31.10.08


मां को एक पत्र-

संजय सेन सागर
तुम मेरे लिए वो सूरज हो जिसका रोशनी में मैं चला हूँ ,माँ तुम मेरे लिए वो धरती हो जिसमें मै पला हूँ। माँ मैं तुम्हारे कदमों के निशां पर चलकर आगे बढ़ा हूँ।माँ मैने देखें है हमारी जरा सी खुशी के लिए आपके गिरते आंसू , हमारी जरा सी ठंडक के लिए आपका गिरता पसीना। माँ तुमने ही बनाया है इस मकां को घर । माँ मैनें आपके आँचल के तले ही मनाई है होली और दीवाली।माँ तुम्हें तो वो याद ही होगा जब तुम बीमार हो जाती थी और अपने इलाज की जगह मुझे खिलौने दिलाती थी । मैं नादान था खुश हो जाता था ।पर तुम्हारे आंसुओं से भीगे तकिये मुझे हर सुबह मिलते थे।माँ तुमने ही सिखाया था ना मुझे हर वक्त सच बोलना फिर मेरी खुशी के लिए क्यों झूठ बोल देती थी तुम।माँ तुम सत्य की वो मूरत हो जिसने झूठ को ख्वाबों में भी हराया है। माँ तुमने ही बनाया है मेरे अस्तित्व को। तुमने ही सिखाया है उंगली थामकर मुझेचलना।तेरे बलिदान और त्याग के कारण ही तुझे भगवान का रूप कहा जाता ,मैने कभी भगवान को नही देखा पर मैं पूरे यकीन के साथ कह सकता हूँ की बह तेरी ही परछाई होगी। आखिर कहां से लाती हो माँ तुम इतना सामर्थ्य और साहस जो सह जाते है हमारी जरा सी मुस्कान के लिए, सारे जहां के दुखों को। माँ मुझे कुछ याद आता है की मुझे जब कोई मंजिल मिल जाती थी , एक पल में ही तुम्हारी पलकें भीग जाती थी और तुम अपने ही गिरे आंसुओं से मेरे लिए नया रास्ता बनाती थी।माँ तुम हरदम मुझको आगे बढ़ाती हो और जब मैं पहुंच जाता हूँ मंजिल पर तो फिर क्यों खुद को पीछे छुपाती हो।तेरे आँचल में एक अजब सा जादू है माँ ,सच जब जब सोता हूँ तेरे आंचल में तो एक नया अहसास सा जगता है जो तेरे आँचल के बारे में हर वक्त यही कहता है कि‘ बिचली चमके या तूफां आयेलोग घरों में छुप जाते हैपर अपनी तो फितरत ऐसी हैकि बिचली चमके या तूफां आयेमाँ के आंचल में छुप जाते है।माँ ये सिर्फ चंद पंक्तियां नही है ये तुम अच्छी तरह समझती हो क्योंकि मै जानता हूँ कि तुमने भी अपनी माँ के आंचल में छुपकर ये अहसास पाया है।माँ जब तुमने मुझको नये कपड़े दिलवाये थे तभी तुमने अपने फटे कपड़े भी सिलवाये थे मैने पूछा था तुमसे की क्यों तुमने फटे कपड़े सिलवाये हैं तो तुमने बड़ी मासूमियत से कहा था की तुम्हारे पिता की आखिरी निशानी है उन्होंने ही खरीदवाये थे। माँ आज समझ आता है मुझे तेरा वो दर्दीला चेहरा जो दबा रहता था मेरी मुस्कान के तले। वो तेरा हर एक झूठ जो होता था सिर्फ मेरी खुशी के लिए।माँ मेरे बचपन की यादों की किताब खुलने लगी है और साथ ही साथ तेरे साथ बिताये हर एक पल की आरजू फिर दिल में पलने लगी है।माँ तुझे नादानी और बचपन में मैंने जितने दुख दिए ,जितने दर्द दिए आज मैं उन सभी के लिए तुम से माफी माँगता हूँ ।और तेरे त्याग एवं बलिदान को नमन करता
हूँ।

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एक बार फ़िर हमारी माँ रक्तरंजित

एक और धमाका, लाल हुई माता,जिम्मेदार कौन ?

एक और धमाका, हमारी धरती रक्तरंजित, इस बार निशाना पूर्वांचल और रक्त रंजित हुआ आसाम। यहां हुए 13 सीरियल ब्लास्टों में कम से कम 66 लोगों की मौत हो गई और दो सौ से अधिक लोग घायल हो गए। सभी विस्फोट कल सुबह 11.30 से 11.40 बजे के बीच हुए। कोकराझाड़ में तीन जगहों पर, गुवाहाटी में पांच जगहों पर और बोंगाईगांव तीन व बरपेटा में दो जगहों में धमाके १० मिनट के दरम्यान हो गए। पूरा आसाम खून से लाल हो गया। भइयादूज को लेकर बाजार में काफ़ी भीड़ भाड़ थी, और नुक्सान आतंकियों के अनुरूप रहा।
पहले सिमी फ़िर बजरंग दल, उसके बाद मनसे यानी की धमाके और विस्फोटों का ठीकडा फोड़ने के लिए सरकार के पास लम्बी फेरहिस्त है और इस बार बारी किसकी जबकी तेज तर्रार उल्फा ने मना कर दिया अपनी भागीदारी से। सरकार इस धमाके के जिम्मेदारी का ठीकडा किसके सर फोडेगी?
पिछले कई महीनो से हो रही आतंकी घटना का नुकसान सिर्फ़ आम आदमियों पर होता है, हजारो की तादाद में आम लोग मारे गए। नुकसान सिर्फ़ और सिर्फ़ हमारा, जवाबदेह सिर्फ़ और सिर्फ़ निकम्मी सरकार और उसके बेकार हो चुके तंत्र। गोधरा होता है तो फलां दोषी, मालेगांव तो फलां, हैदराबाद, जयपुर, दिल्ली, या फ़िर मुम्बई तमाम घटनाओं पर अगर नजर डालें तो हरेक बार सरकार ने सिर्फ़ पल्ला झाडा है, चंद चूतियों की कमिटी बनी और जांच बिठा दिया, और सरकार के इस चुतियापा में बड़ा बड़ की भागीदार हमारी मीडिया भी रही है, ख़बरों को चुतियापा के स्तर पर संपादित कर सिर्फ़ अपने लाला जी के फायदे वाली ख़बर, लोगों की वास्तविकता से कोसों दूर की ख़बर, और इसको प्रसारित कर बड़े बड़े स्वयंभू पत्रकार बड़े गर्वान्वित होते हैं।
एक बार फ़िर हमारा देश खून से लाल हुआ, किस किस रिश्ते की हत्या हुई ये कोई नही जानता मगर जिम्मेदार नि:संदेह सिर्फ़ और सिर्फ़ हमारी निकम्मी सरकार के निकम्मे नुमाइंदे हैं जिन्होंने हमारे तंत्र को सिर्फ़ और सिर्फ़ जी हुजूरी करने की सीख दी है और साथ ही इस में बड़ाबड़ के भागीदार तमाम वो मीडियावाले जो ख़बर की जगह अपने संस्थान को सनसनी खबरियागाह बनाते हैं।
बाद में कोई कुछ भी कर ले मगर नुकसान होनेवाले लोगों के लाशों पर राजनीति करनेवाले लोग ही हमारे इस नुकसान के जिम्मेदार हैं.

गुस्सा तो बहुत आता है...!!

गुस्सा दबा रह जाता है...!!
गुस्सा तो बहुत आता है......
जाने कब मैं इन .........
इन कमीनों को मार बैठूं .........
गुस्सा दबा रह जाता है !!
गुस्सा बहुत आता है.......
की इनको नंगा करके .........
गधे की पीठ पर दौडाऊं..........
गुस्सा दबा रह जाता है !!
गुस्सा तो बहुत आता है.....
इनका मुंह काला करवाकर...
इनके मुंह पर थूक्वाऊँ ..........
गुस्सा दबा रह जाता है...!!
गुस्सा बहुत आता है.....
समूची जनता से इन्हें...
लात-घूँसे बरसवाऊं .....
गुस्सा दबा ही रह जाता है...!!
इस देश का कुछ भी नहीं बन सकता...
....मैं अभी ............
कुर्बानी के लिए तैयार ही नहीं.....!!!!

30.10.08

मुश्किलें जिनके साथ जीने में हैं !!
मुश्किलें उनके साथ जीने में है ,
जिनके हाथ इतने मजबूत हैं कि-
तोड़ सकते हैं किसी की भी गर्दन !
मुश्किलें उनके साथ जीने में है,
जो कर रहे हैं हर वक्त-
किसी ना किसी का या.....
हर किसी का जीना हराम !
मुश्किलें उनके साथ जीने में है .....
जिनके लिए जीवन एक खेल है ,
और किसी को भी मार डालना -
उनके खेल का एक अटूट हिस्सा !
मुश्किलें उनके साथ जीने में है ........
जो कुछ नहीं समझते देश को......
और देश का संविधान......
उनके पैरों की जूतियाँ !!
मुश्किलें उनके साथ जीने में है .....
जो सब कुछ इस तरह हड़प कर रहे हैं,
जैसे सब कुछ उनके बाप का ही हो.....
और भारत माता.....उनकी रखैल....!!
मुश्किलें उनके साथ जीने में है,
जिनको बना दिया गया है.....
इतना ज्यादा ताकतवर......
कि वो उड़ा रहे हैं.....
क़ानून का मखौल और...
आम आदमी की धज्जियाँ !!
...दरअसल ये मुश्किलें.......
हमारे ही साथ हैं.....
हम सबके ही साथ हैं......
मगर सबसे बड़ी मुश्किल यही है
कि हम सबको ......
जिनके साथ जीने में मुश्किल है,
उनको .........कोई भी मुश्किल नहीं !!!!

आई टी सेक्टर की शायरी




कल जब मिले थे ....
तो दिल में हुआ एक 'साउंड' 
और आज मिले तो कहते हैं 
" योर फाइल नॉट फाउंड " !!
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जो मुददत से होता आया है,
वो सब 'रिपीट' कर दूँगा....
तू न मिली तो अपनी जिन्दगी
ctrl + alt + delete कर दूँगा !!
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शायद मेरे प्यार को 
taste करना भूल गए 
दिल से ऐसा cut  किया 
कि paste करना भूल गए !! 
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लाखों होंगे निगाह में, 
कभी मुझे भी pick  करो,
मेरे प्यार के icon पर
कभी तो double-click करो !!
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रोज सुबह हम करते हैं 
प्यार से उन्हें गुड मार्निंग, 
वो ऐसे घूर के देखते हैं,
जैसे 7 errors और 5 warning !!  
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ऐसा भी नहीं है कि  
I don't like your face. 
पर दिल के storage में
No more disk space. !!
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घर से जब तुम निकले  
पहन के रेशमी गाउन,
जाने कितने दिलों का 
हो गया Server Shut down !!! . 

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                        END
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अपने जीवन को ज्यादा सरल बनाइए

परमहंस योगानंद ने कहा है-
आप भविष्य की चिंता क्यों नहीं करते? आप अनावश्यक चीजों को इतना महत्व क्यों देते हैं? अधिकांश लोग सुबह, दोपहर व रात के भोजन, काम- काज, सामािजक कार्य कलापों आदि में ही व्यस्त रहते हैं। अपने जीवन को अौर ज्यादा सरल बनाइए तथा अपना संपूर्ण ध्यान ईश्वर में केंिद्रत कीजिए। यह संसार ईश्वर के पास वापस पहुंचने की तैयारी करने का स्थान है। ईश्वर यह जानना चाहते हैं कि हम उन्हें उनके उपहारों से अधिक चाहते हैं या नहीं। यानी हम ईश्वर के उपहारों को ज्यादा महत्व दे रहे हैं या उपहार देने वाले को यानी ईश्वर को। ईश्वर हमारे पिता हैं अौर हम सब उनकी संतान हैं। हमारे प्रेम पर उनका अधिकार है अौर उनके प्रेम पर हमारा अधिकार है। हमारे कष्ट इसलिए उत्पन्न होते हैं कि हम उनकी यानी ईश्वर की अवहेलना करते हैं। परंतु वे सदैव हमारा इंतजार कर रहे हैं।

मुंबई मेरी जान ! आखिर किसकी ?

मुंबई में उत्तर भारतियों पर बढ़ते हमलों के बीच एक सवाल, आखिर किसकी है मुंबई ? हिन्दुस्तान की, महाराष्ट्र की, या फिर ठाकरे परिवार की ? मुंबा देवी के इस नगरी को किसकी नज़र लग गयी। किसने घोल दिया इतना जहर ?

देश में कहीं भी आने-जाने, रहने का संवैधानिक अधिकार सभी को प्राप्त हैं। फिर यह आरजकता क्यों ? कानून व्यवस्था को धत्ता बताते हुए, बार-बार मुंबई में उत्तर भारतियों पर हमले हो रहे हैं। "मराठी मानुष" और "हिन्दी भाषी" के बीच एक नफ़रत कि खाईं आ गयी हैं। नफ़रत के गरम आँच पर सियासतदानों ने राजनितिक रोटी सेंकनी शुरू कर दी हैं। मुंबई से शुरु हुई यह आग पटना के रास्ते दिल्ली तक आ गयी। और शायद यह आग आगे भी अपना रंग दिखायेगी।

मुंबई में नफ़रत के गुंडागर्दी में मुख्यत: सब्जी भाजी वाले, ढूध वाले, इस्त्री वाले, आटा चक्की वाले, भेल पुरी वाले,टैक्सी ऑटो वाले पिस रहे हैं। ये छोटे मोटे काम धंधों में लगे हुए कर्मठ लोग हैं। ये असंगठित हैं, इसिलिये निशाने पर हैं। मुंबई महानगर वाणिज्यिक एवं मनोरंजन केन्द्र होने के कारण काम खोजने वालों की खान बन चुकि हैं। लेकिन इनमे सिर्फ़ "भैया' लोग ही नही होते। रेलों में ठुंसकर स्वप्ननगरी आने वालों में केरल, बंगाल, गुजरात और पूरे देश के लोग होते हैं। लेकिन निशाने पर उत्तर भारतीय ही हैं, क्योंकि वे बदनाम ज्यादा हैं। मुंबई के विकास और उसे भारत की आर्थिक राजधानी बनाने में बिहार और उत्तरप्रदेश के लोगों का भी खून पसीना लगा है। ठाकरे परिवार इस बात को भूल रहा है कि आर्थिक राजधानी होने के कारण मुंबई में सभी को रोजगार पाने और वहां आने-जाने का संवैधानिक अधिकार है।

वक्त आ गया हैं कि राजनिती को "राज"निती से अलग किया जाये। राज ठाकरे को आगे बढ़ाने में कांग्रेस पार्टी का हाथ हैं। शिवसेना को रोकने के लिये कांग्रेस ने राज ठाकरे की "राज"निती को बढावा दिया हैं। राजनितीक दलों को तुष्टिकरण की नित्ती त्यागनी होगी। सियासतदानों को अपने इलाके में रोजगार के अवसर देने होंगें, ताकि उत्तर भारतियों को मुंबई की ख़ाक छानने न आना परे। और यह देश के सामाजिक ताने-वाने के लिए जरूरी हैं।

भूमंडलीकरण के इस दौर में, जब पूरी दुनिया एक गाँव बन गयी हैं, तब "मराठी मानुष" और "हिन्दी भाषी" की बात करना बेमानी हैं। जरूरत हैं देश को जोड़ने की, ना कि तोड़ने की। मुंबई न तो "मराठी मानुष" की हैं और न "हिन्दी भाषी" भैया लोगों की। मुंबई मेरी हैं, आपकी हैं, हम सब की हैं। मुंबई पूरे हिन्दुस्तान की जान हैं।

by: सुमीत के झा (sumit k jha)
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दर्पण

एक पत्रकार की चाहत......

दर्पण....
उस दर्पण पर सर्मपित मैं
जो है हर भाव से परिचित
देखे जो खिलखिलाते चेहेरे
जाने कितने किस के मन हैं मैले ।
क्या राजा ..... क्या रंक.......
बदल न पाये कोई भी दर्पण के ढ़ंग
मैं भी दर्पण बनना चाहू
सब को उनका रूप दिखांऊ
फिर ये विचार अपने मन मैं लाऊं
बोले सभी कि दर्पण...कभी झूठ न बोले
पर अब तक उसके सच से कौन भला डोले..

29.10.08

वो जो उल्ले बैठे हैं ना....


आ जा बेटा खूब चिला और ये ले खाना पीना खा. ये सब खाना पीना सचिन तेंदुलकर के शतक के उपलक्ष में है आज वो ज़रूर शतक जमाएगा. और सुन गुडिया इधर आ वो देख जो कपडे वपड़े उतर के उल्ले साइड में बैठे हैं ना वो हैं ऑस्ट्रेलिया के प्लेयर और जो ओढे बेधे हैं और पल्ले साइड में हैं ये हैं अपने हिन्दुस्तान के खिलाडी. लेकिन पापा धोनी कौन है इसमे से? अरे बेटा वो यहाँ करेगा बाथरूम में बैठा कपडे धो रहा है. अब तू एक काम कर खूब ज़ोर ज़ोर से चिल्ला और मज़े कर मैं थोडी ड्यूटी करके आता हूँ नही तो फालतू लोग स्टेडियम में घुस आयेंगे. और देख इधर उधर मत जाना. ये सीन है बुधवार दोपहर १ बजे फिरोजशाह कोटला स्टेडियम डेल्ही का वेस्ट एंड स्टैंड गेट नो दो का. जहाँ पर ड्यूटी कर रहे एक डेल्ही पुलिस के सिपाही ने अपने परिवार के कुछ सदस्यों को मच के लिए बुलाया था और अपनी गुडिया से बात कर रहा था और उसे समझा रहा था. उस टाइम सचिन ६८ और गंभीर ६४ पर बैटिंग कर रहे थे. इसी बीच सचिन ने एक चौका लगाया. वो गेंद पवेलियन की और गयी. जहाँ पर लोगों को सहवाग के चेहरा नज़र आया. क्यूंकि सहवाग २९ अक्टूबर को खेले गए इस मच की पहली परी में सिर्फा १ रन ही बनाया इसलिए लोगों को थोडी निराशा हुयी थी. बस क्या सहवाग को देखते ही हर कोई चिल्ला उठा वीरू वीरू जब सब चुप हो गए तब एक पाँच साल का बछा बहुत ही बुलंद आवाज़ में बोलता है की ओये वीरू तेरी वसंती कहाँ है? उसकी ये बात सुनकर वहां मौजूद हर कोई हंस पड़ा. ये था मेरा मच का पहला दिन जिसमे ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पहले दिन २९६ रन बनाये तीन विकेट के नुकसान पर. गंभीर ने पहले दिन शतक जमाते हुए १४९ रन बनाये और ५४ रन बनाकर लाक्स्मन उनका साथ दे रहे थे. सचिन ने भी इस मच में ६८ रन की लाजवाब परी खेली. अमित द्विवेदी

कहाँ ले जायेंगे ये लोग मारवाडी समाज को ?

प्रकाश चंडालिया
मारवाडी सम्मलेन वालों पर पहले गुस्सा आता था, अब दया आती है। यदि अपने पर गुस्सा किया जाता है, तो इसलिए कि उससे सुधरने की उम्मीद होती है, और जब सुधरने की उम्मीद ही न रह जाए तो कोई गुस्सा करके भी क्या कर लेगा? इतना जरूर है कि समाज की ठेकेदारी करने का तरीका सीखना हो तो पश्चिम बंगाल में मारवाडी सम्मलेन नामक दूकान चलने वालों से सिखा जा सकता है। वह भी बगैर हिंग-फिटकरी के। बुधवार २९ अक्टूबर को पश्चिम बंगाल मारवाडी सम्मलेन के एक गुट ने दिवाली प्रीति सम्मलेन का आयोजन किया। हर साल एक सेठ को बुलाकर प्रधान अतिथि बना दिया जाता है, सो इस बार नयी मुर्गी के तौर पर डनलप के मालिक पवन रूईया को प्रधान अतिथि बना दिया गया. जिस कोलकाता महानगर में लाखों प्रवासी मारवाडी रहते हैं, उसकी तथाकथित प्रतिनिधि संस्था के प्रीति सम्मलेन में बमुश्किल एक सौ लोग भी जुटे. इनमे २०-२५ लोगों को बाकायदा कुर्सियां भरने के लिए लाया गया था. बाकी २५-३० लोगों का कोई सामाजिक सरोकार रहा हो, ऐसा नही लगता. कुछ बुजुर्ग किस्म के लोग जो स्वाभाव से सामाजिकता निभाना जानते हैं, वे मजबूरी में आए हुए थे, सही मायने में ये लोग सम्मान के हक़दार भी थे, पर आयोजकों ने इनकी उपस्तिथि को महत्व नही दिया. शायद इसलिए कि ये लोग मुर्गी नही थे. कुछ गैर राजस्थानी चेहरे भी दिखाई पड़े, ये लोग सौहार्द बढ़ाने आते तो अच्छा लगता, पर दर-हकीकत ऐसा कोई मामला था नही. इन चेहरों को आयाज्जकों ने अपने बचाव में जुटा रखा था. कुछ सालों से ऐसा ही होता है, क्यूंकि आयोजकों का मारवाडी समाज की मूल संस्था अखिल भारतीय मारवाडी सम्मलेन से कोई सरोकार नही है. और दोनों संस्थाओं में कोर्त्बाजी चल रही है. इस संस्था के साथ वर्षों की लड़ाई के बाद भाई लोगों ने मूल संस्था को दरकिनार करते हुए आयोजन पर कब्जा कर रखा है. मंच पर बाकायदा दावा किया जाता रहा कि यह परंपरागत प्रीति सम्मलेन है और पिछले ६५ सालों से आयोजित हो रहा है. जबकि आयोजक संस्था का पंजीकरण हुए ३-४ साल हुए होंगे. जो भी हो-कब्जा सच्चा-झगडा झुटा. बहरहाल, इसका दूसरा पक्ष भी कम कालिख भरा नही है. प्रधान अतिथि पवन रूईया चूँकि सामजिक सरोकार नही रखते, सो बेचारे समाज के महत्व को क्या जानते. ऐसे प्रीति सम्मेलनों में समाज के ज्वलंत विषयों पर बातें होती हैं, पर रूईया जी अपने संबोधन में शेयर बाजार कि वर्त्तमान स्थिति पर ही बोलते रहे. दाम कब बढेगा, घटेगा वगैरह-वगैरह. ऐसा एक तरफा संबोधन सुनकर लोग काना-फूसी करते रहे, पर रूईया जी तो सुइट की चमक दिखाते हुए अपनी बात कहते रहे. एक बार तो उन्होंने हद कर दी. पद्मश्री विभूषित श्रद्धेय कवि कन्हैयालाल सेठिया के मशहूर गीत -धरती धोरां री, के लिए उन्होंने उत्साह में कह दिया कि इस गीत को -धरती धोरां री की बजाय, धरती मारवाडियों की- होना चाहिए. अब उनपर दया नही आए तो क्या किया जाए. ये पैसे वाले कवि के ह्रदय का बोल भी अपने तरीके से निकालेंगे?सम्मलेन में लोगों के लिए अल्पाहार की बात थी, जो या तो केवल आयोजकों के लिए थी, या फ़िर शायद थी ही नहीं. लोग कनबतिया करते रहे की भैय्या नास्ता रखा कहाँ है. या तो हाल है पश्चिम बंगाल के मारवाडियों की संस्था का. दुःख यहीं ख़त्म नही हो जाता. प्रकाश पर्व का प्रीति सम्मलेन करने वाले आयोजकों को शायद पता नही था की ४ बजे शुरू होने वाला कार्यकर्म एक-डेढ़ घंटे चलेगा, और तब तक अँधेरा भी हो जाएगा. सो भाई लोगों ने एक अदद बल्ब की भी व्यवस्था नही की. अंधेरे में ही माइक से वक्ता बोलते रहे, और लोग अंधेरे में बैठे सुनते रहे. अग्रज रचनाकार की ये पंक्तियाँ कितनी सही हैं, ऐसे लोगों के लिए-
हर एक का जहाँ में अरमान निकल रहा है
तोपें भी चल रही हैं, जूता भी चल रहा है

जुआ: एक सामाजिक बुराई और मान्यता

बचपन से सुनता आ रहा हूं कि जुआ और शराब बुरी बला है। इससे घर बर्बाद होते हैं. आबाद होने की बात तो कहीं सुनने को मिलती ही नहीं. चाहे बात महाभारत काल की हो अथवा आधुनिक युग की हो. इससे बर्बाद होने की कहानी ही सुनने को मिली है. सारा समाज भी जानता-बूझता है, फ़िर भी इसे अपनाता है. जुए को समाज ने एक सामाजिक बुराई के रूप में प्रतिपादित किया गया है और साथ ही साथ कई मौको पर इसे खेलने की मान्यता भी दे दी है. ऎसा क्यूं? मेरी समझ में तो बिलकुल भी नहीं आता. अभी देखिए दीवाली पर कितनों के घर इसी जुए के कारण अंधेरे में रहे. लक्ष्मी लाने के चक्कर में जो थोड़ी बहुत पूंजी थी वह भी गंवा दी. दीवाली में जुआ खेलने की मान्यता प्रदान की गई है. इसलिए दीवाली की रात कई घरों, मोहल्लों, गलियों में लोगों को मैंने जुआ खेलते पाया. अब तो बकायदा क्लबों में बड़े-बड़े प्रशासनिक अधिकारी भी बड़े शान ओ शौकत जुआ खेलते हुए पाए जाते हैं. सब जानते-बूझते लोग इस बुराई को अपनाने पर तुले हुए हैं. उनसे बात करने पर कहीं से भी उन्हें आत्मग्लानि का अनुभव नहीं होता. और तो और बिडम्वना देखिए आप उनको इस बुराई से बचने की सलाह देंगे तो वे आपको इस बुराई में शामिल होने का दबाव बनाएंगे.ऎसे लोगों को सलाह देना- राम-राम

महाराष्ट्र के तमाम केंद्रीय कर्मियौं से अपील.

आज फ़िर एक उत्तर भारतीय राज के कुकृत्य का शिकार हो गया, मुम्बई रेल के लोकल ट्रेन में "से" गुंडों ने ट्रेन में सफर कर रहे लोगों पर धावा कर दिया और उत्तर भारतीय की पिटाई शुरू कर दी, इस अचानक से हुए हमले में एक यूवक की तत्काल ट्रेन में ही मौत हो गयी और कुछ बुरी तरह से घायल हैंमहाराष्ट्र की पोलिस एक बार फ़िर से ठाकरे परिवार की दलाल साबित हुई जब उनके सामने सारे के सारे अपराधी सीना तान कर चलते बने और मुम्बई की स्कॉट्लैंड यार्ड पोलिस राज के चमचों के आगे नतमस्तक रही
मुम्बई पोलिस, प्रशाशन, सरकार और तंत्र के साथ केन्द्र का इस पुरे प्रकरण पर धृतराष्ट की तरह चुप्पी साध कर राज ठाकरे को अप्रत्यक्ष मदद देना पुरे देश की भयावहता को दर्शाता हैराष्ट्र गृह युद्ध की और अग्रसर है और नि:संदेह इसके लिए ये सारे लोग जिम्मेदार होंगे, आज मुम्बई में कोई भी उत्तर भारतीय महिला नही जानती की सुबह को ऑफिस जाने वाला उसका पति शाम को जिंदा वापस आएगा की नही, बच्चा बच्चा आतंक के निशाने पर हैसरकार की कपोलता का अंदाजा की सिमी और साध्वी के बहाने राज से लोगों का ध्यान बाटने की कोशिश की राज का गुंडाराज चलता रहेजबकी पुरी दुनिया जानती है की निकम्मे मराठीयों से महारष्ट्र नही चलने वाला
मैं अपील करता हूँ तमाम उन लोगों से जो केंद्रीय कर्मचारी और अधिकारी हैं, बैंक में हैं, रेलवे में हैं, या किसी भी विभाग में हैंमहाराष्ट्र की अकर्मण्य सरकार किसी को कोई सुरक्षा नही दे सकती अपितु अपराध और आतंकियों की संरक्षक है और संभावित गृहयुद्ध की जिम्मेदार भीसो अपने परिवार और साथियों के साथ सम्मलित स्थानांतरण का आवेदन अपने अपने विभागीय पदाधिकारी तक पहुंचाएं. आपका ये आवेदन एक संदेश होगा. और निष्क्रिय तंत्र के लिए एक चेतावनी भी


आर्थिक मंदी तो कहीं दिखी नहीं

लोगों को पटाखे फोड़ते देख बिल्कुल नहीं लगा कि अपने देश की आर्थिक मंदी का असर है। खूब मिठाइयां बिकी। खूब पटाखे बिके। अगर मौज मजा में खर्च का एक रुपया भी हर आदमी निकाल ले तो मिला जुला कर समाज. प्रदेश या देश के लिए बहुत कुछ किया जा सकता है। लेकिन इस तरह लोग सोचते क्यों नहीं?
- विनय बिहारी सिंह

क्या हमारे भारतीयता त्यागने का समय आ गया ?

राहुल राज को गोली मार दी गई, महारष्ट्र पुलिस और स्थानीय गृह मंत्री की माने तो राहुल आतंकवादी था और आतंकी गतिविधी की बलिवेदी पर चढ़ गया। ये उस प्रान्त के गृहमंत्री का बयान है जहाँ राज ठाकरे नामक नपुंशक मानवता को तार-तार, जार जार कर रहा है, भारतीय सभ्यता और संस्कृति के विपरीत आतंक का सिलसिला जो महाराष्ट्र की संस्कृति में शिवा जी ने शुरू किया को अभी भी अपने आतंकी गतिविधियों से जारी रखे हुए है , राज ठाकरे की आतंकी गतिविधि आर आर पाटिल के बयान लायक नही मगर राजनीति के खोमचे में सवार राहुल राज को आतंकी बनाने में क्षणिक देरी नही, पूरा का पूरा महाराष्ट्र यानी की क्षद्म चरित्र, अपनी नाकाबिलियत और निकम्मेपन का ठीकडा किसी और के सर पे फोर दो।
देश की राजनीति का काला पन्ना राज ठाकरे ने जो जहर भारतीय राजनीति में बोई उसे कब तक सहें, हम कब तक बर्दाश्त करें, बिहारी के सहिष्णुता का इम्तिहान और वो भी इस स्तर पर की अब और नही, हाँ राज ठाकरे अब और नही। जिस बिहारी को तुमने ललकारा है वो तुम्हारे शिवाजी की तरह काला इतिहास नही रखता है। भारतीय संस्कृति और सभ्यता का एक मात्र संस्करण बिहार की संस्कृति है.
राहुल ने जो शहादत दी वो भारतीय इतिहास के मंगल पाण्डेय की याद करा गया। कोई ना साथ है ठीक है हम अकेले लड़ लेंगे भले ही जान चली जाए, मगर राहुल की ये शहादत बिहारियों के लिए एक आवाज़ की आगाज़ है। एक गरीब ब्राह्मण सिर्फ़ इसलिए एक राजा के वंश को शर्वनाश करने का शपथ लेता है क्यौंकी उस दम्भी राजा ने सरे आम उसकी बेइज्जती की। "चाणक्य" जो आज सारे दुनिया की राजनीति का एक मात्र नाम है, अपनी शिखा तब तक नही बांधी जब तक नन्द का शर्वनाश नही कर दिया, और एक शूद्र को देश की बागडोर सोंप दी, शान्तिप्रिय अशोक ने जब क्रूडता धारण की तो इतिहास गवाह है भारत की चौहद्दी अशोक से ज्यादा किसी राजा ने नही बढाई, मगर एक छोटे बच्चे के आंसू ने महान सम्राट को जब शान्ति का मसीहा बनाया तो महान अशोक भारत की सीमाओं में बंध कर नही रहा।
आज एक बलिदान ने बिहार के शीर्षस्थ नेताओं को इकठ्ठा कर दिया तो क्या हम इन नेताओं से भी गए गुजरे हैं, अपने पूर्वजों महान सम्राट अशोक, चाणक्य, शेर शाह सूरी, बाबु कुंअर सिंह ने हमें निकम्मा और नाकारा बनना नही सिखाया। स्वाभिमान और सम्मान के लिए मरने वाला बिहारी, देश के लिए अपना सबकुछ न्योछावर करने वाला बिहारी आज जिस जिस के लिए त्याग और बलिदान दिया वो हमारे अश्मिता के दुश्मन हैं, उनके लिए हम क्षुद्र हैं। बोद्धिक सम्पदा को लेकर आए तमाम बिहारियों से आवाहन, लाला की चाकरी के अलावे भी अपनी जिम्मेदारी समझें, अपनी पूर्वजों के प्रति, अपनी मातृभूमि के प्रति, सम्मान और निष्ठां के प्रति।
यदि हमें मजबूर किया जा रहा है महान अशोक के रास्ते को चुनने का तो आवाहन करो और इस धरती से महाराष्ट्र और मराठी का नाम मिटा देने का संकल्प करो। नही कर सकते तो अपनी मातृभूमि से माफी मांगो और गुलामी करों उनकी जो तुम्हारी माँ बहन की अश्मिता को अपनी जूती समझते हैं।
चाणक्य के नन्द वंश को समाप्त करने की कसम की तरह मराठियों की समाप्ती का संकल्प करो, तमाम लोगों को आवाहन करो और चलो मिटा देन उनको जिन्हें पता नही की बिहार क्या है, बिहारी क्या है।

आओ गाफिल प्यार कर जाएँ !!

सबको हो मंगलमय दीपावली
सब बातें करे अब भली-भली !!
सब काम आयें अब
सबके सबमें हो इक जिन्दादिली !!
सब एक दुसरे को थाम लें
सबमे भर जाए दरियादिली !!
हर आदमी में कुछ ख़ास
हो हर आदमी में इक खलबली !!
हर आदमी को खुशियाँ मिले
और गम को मारे आकर खली !!
आज गम और कल है खुशी
ये जिंदगी बड़ी है चुलबुली !!
आओ प्यार कर लें "गाफिल"
फिर जिन्दगी जायेगी चली !!

28.10.08

दीवाली.....ये क्या करें...!!


Tuesday, October 28, 2008

दीवाली .....ये क्या करें ??
.................दीवाली की रात बीत चली है ....दिल का उचाटपन बढ़ता ही चला जा रहा है .....सबको दीवाली की शुभकामनाएं देना चाहता हूँ....मगर वे जिनकी सामर्थ्य नहीं दीवाली मनाने की.....जो आज भी भूखे पेट बैठे ताक़ रहे हैं टुकुर-टुकुर महलों की तरफ़....वे जो बाढ़ के बाद जगह-जगह कैम्पों में अपने सूनेपन को मिटाने की कोशिश कर रहे हैं......वे जिनके रिश्तेदार देश की सीमा की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए हैं .....बच्चों के छोड गए पटाखों को चुन रहे सड़कों पर कुछ काले-कलूटे बच्चे......क़र्ज़ ना चुका पाने की वजह से आत्महत्या कर चुके किसानों के बचे हुए परिवार ......दाने-दाने को मोहताज़ करोड़ों लोग.....जो ना जाने किस क्षण काल-कलवित हो जाने वाले हैं .......ठण्ड में खुले आसमान के नीचे सोने वाले छत-विहीन लोग .....ठण्ड से बिलबिलाते ...कंपकंपातेआसमान में फटते जोरदार पटाखों की ओर बड़ी ही हसरत से ताकते गरीब-गुर्गे ...........!!.....दीपावली .....देश का सबसे प्रमुख पर्व ........बहुसंख्यक समाज का प्रमुख पर्व .......दीवाली....लफ्ज़ के मायने संम्पन्नता का.... वैभव का प्रदर्शन ....दीवाली....मतलब अरबों-अरबों रूपये का धुंआ बनकर आसमान में क्षण भर में उड़ जाना ..... दीवाली... मतलब ...गरीबों की आंखों का फटा-का-फटा रह जाना .... उनकी हसरतों का जग जाना ...... सोचता हूँ हमें इस कदर मुकम्मल तरीके से दीवाली मनाता देख यदि इनका मन भी एक दिन मचल ही जाए तो ये क्या करेंगे .... मैं तो जो जवाब सोच रहा हूँ,सो सोच रहा हूँ.....आप ही बताये ना कि ये क्या करेंगे ?? मैं जवाब के इंतज़ार में हूँ !!!!

दीपावली की हार्दिक शुभकामना

सारे भडासियों, जो इस साइट पर अपनी भरपूर भडास निकाल-निकाल कर शायद थक गए होंगे, को मेरी ओर से दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं। साथ ही साथ मेरे साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करने वाले मेरे सहकर्मी बंधुओं - फिलिप आईन्द, रामप्रसाद, सुनील, वीरेन्द्र पासवान, श्रीप्रकाश, श्रीपाल, जीतेन्द्र पाण्डेय, संदीप, अनामिका सिंह, सपना, स्वाति को भी दीपावली की बहुत-बहुत बधाई। मेरे मार्गदर्शक रण विजय सिंह, ईश्वर चंद्र मिश्र, वी. डुंगडुंग को हार्दिक शुभकामनाएं। लक्ष्मी माता आपके घर आएं। आपके घर में धन-धान्य की वर्षा हो। एक अनुरोध है जब आपके घर धन-धान्य आ जाए तो कुछ शेयर मुझे भी ईमानदारी से दे देना। आखिर मेरी ही शुभकामना से आपको इतना मिला है। फिर भी मैं जानता हूं कि आप इतने ईमानदार तो हो ही नहीं सकते कि ईमानदारी से मुझे बता देंगे कि मुझे इतना कुछ मिल गया है। दुनिया अभी इतनी ईमानदार नहीं हुई है और खास तौर पर भारत तो इसमें अग्रणी है। ठीक है अगर शेयर नहीं दोगे कोई बात नहीं कम से कम मेरी शुभकामना तो ले ही लो। पुन: दीपावली की शुभकामना।

भारतीयता कोई बिहार से सीखे

महाराष्ट्रा की घटनाओं से बिहार के लोगों को गहरी तकलीफ पहुँची हैकुछ अरसा पहले बिहार विधानसभा के साझा सम्मलेन में कुछ विधायकों ने "मराठी राज्यपाल वापस जाओ" के नारे लगाएबिहार के लोगों की पीड़ा को समझा जा सकता है, लेकिन यह कार्रवाई बिहार की परम्परा और संस्कृति के अनुरूप नही थीबिहार की अपनी खामियां हैं, लेकिन भारतीयता के पैमाने पर उसने जो मिसाल कायम की है, वह काबिले तारीफ हैइस पर चल कर ही यह देश खुश रह सकता है
बिहार को कई बातों के लिए नीची नजर से देखा जाता हैउसकी गरीबी और पिछडापन का मजाक उदय जाता हैउसके जातिवाद को बुराई की मिशाल बताया जाता हैलेकिन सच यह भी है की प्रांतवाद या क्षेत्रवाद के कीटाणु इस राज्य में कभी घुस नही पाये
बिहारी अस्मिता हमेशा राष्ट्रीय अस्मिता से जुड़ी रहीहजार वर्षों तक पाटलिपुत्र इस भूभाग का राजधानी रहा और पाटलिपुत्र का इतिहास ही देश का इतिहास बन गयाराजा जनक, दानी कर्ण,भगवान् महावीर, भगवान् बुद्ध, राजनायिक चाणक्य, सम्राट चन्द्रगुप्त मोर्य, अजातशत्रु, अशोक महान, सेनापति पुष्यमित्र शुंग, दार्शनिक अश्वघोष, रसायन शास्त्र के जनक नागार्जुन, चिकित्सक जीवक और खगोलशास्त्री आर्यभट्ट जैसे महापुरुष इस धरती पर हुए जिनसे भारत को अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिली
इस परम्परा पर कौन गर्व नही करता? क्या इसे बिहारी परम्परा कहा जायेगा? भारतीय राष्ट्रवाद की परम्परा बिहार में आधुनिक समय में भी जारी रही
आजादी के बाद कोयले और लोहे पर मालभाडा समानीकरण की नीति को बिहार ने बिना किसी ऐतराज के स्वीकार कर लियाइस कदम से बिहार की इकोनोमी की कमर टूट गयीसमान खर्च पर लोहे और कोयले की दुसरे राज्यों तक धुलाई की सुविधा का असर यह हुआ कि उद्योगों को बिहार आने की जरुरत ही नही पड़ीवे दुसरे राज्यों में लगते गएबिहार के संसाधन ख़ुद उसके काम नही आएगौरतलब है कि कॉटन के लिए यह नीति लागू नही की गयी
एक और उदाहरण लीजियेदिसम्बर १९४७ में बिहार विधानसभा में इस मुद्दे पर बहस चल रही थी कि दामोदर घटी परियोजना में बिहार को शामिल होना चाहिए या नहीएक-एक कर कई सदस्यों ने कहा कि इस परियोजना से बाढ़ बचाव और बिजली उत्पादन का फायदा पुरा का पुरा बंगाल को मिलेगा, जबकि डूब और विस्थापन का खतरा बिहार को उठाना पड़ेगाइस तर्क का जवाब सरकारी पक्ष के पास नही था
सिंचाई मंत्री को जवाब देना था, लेकिन उनकी जगह मुख्यामंत्री श्रीकृष्ण सिन्हा खड़े हुएउन्होंने कहा, अभी १५ अगस्त को देश आजाद हुआ है, हम सबने अखंड भारत के प्रति वफादारी की क़समें खाई है, लेकिन उसे हम इतनी जल्द भूल गएअगर इस परियोजना से बंगाल के लोगों को फायदा पहुँच रहा है, तो क्या ग़लत है? वे भी उतने ही भारतीय हैं, जितने कि बिहार के लोग
बिहार ने अगर ख़ुद को भारतीय अस्मिता के साथ एक ना कर दिया होता, तो क्या वहां से इतनी बड़ी तादाद में गैर-बिहारी-सांसद बनते? आजादी की लड़ाई के दौरान १९२२ में परिषद् के चुनाव लड़ने के मुद्दे पर कोंग्रेस बंट गयी थीगया अधिवेशन में भाग लेने आए जयकर और नटराजन जैसे नेता जब अपने राज्यों से कांग्रेस कमिटी के प्रतिनिधि नही चुने जा सके, तो बाबु राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें बिहार से निर्वाचित करायायह सिलसिला चलता रहा
संविधान सभा में सरोजिनी नायडू बिहार से चुनी गयीआजादी के बाद जे. बी. कृपलानी, मीनू मसानी, मधु लिमये, जोर्ज फर्नांडिस, रविन्द्र वर्मा, मोहन सिंह ओबेरॉय आदि को बिहार ने अपना नुमाइंदा चुनाइंद्रकुमार गुजराल भी यहीं से राज्यसभा में पहुंचेक्या बिहार में प्रांतवाद इसलिए नही है कि उसका सारा ध्यान जातिवाद में लगा रहता है
कुछ लोग ऐसा तर्क दे सकते हैं, लेकिन ऐसा कहना बिहार के साथ अन्याय होगाअखिल भारतीय सेवाओं के जो अफसर बिहार में तैनात है, वे मानते हैं कि उनके साथ कोई भेदभाव नही किया जाताएक मायने में बाहरी होना उनके पक्ष में जाता है, क्यौंकी वे जातिगत समीकरणों से अलग रह पाते हैं
ख़ुद महाराष्ट्र की परम्परा भी ओछे प्रांतवाद के ख़िलाफ़ हैयह राज्य समाज सुधारकों, संतों और समाजवादियों का गढ़ रहा हैबाल गंगाधर तिलक और गोपाल कृष्ण गोखले जैसे महान नेताओं ने राष्ट्रवाद का पाठ पढायातिलक ने पुरे देश से धन इकठ्ठा कर डेक्कन एजुकेशन सोसायटी की १८८४ में स्थापना कीतब से आज तक सोसायटी के पैम्पलेट के कवर पर यह साफ़ लिखा होता है कि जाति, धर्म, भाषा या प्रान्त के नाम पर कोई भेदभाव नही किया जायेगासोसायटी की स्थापना में उन्हें गोखले और गोपाल गणेश आगरकर का सक्रिय समर्थन मिलामहर्षी कर्वे जैसे शिक्षाविद भी इससे जुड़ेपुणे का मशहूर फर्गुशन कॉलेज उसी सोसायटी की देन है
गोखले ने ही गाँधी से कहा था कि देश में कुछ करना चाहते हो तो देश को समझो और देश में घुमोबहरहाल, ये मिशालें पेश करने का मकसद यह है कि हम क्षेत्रवाद राष्ट्रवाद को समझेंयाद कीजिये कि ब्रिटेन की प्राइम मिनिस्टर मार्गरेट थैचर और रूस के प्रेजिडेंट मिखाइल गोर्वाचोव ने भारत से सबक लेने को कहा था, जहाँ इतनी विभीन्नता के बीच लोग साथ-साथ रहते आयें हैं
अब अगर हम इस बात को भूलकर राज्यों के बीच फर्क देखने लगें, तो भारत का क्या होगा? हमें भारतीय राष्ट्रवाद से अपने टूटते तारों को फ़िर जोड़ना होगा
इस देश में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद सदियों से रहा है, भले ही राजनायिक राष्ट्रवाद हाल की बात होहमारे यहाँ सात नदियों को पूजने की परम्परा रही हैये नदियाँ सारे देश में फ़ैली थीशंकराचार्य ने देश के चारों कोने में पीठों की स्थापना की थी
आधुनिक समय में राजनितिक राष्ट्रवाद की अवधारणा पैदा हुई, जिसके तहत हमने आजादी की लड़ाई लडीहमारी खुशकिस्मती है कि सांस्कृतिक और राजनीतिक भारत का नक्शा लगभग एक जैसा हैभाषाई आधार पर प्रान्तों का गठन काफी बाद की घटना है, लेकिन हमने इसे इतना तूल दे दिया है कि यह हमारे ट्रेंड से बाहर निकलने के लिए हमें क्या करना चाहिए, इस पर सभी को विचार करना होगा


लेखक वरिष्ट पत्रकार हैं और ये लेख नव भारत टाईम्स के सम्पादकीय का है, इस लेख से कुछ ऐसे पहलु पर प्रकाश पड़ता है जिस से संभवत: बहुत सारे स्थानीय भी अनजान हैं। राष्ट्रवाद को समर्पित यह लेख तमामुं लोगों के लिए जिन्होंने इसे दैनिक में नही पढा.

साभार: नव भारत टाइम्स
लेखक : सुधांशु रंजन (वरिष्ट पत्रकार)

अ स्थिरता के चलते शेयर बाजार से निवेशक गायब


वैश्विक मंदी की आग में गोरखपुर भी भुना है जिसकी जलन आज तक महसूस की जा रही है। वित्तमंत्री व प्रधानमंत्री के लाख आश्वाश्नों, रिजर्व बैंक द्वारा की गई सी आर आर व रेपो दर में कटौती तथा विशेषज्ञों की इस सलाह के बावजूद कि निवेश का यह सबसे अच्छा अवसर है, गोरखपुर के निवेशक बाजार में निवेश करने का सहस नहीं जुटा पा रहे हैं। बाजार सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के अनुसार गोरखपुर में ९९ प्रतिशत निवेश कम हुआ है। सिर्फ़ एक प्रतिशत का निवेश शेयर बाजार की बदहाली कि कहानी बयां कर रहा है। बाजार सूत्रों के अनुसार जो कंपनियां प्रतिदिन १० हजार रुपये दलाली कमाती थीं अब उनकी दलाली मात्र २ हजार रुपय्र प्रतिदिन कि हो गई है। एक्सेस बैंक के डिप्टी मैनजर पतंजलि त्रिपाठी एक निवेशक भी हैं। इस समय वह १०० रुपये में सिर्फ़ १० पैसा ही निवेश कर रहे हैं। उनका कहना है कि बाजार के अभी और नीचे जाने कि संभावना से इंकार नही किया जा सकता। क्योंकि जो विदेशी संस्थागत निवेशक हैं उनका भारतीय बाजार में १२० बिलियन डालर लगा हुआ है जिसमें से उन लोगों ने अबतक १२ से १५ बिलियन डालर निकाल लिया है। बाजार की स्थिति को देखते हुए यदि उन्होंने और ज्यादा निकाला तो बाजार और नीचे जा सकता है। लिहाजा इस समय निवेश बहुत बुद्धिमानी नहीं है। हालाँकि उन्होंने कहा कि निवेश कि कोई बाटम लाईन नहीं होती है कि इस सूचकांक पर बाजार आ जाएगा तो निवेश करेंगे। जब बाजार भागता है तब समय नहीं मिलता है। इसलिए स्टेप बाई स्टेप इन्वेस्ट करने की जरूरत है। इसीलिए मैं १०० रुपये में १० पैसे का इन्वेस्ट कर रहा हूँ। पत्रकार राजेश शुक्ला शेयर बाजार की बदहाली से निराश हैं। जबसे बाजार मंदी का शिकार हुआ तबसे उन्होंने एक पैसे का निवेश नहीं किया है। उनका कहना है कि जब बी एस ई का सूचकांक १७ हजार था उसी समय मैंने निवेश किया था। उसके बाद बाजार गिरने लगा और मैंने निवेश करना बंद कर दिया। अब सूचकांक जब १८ हजार के ऊपर जाएगा तभी निवेश करूंगा। उसके पहले बाजार की तरफ़ देखना भी नहीं है। नीता पाण्डेय ने कहा कि चार साल से बाजार में हूँ। कुछ पैसा शेयर तथा कुछ पैसा म्युचुअल फंड में डाली हूँ। कुल निवेश पर हालाँकि ३० से ४० प्रतिशत का घाटा है। बावजूद इसके सिप के जरिये म्युचुअल फंड में निवेश जारी रखूँगी। अगर पैसा रहता तो इस लेबल पर भी रुक रुक कर चुनिन्दा कंपनियों में जरूर निवेश करती। जे पी दूवे ने कहा कि मैंने जो पैसा लगाया था बाजार कि स्थिति को देखते हुए ८० प्रतिशत निकाल लिया है, २० प्रतिशत इसलिए रखा है कि यदि बाजार ऊपर आया तो कम से कम पूँजी वापस आ जायेगी। फिलहाल नया निवेश एक पैसे का नहीं किया है। गजाधर द्विवेदी

दीवाली पर कोलकाता पुलिस की ज्यादती से परेशान मारवाडी समाज

प्रकाश चंडालिया
तीस वर्षों से पश्चिम बंगाल में राज करने वाले वामपन्थिओं ने अभी तक प्रवासी समाज के साथ ठीक से व्यवहार करना नही सीखा है. राजनैतिक फायदे के लिए अल्पसंख्यकों को दामाद बनाये रखेंगे, लेकिन सभ्य और शालीन प्रवासी समाज के लोगों को बेवजह तंग करेंगे. दीपावली पर प्रदुषण फैलाने के आरोप में कोलकाता पुलिस अनावश्यक रूप से मारवाडी समाज के लोगों को तंग कर रही है, उन्हें बेवाजग गिरफ्तार कर रही है. ऐसे आरोप लगाए जा रहे हैं. पुलिस की नजर में मारवाडी मछली-मुर्गी की तरह होते हैं. इन्हे जब चाहो-जैसे चाहो हलाल किया जा सकता है. वैसे भी दिवाली के समय गिरफ्तार होने वाले गाहे-बगाहे छूटने के लिए जेब हलकी करेगा ही. कोलकाता के मारवाडी बहुल इलाकों मसलन, बडाबाजार, पोस्ता, गिरीश पार्क, लेक टाऊन, हांवड़ा, बांगुर, भोवानिपुर, पार्क स्ट्रीट आदि इलाकों में दिवाली के समय पुलिस की चांदी रहती है. कोई शिकायत करे तौ भी ठीक, न करे तौ भी,आरोप है कि पुलिस अपना धंधा करने से नही चुकती. सही तरीके से कोई समझाए तो भी पुलिस वाले नही मानेंगे, पर यदि किसी दबंग माकपा नेता से फ़ोन करवा दिया जाए तो आनन्-फानन में उसका आदेश मान लिया जाता है.बंगाल में लोग बड़े गर्व से कहते हैं कि यहाँ साम्प्रदायिक सद्भाव है, लेकिन दुर्भाग्य यह है कि चंद बदनाम दो नम्बरी, टैक्स डकारने वाले, मारवाडी व्यापारियों के गुनाह कि कीमत पुरे समाज को चुकानी पड़ रही है . होली के त्यौहार पर भी पुलिस का तांडव चलता है. मान भी लिया जाय कि यहाँ राज ठाकरे का राज नही चलता, फ़िर भी यह सब जो हो रहा है, वह किस राज का प्रतीक है? बुद्धदेब भट्टाचार्य की सरकार को प्रवासी समाज के साथ वाही व्यवहार करना चाहिए, जो वह अपने लिए उनसे चाहते है.

राहुल की मुठभेड़ या हत्या

सोमवार कि सुबह मुंबई के कुर्ला इलाके में बस नंबर 332 को अपहृत करने वाला पटना के 23 वर्षीय राहुल राज की मुंबई पुलिस ने एनकाउंटर किया या फिर निर्मम हत्या ? राज ठाकरे को मारने आया यह शक्स पुलिस की गोली से मारा गया था। लेकिन पुलिसिया एनकाउंटर एक बार फिर शक के घेरे में आ रही हैं। क्या सचमुच राहुल राज को नही बचाया जा सकता था ?

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार राहुल चिल्ला चिल्ला कर कह रहा था कि वह किसी को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहता। उसने बस से सभी यात्रियों को उतार भी दिया था। बस खड़ी होने के बाद वहां काफी भीड़ थी, अगर वह चाहता तो लोगों पर फायरिंग कर सकता था। मुंबई पुलिस का यह दावा कि राहुल पर गोलीबारी जवाबी कार्रवाई के तहत की गई, सच नही लग रही। चश्मदीदों के अनुसार उसने अपनी देसी पिस्तौल से एक बार भी पुलिस की ओर फायर नहीं किया था। अगर मुंबई पुलिस ने थोड़ी-सी समझदारी से काम ली होती, तो शायद राहुल बच सकता था। वह बार बार एक मोबाइल मांग रहा था जिसके मार्फत वह अपनी बात कहना चाहता था। उसने कुछ करेंसी नोट पर लिखकर पुलिस की ओर भी फेंकी थी।


अगर राहुल राज ठाकरे को मारने आया था, तो उसे राज ठाकरे के घर के आसपास होना चाहिए था। अगर वह राज ठाकरे के किसी सभा में पिस्टल या बम के साथ पकड़ा जाता तो भरोसा किया जा सकता था। लेकिन राहुल को बेस्ट की एक बस को यात्रियों से खाली करवाकर पिस्तौल लहराने कि क्या जरूरत पर गयी ? क्या वह अपनी बात को राज ठाकरे, मुम्बई की जनता और मीडिया तक पहुचाना चाह्ता था ?


राहुल के पिता ने कहा कि उनका बेटा अपराधी नहीं हैं। उनका आरोप है कि उनके बेटे की सरेआम हत्या की गई है। बिहार के तीन कट्टर विरोधी नेता, रेल मंत्री लालू यादव, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और लोकजनशक्ति के नेता राम विलास पासवान ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मांग की कि मुंबई में राहुल की मुठभेड़ में हुई मौत की न्यायिक जांच कराई जाए। इस बीच गृह राज्य मंत्री श्री प्रकाश जायसवाल ने कहा कि केंद्र ने राज्य से इस पूरे मामले में रिपोर्ट मांगी है।


राहुल ने अपराध किया था। और उसे सजा भी मिलनी चाहिए थी। लेकिन क्या उसका अपराध इतना संगीन था कि उसे सजा-ए-मौत दी जाए ?

by: सुमीत के झा (Sumit K Jha)
http://www.khabarnamaa.co.cc/

बेचारा राहुल मारा गया.....

इसलिए मारा गया क्यूंकि उसने भरोसा किया की मुंबई पुलिस पर... मेरी बात ठाकरे से कराएगी?लेकिन जैसा आपने देखा होगा मुंबई पुलिस ठाकरे की किस तरह आव भगत में लगी रहती है...कार के पास ....आते....ही दरवाजा खोलने वाली मुंबई पुलिस ही तो होती है...लेकिन बेचारा राहुल ये सब नहीं जानता था......उसने ....तो किसी को नहीं मारा पर उसे ..मार.......डाला गया क्यूंकि उसके आलावा सब ...मराठी............थे वो कैसे छोड़ देते उसे?.....

विवेक चौधरी जी से संवाद जो अब निजी नहीं रहेगा.......

प्रिय विवेक भाई
प्रणाम
अचरज है कि आप भड़ास के पन्ने से उतर कर निजी उत्तर दे रहे हैं भला ये कैसी कुंठा है?मैं मानती हूं कि यदि बात भड़ास से जुड़ी है तो हमें उसी पन्ने पर करनी चाहिये न कि निजी स्तर पर। आपके भगत सिंह के माध्यम से ही आपको जानती हूं तो जो जाना उनके ही नजरिये से जाना है ,इसमें कुछ निजी नहीं है आप अन्यथा न लें। आपका भगत सिंह आराम करे ये उसकी और उसके परिवार की किस्मत में नहीं है ये तो मैंने खुद ही दिल्ली तक देख लिया है कि वे लोग कितने सुकून और आराम में हैं। आप अपने जीवन के निजी आर्थिक पक्ष को शेष लोगों के साथ जोड़ कर दर्शाना चाहते हैं कि ये आपके जीवन का सामाजिक संदर्भ है तो विचित्र लग रहा है। मेहरबानी करके पुनः विचार करें। मैं भी निजी मान्यताएं रखती हूं जैसी कि आप रखते हैं तो उन्हीं मान्यताओं के कारण मैं आपके विचारों से असहमत हूं लेकिन मैंने आप पर कोई प्रहार तो किया नहीं जिसका आप स्पष्टीकरण आप मुझे मेल करके दे रहे हैं। बस एक टिप्पणी करी थी तो आप तिलमिला गये और यहां तक आ गये तो अब शायद हो सकता है कि आप अब मेरे घर तक उत्तर देने आ जाएं। आपका स्वागत रहेगा,मेरे भाइयों में एक भाई और जुड़ जाएगा जैसे भूषण भाई,रजनीश झा और डा.रूपेश श्रीवास्तव जुड़े हैं। आपको दीवाली की हार्दिक शुभकामना सहित प्रणाम
मनीषा नारायण
On 28/10/2008, vivek choudhary wrote:
Accha laga tumhara jawab. Main uski tulna bhagat singh se karta nahi tha aaj bhi karta hoon utni hi. lekin ye fark aazadi ka hai. aazadi apne aapko bhagatsingh ghoshit karne ki. aur durbhagya se mere is bhagat sing bhai ne jung mein thoda aaram karne ka man bana liya hai. koi baat nahi .lekin mujhe khushi hui aap jaisa ek dost phir bhi uske saath hai aap dono khush naseeb hain. lekin jahan tak dhandhe ke promotion ki baat hai to ye mein un logon ke liye kar raha hoon jinke paas aap jaise hamdard nahin hain.aur wo bechare sirf paisa kamane ke liye pitaai khate hain ,goli bhi khate hain. mein sirf un logon ko ek raasta dikhana chahta hoon ki bhai paisa bihar mein rah ke bhi kamaya jaa sakta hai. wo baat bhagat singh ki samjh mein to nahi aayegi lekin haan ek aam insaan ko samjhane ki koshish to kar hi sakta hoon . ek dhanda immandaari se kar raha hoon aur usi imaandari se uska promotion bhi. aur phir bhi agar aapko aitraaz hai to mein dua karoonga ki aapko ye dhandha samajh mein aa jaaye. aapko to shayad zaroorat na ho par aapke zariye kisi aur bhagat singh ki zaroorat poori ho sakti hai . any way thanks fot your comment positively expecting comments from you in future.-- "Your perception of me is more important than my perception of me." RegardsVivek
विवेक भाई भड़ास क्या है उसे जरा जानिये समझिये,नाराज मत होइये।

गोली का जवाब गोली से.......

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अंधेरी से कुर्ला....
बस नबंर-332..
दिन सोमवार
तारीख़ 27 अक्तूबर 2008
वक्त सुबह के पौने नौ बजे
मुंबई का अंधेरी इलाका..

332 नंबर की बस सुबह करीब पौने नौ बजे अंधेरी से रवाना हुई ... कम लोग, सुबह की हवा और हल्की हल्की सूरज की रोशनी छनती हुई बस के शीशे से अंदर पहुंच रही थी ।...करीब सवा नौ बजे बस साकीनाका पहुंची... यहीं से सवार हुआ 23 साल का एक खूबसूरत नौजवान देखने में किसी भी फिल्म अभिनेता को पीछे छोड दे ।

नौजवान बस की पहेली मंज़ील मे सब से आगे जाकर बैठ गया ...तकरीबन 15मिनट बाद यानी 9 बज कर 27 मिनट पर जब बस बैलबाज़ार ,कुर्ला के सिगनल पर पहुंची तभी इस नौजवान का कंडक्टर से झगड़ा हुआ बात बढ़ी ..नौजवान उत्तेजित हो गया, कंडक्टर को बांधक बनाना चाहा, लोगों को धमकाया और कहा मैं किसी का कोई नुकसान नहीं करुंगा .. मैं बिहार से आया हूं मेरी राज ठाकरे से बात कराओ..

नौजवान ने बस को रिवॉव्लर की नोंक पर बंधक बनाने की कोशिश की ...सवार लोगों से मोबाइल मांगा .. बाहर के लोगो को चिल्ला चिल्ला कर अपने बारे में बताया ..तभी करीब पौने दस बजे पुलिस वहां पहुंच गयी, सीन पूरा फिल्मी था ..पुलिस कहती है कि उसे सरेंडर के लिये कहा गया.. पर उसने हवा मे चार बार गोलियां चला दी ।
पुलिस कहना है –सरेंडर से इंकार करने के बाद मुसाफिरों की जान बचाने के लिये उसके पास नौजवान को मारने के अलावा कोई और चारा नहीं था ....एंकाउंटर ज़रूरी था
23साल का नौजवान मर गया ... ये नौजवान पटना का राहुल था । हां, राहुल राज । चार भाई बहनों में तीसरे नम्बर का । राहुल पटना के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ एजूकेशन से एक्सरे में डिप्लोमा कर, एक अच्छे भविष्य की तलाश में इस महीने की 24 तारीख को मुंबई आया था ... शांत और सब की बात मानने वाले राहुल को क्या हो गया जो इसने ये रास्ता अपना लिया...
इलाको की लड़ाई का दर्द शायद कम हो जाता अगर महाराष्ट्र के गृहमंत्री का बयान न आता ... कैसे आर आर पाटिल के मुंह से निकला की गोली का जवाब गोली है ...
क्या अब इसको नियम बना लिया जाये ...
नितिश कुमार कहते हैं कि राहुल को बचाया जा सकता था ।लालू यादव कहते हैं कि ये हत्या है।रामविलास कहते हैं कि सोते शेर को जगाया जा रहा है । लेकिन उस पीड़ा की बात कोई नहीं कर रहा है जो एक हिन्दुस्तानी अपने ही देश के अलग राज्यों में सहता है । कहीं हम फिर 84 और 92 के बाद जो नतीजे सामने आये उस ओर तो नहीं बढ़ रहे.. सब मराठी एक सी भाषा बोलते है चाहे ......बालठाकरे ,राजठाकरे ,राणे हो या फिर पाटिल
तो फिर पूरा देश एक भाषा बोलने के लिये क्यों नहीं उठता ..
कल फिर 332 नंबर की बस चलेगी, लेकिन उस पर सवार लोग हर चढ़ने वाले को देख कर यही सोचेगे की कहीं ये भी, राहुल राज तो नहीं ...
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बेतुकीः मां लक्ष्मी का सालाना निरीक्षण आज

राम-राम सा। आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं। यह पर्व आप सभी के लिये मंगलमय हो। अब कुछ बेतुकी हो जाए।दास जी के पुत्र को एक्जाम में दीपावली का निबंध लिखने को दिया गया। बालक मन ने इतना अच्छा निबंध लिख दिया कि मास्टर जी प्रसन्न हो गये। बोले बेटा तुझे बी.एड., पीएचडी करने की कोई जरूरत नहीं। महान पिता की महान संतान, तुम तो लोगों को भाग्य विधाता बनोगे। निबंध इस प्रकार था।दीपावली मैया लक्ष्मी को मनाने का त्यौहार है। मैया लक्ष्मी बहुत दयालु हैं, कृपालु हैं। वह साल में एक दिन वार्षिक निरीक्षण पर निकलती हैं। सालाना निरीक्षण के लिये उन्होंने अमावस की काली रात को चुना है। इस सालाना निरीक्षण के लिये लोग घरों की सफाई करते हैं। जो अमीर हैं वो हर साल हर कमरे में महंगा वाला डिस्टेंपर करवाते हैं और जो गरीब हैं वो चार साल की गारंटी वाला डिस्टेंपर करवाते हैं। उनसे भी ज्यादा गरीब चूने से काम चलाते हैं। गांवों में लोग गाय-भैंस की पॉटी से भी काम चला लेते हैं। इस प्रक्रिया को ठीक वैसे ही समझा जा सकता है जैसे कोई वरिष्ठ अधिकारी सरकारी दफ्तर में सालाना निरीक्षण पर जाता है। इसके लिये अधिकारी कार्यालय को साफ कराते हैं। कमीशन वाले ठेकेदार से आफिस की पुताई करवाते हैं।रंगाई पुताई के बाद घर के बाहर खूब सारी लाइटें और झालर लगायी जाती हैं। जब से चाइना वालों को दीपावली के बारे में मालूम पड़ा है उन्होंने 25-30 रुपये की झालर बेचकर बड़ी-बड़ी कम्पनियों की बत्ती गुल कर दी है। ये झालर सामान्य तौर पर सीधे बिजली के खम्भे पर जम्पर डालकर लगायी जाती है। चोरी की बिजली से झालर जलाने का आनन्द ही कुछ और होता है। झालर लगाने के बाद रात को मैया का पूजन किया जाता है। हमारे देश में पुरानी कहावत है, पैसा ही पैसे को खींचता है। इसी लिये लोग मैया के सामने चांदी-सोने के सिक्के रखकर पूजा करते हैं।दीपावली का महत्व अधिकारी और प्रभावशाली लोगों के लिये विशेष होता है। कई अधिकारी तो साल भर तक आने वाले गिफ्ट का इंतजार करते रहते हैं। जितना बड़ा अधिकारी उतने ज्यादा गिफ्ट। शहरों में अक्सर देखा गया है कि लोग अपने घर में मिठाई का डिब्बा भले ही न ले जाएं पर अधिकारी को खुश जरूर करते हैं। जिस अधिकारी से जैसा काम पड़ता है वैसे ही गिफ्ट उसे दिये जाते हैं। ठेकेदार अपने-अपने विभागों के अफसरों को खुश करने के लिये मिठाई और पटाखे ले जाते हैं। एक बार अफसर खुश तो साल पर बल्ले-बल्ले। इन लोगों को मानना है कि मां लक्ष्मी साल में एक ही दिन के भ्रमण पर निकलती हैं बाकी के 364 दिन तो वह उन्हीं के यहां रहेंगी।मैया के आने के इंतजार में कुछ लोग अपने घरों के दरवाजे खुले छोड़ देते हैं। इन लोगों के घरों में चोरी हो जाती है तो भी यह समझते हैं कि मैया ने पुराना माल बाहर निकला दिया अब नया भिजवायेगी। यह त्यौहार उन लोगों के लिये बहुत ही बढ़िया है जो जुआ खेलते हैं। मैया ताश के पत्तों से होकर उनके घर का दरवाजा खटखटा देती है।इस त्यौहार का लाभ उन लोगों को भी है जो किसी न किसी रूप में सरकारी हैं। यही कारण हैं कि अपनी दीपावली मनाने के लिये दूसरों का जेब तराशना जरूरी है। खर्चे बढ़ते हैं तो छापे भी मारने पढ़ते हैं। अफसर को भी घर पर मिठाई चाहिये। उस बेचारे को भी अपने बड़े संतुष्ट करने होते हैं। बिजली वाले चोरी रोकने के लिये बागते हैं। जहां चोरी न हो रही हो वहां जम्पर डालकर चोरी करवाते हैं फिर खुद ही छापा मार देते हैं। इन्हीं लोगों ने कहावत बनायी है चोर से कह चोरी कर और सिपाही से कहो जागते रहे। अक्लमंद लोग साल में एक बार ही इतने गिफ्ट ले लेते हैं कि बाद में जरूरत ही न पड़े क्योंकि दीपावली गिफ्ट भ्रष्टाचार नहीं होता। यह तो सदाचार होता है।पूजा करने के बाद लोग अपने पैसे में खुद आग लगाते हैं और तालियां बजाते हैं। यह काम कालीदास जी से प्रेरणा लेकर किया जाता है। कालीदास जी जिस डाली पर बैठते थे उसी को काटते थे। इस दिन गणेश भगवान की भी पूजा होती है। लोग गणेश जी से कहते हैं कि वह अपने चूहे को समझायें कि वह दूसरे घरों से लक्ष्मी मैया को लेकर आयें।उपसंहारइस तरह से साफ है कि दीपावली सभी को खुश करने का दिन होता है। बड़ी-बड़ी कम्पनियां भी अपनी दीपावली मनाने के लिये गिफ्ट पैक भी बाजार में लाती हैं।पंकुल

रात को कोई रोया था !!

रात आँख खुल गयी
एक सपने ने छुआ था !
आँख बड़ी नम थी,शायद्
रात को मैं रोया था !!
आज वो खिल-खिल उठा
बीज जो मैंने बोया था !!
देर तक सोता ही रहा
बड़े ही दिनों से सोया था!!
आज वो बिखर ही गया
ख्वाब जो मैंने संजोया था !
मुझसे प्यार मांगता था
खुदा रु-ब-रु रोया था !!
था वो जनाजे में शामिल
जिसने मुझे डुबोया था !!
वो मेरे नजदीक था, पर
करवट बदल कर सोया था !
उसके आंसुओं से "गाफिल"
अपना जिस्म भिंगोया था !!

27.10.08

HAPPY DIWALI

Ur eyes Pataka,
Ur lip Rocket,
Ur ear chakri,
Ur smile Phuljadi,
Ur style Anar,
Ur personality Bomb,
BACH NIKAL LE..
I am coming wid MOMBATTI..
HAPPY DIWALI


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Friends18.com Diwali Greetings


Diwali aai,
masti chahi,
rangi rangoli,
deep jalaye,
Dhoom Dhadaka,
chhoda phataka,
jali Phuljadiyan,
Sabko Bhadaye,
Happy Diwali

aap sabhi ko diwali ki hadik subhkamnayein.

मैं कौन सा दीप जलाऊँ?

मैं कौन सा दीप जलाऊ? अब से ठीक बीस घंटे बाद दीपावली के दीप घर-घर, गली-चौराहे जलने शुरू होंगे, मगर मैं दुविधा में हूं कि मैं कौन सा दीप जलाऊं? जलते हुए दीप अपने हिस्से का अंधियारा दूर करेंगे, पर क्या मेरे जलाए दीप मेरे हिस्से का अंधियारा दूर कर सकेंगे। मैं कौन सा दीप जलाऊं?-उस नौजवान की आत्मा की शांति के लिए कोई दीप जलाऊं, जिसके कोमल मन में राजनीति के अंधियारे ने ऐसा हिस्टारिया दिया कि वह अपना आपा खो बैठा और उस आदमी से बात करने के लिए बेकाबू हो गया, जो उसके लिए जिम्मेदार था। जो दो दिन पहले ही मुंबई पहुंचा था अपना कैरियर बनाने। कहीं ऐसा तो नहीं हुआ उसके साथ कि मुंबई की चकाचौंध में वह अपने अस्तित्व को बिसरा चुका हो और बार-बार वही सवाल उसके दिमाग में कौंधने लगा हो, जो वहां से पिटकर लौटे दूसरे भाइयों के मन में कौंध रहा है।
क्या मैं उस आदमी के नाम पर भी दीप जला सकता हूं, जो वास्तव में अपने अस्तित्व और अपने भविष्य के अंधियारे को दूर करने के लिए मराठियों के बहाने पूरे देश में अंधियारा पैदा करना चाहता है। लोहे को लोहे से काटने की कहावत पर चलकर जो अंधियारे से अंधियारे को हराना चाहता है। या में बाजार के उस महानायक के नाम का दीप जलाऊं, जो गंगा-जमुनी भावनाओं के उद्वेग पर सवार होकर महानायक बना और हिंदी बोलने की शर्म में हिंदी की छाती पर खड़ी होकर माफी मांग गया। महानायक भी मुंबई में अपने अस्तित्व पर संकट देख रहा है, तो मैं उसके अस्तित्व की अक्षुण्ता की कामना में एक और दीप जलाऊं?
मुंबई शहर पर एक परिवार के दो महत्वाकांक्षी लोगों में से किसी एक की हुकूमत कायम रहने की जद्दोजहद से बुझ रहे दीपों में से मैं किसका दीप जलाऊं? या बेबड़ा मारकर सो गए उन लोगों के लिए दीप जलाऊं, जो अपने महानायक की तलाश में उनके झंडे के साथ अपने अस्तित्व के भ्रम को पाले हुए हैं और अभी भी सो रहे हैं। जो सो रहे हैं और सोते-सोते भयभीत हैं कि उनकी जमीन पर यूपी-बिहार के भइये क्यों इतने जाग्रत रहते हैं।
मैं बाटला हाउस की अतृप्त आत्माओं की शांति को एक दीप अवश्य जलाता, मगर अब मैं एक साध्वी के बहाने उस राजनीति का अंधियारा दूर करने के लिए कोई दीप क्यों न जलाऊं, जो मात्र अपने ओजस्वी भाषण की वजह से आज की राजनीति का साफ्ट टारगेट बन गयी, जिसके बहाने से मुस्लिम आतंकवाद बनाम हिंदू आतंकवाद की नई थ्यौरी गढ़ने की प्यास जाने कब से विकल कर रही थी।
आय के मामले में मंदी और व्यय के मामले में मंहगाई वाले इन दिनों में आखिर कोई कितने दीप जला सकता है और सावन हरे न भादों सूखे वाले मंहगे साक्षी भाव में मैं आखिर कितने दीप जला पाऊंगा। घी-तेल या मोम, चीनी, मिट्टी या चांदी के दीपों में से कौन सा दीपक पटना से लेकर मुंबई और बाटला से लेकर नंदीग्राम तक के अंधेरे को दूर कर सकेगा, कोई पहचान कर बता दे,मैं वही दीप जला लूंगा।

पवन निशान्त
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बेटियों ने दी पिता को मुखाग्नि

बेटी को भार व aभिशाप मानने वाले दम्पत्तियों की अब अपनी धारणा बदल लेनी चाहिए। पूर्वी उत्तर प्रदेश की जमीं पर दबे पावं ही सही नई सामाजिक क्रांति जन्म ले रही हें। बेटियाँ जहाँ विभिन्न छेत्रों में आगे आकर कुल का नम रोशन कर रहीं हें। वहीं वे पितृसत्तात्मक समाज की पतानोंमुख मान्यताओं को खारिज भी कर रहीं हें। मंगलवार को अपने पिता के शव को मुखाग्नि दी। इस इलाके में यह कोई पहली घटना नहीं हैं। इसके पूर्व लगभग एक दर्जन मामलों में बेटियों ने मान्यतायों में बेटों के नम आरछित अन्तिम संस्कार के शास्त्रीय विधान को संपन्न किया। बेटियों की इस पहल की हर तरफ सराहना हो रही हैं। उनके इस कदम ने समाज को यह संदेश दिया हैं कि बेटियाँ किसी भी मामले में बेटों से कम नहीं हैं। मिली जानकारी के अनुसार इन बेटियों के पिता रामलखन यादव रेलवे में डीजल रेल इंजन चालक थे। उनहोंने दो शादियाँ कि थीं। पहली पुत्री से उन्हें चार पुत्रियाँ हुयीं जो जगदीशपुर सहजनवां में उनके पुस्तैनी माकन में रहतीं हें। बेटों के आस में उन्होंनेदूसरी शादी कि। इस पत्नी से भी पॉँच पुत्रियाँ ही हुयीं। दूसरी पत्नी इनके साथ बिछिया स्थित माकन पर रहती थी। श्री यादव पिछले तिन सल् से बीमार चल थे। १६ दिन पहले उनकी हालत बहुत ख़राब हो गई और रेलवे हास्पीटल में भरती कराया गया। मंगलवार को उन्होंने अन्तिम साँस ली। उनके पास उनकी दूसरी पत्नी व् उसकी पॉँच बेटियाँ ही उपस्थित थीं। पिता कि मृत्यु के बाद बेटियाँ शव को घर ले गयीं। शव को अर्थी पर सजाया और कन्धा दिया। शव को राजघाट ले गयीं। शास्त्रीय विधान से अन्तिम क्रिया संपन्न की। सबसे छोटी उर्मिला ने मुखाग्नि दी।

लक्ष्मी आएगी, लक्ष्मी आएगी, न जाने कब आयेगी

मेरे पिताजी के पिताजी के पिताजी के पिताजी... न जाने कब से लक्ष्मी पूजन करते आ रहे हैं। पर, लक्ष्मी है कि आने का नाम ही नहीं लेती। क्या पता, क्यों रूठीïï? मेरे परिवार में किसी को धन का दड़बा नहीं मिला। धन का दड़बा तो दूर बड़ी मशक्कत के बाद धन के दर्शन होते हैं। फिर भी हम इस आस में लक्ष्मीजी की पूजा करते हैं कि आज आएगी, कल आएगी परसों लक्ष्मी आएगी, पर जाने कब आएगी। ...और हम लिख्खाड़ों से न जाने क्यों लक्ष्मी रूठी है। कलमकारों ने न जाने क्या लक्ष्मी का बिगाड़ा है कि हम उनको फूटी आंख न सुहाते हैं, हमारे पास आतीं ही नहीं। दूर से चली जातीं है, न जाने क्या गुनाह हुआ है। कभी ढंग-ढांग से आती ही नहीं। आती है तो झलक भर दिखला जाती है और उल्लू पर सवार हो चली जाती है। सही बात है लक्ष्मी जी को उल्लू बहुत पसंद है, पर उपर वाले ने हमें उल्लू नहीं बनाया तो इसमें हमारा क्या दोष?
मैने तो सुना है कि बार-बार की मिन्नते करो, तो अच्छे-अच्छे का दिल पसीज जाता है, पर लक्ष्मी माता का दिल न जाने काहे से बना है, जो पसीजने का नाम ही नहीं लेता।मैं सोचता हूं कि लक्ष्मी आज प्रसन्न हो, कल खुश हो, इस साल खुश हो, उस साल खुश हो, पर अपन पर तो लक्ष्मी न जाने कब हेप्पी होगी। हेप्पी से याद आया, धन तेरस दिपावली शुरू हो गयी है । तो, भाया, आपको हेप्पी धन तेरस, हेप्पी रूप चौदस, हेपपी, दिवाली, हेप्पी पड़वा, हेप्पी भाई दूज, हेप्पी॥हेप्पी॥हेप्पी।आपके घर आए धन,आपका निखरे रूप, मजे से मनाऐ दिवाली, आपआपस में बड़े प्यार,और भाई दूज पर मिले आपको उपहार।
...और हां। मेरी हेप्पी नेस के लिए प्रे जरूर करना। आपकी प्रे से मुझे मिलेगा धन, निखरेगा रूप, तो फिफ्टी परसेंट आपका। पर, इस बात को प्रुफ करना होगा कि ये आपकी प्रे का ही कमाल है। फिलहाल, आपको विश यू हेप्पी दीपावली(नियम और शर्ते लागू)
आपका...
पंकज व्यास

डा.रूपेश श्रीवास्तव के शिष्य का चड्ढी संकट

जब भी चड्ढी में कुछ होता था तो वह अन्य कारण से होता था लेकिन आजकल जब से यशवंत दादा ने बताया है कि डा रूपेश श्रीवास्तव का भूत न जाने किस-किसकी चड्ढी खोलेगा और इसी लिये उन्होंने तो अभी से कस कर चड्ढी पकड़ रखा है तो मुझे भी यही खतरा सता रहा है। डा रूपेश श्रीवास्तव की मौत की सूचना पर यशवंत दादा ने जो टिप्पणी करी वह डरावनी है क्योंकि इससे बहुत पहले भी यशवंत दादा लिख चुके हैं कि डा रूपेश श्रीवास्तव उनके सपने में आ कर सिर पर डंडा लेकर खड़े रहते हैं और कहते हैं कि क्रांति करो और अब हैं कि चड्ढी संकट जैसा राष्ट्रीय खतरा पैदा कर दिया है। ये डा रूपेश श्रीवास्तव भी मर कर न जाने क्या चाहते हैं अब तो लगता है कि अगर मेरे सपने में डंडा लेकर आए तो पता नहीं क्या-क्या कहेंगे इस कारण नींद ही गायब है उनके मरने के बाद से।
ये चड्ढी का खतरा ऐसा बढ़ा है की सोचा की लोहे की बनवा लूँ, पक्का और परमानेंट मगर फ़िर याद आया की जब रुपेश चड्ढी उतरने में माहिर है तो उसका भूत दो देखते देखते लोहे वाला भी गायब ही कर देगा, अब तो यशवंत दादा के साथ मैं भी चड्ढी संकटग्रस्त हो गया हूँ, बचाओ यारों इस चड्ढी उतारू भूत से......

अमीरों की दीवाली, गरीबों का दीवाला

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मनोज कुमार राठौर
हमारे देश
में दीवाली का त्यौहार बडे़ धूमधाम से मनाया जाता है। बाजार में अनुमान से कहीं अधिक व्यवसाय होता है। मंदी के इस दौर में भी अरबों का कारोबार किया जा रहा है, लेकिन मंदी की गाज अमीरों पर नहीं गिरी, शायद दीवाली मनाने का हक उन्हे ही है। गरीबों का दीवाला निकल रहा है।
जहां एक ओर बाजार में सोना, चांदी, दो पहिया वाहन, इलेक्ट्राॅनिक सामान, कपड़ा, पटाखे, क्राकरी, फर्नीचर और सजावटी सामान के अलावा प्रापर्टी की खरीदी हो रही है। दूसरी ओर किसी ने यह अंदाजा लगाया है कि यह खरीदी कौन कर रहा है? कोई आम आदमी तो यह खरीदी नहीं कर सकता है क्योकि वह दिन भर मजदूरी करता है जब जाकर उसका पेट भरता है। ऐसे में वह दीवाली कैसे मनाऐगां ? बस वह आसमान की आतिषबाजी को देखकर संतुष्ट हो सकता है। बाजारों में मिष्ठान भंडारों में तरह-तरह की मिठाईयां सजी होती है, बस वह उसकों एक नजर देखकर अपना जी भर लेगा। नये कपड़ों का सपना सजाए मन में वह उसकी कल्पना ही कर सकता है। गरीब व्यक्ति जब दिन भर काम कर अपना पेट पालता है तो वह दीवाली की इस चकाचैंद को कैसे पूरा कर पाएग ? अब आप भी यह समझ गए होगें की दीपावी किस का त्यौहार है।

मध्यप्रदेष में स्थि गंजबासौदा निवासी एक परिवार ने आर्थिक तंगी के परेशान होकर जहर खा लिया। परिवार में छः सदस्य थे सभी की मौके पर ही मौत हो गई। ऐसे ही कई उदाहरण है जिसमें लोग आर्थिक तंगी के चलते अपने परिवार का पालन-पोषण नहीं कर पाते हैं और उनके सामने आखिरी रास्ता मौत का बचता है। इस आर्थिक मंदी के चते एक आम आदमी दीवाली कैसे मनाऐगा ? लोग कहते है कि लक्ष्मी की पूजा करने से घर में धन की बरसात होती है। पर गरीब को तो अपने पेट पालने के लाले पढ़े हैं ऐसे में वह क्या पूजा पाठ करेगा? दीवाली तो मानो धन का त्यौहार है। जिसके पास धन उसी की दीवाली। जिसके पास धन नहीं उसका दीवाला।www.parkhinazar.blogspot.com

एक और भगत सिंह

अभी एक घंटा पहले एक बिहारी युवक का एनकाउंटर कर दिया गया है उस युवक की हत्या की गई जो मराठी बनाम गैर मराठी बवाल में उलझ कर भावनाओं मैं बह गया लगता है उस का मकसद निश्चय ही किसी की हत्या का नहीं था अन्यथा वो बस मैं बंधक बनाय गए अधिकतर लोगों की हत्या कर सकता था मगर उसने ऐसा नहीं किया
उस का मकसद साफ़ था वो राज ठाकरे और उन जैसे नेताओं को सबक सिखाना चाहता था जो आम जनता में वैमनस्य का वातावरण फैला कर अपने वोट बैंक को बढाना चाहते हैं हालाकि उसने ये जिस तरह करना चाहा वो ग़लत था मगर किसी न किसी को ये कदम उठाना ही था चाहे वो ग़लत ही क्यों न हो हालत ही ऐसे हो चले थे ,
वो भगत सिंह की मौत चाहता था मगर मुंबई पुलिस ने उसका एनकाउंटर कर उसे एक आतंकवादी की मौत दी

डा० नरेन्द्र कोहली से पहली मुलाकात

पूर्वांचल की ह्र्दयनगरी एवं महायोगी गोरक्षनाथ जी की तपोभूमि गोरखपुर में २४ एवं २५ अक्टूबर,२००८ को डा० नरेन्द्र कोहली, डा० प्रमोद कुमार सिंह एवं डा० के०एन०तिवारी जैसे महान साहित्यकारों एवं विद्वानों का प्रवास रहा। प्रवास का कारण दिग्विजयनाथ डिग्री कालेज, गोरखपुर में "रामचरितमानस
में आदर्श परिवार की परिकल्पना: आज के संदर्भों में" तथा पूर्वोत्तर रेलवे में "आतंकवाद से संघर्ष: भारतीय महाग्रंथों के संदर्भ में" विषयों पर आयोजित संगोष्ठियों में उन्हें आमंत्रित किया गया था। डा० कोहली और डा० सिंह किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। डा० सिंह मगध विश्वविद्यालय के पूर्व
प्राचार्य रह चुके हैं उनकी विद्वता का लोहा सारा साहित्य-समाज मानता है। डा० कोहली उपन्यासकार, कहानीकार, नाटककार, व्यंग्यकार तथा निबंधकार हैं। अपने समकालीन साहित्यकारों से पर्याप्त भिन्न हैं। साहित्य की समृद्धि तथा समाज की प्रगति में उनका योगदान प्रत्यक्ष है।
ऎसे महान साहित्यकारों से पहली बार मुझे साक्षात्कार करने एवं सानिध्य का अवसर मिला। इसके लिए मैं डा० रण विजय सिंह जी का ह्र्दय से आभारी हूं जिन्होंने मुझे इन महान विभूतियों की सेवा-सत्कार का दायित्व सौंपा। मन में काफ़ी प्रश्न उमड़ रहे थे, परन्तु उनसे क्रास क्वेश्चन करने की अपेक्षा
सिर्फ़ उनकी ही बातें सुनने से मन नहीं भर रहा था। २५-१०-०८ को उनको वैशाली एक्सप्रेस से प्रस्थान करना था। गाड़ी अपने निर्धारित समय से करीब तीन से भी अधिक घन्टे विलम्ब से सवा आठ बजे गोरखपुर आई। डा० कोहली और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राचार्य डा० के०एन०तिवारी को इसी गाड़ी से
दिल्ली जाना था। मेरा सारा समय इन्हीं महान साहित्यकारों के साथ बीता। यह मेरे जीवन का अविस्मरणीय समय रहा।
पूर्वांचल की ह्र्दयनगरी एवं महायोगी गोरक्षनाथ जी की तपोभूमि गोरखपुर में २४ एवं २५ अक्टूबर,२००८ को डा० नरेन्द्र कोहली, डा० प्रमोद कुमार सिंह एवं डा० के०एन०तिवारी जैसे महान साहित्यकारों एवं विद्वानों का प्रवास रहा। प्रवास का कारण दिग्विजयनाथ डिग्री कालेज, गोरखपुर में "रामचरितमानस
में आदर्श परिवार की परिकल्पना: आज के संदर्भों में" तथा पूर्वोत्तर रेलवे में "आतंकवाद से संघर्ष: भारतीय महाग्रंथों के संदर्भ में" विषयों पर आयोजित संगोष्ठियों में उन्हें आमंत्रित किया गया था। डा० कोहली और डा० सिंह किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। डा० सिंह मगध विश्वविद्यालय के पूर्व
प्राचार्य रह चुके हैं उनकी विद्वता का लोहा सारा साहित्य-समाज मानता है। डा० कोहली उपन्यासकार, कहानीकार, नाटककार, व्यंग्यकार तथा निबंधकार हैं। अपने समकालीन साहित्यकारों से पर्याप्त भिन्न हैं। साहित्य की समृद्धि तथा समाज की प्रगति में उनका योगदान प्रत्यक्ष है।
ऎसे महान साहित्यकारों से पहली बार मुझे साक्षात्कार करने एवं सानिध्य का अवसर मिला। इसके लिए मैं डा० रण विजय सिंह जी का ह्र्दय से आभारी हूं जिन्होंने मुझे इन महान विभूतियों की सेवा-सत्कार का दायित्व सौंपा। मन में काफ़ी प्रश्न उमड़ रहे थे, परन्तु उनसे क्रास क्वेश्चन करने की अपेक्षा
सिर्फ़ उनकी ही बातें सुनने से मन नहीं भर रहा था। २५-१०-०८ को उनको वैशाली एक्सप्रेस से प्रस्थान करना था। गाड़ी अपने निर्धारित समय से करीब तीन से भी अधिक घन्टे विलम्ब से सवा आठ बजे गोरखपुर आई। डा० कोहली और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राचार्य डा० के०एन०तिवारी को इसी गाड़ी से
दिल्ली जाना था। मेरा सारा समय इन्हीं महान साहित्यकारों के साथ बीता। यह मेरे जीवन का अविस्मरणीय समय रहा।

26.10.08

श्रीरामजी आ गए हैं...

रहा एक दिन अवधि कर अति आरत पुर लोग
जहं तहं सोचहिं नारि नर कृस तन राम वियोग
अर्थात रामजी के लाटने की अवधि का एक ही दिन बाकी रह गया अतएव नगर के लोग बहुत आतुर हो रहे हैं। राम के वियोग में दुबले हुए स्त्री-पुरुष जहां तहां सोच-विचार कर रहे हैं कि क्या बात है श्रीरामजी क्यों नहीं आये

सगुन होहिं सुंदर सकल मन प्रसन्न सब केर
प्रभु आगवन जनाव जनु नगर रम्य चहुं फेर
अर्थात प्रभु के आगमन की सूचना के बाद सब सुंदर शकुन होने लग। सबके मन प्रसन्न हो गए। नगर भी चारों ओर से रमणीक हो गया। मानों ये सब के सब प्रभु के आगमन को जना रहे हैं।

जासु बिरहं सोचहु दिन राती रटहुं निरंतर गुन गन पांती
रघुकुल तिलक सुजन सुखदाता आयउ कुशल देव मुनि त्राता
अर्थात जिनके विरह में लोग दिन रात सोचते रहते हैं जिनके गुण समूह की पंक्तियों को आप निरंतर रटते रहते हैं। वे ही रघुकुल के तिलक सज्जनों को सुख देने वाले और देवताओं तथा मुनियों के रक्षक श्रीरामजी सकुशल आ गए हैं।
दीपावली की शुभकामनाएं...

एक और भडासी का निधन ?

पिछले दिनों डॉ रुपेश के आत्महत्या या ह्त्या का पोस्ट पढ़ा, पढ़ते पढ़ते सब पर कमेंटियाने वाला ये जीव इस लेखनी पर टिपीयाने से इनकार कर गया संग ही विचारों की अंतर्द्वान्दता भी.
पहले हरे दादा की मौत फ़िर बारी पंडित जी की, और अब डॉ साहब
इस असमय मौत के पीछे का राज, धुरंधर भडासियों के कालकलवित होने का रहस्य सच में रहस्य बनता जा रहा है, कारन जो भी हो मगर विचारों के भंवर में उलझा मैं अगले का इन्तेजार कर रहा हूँ, सम्भव है वो मैं ही होऊं, और अपने संभावित मौत की तैयारी भी मुझे ही तो करनी है, मगर विचार की अंतर्द्वान्दता की आख़िर ये असमय मोत का क्या कारण है, सम्भव है भूत बने रुपेश श्रीवास्तव इस पर प्रकाश डाल सकें,
वैसे भी अब भडास से जय भडास की परम्परा समाप्त प्राय है सो एक बार फ़िर से

जय जय भड़ास
जय जय भड़ास


शुभ दीपावली




प्यार तो पहली नजर में हो जाता है

यह तो बहुत बुरा हुआ। आतंकवाद के सिलसिले में अब हिन्दू भी धराने लगे। अपराध और आतंकवाद में फर्क है। आतंकवाद देश की सम्प्रभुता के विरुद्ध जंग है। वहीं, अपराध अपनी खीझ या आदत को सन्तुष्ट करने का तरीका। साध्वी ने खीझ मिटाई या हिन्दुस्तान की सम्प्रभुता पर चोट की इस पर गौर करने की जरूरत है। लेकिन सत्य यही है कि विस्फोट करके, बेगुनाहों का कत्ल करके आतंकवाद के विरुद्ध जंग नहीं लड़ी जा सकती। मालेगांव में जो भी लोग मारे गये वो आतंकवादी नहीं थे। शायद मात्र मुसलमान होने की वजह से उनको लक्ष्य बनाया गया। क्या गाहे-बगाहे मुसलमानों को मारकर आतंकवाद का जवाब दिया जा सकता है? कतई नहीं। शायद इस बात को साध्वी समझ नहीं पाईं। यही अतिरेक है। विचार इसी सीमा पर जाकर तालिबानी हो जाते हैं और मनुष्य को राक्षस में तब्दील कर देते हैं। दूसरी बात यह कि इस प्रकार की घटनाओं के हजार खतरे हैं। इसमें साम्प्रदायिक सद्भाव को चोट से लेकर कानून व्यवस्था का हलकान होना तक शामिल है। इसलिए इस प्रकार की कारगुजारियों का कतई समर्थन नहीं किया जा सकता। इसकी निन्दा और भर्त्सना ही उचित है।
यहां एक प्रश्न और खड़ा होता है कि साध्वी ने वास्तव में विस्फोट में सहयोग किया बिना न्यायालय की सहमति के यह कैसे कहा जा सकता है? लेकिन हमें साध्वी को घेरे में लेकर चलना ही पड़ेगा, नहीं तो बाटला हाउस वाले आतंकी भी सन्देह का लाभ पा जायेंगे। हां एक बात जरूर है कि इसमें भाजपा या संघ परिवार को नहीं लपेटा जा सकता। अव्वल तो यह कि किसी भी संगठन में काम करने वाले हर व्यक्ति की गारंटी सम्बन्धित संगठन नहीं ले सकता। संगठन को दोषी तभी ठहराया जा सकता है जब वह उसके क्रियाकलापों का समर्थन करे या स्वयं उस प्रकार का आचरण करे। इस वजह से संघ परिवार को कतई दोषी नहीं ठहराया जा सकता। हर संगठन में तमाम प्रकार के लोग रहते हैं। प्रारम्भिक सूचना के अनुसार साध्वी ---- नाम से अपना संगठन चलातीं थीं। संघ परिवार में इस प्रकार का कोई आनुषांगिक संगठन नहीं है। संघ परिवार का कोई व्यक्ति आगे चलकर अपना संगठन बना और चला सकता है। यह अलग बात है कि अगर ऊपर से ही सही उसका आचरण हिन्दुत्ववादी है तो संघ परिवार या उससे जुड़े लोगों का उसे समर्थन हासिल हो सकता है। आखिर पूरी कुण्डली खंगालकर तो किसी का सहयोग और समर्थन नहीं किया जाता है। प्यार तो पहली नजर में ही हो जाता है और फिर जात-पाति की परवाह कौन करता है। तकलीफें तो पींगें बढ़ने के साथ शुरू होती हैं। इस वजह से शिवराज सिंह चौहान या राजनाथ के साथ साध्वी प्रज्ञा ठाकुर की तस्वीरें धर्मनिर्पेक्ष लोगों के लिए बहुत उपयोगी नहीं साबित हो सकतीं। साधु-महात्माओं के साथ इन लोगों का मिलना-जुलना अक्सर होता रहता है। कोई साधु अन्दर-अन्दर क्या करता है इसकी गारण्टी नहीं ली जा सकती। सामान्य तौर पर हिन्दु समाज में साधु-सन्तों का सम्मान और सत्कार करने की परिपाटी है। लेकिन कुछ-एक साधुओं के आचरण से जनता की इस आदत में बदलाव आया है। अब हर साधु को पाखण्डी समझने का चलन हो गया है जैसे हर नेता को लोग भ्रष्ट समझते हैं। दूसरी बात यह भी कही जाती है कि साधु का काम केवल भजन करना है लेकिन हिन्दू समाज के पतन का यह सबसे बड़ा कारण रहा है, इस पर आम जनमानस कभी गौर नहीं करता। एक मिनट में विचार बना लेना भारतीय समाज की फितरत है। चाहे कोई बुरा ही क्यों न माने लेकिन यह सत्य है कि अभी भी अधिकांश हिन्दुस्तानियों का बौद्धिक विकास न्यून है और चिन्तन-मनन का उनके जीवन में कोई स्थान नहीं है। स्वामी विवेकानन्द ने यह बात बहुत पहले कही थी लेकिन अफसोस कि आज भी इसमें कोई ज्यादा सुधार नहीं हुआ। खैर, विषयान्तर से अब विषय पर आते हैं। साधु-सन्तों को हिन्दु समाज को संगठित और मजबूत बनाने जिम्मेदारी लेनी चाहिए। शरीर से लेकर मन के स्तर तक यह कार्य आवश्यक है। लेकिन बम विस्फोट करके समाज, देश या जाति का भला नहीं किया जा सकता यह तो तय है।
वेद रत्न शुक्ल bakaulbed.blogspot.com

औघण चला लीक से हटकर


साधु होने की आधार भूमि है संवेदना। क्रोध नहीं। अमूमन औघणों का चित्रण अभी तक क्रोधी, नसेरी व भयंकर के रूप में होता रहा है और इसी का फायदा उठाकर कुछ नकलचिये उस वेश भूषा में आ जाते थे और अपने को औघण कहकर समाज को ठगते व भयभीत करते रहे। अघोराचार्य बाबा कीनाराम की नई चदरिया के रूप में विख्यात अवधूत भगवान सिद्धार्थ गौतम राम जी महाराज ने इस दिशा में एक सार्थक पहल की है। उहोंने औघणों को उस वेश भूषा से ही मुक्त नहीं कराया बल्कि अघोर पंथ को भी समाज से जोणा और समाज के उन्नयन के लिए प्रयास शुरू किया। लिक से हटकर चलने वाले इस औघण ने औघणों के प्रति समाज के भ्रम, घृणा व भय को दूर किया। पहले औघण मूलतः अपनी साधना में रमते थे। इसके लिए उहोंने श्मशान को अपना निवास स्थान बनाया था और समाज द्वारा उपेक्षित चीजों आदि से वे अपना जीवन निर्वाह करते थे। ताकि वे समाज पर भार न बने। कफन लपेटना और श्मशान की लकरी से खाना बनाना उनके इसी उद्देश्य के तहत था किसमाज उनसे कटा रहे और उनकी साधना में कोई व्यवधान न आए। लोगों को भयभीत करना और धन संग्रह औघणों कि प्रवृति कभी नहीं थी। अघोर पीठ गोरखपुर के प्रमुख अवधूत छबीलेराम के अनुसार औघणों कि साधना कि पहला कदम होता था - रूद्राचार, जिसमें बारह वर्ष तक नहाना धोना नहीं होता था। वे समाज से दूर रहते थे। रूद्राचार के समय साधकों कि दशा पागलों कि हो जाती थी। विषम परिस्थितियों में वे अपने को साधते थे। यह देखकर कुछ बहुरूपिये समाज में घूमने लगे और लोगों को भयभीत कर ठगने लगे। औघण सम्प्रदाय को बदनाम होते देख अवधूत भगवान सिद्धार्थ गौतम राम जी महाराज ने वह व्यवस्था ही ख़त्म कर दी और अघोर पंथ को सीधे समाज से संपृक्त कर दिया। साथ ही मानव सेवा इस पंथ का मुख्य ध्येय बना दिया। अवधूत भगवान सिद्धार्थ गौतम राम जी महाराज को अघोराचार्य बाबा कीनाराम अवतार मना जाता है। बाबा कीनाराम ने शरीर छोरते वक्त कहा था की मैं अपनी ग्यारहवीं गद्दी पर स्वयं आऊंगा। इस समय ग्यारहवीं गद्दी चल रही है। अवधूत भगवान सिद्धार्थ गौतम राम जी महाराज ने अघोर पंथ को समाज से संपृक्त कराने के लिए जगह जगह आश्रमों की स्थापना की। इसी क्रम में उनहोंने ट्रांसपोर्ट नगर गोरखपुर में अघोर पीठ बनाया। यह पीठ नशा उन्मूलन के साथ ही दूरस्थ पहारों व् जगलों में गरीब आदिवासियों को अन्न व् वस्त्र पहुँचाने का कार्य करती है।

Happy Diwali

Wish you all a very very happy Diwali.
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“Everybody wants to become Somebody”
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चलो, उत्सव मनाएं !

चलो, उत्सव मनाएं !

इस बार भी,
दीपावली पर
कई वजह हैं
दीप जलाने की
उत्सव मनाने की।
चलो, दीप जलाएं,
उत्सव मनाएं।
भूल जाओ कि
तोड़ दिया दम
भूख से
कुछ लोगों ने,
बुझा दिए चिराग
घरों के
बेलगाम बसों ने,
झूल गए बेबस
अन्नदाता
कर्ज के फंदों पर,
खुले आसमान के नीचे
इंसानियत
मर गई ठिठुरकर
हो गई खामोश
ढेरों आवाजें
बमों के धमाकों से,
मरवा दिया ख़ुद ही
बेटों को
कुछ माताओं ने,
अनगिनत सुहागिनें
चढ़ गई
दहेज़ कि बलिवेदी पर।
ये रोज के किस्से
क्यूँ उठाये,
चलो उत्सव मनाएं !
एक सामूहिक उपलब्धि है
पटाखे फोड़ने के लिए।
बढ़ रही है देश में
संख्या अरबपतियों की,
क्या हुआ
जी रहे हैं जो
करोड़ों लोग
जिन्दगी कीडे-मकोडों की !
चलो "अम्बानियों" को
धूप-दीप लगायें !
उत्सव मनाएं !!

(संजीव रघुवंशी )