लिये माकूल माहोल की उम्मीद नजर आने लगी हैं। सपा के इस उत्साह से भाजपा का एक वर्ग भी उत्साहित है। ऐसे नेताओं का मानना हैं कि यू.पी. की तर्ज पर यदि सपा मुस्लिम वर्ग को अपनी ओर आर्कषित कर लेती हैंतो भाजपा को तीसरी पारी खेलने में आसानी हो सकती हैं।कुरेशी ने भी कांग्रेस द्वारा विद्युत दरों की वृद्धि के विरोध में किये गये आंदोलन पर अपनी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये कहा कि काँग्रेस पार्टी को इस तरह के विरोध का कोई नैतिक अधिकार नहींहै, क्योंकि काँग्रेस की तत्कालीन सरकार ने ही यह जनघाती विद्युत कानून एवं नीति बनाई थीजिसका अनुसरण अब भाजपा सरकार कर रही है और जिससे प्रदेश का आम आदमी परेशान हो रहा है। अब इस राजनैतिक समीकरण का कब,कितना और कैसा असर पड़ेगा? यह तो वक्त ही बतायेगा। “मुसाफिर”
साप. दर्पण झूठ ना बोले से साभार
काज़मी और अंकुरित होता टीम अन्ना भगवा कनेक्शन
शायद या वास्तव में, (वैसे तो राम ही जाने) टीम अन्ना हेड श्री अन्ना हजारे बहुत ही इमानदार है, लेकिन पलटी मारने में एक्सपर्ट है. किसी भी कार्यक्रम को अधूरा बीच में छोड़ कर भागने में भी माहिर हैं, चाहे उनकी फौज की नौकरी हो, या आत्म हत्या की कोशिश, या फिर समय से पहले अनशन ख़त्म, या फिर पच्चीस अप्रैल को रालेगन जाने का कार्यक्रम ,आदि आदि जिन लोगों से घिरे है उनकी ईमानदारी, तो सभी मीडिया चनेल्स जग जाहिर कर चुके है. तात्कालिक मुफ्ती शमून काज़मी का किस्सा भी ये ही बयां करता है. अरविन्द केजरीवाल की अपराधबोध ग्रसित भाषा, उनके शब्दों का प्रयोग, उनके चेहरे की भाव, प्रशांत भूषण की काज़मी के रेकॉर्डिंग को फ़ोन से उड़ाने की कहानी, श्री अग्निवेश को बेईज्ज़त कर के निकालना, ओर भी बहुत कुछ ... आदि आदि क्या केवल अन्ना हजारे एवम उनकी टीम की पांच सदस्य ही इस पुरे एक सो बीस करोड़ की भारतवर्ष में इमानदार हैं. बाकि पूरा भारत बेईमान है. अन्ना टीम संसद के सात सौ से अधिक सांसदों की कार्यवाही की वीडिओ रेकॉर्डिंग करने की सलाह देती है. ओर अपने एक छोटे से वीडिओ क्लिप के लिए एक जिम्मेदार भारतीय मुस्लिम को जो की अन्ना का दायाँ हाथ कहा जाता था, निकाल देती है. ऐसा क्या रिकॉर्ड कर डाला काज़मी ने या फिर टीम अन्ना , अन्ना की अगवाई में और भा ज पा अवम भगवा परिवार की इशारे पर, काज़मी को निकालने का मौका ढूँढ रही थी, टीम अन्ना में वकील, पुलिस ऑफिसर, एवं भारतीय संविधान के आलाह जानकार है, वे किसी सबूत को मिटा कर काज़मी पर बेबुनियाद आरोप लगा कर कौन सा नया कानून संशोधन करवाना चाहते हैं. क्या अब वे यह दबाव डालने के लिए जंतर मंतर पर बैठेंगे, की पहले सबूत मिटाओ फिर आरोप लगाओ कानून पारित करो, इस सन्दर्भ में तो विकास यादव, और अरुशी केस में भी उन लोगों ने सबूत मिटा कर कुछ गलत नहीं किया..........अन्ना टीम के भगवा कनेक्शन की ट्यूब लाइट , केवल मुस्लिमों को दूर रख कर ही जल सकती है. इसका दूसरा तार बाबा रामदेव की मीटिंग से भी जुदा लगता है,,, आज अन्ना ओर अन्ना टीम ने एक नहीं दो पलटी मारी हैं. दूसरी बाबा रामदेव पर.......अरे इस पढ़े लिखे सिविल सोसायटी की टेलीविजन पर थूका फजीहत से तो हम भ्रष्ट ही ठीक है..... कम से कम मुस्लिम भाईयों के साथ तो रह पाएंगे. ओर कहीं ये अन्ना भरष्टाचार विरोधी मुहीम भी तो अपनी इस इमानदार टीम के हाथों सौंप कर तो नहीं चल देंगे....के व्यक्ति रालेगन के वातावरण में इमानदार हो सकता है, लेकिन अनेकता में एकता के इस देश में और भी बातों को ध्यान में रखना पड़ता है. सबसे उपर संविधान है..................जिसे टीम अन्ना के बयान सिरे से ख़ारिज करते है....
13 साल की लड़की का माँ बनना
माँ बनना किसी के लिये भी खुशी की बात हो सकता है, लेकिन उसके लिये यह ऐसा जख्म है जिसकी टीस उसे जिंदगी भर रहेगी। उसका गुनाह शायद इतना भर रहा कि वह उन गरीब की बेटी थी। जिनके बारे में कुछ नहीं जानती। दूसरों के टुकड़ों पर किसी तरह जिंदगी पलती रही। 13 साल की कच्ची उम्र में एक इंसानरूपी भेड़िये की हवस का शिकार होकर वह मासूम बिन ब्याही माँ बन गई। बिस्तर पर पड़ी रानी बदला हुआ नाम अब स्कूल जाना छोड़ देगी। खुद खेलने की उम्र में वह अपने बच्चे की परवरिश करेगी। कथित सभ्य समाज की यह वह नंगी हकीकत है, जिसे देखना-सुनना मानवीय संवेदनाओं को झकझोरने वाला है। कानून के पहरेदारों को शिकायत का इंतजार है, तो ऐसे संगठनों की कमी नहीं जो अब ढिंढोरा पीटकर अपनी मौजूदगी दर्ज करायेंगे। कुंवारी माँ इस काबिल भी नहीं कि ऐसी चुनौती दे सके जिससे आरोपी को सजा मिले जाये।
रांची की एक झोपड़ी में होटल चलाने वाले दंपत्ति को रानी दो साल की उम्र में सड़क पर मिली। दंपत्ति ने उसे पाला ओर अपने साथ ही काम पर लगा लिया। रानी 13 साल की हो गई। एक कच्ची उम्र में लोग उसे गलत निगाह देखते थे। रानी का पेट बढ़ना शुरू हुआ, तो दंपत्ति ने उसका निकलना बंद कर दिया।अस्पताल ले जाया गया जहां उसने एक बेटी को जन्म दिया। उसकी कोख में अंगारे भरने वाला एक गार्ड था। वह अक्सर होटल पर आता था ओर रानी को अकेले पाकर खान की चीजों का लालच देकर उसके साथ गलत हरकते करता था। होटल चलाने वाला दंपत्ति चाहता है कि वह अब रानी का विवाह गार्ड के साथ ही कर देंगे उन्हें शायद एक बच्ची के मां बनने से लेकर कम उम्र में शादी के बीच कानून के मायने नहीं पता। यह मामला पुरूषों की मानसिकता को दर्शाने के लिये भी काफी है कि लड़कियों को किन नजरों से देखा जाता है। यौन शोषण के अधिकांश मामलों में अपना का ही हाथ होता है। कन्या उद्वार के नाम पर कई सरकारी व गैर सरकारी संगठन काम करते हैं, लेकिन क्या वाकई उद्वार हो पाता है? उसके असल माता पिता भी कोढ़ग्रस्त इंसानियत के पुतले हैं जिन्होंने अपनी बेटी को सड़क पर छोड़ दिया।
22.4.12
अन्ना और बाबा की मजबूर एकजुटता कब तक कायम रहेगी?
कैसा अजब संयोग है कि आज जब कि देश में गठबंधन सरकारों का दौर चल रहा है, आंदोलन भी गठबंधन से चलाने की नौबत आ गई है। सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे और बाबा रामदेव सरकार से अलग-अलग लड़ कर देख चुके, मगर जब कामयाबी हाथ लगती नजर आई तो दोनों ने गठबंधन कर लिया है। जाहिर तौर पर यह गठबंधन वैसा ही है, जैसा कि सरकार चलाने के लिए कभी एनडीए को तो कभी यूपीए का काम करता है। मजबूरी का गठबंधन। गठबंधन की मजबूरी पूरा देश देख चुका है, जिसके चलते मनमोहन सिंह पर मजबूरतम प्रधानमंत्री होने का ठप्पा लग चुका है। अब दो अलग-अलग आंदोलनों के प्रणेता एक-दूसरे के पूरक बन कर लडऩे को तैयार हुए हैं तो यह स्वाभाविक है कि दोनों को संयुक्त एजेंडे के खातिर अपने-अपने एजेंडे के साथ-साथ कुछ मौलिक बातों के साथ समझौते करने होंगे। यह गठबंधन कितनी दूर चलेगा, पूत के पांव पालने में ही नजर आने लगे हैं। टीम अन्ना के कुछ सदस्यों को बाबा रामदेव के तौर-तरीके पर ऐतराज है, जो कि उन्होंने जाहिर भी कर दिए हैं।
ऐसा नहीं है कि अन्ना और बाबा के एकजुट होने की बातें पहले नहीं हुई हों, मगर तब पूरी तरह से गैर राजनीतिक कहाने वाली टीम अन्ना को संघ व भाजपा की छाप लगे बाबा रामदेव के आंदोलन से परहेज करना पड़ रहा था। सच तो ये है कि दोनों ही भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू किए गए आंदोलन में नंबर वन रहने की होड़ में लगे हुए थे। बाबा को योग बेच कर कमाए हुए धन और अपने भक्तों व राष्ट्रव्यापी संगठन का गुमान था तो अन्ना को महात्मा गांधी के समकक्ष प्रोजेक्ट कर दिए जाने व कुछ प्रखर बुद्धिजीवियों के साथ होने का दंभ था। राष्ट्रीय क्षितिज पर यकायक उभरे दोनों ही दिग्गजों को दुर्भाग्य से राष्ट्रीय स्तर का आंदोलन करने का कोई पूर्व अनुभव नहीं था। बावजूद इसके वे अकेले दम पर ही जीत हासिल करने के दंभ से भरे हुए थे। जहां तक बाबा का सवाल है, उन्हें लगता था कि उनके शिविरों में आने वाले उनके लाखों भक्त सरकार का तख्ता पलटने की ताकत रखते हैं, जबकि सच्चाई ये थी कि भीतर ही भीतर हिंदूवादी ताकतें अपने मकसद से उनका साथ दे रही थीं। खुद बाबा राजनीतिक आंदोलन के मामले में कोरे थे। यही वजह रही कि सरकार की चालों के आगे टिक नहीं पाए और स्त्री वेष में भागने की नौबत आ गई। उधर अन्ना को हालांकि महाराष्ट्र में कई दिग्गज मंत्रियों को घर बैठाने का अनुभव तो था, मगर राष्ट्रीय स्तर पर पहली बार हाथ आजमाया। यह अन्ना का सौभाग्य ही रहा कि भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता ने उनको सिर माथे पर बैठाया। एक बारगी तो ऐसा लगा कि इस दूसरे गांधी की आंधी से वाकई दूसरी आजादी के दर्शन होंगे। मीडिया ने भी इतना चढ़ाया कि टीम अन्ना बौराने लगी। जहां तक कांग्रेसनीत सरकार का सवाल है तो, कोई भी सरकार हो, आंदोलन से निपटने में साम, दाम, दंड, भेद अपनाती है, उसने वही किया। सरकार ने अपना लोकपाल लोकसभा में पास करवा कर उसे राज्यसभा में फंसा दिया, उससे अन्ना आंदोलन की गाडी भी गेर में आ गई। इसे भले ही अन्ना को धोखा देना करार दिया जाए, मगर यह तो तय हो गया न कि अन्ना धोखा खा गए। मुंबई में फ्लाप शो के बाद तो टीम अन्ना को समझ में नहीं आ रहा था कि अब किया क्या जाए। हालांकि उसके लिए कुछ हद तक टीम अन्ना का बड़बोलापन भी जिम्मेदार है।
कुल मिला कर बाबा व अन्ना, दोनों को समझ में आ गया कि सरकार बहुत बड़ी चीज होती है और उसे परास्त करना इतना भी आसान नहीं है, जितना कि वे समझ रहे थे। चंद दिन के जन उभार के कारण दोनों भले ही दावा ये कर रहे थे कि वे देश की एक सौ बीस करोड़ जनता के प्रतिनिधि हैं, मगर उन्हें यह भी समझ में आ गया कि धरातल का सच कुछ और है। लब्बोलुआब दोनों यह साफ समझ में आ गया कि कुटिल बुद्धि से सरकार चलाने वालों से मुकाबला करना है तो एक मंच पर आना होगा। एक मंच पर आने की मजबूरी की और वजहें भी हैं। बाबा के पास भक्तों की ताकत व संगठनात्मक ढांचा तो है, मगर अब उनका चेहरा उतना पाक-साफ नहीं रहा, जिसके अकेले बूते पर जंग जीती जाए। उधर टीम अन्ना के पास अन्ना जैसा ब्रह्मास्त्र तो है, मगर संगठन नाम की कोई चीज नहीं। आपने बचपन में एक कहानी सुनी होगी, एक नेत्रहीन व एक विकलांग की। एक देख नहीं सकता था, दूसरा चल नहीं सकता था। दोनों ही अपने-अपने बूते गन्तव्य स्थान तक नहीं पहुुंच सकते थे, सो दोनों ने दोस्ती कर ली। विकलांग नेत्रहीन के कंधों पर सवार हो गया। फिर जैसा-जैसा विकलांग बताता गया, अंधा चलता गया। वे गन्तव्य तक पहुंच गए। लगभग वैसी ही दोस्ती है अन्ना व बाबा की, मगर वे पहुंचेंगे या नहीं, कुछ कहा नहीं जा सकता। वजह ये है कि दोनों का मिजाज अलग-अलग है। अन्ना ठहरे भोले-भाले और बाबा चतुर-चालाक। आज भले ही वे साथ-साथ चलने का दावा कर रहे हैं, मगर उनके साथ जो लोग हैं, उनमें भी तालमेल होगा, यह कहना कठिन है। दरअसल पूत के पग पालने में ही दिखाई दे रहे हैं। शुरुआत ही विवाद के साथ हो रही है। टीम अन्ना बाबा के रुख से इस कारण नाराज है क्योंकि वह मानती है कि अन्ना को भरोसे में लिए बिना रामदेव आगे बढ़ रहे हैं। असल में रामदेव और अन्ना हजारे की गुडगांव में हुई मुलाकात के बाद प्रेस कान्फ्रेंस हुई। टीम अन्ना का ऐतराज है कि उसे इसके बारे में पहले से नहीं बताया गया था। अन्ना ने मुद्दों पर बात करने के लिए मुलाकात की, लेकिन बैठक के बाद उन्हें जबरदस्ती मीडिया के सामने लाया गया। हमें इस पर गहरी आपत्ति है। टीम अन्ना के एक सदस्य ने कहा कि रामदेव खुद को ही सबसे महत्वपूर्ण दिखाना चाहते हैं। टीम अन्ना में कुछ लोगों को रामदेव को भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में शामिल करने पर भी आपत्ति है। इनका कहना है कि रामदेव पर पतंजलि योग पीठ समेत कई संस्थानों को लेकर कई आरोप लगे हैं। इसलिए ऐसा करना सही नहीं होगा।
केवल बाबा को लेकर ही नहीं, टीम में अन्य कई कारणों से अंदर भी अंतर्विरोध है। इसी के चलते ताजा घटनाक्रम में मुफ्ती शमीम काजमी को जासूसी करने के आरोप में टीम से निकाल दिया गया। काजमी ने टीम अन्ना के प्रमुख सदस्य अरविंद केजरीवाल पर मुंबई का अनशन नाकाम करने सहित मनमानी करने के आरोप लगाए। बकौल काजमी टीम अन्ना के कुछ सदस्य हिमाचल प्रदेश से चुनाव लडऩा चाहते हैं, जिस कारण टीम में मतभेद है। काजमी ने यह भी कहा कि टीम अन्ना मुसलमानों के साथ भेदभाव करती है। शमीम काजमी ने कहा कि अन्ना हजारे का भी इस टीम के साथ अब दम घुट रहा है और वो भी बहुत जल्द ही इससे अलग हो जाएंगे।
कुल मिला कर एक ओर टीम अन्ना को घाट-घाट के पानी पिये हुओं में तालमेल बैठाना है तो दूसरी ओर बाबा रामदेव के साथ तालमेल बनाए रखना है, जो कि आसान काम नहीं है। एक बड़ी कठिनाई ये है कि बाबा के साथ हिंदूवादी ताकतें हैं, जब कि अन्ना के साथ वामपंथी विचारधारा के लोग ज्यादा हैं। इनके बीच का गठजोड़ कितना चलेगा, इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com
ऐसा नहीं है कि अन्ना और बाबा के एकजुट होने की बातें पहले नहीं हुई हों, मगर तब पूरी तरह से गैर राजनीतिक कहाने वाली टीम अन्ना को संघ व भाजपा की छाप लगे बाबा रामदेव के आंदोलन से परहेज करना पड़ रहा था। सच तो ये है कि दोनों ही भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू किए गए आंदोलन में नंबर वन रहने की होड़ में लगे हुए थे। बाबा को योग बेच कर कमाए हुए धन और अपने भक्तों व राष्ट्रव्यापी संगठन का गुमान था तो अन्ना को महात्मा गांधी के समकक्ष प्रोजेक्ट कर दिए जाने व कुछ प्रखर बुद्धिजीवियों के साथ होने का दंभ था। राष्ट्रीय क्षितिज पर यकायक उभरे दोनों ही दिग्गजों को दुर्भाग्य से राष्ट्रीय स्तर का आंदोलन करने का कोई पूर्व अनुभव नहीं था। बावजूद इसके वे अकेले दम पर ही जीत हासिल करने के दंभ से भरे हुए थे। जहां तक बाबा का सवाल है, उन्हें लगता था कि उनके शिविरों में आने वाले उनके लाखों भक्त सरकार का तख्ता पलटने की ताकत रखते हैं, जबकि सच्चाई ये थी कि भीतर ही भीतर हिंदूवादी ताकतें अपने मकसद से उनका साथ दे रही थीं। खुद बाबा राजनीतिक आंदोलन के मामले में कोरे थे। यही वजह रही कि सरकार की चालों के आगे टिक नहीं पाए और स्त्री वेष में भागने की नौबत आ गई। उधर अन्ना को हालांकि महाराष्ट्र में कई दिग्गज मंत्रियों को घर बैठाने का अनुभव तो था, मगर राष्ट्रीय स्तर पर पहली बार हाथ आजमाया। यह अन्ना का सौभाग्य ही रहा कि भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता ने उनको सिर माथे पर बैठाया। एक बारगी तो ऐसा लगा कि इस दूसरे गांधी की आंधी से वाकई दूसरी आजादी के दर्शन होंगे। मीडिया ने भी इतना चढ़ाया कि टीम अन्ना बौराने लगी। जहां तक कांग्रेसनीत सरकार का सवाल है तो, कोई भी सरकार हो, आंदोलन से निपटने में साम, दाम, दंड, भेद अपनाती है, उसने वही किया। सरकार ने अपना लोकपाल लोकसभा में पास करवा कर उसे राज्यसभा में फंसा दिया, उससे अन्ना आंदोलन की गाडी भी गेर में आ गई। इसे भले ही अन्ना को धोखा देना करार दिया जाए, मगर यह तो तय हो गया न कि अन्ना धोखा खा गए। मुंबई में फ्लाप शो के बाद तो टीम अन्ना को समझ में नहीं आ रहा था कि अब किया क्या जाए। हालांकि उसके लिए कुछ हद तक टीम अन्ना का बड़बोलापन भी जिम्मेदार है।
कुल मिला कर बाबा व अन्ना, दोनों को समझ में आ गया कि सरकार बहुत बड़ी चीज होती है और उसे परास्त करना इतना भी आसान नहीं है, जितना कि वे समझ रहे थे। चंद दिन के जन उभार के कारण दोनों भले ही दावा ये कर रहे थे कि वे देश की एक सौ बीस करोड़ जनता के प्रतिनिधि हैं, मगर उन्हें यह भी समझ में आ गया कि धरातल का सच कुछ और है। लब्बोलुआब दोनों यह साफ समझ में आ गया कि कुटिल बुद्धि से सरकार चलाने वालों से मुकाबला करना है तो एक मंच पर आना होगा। एक मंच पर आने की मजबूरी की और वजहें भी हैं। बाबा के पास भक्तों की ताकत व संगठनात्मक ढांचा तो है, मगर अब उनका चेहरा उतना पाक-साफ नहीं रहा, जिसके अकेले बूते पर जंग जीती जाए। उधर टीम अन्ना के पास अन्ना जैसा ब्रह्मास्त्र तो है, मगर संगठन नाम की कोई चीज नहीं। आपने बचपन में एक कहानी सुनी होगी, एक नेत्रहीन व एक विकलांग की। एक देख नहीं सकता था, दूसरा चल नहीं सकता था। दोनों ही अपने-अपने बूते गन्तव्य स्थान तक नहीं पहुुंच सकते थे, सो दोनों ने दोस्ती कर ली। विकलांग नेत्रहीन के कंधों पर सवार हो गया। फिर जैसा-जैसा विकलांग बताता गया, अंधा चलता गया। वे गन्तव्य तक पहुंच गए। लगभग वैसी ही दोस्ती है अन्ना व बाबा की, मगर वे पहुंचेंगे या नहीं, कुछ कहा नहीं जा सकता। वजह ये है कि दोनों का मिजाज अलग-अलग है। अन्ना ठहरे भोले-भाले और बाबा चतुर-चालाक। आज भले ही वे साथ-साथ चलने का दावा कर रहे हैं, मगर उनके साथ जो लोग हैं, उनमें भी तालमेल होगा, यह कहना कठिन है। दरअसल पूत के पग पालने में ही दिखाई दे रहे हैं। शुरुआत ही विवाद के साथ हो रही है। टीम अन्ना बाबा के रुख से इस कारण नाराज है क्योंकि वह मानती है कि अन्ना को भरोसे में लिए बिना रामदेव आगे बढ़ रहे हैं। असल में रामदेव और अन्ना हजारे की गुडगांव में हुई मुलाकात के बाद प्रेस कान्फ्रेंस हुई। टीम अन्ना का ऐतराज है कि उसे इसके बारे में पहले से नहीं बताया गया था। अन्ना ने मुद्दों पर बात करने के लिए मुलाकात की, लेकिन बैठक के बाद उन्हें जबरदस्ती मीडिया के सामने लाया गया। हमें इस पर गहरी आपत्ति है। टीम अन्ना के एक सदस्य ने कहा कि रामदेव खुद को ही सबसे महत्वपूर्ण दिखाना चाहते हैं। टीम अन्ना में कुछ लोगों को रामदेव को भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में शामिल करने पर भी आपत्ति है। इनका कहना है कि रामदेव पर पतंजलि योग पीठ समेत कई संस्थानों को लेकर कई आरोप लगे हैं। इसलिए ऐसा करना सही नहीं होगा।
केवल बाबा को लेकर ही नहीं, टीम में अन्य कई कारणों से अंदर भी अंतर्विरोध है। इसी के चलते ताजा घटनाक्रम में मुफ्ती शमीम काजमी को जासूसी करने के आरोप में टीम से निकाल दिया गया। काजमी ने टीम अन्ना के प्रमुख सदस्य अरविंद केजरीवाल पर मुंबई का अनशन नाकाम करने सहित मनमानी करने के आरोप लगाए। बकौल काजमी टीम अन्ना के कुछ सदस्य हिमाचल प्रदेश से चुनाव लडऩा चाहते हैं, जिस कारण टीम में मतभेद है। काजमी ने यह भी कहा कि टीम अन्ना मुसलमानों के साथ भेदभाव करती है। शमीम काजमी ने कहा कि अन्ना हजारे का भी इस टीम के साथ अब दम घुट रहा है और वो भी बहुत जल्द ही इससे अलग हो जाएंगे।
कुल मिला कर एक ओर टीम अन्ना को घाट-घाट के पानी पिये हुओं में तालमेल बैठाना है तो दूसरी ओर बाबा रामदेव के साथ तालमेल बनाए रखना है, जो कि आसान काम नहीं है। एक बड़ी कठिनाई ये है कि बाबा के साथ हिंदूवादी ताकतें हैं, जब कि अन्ना के साथ वामपंथी विचारधारा के लोग ज्यादा हैं। इनके बीच का गठजोड़ कितना चलेगा, इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com
एमपी नहीं मुख्यमंत्री कहो...
एमपी नहीं मुख्यमंत्री कहो...
विजय बहुगुणा अब एमपी नहीं है मुख्यमंत्री
बन गए हैं...खबरदार जो उनको एमपी बोला...उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनने के बाद
पहली बार 20 अप्रेल को मुख्यमंत्री आवास पर बहुगुणा का जनता दरबार लगा...लोग अपनी
फरियाद लेकर मुख्यमंत्री के पास पहुंचे थे...कुछ लोग ऐसे भी थे...जो बहुगुणा के एमपी
रहते हुए की उनकी चिट्ठी लेकर पहुंचे थे...बहुगुणा साहब ने जब वो चिट्ठी देखी तो
चुप रहे बिना नहीं रह सके...बोले अब मैं मुख्यमंत्री बन गया हूं...एमपी नहीं रहा।
बेशक कांग्रेस में चली सीएम की कुर्सी की जंग में बहुगुणा की विजय हुई...लेकिन
एमपी साहब शायद ये भूल गए कि अभी तो विधायकी का चुनाव लड़ना है...और जैसे हालात
प्रदेश कांग्रेस में है...उससे तो लगता नहीं कि बहुगुणा साहब आसानी से इस
अग्निपरीक्षा को पास कर पाएंगे। बहरहाल हम बात कर रहे थे बहुगुणा के पहले जनता
दरबार की...ये तो जनता दरबार का सिर्फ एक किस्सा था...मुख्यमंत्री का जनता दरबार
था...वो भी प्रदेश के नए नए सीएम का तो लोगों को भी बड़ी उम्मीदें थी...हर कोई
जनता दरबार में अपनी अर्जी इस उम्मीद से लेकर आया था कि शायद सीएम साहब उनकी
तकलीफें कुछ कम करेंगे...लेकिन जनता दरबार में जनता को दो घंटे इंतजार कराने के
बाद जब बहुगुणा पहुंचे तो बड़ी जल्दी में दिखाई दिए...मानो जनता दरबार बुलाकर सीएम
साहब ने कोई बड़ी गलती कर दी हो। कुछ जरूरतमंद नौकरी की आस में पहुंचे थे...तो कुछ
आर्थिक सहायता की उम्मीद लेकर...लेकिन कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ का नारा
देने वाले पार्टी से आने वाले बहुगुणा के पास न तो जरूरतमंदों के लिए नौकरी थी औऱ
न ही आर्थिक सहायता देने के लिए कोई बजट। ये बात शायद आपको हज़म न हो लेकिन ये सौ
प्रतिशत सच है...पौड़ी का रहने वाला रमेश सेलाकुइ में एक फैक्ट्री में काम के
दौरान अपना एक हाथ गंवा बैठा था...जनता दरबार में बड़ी आस के साथ पहुंचे रमेश ने
जब बहुगुणा को नौकरी की अर्जी दी तो बहुगुणा ने बिना उसका दर्द समझे...बिना उसकी
परेशानी समझे दरखास्त लौटा दी...अरे बहुगुणा साहब नहीं देते नौकरी न सही...कम से
कम उस गरीब का दर्द तो बांट लेते...वह तो आपको अपना मुख्यमंत्री समझ कर ही जनता
दरबार में पहुंचा था...लेकिन आप अब एमपी नहीं रहे न...अब तो आप सीएम बन गए
हैं...सीएम...अब आपको क्या मतलब किसी के दर्द से। लालढांग से आए एक औऱ शख्स की
आर्थिक सहायता की अर्जी पर बहुगुणा साहब कहने से नहीं हिचकिचाए...इतना ही मिल सकता
है...ज्यादा बज़ट नहीं होता हमारे पास...हां विधायकों के वेतन भत्ते बढ़ाने की बात
जब आती है...तब बजट की कमी नहीं होती सरकार के पास...नहीं है तो बस जरूरतमंदों की
सहायता के लिए बजट। कुछ इसी तरह बहुगुणा साहब ने आधे घंटे में करीब डेढ़ सौ
फरियादियों को निपटा दिया...यानि कि समय 30 मिनट औऱ फरियादी 150...एक फरियादी को
दिए 12 सेकेंड...माना आपका वक्त कीमती है...लेकिन कोई 12 किलोमीटर से आया था तो
कोई 120 किलोमीटर दूर से...कुछ तो चार सौ से पांच सौ किलोमीटर दूर से पहुंचे थे...लेकिन
उन्हें नसीब हुए आपके सिर्फ 12 सेकेंड। किसी की मदद न करते न सही कम से कम
इत्मिनान से उनकी समस्या ही सुन लेते शायद उनके चेहरे पर सकून तो देखने को
मिलता...लेकिन जिस जल्दी में आप आए औऱ गए...उससे तो हर कोई आपके जनाने के बाद बस
यही कहता नजर आया...बहुगुणा साहब सही कहा आपने अब आप एमपी नहीं रहे अब आप वाकई में
मुख्यमंत्री बन गए हो। यही तो आप सुनना चाह रहे थे न कि अब मैं मुख्यमंत्री बन गया
हूं...आपने तो एहसास भी करा दिया लोगों को...उनकी गलतफहमी दूर कर दी।
दीपक तिवारी
पश्चिम बंगाल - कार्टून पर बवाल
शंकर जालान
बीते सप्ताह पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में एक कार्टून न केवल चर्चा का विषय बना, बल्कि इस कार्टून पर काफी बवाल भी मचा। यहां तक कि इंटरनेट पर कार्टून जारी करने वाले यादवपुर विश्वविद्यालय में पढ़ाने वाले रसायन के प्रोफेसर अंबिकेश महापात्र और उनके पड़ोसी सुब्रत सेनगुप्ता को गिरफ्तार कर लिया गया। हालांकि अदालत से दोनों को जमानत मिल गई, लेकिन इस घटनाक्रम ने जहां लोगों को यह बता दिया कि सत्तासीन पार्टी तृणमूल कांग्रेस कुछ भी बोलने या लिखने वालों के ऐसा ही किया जाएगा। वहीं, तृणमूल कांग्रेस के सहयोगी पार्टी कांग्रेस के साथ-साथ मुख्य विपक्षी दल माकपा के आलावा भाजपा ने कार्टून मसले पर प्रोफेसर व उनके पड़ोसी की गिरफ्तार का सत्ता का गलत उपयोग बताया।
आपको बताते चले की पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी, रेल मंत्री मुकुल राय और पूर्व रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी पर केंद्रित कार्टून इंटरनेट पर जारी किया गया था, जिसे तृणमूल कांग्रेस के कुछ नेता अपमानजनक कार्टून की संज्ञा दे रहे हैं। सूत्रों की माने तो तृणमूल कांग्रेस की सह पर ही पुलिस ने प्रोफेसर और उनके पड़ोसी को गिरफ्तार किया। हालांकि कोलकाता पुलिस के उपायुक्त (दक्षिण) सुजय चंदा ने कहना है कि प्रोफेसर को कार्टून के लिए नहीं बल्कि कुछ प्रतिष्ठित व्यक्तियों के बारे में अपमानजनक बातें इंटरनेट पर डालने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। है। शुक्रवार ने जब उनसे प्रतिष्ठित व्यक्तियों का नाम जानना चाहा, तो उन्होंने नामों का खुलासा करने से इंकार कर दिया।
इस बारे में जानकारों लोगों का कहना है कि कार्टून में इस तरह का कुछ नहीं था, जिससे तृणमूल कांग्रेस को अपमान बोध हो और प्रोफेसर को गिरफ्तार करना पड़े। इन लोगों ने कहा कि तमाम अखबारों में कार्टून छपते हैं, कुछ अखबारों में तो कार्टून के एक विशेष स्थान तय होता है। कार्टून बनाने वाले कई बार यह दिखाने की कोशिश करते हैं, कि इनदिनों देश, दुनिया, समाज, फिल्म या फिर राजनीति में क्या हो रहा है। इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता है कार्टून जिस पर बना हो उसे नागवार लगता हो, लेकिन इसे भी झुठलाया नहीं जा सकता कि कार्टून देखने व पढ़ने वाले कार्टूस्टि की सोच की तारीफ जरूर करते हैं। ध्यान नहीं आता कि कार्टून को लेकर किसी देश, समाज, पार्टी, नेता या फिर व्यक्ति ने इतना बवाल मचाया हो और कार्टून बनाने या जारी करते वाले को इसकी कीमत गिरफ्तार होकर चुकानी पड़ी हो।
पुलिस का कहना है कि प्रोफेसर के खिलाफ भारतीय दंड संहिता और सूचना तकनीक अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है। उन्हें साइबर क्राइम अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया था। तृणमूल कांग्रेस के समर्थक भले ही पुलिस कार्रवाई को जायज ठहरा रहे हो और यह कहते फिर रहे हो कि तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी और पार्टी के अन्य नेताओं से संबंधित अपमानजनक कार्टून बनाने तृणमूल सरकार की नीतियों का मखौल उड़ाने वाले का भविष्य में भी यही हश्र होगा। लेकिन उसकी सहयोगी पार्टी कांग्रेस ने ममता के इस कदम की निंदा की है। कांग्रेस सांसद मौसम बेनजीर नूर का कहना है कि यह लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश सचिव राहुल सिन्हा ने सरकार की इस कार्रवाई को सत्ता का दुरुपयोग करार दिया है। राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता और राज्य के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री सूर्यकांत मिश्र इस वाकिए को अत्यंत हास्यास्पद बताया। उन्होंने कहा कि इस घटना से साफ हो जाता है कि सहनशीलता का अभाव है। भापका के राज्य सचिन मंजू कुमार मजुमदार ने कहा कि राज्य सरकार लोगों के लोकतांत्रिक अधिकार का हनन कर रही है।
कांग्रेस, भाजपा, माकपा और भाकपा के नेताओं के बयान को गैर जरूरी बताते हुए राज्य के शहरी विकास मंत्री फिरहाद हाकिम कहते हैं कि इस तरह की किसी गतिविधियों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। परिवहन मंत्री मदन मित्र कहते हैं कि प्रोफेसर ने जो किया वह शिक्षक की गरिमा के खिलाफ है। श्रम मंत्री पूर्णेंदु बसु कहना है कि यह ममता बनर्जी का अपमान कर उनकी छवि पर धूमिल करने का प्रयास किया गया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि माकपा मेरी छवि खराब करने के लिए तरह-तरह के मुद्दे उछाल रही है। माकपा के नेता इसी कोशिश में लगे रहते हैं कि कैसे मुझे फंसाया जा सके और बदनाम किया जा सके।
वहीं, तृणमूल के बागी सांसद कबीर सुमन ने कहा कि उन्होंने कार्टून देखा है, लेकिन वे यह नहीं समझ पा रहे हैं कि यह किस प्रकार साइबर अपराध है। यह हास्य व्यंग्य के रूप में बनाया गया है। अगर आज प्रोफेसर को गिरफ्तार किया गया है तो कौन जानता है कल हमें भी गिरफ्तार किया जा सकता है। सुमन कहते हैं कि मुझे भी वह कार्टून ई-मेल से मिला है। लेकिन उसमें वैसी कोई अपमानजनक बात नजर नहीं आती। ममता के करीबी समझे जाने वाले जाने-माने शिक्षाविद् सुनंद सान्याल ने भी इस घटना की निंदा की है। उन्होंने कहा कि राज्य के लोगों ने इस बदलाव की उम्मीद नहीं की थी। अभिनेता कौशिक सेन ने सवाल किया कि कार्टून बनाने वाले को गिरफ्तार करना कहां का कानून है? यह प्रवृत्ति खतरनाक है। यही सिलसिला जारी रहा तो बाद में हमारे नाटकों पर भी पाबंदी लगा दी जाएगी और घरों पर हमले किए जाएंगे।
दूसरी ओर, प्रोफेसर की गिरफ्तारी के खिलाफ में यादवपुर व प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय में छात्रों व शिक्षकों ने विरोध प्रदर्शन किया और जुलूस निकाला। विश्वविद्यालय के दूसरे प्रोफेसरों का मानना है कि अपनी भावनाओं को व्यक्त करना कोई जुर्म नहीं हैं और इसके लिए किसी को गिरफ्तार करना अनुचित है। यादवपुर विश्वविद्यालय शिक्षक संगठन के अध्यक्ष पार्थ प्रतीम विश्वास ने बताया कि आए दिन अकसर पत्र-पत्रिकाओं में सरकार व मंत्रियों के खिलाफ व्यंगात्मक कोलॉज व लेख प्रकाशित किए जाते हैं पर उनपर कोई कार्रवाई नहीं होती तो फिर इस मामले में प्रोफेसर को किस वजह से गिरफ्तार किया गया। इस घटना कि निंदा करते हुए उन्होंने कहा कि देश में हर व्यक्ति को अपनी बातों को समाज के समक्ष रखने की आजादी है। उन्होंने कहा कि एक तरह लोगों का वाहवाही लूटने के लिए ममता बनर्जी बीमार काटूनिस्ट को देखने अस्पताल जाती हैं और दूसरे ओर कार्टून बनाने वाले की गिरफ्तारी को जायज बता रही हैं। उन्होंने कहा कि शिक्षकों का एक प्रतिनिधिमंडल इस मुद्दे पर राज्यपाल एमके नारायणन से मिलेगा।
मालूम हो कि प्रोफेसर का इंटरनेट पर जारी कार्टून सत्यजीत रे की फिल्म सोनार केल्ला पर आधारित है। उसमेंं कथित तौर पर पूर्व रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी को हटाने के लिए ममता बनर्जी और मुकुल राय को आपस में बातचीत करते हुए दिखाया गया है। ध्यान रहे कि रेल बजट में किराया बढ़ाने के बाद ममता और पार्टी के दबाव में त्रिवेदी को रेल मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था।