31.3.11

झूठ,झूठ,झूठ,मुंबई सचिन की कर्मभूमि नहीं है !!

झूठ,झूठ,झूठ,मुंबई सचिन की कर्मभूमि नहीं है !!
भारत इस विश्वकप के फाईनल में क्या पहुंचा है,कि भारत की जीत की उम्मीदों के साथ सचिन के सर पर भी भारत के तमाम लोगों की उम्मीदों का बोझ आन पडा है और यह भी कि सचिन मुंबई के वानखेड़े में अपने शतकों का शतक पूरा करेंगे और यह भी कि मुंबई जो सचिन की कर्मभूमि है !!मुंबई सचिन की जन्मस्थली है,इस बात से तो अपन को कोई एतराज नहीं है मगर मुंबई सचिन की कर्मभूमि है,इस बात से अपन इत्तेफाक नहीं रखते....और जिन तमाम क्रिकेट-प्रेमियों ने सचिन के अक्खा क्रिकेट कैरियर को देखा है,जाना है,परखा है और आत्मसात किया है,अपन को यह यकीन है कि उनको भी अपन की बात पर ही इत्तेफाक होगा....!!
                जब किसी बहुत बड़े व्यक्ति के इतिहास को देखा जाता है,तब यही देखा जाता है कि उसने अपने समूचे जीवन में किस चीज़ को जीया है,किन चीज़ों से लड़ा है,किनके लिए लड़ा है,उन कामों की महत्ता क्या है,उनका कुल परिणाम क्या है और सबसे महत्वपूर्ण बात कि उसके द्वारा किये गए कार्यों का फलक या आयाम क्या है और हमने इतिहास से ये ही जाना है कि उस व्यक्ति ने अपने आस-पास अपितु दूर-दूर तक अपने कार्यों का डंका बजाया है...और उन कार्यों और उसके परिणामों का कुल परिणाम भी दूर-दिगंत तक फैला है और तत्पश्चात सबसे महत्वपूर्ण तो यह कि उस व्यक्ति के बारे में अब जनमानस में तरह-तरह की किवदंतियां भी घर करने लगी हैं, और इसी एक बात से उस व्यक्ति की कर्मभूमि की स्थानीयता की बातें भ्रम लगने लगती हैं,क्यूंकि वो व्यक्ति दूर-दूर तक जन-जन को प्यारा हो जाता है !!
                 सचिन ने बेशक अपनी किरकिटिया पारी की शुरुआत मुंबई या कि वानखेड़े से की होगी,मगर भाइयों वो तो सिर्फ ही हुई होगी ना....उसके बाद तो उन्होंने अपना परचम दुनिया के किस मैदान पर नहीं फहराया है......दुनिया की धरती का ऐसा कौन सा मैदान है,जहां सचिन खेले हों और और वहां की पिच की मिटटी ने सचिन के बल्ले से होकर सचिन के मुख को ना चूम लेना चाहा हो....दुनिया का वो कौन सा गेंदबाज है जो सचिन के बल्ले की क्रूर मार खाने और उनसे सहमने और उनके बारे में सपने भी क्रूर मार खाने की सोचने के बावजूद उन्हें प्यार ना करता हो....दुनिया का ऐसा कौन सा बल्लेबाज है(गावस्कर के अलावा)जो मैदान पर अपने आउट होने को महसूसते ही अम्पायर की ऊँगली आऊट होने के इशारे में उठने के पहले मैदान से बाहर हो जाता होओ....!!
               महानता का कोई मंत्र नहीं होता,वह तो बहुत बहुत छोटे-छोटे डग भरते हुए आती है....मगर उन छोटे-छोटे डगों में एक निरंतरता होती है,एक सरलता होती है,एक कोई एक ख़ास बात होती है,जो शायद हममें-आपमें नहीं होती,वह ना महसूस कर सकने लायक एक ऐसी चीज़ होती है,जिसे हम-आप सब महसूस करते हैं और और उस खुशबू से खुद को आविष्ट होता हुआ पाते हैं...महान लोगों की विनम्रता और सरलता ही उनकी सबसे बड़ी महानता होती है,जिसके कारण हम उनसे दूर होते हुए भी खुद को उनसे जुदा हुआ ही महसूस करते हैं...!!
                सचिन ने आज तक जो निन्न्यांबे सैंकडें जड़े हैं वो दुनिया के क्रिकेट के हर मैदान पर अपने समकालीन हर गेंदबाज के विरूद्द हर बल्लेबाज के सम्मुख एक मिसाल है...और यह मिसाल उनकी रनों की भूख ,एकाग्रता या कर्मठता, इन सबसे बढ़कर उनके जज्बे और उनकी सरलता की मिसाल है,आप उनसे बातें करो या उनकी बातें सुनो,तब लगता है कि अरे ये तो एकदम मेरेइच जैसा है,अक्खा आम इंसान....यह बात सचिन को दूसरों से बिलकुल विलग करती है...!!
                 मगर हमारा आज का विषय इस बारे में है कि जैसा कि लोग बाग़ और यह बुद्धू मीडिया भी मुम्बई को सचिन की कर्मभूमि माने बैठा है और बड़े ही शोर-शराबे के साथ इसे प्रचारित भी किये जा रहा है उनको आज मेरा यह कहना है कि पहले बाकी के सारे विश्व से तो पूछ लो इस बारे में उसकी क्या राय है...और मुम्बई ही सचिन की कर्मभूमि है तो कोई यह बताये कि अपने कर्म क्षेत्र में मुंबई में कितना काम किया है सचिन ने और बाकी की जगहों पर कितना...अगर मुंबई में सचिन ने अपने कुल कर्म का आधा भी किया हो तो अपन मीडिया को समझदार मान लेंगे....मगर अगर ऐसा नहीं है तो फिर मीडिया को अपने इस दुष्प्रचार के लिए भारत की आम जनता से और विश्व के तमाम-क्रिकेट प्रेमियों से माफ़ी मांगनी चाहिए....!!
                   अरे भाई,सचिन तो अक्खा इंडिया के हैं....अक्खी दुनिया हैं...कौन क्रिकेट प्रेमी ऐसा है जो उन्हें चूम लेना नहीं चाहता....कौन-सा ऐसा देश है जो उनसे प्रेम नहीं करता और उन्हें अपनी टीम में शामिल नहीं करना चाहता...और कौन सा ऐसा किरकेटिया मैदान है जिसने सचिन के चौक्कों-छक्कों और सिंगलों की बरसात की आभा ना देखी हो और आगे भी ना देखना चाहता हो....ऐ भाई सचिन इस फाईनल में हम एक अरब बीस करोड़ लोगों का ही नहीं बल्कि विश्व के सनुचे क्रिकेट-प्रेमियों का मान रख दे ना यार....देख ना कैसा टुकुर-टुकुर टाक रहे हैं ये तेरे को....अरे भाई अफरीदी तक भी यही चाहता है...यार सचिन तू सबका है है और सारा भारत ही नहीं सारा संसार ही तेरी कर्मभूमि है.....और आज के दिन तो भगवान् के दर्शनों से ज्यादा ललक तेरे शतक को देखने की है सबकी....तू उनको उनका भगवान् दिखा दे....ओ सचिन इस फाईनल में इक आखिरी ही सही शतक लगा दे.....भारत को जीता दे....देख यार तूने भारत के लिए अब तक बहुत कुछ किया है.....कर दे यार....तू ऐसा कर दे यार....देख तेरे लिए अभी से मेरी आँखें नम हो आयीं हैं...तू शतक बनाएगा तब क्या होगा,पता नहीं....तू अगर सारे संसार का है तो ये कर दे यार और बता दे कि तू मुंबई का होकर भी सिर्फ मुम्बईकर नहीं है मेरे यार....तू सारे संसार का प्यारा मेरे प्यार....!!!!

गिरी बिजली, जोगी अब तेरा सहारा

शाबाश रमन सिंह जी । बहुत ही शातिराना चाल चल रहे हो आम जनता के साथ । पहले विपक्ष को अपने साथ मिला लिये फिर विपक्ष को आदिवासियों की ओर भिडा दिये और विद्युत नियामक बोर्ड की आड में बिजली दरों में 22 फीसदी तक की बढोत्तरी कर डाले । क्योंकि अब आपसे कोई कुछ पुछ तो सकेगा न ही क्योंकि आप तो बता दोगे कि भाई मैं तो चाँवल वाला बाबा हूँ भला बिजली से मेरा क्या लेना देना । सारा प्रदेश जानता था कि बिजली के दाम बढेंगे फिर भी सबने बढने का इंतजार किया किसी ने यह नही पुछा कि जब प्रदेश में सरप्लस बिजली उत्पादन हो रहा है तो राज्य के निवासियों को धूल गर्दा खिलाने के बाद अब बढी बिजली का पैसा क्यों वसूला जा रहा है । 24 घंटे लाइट रहना कोई उपलब्धी नही कही जा सकती क्योंकि ये काम जोगी शासन में हो चुका था रहा सवाल बिजली के दामों में बढोत्तरी का तो इसका कारण एक ही समझ पडता है कि प्रदेश के नेताओं को हराम के खाने की इतनी बुरी आदत पड गई है कि अभ वो हर जगह से पैसा खाना चाहते हैं । जोगी जी जिन्होने वास्तव में प्रदेश में एक बेहतरीन शासन कायम किये थे और बनियों को दूर करके आदिवासीयों और प्रदेश की जनता को मुनाफा दिलाते रहे थे उनके खिलाफ माहौल बना कर अब खुद बनियागिरी कर रहे हैं ।
                                             इस समय यदि कोई सही व्यक्ति हो सकता है जिसके बैनर के नीचे प्रदेश की जनता रमन सरकार को कटघरे में खडे कर सकती है तो वह निश्चित रूप से अजीत जोगी हो सकते हैं । मेरे इस कथन से कोई मुझे कांग्रेस समर्थक ना समझे इसलिये साफ कर देना चाहूँगा कि मैं एक पत्रकार होने की दृष्टि से केवल व्यक्ति का चुनाव करता हूँ जिससे आम जनता का हीत सध सके । मेरे कहने का अर्थ आप ये समझें कि प्रधेश में जो मुनाफाखोरी, भ्रष्टाचार चल रहा है उससे निपटने के लिये विपक्ष होता है लेकिन इश समय प्रदेश का विपक्ष सरकारी बोली मे चल रहा है इसलिये वर्थमान में प्रदेश के लोगों को एक ऐसे व्यक्ति का साथ चाहिये जिसके साथ मिलकर हम अपनी आवाज बुलंद कर सकें । यदि मैं और आप अकेले खडे होकर जनता के सामने चिल्लाएंगे तो स्वार्थी कहलाएँगे जबकि एक पदस्थ  व्यक्ति के कहने पर कार्यवाही होती है ।
              मुझे पूरा यकिन है कि जोगी जी इसे जरूर पढेंगे इसलिये मेरा उनसे निवेदन है कि आदरणीय जोगीजी छत्तीसगढ प्रदेश की भोली जनता को वह मार्ग बताएं जिसके द्वारा प्रदेश सरकार की मनमानी और बनियागिरी को बंद कराया जा सके । हर जगह भ्रष्टाचार अपना पैर पसार रहा है छोटे छोटे कामों के लिये रिश्वत मांगी जा रही है , कानून व्यवस्था बिगड रही है यहां तक की पुलिस विभाग भी असंतुष्ट है (निधी तिवारी की मौत पर कोई कार्यवाही नही हुई, दुर्ग में पार्षद के खिलाफ कार्यवाही होने पर थाना प्रभारी को लाइन में बैठा दिया गया जैसी कई घटनाएं है) । भाजपा के नेता अपना जीवन स्तर सुधारने के चक्कर में जनता को दिन हिन बना रहे हैं । इस बिजली की बढती किमत जनता को कहां ले जाकर मारेगी इसकी कल्पना व्यर्थ है । चांवल 2 रूपये किलो मिल रहा होगा लेकिन उसकी आड में 10 रूपये की बिजली थमा देना कहां का न्याय है । अतः आपसे निवेदन है कि इस मामले को ध्यान में रखते हुए किसी आंदोलन की रूपरेखा तय करें ।
                                                नेताओँ को तो मुफ्त में मिल रही है बिजली उनका इससे कोई लेना देना नही है । पहले तो घटिया मीटर दिये गये जो औसत से ज्यादा खपत दिखा रहे हैं और ऊपर ये अब किमत भी बढा रहे हैं ।
                                               और क्या लिखूं मन में भरी भडास के कारण कुछ समझ नही आ रहा है इसलिये अभी तो बंद करता हूँ फिर लिखूंगा ।

लड़कियों वक्त बदलना हैं

ये नया दौर हैं,
वक्त बदलना हैं,
एक नही दो कदम चलना है
रूप कँवर, आरुशी,
मधुस्मिता, अनारा गुप्ता
किस्मत की छली हैं ?
क्यूँ रोना हैं वक्त बदलना हैं।
एक नही दो कदम चलना हैं॥

कोई साथ नही, कोई सहारा कहाँ?
सूरज की रौशनी तो हैं मयस्सर
तुम्हे चलना हैं।

छोटी छोटी बातो से
लबलबाता सैलाब आँखों का
पलकों के पीछे एक बाँध करना हैं,
वक्त बदलना हैं,
एक नही दो कदम चलना हैं॥

शहरो में ललचाई लाल आँखों की भीड़ में,
इन कोपलों को खिलना हैं,
हॉस्टल की अधजली अधपकी रोटियां
याद आती हैं ना माँ की गूंथी चोटिया ?
रूकती चलती ट्रेन में
सफर तय करना हैं
वक्त बदलना हैं
एक नही दो कदम चलना हैं॥

नया दौर हैं देखो रुको नही
एक कदम ठहरना
दो कदम पिछड़ना हैं
एक नही दो कदम चलना हैं॥

थेंक्स पाकिस्तान,कुछ मीठा हो जाएं ?

थेंक्स पाकिस्तान,कुछ मीठा हो जाएं ?

http://mktvfilms.blogspot.com/2011/03/blog-post_31.html
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स्पष्टता- यह  केवल  व्यंग्य-वार्ता  है, किसी भी जाति विशेष का दिल दुखाने का, लेखक का कतई इरादा नहीं है । कृपया  लेख के तत्व को, अपने माथे पर न ओढें..धन्यवाद ।

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सोहेब (सहवाग से)," छक्का लगा के दिखा?"


सहवाग (सचिन की ओर इशारा करके)," सामने तेरा बाप खड़ा है, उसे जाकर बोल..!!"


कमेन्टेटर- " और, सोहेब की गेंद पर, सचिन का ये बेहतरीन छक्का..!!"


( सभी दर्शक,खड़े होकर - `हो..हो..हो..हो.ओ..ओ..!!`)

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चम्पक और चम्पा  नाचते-गाते हुए, स्टेज पर प्रवेश करते हैं ।

"लगा सचिन का छक्का,देखो गीलानी के माथे..!!
 भागा शाहिद  दुम   दबाकर  `शहीदों`  से   आगे..!!
 हे..ई,  ता..आ,  थै..ई..या, थैया,   ता...आ..आ  थै..!!"

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चम्पा,"  हे..ई, चम्पक, हिंदुस्तान-पाकिस्तान का सेमी फ़ाइनल मैच तुने देखा क्या?"


 चम्पक," ऐसा क्यों पूछती हैं, हमने साथ बैठ कर तो  देखा था..!! भूल गई क्या?"


चम्पा," अरी बुद्धु, मैं तो ये पूछ रही थीं की, क्या तुमने मैच ध्यान से देखा था?"


चम्पक," हाँ भाई हाँ, ध्यान से ही देखना चाहिये ना?"


चम्पा," अच्छा? बोल, क्या-क्या देखा था?"


चम्पक,"हैं ना..आ..आ, पाकिस्तान की आख़िरी विकेट गिरी तब, वो, केटलकांड वाले शशीभाई, देश भ्रमण-मस्त राहुल बाबा, परम आदरणीय गंभीर-वदन सोनियाजी और दूसरे कई गणमान्य बड़े-बड़े महानुभवों को, नन्हे मुन्ने बच्चों को, खड़े होकर ताली बजाते देख, मुझे बहुत मज़ा आया ।"


चम्पा,"चम्पक, तुम  तो, बुद्धु के बुद्धु ही रहे..!!  ताली-ढोल-नगाड़ा-फटाकों का आनंद तो, खुशी से सारा देश एक साथ मना  रहा था । इसमे नयापन क्या है?"


चम्पक," चम्पा-चम्पा, अब तु ही बता दे ना? मेच में, तुने क्या खास देखा?"


चम्पा,"हमारे गाँव में, बहुत पुराना  भगवान श्रीभोलेनाथजी का एक मंदिर है । उस..में...!!


चम्पक,(चम्पा की बात काटते हुए ।)" मैच की बातों में मंदिर कहाँ से आ गया?"


चम्पा, " अगर बीच में बोला तो, मैं कुछ भी न बताउंगी..हाँ..!!"


 चम्पक," अच्छा बाबा, बीच में नहीं टोकूंगा, अब तो बता?"


चम्पा," हमारे गाँव के मंदिर के पुजारी ४० साल के हो गये मगर बेचारे कुँवारे ही रह गये थे । उनको, पैसों के बदले में, शादी कराने वाला, कोई  दलाल मिल गया और उसने ढेर सारे रुपये के बदले में पुजारी की शादी एक `दिग्विजया` नामक, बड़ी ही सुंदर कन्या से शादी करवा दी, पुजारी की शादी के जुलूसमें सारा गाँव उल्लासपूर्वक सामिल  हुआ ।"



चम्पक," फिर..,फि..र, क्या हुआ?"



चम्पा," फिर क्या? सुहाग रात को पुजारी को पता चला की, दलाल ने उन्हें ठग लिया था और सुंदर कन्या से शादी रचाने के नाम पर, सुंदर `छक्का` हाथ में थमा दिया था..!!"


चम्पक," ही..ही..ही..ही.. ये तो.. ही..ही..ही..,बहुत बुरा हुआ..!! फिर क्या हुआ?"



चम्पा," सब गाँव वालों को जब पता चला, तब कई लोग अपनी हँसी न रोक पाए और  कई समझदार लोगों ने  अफसोस व्यक्त किया । किसी ने पुजारी से पूछा की वह अब क्या ये छक्के को तलाक दे देगा? तब पुजारी ने सिर्फ इतना ही कहा की, ये जो भी है, जैसा भी है..!!  मेरे लिए दाल-रोटी बना देंगा तो, कम से कम मेरे पेट की भूख तो शांत होगी?"



चम्पक," ही..ही..ही, ये सब तो ठीक है पर,  मेच की बात में पुजारी कहाँ से आ गया?"


चम्पा," अरी,मूर्ख, देख हमारे प्रधानमंत्रीजीने, पाकिस्तान के प्रधानमंत्रीजी को बैंड-बाजा-बारात के साथ `दिविजया` नामक सुंदर कन्या से शादी के लिए आमंत्रित किया?"


चम्पक," हाँ  किया, तो..ओ..!!"


चम्पा," क्या, तो.ओ..!! फिर पाकिस्तान के प्रधानमंत्रीजी की शादी `दिग्विजया` नामक सुंदर कन्या के बजाय `पराजय` नामक  बेहतरीन `छक्के`  से  करवाई  ना..?"


चम्पक," हाँ..आँ..यार, तेरी बात तो बिलकुल सही है?"


चम्पा," ओर सुन, ३० मार्च की सेमी फ़ाइनल मेच के दो दिन बाद कौन सी तारीख आती है?"


चम्पक," पहली अप्रैल..!!"


चम्पा," अब  पाकिस्तान के प्रधानमंत्रीजी, बैंड-बाजा-बारात से साथ, हिंदुस्तान में,`दिग्विजया` से शादी करने के,बडे अरमान लेकर आएं हो और यहाँ सबने उनको एडवांस में अप्रैल फूल बनाकर,शादी के नाम पर,`पराजय` नामक छक्का गले बांध दिया हो, ऐसे में पुरे देश में ढोल-नगाडे-फटाके और आनंदोत्सव का माहौल का होना स्वाभाविक ही तो है..!!"


चम्पक," वाह..रे..मेरी चम्पाकली, तुम तो बहुत ही अक़्लमंद गई हो ना..!! वाह..भाई..वाह..!!"


चम्पा," चम्पक, तुमने क्या, किसी देशवासी ने, ग़लती से भी, श्रीमती सोनियाजी को दोनों हाथ उपर करके कूदते हुए, राहुलबाबा को खुशी से चीखते हुए, और श्रीमनमोहनसिहजी को दंतावली दिखा कर हँसते, तालियाँ बजाते हुए, इतने बरसों में कभी देखा है?"


चम्पक," नहीं जी, कभी नहीं? सब खुश थे ।"


चम्पा,"तभी तो..!! हमारे क्रिकेट के सारे खिलाड़ियों ने पाकिस्तान को समझा दिया है की, अगर हमारा लाडला सचिन ज़िद करें की, यह मेरा आखिरी वर्ल्ड कप है और मुझे कप चाहिए । तो बिना ज्यादा प्रयत्न किए, हम सचिन के बच्चों को खेलने के लिए, वर्ल्ड कप का खिलौना भी आसानी से दिला सकते हैं । तो फिर..?"


चम्पक," फिर..? फिर क्या?"


चम्पा," सचिन की ज़िद पर हम उसे वर्ल्ड कप दे सकते हैं तो, हिंदु,मुस्लिम,सिख,ईसाई सारे देशभकत हिंन्दुस्तानीओं की ज़िद पर हम कश्मीर की एक इंच ज़मीन भी पाकिस्तान को लेने नहीं देंगे ।"


चम्पक," सही है,पर चम्पा ये तो बता?अब `पराजय` नामक छक्के से शादी तो पाकिस्तानी प्रधानमंत्रीजीने कर ली है, मगर उसे पाकिस्तान ले जाकर उसका क्या करेंगे?""



चम्पा," हाँ, बात तो सोचने वाली है..!! अब श्री युसूफ़ रझा गीलानीजी, `पराजय` को अपने घर में तो रखेंगे नहीं ? शायद पाकिस्तान जाकर उनकी सुप्रसिद्ध `हिरामंडी` बाजार में में दलालों के हवाले कर देंगे..!!"


चम्पक," ही..ही..ही..ही..ई..ई..ई..!!"


चम्पा," इतना हँस क्यों रहा है?"


चम्पक," अब मैं  तूझे राज़ की एक बात बताऊं?"


चम्पा, "क्या?"


चम्पक," पाकिस्तानी प्रधानमंत्री युसूफ़ रझा गीलानीजी के हाथ में `छक्का` थमाने की साज़ीश में, सारे पाकिस्तानी ख़िलाडी शादी करानेवाले दलाल के साथ मिले हुए थे?"



चम्पा," हें..ई..ई..ई, शाबाश चम्पक, ये क्या कह रहा है?"


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" ANY COMMENT?"


मार्कण्ड दवेः दिनांक- ३१ मार्च २०११.

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" ANY COMMENT?"

मार्कण्ड दवेः दिनांक- ३१ मार्च २०११.
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भारत विश्‍व कप का विजेता हो इस शुभकामना के साथ यह काव्‍य



 

प्रिय मित्रों

सर्वप्रथम तो हार्दिक बधाइयाँ आप सभी को भारत की पाकिस्‍तान पर शानदार विजय की

कल का दिन बडा ही शुभ था

भारत ने अपना विश्‍वकप कीर्तिमान सुरक्षित रखा

अबतक भारत और पाकिस्‍तान विश्‍वचषक प्रतियोग्‍यता में 5 बार आमने सामने हुए
जिनमें भारत ने पाँचों बार विजयश्री का वरण किया 

अब कदाचित् वो दिन दूर नहीं जब भारत विश्‍वचषक को जीत कर पिछले 18 वर्षों की प्रतीक्षा का अंत करेगा 
हम सभी भारतीय हृदय से भारत की जीत की शुभकामना करें 

मैने इस अवसर पर भारत की विजय कल्पित करते हुए एक कविता लिखी है

कविता मूल रूप से हिन्‍दी की अवधी विधा में है

हालाँकि अवधी मेरी अपनी क्षेत्रभाषा है किन्‍तु हिन्‍दी की इस विधा में मैने अबतक एक भी रचना नहीं की थी 

आज प्रथम वार अवधी में भारत का विजयगान प्रस्‍तुत कर रहा हूँ  ।।
कतिपय शब्‍द संस्‍कृतनिष्‍ठ हिन्‍दी के भी प्रयुक्‍त हैं 
पारिभाषिक शब्‍दों में रन के लिये दौरि या दौड का प्रयोग है, विश्‍वकप के लिये कहीं कहीं विश्‍वचषक का प्रयोग है    खिलाडी के लिये खेलारी शब्‍द का प्रयोग किया है    थोडा सा ध्‍यान देने पर काव्‍य का आनन्‍द लिया जा सकता है 

एक गुजारिश है आप सभी से
2 को भारत श्री लंका का निर्णायक मुकाबला है
इस काव्‍य को इतना प्रसारित कीजिये जिससे 2 दिनांक तक यह हर भारतीय के स्‍क्रैपबाक्‍स / इनबाक्‍स में पहुँच जाये  ।।



हर गली कूँचा मँ आज बाजती बधायो है
आयो तेन्‍दूलकर को विजय सैन्‍य आयो है  ।।


1- सालौं भागि मन्‍द‍ि रहा , कई ठू प्रतिद्वन्दि रहा
गेंद धारि कुन्‍दि रहा , तबै अरि निर्द्वन्‍द‍ि रहा
डेढ अरब दुआ पाई आज ई मोटायो है 
आयो तेन्‍दूलकर को विजय सैन्‍य आयो है  ।।


2- चढि चल्‍यौं ठहिकै मैंदां , हर समूह काँ रौंदा
मेटि दिहौं कंगरूवन , हारि गवा पाकिस्‍तां
लंका पछारि विजय डंका बजायो है ।
आयो तेन्‍दूलकर कै विजय सैन्‍य आयो है  ।।

3- महाशतक पूर भवा ,शत्रु गरब चूर भवा
हमरे आँखि कै किनकी , आज जग कै नूर भवा
विश्‍वकीर्तिमान , कीर्तिमानन कै बनायो है ।
आयो तेन्‍दूलकर कै विजय सैन्‍य आयो  ।।


4- गौती औ सहवाग रहिन , सचिन चौका दागि रहिन
धौनी , युवी , रैना औ विराट दौरि भागि रहिन
भज्‍जी , नेहरा , मुनफ , जहिर , खुब बिकट चटकायो है ।
आयो तेन्‍दूलकर कै विजय सैन्‍य आयो है  ।।


5- खेल माँ रोमांच रहा , पूरा देश शान्‍त रहा
कवि 'आनन्‍द' उ समइया मन बडा आक्रान्‍त रहा
आवा जिउ मा जिउ तबै जब अन्ति दौरि धायो है ।
आयो तेन्‍दूलकर कै विजय सैन्‍य आयो है  ।।


6- आँसु रही नैनन माँ , हाँथ रहा हाँथन माँ
कुल खेलारी कतौं हँसैं , रोइ परैं फिरि छन माँ
सुफल जन्‍म भै जौ सचिन विश्‍वकप उठायो है ।
आयो तेन्‍दूलकर कै विजय सैन्‍य आयो है  ।।


जय हिन्‍द


संस्‍कृतजगत्

माकपा के आतंक सं तंग आ चुकी है जनता - स्मिता बक्सी

जोड़ासांकू विधानसभा क्षेत्र/मिलिए उम्मीदवार से शंकर जालान केवल जोड़ासांकू विधानसभा क्षेत्र ही नहीं, पूरे राज्य की चुनाव माकपा के आतंक सं तंग आ चुकी है। जनता हर हाल में बदलाव चाहती है, परिवर्तन चाहती है और इसके लिए एक मात्र व बिल्कुल सटीक विकल्प है तृणमूल कांग्रेस। यह कहना है वार्ड नंबर 25 की पार्षद, बोरो चार की चेयरमैन और जोड़ासांकू विधानसभा क्षेत्र से तृणमूल कांग्रेस की उम्मीदवार स्मिता बक्सी का। विधानसभा चुनाव की सिलसिले में बातचीत करते हुए स्मिता बक्सी ने कहा कि चुनाव जीतने पर इनकी पहली प्राथमिकता होगी क्षेत्र में शांति व कानून-व्यवस्था को कायम रखने में मदद करना। उन्होंने कहा कि यदि क्षेत्र में शांति व व्यवस्था रहती है तो विकास की बयार अपने आप बहेगी। स्मिता ने आरोप लगाते हुए कहा कि 34 वर्ष के शासनकाल में वाममोर्चा ने पूरे पश्चिम बंगाल में अशांति व हिंसा का वातावरण तैयार किया है। राज्य की जनता अब हर हाल में शांति व अमन चहाती है, इसलिए वह तृणमूल कांग्रेस को पसंद कर रही है।बक्सी ने बताया कि इतिहास गवाह है कि जोड़ासांकू सीट से वाममोर्चा के उम्मीदवार ने कभी जीत का स्वाद नहीं चखा। यह सीट पहले कांग्रेस के कब्जे में थी और बीते दो चुनाव से तृणमूल कांग्रेस के पास है। उन्होंने कहा कि 2006 में हुए चुनाव में वोममोर्चा को 294 सीटों में से 235 सीटों पर कामयाबी मिली थी, इसके बावजूद जोड़ासांकू सीट तृणमूल कांग्रेस के खाते में ही रही। इस बार संपूर्ण राज्य में परिवर्तन की लहर है। तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी मां, माटी, मानुष के नारे साथ मतदाताओं के पास जा रही है। ऐसी स्थिति में मेरी जीत पक्की है।परिसीमन का वृहत्तर बड़ाबाजार पर खासा प्रभाव पड़ा है। जोड़ाबागान व बड़ाबाजार क्षेत्र समाप्त हो गए हैं। ऐसे में वृहत्तर बड़ाबाजार के विकास की जिम्मेदारी जोड़ासांकू के विधायक के कंधे पर होगी। इसे आप किस नजर से देखती हैं? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि विधानसभा क्षेत्र तय करना चुनाव आयोग का काम है और यह तो पहले से मालूम था कि वृहत्तर बड़ाबाजार की कई सीटों पर परिसीमन की गाज गिरने वाली है। जहां तक इलाके के विकास की बात है, क्षेत्र की जनता को मुझ पर पूरा भरोसा है। मैं लंबे समय से वार्ड 25 की पार्षद हूं और बतौर पार्षद अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी से निभाई है। अब जनता के वोट रूपी आशीर्वाद से विधायक बनूंगी और यह जिम्मेवारी भी बेहतर तरीके से निभाऊंगी।आपकी पार्टी की प्रमुख ममता बनर्जी ने जोड़ासांकू से तृणमूल कांग्रेस से निवर्तमान विधायक को टिकट नहीं दिया और तो और पहले यहां से शांतिलाल जैन को उम्मीदवार बनाने का एलान किया था। जैन ने प्रचार भी शुरू कर दिया था, इसके बाद एकाएक आपको उम्मीदवार बना दिया गया। इस बारे में आप क्या कहना चाहेंगी। देखिए इस बाबत मुझे कुछ नहीं कहना। ये सारे निर्णय ममता बनर्जी के हैं और इस बारे में विस्तार से वे ही कुछ बता सकती हैं।यहां से माकपा ने जानकी सिंह, भाजपा ने मीनादेवी पुरोहित और जदयू ने मोहम्मद सोहराब को उम्मीदवार बनाया है। किसे अपना निकटतम प्रतिद्वंदी मान रही हैं? किसी को नहीं। मेरी जीत पक्की है। मां, माटी, मानुष के नारे और परिवर्तन की हवा के सहारे न केवल जोड़ासांकू बल्कि के राज्य के अधिकांश विधानसभा सीटों पर तृणमूल कांग्रेस के झंड़ा लहराएगा।

हमारी संस्कृति है,संस्कार है

श्रीगंगानगर-कमाल है,खेल खेल में भारत एकता के सूत्र में बंध गया। क्रिकेट ने वह कर दिखाया जो राजनेताओं की अपील,धर्मगुरुओं के उपदेश, टीचर्स की क्लास नहीं कर सकी। देश के कण कण से एक ही स्वर सुनाई दे रहा था, हम जीत गए। भारत विजयी हुआ। जाति,धर्म,समाज,पंथ सब गौण हो गए। रह गया तो भारत और उसकी पाक पर विजय का उल्लास। दिन के समय किसी काले पीले तूफान के कारण गहराती शाम का दृश्य तो याद है। लेकिन आधी रात को दिन जैसा मंजर पहली बार देखा। १९८३ में भी हमारी टीम रात को ही वर्ल्ड कप जीती थी। ऐसा कोलाहल तो तब भी नहीं दिखाई,सुनाई दिया। तीन दशक में क्रिकेट बादशाह होकर हम पर राज करने लगा। क्रिकेट खेलों का राजा हो गया। इसके आगे कोई नहीं ठहरता। क्रिकेट जन जन के दिलों में धड़कता है। वह उम्मीद है। जीवन है। जुनून है। कारोबार है। ग्लेमर है। उसकी जीत भारत के अलग अलग कारणों से परेशान जनता को खुश कर देती है चाहे कुछ देर के लिए ही सही। इससे अधिक और कोई खेल किसी को दे भी क्या सकता है। जो क्रिकेट दे रहा है, वह तो तमाम खेल मिल कर भी नहीं दे सकते। इसे क्रिकेट की महानता कहो या जनता का पागलपन,दीवानगी। क्रिकेट ऐसा ही रहेगा। अन्दर तक जोश भर देने वाला। सभी आवश्यक कामों को मैच के बाद तक टाल देने वाला। क्रिकेट मैच की जीत जनता के अन्दर नवजीवन का संचार करती है। हार मायूसी। खिलाडी हार के बाद उतने मायूस नहीं होते जितने लोग। क्रिकेट मैच ने कई घंटे तक सबको एक जगह रुकने के लिए मजबूर कर दिया।सरकार ने मैच देखने के आदेश नहीं दिए थे। कोई टोटका भी नहीं था कि मैच देखने से जीवन में खुशहाली आएगी। इसको देखने से कोई ईनाम भी नहीं मिलना था। इसके बावजूद सब व्यस्त थे। मैच के अंतिम क्षणों में जब भारत की जीत साफ दिखाई दी तो हल्ला गुल्ला शुरू हो गया। जैसे ही पाकिस्तान हारा भारत की जीत का उल्लास घरों के कमरों से लेकर सड़कों पर उतर आया। टीं,पीं,पों ,हुर्रे,हूउ...... के मस्ती भरे कोलाहल ने कई घंटे से पसरे सन्नाटे की गिल्लियां उड़ा दी। जो सड़क,गली सुनसान थी वहां पटाखों के शोर ने विजय के तराने गाए। गलियों में भारत माता की जय का उदघोष करती टोलियाँ घरों की चारदीवारी,बालकोनी में खड़े बच्चों को जोश दिला रही थी। फिर ना तो माता पिता की डांट की परवाह ना सुबह होने वाली परीक्षा की चिंता। सबके स्वर एक हो गए। विजय का उदघोष और तेज होकर वातावरण को आह्लादित करने लगा। कई घंटों से ठहरा हुआ भाव रूपी जल लहरें बन ख़ुशी से नृत्य करने लगा। क्रिकेट की अ,आ,इ ..... नहीं जानने वाला पूरे माहौल को अचरज से देख रहा था। उसके चेहरे पर ख़ुशी थी। ख़ुशी इस बात की कि वह जानता है कि यह भारत में ही संभव है जहाँ खेल खेल में अनेकता को एकता में बदला जा सकता है। क्रिकेट तो एक बहाना है। असल में यह हमारे संस्कार है। हमारी संस्कृति है। जिस पर युगों युगों से हमें गर्व है और हमेशा रहेगा।

बेवजह का उतावलापन-ब्रज की दुनिया

26-11
कहते हैं कि जनता की याददाश्त बड़ी कमजोर होती है और वह किसी भी घटना को बहुत जल्दी भूल जाती है.हमारे नेता लोग भले ही ऐसा मानते हों लेकिन सच्चाई यह है कि भारत की जनता इतनी भी भुलक्कड़ नहीं है कि दो-ढाई साल पहले हुए मुम्बई हमले और उसके बाद हमारे प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए बयान को भूल जाए.मुझे तो याद है और मुझे पूरा यकीन है कि आपको भी यह पूरी तरह से याद होगा कि नवम्बर,२००८ के मुम्बई हमले के बाद हमारे माननीय प्रधानमंत्री ने अपने श्रीमुख से कौन-से शब्द उगले थे.उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा था कि जब तक पाकिस्तान मुम्बई हमले के दोषियों के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई नहीं करेगा तब तक भारत उससे बातचीत नहीं करेगा.साथ ही उन्होंने स्पष्ट शब्दों में पाकिस्तान को यह चेतावनी भी दी थी कि वह भारत की सहनशीलता की परीक्षा नहीं ले.अगर पाकिस्तानी आतंकवादियों की ओर से आगे कोई भी इस तरह का हमला होता है तो भारत सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी नहीं रहेगी.लेकिन हम देख रहे हैं कि भले ही पाकिस्तान समर्थित आतंकियों द्वारा २६-११ के बाद इस तरह का हमला नहीं किया गया हो,पाकिस्तान ने मुम्बई हमलों के लिए जिम्मेदार दुर्दांत आतंकवादी हाफिज सईद या किसी अन्य के खिलाफ कोई भी प्रभावी कदम नहीं उठाया है.साथ ही उसने हाफिज सईद को पूरे पाकिस्तान में घूम-घूम कर भारत विरोधी प्रचार करने की छूट भी दे रखी है.
मित्रों,ऐसे में यह सवाल उठता है कि दोनों देशों के संबंधों में ऐसा क्या हो गया है,ऐसी कौन-सी प्रगति हो गयी हैं जिससे भारत सरकार पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय बातचीत करने को उतावली हो रही है.जैसे ही यह तय हुआ कि विश्वकप के सेमीफाइनल में भारत और पाकिस्तान मोहाली में आमने-सामने होने जा रहे हैं,मनमोहन सिंह उतावले हो उठे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को बगलगीर बनाकर मैच देखने के लिए.वैसे भी यह बातचीत सिर्फ बातचीत के लिए हो रही है इससे कुछ भी निकलकर बाहर नहीं आनेवाला.निश्चित रूप से केंद्र की निगाहें कहीं और हैं और निशाना कहीं और.अगर हम सूक्ष्मान्वेषण करें तो पाएँगे कि केंद्र का मानना है कि अगर वह पाकिस्तान के साथ बातचीत प्रारंभ करती है तो इसका सीधा फायदा उसे बंगाल,केरल और असम में होनेवाले चुनावों में होगा.कहना न होगा इन तीनों राज्यों में मुसलमानों की अच्छी खासी आबादी है.हो सकता है कि बातचीत शुरू करने के लिए केंद्र पर अमेरिका की तरफ से भी दबाव पड़ रहा हो.अगर विकीलीक्स के खुलासों पर भरोसा करें तो ऐसा होना असंभव भी नहीं है.
मित्रों,अगर इन बातों में तनिक भी सच्चाई है तो इसका सीधा मतलब यह है कि हमारी धर्मनिरपेक्ष केंद्र सरकार को भारतीय मुसलमानों की देशभक्ति पर भरोसा नहीं है और वह यह मानती है कि हमारे मुसलमान भाई हिंदुस्तान से ज्यादा पाकिस्तानपरस्त हैं.साथ ही अगर दूसरी आशंका सच है तो इसका अर्थ यह होगा कि हमारी विदेश-नीति सम्प्रभु नहीं है और हम अमेरिका के हाथों की एक कठपुतली-मात्र हैं.
मित्रों,पिछली बार जब भारत और पाकिस्तान दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान में भिड़े थे और भारत सरकार ने क्रिकेट कूटनीति का प्रयोग करते हुए पाकिस्तानी दर्शकों के लिए पलक-पांवड़े बिछा दिए थे तब भी मैंने कहा था की यह एक मूर्खतापूर्ण कदम है और पाकिस्तानी आतंकवादी दर्शक के रूप में भारत में दाखिल हो सकते हैं और ऐसा हुआ भी.पाकिस्तान से आए सैकड़ों दर्शक भारत आकर गायब हो गए.फिर हुआ मुम्बई हमला.इस हमले से पहले और इसके बाद पकडे गए कई पाकिस्तानी आतंकियों ने यह स्वीकार किया है कि वे दिल्ली मैच देखने के बहाने भारत के घुसे थे.फिर से मैच के चलते पाकिस्तानियों को जल्दी में और धड़ल्ले से वीजा बांटा जा रहा है.इस समय भारत और पंजाब सरकार का एकमात्र लक्ष्य मोहाली मैच का शांतिपूर्वक आयोजन संपन्न करवाना है.इतनी जल्दीबाजी में तो किसी भारतीय दर्शक का रिकार्ड जांचना भी संभव नहीं है.हमारी सुरक्षा और ख़ुफ़िया एजेंसियां अपने कर्तव्यों को लेकर कितनी तत्पर है इसे मैं एक उदाहरण द्वारा बताना चाहूँगा.अभी जब राष्ट्रमंडल खेल होने वाले थे तो संवाददाताओं को पास देने से पूर्व उनके आपराधिक रिकार्डों की जाँच होनी थी.ऐसा किए बिना ही पास बाँट दिए गए और खेल समाप्त भी हो गए.खेल की समाप्ति के कोई डेढ़-दो महीने बाद बीबीसी के एक संवाददाता जो बिहारी हैं के घर पुलिस पहुँच गयी और पूछताछ करने लगी.घरवाले डर गए और संवाददाता को बताया.पुलिस से पूछने पर पता चला कि राष्ट्रमंडल के पास को लेकर वह जाँच करने गयी थी.
मित्रों,तो क्या आप तैयार हैं मनमोहन सरकार की मूर्खता या धूर्तता के कारण अपने देश में निकट-भविष्य में होनेवाले आतंकी हमलों को अपने सीनों पर झेलने के लिए?अगर नहीं हैं तो तैयार हो जाइए क्योंकि इन्होने इतिहास से कोई सबक नहीं लिया है और इसलिए इतिहास फिर से खुद को दोहरानेवाला है.

बह जाने दो


तेरी खामोश आवाज सुनने की कोशिश करता रहा .

प्रयत्न से 
सुनना साँसों को. 
और थाह लेना भारी मन की. 
गहरी ठंडी साँसों से पहुचना.
ह्रदय के उस कोने तक. 
जहाँ दर्द सिमटा हुआ हैं.
शायद बहना चाहता हैं . 
तरल बनकर आँखों से . 
बह जाने दो .
रोको मत .
वो अपना नहीं हैं .
जाया मत करो अपना प्रयत्न .
उसको समेटने में जो चुभता हैं.
मन को हल्का करना सार्थकता हैं .
खोने का गम कुछ पाने की ख़ुशी से,
कम तो नहीं होता पर ,
आँखे बंद रखो तो अँधेरा होता हैं ,
दिन और रात से बे परवाह,
सामने सबेरा तुम्हे पुकार रहा हैं ,
नयी सुबह, नयी राह, नयी मंजिल ,
बस जरूरत हैं आँखें खोलने की,
जरूरत हैं पार पाने की व्यथा से ,
मुझे भी पता हैं आसान नहीं हैं ,
आसान तो ये भी नहीं हैं,
तिल तिल जलना

क्रिकेट..... आफत और गफ़लत के बीच भारतीय महिलाएं...!


इस देश में क्रिकेट को मजहब कहा जाता है। यह एक दीवानगी है........ एक पागलपन है........... कुछ खास मैच तो ऐसे होते हैं कि सङकें सूनी हो जाती हैं और बॉस के सामने उस दिन की छुट्टी चाहने वालों की कतार लग जाती है। यहां बच्चा-बच्चा इस खेल के पीछे पागल है बङों की तो पूछिये ही मत और बुजुर्गों की क्या बतायें............ ?

लाटरी में भारत की जीत

जयपुर--सुबह का वक्तकृषि विपणन मंत्री गुरमीत सिंह कुनर अपने सरकारी आवास पर आज कुछ अधिक व्यस्त हैंदोपहर बाद मंडियों के आरक्षण की लाटरी निकालनी हैइसी से उनके दिल में आइडिया आयाभारत -पाक के लिए लाटरी निकालने कासेमी फ़ाइनल में दो दिन बाकी थेमन में उत्सुकता है कि कौन जीतेगा!वह दो दिन बाद होने वाले नतीजे को अभी जां लेना चाहता हैमगर आज बताए कौन कि जीत किसकी होगीइस बारे में भविष्यवाणी करना असंभव हैतो क्या करे! दिल है की मानता नहींयही है क्रिकेट का जुनून,जादूकोई भी हो, सर चढ़ कर बोलता हैबस, कुनर ने उन्होंने दो पर्चियां बनाईएक पर लिखा भारत,एक पर पाकिस्तानदोनों को मेज पर रख दियाअपनी नन्ही सी पोती ख़ुशी को बुलायापर्ची उठवाईजो पर्ची ख़ुशी ने मासूमियत से उठाई उस पर भारत लिखा थामतलब, सेमी फ़ाइनल भारत की टीम जीतेगीपर्ची कोई ऑक्टोपस नहीं,लेकिन गुरमीत सिंह को विश्वास हैमन को तसल्ली हुईएक मासूम बालिका जो क्रिकेट को ना तो जानती है ना समझती है उसके हाथ ने जो पर्ची उठाई उस पर भारत है इसलिए भारत की जीत की सम्भावना हैइस प्रकार के टोटके हिन्दूस्तान में बहुत किये जाते हैंअसल मैच में क्या होगा? कौन जानता हैपरन्तु श्री कुनर का दिल यह मानता है कि जीत भारत की होगीबहुत कम लोग जानते हैं कि गुरमीत सिंह कुनर क्रिकेट मैच देखने के बहुत शौकीन हैंआज से नहीं पहले से हीयह उनके द्वारा अपने घर में निकलवाई गई लाटरी से भी साबित होता हैबेशक उस लाटरी का कोई मतलब नहीं मगर यह बात यह तो साबित करती ही है कि उनको क्रिकेट कितना भाता है

Political Dairy of Seoni Dist- Of M.P.

क्या भाजपा द्वारा बाकोवर देने वाली तीस विधानसभा सीटों में हरवंश सिंह की केवलारी भी शामिल है?

जिला भाजयुमो द्वारा शहीद दिवस पर कार्यक्रम आयोजित किया गया था। इस कार्यक्रम की जिला भाजपा द्वारा जारी एवं अखबारों में प्रकाशित विज्ञप्ति को पढ़ कर ऐसा लगा कि मानो शहीदों की याद कराना और शहीद दिवस मनाना तो एक रस्म अदायगी थी। इस मौके का लाभ लेते हुये तमाम भाजपा नेताओं ने ना सिर्फ कांग्रस पर राजनैतिक हमला बोला वरन अधिकांश समय भाजपा नेता भ्रष्टाचार पर भाषण झाड़ते रहे। सबसे अधिक आश्चर्य की बात तो यह हैं कि भ्रष्टाचार पर सबसे ज्यादा प्रवचन विधायक नीता पटेरिया और पूर्व विधायक नरेश दिवाकर ने दिये। जिसे पढ़कर पठकों ने ना केवल मजा लिया वरन कुछ तो यह कहने से भी नहीं चुके कि सूपा बोले तो बोले छलनी भी बोल रही हैं। मुख्यमन्त्री और प्रदेश भाजपा ने पहले कांग्रेस से हारी हुयी सीटों को चििन्हत कर उन्हें जीतने के लिये पर्यवेक्षक नियुक्त किये लेकिन उज्जैन में हुयी कार्यकारिणी की बैठक में दो सौ सीटें जीतने का लक्ष्य बना बनाया और तीस सीटें अभी से छोड़ दी हैं। भाजपा द्वारा छोड़ी गई इन सीटों को लेकर कांग्रेसी हल्कों में तरह तरह के कयास लगाये जा रहें है।समर्थन मूल्य पर गेहूं खरीदी के लिये जारी किये गये निर्देशों को लेकर राजनीति शुरू हो गई हैं।सबसे पहले जिला पंचायत उपाध्यक्ष अनिल चौरसिया और फिर हरवंश सिंह ने मामला उठाया लेकिन इस पूरे मामले में जिला भाजपा की चुप्पी किसान पुत्र मुख्यमन्त्री को ही कठघरे में खड़ा कर देती हैं।

शहीद दिवस पर भ्रष्टाचार के खिलाफ खूब बोले नीता और नरेश-बीते दिनों जिला भाजयुमो ने शहीद दिवस पर श्रृद्धाञ्जली कार्यक्रम आयोजित किया जिसमें शहीदों को याद कर उनके मार्ग पर चलने का संकल्प लेना था। जिला भाजपा कार्यालय में जिला भाजपाध्यक्ष सुजीत जैन,विधायकनीतापटेरिया,पूर्व विधायक नरेशदिवाकर,जिला भाजयुमो के नवनियुक्त अध्यक्ष नवनीत सिंह की उपस्थिति में शहीद दिवस मनाया गया।इस कार्यक्रम में उपस्थित कार्यकत्ताZओं को सभी वरिष्ठ नेताओ ने सम्बोधित किया। इस कार्यक्रम की जिला भाजपा द्वारा जारी एवं अखबारों में प्रकाशित विज्ञप्ति को पढ़ कर ऐसा लगा कि मानो शहीदों की याद कराना और शहीद दिवस मनाना तो एक रस्म अदायगी थी। इस मौके का लाभ लेते हुये तमाम भाजपा नेताओं ने ना सिर्फ कांग्रस पर राजनैतिक हमला बोला वरन अधिकांश समय भाजपा नेता भ्रष्टाचार पर भाषण झाड़ते रहे। सबसे अधिक आश्चर्य की बात तो यह हैं कि भ्रष्टाचार पर सबसे ज्यादा प्रवचन विधायक नीता पटेरिया और पूर्व विधायक नरेश दिवाकर ने दिये। जिसे पढ़कर पठकों ने ना केवल मजा लिया वरन कुछ तो यह कहने से भी नहीं चुके कि सूपा बोले तो बोले छलनी भी बोल रही हैं। अपने ही कार्यकत्ताZओं के सामने ऐसे नेताओं को ऐसे उपदेश देना शोभा नहीं देता क्योंकि आम आदमी से ज्यादा तो कार्यकत्ताZ अपने नेता के बारे में जानता है। शहीदों को कांग्रेस द्वारा आतंकवादी बनाने की बात भी कही गई। जिला भाजपा को ऐसे आरोप लगाने से कोई रोक तो नहीं सकता लेकिन ऐसेमहान क्रान्तिकारियों के शहीद दिवस पर ऐसे राजनैतिक आरोप लगाकर जिला भाजपा और उसके नेता उससे भी बड़ा पाप कर रहें हैं। शहीद दिवस पर कांगेस कार्यालय में भी श्रृद्धाञ्जली कार्यक्रम आयोजित हुआ लेकिन उसमें ना तो भाजपा पर कोई रानजैतिक आरोप लगाये गये और ना ही प्रदेश सरकार के भ्रष्टाचार और उसके लगभग एक दर्जन मन्त्रियों पर लोकायुक्त में चल रहे भ्रष्टाचार के मामलो की चर्चा की गई थी। मुसाफिर तो यही सलाह मुफ्त में देनाचाहता हैं कि कांच के घर में रहने वालों को दूसरों के घरों में पत्थर नही फेंकने चाहिये। अब यह तो जिला भाजपा पर निर्भर करता हें कि वे इस सलाह को माने या ना मानें।

प्रदेश भाजपा द्वारा छोड़ी गई तीस सीटों को लेकर चर्चायें जारी हैं-मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश भाजपा पिछले कई महीनों से हेट्रिक बनाने की योजना बनाने और उस पर अमल करने में जुटे हुये हैं। इस सिलसिले में आज से कुछ महीने पहले यह तय किया था कि भाजपा उन सभी सीटों को जीतने की रणनीति बनायेगी जो सीटें वो इस चुनाव में कांग्रेस से हारी थी। इसके लिये उसने विधानसभावार प्रभारी भी नियुक्त किये थे। प्रभारियोंकी जो सूची जारी हुयी थी उसे लेकर भी राजनैतिक क्षेत्रों में आश्चर्य व्यक्त किया गया था। कांग्रेस के कई कद्दावर नेताओं के क्षेत्रों में जो पर्यवेक्षक नियुक्त किये थे उनका राजनैतिक कद बहुत बौना था। उदाहरण के लिये विधानसभा उपध्यक्ष हरवंश सिंह के केवलारी विधानसभा क्षेत्र में विधायक जयसिंह मरावी को प्रभारी बनाया गया था। प्रभारी बनने के बाद से वे आज तक केवलारी क्षेत्र में नहीं आये हैं। इसे लेकर मुख्यमन्त्री के सुकतरा प्रवास के दौरान क्षेत्र के भाजपाइयों ने शिकायत भी की थी जिसे मुख्यमन्त्री ने यह कह कर टाल दिया था कि यदि आप चुनाव में भाजपा को जिता देते तो यह नौबत ही नहीं आती। यह तो रहा प्रभारियों का आलम। अब हाल ही में उज्जैन में आयोजित प्रदेश भाजपा की कार्यकारिणी में भाजपा ने यह तय किया हैं कि वो 200 सीटें जीतने का लक्ष्य लेकर चलेगी। वैसे तो यह बात सही हैं कि कोई भी राजनैतिक दल प्रदेश की सभी सीटें नहीं जीतती लेकिन दो साल पहले से ऐसा भी नहीं किया जाता कि कई सीटे छोड़ देने की मांसकिता बनायी जाये। प््राद्रेश भाजपा के इस निर्णय से यह बात साफ हो जाती हैं कि भाजपा ने अभी से तीस सीटें छोड़ देने का मन बना लिया हैं। राजनैतिक विश्लेषकों का ऐसा मानना हैं कि कहीं ऐसा तो नहीं हैं कि प्रदेश के कांग्रेस के दिग्गजों के चुनिन्दा समर्थक विधायकों के लिये अभी से वाकोवर देने की रणनीति बना ली हैं ताकि आसानी से तीसरी पारी खेली जा सके। कुछ राजनैतिक विश्लेषकों का यह भी मानना हैं कि परदे के पीछे खेले जा रहे इस खेल में कुछ भाजपायी लोकसभा सीटों की भी सौदेबजी करने की योजना हो। वैसे भी प्रदेश में यह कोई नई बातनहीं हैं जब भाजपा और कांग्रेस के चुनिन्दा नेताओं के बीच ऐसे राजनैतिक सौदे ना हुये हों। अब तो सभी को इस बात की उत्सुकता हैं कि वे कौन सी तीस सीटें हैं जिन्हें भाजपा ने अभी से छोड़ दिया हैं। भाजपा को चाहिये कि वो इस बात का खुलासा करें। राजनैतिक क्षेत्रों में यह भी चर्चा हैं कि ऐसी सौदेबाजी करने में माहिर नेताओं ने अपनी जुगाड़ जरूर जमा ली होगी।सियासी हल्कों में यह भी चर्चा जोरों पर हैं कि कहीं इन तीस सीटों में विस उपाध्यक्ष हरवंश सिंह की केवलारी सीट भी तो शामिल नहीं हैंर्षोर्षोइसका खुलासा तो दो साल बाद टिकिट बटने पर ही होगा तब तक लोग शायद यह भूल भी जायेंगें कि कभी ऐसा कुछ लिखा गया था।

गेहूं खरीदी का मामला उठाने में अनिल के फालोअर बन गये हरवंश -समर्थन मूल्य पर गेहूं खरीदी के लिये जारी किये गये निर्देशों को लेकर राजनीति शुरू हो गई हैं। सबसे पहले जिला पंचायत के उपाध्यक्ष अनिल चौरसिया ने बयान जारी करे इस बात पर आपत्ति उठायी कि सिंचित और जमीन के लिये गेहूं की उपज लेने की जो सीमायें निर्धारित की गईं हैं वे कम हैं। निर्धारित मात्रा से कहीं अधिक उपज किसान पैदा करता हें। इसके बाद जिले के इकलौते कांग्रेस विधायक हरवंश सिंह ने भी एक पत्र कलेक्टर को लिख कर इसे निरस्त करने की मांग की। इस पत्र को उन्होंने अखबारों में भी भेजा। कांग्रेस ने तो इस सम्बन्ध में पहल की लेकिन किसान पुत्र मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान की अपनी पार्टी भाजपा की जिला शाखा ने इस सम्बन्ध में कोई बयान भी जाराी करना उचित नहीं समझा जबकि छोटे से छोटे मामले में जिला भाजपा का बयान जारी होना आम बात हो गई हैं। सिर्फ राजनैतिक बयान जारी करने और अपने ही मुंह से अपने आप को किसानों का हितैषी बताने से कोई किसानों का हित चिन्तक नही हो जाता हैं वरन उसे उनके हितों की चिन्ता भी करनी पड़ती हैं। ऐसा पता चला हैं कि ये निर्देश निरस्त तो नहीं होंगें लेकिन इनमें संशोधन होकर सिंचित जमीन की निर्धारित मात्रा बढ़ा दी जायेगी। जिससे उचित मात्रा में किसानो की उपज खरीदी जा सके।









चक दे इंडिया......!



मेरे साथ आप दीजिये हमारी टीम इंडिया को शुभकामनायें......यहाँ क्लिक कीजिये...








29.3.11

झुण्ड में तो कुत्ते आते हैं, शेर हमेशा अकेला आता है

ग्रुप A से आयी सेमी फाईनल टीम्स :-

१) पाकिस्तान
२) न्यूजीलैंड
३) श्रीलंका

ग्रुप B से आयी सेमी फाईनल टीम्स :-

----- हिंदुस्तान (इंडिया) -----

खास बात : झुण्ड में तो कुत्ते आते हैं, शेर हमेशा अकेला आता है..... ;))

हा हा हा..................

खेल खेलो शान से प्यार से

आज सारे देश में एक ही बातचीत का विषय रह गया है और सभी जानते हैं वह है "भारत पाकिस्तान का मोहाली सेमी फाईनल "और यह मैच आज फाईनल से भी ज्यादा महत्व रखता है  क्योंकि चंद ऐसे लोग जो इसे आपसी वैर भाव का मुद्दा बना देते हैं वे इस पर हावी हैं.ये हमारे लिए गर्व की बात है और हम यही कहेंगे की हम गौरवशाली हैं जो भारत पाकिस्तान आज इस खेल में इतना ऊँचा मुकाम रखती हैं.हम में से कोई भी जीते फाईनल में दोनों भाइयों में से एक अवश्य पहुंचेगा और अगर ईश्वर की मर्ज़ी हुई तो विश्व कप भी इसी घर में आएगा.आज भले ही इस घर में दीवार खड़ी है किन्तु दिल अभी भी हमारे एक हैं और हम आपसी एकता को बाधा कर ही दम लेंगे.दोनों देशो के खिलाडी खेलेंगे अपने वतन के लिए भला इसमें आपसी वैर भाव के लिए कहाँ स्थान रह जाता है ?कोई नहीं चाहता की कोई भी अपने मुल्क से गद्दारी करे और इसलिए जब इस खेल में दोनों देशो के खिलाडी भिड़ेंगे तो पूरी ईमानदारी से खेलेंगे और यही प्रशंसा होगी खिलाडियों की और जिस किसी के खिलाडी भी अपने देश के लिए खेलते हैं वे जीतें या हारें बधाई के हकदार होते हैं क्योंकि सच्चा योद्धा कभी नहीं हारता और न ही उसे हर जीत में बाँटना चाहिए.शिखा कौशिक ने भी ऐसे ही खिलाडियों के लिए कहा है-
"वो खिलाडी किसी मैदां में हारता ही नहीं,
जो खेलता है हमेशा अपने वतन के लिए."
  आज देश में कहीं डर है तो कहीं जोश ऐसे में हम सभी का कर्त्तव्य बनता है की इन छोटी छोटी सी बातों में न उलझे और ऐसे कामों की और ध्यान दें जिससे हम आपसी प्यार को बढ़ा सकें और आपस के वैर भाव मिटा सकें.सीताराम शर्मा के शब्दों में-
"आ मिटा दें वह स्याही ,
जो दिलो पे आ गयी है.
मैं तुझे गले लगाऊं,
तू मुझे गले लगा ले.
मेंरे दोस्त दोस्ती की वह 
करे मिसाल कायम.
तेरी ईद मैं  मनाऊँ,
मेरी होली तू मना ले.
    शालिनी kaushik

नेताओं में कामदेव का वास


नारद पृथ्वी भ्रमण पर
देख के रह गए दंग !
अस्सी पर का नेता भी
चाहता रास-रंग ,
न पद की गरिमा रही
न नैतिकता बोध ,
नारी शोषण देखकर
नारद करते क्रोध ,
नारायण-नारायण कह
हुआ उन्हें आभास
ऐसे ही  नेताओं में
कामदेव  का  वास .
                शिखा कौशिक
http://netajikyakahtehain.blogspot.com/

Or BALAA leke ho ja khada...

Kan-kan,shan shan tu de Dahad
le aade hatho or de pachad
miththi se unka milan kara
or BALLA leke ho ja khada..

wo WICKET,wahi hai tera lakshya
Machali ki aankh rakh wahi drashaya
wo Tuchcha samjh unko hara..
or BALLA leke ho ja khara...

Best Wishes to TEAM INDIA..


Rj Nikhil
im.nikhhil@gmail.com
09314445222

सुशासन के नाम पर कुशासन को बढ़ावा देना चाहती है तृणमूल : जानकी सिंह

शंकर जालान कोलकाता, जोड़ासांकू विधानसभा क्षेत्र से वोममार्चा समर्थित माकपा उम्मीदवार जानकी सिंह ने कहा कि तृणमूल कांग्रेस राज्य की जनता को गुमराह करते हुए सुशासन के नाम पर कुशासन को बढ़ावा देना चाहती है। उन्होंने कहा कि मेरी जीत पक्की है और इसमें भी कोई संदेह नहीं कि राज्य में आठवीं बार भी वाममोर्चा की ही सरकार बनेगी। तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी की परिवर्तन की खिल्ली उड़ाते हुए उन्होंने कहा कि होता तो गया परिवर्तन, तृणमूल कांग्रेस ने पहले शांतिलाल जैन को उम्मीदवार बनाया था और परिवर्तन करते हुए स्मिता बक्सी को टिकट दे दिया।बातचीत में जानकी सिंह ने कहा कि ममता बनर्जी आज यह कह रही हैं कि पश्चिम बंगाल में गणतंत्र नहीं है वह अपने गिरेवान में झांके। जिस पार्टी में उनके (ममता) अलावा किसी को बोलने की इजाजत नहीं है उस पार्टी की प्रमुख अगर गणतंत्र की बात करे तो यह हास्यास्पद लगता है।उन्होंने कहा कि राज्य की जनता इस बात की गवाह है कि तृणमूल कांग्रेस ने हर विकासशील परियोजना का विरोध किया। रास्ता काट कर आंदोलन करने वाले माओवादियों को समर्थन दिया। उन्होंने कहा कि वे मतदाताओं के पास वाममोर्चा का चुनाव घोषणा पत्र लेकर जा रही हैं और उसी के आधार पर वोट मांग रही है। उन्होंने बताया कि जिस तरह से उन्हें मतदाताओं का समर्थन मिल रहा है उसे देखते हुए उन्हें विधानसभा भवन पहुंचने से कोई नहीं रोक सकता।सिंह ने कहा कि ममता बनर्जी कहती हैं वे हर जिले में उद्योग स्थापित करेंगी। दूसरी ओर यह भी कहती हैं कि इसके लिए जमीन का अधिग्रहण नहीं होगा। बगैर जमीन के कैसे उद्योग लगेगा यह सोचने का विषय है। राज्य के जनता बनर्जी के शब्जबाग को भलीभांति समझती है।उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रही ममता के रेल मंत्रालय के कामकाज को देखकर अंदाज लगाया जा सकता है कि अगर तृणमूल सत्ता में आई तो कैसी होगी राज्य की स्थिति। उन्होंने कहा कि रेलमंत्री बनने के पूर्व एक रुपए आमदनी की एवज में 75 पैसे खर्च होते थे। ममता के रेलमंत्री बनते ही में एक रुपए के एवज में 98 पैसे खर्च होने लगे। इसके अलावा मालगाड़ी ट्रेनों का परिचालन कम हुआ है। उन्होंने कहा कि ट्रेनें लगातार बढ़ रही है पर व्यवस्थाएं क्या है किसी से छुपी नहीं है। ऐसे में मतदाता सोच ले कि राज्य में अराजकता चाहिए कि शांति? उन्नति या हिंसा?आपके खिलाफ भाजपा ने मीना देवी पुरोहित और तृणमूल कांग्रेस ने स्मिता बक्सी को मैदान में उतारा है और ये दोनों बीते कई सालों से पार्षद हैं। पुरोहित ने डिप्टीमेयर रह चुकी हैं, जबकि बक्सी बोरो चेयरमैन हैं। ऐसे में आप को नहीं लगता कि पुरोहित और बक्सी तुलना में आपका राजनीति ज्ञान कम है? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि कतई नहीं। उन्होंने माना कि उनकी दोनों प्रतिद्वंदी फिलहाल पार्षद है, लेकिन इससे चुनावी नतीजों पर कई फर्क नहीं पड़ेगा। इसका खुलासा करते हुए उन्होंने कहा कि वे 1968 से राजनीति में है और 1969 में उन्होंने माकपा की सदस्यता ली, तब से आज तक यानी करीबन 42 वर्षोम तक संगठन, छात्र, युवा और महिलाओं के लिए उन्होंने पार्टी के बैनर तले कई काम किए है, जिसका प्रतिफल विधानसभा चुनाव में वोट के रूप में उन्हें मिलेगा। भाजपा और तृणमूल कांग्रेस में किसी निकटतम प्रतिद्वंदी मानती हैं? इसका उत्तर देते हुए जानकी सिंह ने कहा किसी को नहीं, मेरी जीत निश्चित है।

युवाओं को किसी दल से कोई खास उम्मीद नहीं

शंकर जालान आगामी विधानसभा चुनाव के सिलसिले में आप क्या सोचते हैं? किस दल या उम्मीदवार को वोट देना पसंद करेंगे? आप की नजर में किस मुद्दे पर राजनीतिक पार्टियों को वोट मांगना चाहिए? वर्तमान समय में राज्य किस हालात से गुजर रहा है? बढ़ती बेरोजगारी और हिंसा पर आप की क्या राय है? राज्य में तृणमूल कांग्रेस व कांग्रेस के तालमेल का चुनाव परिणाम पर क्या असर पड़ेगा? क्या भाजपा का खाता खुलेगा? क्या कांग्रेस के विक्षुब्ध नेता निर्दलीय तौर पर चुनाव लड़ कर जीत पाएंगे? इन सवालों पर अपनी राय देते हुए महानगर के युवा वर्ग के लोगों ने कहा कि चाहे कोई भी दल क्यों न हो सभी अपने हित के लिए जनता के हित को नजरअंदाज करते हैं, इसलिए किसी भी दल से कोई खास उम्मीद रखना खुद को धोखे में रखने जैसा होगा। ज्यादातर लोगों ने कहा कि विकास, उद्योग व शांति के नाम पर राजनीतिक दलों को वोट मांगना चाहिए। फिलहाल राज्यवासी कुछ पार्टियों के राजनेताओं के झूठे वादे के झांसे में आ रहे हैं, लेकिन राज्य में बढ़ती बेरोजगारी और हिंसा की वारदातें चिंता का विषय है। सिकदरपाड़ा लेन के रहने वाले विनोद सिंह ने कहा कि फिलहाल राज्य बेरोजगारी और हिंसा की समस्या से जूझ रहा है, इसलिए ऐसे दल और ऐसे उम्मीदवार को वोट देना चाहिए जो इन समस्याओं पर अंकुश लगा सके। उन्होंने कहा कि पहली प्राथमिकता स्थिर सरकार की होनी चाहिए और इसके बाद विकास को प्रमुखता देने वाली पार्टी को वोट देना चाहिए। उन्होंने कहा कि तृणमूल कांग्रेस के विरोध के कारण राज्य से टाटा मोटर्स की नैनो कार का कारखाना नहीं लग पाया, इस वजह से हुगली जिले के लोगों में रोजगार पाने की जो ललक लगी थी वह बुझ गई। जिसका खामियाजा तृणमूल कांग्रेस को इस चुनाव में भुगतना पड़ सकता है।कालीकृष्ण टैगोर स्ट्रीट के रहने वाले चंद्रशेखर बासोतिया ने कहा कि राज्य की जनता यह भलीभांति जानती है कि कौन सा दल राज्य में विकास चाहता है और कौन सी पार्टी अराजकता फैला रही है। उन्होंने कहा कि राज्य में चुनाव के क्या नतीजे होंगे और किसकी सरकार होगी यह कहना तो फिलहाल जल्दबाजी होगी। उन्होंने बताया कि जहां तक कांग्रेस-तृणमूल कांग्रेस में गठजोड़ की बात है, तो मुझे नहीं लगता है कि इसका कोई खास प्रभाव पड़ेगा।पाथुरियाघाट स्ट्रीट के निवासी मनोज अग्रवाल ने कहा कि जिस किसी पार्टी की सरकार क्यों न बने और मुख्यमंत्री की कुर्सी चाहे जिस नेता को क्यों न मिले, उनकी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए हिंसा पर अंकुश लगना और बेरोजगारों के लिए रोजगार उपलब्ध करना। उन्होंने कहा कि हो सकता है तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस में हुए तालमेल के कारण वाममोर्चा की कुछ सीटें घट जाए या फिर जीत का अंतर कम हो जाए, लेकिन सरकार गठन मामले में कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।उल्टाडांगा के रहने वाले अशोक झा ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि राज्य में भाजपा का खाता खुल पाएगा। उन्होंने कहा कि मेरी नजर में तृणमूल कांग्रेस व कांग्रेस के तालमेल का भी कोई विशेष लाभ होता नजर नहीं आ रहा है। उन्होंने कहा कि लोग को इस बात को ध्यान में रखते हुए अपने मताधिकार का प्रयोग करना चाहिए कि कौन सा उम्मीदवार और कौन सी पार्टी सचमुच राज्य का विकास चाहती है। जहां तक निर्दलीय उम्मीदवारों की बात है उनके लिए जीत की राह आसान नहीं है।

अंतिम संस्कार

भारत की ब्रितानिया हुकूमत से जंग ए आजादी की एक यौद्धा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी प्रमिला सिंह पत्नी स्वर्गीय ए. पी .सिंह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कल २८मर्च,२०११ को हमारे बीच से इस nasvar संसार को छोड़ कर चली गयी...उनका देहावसान उनके सुपुत्र श्री अतुल कुमार अंजान जी के निवास ३हल्वसिया कोर्ट,हजरतगंज लखनऊ में हुआ...आज २९मर्च,२०११ को भैंसा kund में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी प्रमिला सिंह का ११बजे सुबह अंतिम संस्कार किया जायेगा..अतुल कुमार अंजान जी का mobile 9415884415

28.3.11

फूट डालो और शासन करो और आरक्षण की राजनीति-ब्रज की दुनिया


jat
मित्रों,अमेरिकी पत्रकार लुई फिशर जब पहली बार कलकत्ता बंदरगाह पर उतरे तो उन्हें यह देखकर घोर आश्चर्य हुआ कि मुट्ठीभर अंग्रेज कैसे विशाल जनसंख्या वाले भारत पर शासन कर रहे हैं.लुई फिशर भले ही तब इस प्रश्न का उत्तर नहीं जानते हों;आज प्रत्येक भारतीय को पता है कि इसके लिए अंग्रेंजों ने फूट डालो और शासन करो की नीति अपनाई थी.
मित्रों,अंग्रेज तो विदेशी थे और उनका एकमात्र लक्ष्य भारत से धन लूटकर इंग्लैण्ड ले जाना था लेकिन भारत में फूट डालो और शासन करो की नीति आज भी जारी है.हमारे सारे राजनैतिक दल और राजनेता इसी नीति के बल पर चुनाव जीतते हैं और देश को लूटते हैं,देश का बंटाधार करते हैं.आरक्षण की राजनीति आज जनता में फूट डालने और अपना नाकारापन छिपाने का सर्वोत्तम साधन बन गया है.याद करिए कि किस तरह आरक्षण का समर्थन कर लालू बिहार के राजा बन बैठे थे और सिवाय पिछड़ों को आरक्षण देने का समर्थन करने के उन्होंने बिहार को कुछ भी नहीं दिया था.इन श्रीमान का सीधे तौर पर मानना था कि जनता काम के आधार पर वोट नहीं देती बल्कि जाति के आधार पर देती है.
मित्रों,भारत में सदियों से आरक्षण लागू है.पहले जहाँ समाज के सारे महत्वपूर्ण काम बड़ी जातियों के लिए आरक्षित थे,अब छोटी जातियां इसका लाभ उठा रही हैं.अगर वह गलत था तो यह भी सही नहीं है क्योंकि दोनों ही स्थितियों में प्रतिभावान लोग उपेक्षित रह जाते हैं या फिर दूसरे शब्दों में कहें तो समाज को उनकी प्रतिभा का समुचित लाभ नहीं मिल पाता है.आरक्षण के चलते कई बार तो अजीबोगरीब व हास्यास्पद स्थिति पैदा हो जाती है,जैसे किसी उम्मीदवार को शून्य से भी कम अंक मिलने पर सफल घोषित कर दिया जाता है और सामान्य कोटि का मेधावी उम्मीदवार अच्छे अंक लाने के बावजूद असफल करार दिया जाता है.
मित्रों,यह स्थिति किसी भी तरह देशहित में नहीं है.अयोग्य लोगों को डॉक्टर,इन्जीनियर या आईएएस-आईपीएस बना देने से सेवा,निर्माण और शासन की गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव पड़ना तय है और ऐसा हो भी रहा है.हमारे कुछ अवर्ण जातीय नेता सवर्णों के प्रति बदले की भावना से ग्रस्त हैं और उन्होंने अपने लम्बे राजनितिक कैरियर में बस दो ही काम किए हैं;एक-सवर्ण जातियों को मंच पर से गलियां देना और दूसरा गलत तरीके से,घपले-घोटाले करके पैसे बनाना.
मित्रों, इन दिनों केंद्र सरकार पर हिंसक-अहिंसक तरीके से दबाव बनाकर आरक्षण लेने के प्रयास जोर-शोर से चल रहे हैं.कभी जाट तो कभी गुर्जर दल-बल सहित आकर सड़कों और रेलवे ट्रैकों पर जम जाते हैं.यह जमावड़ा कभी-कभी तो २०-२० दिनों तक चलता है.कहना न होगा उन्हें ऐसा करने की प्रेरणा १९९०-९१ के सरकार-प्रायोजित आरक्षण-समर्थक आन्दोलन से मिलती है.इन जातियों को लगता है कि जब अन्य जातियां हिंसक-अहिंसक आन्दोलन के बल पर आरक्षण पाने में सफल हो सकती हैं तो वे लोग क्यों नहीं हो सकते?
मित्रों,अनुसूचित जातियों और जनजातियों को आरक्षण देने के पीछे यह सोंच काम कर रही थी कि चूंकि ये लोग सामाजिक पिछड़ेपन के कारण अन्य जातियों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते इसलिए इन्हें कुछ समय के लिए आरक्षण का लाभ दिया जाना चाहिए.जाट और गुर्जर तो सामाजिक रूप से पिछड़े हैं नहीं;कुछ इलाकों में तो ये आर्थिक रूप से भी काफी सशक्त हैं और प्रभु जातियों में गिने जाते हैं.फिर इन्हें कैसे आरक्षण दिया जाए?इस केंद्र सरकार की फूट डालो और शासन करो की नीति अब जातीय आरक्षण का कार्ड खेलने से एक कदम आगे जा चुकी है.केंद्र वोट बैंक की राजनीति के लिए सांप्रदायिक आरक्षण देने का प्रयास कर रहा है और वजह बता रहा है इन सम्प्रदायों के आर्थिक पिछड़ेपन को.इसी तरह बिहार में नीतीश सरकार इसी आधार पर सवर्णों को आरक्षण देने का मन बना चुकी है.मैं पूछता हूँ कि आरक्षण देने की कसौटी क्या होनी चाहिए? जातीय,सांप्रदायिक या फिर व्यक्तिगत गरीबी या सामाजिक पिछड़ापन,आर्थिक पिछड़ापन या फिर आन्दोलन खड़ा कर देश को क्षति पहुँचाने की क्षमता.मेरे हिसाब से इनमें से कोई भी नहीं;क्योंकि अब नौकरियां गिनती की हैं और उम्मीदवार करोड़ों.ऐसा देखा जाता है कि वह एक व्यक्ति जो नौकरी पाने में सफल होता है अपनी पूरी जाति की भलाई के लिए हरगिज काम नहीं करता बल्कि भाई-भतीजावाद में लग जाता है.इतना ही नहीं बाद में भी ज्यादातर मामलों में इन्हीं सफल लोगों के बाल-बच्चे आरक्षण का लाभ उठाते रहते हैं.मैंने आज तक आरक्षित कोटि का ऐसा कोई भी उम्मीदवार नहीं देखा जिसने क्रीमी लेयर में आने के बावजूद आरक्षण का लाभ नहीं लिया हो.अगर हम पिछले ७०-८० साल के भारत के इतिहास को देखें और देश की सामाजिक स्थिति का तृणमूल स्तर पर अवलोकन करें तो पाएँगे कि आरक्षण सामाजिक बदलाव लाने में असफल रहा है और इसका लाभ चंद संपन्न लोग ही उठाते जा रहे हैं.
मित्रों,अब प्रश्न उठता है कि आरक्षण का विकल्प क्या है?विकल्प है कि सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को पढाई की सुविधा दी जाए और इस स्तर की सुविधा दी जाए जिससे गाँव के सरकारी स्कूलों में पढनेवाला बच्चा भी दून या दिल्ली पब्लिक स्कूल के बच्चों से प्रत्येक विषय में मुकाबला कर सके.जाहिर है कि ऐसा इंतजाम करना आरक्षण देने की तरह आसान नहीं है.अगर केंद्र या राज्य सरकारें ऐसा नहीं कर सकतीं तो फिर वह अलग से सड़कें व रेल ट्रैक बनाए जिस पर आरक्षण की मांग करने वाली जातियाँ भविष्य में धरने पर बैठ सकें.इससे यात्रियों को सड़क जाम व ट्रेनें रद्द होने की स्थिति में परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ेगा.

लोकतांत्रिक मजलिस में लिफाफे में नोट देने का शगुन




रविकुमार बाबुल


विकीलीक्स के इस खुलासे के बाद कि यूपीए प्रथम के दौर में मिस्टर क्लीन के नेतृत्व में बनी कांग्रेस की सरकार न सिर्फ बची रहे बल्कि निर्वाध चलती भी रहे, इसके लिए सांसदों की मण्डी में कुछ मोल भाव किये गये और कुछ माल यानी सांसद खरीद कर सरकार को बचा भी लिया गया। जी... प्रधानमंत्री कह लें या मिस्टर क्लीन जो चाहें के इस हुनर के विकीलीक्स पर सार्वजनिक खुलासे के बाद, अभी तक मंत्रियों और नीतियों को निशाने पर ले रहा विपक्ष, सीधे तौर पर मिस्टरक्लीन को निशाने पर ले चला है, उनसे इस्तीफे की मांग करके, गैंहू के साथ घुन जैसी खुद-ब-खुद समूची सरकार ही निशाने पर आ चली है? 14 वीं लोकसभा में नोट के बदले वोट का जो दौर चला उसने विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में वोट से चुनकर आने के हुंकार के बीच एक सरकार को तो बचा लिया, जी... आम अवाम के वोट से चुनकर आयी सरकार का वजूद जो अंतत: वोटों पर नहीं नोटों पर जो आ टिक खड़ा हुआ था, और आज वही प्रधानमंत्री या सरकार के मुखिया मिस्टर क्लीन का तमंगा लटकाए फिर रहे है, यह मामला यूपीए प्रथम के दौर का है इसलिये वह यूपीए टू के दौर में शर्मसार होने को तैयार नहीं है। जी... वोट और नोट का यह खेल न सिर्फ सांसद या विधायक बनाता है, बल्कि वह सरकार भी बचाता है, इसका खुलासा विकीलीक्स ने कर दिया है।
शायद तभी दक्षिण (जहां इस बार अघोषित दारु ही नहीं मंगल-सूत्र और लैपटॉप भी बांटे जायेंगे) ही नहीं देश में कहीं भी मेयर / पार्षद के चुनाव हो या फिर विधायक या सांसद चुने जाने हो, लोकतांत्रिक मजलिस में लिफाफे में नोट भर कर देने का शगुन पूर्व से ही प्रचलन में है, और इस तरह जब लोकतंत्र की बयार कस्बे से लेकर संसद के भीतर तक बह चलती है तब इस पर नकेल कौन कसेगा, कानून बनाने वाले या कानून मानने वाले? ऐसे में अवाम किसको गलत ठहराये यह यक्ष प्रश्न है?
लेकिन विकीलीक्स के जिस दावे ने सरकार की हवा निकाल दी है, उससे न सिर्फ मिस्टर क्लीन के चेहरे पर हवाईयां उड़ रही है, बल्कि कांग्रेस के हनुमान प्रणव मुखर्जी भी संजीवनी खोज कर विपक्षी दलों के तरकश से लगातार आ रहे तीरों से घायल हो चली सरकार को बचाने की कोशिश में जुट लिये हैं। मिस्टर क्लीन की संसद के भीतर दी गयी सफाई ने कांग्रेस को राहत पहुंचाने के बजाये उसकी मुसीबतें और बढ़ा दीं हैं, वहीं प्रणव दा... ने कहा यह मामला 14 वीं लोकसभा का है अत: 15 वीं लोकसभा में इस पर चर्चा नहीं करनी चाहिये, जी... प्रणव दा... सरकार बचाने के लिये आप ठीक फरमाते है। आपको याद होगा, जब 14 वीं लोकसभा में इससे संबंधित रिपोर्ट एक कमेटी ने तैयार की थी तब उसका संज्ञान क्यों नहीं लिया गया था? सो किये गये लोकतांत्रिक नुक्सान को लेकर 15 वीं लोकसभा में सवाल उठाये ही जा सकते हैं? प्रणव जी यह मामला अमेरिकी दूतावास के अधिकारियों को मिली या दी गयी कूटनीतिक छूट का भी नहीं है, पर जनाब सवाल यह है कि इस छूट के आसरे ही सही एक ऐसा लोकतांत्रिक सच तो सामने आया जिसे बिछाकर सरकार उस पर चलना भी चाहती थी, और लोकतंत्र का परचम भी फहराये रखना चाहती थी। जी... अब अगर विपक्ष को लगता है कि सरकार पर सवाल उठाये जा सकते है, या इस बहाने उसे घेरा जा सकता है तो उसे संसद के भीतर चर्चा की मांग करने के बजाये अदालत का दरवाजा खटखटाना चाहिये, शायद तभी तो प्रणव दा ने विकीलीक्स के आरोपों की सच्चाई से बचने के लिये, विपक्ष को अदालत की शरण लेने की सलाह तक दे डाली।
जी... शायद तभी सरकार मनमोहनसिंह के नेतृत्व में भ्रष्टाचार को लेकर निर्लज्ज अवस्था में भी चलते रहना चाहती है कि महंगाई के इस दौर में अगर नैतिकता के शामियाने में सुस्ताने की जुर्रत इस्तीफा देकर जुटा ली गयी तो अगली बार खरीद फरोख्त के लिये मण्डी या मेला जुट पाये भी या नहीं इसे कहां कौन जानता है। सो जनाब इत्मिनान से सरकार चल रही है, सरकार गिराने पर कोई उतारु भी हुआ तो बाजार भी खुला है और विकीलीक्स के लिये 15 वीं लोकसभा पर खबर बनाने का रास्ता भी? हमारे लोकतांत्रिक मजलिस में नयी-नयी चलन में आई यह रवायत भले ही सवाल खड़ी करे पर आप लिफाफे में नोट लेेने का शुभ शगुन छोडिय़ेगा नहीं।


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विश्वकप के कारण टिकी हुई सरकार

आखिर कांग्रेसनीत सरकार गिर क्यों नही रही है ... महंगाई आसमान छू ली, सारे मंत्रालय खरबों का घोटाला करके भी बेशर्मी से डटे पडे हैं, विकीलीक्स के अनुसार मनमोहन सरकार को बचाने के लिये अरबों की रिश्वत दी गई, खाद्य मंत्री उलजलूल भाषा में बात करते हैं, सीबीआई सहित सभी संस्थाएं सरकारी चक्की में उन्ही की भाषा में चल रही है , कानून लगातार धराशाही हो रहे हैं लेकिन फिर भी जनता खामोश है ... क्यों ? क्यों नही जनता का विद्रोह खुल कर सामने आ रहा है क्यों वह किसी बाबा के कहने पर चलना चाहती है, क्यों वह इस सरकार का कार्यकाल पूरा होने दे रही है ?  क्यों ?क्यों ? और आखिर में एक औऱ क्यों ?  क्या इसका जवाब आपके पास है क्यों ? ... मेरे पास तो है .... मेरा जवाब है कि सरकार इसलिये अपना कार्यकाल पूरा करेगी क्योंकि विपक्ष भी नाकारा और निकम्मा है । उनके नेता आडवाणी को प्रधानमंत्री की गद्दी के अलावा कुछ नही दिखाई दे रहा है । दरअसल विपक्ष इस इंतजार में है की जनता के बीच से कोई आवाज उठे (जैसे बाबा रामदेव) तो तुरंत वह अपनी बंदुक उसके कंधे पर रख दे ताकि उनकी कमजोरी को कोई सीधा निशाना ना बना सके ।                                                              इसके बाद दुसरा कारण है मेरा परिवार ... मैं अपने परिवार को छोडकर फिलहाल कहीं नही जा सकता इसका नुकसान भी मुझे ही उठाना पड रहा है । तीसरा कारण है वर्ल्ड कप का होना .. क्योंकि हमारे देश के सारे युवा इस खेल में इतने आलसी बने रहते हैं कि उन्हे देश दुनिया से कोई मतलब नही रहता । वैसे ये कहना अतिश्योक्ति नही होगी की वर्ल्ड कप के कारण सरकार बची हुई है । मनमोहन नें भी समय का फायदा उठाते हुए जनता का ध्यान पाकिस्तान पर लगा दिये हैं । भोली भाली जनता को क्या मिलेगा इससे स्वयं जनता को कोई लेना देना नही है लेकिन बस ... चले हैं सब क्रिकेट के पीछे मानो वही भ्रष्टाचार को खत्म कर देगा ।                                               चलो अब निपटने दो विश्वकप को फिर देखते हैं जनता खाली होने के बाद क्या करेगी । जीते तो शायद सरकार बच जाएगी वरना जनता खिलाडियों की भडास जनता इसी सरकार पर निकाल देगी ।
( डब्बू मिश्रा - इस्पात की धडकन )

समर्पण मैं का



चलो ढूंढते हैं
उस एक पल को
जहाँ से शुरू हुआ था विलय
हमारे मैं का
ना तो ये किसी व्यवसाय का विलयन हें
न किन्ही दो राष्ट्र का
हवा ने खुशबु को समेटा
या सुगंध समा गई सुरभि में
समर्पण मैं का था 
जाने किस छोटे से पल की करामात हें ।
रब के सामने मैं खड़ा था
और खुशिया तुम्हारे लिए मांग रहा था।

निर्णय का पालन सुनिश्चित करायें मुख्यमंत्री

निर्णय का पालन सुनिश्चित करायें मुख्यमंत्री
अरविन्द विद्रोही
उ0प्र0 की मुख्यमंत्री सुश्री मायावती ने समीक्षा के बाद अधिकारियों को जो कार्य सम्बन्धी चेतावनी दी है,वो एक प्रशंसनीय कृत्य है। जनता की शिकायतों के तत्काल निवारण, विकास कार्यों का सुचारू संचालन, शासनादेशों का अनुपालन, कानून व्यवस्था कायम रखना आदि सरकारी कर्मचारियों व अधिकारियों की ही जिम्मेदारी होती है। इन उत्तर-दायित्वों को पूर्ण न कर पाने वाले लोकसेवकों को सेवा से बर्खास्त कर देना ही एक मात्र समुचित दण्ड़ात्मक कार्यवाही है। उ0प्र0 के पूर्व मुख्यमंत्री स्व0चौधरी चरण सिंह भ्रष्टाचार में लिप्त पटवारी संवर्ग की सामूहिक बर्खास्तगी करके शासन की ईमानदार हनक दिखा चुके हैं। कुख्यात अपराधियों और उनके गुर्गों पर प्रभावी कार्यवाही व नियंत्रण प्राप्त करने में सफल सिद्ध हो चुकी उ0प्र0 की मुख्यमंत्री सुश्री मायावती को लापरवाह, गैर जिम्मेदार तथा भ्रष्टाचार में लिप्त सरकारी लोकसेवकों पर प्रभावी नियंत्रण की दिशा में और ठोस कदम उठाने चाहिए।
मुख्यमंत्री सुश्री मायावती द्वारा लिया गया यह निर्णय कि बगैर किसानों की सहमति के उनकी भूमि का अधिग्रहण नहीं किया जायेगा, एक सार्थक किसान हितैषी तथा क्रांतिकारी कदम है। इस निर्णय के लिए वे धन्यवाद की पात्र हैं। अब उन्हें एक और बड़ी पहल करनी चाहिए। बाराबंकी जनपद की फतेहपुर तहसील के रामनगर मार्ग स्थित पचघरा के किसानों की बेशकीमती कृषि भूमि का पूर्व की सरकारों द्वारा मनमाने तरीके से बगैर किसानों की सहमति के जबरिया किये गये अधिग्रहण को रद्द करके मुख्यमंत्री को किसानों की वास्तविक दुःखहरता बनना चाहिए। पचघरा के किसानों की भूमि उनके नाम राजस्व अभिलेखों में वापस दर्ज होनी चाहिए। पचघरा के किसान आज भी अपने संगठन पचघरा भूमि अधिग्रहण विरोधी मोर्चा के बैनर तले अपने अध्यक्ष खुशीराम लोधी राजपूत के नेतृत्व में अपने हक के लिए संघर्ष कर रहे हैं। मुख्यमंत्री के इस निर्णय से इन किसानों को हार्दिक प्रसन्नता हुई है और अब इन किसानों को अपना भूमि अधिकार वापस मिलने का यकीन हो गया है।शायद इन किसानों का यकीन हकीकत में तब्दील हो जाये।

व्यंग्य - उफ ! ये क्रिकेट की किचकिच

राजकुमार साहू, जांजगीर, छत्तीसगढ़

अभी विश्वकप क्रिकेट का दौर चल रहा है। खिलाड़ी जो प्रदर्शन कर रहे हैं, वो जैसा भी हो, मगर हर कोई अपना राग अलाप रहा है। स्थिति तो ऐसी हो गई है कि जितने मुंह, उतनी बातें। विश्वकप कोई भी टीम जीते, लेकिन जुबानी जमा खर्च करने में हर कोई माहिर नजर आ रहे हैं। यही कारण है कि क्रिकेट की किचकिच में देश का हर मुद्दा चर्चा से गायब हो गया है। फिलहाल क्रिकेट में सब उलझे हुए हैं। जब क्रिकेट की बात शुरू होती है तो क्रिकेटेरिया के हर बाहरी खिलाड़ी अपने तर्क का हथौड़ा लगाने तथा बातों-बातों में दो-दो हाथ आजमाने से नहीं चूकते। एक दिन पहले की बात है, मैं घर से निकल रहा था। देखा, पड़ोस के एक मकान में लोगों का मजमा लगा है। पूछने पर पता चला कि विश्वकप क्रिकेट का मैच चल रहा है। घर के एक छोटे से कोने में टीवी चल रही थी और जहां दो कुर्सियां लगानी मुश्किल है, वहां एक-दूसरे पर, पैर पसारे कई लोग क्रिकेट के बुखार में तप रहे हैं। ऐसा लगा, जैसे वह घर न होकर क्रिकेटेरिया का गढ़ बन गया हो। बात यहीं खत्म नहीं होती, क्रिकेट मैच चल रहा है, किन्तु हर किसी के अपनी बानगी है। क्रिकेट की दीवानगी इस कदर छाई है कि न भूख की चिंता, न प्यास की। मुंह से निकली एक-दूसरे की बातों से ही भूख मिट रही है। कई तो ऐसे हैं, जो सुबह घर से निकले तो फिर देर रात घर पहुंचते हैं। पूरे दिन क्रिकेटेरिया निशाचर होकर रह गए हैं। घरेलू क्रिकेटेरिया में ऐसे लोगों का मजमा देखकर मुझे हैरानी हुई कि जिन्हें क्रिकेट की एबीसीडी मालूम नहीं है, वह भी आंख गड़ाए ताक रहा है ? केवल इतना देख रहा है कि कोई सामने खड़ा व्यक्ति लकड़ी का पाटा पकड़ा हुआ है और कई लोग उसकी ओर निहार रहे हैं। दूसरी छोर से एक व्यक्ति दौड़ रहा है और अपने हाथ में रखी गोलनुमा कोई चीज फेंक रहा है। बातों-बातों में उसे पता चलता है, जिसे पूरी ताकत लगाकर फेंकी जा रही है, उस ना चीज को गेंद कहते हैं। इस खेल में भी गेंदा को ही क्रिकेटेरिया में घूमने की पूरी छूट है और इस हाथ से उस हाथ में मसलाने का भी सौभाग्य उसे ही मिला हुआ है ? इस बीच मैं सोचने लगा कि हम भी तो ऐसी किसी गेंद की तरह हैं, जिसे एक धड़ा फेंकता है तथा दूसरा धड़ा जहां चाहता है, वहां उठाकर रख देता है, नही ंतो पटक देता है। मन किया तो सुध ले ली, नहीं तो भाड़ में जाए...। फिर ध्यान में आया कि खिलाड़ियों पर प्रशंसकों की पैनी निगाह होती है, वह कितना रन बना रहा है ? गेंदबाज कैसा कमाल दिखा रहा है ? फिल्डर तंदुरूस्त कितना है ? साथ ही मैदान के बाहर भी खिलाड़ियों के कई मार्गदर्शी होते हैं, लेकिन एक बात है कि देश की सत्ता चलाने वाले जो खिलाड़ी तैनात हैं, उन पर क्या कोई इतनी पैनी निगाह रखता है ? जो चल रहा है, अच्छा है, चलने दो, मेरा क्या जाता है ? ऐसा ही कुछ माहौल, क्यों न क्रिकेट में भी रहने दिया जाए ? वहां खिलाड़ी खेलते रहें और हम जिस तरह सत्ता की किचकिच से खुद को किनारे किए हुए हैं, कुछ उसी तरह क्रिकेटेरिया से भी परहेज कर लें। अभी के हालात में शायद किसी को मेरी यह बात अच्छी न लगे, क्योंकि हर कोई क्रिकेट की किचकिच में उलझा हुआ है तथा बातों का ताना-बाना बुनने में जुटा हुआ है। क्यों न, क्रिकेट की किचकिच पर भी कोई पुस्तक लिखा जाए। शायद अब इसकी जरूरत नहीं लगती, क्योंकि खुलासे के लिए विकीलीक्स है न...। जो हर दिन धमाकेदार खुलासे कर चौके पर चौके जड़ रही है।

27.3.11

कविता: वो लम्हे ...

कविता: वो लम्हे ...
वो लम्हे ....
जो साथ गुज़ारे थे
ख्वाब सजाये थे
नींद उडायी थी
याद तो है न!

कविता: रैन जलती....

कविता: रैन जलती....

रैन जलती रही
ख्वाब पलती रही
आंसूओ के सैलाब से
नैन सिलती रही

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शांति और विकास को प्राथमिकता देने वाला विधायक चाहती है जनता

शंकर जालान अप्रैल-मई में होने वाले विधानसभा चुनाव के बारे में ज्यादातर लोगों का कहना है कि ऐसे उम्मीदवार को जीताकर विधानसभा भवन भेजना चाहिए जिसकी सोच राज्य में शांति बहाली के साथ-साथ उद्योग का प्राथमिकता देने वाली हो। 15वीं विधानसभा चुनाव के मद्देनजर महानगर के कई वर्ग और क्षेत्र के लोगों से बातचीत की तो इन लोगों ने कहा कि विधानसभा चुनाव का महत्त्व राज्य के विकास से जुड़ा होता है, इसलिए सही उम्मीदवार का चयन हर जिम्मेवार मतदाता का दायित्व बनता है। इन लोगों के मुताबिक, नगर निगम का चुनाव एक वार्ड और विधानसभा का चुनाव परिणाम पूरे राज्य के विकास या विनाश के लिए जिम्मेवार होता है। इसलिए मतदाताओं को दोनों चुनाव के महत्व को ध्यान में रखते हुए वोट डालना चाहिए। इन लोगों ने कहा कि जागरूक मतदाता वही है जो किसी पार्टी या उम्मीदवार के झांसे में न आकर अपनी सोच-समझ से बेहतर और राज्य के हित को प्राथमिकता देने वाले प्रत्याशी को वोट दे।इस बारे में कलाकार स्ट्रीट के रहने वाले संजय अग्रवाल ने कहा कि विधानसभा चाुनाव में जनप्रतिनिधि के रूप में वैसे उम्मीदवार का चयन होना चाहिए जो अपने मतदाता के प्रति ईमानदार हो। उनके शब्दों में साफ छवि व नैतिकतावाले प्रत्याशी का चुनाव करना राज्य की प्रगति के लिए आवश्यक है।पोस्ता के रहने वाले आनंद नारसरिया ने कहा कि सही उम्मीदवार वह है जो जनसमस्याओं को समझने वाला हो न कि भ्रष्टाचारी। जो जनता की समस्याओं का समाधान करे। मैं सबको साथ लेकर चलने वाले और दलगत राजनीति से ऊपर होकर काम करने वाले प्रत्याशी को वोट देना पसंद करूंगा। उन्होंने कहा कि मेरी नजर में श्रेष्ठ उम्मीदवार का श्रेय उसी को है जो बुनियादी समस्याओं को नजदीक से जाने और चतुर्दिक विकास की बात विधानसभा में उठाए।जगमोहन मल्लिक लेन के रहने वाले राजी राठी ने बताया कि जो पार्टी और उम्मीदवार राज्य को प्रगति की ओर ले जाए वे उसे ही वोट देना पसंद करेंगे। उन्होंने कहा कि उन उम्मीदवारों को चुनाव के वक्त जनता से रू-ब-रू होने में कोई झिझक नहीं होती जो प्रचार के दौरान किए गए वायदों को पूरा करते हैं। उन्होंने कहा कि मेरी सोच के मुताबिक, वह उम्मीदवार बेहतर है जो जनता की आकांक्षाओं के प्रति खरा उतरे और स्वच्छ छवि वाला हो।शिवतला लेन के ओमप्र्रकाश साव ने कहा कि शहर में व्याप्त समस्याओं को गंभीरता से लेने और लोगों के दुख-दर्द में शामिल होने वाला प्रत्याशी उनकी पसंद है। उन्होंने कहा कि जो कर्मठ हो, जनभावना को समझ सके और भूलभूत समस्याओं को हल करे, जो जनता के प्रति अपनी जवाबदेही महसूस करे, वैसे ही प्रत्याशी को जीताकर विधानसभा भेजना चाहिए। इस बारे में महर्षि देवेंद्र रोड के विनय कुंवर का कहना था कि उम्मीदवार वैसा होना चाहिए जो शिक्षित, समाज से जुड़ा और अपनी बातों को प्रभावी तरीके से विधानसभा में रख सके। उन्होंने कहा कि नैतिकता से परिपूर्ण और जाति धर्म से ऊपर उठ कर बेरोजगारी मिटाए और हिंसा की घटनाओं को रोकने के लिए सार्थक पहल कर उसे ही विधायक कहलाने का अधिकार है। नीमतला घाट स्ट्रीट के निवासी दिनेश पांडेय ने कहा कि प्रतिनिधि शिक्षित, ईमानदार, कर्मठ और सभी धर्मों में आस्था रखने वाला हो उसे ही विधानसभा में पहुंचने का हक होना चाहिए। इसी तरह नूतन बाजार के मनोज सिंह पराशर का कहना था कि पहली प्राथमिकता तो यह होनी चाहिए की उम्मीदवार आपराधिक छवि वाला न हो। उसके मन में लोकहित की भावना हो। बेरोजगारी को समाप्त करने के लिए पहल करे।
श्रीगंगानगर--राजस्थान के पूर्व मंत्री गुरजंट सिंह बराड़ और वर्तमान मंत्री गुरमीत सिंह कुनर बेशक बहुत अधिक नहीं पढ़े मगर वे बहुत अधिक कढ़े हुए जरुर है। उन्हें अनुभव है, जीवन का। समाज का। सम्बन्धों का। राजनीति का। अमीर होने का मतलब भी वे अच्छी तरह जानते हैं तो गरीब के दर्द की जानकारी,अहसास भी उनको है। तभी तो लाखों रूपये इन्वेस्ट करके शुरू किये गए स्पैंगल पब्लिक स्कूल के उद्घाटन अवसर पर इन्होने वह दर्द बयान किया। गुरजंट सिंह बराड़ ने कहा कि स्कूल में कम से कम पांच प्रतिशत बच्चे कमजोर वर्ग से होने चाहिए। ऐसे बच्चों की शिक्षा का इंतजाम स्कूल करे। उन्होंने शिक्षा को व्यापार ना बनाये जाने की बात कही। मंत्री गुरमीत सिंह कुनर ने स्कूल में कमजोर वर्ग के विद्यार्थियों की संख्या पच्चीस प्रतिशत होनी ही चाहिए। ताकि गरीब बच्चों को उच्च वर्ग के बच्चों के साथ पढने का अवसर मिल सके। श्री कुनर ने तो यहाँ तक कह दिया कि भविष्य में उनको यहाँ आने का मौका मिला तो वे देखेंगे कि ऐसा हुआ या नहीं। मंच संचालक शिव कटारिया ने प्रबंध समिति की और से श्री कुनर को भरोसा दिलाया कि उनकी बात का पालन होगा। सभी को यह देखना है कि भविष्य में क्या होगा। इस स्कूल में और उस खेल के मैदान में। उस मैदान में जहाँ खेल को दो देशों की जंग में बदलने का खेल हो रहा है। जी हाँ बात भारत-पाक में ,ओह!सॉरी, भारत-पाक की क्रिकेट टीमों की जो दो दिन बाद सेमीफ़ाइनल खेलेंगी। वैसे तो यह सेमी फ़ाइनल है लेकिन भारतियों और पाकिस्तानियों के लिए तो यही फ़ाइनल है। यह समझ से परे है कि देश प्रेम,राष्ट्र भक्ति इन टीमों के मैच के समय ही क्यों उबाल खाती है। खेल आज चाहे बहुत बड़ा कारोबार बन गया हो, शिक्षा की तरह किन्तु असल में तो यह सदभाव,भाईचारा,प्रेम,प्यार ,आपसी समझ के साथ रिश्तों में गर्माहट बनाये रखने का पुराना तरीका है। मनोरंजन तो है ही। जंग एकदम इसके विपरीत है। जंग में सदभाव,भाईचारा,प्रेम प्यार सबकुछ ख़तम हो जाता है। वहां मनोरंजन नहीं मौत से आँखे चार होती है। खेल में रोमांच होता है। लेकिन इन दोनों टीमों का मैच तनाव लेकर आता है। खिलाडियों से लेकर दर्शकों तक। स्टेडियम में खिलाडी सैनिक दिखते हैं। किसी को चाहे भारत की धरती से रत्ती भर भी प्यार,अपनापन ना हो,वह भी पाक टीम से अपनी टीम की हार को सहन नहीं करता। बंगलादेश, कीनिया,कनाडा किसी भी पिद्दी से पिद्दी टीम से पिट जाओ बर्दाश्त कर लेंगे। पाक से हार हजम नहीं होती। वह बल्लेबाज हमको अपनों से अधिक प्यारा है जो पाक गेंदबाज को पीटता है। गेंदबाज वह पसंद जो पाक खिलाडी को आउट करे। पाक टीम के सामने कमजोर कड़ी साबित होने वाला कोई भी खिलाडी हमारी नजरों को नहीं भाता चाहे वह क्रिकेट का भगवान सचिन ही क्यों ना हो। निसंदेह जिन देशों में क्रिकेट खेली जाती है वहां क्रिकेट प्रेमियों में भारत -पाक टीमों में होने वाले मैच के प्रति उत्सुकता रहती है। अरबों का व्यापार होता है। इसके बावजूद यह खेल है। इसको जंग में नहीं बदलना चाहिए। जंग नफरत पैदा करती है। खेल नफरत को मिटा कर प्यार जगाता है। कम शब्दों में खेल खेल है और जंग केवल जंग। खेल खेल में जंग का होना किसी के लिए किसी भी हालत में ठीक नहीं।

सुविधा और दुविधा के बीच झूलता भारतीय जनमानस-ब्रज की दुनिया

fukusima
मित्रों,इस ग्लोब पर निवास करनेवाले किसी भी इन्सान ने कभी ख्वाबों-ख्यालों में भी नहीं सोंचा था कि पूरी दुनिया के लिए वैज्ञानिक व तकनीकी विकास का उदाहरण माना जानेवाला जापान प्रकृति के एक हल्के-से झटके को भी सहन नहीं कर पाएगा और इस कदर हिल जाएगा.दिनकर ने पिछली शताब्दी में ही मानव को विज्ञान की खतरनाक प्रकृति के प्रति सचेत करते हुए कहा था कि रे मानव सावधान!यह विज्ञान नहीं तलवार!लेकिन तब पूरा विश्व पश्चिमी विकास के मॉडल के प्रति सम्मोहन की अवस्था में था.
मित्रों,हम जानते हैं कि पश्चिम का मानना है कि मानव और प्रकृति में लगातार संघर्ष चलता रहता है.विकास के प्रथम चरण में प्रकृति मानव पर हावी थी जबकि विकास के द्वितीय चरण में मानव प्रकृति पर भारी है.पश्चिम के अनुसार मानव का अंतिम लक्ष्य प्रकृति पर विजय पाना है और जीवन को प्राकृतिक विनाश की कीमत पर भी अधिक-से-अधिक सुविधापूर्ण बनाना है.इसलिए पश्चिम ने तरह-तरह की मशीनें बनाईं जिनमें से कईयों का प्रकृति पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ा है.
मित्रों,पश्चिमी दर्शन के विपरीत भारतीय दर्शन प्रकृति पर विजय के बजाये प्रकृति की पूजा का समर्थक रहा है.वह यह नहीं कहता कि छत पर चढ़ जाने के बाद सीढ़ी को ही तोड़ देना चाहिए.बल्कि वह प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखते हुए विकास का हिमायती रहा है.यहाँ तक कि आधुनिक विश्व के महानतम नेता गाँधी का भी यही मानना था.लेकिन नेहरू पर पश्चिम का प्रभाव इतना ज्यादा था कि एडम स्मिथ के विचार गाँधी के विचारों पर भारी पड़ गए.नेहरू को आधुनिक कल-कारखाने और नहरें मंदिर की तरह पवित्र लगते थे.उनका मानना था कि अमेरिका आदि विकसित देशों की तरह अर्थव्यवस्था की तरह भारतीय अर्थव्यवस्था में भी सेवा और उद्योग क्षेत्रों की हिस्सेदारी लगातार बढती जानी चाहिए और कृषि की हिस्सेदारी में तदनुसार कमी आनी चाहिए.वैसे नेहरू के समय कृषि उतनी उपेक्षित भी नहीं रही जैसी आज है.नेहरु पश्चिमी व्यवस्था पर इस कदर फ़िदा थे कि उन्होंने देश के प्रशासनिक ढांचे को भी पश्चिमी मॉडल पर भी बने रहने दिया.नेहरु युग में और नेहरु के बाद जीवन-शैली और पश्चिमी विज्ञान जो विशुद्ध रूप से भौतिकवाद पर आधारित था का जमकर अन्धानुकरण किया गया.गाँधी की तस्वीर को तो खूब अपनाया गया लेकिन गांधीवाद जो प्रकृति के साथ विकास पर आधारित था को कूड़ेदान में डाल दिया गया.
मित्रों,परिणाम हमारे सामने है.कभी अध्यात्म में विश्वगुरु रहा भारत आज दुनिया के भ्रष्टतम देशों में गिना जाता है.नेहरु द्वारा स्थापित आधुनिक मंदिर कल-कारखाने भ्रष्टाचार और चीन द्वारा उत्पन्न प्रतिस्पर्धा में टिक नहीं पाने के कारण घाटा उगलनेवाली मशीनरी बनकर रह गए हैं और नेहरु युग में खोदी गयी ज्यादातर नहरों में पानी आते देखे कई पीढियां बीत चुकी हैं.धुआँ उगलती मशीनों ने पर्यावरण के संतुलन को ही डगमग कर दिया है.ऐसे में जबकि नदियाँ ही सूखने लगी हैं तो नहरों में पानी कहाँ से आए?पश्चिम की देन अंधभौतिकवाद का जो भी कुपरिणाम संभव है वह हम भारत में कहीं भी और किसी भी क्षेत्र में देख सकते हैं.सर्वत्र नैतिक-स्खलन का दौरे-दौरा है.कृषि बेदम है और सेवा क्षेत्र में विकास तो हो रहा है लेकिन वह विकास रोजगारविहीन विकास है.देश में यत्र-तत्र-सर्वत्र अव्यवस्था और भ्रष्टाचार व्याप्त है.देश के एक चौथाई हिस्से पर खुले तौर पर भारतीय संविधान का नहीं चीन से आयातित हिंसक विचारधारा का शासन है.
मित्रों,प्रत्येक वर्ष भारत सरकार गुणवत्तापूर्ण जीवन के लिए आवश्यक बन चुकी बिजली के उत्पादन में वृद्धि के लिए लक्ष्य निर्धारित करती है और व्यवस्था की कमी के चलते उसे प्राप्त नहीं कर पाती है.ऐसा माना जा रहा है कि भारत में इस समय कम-से-कम १०-१५% बिजली की कमी है.आदर्श स्थिति तो यह होती कि सौर,पवन और ज्वारभाटीय ऊर्जा द्वारा इस कमी को पाटा जाता.लेकिन भारत सरकार और आदर्श शब्द तो जैसे जानी दुश्मन हैं.भारत सरकार को तो पश्चिमी तरीके से ऊर्जा चाहिए.भले ही ऐसा करने से पर्यावरण को स्थायी और अपूरणीय नुकसान ही क्यों न हो.भारत-अमेरिका परमाणु समझौते से कभी इतनी बिजली नहीं मिलेगी जिससे परमाणु ऊर्जा भारत के कुल ऊर्जा उत्पादन में मुख्य हिस्सेदार बन सके.तब भी लगभग ९०% बिजली तापीय और अन्य परंपरागत और अपरम्परागत ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त करना होगा.
मित्रों,विकास के पश्चिमी रास्ते पर चलकर जापान आज विनाशक मोड़ पर आ खड़ा हुआ है और सारी दुनिया बर्बाद होते जापान को मूकदर्शक बनी देख रही है.यह सही है कि जो जापान १८६८ में मेजी पुनर्स्थापना से पहले तीर-धनुष के युग में था वही जापान मात्र ८-१० सालों में ही पश्चिम की नक़ल करके विकसित देशों की श्रेणी में आ गया और पश्चिमी साम्राज्यवादियों के साथ बराबरी के साथ बात करने लगा.जापान ने न केवल विज्ञान और तकनीक के मोर्चे पर पश्चिम की नक़ल की बल्कि साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद के मामले में भी जमकर अन्धानुकरण किया जिसका परिणाम हुआ नागासाकी और हिरोशिमा.यह घोर आश्चर्य की बात है कि जो जापान परमाणु-हथियारों की विभीषिका का एकमात्र भोक्ता था उसने कैसे खतरनाक परमाणु ऊर्जा पर विश्वास कर लिया जबकि उसे यह भलीभांति पता था और है कि किसी भी प्राकृतिक या मानवीय भूल से उत्पन्न होनेवाली आपदा के समय परमाणु-रिएक्टर परम विनाशकारी और अनियंत्रित परमाणु-बम में बदल जाता है.
मित्रों,कुछ पश्चिमवादी भारतीय जिनमें हमारे प्रधानमंत्री भी शामिल है यह तर्क दे रहे हैं कि अब ऎसी तकनीकें उपलब्ध हैं जिससे कि किसी भी संभावित परमाणु-दुर्घटना पर पूर्णतः नियंत्रण संभव है.मैं उनलोगों से पूछना चाहता हूँ कि क्या भारत या दुनिया का कोई भी दूसरा देश तकनीक के मामले में जापान से आगे है?फिर नए परमाणु-रिएक्टर बिठाने की जिद क्यों?भारत की जनसंख्या भी काफी ज्यादा है इसलिए भी यहाँ मौतें ज्यादा होगी और जहाँ तक व्यवस्था का प्रश्न है तो इस मामले में दुनिया के कुछ ही देश ऐसे हैं भारत की स्थिति जिनके मुकाबले अच्छी है.मान लिया कि हम कानून बना देंगे और दिशा-निर्देश भी जारी कर देंगे.साथ ही यह नियम भी बना देंगे कि समय-समय पर रिएक्टरों की स्थिति की जाँच की जाएगी.लेकिन उन्हें लागू कौन कराएगा?हमारे भ्रष्ट नेता और अफसर ही न.फिर क्या गारंटी है कि हमारे नेता और अफसर चंद गाँधी-छाप कागज के टुकड़ों के लालच में नहीं आयेंगे और दूसरा-तीसरा भोपाल नहीं होगा?
मित्रों,कुल मिलाकर इस समय पूरे भारत में परमाणु-ऊर्जा को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है.बहुसंख्यक लोगों का मानना है कि भारत को इस पचड़े में पड़ना ही नहीं चाहिए और जो धन परमाणु-ऊर्जा के उत्पादन पर खर्च किया जाना है उसे नवीकरणीय ऊर्जा के निर्माण पर खर्च किया जाए.अगर जनमानस में आशंकाएं हैं तो उन्हें बेवजह भी नहीं कहा जा सकता.हमारी सरकार की विश्वसनीयता खुद ही अनगिनत प्रश्नों के घेरे में है.ऐसे में अगर वह सुरक्षा की गारंटी देती भी है तो जनता उस पर बिलकुल ही विश्वास नहीं करेगी.लेकिन यहाँ प्रश्न सिर्फ दो-चार या दस-बीस परमाणु बिजलीघरों का ही नहीं है;यहाँ सवाल है विकास,प्रशासन और जीवन-शैली के अहम् क्षेत्रों में पश्चिम की नक़ल करने का भी.सवाल यह है कि हम इन क्षेत्रों में अपना भारतीय मॉडल विकसित करेंगे या पश्चिम का अन्धानुकरण करते हुए एक दिन जापान की तरह बर्बाद हो जाएँगे.हमारे पूर्वजों ने जो संस्कृति अपनाई थी उसी के बल पर हम आज भी गर्व के साथ माथा ऊंचा करके यह कह पा रहे हैं कि कुछ बात है हस्ती मिटती नहीं हमारी,सदियों रहा दुश्मन दौरे-जहाँ हमारा.इस समय हम दोराहे पर खड़े हैं.एक रास्ता प्राकृतिक विनाश का है और धरती पर मानव जीवन के अंत की ओर जाता है.वहीँ दूसरा रास्ता सर्वे भवन्तु सुखिनः का है और माँ वसुंधरा की,प्रकृति की रक्षा करते हुए विकास करने का है.कौन-सा रास्ता बेहतर है यह दीवार पर लिखी इबारत की तरह साफ है.