30.4.11

हे ईश्वर,दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान नहीं करना-ब्रज की दुनिया

sai baba
मित्रों,गोस्वामी तुलसीदास ने अपने विश्वप्रसिद्ध ग्रन्थ रामचरितमानस में वर्षा ऋतु का वर्णन करते हुए कहा है कि जहँ-तहँ जामि तृण भूमि समुझि पड़हिं नहिं पंथ;जिमि पाखंडवाद ते लुप्त होहिं सद्पंथ.यानि वर्षा ऋतु में पगडंडियों पर इतनी घनी घास उग आती है कि राही को पता ही नहीं चलता कि वास्तव में रास्ता है किधर से.कुछ इसी तरह जब राष्ट्र और समाज में पाखंडवाद का बोलबाला हो जाता है तब लोग सन्मार्ग को भूलने लगते हैं.दुर्भाग्यवश वर्तमान भारत के राजनैतिक,सामाजिक और धार्मिक जीवन में भी बहुत-कुछ ऐसा ही हो रहा है.

              मित्रों,आध्यात्मिक दृष्टि से दुनिया में हमेशा से तीन तरह के लोग रहे हैं.एक वे जो ईश्वर में विश्वास रखते हैं,दूसरे वे जो ईश्वर में विश्वास नहीं रखते और तीसरी श्रेणी उन लोगों की है जो अन्धविश्वासी हैं.इसी तीसरी श्रेणी की मौजूदगी का लाभ उठाते हैं बगुला भगत की तरह पाखंडपूर्ण जीवन जीनेवाले लोग.भारतीय इतिहास के पन्नों को अगर हम पलटें तो पहली बार अथर्ववेद में मंत्र-तंत्र,जादू-टोने और चमत्कार का जिक्र आता है.हालाँकि सिन्धु-घाटी सभ्यता के शहर मोहनजोदड़ो से एक पुजारीनुमा व्यक्ति की मूर्ति प्राप्त हुई है लेकिन वह जनसमुदाय को प्रभावित करने के लिए जादू-टोने और चमत्कार का प्रयोग करता था या नहीं;का कोई साहित्यिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं है और जब तक सिन्धु-घाटी सभ्यता की लिपि पढ़ नहीं ली जाती तब तक ऐसा हो पाने की कोई सम्भावना भी नहीं है.उत्तरवैदिक काल में चार पुरुषार्थों का सिद्धांत आया.अर्थ,काम,धर्म और मोक्ष में मोक्ष की महत्ता सबसे ज्यादा मानी गयी.इन चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति के लिए व्यक्ति को स्वयं प्रयत्न करना पड़ता था.लेकिन बाद में जब बौद्ध धर्मं में पाखंड का प्रभुत्व बढ़ा और तंत्रयान और वज्रयान का प्रभाव बढ़ा तब बोधिसत्व (बौद्ध मुनि) धन लेकर दूसरे लोगों के दुखों-पापों को अपने ऊपर लेने और अपने तपोबल से मोक्ष दिलवाने का दावा करने लगे.बुद्ध की जातक कथा से प्रेरित होकर ब्राह्मणों ने विभिन्न हिन्दू देवी-देवताओं का अवतार करवाना शुरू कर दिया.पहले राम,फिर कृष्ण जैसे महामानवों को विष्णु का अवतार बना दिया गया.ऐसा भारत में हमेशा से होता आया है कि किसी असाधारण मनुष्य के मरने के बाद लोग उसे अवतार मानकर उसकी पूजा करने लगते हैं.बुद्ध और कबीर जैसे अनीश्वरवादी और निर्गुण भी कुछ चतुर लोगों के इस प्रकार के षड्यंत्रों के शिकार हो चुके हैं.कुछ ऐसे भी लोग हुए जो अपने जीवनकाल में ही खुद के अवतारी होने का दावा करने लगे.श्रीमदभागवतपुराण जो कथित रूप से विष्णु के कृष्णावतार की कथा है;में भी एक ऐसे हीमिथ्याचारी राजा का उल्लेख है जिसने काठ की दो अतिरिक्त भुजाएँ लगवा ली थीं और खुद के विष्णु का वास्तविक अवतार होने का दावा करता था.

          मित्रों,१९वीं-२०वीं सदी में महाराष्ट्र में एक महान संत ने जन्म लिया जिसका नाम लोगों ने रखा साईं बाबा.साईं ने कभी यह नहीं कहा कि वे अवतारी हैं,बल्कि उनका चित्त,स्वभाव और जीवन-शैली तो एक छोटे-से बच्चे की तरह सरल थे.अब किसने उनमें शिव को देखा और किसने राम को;यह देखनेवाला जाने.वे तो खुद को सिर्फ एक भक्त मानते थे.हालांकि उन्होंने कुछ चमत्कार भी दिखाए जो किसी त्यागी-तपोनिष्ठ संत के लिए किसी भी तरह से असंभव नहीं है.साईं ने कोई संपत्ति भी जमा नहीं की.मरे तब पांव में जूता-चप्पल तक नहीं था.मेरे एक मामा जिन पर किसी आत्मा-वात्मा का साया था;किसी भी चीज की बरसात करा देने में सक्षम थे.तो क्या वे शिर्डी के साई बाबा के अवतार हो गए.शिर्डी के साई के देहत्याग के कुछ ही साल बाद २३ नवम्बर,१९२६ को आंध्र प्रदेश के पुट्टपर्थी गाँव में एक बच्चे ने जन्म लिया.माता-पिता ने नाम रखा सत्यनारायण राजू.चौदह साल की उम्र में अति उर्वर मस्तिष्क के स्वामी सत्यनारायण ने स्वयं को शिर्डी के साई बाबा का अवतार घोषित कर दिया.उनकी जीवन शैली भव्य थी और जीवन यौन-स्वच्छंदता के आरोपों के कारण विवादस्पद.वह जनसामान्य को प्रभावित करने के लिए कभी भभूत को मिठाई बना देता तो कभी मिश्री.वह ऐसे चमत्कार थोक में दिखाता जो कोई भी साधारण-सा जादूगर भी दिखा सकता था.मानों उसके रूप में साई ने सिर्फ इसी मकसद से अवतार लिया था.इस बात की पुष्टि के लिए स्वयं इंटरनेट पर उसकी हाथ की सफाई की पोल खोलनेवाले कई वीडियो मौजूद हैं.हाथ कंगन को आरसी क्या और पढ़े लिखे को फारसी क्या!
          मित्रों,त्यागमूर्ति शिर्डी के साई बाबा का यह कथित अवतारी अपने पीछे १.५ लाख करोड़ रूपये की अकूत संपत्ति छोड़ गया है.क्या ऐसा व्यक्ति शिर्डी के साई बाबा का अवतार हो सकता है?आप यह भी सोंच सकते हैं कि अगर वह संन्यासी था भी तो किस तरह का संन्यासी था?संन्यास का तात्पर्य ही पूर्ण विरक्ति होता है लेकिन यह व्यक्ति तो माया के प्रति एक सामान्य गृहस्थ से भी ज्यादा अनुरक्त था.लोगों पर अपना विश्वास ज़माने के लिए इसने अपनी मृत्यु के वर्ष की भविष्यवाणी कर रखी थी;20२२ ईस्वी.साथ ही उसने यह भी घोषणा कर रखी थी कि उसकी मृत्यु के ८ साल बाद यानि २०३० ईस्वी में वह फिर से धरती पर आएगा;प्रेम साई के रूप में.लेकिन उसकी ये दोनों भविष्यवाणियाँ उसकी मौत के साथ ही झूठी साबित हो चुकी हैं.
     मित्रों,हालाँकि उसने गरीबों की भलाई के लिए अस्पताल और स्कूल भी खोले और इन कार्यों के लिए उसकी प्रशंसा भी की जानी चाहिए.लेकिन भारत में ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं है और उनमें से किसी ने आज तक स्वयं के अवतार होने का दावा भी नहीं किया है.कुछ लोग भारतीय परंपरा का हवाला देकर कह सकते हैं कि हमारे यहाँ मरे हुए व्यक्तियों की निंदा करना उचित नहीं माना जाता.अगर ऐसा मानना सही है तो फिर रावण और कंस जैसे पापियों के प्रसंगों को शास्त्रों से पूरी तरह हटा क्यों नहीं दिया जाता?किसी पापी का जो कर्म उसके जीवित रहते निंदनीय रहता है वह उसकी मृत्यु होते ही स्तुत्य कैसे हो जा सकता है?तो आईये मित्रों हम सब मिलकर ईश्वर से यह प्रार्थना करें कि वह सत्य साई और उसके जैसे सभी पाखंडियों की आत्माओं को शांति प्रदान नहीं करे और रौरव नरक में अनंत काल तक निवास दे.  

परम वीर चक्र के बारे में एवं विजेताओं की सूची


परम वीर चक्र सैन्य सेवा तथा उससे जुड़े हुए लोगों को दिया जाने वाला भारत का सर्वोच्च वीरता सम्मान है। यह पदक शत्रु के सामने अद्वितीय साहस तथा परम शूरता का परिचय देने पर दिया जाता है। 26 जनवरी 1950 से शुरू किया गया यह पदक मरणोपरांत भी दिया जाता है।

शाब्दिक तौर पर परम वीर चक्र का अर्थ है "वीरता का चक्र"। संस्कृति के शब्द "परम", "वीर" एवं "चक्र" से मिलकर यह शब्द बना है।

यदि कोई परम वीर चक्र विजेता दोबारा शौर्यता का परिचय देता है और उसे परम वीर चक्र के लिए चुना जाता है तो इस स्थिति में उसका पहला चक्र निरस्त करके उसे रिबैंड दिया जाता है। इसके बाद हर बहादुरी पर उसके रिबैंड बार की संख्या बढ़ाई जाती है। इस प्रक्रिया को मरणोपरांत भी किया जाता है। प्रत्येक रिबैंड बार पर इंद्र के वज्र की प्रतिकृति बनी होती है, तथा इसे रिबैंड के साथ ही लगाया जाता है।



परम वीर चक्र को अमेरिका के सम्मान पदक तथा यूनाइटेड किंगडम के विक्टोरिया क्रॉस के बराबर का दर्जा हासिल है।


साभार-bharat.gov.in

संतों से परहेज क्यों?

 अ क्सर कहा जाता है कि साधु-सन्यासियों को राजनीति में दखल नहीं देना चाहिए। उनका काम धर्म-अध्यात्म के प्रचार तक ही सीमित रहे तो ठीक है, राजनीति में उनके द्वारा  अतिक्रमण अच्छा नहीं। इस तरह की चर्चा अक्सर किसी भगवाधारी साधु/साध्वी के राजनीति में आने पर या आने की आहट पर जोर पकड़ती है। साध्वी ऋतंभरा, साध्वी उमा भारती, योगी आदित्यनाथ आदि के राजनीति में भाग लेने पर नेताओं और कुछ विचारकों की ओर से अक्सर ये बातें कही जाती रही हैं। इसमें एक नाम और जुड़ा है स्वामी अग्निवेश का जो अन्य भगवाधारी साधुओं से जुदा हैं। हालांकि इनके राजनीति में दखल देने पर कभी किसी ने आपत्ति नहीं जताई। वैसे अप्रत्यक्ष रूप से राजनीति में ये अग्रणी भूमिका निभाते हैं, इस बात से कोई अनजान नहीं है। पूर्व में इन्होंने सक्रिय राजनीति में जमने का प्रयास किया जो विफल हो गया था।
    अन्ना हजारे के अनशन से पहले से बाबा रामदेव ने भ्रष्टाचार के खिलाफ अलख जगा रखी है। उन्होंने कालाधन वापस लाने और भ्रष्टाचार के खिलाफ हल्ला बोलने के लिए अलग से भारत स्वाभिमान मंच बनाया है। वे सार्वजनिक सभा और योग साधकों को संबोधित करते हुए कई बार कहते हैं यदि कालाधन देश में वापस नहीं लाया गया तो लोकसभा की हर सीट पर हम अपना उम्मीदवार खड़ा करेंगे। उसे संसद तक पहुंचाएंगे। फिर कालाधन वापस लाने के लिए कानून बनाएंगे। उनके इस उद्घोष से कुछ राजनीतिक पार्टियों और उनके बड़बोले नेताओं के पेट में दर्द होता है। इस पर वे बयानों की उल्टी करने लगते हैं। आल तू जलाल तू आई बला को टाल तू का जाप करने लगते हैं। ऐसे ही एक बयानवीर कांग्रेस नेता हैं दिग्विजय सिंह उर्फ दिग्गी राजा। वे अन्ना हजारे को तो चुनौती देते हैं यदि राजनीतिक सिस्टम में बदलाव लाने की इतनी ही इच्छा है तो आ जाओ चुनावी मैदान में। लेकिन, महाशय बाबा रामदेव को यह चुनौती देने से बचते हैं। वे बाबा को योग कराने और राजनीति से दूर रहने की ही सलाह देते हैं। चार-पांच दिन से दिग्गी खामोश हैं। सुना है कि वे खुद ही एक बड़े घोटाले में फंस गए हैं। उनके खिलाफ जांच एजेंसी के पास पुख्ता सबूत हैं।
    खैर, अपुन तो अपने मूल विषय पर आते हैं। साधु-संतों को राजनीति में दखल देना चाहिए या नहीं? जब भी कोई यह मामला उछालता है कि भगवाधारियों को राजनीति से दूर रहना चाहिए। तब मेरा सिर्फ एक ही सवाल होता है क्यों उन्हें राजनीति से दूर रहना चाहिए? इस सवाल का वाजिब जवाब मुझे किसी से नहीं मिलता। मेरा मानना है कि आमजन राजनीति को दूषित मानने लगे हैं। यही कारण है कि वे अच्छे लोगों को राजनीति में देखना नहीं चाहते। वहीं भ्रष्ट नेता इसलिए विरोध करते हैं, क्योंकि अगर अच्छे लोग राजनीति में आ गए तो उनकी पोल-पट्टी खुल जाएगी। उनकी छुट्टी हो जाएगी। राजनीति का उपयोग राज्य की सुख शांति के लिए हो इसके लिए आवश्यक है कि संत समाज (अच्छे लोग) प्रत्यक्ष राजनीति में आएं। चाहे वे साधु-संत ही क्यों न हो। वर्षों से परंपरा रही है राजा और राजनीति पर लगाम लगाने के लिए धार्मिक गुरु मुख्य भूमिका निभाते रहे हैं। वे राजनीति में शामिल रहे। विश्व इतिहास बताता है कि इस व्यवस्था का पालन अनेक देशों की राज सत्ताएं भी करती थीं। भारत में इस परिपाटी का बखूबी पालन किया जाता रहा। चाहे भारत का स्वर्णकाल गुप्त काल रहा हो या मौर्य काल हो या फिर उससे भी पीछे के पन्ने पलट लें। आचार्य चाणक्य हालांकि साधु नहीं थे, लेकिन उनकी गिनती संत समाज में तो होती ही है। इन्हीं महान चाणक्य ने राजनीति के महाग्रंथ अर्थशास्त्र की रचना की। प्रत्यक्ष राजनीति करते हुए साधारण बालक चंद्रगुप्त को सम्राट चंद्रगुप्त बनवाया और अत्याचारी घनानंद को उसकी गति तक पहुंचाया। वे सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के राज व्यवस्था में महामात्य (प्रधानमंत्री) के पद पर जीवनपर्यंत तक बने रहे। छत्रपति शिवाजी के गुरु समर्थ रामदास को भी इसी श्रेणी में रखा जाना चाहिए।
    रावण के अत्याचार से दशों दिशाएं आतंकित थीं। ऐसी स्थिति में बड़े-बड़े शूरवीर राजा-महाराजा दुम दबाए बैठे थे। विश्वामित्र ने बालक राम को दशरथ से मांगा और अपने आश्रम में उदण्डता कर रहे राक्षसों का अंत करवाकर रावण को चुनौती दिलवाई। इसके लिए उन्होंने जो भी संभव प्रयास थे सब करे। यहां तक कि राम के पिता दशरथ की अनुमति लिए बिना राम का विवाह सीता से करवाया। महाभारत के कालखण्ड में तो कितने ही ऋषि पुरुषों ने राजपाठ से लेकर युद्ध के मैदान में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।  महात्मा गांधी भी संत ही थे। उन्होंने भी राजनीति को अपना हथियार बनाया। उन्होंने विशेष रूप से कहा भी है कि 'धर्म बिना राजनीति मृत प्राय है'। धर्म की लगाम राजनीति से खींच ली जाए तो यह राज और उसमें निवास करने वाले जन समुदाय के लिए घातक सिद्ध होती है। यह तो कुछेक उदाहरण हैं, जिनसे हम सब परिचित हैं। ऐसे उदाहरणों से इतिहास भरा पड़ा है।
    मेरा मानना है कि संत समाज का काम सिर्फ धर्म-आध्यात्म का प्रचार करना ही नहीं है। समाज ठीक रास्ते पर चले इसकी व्यवस्था करना भी उनकी जिम्मेदारी है। अगर इसके लिए उन्हें प्रत्यक्ष राजनीति में आना पड़े तो इसमें हर्ज ही क्या है? साधु-संतों को राजनीति में क्यों नहीं आना चाहिए? इसका ठीक-ठीक उत्तर मुझे अब तक नहीं मिला। यदि आप बता सकें तो आपका स्वागत है।
अन्य आलेखों के लिए अपनापंचू पर आपका स्वागत है...

Ganga ke Kareeb: गंगा की दशा को सुधारने के लिए बनी परियोजना ..........

"गंगा जीवनदायिनी नदी, भारतवासियों के ह्रदयों में ही नही विदेशियों के ह्रदय में भी वास करती है।हम सभी के जीवन की यह प्राण है। प्रदुषित गंगा क..."

आधुनिक बोधकथाएँ -४. सुंदर गायिका ।

अकबर-बिरबल ।

 (सौजन्य-गुगल)
सुंदर गायिका ।


अकबर - "बिरबल,तानसेनजी एक माह की पी.एल. (छुट्टी) पर जानेवाले हैं । यार, उनकी जगह मन बहलाने लिए, इस बार अगर सुंदर गायिका का प्रबंध हो जाए, तो मझा आ जाए..!!"

बिरबल -" बादशाह सलामत, एक काम करते हैं । सारे राज्य में ढिंढोरा पिटवा के, सुंदर गायिका का इंटरव्यू करते हैं ना, ठीक है?"

अकबर -" वैरी गुड आइडिया, बिरबल ऐसा ही करते हैं । तानसेनजी एक हफ़्ते के बाद, छुट्टी पर जानेवाले है,उससे पहले गायिका का एपॉइन्टमेन्ट हो जाना चाहिए,क्या?"


बिरबल - " डॉन्ट वरी, जहाँपनाह, मैं हूँ ना..!!  ऐसा ही होगा, आप निश्चिंत रहें ।"


तुरंत, सारे राज्य में ढिंढोरा पिटवाया गया । कई रूपमती,नाज़ुक,सुंदर गायिका इंटरव्यू के लिए उपस्थित हो गई । इनमें से कुछ स्वरूपवान गायिका,  सेमी फ़ाइनल राउंड के लिए सिलेक्ट भी हुई ।

इसी दौरान, एक दिन बादशाह अकबर, बड़े गभराये से, बौखलाये से ,बिरबल के पास पहुँचे..!!

चेहरे पर आतंक के भाव के साथ,बादशाह ने बिरबल से कहा," यार, बिरबल, महल में, मेरी बेग़म को पता चल गया है कि, हम तानसेन की एवज़ में सुंदर गायिका ढूंढ रहे हैं । पता नहीं कहाँ से, उसकी कोई सहेली आ धमकी है? अब बेग़म ने पूरा महल सर पे उठा लिया है कि अगर गायिका सिलेक्ट करना है तो, उसे ही एपॉइन्ट करना पड़ेगा..!! बिरबल,यु...नॉ..तु तो समझता है ना, हम सुंदर गायिका क्यों ढूंढ रहे हैं? जल्दी कुछ कर यार,कुछ कर...!!"

बिरबल- "जहाँपनाह, आप बेग़म से इतना डरते क्यों हैं..!! अगर ऐसी बात है तो, आप सबकुछ मुझ पर छोड़ दीजिए, मैं कुछ करता हूँ ।"

तुरंत,सिर पर पैर लिए, बिरबल, महल की ओर भागे..!! बेग़म साहिबा को,पता नहीं बिरबल ने क्या समझाया कि, शाम होते होते ही, बेग़म ने ज़िद त्याग कर, अपनी सहेली को उसके गाँव परत भेज दिया..!!

बादशाह को जब, ये बात  ज्ञात हुई कि, बेग़म की सहेली वापस गाँव चली गई है तब,उन्होंने बिरबल को, ढेर सारे इनाम से नवाज़ा और पूछा,

"यार..तुमने ऐसा क्या किया कि, बेग़म ने अपनी ज़िद त्याग कर, अपनी सहेली को,गाँव  भगा दिया?

बिरबल ने गंभीर होकर,बादशाह सलामत से कहा-" कुछ खास नहीं,जहाँपनाह..!! मैंने तो बेग़म साहिबा को सिर्फ इतना ही कहा कि, बादशाह सलामत, भरे दरबार में बूढ़े तानसेन के आलाप सुन सुन कर बोर हो गए हैं..!!  इसलिए अब एक माह के लिए, जहाँपनाह को, भरे दरबार की जगह, हमामख़ाने में, अपने मनोरंजन के लिए, अत्यंत सुंदर, रूपमती, बाथरूम सिंगर को एपॉइन्ट करना है..!!"

बादशाह, " यु आर वैरी स्मार्ट,बिरबल..,फिर क्या हुआ?"

बिरबल," फिर क्या? बेग़म साहिबा को मैंने समझाया, आपकी सहेली बहुत खूबसूरत है, अगर बादशाह ने, उसे हमेशा रख लिया तब तो पक्का, आपका स्थान ख़तरे में है..!!"

बादशाह-"शाबाश, बिरबल, ये ले, उपहार में, ये नौलखा हार भी रख और बता, बाद में क्या हुआ?"

बिरबल -" बाद में? बाद में, बेग़म साहिबा ने, तानसेनजी को तलब करके उनकी पी.एल (छुट्टियाँ) रद्द कर दी..!!"

बादशाह-" अ...रे, या..आ..आ..र..!! ये क्या हो गया?"

आधुनिक बोध- नारी को समझाने के लिए, नारीमें छुपे जन्मजात इर्ष्याभाव को जाग्रत करके उसका कुशलता से सदुपयोग करने में कोई बुराई नहीं है..!!


मार्कण्ड दवे ।दिनांक-३०-०४-२०११.
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प्यारे दोस्तों,
अगर आप मूल रचनाकार हैं,तो आपके सृजनकी रक्षा के लिए, निम्न आलेख, मेरे ब्लॉग पर, आकर ज़रूर पढें ।

कॉपीराइट एक्ट | HELPFUL HAND BOOK

http://mktvfilms.blogspot.com/2011/04/helpful-hand-book.html

(प्रतिलिपि अधिकार अधिनियम)

 (HELPFUL HAND BOOK)


भड़कीला सवाल- " डॉमेस्टिक वायॉलन्स एक्ट २००५ भी, एक तरह से कॉपी राइट भंग का कानून है क्या?"


चटकीला जवाब-"शायद, मगर अच्छा है कि,किसी के सास-ससुर, अपने मौलिक सृजन,(बेटी) का विवाह करने के पश्चात उसे, अपनी कॉपी राइट प्रोटेक्टेड मिल्कियत मान कर, बेटी में देखे गए, शारीरिक,मानसिक,आर्थिक और सामाजिक स्तर के बदलाव का हिसाब माँगकर, कॉपी राइट एक्ट उल्लंघन का नोटिस नहीं भेजते हैं वर्ना, कोई भी दामाद का बच्चा, सास-ससुर के इस अनमोल मौलिक सृजन को, शादी के दिन जैसा, तरोताज़ा कहाँ रख पाता है?"

मार्कण्ड दवे । दिनांक- २७ नवम्बर २०१०.

भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी क्यों?


भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी क्यों?

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

इस बात से कोई भी इनकार नहीं कर सकता कि इन दिनों भारत में हर क्षेत्र में, भ्रष्टाचार चरम पर है| भ्रष्टाचार के ये हालात एक दिन या कुछ वर्षों में पैदा नहीं हुए हैं| इन विकट हालातों के लिये हजारों वर्षों की कुसंस्कृति और सत्ताधारियों को गुरुमन्त्र देने के नाम पर सिखायी जाने वाली भेदभावमूलक धर्मनीति तथा राजनीति ही असल कारण है| जिसके कारण कालान्तर में गलत एवं पथभ्रष्ट लोगों को सम्मान देने नीति का पनपना और ऐसे लोगों के विरुद्ध आवाज नहीं उठाने की हमारी वैचारिकता भी जिम्मेदार है|

आजादी के बाद पहली बार हमें अपना संविधान तो मिला, लेकिन संविधान का संचालन उसी पुरानी और सड़ीगली व्यवस्था के पोषक लोगों के ही हाथ में रहा| हमने अच्छे-अच्छे नियम-कानून और व्यवस्थाएँ बनाने पर तो जोर दिया, लेकिन इनको लागू करने वाले सच्चे, समर्पित और निष्ठावान लोगों के निर्माण को बिलकुल भुला दिया|

दुष्परिणाम यह हुआ कि सरकार, प्रशासन और व्यवस्था का संचालन करने वाले लोगों के दिलोदिमांग में वे सब बातें यथावत स्थापित रही, जो समाज को जाति, वर्ण, धर्म और अन्य अनेक हिस्सों में हजारों सालों से बांटती रही| इन्हीं कटुताओं को लेकर रुग्ण मानसिकता के पूर्वाग्रही लोगों द्वारा अपने चहेतों को शासक और प्रशासक बनाया जाने लगा| जो स्वनिर्मित नीति अपने मातहतों तथा देश के लोगों पर थोपते रहे|

एक ओर तो प्रशासन पर इस प्रकार के लोगों का कब्जा होता चला गया और दूसरी ओर राजनीतिक लोगों में आजादी के आन्दोलन के समय के समय के जज्बात् और भावनाएँ समाप्त होती गयी| जिन लोगों ने अंग्रेजों की मुखबिरी की वे, उनके साथी और उनके अनुयाई संसद और सत्ता तक पहुँच स्थापित करने में सक्षम हो गये| जिनका भारत, भारतीयता और मूल भारतीय लोगों के उत्थान से कोई वास्ता नहीं रहा, ऐसे लोगों ने प्रशासन में सुधार लाने के बजाय खुद को ही भ्रष्टाचार में आकण्ठ डूबे अफसरों के साथ मिला लिया और विनिवेश के नाम पर देश को बेचना शुरू कर दिया|

सत्ताधारी पार्टी के मुखिया को कैमरे में कैद करके रिश्‍वत लेते टीवी स्क्रीन पर पूरे देश ने देखा, लेकिन सत्ताधारी लोगों ने उसके खिलाफ कार्यवाही करने के बजाय, उसका बचाव किया| राष्ट्रवाद, संस्कृति और धर्म की बात करने वालों ने तो अपना राजधर्म नहीं निभाया, लेकिन सत्ता परिवर्तन के बाद यूपीए प्रथम और द्वितीय सरकार ने भी उस मामले को नये सिरे से देखना तक जरूरी नहीं समझा|

ऐसे सत्ताधारी लोगों के कुकर्मों के कारण भारत में भ्रष्टाचार रूपी नाग लगातार फन फैलाता जा रहा है और कोई कुछ भी करने की स्थिति में नहीं दिख रहा है| सत्ताधारी राजनैतिक गठबन्धन से लेकर, सत्ता से बाहर बैठे, हर छोटे-बड़े राजनैतिक दल में भ्रष्टाचारियों, अत्याचारियों और राष्ट्रद्रोहियों का बोलबाला लगातार बढता ही जा रहा है| ऐसे में नौकरशाही का ताकतवर होना स्वभाविक है| भ्रष्ट नौकरशाही लगातार मनमानी करने लगी है और वह अपने कुकर्मों में सत्ताधारियों को इस प्रकार से शामिल करने में माहिर हो गयी है कि जनप्रतिनिधि चाहकर भी कुछ नहीं कर सकें|

ऐसे समय में देश में अन्ना हजारे जी ने गॉंधीवाद के नाम पर भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन करके सत्ता को झुकाने का साहस किया, लेकिन स्वयं हजारे जी की मण्डली में शामिल लोगों के दामन पर इतने दाग नजर आ रहे हैं कि अन्ना हजारे को अपने जीवनभर के प्रयासों को बचाना मुश्किल होता दिख रहा है|

ऐसे हालात में भी देश में सूचना का अधिकार कानून लागू किया जाना और सत्ताधारी गठबन्धन द्वारा भ्रष्टाचार के मामले में आरोपी पाये जाने पर अपनी ही सरकार के मन्त्रियों तथा बड़े-बड़े नेताओं तथा नौकरशाहों के विरुद्ध कठोर रुख अपनाना आम लोगों को राहत प्रदान करता है|

अन्यथा प्रपिपक्ष तो भ्रष्टाचार और धर्म-विशेष के लोगों का कत्लेआम करवाने के आरोपी अपने मुख्यमन्त्रियों को उनके पदों से त्यागपत्र तक नहीं दिला सका और फिर भी भ्रष्टाचार के खिलाफ गला फाड़-फाड़ कर चिल्लाने का नाटक करता रहता है!

अंदाज ए मेरा: बरगद और मैं....

अंदाज ए मेरा: बरगद और मैं....: "सेकंड, मिनट, घंटा, दिन, महीना, और साल.....। न जाने कितने कैलेंडर बदल गए पर मेरे आंगन का बरगद का पेड वैसा ही खडा है अपनी शाखाओं और टहनियों क..."

29.4.11

कुंवर प्रीतम का मुक्तक


तुम बिन साथी कैसे बताएं, रात कटे ना दिन बीते
तन्हा जीवन निकल रहा है, यादों के आंसू पीते 
अम्बर जितना गम पसरा और सागर सी बेचैनी है
समझ गया हूँ ढाई अक्षर, हम हारे और तुम जीते
कुंवर प्रीतम 
२९.०४.२०११

कुंवर प्रीतम का मुक्तक


अजब ये देश का अपने हुवा ये हाल है यारों
सियासत ने तबीयत से किया बेहाल है यारों
जिसे मौका मिला, उसने दिया सबको दगा जमकर
हड़पकर माल वतन को कर दिया कंगाल है यारों 
कुंवर प्रीतम
२९.०४.२०११

ब्रेकिंग न्यूज़.... अविनाश वाचस्पति जी के बारे में बहुत बड़ा खुलासा...

कल अविनाश वाचस्पति सर का फ़ोन आया था... कॉल करने के लिए मैंने ही कहा था... बातों बातों में एक राज की बात खुल गयी... अविनाश सर सबको बता रहा हूँ... अब आप गुस्सा होइए या न होइए कोई फर्क नहीं पड़ता... मैं तो बता रहा हूँ... तो खुलासा ये है कि अविनाश सर के घर पर टी वी नहीं है... इतनी सारी घटनाओं को दुर्घटना बना देते है और घर में एक टी वी नहीं है???...

अविनाश सर मुझे आपसे ऐसी उम्मीद नहीं थी... कितने चैनल वालों का आपने दिल तोड़ दिया... आप ही बताइए सब आपकी तरह टी वी रखना बंद कर दे तो कितने टी वी बनाने वाले अपनी फैक्टरी में लगाने के लिए ताला बनाने लगेंगे... कितने ही चैनल बंद हो जायेंगे... क्यों देश की अर्थ-व्यवस्था पर चोट कर रहे है... बेरोजगारी बढ़ाने में सहयोग कर रहे है... उनके भी बीवी-बच्चे है (महिलाओं के पति-बच्चे है)....

अविनाश सर कल ही खरीद डालिए... न देखिएगा पर खरीद लीजिये... बोर हो जाइये तो मैं हूँ न... खुद आके ले जाऊंगा आपके घर से... 

कॉपी राइट एक्ट-(HELPFUL HAND BOOK)

(प्रतिलिपि अधिकार अधिनियम)
 (HELPFUL HAND BOOK)
 
भड़कीला सवाल- " डॉमेस्टिक वायॉलन्स एक्ट २००५ भी, एक तरह से कॉपी राइट भंग का कानून है क्या?"

चटकीला जवाब-"शायद, मगर अच्छा है कि,किसी के सास-ससुर, अपने मौलिक सृजन,(बेटी) का विवाह करने के पश्चात उसे, अपनी कॉपी राइट प्रोटेक्टेड मिल्कियत मान कर, बेटी में देखे गए, शारीरिक,मानसिक,आर्थिक और सामाजिक स्तर के बदलाव का हिसाब माँगकर, कॉपी राइट एक्ट उल्लंघन का नोटिस नहीं भेजते हैं वर्ना, कोई भी दामाद का बच्चा, सास-ससुर के इस अनमोल मौलिक सृजन को, शादी के दिन जैसा, तरोताज़ा कहाँ रख पाता है?"

http://mktvfilms.blogspot.com/2011/04/helpful-hand-book.html

 मार्कण्ड दवे । दिनांक- २७ नवम्बर २०१०.

साहित्य की चौर्य परंपरा मे एक नया नाम प्रसार भारती की सर्वेसर्वा मृणाल पांडे का भी जुड गया है।

साहित्य की चौर्य परंपरा मे एक नया नाम प्रसार भारती की सर्वेसर्वा मृणाल पांडे का भी जुड गया है।२६ अप्रैल के हिंदुस्तान के संपादकीय पृष्ठ पर सुभाषिनी अली ने मराठी से विष्णु भट्ट गोडसे वरसईकर कृत यात्रावृतांत के मराठी से हिंदी अनुवाद को मृंाल पांडे का अद्भुत कारनामा सिद्ध किया है।विद्वान लेखिका को शायद जानकारी नही है कि विष्णु भट्ट गोडसे की इस अत्यंत चर्चित पुस्तक का बरसों पहले कई विद्वान लेखक अनुवाद कर चुके हैं जिनमे पं०अमृतलाल नागर भी शामिल हैं।१८५७ के स्वतंत्रता संग्राम के १५० वर्ष परे होने के क्रम मे आकाशवाणी की राष्टरीय प्रसारण सेवा के लिए एक शोध कार्य करते हुए पं० सुरेश नीरव के साथ मै बार बार उक्त कृति से बार -बार गुजरा हूं एसे मे सुभासिनी अली और मृणाल पांडे जैसे साहित्य के बडे नाम किसी लेखक के योगदान का जिक्र किए बिना स्वयं स्रेय लेना चाहते हैं तो ऊनकी इस हरकत को चौर्य -परंपरा का हिस्सा ना माना जाय तो क्या माना जाय?
आप विद्वान साथियों के विचार भी इस संबंध मे आमंत्रित हैंअरविंद पथिक

एक ताजमहल ही काफी है?

रविकुमार बाबुल
ग्वालियर शहर के जलविहार परिसर में, मैं उसको घुमाने ले गया था, बीते दिनों गंदगी से भरी या गंदगी फैलाकर मार डाली गयी तमाम मछलियों का स्मरण हो आया। अचानक मुझे परिसर के भीतर खिले फूलों का मेरे हाथ को छू लेने का एहसास हुआ। गौर किया तो फूलों ने नहीं, उसके हाथों ने मेरे हाथों को छूकर, मेरा पर्यावरण को लेकर कागजी खाना पूर्ति करने वालों की ताकिद के बावजूद पर्यावरण के आसरे मछलियों की याद में ताजमहल बनाने का एक बारगी मेरे मन में आया ख्याल तोड़ दिया। उसने सुर्ख गुलाब का फूल तोडऩा चाहा। मैंने फूल तोडऩा मना है के बोर्ड की ओर इशारा किया, उसने सोच लिया कि उसे मैं कांटों से डरा रहा हूं? वह फूल-पत्ती पढऩे में लगी रही। सहसा भीड़ इतनी बढ़ चली कि हर शख्स को उसे पढऩे से रोकना मेरे लिये किसी सुनामी की तरह बस का ही नहीं रह गया? सोचा ... फूल और भीड़ से बंटता दिमाग, कहीं दिल न बांट दे। चलो ... किला (ग्वालियर फोर्ट) पर चलते है, उसकी सहमति से निकल लिये। किले की इस चढ़ाई के मुकाबले, इश्क की चढ़ाई अब ज्यादा आसान हो चली, लगने लगी। खैर... यहां पर फूल पत्ती तो नहीं थे, लेकिन खण्डहर में तमाम जगह प्रेम ही प्रेम बेतरतीब बिखरा दिखा? यहां तक कि दीवारों पर प्रेम, पत्थर पर प्रेम, कहीं लुढ़का हुआ प्रेम, कहीं झाडिय़ों की पकड़ से खुद को छुड़ाने की जद्दोजहद करता प्रेम, किसी के कांधे पर सिर रखकर इठलाता प्रेम तो कहीं पर गुरूबाणी की आवाज सुनकर सीढ़ीयों पर बैठा अपने प्रेम के आने के इंतजार में इबादत कर बैठा प्रेम? मैंने सोचा ईत्ता सारा प्रेम है तो फिर संदेह में प्रेमिका की हत्या क्यों होती है? मुम्बई से लेकर दिल्ली तक यह प्रेम टुकड़ों-टुकड़ों में अटैची में क्यों समेट लिया जाता है? इसका जवाब किससे मांगता, या फिर कौन देता? दिल के आसरे पत्थरों सरीखा एक सवाल जब मैने उससे पूछा तुम्हें मालूम है यह किला किसने बनवाया? लगा अचानक किले की उंचाई बढ़कर सूरज के काफी करीब पहुँच गयी है मेरे इस सवाल पर मेरी शालभंजिका भड़क उठी? मेरा भी नेह की अनबुझी प्यास के बीच अब कण्ठ भी सूख चला, लगने लगा। उसने पलट कर कहा हिस्ट्री के चक्कर में रहोगे तो अपनी दुनिया नहीं बना पाओगे, और इस दुनिया के ही होकर रह जाओगे? और तो और सेमीनारों में वक्ताओं की आसंदी के सामने भरे गिलास सा ढंककर रख दिये जाओगे?
उसने तत्काल लौटने का मन बनाया, मैंने भी अनमने मन से लौटने की उसकी अधिसूचना पर अपनी मुहर लगा दी, पता नहीं चल रहा था कि वह यहां से लौटना चाहती है या मेरी जिंदगी से? खैर ... लौटते वक्त उसे मेरी थकान का भ्रम हुआ? उसने किसी को फोन लगाया। फूलबाग पर हम दो से अचानक तीन हो गये, वह जो आ गया था। रास्ते दो रह गये, वह उसको लेकर स्टेशन की ओर फुर्र हो गया। मैं फूलबाग गुरूद्वारे की तरफ लौट चला, सोचा कहीं यह भी तो हिस्ट्री के सवाल नहीं करेगा? या कॉमर्स विषय रहा होगा इसका तो जोड़-बाकी करके काम चला लेगा। चिडिय़ा घर के दीवारों के साये में जानवरों की गंध के बीच बढ़ते हुये मैंने एक बोर्ड देखा.....। मात्र तीन हजार रूपये में फिजीक्स की कोचिंग, पहले 20 स्टूडेन्ट को कुछ छूट भी। सोचा लोग शरीर विज्ञान में तो दक्ष हो जाते है लेकिन दिल नहीं पढ़ पाते हंै? अब यकीन हो चला था कि दूजा ताजमहल आज तलक क्यूं नहीं बन सका है, पर अब कभी मैं इतिहास के सवाल किसी से नहीं करूंगा, अपने अतीत से भी नहीं, एक ताजमहल ही काफी है?

समाजवादी आन्दोलन-संघर्ष और सत्ता

समाजवादी आन्दोलन-संघर्ष और सत्ता

अरविन्द विद्रोही
डा0 राम मनोहर लोहिया ने समाजवादी आन्दोलन को सार्थक व सही राह पर चलाने के लिए 1957 में ही कहा था - किसी भी बड़े आन्दोलन में एक अजीब तरह की वाहियात चीज या मोड़ बन जाया करता है। एक तरफ वे लोग जो कि आन्दोलन के उद्देश्यों के लिए तकलीफ उठाते हैं, दूसरी तरफ वे लोग जो आन्दोलन के सफल होने के बाद उसके हुकूमती काम-काज को चलाते हैं। और आप याद रखना कि ये संसार के इतिहास में हमेशा ही हुआ है लेकिन इतना बुरी तरह से नहीं हुआ कभी जितना कि हिन्दुस्तान में हुआ है। और मुझे खतरा लगता है कि कहीं सोशलिस्ट पार्टी की हुकूमत में भी एैसा न हो जाये कि लड़ने वालों का तो एक गिरोह बने और जब हुकूमत का काम चलाने का वक्त आये तब दूसरा गिरोह आ जाये।
डा0 राम मनोहर लोहिया की यह आशंका दुर्भाग्य-वश अक्षरशः सत्य साबित हुई।डा0 लोहिया के धुर अनुयायी मुलायम सिंह यादव भी बगैर संघर्ष किये हुकूमत चलाने वाले गिरोह के मोहपाश में जकड़ गये थे।तमाम खांटी समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव से दूर होते गये और मजे की बात यह है कि इन सबके दूर जाने के पीछे था सिर्फ एक चेहरा अमर सिंह। यह वह दौर था जब सपा में फिल्मी सितारों,खिलाड़ियों,पॅंूजीपतियों,ठेकेदारों, का वर्चस्व कायम हुआ। समाजवादी कार्यकर्ताओं के संघर्ष व त्याग के मूल्य की जगह ग्लैमर व दौलत ने ले लिया। कालान्तर में उ0प्र0 व केन्द्र दोनों जगह की सरकारों में सपा की कोई भागीदारी न रहने के कारण मौका पाकर व्यावसायिक नेता ने सपा व मुलायम सिंह यादव दोनों से किनारा कर लिया और अपना अलग राजनैतिक दल बना लिया।सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के लिए यह आघात के साथ-साथ एक सबक भी था।व्यावसायिक,आपराधिक प्रवृत्ति के दलबदलू लोग निहायत ही स्वार्थी व लोभी होते हैं।इन स्वार्थी लोगों का किसी भी राजनैतिक विचारधारा से कोई लगाव नहीं होता है। किसी भी संगठन से,उसके प्रचार-प्रसार से, विचारों के अनुपालन से इन तत्वों की कोई भी दिलचस्पी नहीं होती है। यह अवसरवादी प्रजाति के सर्वव्यापी जीव होते हैं तथा सरकार में रहकर अपना उल्लू सीधा करते हैं। यह जनता का रूझान भांप कर उसी दल में प्रवेश करते हैं जिसकी सरकार बनने की उम्मीद होती है।
खतरा बहुत बड़ा है समाजवादी कार्यकर्ताओं के साथ-साथ समाजवादी पार्टी के नेतृत्व पर भी। एक तरफ दमनात्मक व अलोकतांत्रिक कार्यवाही पर आमादा उ0प्र0 की बसपा सरकार, दूसरी तरफ संघर्ष के पश्चात् सपा में संगठन में ही मौजूद गणेश परिक्रमा करने वाले,पूॅजीपतियों,स्वार्थी प्रवृत्ति के लोगों को नेतृत्व द्वारा तवज्जों दिये जाने का आंतरिक भय। और यह आंतरिक भय टिकट वितरण के बाद असंतोष के रूप में सामने आ रहा है।सड़क पर उतर कर गॉंव-गॉंव में जा कर जनता के दुःख-दर्द को बॉंटने वाला कार्यकर्ता या नेता कहॉं रोज मुख्यालय पर हाजिरी लगा पायेगा,इस तथ्य को समाजवादी पार्टी के नेतृत्व को संज्ञान में लेना चाहिए। एक बात और है समाजवादी पार्टी में कौन-कौन कार्यकर्ता व नेता अपने संगठन के कार्यक्रमों को मनोयोग से पूरा किया है,इसकी पुख्ता जानकारी नेतृत्व के पास होनी चाहिए।
डा0 लोहिया ने संगठन के संदर्भ में भी सचेत किया था कि संगठन में जो लोग आयें उनमें सहयोगिता होनी चाहिए। अगर संगठन चलाना है तो व्यक्तिवाद कैसे चल सकता है? दोनों में सहअस्तित्व नहीं हो सकता है।जब संगठन चलेगा तो व्यक्तिवाद को खत्म करना ही पडेगा। पूरी तरह से खत्म करना नामुमकिन है क्योंकि हम लोग पूरी तरह से तो अच्छे हो नही सकते। लेकिन जिस हद तक व्यक्तिवाद को खत्म करना जरूरी है,करना पड़ेगा।

ये देश हैं वीर जवानों का.... या ये देश हैं भ्रष्ट नेताओ का....


ये देश हैं भ्रष्ट नेताओ का,
रिश्वतखोरो का, नमकहरामो का !!
इस देश का यारो होए!!
इस देश का यारो क्या कहना
ये देश था कभी दुनिया का गहना.......
ओ ओ ओ ओ ...

यहाँ मरते हैं गरीब अमीरों की बस्ती में
उडती हैं धज्जिया कानूनों की बस्ती.....
यहाँ चलती हैं सिर्फ भ्रष्टाचारियो की
यहाँ भोली हैं शक्ले आम लोगो की
यहाँ लुटती हैं जनता भोली-भाली, नित नए-नए घोटालो में.
ओ ओ ओ ओ ओ........

यहाँ रोता हैं आम आदमी अपनी किस्मत पे
कोसता हैं अपनी किस्मत को.
पैरो में बेडिया रिश्वत की..
राहों में रूकावटे भ्रष्टो की
यहाँ रोता हैं आदमी अपनी किस्मत पे
कोसता हैं अपनी किस्मत को.
ओ ओ ओ ओ ...

कभी होते थे दंगल सोख जवानो के
कभी होते थे करतब तीर कमानों की
कभी नित नित मेले होते थे
कभी नित नित मेले सजते थे
नित नित ढोल ताशे बजते थे
ओ ओ ओ ओ ओ.....................

अब देखो सूरत इस देश की
जहाँ रोती हैं जनता अपनी किस्मत पे
ओ ओ ओ ओ ओ.......
लूटते हैं भ्रष्टाचारी देश को मिलकर
रोकते हैं उन्नति को मिलकर
ओ ओ ओ ओ ओ.........

अब और न सहेंगे कहते हैं हम सब मिलकर,
करेंगे सामना भ्रष्टाचार से हम मिलकर..
क्योंकि.....
दिलबर के लिए दिलदार हैं हम
दुश्मन के लिए तलवार हैं हम
मैदान में अगर हम आ जाएँ!!
दुश्मन के छक्के छोट जाये....
ओ ओ ओ ओ ओ ओ ............

क्यों न आवाज को बुलंद कर दे हम
अपने बच्चो को सुनहरा भविष्य दे दे हम
ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ .........

गर मिल के सामना करे हम सब मिल कर
फिर से हो गुनगुनायेंगे सब मिलकर......

ये देश हैं वीर जवानों का
अलबेलो का, मस्तानो का
इस देश का यारो होए!!!!!
इस देश का यारो क्या कहना
ये देश हैं वीरो का गहना.
ओ ओ ओ ओ ओऊ ओ ओ ओ ओ ......................

s
Re - Written by : Pawan Mall

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ग़ज़ल

तुम्हें मुबारक तुम्हारी खुशियाँ,
हमारे दिल को भी गम नहीं है।
नहीं था कह दो कि प्यार हमसे,
तुम्हें तो कोई कसम नहीं है॥

है प्यार सच्चा तेरे जहाँ से,
ये प्यार ऊंचा है आसमां से।
तुम्हें भले ही यकीन न हो,
हमे तो कोई भरम नहीं हैं॥

लहर के डर से किनारे बैंठे,
यही नहीं है हमे गंवारा।
भले ही कट जाएँ पर हमारे,
पर हौसले भी तो कम नहीं हैं॥

वो दोस्त हैं तो करीब आयें,
जो दुश्मनी है तो फिर निभाएं।
ये सोच के घर से चल पड़े हैं,
कि आज वो हैं या हम नहीं हैं॥

28.4.11

बिखरे मोती quote of the day

बिखरे मोती quote of the day

No man in this world is rich enough to buy his own past.

Enjoy each moment before it gets beyond reach.

कोई भी व्यक्ति इतना अमीर नहीं कि वह अपना भूतकाल खरीद सके .

हर पल का सही इस्तेमाल कीजिए , इससे पहले कि वह आपकी पहुँच से बाहर हो जाये.





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akela chana


तू बाल बच्चे दार है...हट जा पीछे ....मैं जाऊंगा ,ये दिल मांगे मोर और वो जर्जर बूढा फौजी......r

बात 1999 की है .....कारगिल में भीषण युद्ध चल रहा था ......माताओं के लाल तिरंगे में लिपट के घर आ रहे थे .... फिल्मों में जब हीरो गोलाबारी के बीच में हिरोइन को बचाने के लिए आगे बढ़ता है तो सब कुछ बड़ा रोमांटिक लगता है .........पर वहां जब LMG का burst आता है तो अच्छे अच्छों की पैंट खराब हो जाती है .......ऐसा मैंने बहुत से फौजियों के मुह से सुना है ......दीवाली पे जब बच्चे चिटपिटिया ,सुतली बम्ब और अनार जलाते हैं तो मां बाप को चिंता हो जाती है ......अरे भाई सावधान रहना ...कहीं कुछ हो न जाए .......और वही मन बढ़ लौंडे ........ जा के फ़ौज में भरती हो जाते हैं ........और वहां असली बम्ब फोड़ने से भी नहीं डरते । तो वहां असली लड़ाई चल रही थी ...ऐसी..... कि बताते हैं कि जैसी आज तक कभी नहीं हुई इतिहास में .......दुश्मन ऊपर बैठा था और ये नीचे से ऊपर चढ़ रहे थे .......तापमान .... -15 डिग्री ...चारों तरफ बर्फ .....एक चोटी है .....4875 उसपे कब्ज़ा करना था ......13 JAK RIFELS के CO, col Y K JOSHI ने कमान सौंपी CAPT VIKRAM BATRA को ......तब तक CAPT BATRA कि जाँबाज़ी कि कहानियां पूरे देश में मशहूर हो चुकी थीं और उन्हें कारगिल का poster boy कहा जाने लगा था .....वो अभी अभी तीन चोटियाँ ,5140,4750 और 5100फतह करके लौटे थे और मशहूर टीवी एंकर बरखा दत्त ने उनका interview लिया था .....उसने पूछा अब क्या इरादा है तो BATRA ने कहा था .....ये दिल मांगे मोर .......BATRA ने युद्ध में इतनी बहादुरी दिखाई थी कि खुद chief of army staff general VP MALIK ने उन्हें फोन करके शाबाशी दी थी ......BATRA को युद्ध भूमि में ही promotion दे कर lieutenant से captain बना दिया गया था .....तब BATRA ने अपने CO से कहा था....... ये दिल मांगे मोर .........पूरी युद्ध भूमि में ये वाक्य ....ये दिल मांगे मोर एक नारा बन गया था ......

CAPT BATRA अपने 5 साथियों के साथ आगे बढ़ रहे थे .......भीषण गोला बारी चल रही थी .......16000 फुट कि ऊंचाई पर ...खड़ी चढ़ाई ......रात का समय ....गोलियों कि बौछार से बचने के लिए ये लोग एक चट्टान कि आड़ लिए हुए थे तभी lieutenant naveen के पास एक हथगोला फटा और उनकी एक टांग उड़ गयी .......उनकी चीख सुन कर सूबेदार रघुनाथ सिंह आगे बढे ...पर CAPT BATRA ने रोक दिया .....रघुनाथ बोले सर मुझे जाने दीजिये ......नहीं तो वो मर जायेगा ......CAPT BATRA ने जवाब दिया .......नहीं तू बाल बच्चे दार है ....हट जा पीछे ....मैं जाऊंगा ......फ़ौज में senior का हुक्म मानना ही पड़ता है .....चाहे कुछ भी हो जाए ......सो CAPT BATRA रेंगते हुए आगे बढे .....lieutenant नवीन के पास पहुचे ही थे कि उन्हें गोली लग गयी...सीने में ....... उन्हें किसी को goodbye कहने का भी मौका नहीं मिला .....
कारगिल युद्ध कि दसवीं सालगिरह पर करगिल में एक कार्यक्रम में CAPT BATRA के जुड़वां हमशकल भाई VISHAL BATRA भी शामिल हुए ....वहां उन्हें सूबेदार मेजर रघुनाथ सिंह मिल गए......VISHAL BATRA बताते हैं कि रघुनाथ उन्हें देखते ही उनसे लिपट गए और फूट फूट कर रोने लगे ....उन्होंने बताया कि जीवन में आखिरी बार CAPT BATRA ने उनसे ही बात की थी .......तू बाल बच्चे दर है ....हट जा पीछे ....मैं जाऊंगा .......वो गए और फिर तिरंगे में ही लिपट कर वापस आये .......अपने गाँव पालमपुर में वो अक्सर कहा करते थे ........या तो तिरंगा लहरा के आऊंगा ....या तिरंगे में लिपट के आऊंगा .........पर आऊंगा ज़रूर .........भारत सरकार ने उन्हें अदम्य साहस और शौर्य के लिए राष्ट्र के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परम वीर चक्र से मरणोपरांत सम्मानित किया .....
हमारे घोटालेबाज राज नेताओं अफसरों और सैनिक अधिकारियों ने आदर्श हाऊसिंग सोसाईटी की साज़िश रची तो उसे कारगिल के शहीदों की सहायतार्थ एक परियोजना के रूप में प्रस्तुत किया ......और बाद में जब बन्दर बाँट हुई तो हमारे तत्कालीन army chief दीपक कपूर ने भी अपना हिस्सा बाँट लिए ....हालांकि उनके पास पहले से ही ........उनकी आय के ज्ञात स्त्रोत से अधिक के अनेकों बंगले फ्लैट और प्लाट थे ............पर क्या करें .....बेचारा ....ये दिल ......मांगे मोर ........

हमारा रक्षा मंत्रालय कल के अपने इन जांबाज़ सिपाहियों के लिए ......retired soldiers के लिए..... पोली क्लिनिक चलता है ......ECHS की सुविधा देता है .......कहने को तो बड़ी अच्छी सुविधा है .....बूढा फौजी एक बार 10 या 15000 रु दे कर ECHS का कार्ड बनवा कर पूरे देश में कहीं पर भी किसी भी सरकारी या प्राइवेट अस्पताल में अपना इलाज करा सकता है ......बस आपको अपने पोली क्लिनिक से refer करना पड़ता है .......पिछले दिनों अपने बूढ़े ....retired फौजी बाप के साथ जालंधर के पोली क्लिनिक जाने का अवसर मिला .......वहां गया तो होश उड़ गए .......इतनी भीड़ ....बाप रे बाप .....लगा मनो अमिताभ बचन की फिल्म लगी है ........सुबह 9 बजे लाइन में जो लगे तो ३ बजे जा कर किसी तरह referal form हाथ में आया .....इस बीच 8-9 अलग अलग counters और कमरों के आगे लम्बी लम्बी लाइनों में घंटों इंतज़ार करके धक्के खाते .........हालत पतली हो गयी ......मेरी ......८१ साल के उस बीमार जर्जर बूढ़े का हॉल क्या होगा ..आप सोच लें .......लाल फीता शाही इतनी ...कि हद नहीं ......मुझे ऐसा लगा मानो मैं refferal form नहीं जैतपुरा में nuclear powerplant की मंज़ूरी मांग रहा हूँ ...........
आदत से मजबूर जो ठहरा .....पहुँच गया .........OIC के पास ....उस बेचारे भले आदमी ने प्यार से बात तो की ...और वही रोना रो दिया ...संसाधनों की कमी का .....5-6 जिलों से फौजी आते है ...दूर दूर से ......भीड़ हो जाती है .......जगह की कमी है ...डॉक्टर नहीं हैं ......ऊपर से लाल फीता शाही .......sign करने के लिए अलग लाइन ...फिर उसपर मुहर लगाने के लिए दूसरा काउंटर ......फिर register में एंट्री .....फिर डॉक्टर की संस्तुति ......फिर medical specialist की opinion ..........और हर जगह झल्ला कर बोलते कर्मचारी ......सवाल जवाब ...बहाने .......हम क्या करें .......यूँ .....मानो उस बूढ़े फौजी पर अहसान कर कर रहे हैं सब लोग .........रक्षा मंत्रालय की खाल इतनी मोटी है ........उसे फर्क नहीं पड़ता ..........
मैं सोचने लगा ........क्या यूँ ही जान दे दी VIKRAM BATRA ने ...........दो घड़ी सुस्ता लेता .......कोई बहाना बना देता .........रघुनाथ सिंह को ही जाने देता .......तू बाल बच्चे दार है ....हट जा पीछे .......मैं जाऊंगा .......भला ये भी कोई बात हुई ........अरे बाल बच्चे न सही ...मां बाप तो थे ही पीछे .......एक प्रेमिका भी थी ......उस से वादा कर के आया था .......दो महीने बाद आऊंगा .........शादी करने ........आज 12 साल हो गए ......वो लड़की आज भी बैठी है .......उसे इस बात से फर्क नहीं पड़ता की उसकी शहादत के कोई मायने नहीं हैं .......उसे तो war widow का दर्ज़ा भी नहीं मिलेगा .........
मेरा बूढ़ा बाप आज भी बड़े गर्व से 65 और 71 की लड़ाई के किस्से सुनाता है .......बड़े गर्व से ...........वो कहानियां सुनाते आँखों में चमक आ जाती है .......तब पोली क्लिनिक के वो धक्के याद नहीं रहते .......बूढ़ा योद्धा अब भी हार मानने को तैयार नहीं है .........

Best Film Editor: Anuradha Singh will be honoured on May 1st, 2011 in Mumbai(INDIA) by (NBC)



Best Film Editor: Anuradha Singh will be honoured

Best Film Editor: Anuradha Singh will be honoured on May 1st, 2011 in Mumbai(INDIA) by (NBC) , her Mo. # is             +91 9821277574 begin_of_the_skype_highlighting            +91 9821277574      end_of_the_skype_highlighting  

 Newsmakers Broadcasting and Communications Pvt. Ltd., (NBC) comprehending the importance of such people in society who have never claimed for their name to be cherished for their contribution; not only salute their hard work to improve the society but also like to count them amongst deserving citizens for awards which will be honoured on May 1st, 2011.


Work done by A N U R A D H A   S I N G H_in Film world and her achievements  are given below    : 


                  A N U R A D H A        S I N G H________________       
                                                           F I L M     E D I T I N G   C R E D I T S                        
                                       
                            
                           
                                                   WEST IS WEST – Andy De Emmony, Director                                                                                                                                                                                        
                                                          BBC Films (UK)  / Assassin Films (UK)
                                                                    ASSEMBLY   EDITOR

                                               

                   SUKNO LANKA – Gaurav Pandey, Director                                                                           
                                                         Mumbai Mantra (INDIA) Moxy Films
                                                                            EDITOR


             SLUMDOG MILLIONAIRE – Danny Boyle, Director                                                                                                                                                                                       
                                                      Film Four (UK)  / India Take One (INDIA)
                                                                    ASSEMBLY   EDITOR

                                                  BLOOD MONKEY – Robert Young, Director
                                                            Robert Halmi International (USA) 
                                                                              EDITOR
                                         
                                                     THE FOREST – Ashwin Kumar, Director
                                                            Dreyfuss James Productions (USA)
                                                                   ASSEMBLY EDITOR
                                              
                                                      MARIGOLD – Willard Carroll, Director                                                                            
                                          Hyperion Pictures (USA)  / Entertainment One (INDIA)
                                                                               EDITOR
                      
                                        MISSION KASHMIR– Vidhu Vinod Chopra, Director                  
                                                        Vinod Chopra Productions (INDIA)
                                                                ASSISTANT EDITOR
                                                                                                                                                                                                                                                                                                  
                    
          S H O R T   F I L M S    &   D O C U M E N T A R I E S    I N C L U D E :

                           

                    PROGRESS TO PROSPER- Rumana Hameid, Director                                                                           
                                                              Spark Water (INDIA)
                                                                       EDITOR

                               
          WINGS OF LEGACY- Neeta Mittal, Director                                                                           
                                                        Live Area Productions (USA)
                                                                       EDITOR

                                                  FOREVER – Labid Aziz, Director
                                                   Two Rams Entertainment (USA)
                                                                      EDITOR
               
                                       BEYOND COLOURS– Anuradha Singh, Director
                                                      Teamworks Pictures (INDIA)
                                                            WRITER / EDITOR

                                 EK LAMHA…one moment – Anuradha Singh, Director
                                     Awaz Cine Creations / Teamworks Pictures (INDIA)
                                     PRODUCER / MUSIC COMPOSER / WRITER
                                                 
                
        TOUCH THE SKY WITH GLORY – Anuradha Singh,Director                                                               
                                                    Teamworks Pictures (INDIA)
                                                                   EDITOR

                             INFRONT OF MY EYES – Anuradha Singh, Director
                                                   Teamworks Pictures (INDIA)
                                                                   EDITOR                                            
                                       

   A C H I E V E M E N T S  :
                 
                                            Best Short Edited Film by UNICEF
                                   Nomination for documentaries at IBDA (Dubai)
                     Official selection in Palm Spring International Film Festival (USA)
                  Winner of the 4th Rajeev Gandhi Young National Poet Award (INDIA)



                                     F I L M    L O C A T I O N S    I N C L U D E :
                                              IndiaU.S.A.Thailand and Dubai
                                       
                                P R O F E S S I O N A L    A S S O C I A T I O N S

                               Association of Film & Video Editors  (AFE), Mumbai
                                                         Affiliated to F.W.I.C.E.
                                         

                                                                E D U C A T I O N                                                   

    Film & Television Institute of India, Pune (Graduate in Film Editing)  
          Bhartiya Vidya Bhawan, Delhi  (Post Graduate Diploma in Mass Comm.)
                                       Hindu College, Delhi (Graduate in Political Science)


                                                 

  R E F E R E N C E S  
       
                           Walter Murch (Editor, Sound Designer, USA)             +1 415-868-0683 begin_of_the_skype_highlighting            +1 415-868-0683      end_of_the_skype_highlighting                                             
                                  
   Danny Boyle (Director, UK)              +44-(0) 774 007 2490 begin_of_the_skype_highlighting            +44-(0) 774 007 2490      end_of_the_skype_highlighting      
                                   
                                     Willard Carroll (Director, USA)              +1 323 5725641 begin_of_the_skype_highlighting            +1 323 5725641      end_of_the_skype_highlighting      

        Tom Wilhite (Producer USA)  +1 323 819 629
                               
     Judith James (Producer, USA)              +1 323 850 3140 begin_of_the_skype_highlighting            +1 323 850 3140      end_of_the_skype_highlighting      
                 
                    Leslee Udwin (Producer, UK )              +91 98205 93 694 begin_of_the_skype_highlighting            +91 98205 93 694      end_of_the_skype_highlighting      

      Alexander de Grunwald (Producer, UK / INDIA)             +91 98205 93 694 begin_of_the_skype_highlighting            +91 98205 93 694      end_of_the_skype_highlighting      
        
     Vidhu Vinod Chopra (Producer / Director, INDIA)             + 91- 22 2661 5059 begin_of_the_skype_highlighting            + 91- 22 2661 5059      end_of_the_skype_highlighting      



                                             

HER :        C O N T A C T    D E T A I L S  

             Cell No.             + 91- 98212 77 574 begin_of_the_skype_highlighting            + 91- 98212 77 574      end_of_the_skype_highlighting       (BOMBAY) /            +1 310 359 5866 begin_of_the_skype_highlighting            +1 310 359 5866      end_of_the_skype_highlighting       (LOS ANGELES)
                           Email id – greatfutureahead@gmail.com



 Congratulation to Anuradha and all those who has been  selected for this prestigious AWARD .
 Newsmakers Broadcasting and Communications Pvt. Ltd., (NBC) comprehending the importance of such people in society who have never claimed for their name to be cherished for their contribution; not only salute their hard work to improve the society but also like to count them amongst deserving citizens for awards which will be honoured on May 1st, 2011.